धर्म मे वैज्ञानिकता और अश्वमेघ का शंखनाद दुनिया के सभी धर्म आस्था और विश्वास पर आधारित है ,,शुरुआती वक़्त मे सभी धर्म निराकार और साकार देवताओ की अवधारणाओ से युक्त थे | असीरियन और बेबीलोन सभ्यताओ मे "”गिल गिलमेश "” की मूर्ति थी ,उनके यहा भी देवता को प्रशन्न करने के लिए बलि ही दी जाती थी | वह प्रथा बाद मे मूसा के पूर्व एक ईश्वर की अवधारणा अनेक जातियो मे प्रचलित हो चुकी थी | कबीले मे रहने वाले लोगो के लिए भिन्न - भिन्न देवताओ की भी कल्पना प्रचलित थी | अधिकतर देवता प्रकरतीक शक्तियों के प्रतिनिधि और स्वामी माने जाते थे | यूनान की सभ्यता मे भी अनेक देवी और देवताओ की कल्पना थी | वेदिक धर्म मे भी प्राकरतीक शक्तियों के स्वामी माने जाते है | वही त्रिदेव की भी कल्पना वेदिक धर्म मे की गयी है ---एक जो इस दुनिया के सभी जीव - जन्तुओ को जन्म देता है दूसरा विष्णु जो इन सब का पालन करते है और शिव जो इस विश्व का संहार करते है |वेदो मे इन त्रिदेवो के अलावा प्र्क्रतिक शक्तियों के भी अधिदेवता है --जैसे देवराज इंद्र आदि | इन देवो मे अग्नि का सबसे अधिक महत्व है | क्योंकि यज्ञ मे विभिन्न देवताओ को अर्पित की जाने वाली आहुतियों को स्वीकार करके वे ही संबन्धित देव तक पाहुचने का काम करते है | इनके अलावा शाक्त संप्रदाय मे अनेक देवियो की कल्पना की गयी है | दुर्गा सप्तशती के अनुसार महा काली - महा सरस्वती और महा लक्ष्मी से प्रारम्भ हुई स्तुति दुर्गा या चंडिका तक पाहुचती है | ग्यारहवे अध्याय मे मे देवी ऋषि की स्तुति से प्रसन्न हो कर शताक्षी-शाकंभरी --दुर्गा और भीमा देवी तथा भ्रामरी रूप मे आने का वचन दिया | वही शैव संप्रदाय भी शिव के अनेक रूपो मे पूजा करता है | डॉ संपूर्णनाद की पुस्तक देव परिवार मे वेदिक धर्मो के डीवीआई देवताओ के आविर्भाव की कथादी हुई है | परंतु ऋगवेद मे प्राकरतीक शक्तियों की स्तुति है उसमे ब्र्म्हांड का ज्ञान है | सौर मण्डल -तारे आदि की जानकारी भी दी गयी है | परंतु उस समय सूर्य -इन्द्र और वरुण मुख्य थे | अग्नि को तो वायु के समान सर्वव्यापी माना गया है + | परंतु दो मात्र शक्तियों का उल्लेख भी है | ऋषि विश्वामित्र द्वारा माता गायत्री का तथा देवी वागम्भ्रणि द्वारा आदि शक्ति का प्राक्कट्य बताया गया है | उसमे शिव -विष्णु और ब्रमहा का उल्लेख नहीं है | इस सबका आशय यह बताना है की इसमे ज्ञान है - अनुभूव और अनुभूति है परंतु वैज्ञानिकता नहीं है | केवल अथर्व वेद मे विज्ञान सम्मत कुछ प्रयोग दिये गए है | जो गणित की भांति निश्चित है | परंतु इस वेद को आदिगुरु शंकराचार्य ने मान्यता नहीं दी है | अपनी प्रथम रचना मे ही उन्होने महा लक्ष्मी की स्तुति मे उन्हे तीन वेदो की स्वामिनी कहा है | आदिगुरु का काल नवी शताब्दी है | अतः यह मानना चाहिए की तब तक अथर्ववेद को वेद की मान्यता मे भेद था | वस्तुतः भ्र्गु वंशी ब्रामहण इस वेद के अनुयाई थे | गुजरात से नर्मदा और विंध्य के पार आर्यावर्त मे इनको मान्यता नहीं थी | धर्म दर्शन आधारित होते है | उसी दर्शन से उपासना का स्वरूप तय होता है | वेदिक धर्म मे मूलतः "”निराकार "”” परमात्मा की कल्पना की गयी है | एवं निराकार मे वैज्ञानिकता खोजना भूसे मे सुई खोजने के समान है - हा धर्म से संलग्न ज्ञान की अन्य धाराओ मे यह उपलब्ध था | ऋगवेद मे जिन दो शक्तियों आदिशक्ति एवं गायत्री की स्तुति की गायी गयी उसमे उनकी शक्ति का वर्णन है परंतु उनके स्वरूप के बारे मे नहीं कहा गया है | वस्तुतः वे निराकार ही है | ज्ञानी जन उनके स्वरूप को प्रकाशित शिखा जैसा निरूपित किया है | आश्चर्य है की पारसियों के देवता "”आहुरमजदा "” भी निराकार ही है उनकी उपस्थिती "”अग्नि "” से मानी जाती है | वेद की अन्य शाखा जैसे आयुर्वेद - जिसमे वनस्पति और पेड़ पौधो के सभी अंगो के गुण और अवगुण उल्लखित थे | खगोल शास्त्र - गणित -ज्यामिती आदि निश्चित विज्ञान की श्रेणी मे आते है | परंतु ये धर्म से इतर है | एवं इंका आधार “”ज्ञान””है | | आस्था मे विश्वास होता है – तर्क का क्यू और कैसे नहीं होता | यदि इसे धर्म को परखने की कसौटी बनाएँगे तो संसार का कोई भी धर्म इस पर सफल नहीं होगा |वेदिक धर्म के प्र्नेताओ को यह भान था की समाज मे सभी स्त्री - पुरुष एक मेघा के नहीं होते है | बिरले ही प्रश्न करते है || बहुमत तो '''महाजनो येन गाता सा प्ंथा''' के पीछे चलते है | उन्हे सत्य का ज्ञान अन्य प्रकार से कराया जाता था | |पुराणो का लेखन इसी श्रखला मे हुआ था | साधारण जन उसे सुन कर अपने विश्वास को मजबूत करते थे | इनमे सत्य तो है पर "'पूर्ण सत्य "” नहीं | वेदिक धर्म मे जहा सम्पूर्ण अन्तरिक्ष और उसके तारा मंडलो एवं उनकी गति तथा दूरी का ज्ञान ऋचाओ मे लिपिबद्ध है | उसे अगर धर्म की "”वैज्ञानिकता माने तो ---वह "”ज्ञान "”है | उसमे श्रद्धा नहीं है | ज्ञान तलवार की धार की भांति है उसमे केवल ''सही ''' होता है और उसकी कसौटी पर नहीं खरा उतरा वह सत्य नहीं होता | शास्त्रार्थ ज्ञान के आधार पर होते थे ---श्रद्धा के आधार पर नहीं | सत्य का आधार तथ्य होते है जिनहे खोजने की प्रक्रिया ''तर्क शास्त्र "” से सीध की जाती थी | आदिगुरु और मंडन मिश्र का शास्त्रार्थ ऐसा ही एक उदाहरण है | राजपूत काल मे जब भक्ति आंदोलन का प्रभाव बढा तब निष्काम आराधना का तिरोहण हो गया | आरध्या के मंदिरो मे ''मानता और मनौती "” की परंपरा शुरू हो चुकी थी | यूं तो वेदिक काल मे देवता - मनुष्य और दानव तथा राक्षस सभी ने तपस्या द्वारा अपने अभीष्ट को प्रपट किया था | अवतारो की कथा भी "”वरदान "” की कामना को स्पष्ट करती है | अब इसे पारखे तो यह भी श्रद्धा का परिणाम है | ज्ञान का नहीं | हालांकि मुनिकुमार नचिकेता को यम द्वारा दिया ज्ञान और सत्य की खोज के लिए उनके सुझाए रास्ते को ज्ञान कहा जाएगा | लेवकिन आज के युग की भौतिकी और रसायन के "”टेस्ट "” के अनुकूल तो नहीं होंगे | यहा वेद मे विस्तार पूर्वक वर्णित और बहुपयोगी "”सोम "” लता का पता "”निश्चित रूप से "””नहीं लगे जा सका है | शोध द्वारा बस इतना ही कहा जाता या लिखा गया है की अमुक वनस्पति ''सोम '' के गुणो वाली है | आम प्रचलन मे आयुर्वेद औषधि है "”च्यवन प्राश "”” इसे "””अष्टवर्ग"” युक्त लिखा जाता है ---परंतु निर्माताओ ने इस विषय मे जानकारी मांगे जाने पर "”चार वर्गो "” की उपलब्धि कन्हा से होती है ---काफी गोपनियता बरती है | आम तौर अब मान लिया गया है की वे अब विलुप्त हो गयी है | अतः धर्म मे वैज्ञानिकता और वह भी वर्तमान कसौटियो पर परखने लायक अवधारणा ना तो संभव है और ना ही उचित भी |
Aug 31, 2016
Aug 30, 2016
चींटी का विकह का फार्मूला क्या हाथी के लिए लाभदायक होगा ?
चींटी का विकास फार्मूला क्या हाथी के लिए भी लाभदायक होगा ?
सिंगापूर के उप प्रधान मंत्री श्री थरमन ने भारत के दौरे से वापस जाते हुए नरेंद्र मोदी जी को को सलाह दी है की "””आप बहुत मजबूत विकेट पर है एक - दो रन छोड़िए आप तो बाउंड्री लगाये "” आने लोगो ने इस बयान पर प्रतिकृया का स्वागत करते हुए सुझाव दिया है की भारत को भी त्वरित गति से विकास के लिए तेज़ी दिखानी चाहिए | पर इस बयान की सत्यता जानने के लिए हमे कुछ और भी मालूम करना होगा |
सिंगापूर एक सिटि स्टेट की भांति है जिसकी आबादी मात्रा 55लाख 67 हज़ार है और जिसका कूल छेत्रफल 616 वर्ग किलोमीटर है ! उसके मुक़ाबले 125 करोड़ की आबादी और छेत्रफल 32 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है | अब दोनों की तुलना करे तो चींटी -और हाथी की ही तो तुलना बनेगी ! मात्र मुंबई की ही आबादी एक करोड़ से ज्यादा है | वनहा के रहवासियो की हो सकता है औसत आय देश के अन्य हिस्सो से ज्यादा हो परंतु इस से यह तो नहीं कहा जा सकता की मुंबई महा नगर परिषद का "”प्लान "” देश के स्टार पर अपनाया जाना चाहिए |
अनेक छोटे देशो की आर्थिक -स्थिति हमारे देश की औसत आय से ज्यादा भी है ,,परंतु क्या उसका यह अरथा निकाला जाये की हमे उनकी नक़ल करनी चाहिए ?? दुनिया का सबसे छोटा देश मोनाको है | जहा दुनिया के बड़े - बड़े रईस छूटिया मनाने जाते है | विलासिता का पर्याय है मोनाको इसकी कूल आबादी 30.508 और छेत्रफल 2 वर्ग किलोमीटर से भी कम है | यहा राजशाही है | ऐसा ही एक देश है लक्जेमबर्ग और दूसरा है लईचेस्टीन फ्रांस और जर्मनी से जुड़ी सीमा के इन देशो मे भी आर्थिक संपन्नता हमशे ज्यादा है --सुविधाए भी हमारे यानहा से ज्यादा है नागरिक भी सुखी है |इतने छोटे देश की अर्थ व्यवस्था पर्यटन अथवा कसीनों है | खेती बाड़ी या यूद्योग नहीं है | इन्हे अपनी सुरक्षा के लिए सेना नहीं रखनी पड़ती | क्योंकि सभी पड़ोसी देश इनकी संप्रभुता का सम्मान करते है | विदेश नीति के मामलो मे ये अधिकतर फ्रांस के साथ रहते है |
अब इनकी तुलना मे हमारे यहा बेरोजगारी है ---असिक्षा है ---गरीबी है स्वास्थ्य सुविधाए नगण्य है | यह वास्तविकता है | परंतु अगर इन देशो के राजनयिक भारतवर्ष को विकास का रास्ता बताए --तो यह वैसा ही होगा जैसे कोई राज मिष्त्रि किसी वास्तुविद को मकान बनाने का ज्ञान दे | सिंगापूर के उप प्रधान मंत्री की सलाह
को इसी नज़र से देखना चाहिए |
Aug 29, 2016
जैन मुनि तरुणसागर जी का हरियाणा विधान सभा मे प्रवचन
जैन
मुनि तरुणसागर जी का हरियाणा
विधान सौन्ध मे प्रवचन
कडवे
प्रवचन के लिए खयातनामा
तरुणसागर जी द्वरा हरयाणा
विधान सभागार मे प्रवचन को
लेकर की गयी टिप्पणीयो से
विवाद शुरू हो गया है |
आप
पार्टी और काँग्रेस प्रवक्ता
की टिप्पणियॉ को उचित नहीं
माना जा सकता |
जिन
या जैन धर्म मे तीन प्रमुख
संप्रदाय है दिगंबर ----श्वेतांबर
और स्थानकवासी |
दिगंबर
स्वामियों का जीवन कठिन तपस्या
का प्रतिमान है |
आचार्य
विद्यासागर अपना चातुर्मास
इस वर्ष भोपाल मे व्यतीत कर
रहे है| उनके
दिन - प्रतिदिन
के जीवन से ताप और -अपरिग्रह
को मूर्तिमान रूप मे देखा जा
सकता है | | इसी
दौरान उनहो ने मुख्य मंत्री
शिवराज सिंह के आग्रह पर विधान
सभा सदस्यो को संबोधित करना
स्वीकार किया |
विद्यासागरजी
ने विधान सभा के मैदान मे
शामियाने मे एकत्र सम्पूर्ण
प्रदेश से आए भक्तो को प्रवचन
दिया |उन्होने
विधान सभा के हाल मे जाना
नामंज़ूर किया क्योंकि वनहा
कार्पेट लगे हुए थे |
तरुणसागर
जी ने प्रवचन सभागार मे दिया
---जनहा
विधान सभा की बैठक होती है |
जो
संवैधानिक स्थान है |
जनहा
वे ही बैठते है जिनहोने संविधान
की शपथ ली है |
तरुणसागर
जी को विधायिका के स्थान पर
जाने से बचना चाहिए था |
जैसे
आचार्य विद्यासागर जी ने किया
| तब
कोई विवाद की स्थिति नहीं बनती
| वस्तुतः
सभागार धर्म निरपेक्ष स्थान
होता है | चूंकि
सदस्यो की आस्था भी भिन्न -
भिन्न
मतो मे होती है ,
इसलिए
किसी भी एक धर्म को प्रमुखता
देना अनुचित होगा |
मेरे
समकालीन पत्रकार कानपुर वासी
शम्भूनाथ शुक्ल ने नया इंडिया
समाचार पत्र मे इस घटना /विवाद
पर टिप्पणी लिखी है |
अपनी
लेख मे उन्होने कहा की '''तरुण
सागर ''' जी
''अपरिग्रह
"” के
मूर्त रूप है |
उन्हे
नहीं मालूम की की दिगंबर
सन्यासियों की भांति वे पद
यात्रा नहीं करते है |
वे
पालकी अथवा व्हेडेल चेयर पर
चलते है | उनके
शिष्यो के पास उनका समान भी
रहता है | इसकी
तुलना मे आचर्या श्री विद्यासागर
जी आजीवन पदयात्रा कर रहे है
| उनका
व्रत है की वे दरी -
कार्पेट
पर पैर नहीं रखते |
जबकि
हरियाणा विधान सभा का सभागार
पूरा का पूरा कार्पेट लगा हुआ
है | तो
शुक्ल जी अपरिग्रह के मूर्तिमान
नहीं है तरुणसागर जी यद्यपि
उसका '''यथा
संभव "”” पालन
करते है |
शम्भूनाथ
शुक्ल जी आपने दलाई लामा द्वरा
संसद को संभोधित किए जाने का
उदाहरण देते कहा था की काँग्रेस
''''यदि
बौद्ध गुरुके लिए ऐसी व्यसथा
की जा सकती है तो जैन मुनि के
लिए क्यो नहीं ??
शायद
वे भूल गए की दुनिया मे दो ही
धर्म प्रमुख ऐसे है जिनहे
“”राष्ट्र प्रमुख “”” का भी
दर्जा मिला हुआ है |
पहले
है कैथोलिक चर्च के पोप और
दूसरे है बौद्ध धर्म के प्रमुख
दलाई लामा | यानहा
यह भी बताना जरूरी है की वैटिकन
की अपनी सत्ता है उनके राजदूत
विभिन्न देशो मे है |
| उसी
प्रकार दलाई लामा तिब्बत की
सरकार के राष्ट्र प्रमुख के
रूप मे भारत समेत ब्रिटेन
फ़्रांस अमेरिका आदि बहुत देशो
ने उनकी सरकार को मान्यतादी
है | ये
दोनों अपने - अपने
धर्म और शासन के मुखिया है |
इनके
आने जाने पर पूरी औपचारिकता
बरती जाती है |
प्रोटोकाल
निभाया जाता है |
जबकि
जैन मुनि के साथ ऐसा नहीं है
|
Aug 24, 2016
पाकिस्तान नरक नहीं है -- यह बयान क्यो देशभक्तों को शूल जैसा चुभा ?
रामम्या
का बयान देशभक्तों को क्यो
शूल जैसा चुभ गया ?
जेनयू
मे हुए विवाद के बाद छात्र
नेता कनहिया के विरुद्ध जब
राष्ट्र द्रोह का आरोप लगे
था तब दो सवाल जनमानस
मे
उभरे थे | जिन
पर मीडिया के सभी अंगो --यानि
लिखने -सुनने
और टीवी चैनलो मे काफी बहस
हुई थी | उस
समय भी 1860 के
देशद्रोह के कानून पर चर्चा
हुई -- थी
क्योंकि इसी के अंतर्गत ही
कारवाई की गयी थी |
आज फिर
एक बार वह मुद्दा उठ खड़ा हुआ
है – कन्नड अभिनेत्री
एवं
भूतपूर्व सांसद रामम्या के
विरुद्ध कोडगू ज़िले की एक
अदालत द्वारा एक इस्तगासा
स्वीकार किए जाने पर |
इस
मुद्दे के दो पहलू है 1-
क्या
इस्तगासा अदालत द्वारा स्वीकार
किया जा सकता है ??
2- की
किसी मंत्री के बयान की आलोचना
"”देशद्रोह
होती है ? विषयवस्तु
के अनुसार रक्षा मंत्री परिकर
द्वरा इस्लामाबाद मे हुए
"”सार्क
"” राष्ट्रो
के सम्मेलन मे भारत द्वरा भाग
लिए जाने के अनिश्चय पर बयान
दिया था की "””पाकिस्तान
नरक है वनहा कौन जाएगा "”
| इसकी
प्रतिक्रिया मे रामम्या ने
कहा था की "”
पाकिस्तान
नर्क नहीं है "”
इसी
बयान को लेकर यह विवाद खड़ा हुआ
है | इस
इस्तगाशा को भारतीय जनता
पार्टी के के कार्यकर्ता ने
अदालत मे कहा की "”
रामम्या
के बयान से "”देश
भक्तो की भावना को चोट पहुंची
है | इसलिए
उनके विरुद्ध देशद्रोह का
मुकदमा चलना चाहिए |
राष्ट्र
द्रोह का मुकदमा किसी नागरिक
द्वारा दायर किए जाने की यह
पहली घटना है |
क्योंकि
देश के "”हित
- अहित
"” को
देखने की कानूनी ज़िम्मेदारी
राज्य की होती है |
जैसे
गोपनियता कानून का मुकदमा
किसी नागरिक द्वरा अदालत मे
नहीं दायर किया जा सकता ---क्योंकि
क्या गोपनीय है ,
यह तो
सरकार द्वरा ही तय किया जा
सकता है निजी व्यक्ति द्वारा
नहीं | कई
ऐसे कानून है जैसे विवाह संबंधी
मामलो मे – केवल उभय पक्ष ही
मामला दायर कर सकते है कोई
तीसरा व्यक्ति नहीं |
रिश्वतख़ोरी
के मामलो मे भी सरकार ही मुकदमा
दायर करती है निजी व्यक्ति
शासन से शिकायत कर सकता है ,
जो
उचित समझने पर अदालत मे चालान
पेश करती है |
उसी
प्रकार देशद्रोह का मामला
"” निजी
'' व्यक्ति
दायर करने का पात्र नहीं है
|
दूसरा
मुद्दा है की ''पाकिस्तान
नर्क नहीं है "”
यह
कहने से "”देशभक्तों"”
का दिल
दुख गया है ? अब
अगर हम तथ्यो को देखे तो पाएंगे
की – रक्षा मंत्री मनोहर
पर्रिकर के बयान के बाद भी
गृह मंत्री राजनाथ सिंह
इस्लामाबाद गए और सम्मेलन मे
भाग लिया | अब
याचिका दायर करने वाले सज्जन
की भावना देश के ग्रहमंत्री
के उनके अनुसार "””
नरक
मे जाने से भावना आहत नहीं हुई
"”? एक
पहलू यह है की भारत के संविधान
मे मूल अधिकार मे अभिव्यक्ति
का अधिकार है -
जिसके
अंतर्गत सरकार की आलोचना भी
की जाती है विधानमंडल मे और
संसद मे भी | इतना
ही नहीं परंपरा स्वरूप विपक्ष
को विधायी कार्यो मे भाग लेने
का अधिकार भी है |
जीएसटी
विधेयक पर विरोधी दलो ने
कितनि आलोचना की यह देश को
मालूम है |
अब
ऐसे मे राम्म्या के कथन को
लेकर बीजेपी समर्थित आनुषंगिक
संगठनो द्वारा उन्हे ---
पाकिस्तान
भेज दिये जाने और उनहे देश
निकाला देने की मांग करना
--निहायत
मज़ाक ही तो है |
परंतु
मीडिया के एक वर्ग द्वरा इन
सब पहलुओ पर विचार किए बिना
लंबी - चौड़ी
खबर चलाना यथार्थ से परे है
और तार्किक भी नहीं है |
Aug 22, 2016
क्या
संघ के आनुषंगिक संगठनो की
बैठक मे मंदिर का मुद्दा तय
भोपाल
मे राष्ट्रिय स्वयम सेवक संघ
के उत्तर प्रदेश और मध्य
प्रदेश के सभी संबन्धित संगठनो
की तीन दिन चली बैठक मे उत्तर
परदेश के चुनावो के मद्दे नज़र
शायद फिर से "”
राम
मंदिर "””
का
मुद्दा जनता के मध्य ले जाने
का फैसला किया गया है |
इस
का संकेत 22
अगस्त
को अचानक से भोपाल के बाज़ारो
मे ऑटो और कारो मे लगे स्पीकरो
से अचानक फिर "””
जय
श्री राम और हमको मंदिर का
निर्माण चाहिए "””
जैसे
नारे गूंजने लगे |
सह
सर कार्यवाह भैया जी जोशी ने
राजधानी मे दो दिन पूर्व सभी
संगठनो से मंत्रणा के लिए
बैठक की थी |
यद्यपि
परंपरा के अनुसार संघ की ओर
से ना तो कोई विज्ञप्ति जारी
हुई नाही कोई बयान इस विषय मे
आया , परंतु
अचानक "”राम
भक्तो का ---
मोदी
से मंदिर निर्माण "”
का
आग्रह करना वह भी बाज़ारो मे
सार्वजनिक रूप से --इस
बात को तो इंगित करता है की
हरी झंडी मिल गयी है |
अन्यथा
संघ जैसे अनुशासित संगठन की
सहमति के बिना सडको पर मोदी
भक्तो द्वरा जय श्री राम का
नारा लगाना और मंदिर निर्माण
की मांग करना वह भी मध्य प्रदेश
मे जब की यानहा कोई चुनाव प्रचार
नहीं हो रहा है ,,
कान
तो खड़े करता है |
परंतु
बहस के लिए ही सही यह मान ले
की यह राम भक्तो की "”
अनन्य"”
मांग
है तो – फिर इस मसले का हल संघ
और - संगठन
तथा केंद्र सरकार बैठ करके
निकाल सकते है |
परंतु
ऐसा नहीं हो रहा है |
साधू
- संतो
और --विश्व
हिन्दू परिषद ने तो गौ रक्षा
की हिंसक वारदातों की निंदा
करने के लिए प्रधान मंत्री
को सार्वजनिक रूप से आलोचना
की है | क्योंकि
उनका विश्वास था की केंद्र
मे सम्पूर्ण सत्ता मिलते ही
मंदिर निर्माण का '''रास्ता
'''' खोज
लिया जाएगा |
परंतु
दो वर्ष गुजर जाने के बाद ऐसा
हो न सका |
भारतीय
जनता पार्टी को लोक सभा मे
पूर्ण बहुमत प्रपट होने के
बाद भी इस मुद्दे को ठंडे बस्ते
डालने जैसी कारवाई से ''भक्त
और समर्थक '''
निराश
है |
वास्तव
मे विगत समय मे उत्तराखंड और
अरुणाञ्चल प्रदेश मे मे सरकार
बनाने की कोशिसों के असफल होने
से राजनैतिक और न्यायालय के
कारण हुई इस पराजय से मोदी जी
और उनके सहयोगी अमित शाह -अरुण
जेटली भी सब अदालतों को '''उनकी
सीमा बताने लगे |
बात
इतनी बिगड़ी की सुप्रीम कोर्ट
द्वारा नियुक्ति के लिए भेजे
गए जजो के नामो को तीन माह बाद
भी केंद्र ने रोक रखा है |
क्योंकि
मोदी सरकार "”मन
माफिक "”
फैसलो
के लिए मन पसंद लोगो को जजो
के रूप मे चाहती है |
इसीलिए
प्रधान न्यायडिश ठाकुर के
बार - बार
कहने पर भी जेटली जी और मोदी
जी उच्च न्यायालय के स्थानो
को भरने मे दिलचस्पी नहीं दिखा
रहे है |
Aug 19, 2016
क्यो केंद्र आतंकी की परिभाषा मे प्रशासनिक बदलाव चाहता है ?
क्यो
केंद्र आतंकी की परिभाषा मे
प्रशासनिक बदलाव चाहता है ?
केंद्र
सरकार ने टाड़ा कानून के तहत
आतंकी की न्यायिक परिभाषा
मे परिवर्तन के लिए सुप्रीम
कोर्ट मे अर्ज़ी लगाई हुई है
| जिसकी
सुनवाई सितंबर माह मे होने
वाली है | आखिर
क्या दिक्कत आन पड़ी जो मौजूदा
"”टाड़ा"”
कानून
को और भी सख्त बनाने की कवायद
केंद्र ने शुरू की है |
वास्तव
मे इस किस्से की शुरुआत एक
मुकदमे से होती है जो सन 2007
मे
सर्वोच्च न्यायालय मे दाखिल
किया गया था |
मामला
कुछ यू था की आसाम के उल्फ़ा
नामक प्रतिबंधित आतंकवादी
संगठन के एक नेता की पुलिस
मुठभेड़ मे मौत हो गयी |
शिनाख्त
के लिए पोलिस ने उस संगठन के
एक सदस्य को पकड़ा जिसकी निशानदेही
पर शिनाख्त हुई |
आसाम
पुलिस ने अरूप भूनिया नामक
इस व्यक्ति को वारिष्ठ पुलिस
अधिक्षक के सामने बयान करा
कर उसे टाड़ा कानून के अंतर्गत
निरूध कर दिया |
इस
मामले मे पुलिस के पास भुइया
के "”इक़बाली
"”” बयान
के अलावा और कोई सबूत नहीं था
| गौहाटी
के टाड़ा अदालत ने पुलिस के
सामने दिये गए बयान को कानूनी
मानते हुए सज़ा सुना दी |
जिसके
विरुद्ध भुईया ने सुप्रीम
कोर्ट मे अपील दायर की |
3 फरवरी
2011 को
जुस्टिस मार्कन्डेय काटजू
और जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा
ने अभियुक्त के बयान को
अपर्याप्त मानते हुए बारी
किए जाने का निर्णय दिया |
कुछ
ऐसा ही कानून अमेरिका मे भी
है पैट्रियट एक्ट जिसके तहत
आतंकवादी को अपनी गिरफ्तारी
की सुनवाई का अदालत मे मौका
नहीं मिलता |
पुलिस
ही इन लोगो से मार -
पीट
कर बयान को सबूत बना कर पेश कर
देती है |
सुप्रीम
कोर्ट की इस खंड पीठ ने कहा
की टाड़ा कानून मे अभियुक्त
का पुलिस के सामने दिया गया
बयान "”कानूनी
रूप से मान्य है "””
परंतु
इस प्रक्रिया की वैधानिकता
को अंतिम मानना "”मूल
अधिकार '' की
अव हेलना होगी |
उन्होने
कहा की पोलिस कैसे -
कैसे
हथकंडे अपनाकर अभियुक्तों
से बयान लेती है यह सर्वा विदित
है | मार
-पीट
कर के सभी अभियुक्तों से उनके
गुनाह कबूल करा लिए जाते है
| इसलिए
उन्हे स्वेक्षा से दिया बयान
नहीं माना जा सकता |
इस
से भी महत्वपूर्ण बात उन्होने
कही की " मात्र
प्रतिबंधित संगठन का सदस्य
होना "”” कोई
अपराध नहीं है "”'
जब
तक उस व्यक्ति की संलिप्तता
किसी हिंसक वारदात मे ना सीध
हो तब तक वह "”निर्दोष
"” है
| अब
यही वह बिन्दु है जिसको लेकर
केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय
से मांग की है की इस फैसले
की"””” पुनः
समीक्षा "”' एक
बड़ी पीठ द्वरा की जाये |
केंद्र
की दलील के अनुसार प्रतिबंधित
आतंकी संगठनो के विरुद्ध सबूत
एकत्र करना अत्यंत कठिन होता
है ----इसलिए
"”पुलिस
के सामने दिये गए बयानो को
पर्याप्त सबूत माना जाये "””
|
कुछ
ऐसा ही प्रविधान अमेरिकी
प्रशासन ने Patriot
Act
मे
किया है | जिसके
तहत अमेरिकी प्रदर्शनकारियो
को "” जान
- माल
"” की
हानि पाहुचने के जुर्म मे
पुलिस द्वरा बिना मुकदमा चलाये
भी निरूढ़ किया जा सकता है |
हक़ीक़त
मे यह कानून 9/11
के बाद
जॉर्ज बुश के समय लाया गया
था | परंतु
इस कानून के प्रविधानों का
वनहा की जनता ने बहुत विरोध
किया | वनहा
के 400 से
अधिक काउंटी ने इस कानून के
प्रविधान को अपने इलाके मे
"” निष्प्रभावी
"” करार
देने का कानून बना दिया |
अमरीकी
संविधान के तहत राज्य और
काउंटी अपने -
अपने
छेत्र मे आपराधिक कानून बना
सकते है | परंतु
हमारे देश मे अपराधो के मामले
मे एक ही कानून सभी जगह लागू
होता है | अमेरिकी
कानून की भांति यनहा भी इस का
"”दुरुपयोग
"””सरकार
और पुलिस "””
द्वरा
नहीं किया जाएगा – इसकी कोई
गारंटी नहीं है |
किसी
भी प्रदर्शन या संगठन को
"”प्रतिबंधित
"” कर
के उसके सदस्यो को '''
राष्ट्रिय
हानि "” के
आधार पर निरूध किया जा सकता
है | फिर
मूल अधिकारो और प्रजातंत्र
की बात ही खतम हो जाएगी |
Aug 13, 2016
प्रदेश मे एमबीबीएस की सीटो की नीलामी पर लगी रोक - हुआ नीट से संभव
मेडिकल
सीटो की नीलामी पर रोक ---नीट
से हुई संभव
व्यापाम
की बदनामी के बाद शायद प्रदेश
मे लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यही
हो सकती है की इस साल मेडिकल
मे छात्र अपनी योगिता के बल
पर चयनित होंगे ना की अभिभावकों
की काली कमाई से |
इस
वर्ष एमबीबीएस सीटो के लिए
21 अगस्त
से काउन्सलिन्ग शुरू होगी |
सुप्रीम
कोर्ट ने 17अगस्त
तक नीट 1 और
नीट 2 का
परिणाम घोषित करने का निर्देश
दिया है |
प्रदेश
मे सरकारी मेडिकल कालेज भोपाल
- इंदौर
-जबलपुर
- ग्वालियर
-रीवा
और सागर मे कूल मिलकर 800
सीटे
है |जबकि
सात निजी कालेज मे 750
सीटे
है | परंतु
इस वर्ष शायद 150
सीटे
निजी कालेज के कोटे से कम हो
जाएगी | मेडिकल
काउंसिल ऑफ इंडिया की नोटिस
के अनुसार भोपाल स्थित चिरायु
मेडिकल कालेज के लिए 1916
--17 को
ज़ीरो इयर घोषित कर दिया है |
इस
सुधार से योग्य छात्र और उनके
अभिभावकों को उन दलालो से
मुक्ति मिलेगी जो पैसे के डैम
पर "”सब
कुछ "” करवाने
का दावा करते थे |
शिक्षा
के छेत्र को मुनाफे का धंधा
बनाने वालो के के हितो पर करारा
प्रहार है | इस
फैसले से सरकार ने संभावित
गंदगी के अवसर का सफाया कर
दिया है |
Aug 10, 2016
दाग अच्छे है के बाद अब तोड़ फोड़ भी ठीक है ख़रीदारी का मौका है
तोड़
फोड़ को भी बिक्री बड़ाने का
विज्ञापन बनाया
मौजूदा
बाजरवाद की बयार मे उपभोग को
ही विकास और उन्नति का बैरोमीटर
मान लिया गया है |
दिन
-प्रतिदिन
काम मे आने वाली वस्तुओ के
विज्ञापन तो आम बात है |
पाँच
रुपये का बर्तन साफ करने वाला
झझवा हो या कपड़ा धोने का दस
रुपये का साबुन हो सबके विज्ञापन
चैनलो पर समाचारो के दौरान
भी गोलाबारी करते रहते है |
अन्य
कार्यक्रमों को प्रायोजित
करने वाले भी यही विज्ञापन
दाता होते है |
दर्शक
को भले ही उलझन हो परंतु विज्ञापन
है तो आवश्यक मजबूरी |क्योंकि
चैनल हो या अखबार पैसा तो इनहि
से आता है | चार
दशक पहले भी हालत कमोबेश ऐसे
ही थे --पर
इनके नियंताओ मे धन से ज्यादा
-सम्मान
की पहचान की हसरत होती थी |
आज बात
उलट गयी अब पहचान पैसे से होती
है ,,इसीलिए
उन्होने इज्ज़त और संयम की रोक
को खतम कर दिया |
इस
आलेख को लिखने का विचार ई कामर्स
की कंपनियो के व्यापार से आया
| घर
बैठे मनचाहा पाओ -दाम
भले ही कर्जे से चुकाओ या नकद
,,पर
ख़रीदारी जरूर करो |
दुनिया
की मशहूर कंपनी अमेज़न का
विज्ञापन टीवी मे बहुत आ रहा
है | इन
कंपनियो की रणनीति रहती है
की धार्मिक --सामाजिक
अथवा राष्ट्रीय अवसर हो इनका
बिक्री का विज्ञापन तैयार
|परंतु
इस कंपनी के विज्ञापन ने दो
बातो की याद दिलाई ---एक
तो काँच या शीशा का आविष्कार
होने पर जर्मनी मे घर =
घर
इंका उपयोफ खिड़की दरवाजो मे
किया गया था | मै
नाम भूल रहा एक युवक जो शीशे
के कारखाने मे काम करता था
--उसके
कारखाने की बिक्री घटने लगी
तो उत्पादन भी कम होने लगा |
इस
नौजवान ने सोचा की क्यो नहीं
शीशो को तोड़ दिया जाए तब लोग
नया शीशा खरीदेंगे |
शायद
हैम्बर्ग मे पत्थर मार कर
खिदकियों और दरवाजो के शीशा
तोड़ने की काफी घटनाए हुई |आखिर
मे उस बालक को पकड़ कर अदालत मे
पेश किया गया --उस
से पूछा गया की वह ऐसा क्यो कर
रहा है तो उसने कहा की जब मौजूदा
शीशे टूटेंगे तभी तो लोग नए
खरीदेंगे | ---शायद
अमेज़न के विज्ञापन का प्रेरणा
श्रोत्र यही रहा होगा |
की घर
मे जो है उसको तोड़ो फिर नया
खरीदने का मौका मिलेगा
इस
सब से कोई एतराज़ नहीं जिसको
जब जो चाहिए इनकी मदद लो और
मनपसंद चीज़ पाओ |
पर
आजकल दिखाये जा रहे विज्ञापन
मे तो यह दिखाया जा रहा है की
घर मे तोड़ फोड़ करके अथवा
दुर्घटनावश वस्तुओ की टूट -
फूट
हो जाये तो ---घर
वाले दांते -
फटकारते
नहीं – नाचते है की ---
अमेज़न
से खरीद का मौका मिला |लगता
है उपभोग की छीजो की इतनी बिक्री
हो चुकी है की अब लोगो ने ख़रीदारी
बंद कर दी है | इस
लिए बिजनेस प्रमोसान के लिए
तोड़ फोड़ करना जरूरी है |
उनकी
उत्पादो की बिक्री मे कमी का
कारण बाज़ार की मंदी है --नक़द
की कमी है |जो
विज्ञापन पर खर्च किए धन की
वसूली करने मे असमर्थ है |
Aug 6, 2016
दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के अधिकार ब्रोतिश राज की याद दिलाते है -जहा जन भावना नहीं हुकूमत सर्वेसर्वा होती थी
दिल्ली
के वोटरो सिर्फ पानी -
बिजली
भर के लिए"”आप
को चुना ?/
1935 के
GOVERNMENT OF INDIA ACT मे
अंग्रेज़ गवर्नर को ऐसे ही
अधिकार थे | उस
समय की चुनी हुई विधान सभाओ
को भी पुलिस और शांति व्यसथा
के बारे मे कानून बनाने की
शक्ति नहीं थी |
एवं
वह विधान सभा से पारित किसी
भी विधेयक को नामंज़ूर कर दे
| उसे
ना तो विधान सभा के चुने हुए
प्रतिनिधियों की परवाह थी और
नहीं - वह
अपने फैसलो के लिए किसी को भ
जवाबदेह था | वह
तो बस – '''सम्राट
''' के
प्रति ही जवाबदेह था |
क्या
दिल्ली मे शासन अभी भी उसी
तर्ज़ पर चल रहा
चंद लोगो
को छोड़ कर देश मे चुनी हुई
सरकारो के बारे मे सभी प्र्देशों
मे एक आम धारणा है की ---सुरक्षा
और शनि व्यवस्था के साथ जन
हितकारी कार्यो को अंजाम देना
| साथ
ही नागरिकों को भ्रस्टाचार
से मुक्त करना |
ही
सरकार का काम होता है |
इसीलिए
विधायक चुने जाते है जिंका
बहुमत सरकार बनाता है |
इन
उददेशों की पूर्ति के लिए
केजरीवाल सरकार ने दस विधेयक
विधान सभा से पारित करा कर
राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा
| परंतु
मोदी सरकार के नुमाइंदे उप
राज्यपाल ने नजीब जंग ने उनको
दाख़िक दाफ़तर करते हुए कहा की
विधान सभा को बिना मेरी अनुमति
के कानून बनाने की अनुमति नहीं
है | इसी
मुद्दे पर हाइ कोर्ट ने कहा
की दिल्ली के असली शासक तो उप
राज्यपाल है |
परंतु
उच्च न्यायालय इस बात को नहीं
बता पाया की आखिर दिल्ली की
विधान सभा और चुनी हुई सरकार
वास्तव मे अपने बहुमत से क्या
- क्या
कर सकती है ??इस
विषय पर तो उच्चतम न्यायालय
की सविधान पीठ ही फैसला कर
सकती है | जनता
की इच्छा सर्वोपरि है या एक
अफसर की |
दिल्ली
विधान सभा के चुनावो मे जब
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
भारतीय जनता पार्टी का प्रचार
कर रहे थे तो उन्होने अपने
भासनों मे दिल्ली को दुनिया
के नक्से पर बेमिसाल नगर बनाने
का वादा किया था |
उन्होने
पाँच रैलिया की जिनमे धन और
जन का बोलबाला था |
उन्होने
पार्टी को लोकसभा की ही भांति
विधान सभा मे पूर्ण बहुमत की
मांग की थी -जिस
से वे राजधानी निवासियों को
मनोकूल सुविधाए दे सके |
परंतु
लोकसभा चुनाव के महाबली मोदी
को शायद दिल्ली वासी सबसे
पहले पहचान गए और उन्होने
"””उनकी
मांग को ठुकरा दिया "””
| ना
केवल ठुकराया --वरन
मात्र तीन प्रत्याशी ही बीजेपी
के विजयी हो सके |
यानि
केंद्र मे सत्तारूड दल को नाक
के नीचे पैदलीमात मिली – जिसे
''''वो
'''' पचा
नहीं पा रहे है |
उसी
पराजय का छोभ है की केजरीवाल
सरकार के सभी लोक हितकारी
कार्यो को भी केंद्र सरकार
रोक लगा रही है |
एक
आम आदमी की भांति दिल्ली के
लोगो ने भी विधान सभा के चुनाव
मे अपना फैसला सुनाया |
उन्हे
उम्मीद थी की बहुमत वाली सरकार
अपने किए गए चुनावी वादो को
पूरा करेगी |
केजरीवाल
इस दिशा मे प्रयास कर भी रहे
थे --- परंतु
उनके कुछ "””क्रांतिकारी
"””””फैसलो
से केंद्रीय सरकार खुश नहीं
थी | क्योंकि
वे दस्तूर वाली राजनीति नहीं
कर रहे थे | बिजली
कंपनियो का आडिट करा कर जनता
को घटी डरो पर बिजली मिली |
किसी
अन्य राज्य मे बिजली की दरो
को घटाया नहीं गया |
इस
लोकप्रिय दाव से – नोट और वोट
की राजनीति करने वाले लोगो
को बगावत की बू आने लगी |
क्योंकि
वे सिस्टम के खिलाफ काम कर रहे
थे | ब्रिज
की लागत से कम मे बनवा कर उन्होने
'''विकास
निर्माण कार्य "”
मे हो
रही संगठित बेमाइनी को उजागर
किया |
दिल्ली
उच्च न्यायालय ने केजरीवाल
सरकार की याचिका पर फैसला
सुना दिया की ----राष्ट्र
की राजधानी मे निर्वाचित
सरकार नहीं नियुक्त उप राज्यपाल
असली शासक है |
पढने
औए सुनने मे भले ही अजीब लगे
पर है तो हक़ीक़त की दिल्ली मे
पुलिस की हुकूमत की चाभी
राज्यपाल के हाथ मे है |
मुख्य
मंत्री को भी पुलिस सहता उसी
रास्ते से मिलेगी --जैसे
100 पर
फोन करने पर आम आदमी को मिलती
है | अगर
कोई दिल्ली वाला अपनी सुरक्षा
के लिए पुलिस संरक्षण चाहता
है तो उसे दिल्ली सरकार नहीं
वरन उप राज्यपाल के पास जाना
होगा |
उच्च
न्यालाया ने दस्तावेज़ो के
आधार पर भले अपना फैसला सुनाया
हो --परनू
यह निर्णय करोड़ो दिल्ली वासियो
की राय को उम्मीद को तमाचा है
|की
एक निर्वाचित निकाय को एक बाबू
जिसे केंद्र ने नियुक्त किया
हो वह काम नहीं करने दे |
Aug 3, 2016
क्यो राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ पार्टी और सरकार की लगाम कस रहा है
संघ
-सरकार
और संगठन -
क्यो
सिंहस्थ पर उठ रही उंगलिया ?
समर्थक
क्यो अब विपक्ष के सुर मे सुर
मिला रहे है
जुलाई
के अंतिम तीन दिनो और अगस्त
के पहले सप्ताह मे भोपाल मे
राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ
और सरकार के नेताओ के मध्य कई
बार बैठके हुई |
इनमे
भारतीय जनता पार्टी और शिवराज
मंत्रिमंडल के सदस्यो से अनेक
विषयो और मुद्दो पर चरचा हुई
| सभी
बैठके संघ के स्थानीय मुख्यालय
''समिधा'
मे
हुई | मुख्य
रूप से प्रदेश मे सरकार की
छवि - विधायकों
और पार्टी के कार्यकर्ताओ
की शिकायतों तथा सबसे महत्वपूर्ण
विषय था सिंहस्थ मे हुए कथित
घोटाले को लेकर सार्वजनिक
स्तर पर की जा रही सतत टीका
- टिप्पणियॉ
जो सभी की साख पर प्रश्न चिन्ह
लगा रही है |
चूंकि
सिंहस्थ आयोजन मे सरकार -
संगठन
और संघ के पदाधिकारियों ने
भाग लिया था इस लिए लोगो के
मन मे इस आयोजन को लेकर जो
तस्वीर उभर रही है,
वह
एक उद्दंड संगठन और असफल सरकार
और नौकरशाही के दबदबे की है
| चूंकि
राज्य मे दो विधान सभा शहडोल
और नेपानगर मे उप चुनाव होने
है , इसलिए
यह शिवराज सरकार की लोकप्रियता
का लिटमस टेस्ट भी होगा ऐसा
संघ के सुत्रों का मानना है
| इस
चिंता का कारण राजधानी से सटे
इलाके मंड़िदीप और मैहर तथा
शिवपुरी के स्थानीय चुनावो
मे काँग्रेस की विजय है इस
जीत |से
ऐसे संकेत मिल रहे मानो भारतीय
जनता पार्टी का जनाधार या
लोकप्रियता का ग्राफ खिसकता
जा रहा है |
इसलिए
दो उप चुनावो को जीतना मुख्य
मंत्री की प्रतिस्ठा का विषय
बन गया है |
इन
बैठको मे इस बात पर भी विचार
- विमर्श
हुआ की पार्टी के विधायकों
द्वारा लगातार नेत्रत्व के
निष्प्रभावी होने की शिकायते
उठ रही है |
यानहा
तक की विधान सभा मे खनिज मंत्री
राजेंद्र शुक्ल को अपनी ही
पार्टी के विधायकों ने घेर
कर सवालो की झड़ी लगा दी|
यानहा
तक बीजेपी विधायक प्रजापति
ने सदन मे ही ज़िला खनिज अधिकारी
पर अवैध खनन का आरोप लगाते
चुनौती दे डाली की सरकार चाहे
तो जांच करा ले अगर मै गलत साबित
हुआ तो विधान सभा से इस्तीफा
दे दूँगा ,अन्यथा
खनिज मंत्री दोषी अधिकारी
के खिलाफ कारवाई करें ||
उसके
सनर्थन मे आठ -
दस
बीजेपी विधायकों ने भी अपने
- अपने
छेत्रों मे दबंगों द्वरा अवैध
खनन किए जाने और अफसरो द्वरा
इन ठेक्र्दारों को संरक्षण
दिये जाने का आरोप लगाया |
विधान
सभा मे सिंहस्थ आयोजन मे अरबों
रुपये के भ्रस्टाचार के आरोपो
के सवालो को नियम के सहारे खतम
कर देना ,,
और
मीडिया मे इस आयोजन के लिए
हुई खरीद मे घोटाले के सबूतो
के साथ छपती खबरों से सरकार
की नीयत पर प्रश्न चिन्ह लग
रहा है | जिस
से आम जन के मन – मे सरकार की
ईमानदारी और शुचिता संदेह
के घेरे मे आ गयी है |
संघ
पदाधिकारियों ने पार्टी के
कुछ कार्यकर्ताओ द्वारा
सार्वजनिक जीवन मे अभद्र
व्यवहार और असोभनीय भाषा के
बढते मामलो पर भी चिंता व्यक्त
की गयी | मंत्रियो
द्वारा अधिकारियों के कहने
के अनुसार फैसले लेने तथा
वास्तविकता को नज़्र्रंदाज
करने की शिकायतों को"”
समिधा
की बैठक ""मे
गंभीरता से लिया गया |सूत्रो
के अनुसार इसमे केंद्रीय
मंत्रियो -
प्रमुख
सांसदो तथा मंत्रियो से अलग
- अलग
सत्रो मे चर्चा की गयी |संघ
के नेताओ का कहना था की अभी भी
व्यापम गडबड झाले की गूंज कभी
उच्च न्यायालय और कभी -कभार
उच्चतम न्यायालय मे आती रहती
है | सुप्रीम
कोर्ट द्वारा व्यापाम को
राष्ट्रिय मुद्दा निरूपित
किए जाने की टिप्पणी से भी
परेशानी है |
ऐसे
मे सिंहस्थ क्या मुश्किल नहीं
पैदा करेगा ?
संघ
नेताओ की चिंता मौजूदा हालत
मे शिवराज की सरकार की "”साख"”
को
लेकर है |
क्योंकि
उत्तर प्रदेश के आगामी विधान
सभा चुनावो मे भारतीय जनता
पार्टी को स्वशाषित राज्यो
का रिपोर्ट कार्ड भी पेश करना
होगा | मध्य
प्रदेश मे उत्तर प्रदेश की
भांति कट्टर जातिगत ढांचा
नहीं है जिसकी राजनीतिक
प्रतिबद्धता हो |
हालांकि
विगत दस वर्षो मे जाति के आधार
पर राज्य मे भी फैसले लिए जाते
रहे है---परंतु
ऐसा सामाजिक संतुलन के लिहाज
से किया गया --ऐसा
जिम्मेदार मंत्रियो का कहना
है | वैसे
राजधानी समेत इंन्दौर जबलपुर
आदि मे विभिन्न जातियो के भवन
बने है | सरकार
ने इनके निर्माण के लिए भूमि
और वित्तीय अनुदान भी दिया
है | कुछ
एक भवन तो विशेस सम्प्रदायो
के भी है |
नेपाली
समाज के भी दो भवन है |परंतु
दक्षिण भारत के लोगो के लिए
मलयाली और तमिल असोशिएशन भी
है जो ज़मीन मे पैर रखने के लिए
तैयार है |
यह
सारी कवायद इन जातियो और वर्गो
मे अपने समर्थक तैयार ही करना
है | ताज्जुब
है की कुछ हज़ार वोटो के लिए
इतनी कसरत ?
फिलहाल
संघ अब एक बार जनसंघ के पुनर्जागरण
की तैयारी मे है |
जनहा
असहमति को अनुशासन के डंडे
से दबा दिया जाता है |
इसी
लिए संगठन मंत्री अब पुनः
उनही लोगो को बनाया जाएगा जो
आजीवन ब्रांहचारी रहने का
व्रत लेंगे |
इसके
अलावा पार्टी मे ऐसे विधायकों
और नेताओ को संघ के ''वर्ग'''
मे
लाकर उनका काया कल्प करने का
बीड़ा उठाया है |
मंत्रियो
के निजी स्टाफ मे काम करने
वाले भी इसी परीक्षा से होकर
गुजारे जाएँगे |
जिस
से की '''गोपनियता"”
बरकरार
रहे | यह
सारे उपाय उत्तर प्रदेश के
चुनावो लड़ाई की तैयारी के साथ
राष्ट्रिय स्तर पर विभिन्न
दलो से मिल रही चुनौतियों के
मुक़ाबले की है |
अब
इसमे सफलता और असफलता का हिसाब
तो आगामी समय ही देगा |
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