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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 7, 2021

 

सरकार की अर्ज़ी पर अदलत की मर्ज़ी --- सत्ता सुरक्षित !!



मुंबई के हटाए गए पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह द्वरा राज्य के

गृह मंत्री देसमुख के वीरुध भ्रष्ट आचरण से वसूली के आरोप पर ---मुंबई हाइ कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए "””आरोपो की जांच के लिए सीबीआई " को आदेश दिया हैं | सीबीआई भी गैर बीजेपी शासित राज्य की सरकार के वीरुध जांच के लिए तुरंत हाजिर हो गयी ! कुछ कुछ ऐसा ही सुशांत की रहस्यमयी मौत की जांच के समय भी हुआ था | तब सीबीआई जांच का आदेश सुप्रीम कोर्ट की "”एकल बेंच "” ने दिया था | सुप्रीम कोर्ट में डबल या फुल्ल बेंच ही परंपरा के अनुसार मामलो की सुनवाई करती हैं | परंतु बिहार सरकार की अर्ज़ी पर एकल पीठ ने स्थापित आपराधिक जांच के नियमो को उलट कर – अपनी मर्ज़ी से सीबीआई की जांच का फैसला दिया |

अब इसी तरह गुजरात के निलंबित पुलिस अधिकारी { शायद बरख़ाष्ट } संजीव भट्ट ने भी गुजरात दंगो के दौरान सीबीआई की जांच में तत्कालीन मुख्य मंत्री और गृह मंत्री के वीरुध भी उनकी संलिप्तता के आरोप लगाए थे < परंतु --- वे आज भी एक पुराने केस में जेल में बंद हैं | ज्ञात हो तब मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी थे और गृह मंत्री अमित शाह थे !

गुजरात की ही सीबीआई की विशेस अदालत ने कुख्यात इशरत जंहा की कथित तौर पर पुलिस द्वरा मारे जाने की जांच कर रहे

वी आर रावल ने दो पोलिस अधिकारियों आई जी जी एल सिंघल और तरुण बरोट तथा अनाज चौधरी को निर्दोष घोषित किया --- यह कहते हुए की की मारे गए "”आतंकियो "” की बेगुनाही का कोई सबूत नहीं हैं ! “” विधि शास्त्र के अनुसार आरोपी को अपराध सीध होने के पूर्व तक "”निर्दोष "” समझा जाएगा ! शायद इस सिधान्त को विशेस कोर्ट ने तिलांजलि दे दी थी | उन्होने कहा की "” मुठभेड़ फर्जी नहीं थी "” | अब जांच मुठभेड़ की थी अथवा उसमें मारे गए व्यक्ति की थी ? फैसले साफ लिखा हैं की "”इशरत जंहा आतंकी नहीं थी --ऐसे सबूत नहीं मिले हैं "” | अब पाठक खुद फैसला करे की इसका क्या अर्थहै ?

परमवीर सिंह ने निव्र्त्मन ग्राहमन्त्री पर यह भी आरोप लगाया था की सांसद मोहन डेलकर की आत्म हत्या ,के मामले में वे बीजेपी नेताओ को फसाने के लिए कह रहे थे ! जबकि मोहन डेलकर की मौत के स्थान पर उनका एक पत्र पुलिस को मिला था --जिसमें उन्होने दादर नगरा हवेली के प्रशासक एवं गुजरात के नेता तथा अमित शाह के करीबी पटेल को आतम हत्या के लिए दोषी बताया था ! अब ऐसे में बीजेपी नेताओ को फँसाने का आरोप कैसे लग सकता हैं ---जबकि म्रतक ने सारी बात तफसील से मरने से पहले पत्र में लिख दी थी ? अब इस पर हाइ कोर्ट का मौन समझ में नहीं आता |

यह वैसा ही मामला हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट की एक ट्रेनी ने प्रधान न्यायाधीश पर अनुचित व्यव्हार के आरोप लगाए थे | लेकिन उसकी सुनवाई बंद कमरे में हुई और मामले को रफ़फा -दफ़फा कर दिया गया |

महाराष्ट्र के एक जज लोया की संदेहजनक स्थितियो में हुई मौत की जांच "”सत्ता "” के कुछ लोगो के लिए काफी तकलीफ देह हो रही थी | वे गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह के एक मामले की सुनवाई कर रहे थे ---- जिसे सुप्रीम कोर्ट ने राजनाइटिक प्रभाव से मुक्त रखने के लिए मामले की सुनवाई गुजरात में नहीं कराकर महाराष्ट्र में किए जाने का निर्देश दिया था | परंतु मुंबई बार असोसिएसन द्वरा बार बार याचिका लगाने पर भी जुस्टिस लोया की संदिग्ध मौत की जांच "””सीबीआई "” से नहीं कराई गयी < क्योंकि सत्ता को संकट सता रहा था !!!

अब बात करते हैं कर्नाटक हाइ कोर्ट के आदेश की ,जो मुख्यमंत्री येदूरप्पा के भ्रष्टाचार से संबन्धित हैं | मामला 45 एकड़ भूमि को सरकार के स्वामित्व से निकाल कर किसी को निजी लाभ पाहुचने का था | जिसकी जांच भ्रस्ताचर निरोधक दस्ते ने की थी | उसने इस मामले में "” प्राथमिकी यानि एफ आई आर भी दर्ज़ करा दी थी | इस एफ आई आर को रद्द करने की याचिका को हाइ कोर्ट ने रद्द कर दिया ! परंतु सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश बोरवाड़े की पीठ ने ---- येदूरप्पा को राहत देते हुए हाइ कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी ! और येदूरप्पा की मुख्य मंत्री की कुर्सी बच गयी !


एक और मामले में केरल हाइ कोर्ट को एक गंभीर मसले पर फैसला लेना हैं | मामला हैं की एंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने केरल के एक शासकीय व्यक्ति के यानहा छपा मारा | परंतु बाद में ऐसा पता चला की यह कारवाई राजनीतिक द्वेष के कारण की गयी थी | तब केरल की सीआईडी ने ईडी के अफसरो के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ कर के कारवाई शुरू कर दी | तब केंद्र सरकार को परेशानी हुई क्योंकि छपा मारने वालो ने विधि सम्मत प्रक्रिया से कारवाई नहीं की थी | केरल हाइ कोर्ट में देश के सलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस प्राथमिकी को रद्द करने के लिए याचिका दायर की | उनका तर्क था की ---एक जांच एजेंसी दूसरी जांच एजेंसी के खिलाफ जांच करे | सलिसीटर साहब भूल गए की सीबीआई के निदेशक ने अपने अतिरिक्त निदेशक के विरूढ़ा जांच कराई थी | बाद में सुरक्षा सलहकार अजित दोबल के बीच बचाव से मामला सुल्टा था | उस बारे में तौषार मेहता क्या कहेंगे ?