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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 28, 2023

 

पिछड़ी जातियो के वोटो की राजनीति !

मोदी की शतरंज के चौथे शिकार क्या  योगी होंगे ?

        नाइन इयर  के कार्यकाल में  प्रधान मंत्री ने अनेक परदेशो के नेत्रत्व को झटका  दिया है | पहला झटका उत्तराखंड  फिर गुजरात और  महाराष्ट्र  और मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्रियो  को लगा |  इन लोगो को जिस प्रकार  बेबस  कर के पैदली मात दी वह उनके “”अपराजेय “  व्यक्तित्व का विज्ञापन ही है | अब इस बार  उनका निशाना  उत्तर प्रदेश  के  भगवा धारी मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ है !   हाल में ही हुए पाँच राज्यो  मे से चार  में  “”अपनी पार्टी  की गिरती साख और आसन्न  पराजय  का आभास मिलते  ही , राहुल गांधी के एजेंडा “ पिछड़ी जातियो की जन गणना “ के सामने झुकते हुए   बीजेपी शासित राज्यो में इनहि वर्गो का नेत्रतव  देने की कवायद में जुट गए है |  इसका पहल प्रयोग उत्तर प्रदेश से शुरू  होगा , जनहा लोकसभा  की सर्वाधिक सीटे है | जो मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने के लिए “बेहद जरूरी है  “” |

         इसीलिए  नवंबर माह की गृह विभाग की बैठक की अधच्यता  उप मुख्य मंत्री  केशव प्रसाद मौर्य द्वरा लिया जाना   ---इस बात का संकेत है , की बदलाव की घंटी बज चुकी है |  गौर तलब है की  विभागीय मंत्री ही ऐसी बैठको की अध्याछता करता है | योगी जी सरकार के गठन के समय से ही गृह मंत्री है | ऐसे में  जबकि मुख्य मंत्री भी राज्य में ही है ---तब किसी दूसरे मंत्री द्वरा  बैठक लिया जाना   भरी परिवर्तन का सूचक ही है | आम तौर पर ऐसा तब हो है जब  मुख्य मंत्री बाहर हो अथवा  अस्वस्थ  हो तब होता है | परंतु इस बार योगी जी  भी लखनऊ  में ही है  और  स्वस्थ्य भी है |  तब ऐसा होना  निश्चित रूप से उनकी विदाई का संकेत देता है |  जो की बीजेपी की सरकार और संगठन के लिए कोई शुभ  संकेत नहीं लगता |

       अब अगर इस  संभावित परिवर्तन के प्रष्ठ भूमि में  बात करे  तब --- पार्टी के लिए लाभा से ज्यादा हानि की संभावना ज्यादा इंगित करता है , | साथ ही प्रदेश में वोटो के ध्रुवीकरण  को भी  प्रभावित करेगा |  अभी तक बीजेपी को सवर्णों के वोटो की गारंटी  - उसके हिन्दू और रामलला  के मंदिर के वादे पर  ही है |  अब उसका पिछड़ी जातियो का वोट पाने के लिए   नेत्रत्व परिवर्तन  कितना सफल होगा ---कहा नहीं जा सकता | क्यूंकी मौर्य  जाति प्रदेश के मध्य भाग  में ही बहुतायत से है | पूर्वञ्चल  और  मेरठ  आदि में इस जाति के गोलबंद वोट नहीं के बराबर है | आम तौर पर इस जाति को सब्जी भाजी का उत्पादन करने वाला माना जाता है | वे सब्जी का व्यापार भी करते है | सब्जी मंडियो में इनके साइन बोर्ड देखे जा सकते है |  परंतु संख्या बल मे ये वोट बैंक बन सके  ऐसी  गिनती इनके पास नहीं है | व्यक्तिगत रूप से   ये राजनीति में जगह बना सकते है , परंतु मौर्य साम्राज्य  जैसा  दम अब नहीं है |

             यह भी है की यादव और कुर्मी वोटो की निर्णायक स्थिति के सामने  मौर्य वोट  बैंक नगणय ही है | जनहा तक केशव प्रसाद मौर्य को  पिछड़ी जातियो  का नेता  घोषित तो मोदी जी कर सकते है ----परंतु यादव और कुर्मी मतदाता  उन्हे नेता तो मान ही नहीं सकते |जो की प्रदेश की राजनीति की एक धुरी है |  रहा अनुसूचित जाति के मतो को प्रभावित करने का --- तो इस वर्ग के वोटार मौर्य नेत्रत्व को “”सहज “” और स्वीकार  हो सकते है ,क्यूंकी ना तो यह वर्ग  कोई बड़ा खेतिहर  है  और ना ही कोई ऐसा इलाका है जनहा “”मात्र  इनके वोटो से चुनाव फल निर्णायक होता हो |  कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी की यह चाल भी कोई सुखद परिणाम देने वाली नहीं है |

 क्या इस बदलाव से सरकार में कोई परिवर्तन होगा ?

      अगर यह मान भी ले की मोदी  जी की इस शतरंजी चाल  को अमली जमा पहनाया जाता है ----तब क्या द्राशय  होगा ? यानहा योगी आदित्यनाथ  के मुख्यमंत्री बनने के समय हुए घटना क्रम को समझना जरूरी है | उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावो  में बीजेपी की जीत के बाद जब मुख्य मंत्री बनाने का सवाल हुआ तब योगी जी मोदी की लिस्ट में नहीं थे|   परंतु नेता के चुनाव की सरगर्मी के बीच ही  योगी जी की “”हिन्दू वाहिनी “”  ने गोरखपुर और अगल बगल के ज़िलो में   योगी जी के समर्थन  मे रैली –जुलूस  निकालना शौरी कर दिया था | इस वाहिनी में  “दबंगों “” का ही नेत्रत्व था | जिसमे  ठाकुर लोगो की बहुलता थी |   ऐसा कहते है की योगी जी ने आरएसएस के सूत्रो से  मोदी जी तक यह संदेशा भिजवा दिया की अगर उन्हे मुख्य मंत्री नहीं बनाया जाता  है , तो वे उनकी हिन्दू समर्थन की हवा निकाल देंगे | बताते है की प्रधान मंत्री  इस चाल से बहुत नाराज़ थे | परंतु आरएसएस नेत्रत्व की सियारिश पर उन्होने  हामी भर दी | परंतु  यह भी साफ कर दिया की उन्हे दिल्ली के आदेशो का पालन करना होगा |    कई साल तक यह चलता रहा , परंतु गोरखपुर के राज्यसभा सांसद डॉ अगरवाल को विधान सभा में पराजित करवाने से वे मोदी जी के कोप भजन बन गए | फलस्वरूप अग्रवाल को गोरखपुर की राजनीति में मोदी जी की आवाज माना जाने लगा | जो योगी की हैसियत को काटता  रहता है |  मोदी जी को  अगरवाल का राज्यसभा में जाना बहुत अखरा  परंतु  वे काशमाशा के रह गए –आखिर कर भी क्या सकते थे | उसके बाद कई ऐसे मामले हुए , जैसे मोदी जी के आईएएस  सहायक को  योगी जी मंत्रिमंडल में रखने से इंकार कर दिया | इस बात से  अमित शाह तक ने योगी जी को खरी खोटी सुना दिया था }| कहते है की जब उन्हे विधान परिषद  में भेजा जाना था –तब भी योगी जी बहुत आड़े , परंतु केंद्र समर्थक विधायकों की मदद से  वे परिषद पहुँच  गये |  कहते है की गृह सचिव  के  पद को लेकर भी  तनातनी हुई थी | मसला यह की योगी जी  अपने खिलाफ  16 आपराधिक मुकदमो  को हाइ कोर्ट से खारिज करा लिया | तब हजारो  संघ और बीजेपी कार्यकताओ  ने अपने वीरुध चल रहे मुकदमो  को वापस लिए जाने की बात नेत्रत्व से उठाई थी | परंतु  सिर्फ ठाकुर नेताओ के मामलो पर विचार तो हुआ | इस मामले को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओ में योगी के नेत्रत्व  को लेकर आशंतोष  बड़ा |

 

 

          

 

Nov 20, 2023

 

न्याय का मज़ाक उड़ाता – बुलडोजर  कारवाई !!

आरोपी को अपराधी बनाने  की कारवाई है  प्रशासन द्वरा   आरोपियों  के घरो को गिराना , भले ही वह घर या मकान  किसी और की मिल्कियत हो !  अब ऐसे मे   अगर परिवार के कोई लड़का  कोई  अप्र्ध करता है , तब सज़ा उसके परिवार को प्रशासन  देता है ! अब  ऐसी कारवाई पर इलाहाबाद  हाइ कोर्ट  का यह कथन की “ हम  इस कारवाई को नहीं रोक सकते है ! “ न्याय के सिधान्त “ का मखौल  ही उड़ना ही तो है |  यह  

मधयुगीन  काल के सुल्तानों  की कारवाई की याद दिलाता  है –जब  हुकुमरान की  नाराजगी  परिवार को नेस्तनाबूद  कर देती थी | आज कल हम संविधान  के प्रदत्त  अधिकारो  के तहत  “नागरिक “ है कोई “ प्रजा “” नहीं | फिर किस कारण  देश की जिला या ऊंची अदालते  अफसरो की इस कारवाई पर कोई दंड नहीं सुनती | अभी हाल मे केवल  गुरुग्राम में  अफसरो की इमारतों को गिराने  की कारवाई पर हरियाणा पंजाब  हाइ कोर्ट की डबल बेंच ने  अफसरो से यूएनआई कारवाई पर सवाल उठाए थे और  गिराई गयी इमारतों  के

मालिकाना हक़  और उनकी तामीर कराये जाने की तारीख के बाबत  जानकारी बुलाई थी | परंतु इस फैसले के बाद यह मामला  उनकी बेंच  से मुख्य न्यायाधिपति  ने हटा दिया था !! अब इस फैसले को क्या कहा जाये !

         बुलडोजर कारवाई कुछ वैसे ही  “” न्याय “ के बजाय  अन्याय कर रहा है ---जैसे घरेलू हिंशा या दहेज प्रताड़ना  के मामले मे पहले आरोपी को  अपराधी मानकर कारवाइकी जाती थी | ह्त्या  और –बलात्कार के मामले मे  भी पुलिस जांच के बाद चार्जशीट अदालत मे दाखिल करती है ---तब अदालत  न्याय करती है |  बाद में सुप्रीम कोर्ट और अनेक हाइ कोर्ट  भी  दहेज प्रताड़ना  के मामलो में “निर्दोष “ रिश्तेदारों को आरोपी बनाने  की मामलो मे पुलिस को  निर्देश दिया की ऐसे मामलो की जांच उप पुलिस अधीक्षक  द्वरा की जाये | फिर भी पुलिस कई बार  अपने पुराने ढर्रे  पर ही कारवाई कर रही है |

         न्याय का सूत्र वाक्य है की “ किसी को तब तक अपराधी नहीं माना जाये –जब तक  उसका अपराध बिला शक  सिद्ध नहीं हो जाए “ , अब इस सूत्र वाक्य को देश की अदालतों  को  एक बार फिर से  याद दिलाने की जरूरत हैं |  वैसे  देश के प्रधान न्यायाधीश  चंद्रचूड़  का कहना है की  प्रत्येक प्र्शसनिक फैसले की न्यायिक  जांच  संभव नहीं है ! परंतु जिस प्रकार  आईएएस  और उनके पुलिस बंधु  मनमानी कारवाई करते है  -----उसका प्रतीकार  एक नागरिक किस प्रकार करे ? क्यूंकी अव्वल तो ये नौकरशाह  नागरिक  की शिकायत को अपनी हैसियत  पर उंगली उठाना मानते है , इसलिए वे  बदले की भावना से  “”सबक “ सिखाने  के लिए कानुन के प्रविधानों  का आसरा लेते हैं |   

               ऐसे कई मामले अफस्रान  अपने राजनीतिक मालिको को खुश करने के लिए भी करते है | अभी प्रदेश में चुनवी हिंसा  में कई मौते भी हुई , राजनगर  विधान सभा छेत्र  में कांग्रेस  के एक कार्यकर्ता को मोटर से दबा कर मार दिया गया |  पुलिस से शिकायत  की गयी तो उन्होने रिपोर्ट लिखने पहले जांच करने  की बात की | जब पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने पुलिस थाने के सामने  रात भर धरना  दिया तब पुलिस अधीक्षक  ने कारवाई का भरोसा दिलाया | वनही शिवपुरी के पोहरी  विधान सभा  छेत्र मे बीजेपी समर्थको  पर हमला हुआ और तीन लोगो की मौत हो गयी ----पुलिस ने  आरोपियों के घरो को  ढहा दिया !  अब एक जैसी चुनावी हिंशा  में पुलिस का दोहरा  व्यवहार  , उनकी कर्तव्य परायणता  पर तो सवालिया निशान लगाता ही है |

         रीवा में  बीजेपी विधायक के प्रतिनिधि  द्वरा  एक आदिवासी पर पेशाब करने की घटना  ने काफी तूल पकड़ा तब ज़िला अधिकारी ने आरोपी के घर को ढहा  दिया |  मुख्य मंत्री शिवराज सिंह ने भी उसको भोपाल बिला कर छमा याचना की और सरकारी सहता भी सुलभ कराई |  इस घटना के कारण उस विधायक को पार्टी ने विधान सभा चुनाव में टिकट नहीं दिया | इस कारवाई की प्रतिकृया स्वरूप इलाके के ब्रांहनों  ने गहर बनवाने के लिए  लाखो रुपये देने की घोसना की | उधर बीजेपी के पूर्व विधायक ने पार्टी से इस्तीफा देकर  आज़ाद उम्मीदवार के रूप मे चुनाव लड़ा है | अब इस कारवाई से सत्तारूद दल को क्या लाभ होगा यह समय बताएगा |

       उज्जैन में एक नाबालिग कन्या से बलात्कार हुआ – वह रात भर रक्त रंजीत  लोगो से “”मदद मांगती रही  पर महाकाल नागरी में वह बेबस  बेहोस पड़ी रही | बाद में  सुबह को पुलिस ने  जब  बालिका  को अस्पताल में भर्ती कराया  तब  मीडिया ने इस घटना को  उजागर किया तब हल्ला  मचा  और इसे उज्जैन का निरभया  कांड बताया तब पुलिस ने आरोपी ऑटो ड्राइवर को गिरफ्तार किया |  जनता के रोष से घबड़ा कर  जिला  प्रशासन  ने ने आरोपी के  पिता के घर को ढहा  दिया | जबकि वह खुद  भी अपने बेटे की करतूत से शर्मिंदा था , और उसे सज़ा देने की मांग कर रहा था !! तब भी अफसरो ने उसका टापरा उजाड़ दिया !   यानि मुकदमे के पहले ही आधी सज़ा सुना दी वह भी बेगुनाह  माँ पिता  को |

   

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Nov 9, 2023

 

सत्ता स्वयंबर के इस महा भारत में  , इज़राइल के समान कोई भी नियम  मान्य  नहीं है !!

         पाँच राज्यो में  सत्ता के स्वयंबर  के दावेदारों  में  पूर्व की भांति ना कोई नियम मान्य है ,और ना ही  चुनाव आयोग  के निर्देश !   एक ओर सत्ता खुद इस मे  दावेदार है तो दूसरी ओर  बिना बैसाखी के विरोधी दल !  जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव  गुटरेस  के बार –बार निर्देशों की  इज़राइल और अम्रीका तथा यूरोपियन यूनियन  के देश   उसी प्रकार न्याय की अवहेलना कर रहे है जैसे  देवव्रत उर्फ भीष्म पितामह की सलाह को  कौरव नकारते  रहे !  कुछ वैसा ही इस भारत धरा पर “””वाचिक रूप से महाभारत लड़ा जा रहा हैं ! “ !   इज़राइल  ने अमेरिका के  गाज़ा मे बच्चो और अस्पतालो पर बमबारी  पर एतराज़ जताया , तो इज़राइली प्रधान मंत्री  नेत्न्याहु  ने अमेरिका को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले की याद दिला दी !! जिसमे लाखो  बच्चे और नर – नारी मारे गए थे |  इसका मतलब यह हुआ की  इज़राइल  विश्व युद्ध मान रहा है “हमास “” के वीरुध लड़ाई को | गज़ब है की म्यूनिख ओलंपिक में जब यहूदी खिलाड़ियो की हत्या हुई थी तब  तटकलाईं प्रधान मंत्री गोल्ड मायर  ने लेबनान और अन्य राष्ट्रो पर तो हमला नहीं किया था ! उन्होने केवल  हत्या में शामिल आतंकवादियो को खोज –खोज कर मार गिराया था | जनरल आईखमन  को अर्जेन्टीना  से  जब  मोसाद  द्वरा पकड़  कर के लाया गया था  तब भी , इज़राइल के दोस्तना संबंध  बरक्रार रहे थे |  जब  यहूदी यात्रियो के हवाई जहाज को अरब आतंकवादियो  द्वरा  अगवा कर  यूगांडा के एनटेबी  हवाई अड्डे पर रखा गया था ---तब भी  कोई हमला नहीं किया गया था और अगवा किए गए सभी मुसाफिरो  को सकुशल  

तेल अबिब  हवाई अड्डे पर उतार लिया गया था | पूरे प्रकरण  में एक इज़राइली  अफसर शहीद हुआ था |  

     

          तो आज  क्या हो गया उस तंत्र को जो “”निहथे  बच्चो और अस्पतालो पर बम गिरा कर अपनी बहादुरी  दिखा रहा है ?? यह वही इज़राइल है जिसने एक साथ  मिश्र –सीरिया और लेबनान  के संयुक्त हमले का  करारा  जवाब दिया था !  जिसके फलसरूप  गाज़ा और वेस्ट बैंक के इलाको पर “”” कब्जा””  किया था | जिसको लेकर ही आज तक अशांति है | इज़राइल की स्थापना 1948 मे  मित्र राष्ट्रो [ अमेरिका –ब्रिटेन – फ्रांस ] की कूटनीति और यहूदी  अरबपतियों के दबाव में वालफोर संधि के रूप में आई , फलस्वरूप  बेघर  यहूदियो को उनका देश  मिला नाम इज़राइल पड़ा | परंतु इस संधि के पहले  यहूदियो ने अपने संबंधो  और  धन के बल से हथियार और साजो सामान   एकत्र कर गाजा पट्टी मे बसे अरब  बाशिंदों  को ज़ोर – ज़बरदस्ती कर के उनके खेतो और घरो पर कब्जा किया | इसलिए जब  इज़राइल की सीमा बनाने की बात आई तब  उन इलाको में बाशिंदों  की नस्ल के अनुसार फैसला किया गया | एक यहूदी इतिहासकार जो होलोकास्ट के भुक्त भोगी थे , उन्होने एक किताब में लिखा है की जब उन्हे जर्मनी  से आने के बाद  यहूदी अधिकारियों  ने उन्हे  उनका “”घर “ दिखाया तब उसमे अरब बाशिंदे के बर्तन और खून के छीटो  भरी दीवार  देख कर  उन्होने कहा की मुझे किसी दूसरे के घर पर कब्जा नहीं करना है | और आखिरकार वे ब्रिटेन चले गए |

        तो यह थी इज़राइल की स्थापना की तथा कथा , यहूदियो के तत्कालीन नेता बेन गुरियन  ने  काफी मेहनत –मशक़्क़त से इज़राइल  राष्ट्र की स्थापना  कराई थी , उन्होने मित्र राष्ट्रो  के जिम्मेदार नेताओ  और  अन्य  संबंधितों  को पाउंड और डालरो  से उपक्रट किया था , जिसका दोनों राष्ट्रो द्वरा  खंडन किया गया | नेत्न्यहु के पहले के  नेत्रत्व  ने  अरब आबादी और यहूदी जनो के मध्य शांति संबंधो की पहल की थी |  जैसा की पूर्व प्रधान मंत्री बराक ने एक सार्वजनिक बयान में कहा भी है |  फिलिस्तीन राष्ट्र  के निर्माण को लेकर अमेरिका  हमेशा  खिलाफ रहा है | जबकि इज़राइल की एक छोटी आबादी  इसे  समाधान के रूप मे देखती है | आखिर लाखो फिलिस्तीनी नागरिकों  को भी  तो राष्ट्र चाहिए ---- जैसे हजारो वर्ष तक  यहूदी  दर – दर भटकते रहे , क्या  यहूदी नेत्रत्व  अपने श्राप  को अरब लोगो पर थोपना चाहता है !

           येरूशलम का मुद्दा  

  फिर एक मुद्दा  है  तीन ध्रमों – यहूदी –ईसाई और इस्लाम के  धरम स्थल येरूशलम का , जनहा तीनों ही ध्रमों के लोग आराधना करने जाते है | अरब लोगो की काफी सालो से शिकायत रही है की उनके मस्जिद  में शुक्रवार की नमाज़  अदा  करने  में बाधा डालते है |  अन्तराष्ट्रिय  संधि के अनुशार  जॉर्डन को यह ज़िम्मेदारी दी गयी थी की वह तीनों ध्रमों के लोगो की यात्रा और उपासना  को निर्विघ्न  करने का प्रबंध करेगा | परंतु  इज़राइल ने इस  व्यवस्था को मानने के बाद भी  अपने सैनिको की तैनाती कायम रखी , फलस्वरूप जॉर्डन के कहने के बाद भी इज़राइली सैनिक  उनके निर्देशों को नहीं मानते थे | ऐसा वे अपनी सरकार के अफसरो के इशारे पर ही करते थे |  थक हार कर जॉर्डन ने संयुक्त राष्ट्र संघ  को सूचित कर दिया की वह अपना कर्तव्य  पूरा नहीं कर पा रहा है | सुरक्षा परिषद मे मित्र राष्ट्रो ने इन हालातो पर कोई  खोज खबर नहीं ली | परिणाम स्वरूप  ईसाई और मुसलमान  लोगो को  इज़राइली सैनिको के दुर्व्यवहार  का शिकार होने का सतत  अपमान सहना पड़ रहा हैं |

           आज हालत यह है की  इज़राइल अपने “”नर संहार “” की कारवाई को विश्व युद्ध से तुलना कर रहा है , और संयुक्त राष्ट्र संघ की पूरी तरह से  “”अन देखी”” कर रहा है | यह हालत  उसी  स्थिति का द्योतक है जैसा की “” लीग ऑफ नेशन “” की स्थापना  के बाद  जर्मनी की ज़िद्द के कारण  उसका  अस्तित्व ही  समाप्त हो गया था | क्या विश्व शांति के लिए किसी तीसरे प्रयास की जरूरत है , जिसमे  पाँच बड़े राष्ट्रो का वर्चस्व नहीं हो वरन तथ्य और कारणो के आधार पर  कोई फैसला हो |