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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 8, 2017

पंजाबी -बंगाली -तमिल और मलयाली सभी तो भारतीय फिर हिन्दू कनहा ??

बेतुल की जिस जेल मे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रथम संघ सरचालक गोलवलकर को रखा गया था - उस बैरक मे श्रद्धा सुमन अर्पित करने गुरुवार 8फ़रवरी को सर संघचालक डॉ मोहन भागवत भी पहुंचे | इसी दिन हिन्दू सम्मेलन को संभोधित करते हुए उन्होने कहा की "”” देश के मुसलमान भी राष्ट्रियता से हिन्दू है "” उन्होने यह भी कहा की अगर देश का भला -बुरा होता है तो लोग जिम्मेदार हिन्दू को मानेगे | जात-पांत को खतम करने का आवाहन करते हुए उन्होने चेतावनी दी की अगर यह खतम नहीं हुआ “”दुष्ट अत्याचार करेंगे “” |

भागवत जी के उद्बोधन से कुछ सवाल उठ खड़े होते है जिनका देश के सामाजिक और धार्मिक आस्था से सरोकार जुड़ा हुआ है | सर्व प्रथम भारतवर्ष के सभी नागरिक भारतीय है हिन्दू नहीं | क्योंकि हिन्दू शब्द को कालांतर से वेदिक धर्म |का पर्यायवाची मान और समझ लिया गया है | जो सही नहीं है | वेदिक धर्म है और हिन्दू शब्द सिंधु नदी के पार रहने वालो के लिए सिकंदर ने प्रयोग किया था |
अतः इस अंतर को सँझना अत्यंत आवश्यक है | संभवतः भागवत जी किनही कारणो से भारतीय शब्द का प्रयोग करने से कतराते है | परंतु उनके कथन के बावजूद भी हिन्दू कोई धर्म नहीं है | जिस प्रकार पंजाबी -बंगाली -तमिल या मलयाली छेत्र विशेस के निवासियों के लिए प्रयुक्त होता है ,उसी प्रकार भारतीय भी देश के निवासियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है | देश मे भले ही लोग हिन्दू - मुसलमान से दो धर्मो के मानने वालो को पहचाने | परंतु विदेशो मे इन दोनों के लिए एक ही शब्द का इस्तेमाल होता है "”इंडियन "” जिसकार अनुवाद भी भारतीय है | हिंदुस्तान नहीं |

उन्होने जाती के बंधन से समाज को मुक्ति पाने का आग्रह किया | उनकी यह अपील सरहनीय है --परंतु इस व्यसथा को समाप्त होने के निकट भविष्य मे कोई उम्मीद नहीं दिखाई पड़ती | इसका उदाहरण अङ्ग्रेज़ी समाचार पात्रो मे निकालने वाले वैवाहिक विज्ञापनो मे देखने को मिलेगा | यह ईसाई विवाहो के विज्ञापनो मे देखने मे आता है ---जनहा एक ऐसे वर या वधू की आकांछा रहती है --जिनके पूर्वज नंबूदरी ब्र्म्हन अथवा नायर समाज से हो ,और जो बाद मे धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन गए | इसका अभिप्राय यह है की धर्म परिवर्तन के बाद भी "”जाति"” पीछा नहीं छोडती है | अब यनहा के निवासियों के मन मे बैठी जातीय श्रेष्टता ही उन्हे नाम के बाद सरनेम लिखने को मजबूर करती है | नाम अगर व्यक्ति की पहचान है तो सरनेम उसकी जाति की पहचान है |
परंतु यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि देश की सत्तारूद दल की जान और पहचान है | 1977 मे बनी जनता सरकार का विघटन सिर्फ इस कारण हुआ था की जनसंघ के लोगो से संघ से संबंध विछेद करने का पार्टी का आदेश हुआ था | तब संघ के सदस्यो ने सरकार से अलग होना मंजूर किया था --परंतु अलग होना नहीं | आज जब चरो ओर जाति या समाज विशेस के लोग "”आरक्षण "” की मांग को इन्हे आधार बनाते है ,तब यह बयान दूसरा ही रूप ले लेता है | बिहार चुनावो के समय भी संघ ने जातीय आरक्षण के विरोध मे बयान दिया था | जो भारतीय जनता पार्टी के लिए हानिकारक सीध हुआ | यानहा तक की पार्टी तीन अंको की संख्या भी नहीं पा सकी | अब लगभग फिर वैसी ही स्थिति है --तीन राज्यो मे विधान सभा चुनाव होने है | एवं उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड मे जातीय समीकरण विजय श्री के लिए महत्वपूर्ण है |

कमल -कुत्ता का महिमा पुराण और प्रधान मंत्री मोदी जी !

पाँच राज्यो के विधान सभा के चुनाव प्रचार के मध्य देश का बजट लोकसभा मे पेश करके मोदी सरकार ने देश मे फिर से प्रथम स्थान पाने की बाज़ी मार ली है यद्यपि इनहि परिस्थितियो मे मनमोहन सिंह सरकार ने बजट का प्रस्तुतुतीकरण चुनाव परिणाम आने तक ताल दिया था | अब इनकी ज़िद का एक ही कारण हो सकता है की इन्हे भावी की आशंका से भय है || दूसरा मौका नंबर वन होने का था की पूर्व मंत्री और वर्तमान लोकसभा के सदस्य ई अहमद का सदन मे निधन हो जाने के बाद भी उनके परिवार जनो को राम मनोहर लोहिया अस्पताल मे उन्हे देखने की इजाजत तक नहीं दी ,, आखिरकार उनकी मौत के बाद आधी रात मे उन्हे शव के पास जाने दिया गया | उनके इलाज़ के लिए कोई त्वज़्ज़्हो -उनके पद के अनुसार नहीं दी गयी | यहा तक सदस्य के निधन के बाद सदन मे अवकाश रखने की परंपरा भी खतम कर दी | शायद इन उपलब्धियों से पहले हम और सर्वश्रेष्ठ हम का कोटा नहीं पूरा हुआ था | जिसे पूरा करने के लिए प्रधान मंत्री ने क्र्त्ज्ञता ज्ञापन प्रस्ताव पर गजब का भाषण दिया |

अब उनके भासण को हम कुत्ता और कमल पुराण ही कह सकते है | क्योंकि एक घंटे और पचास मिनट {जैसा लोकसभा सूत्रो ने बताया } मे मोदी जी ने सदस्यो के प्रश्नो के उत्तर तो नहीं दिये वरन उनके बयानो को अपने भासन का आधार बनाया | वैसे भी मोदी जी लोकसभा मे बिरले ही बोलते है और यदा --कदा ही अवतरित होते है |

कुटा पुराण काँग्रेस दल के नेता खद्गे साहब के उस बयान से उपजा था जिसमे उन्होने कहा था की स्वतन्त्रता की लड़ाई मे काँग्रेस जानो का योगदान था और नेहरू परिवार ने तीन प्रधान मंत्री देश को दिये | जिसमे दो ने --इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी ने अपने प्राण देश के लिए उत्सर्ग कर दिया | आपके पार्टी की ओर से तो एक कुत्ते ने भी जान नहीं दी | इसके जवाब मे मोदी जी ने कहा की हम "”हम कुत्तो वाली परंपरा नहीं पाले - बड़े है "” | अब सवाल है की कौन कुत्तो की परंपरा मे पला बढा ? वैसे तो कुत्ता पालना अमीर और माध्यम वर्ग के लोगो की परंपरा है | फौज और पुलिस भी इसी परंपरा मे आते है | मोदी जी की यात्रा के पूर्व भी इनहि कुत्तो के समूह द्वरा बम की खोज कर उनके स्थान को निरापद बनाया जाता है | कहते है परिवार मे आपदा से रक्षा के लिए भैरव रूप को रोटी दिया जाना चाहिए | और स्वामिभक्ति का तो वह उदाहरण ही है | अब मोदी जी ठहरे "”फकीर "” जो लाखो का तो सुत पहनता है पर - घर -बार के झंझट से दूर | बहुत "”काम "”करते है | परंतु मोदी जी यह देश आप जैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवको से नहीं बना है | यानहा आदि गुरु शंकराचार्य ग्रहस्थ आश्रम की महत्ता बता गए है | आप और आपका संघ उसे गलत साबित नहीं कर सकता | हा आप को चोट लगी खडगे साहब के सवाल से ---तो इतिहास गवाह है की आप की विचार धारा के लोग आज़ादी की लड़ाई से नदारद थे | जिन सावरकर का नाम लेते है वह हिन्दू सेना के थे | और भगत सिंह तो पूरी तरह से साम्यवादी विचारिओ के थे | इन लोगो का नाम लेकर आप अपने जैसी विचारधारा को "”पवित्र" नहीं कर सकते | अंग्रेज़ो से छमा मागने का भी इतिहास आप लोगो का ही है | यह कह कर आप ना तो नेहरू परिवार के कुर्बानियों को कम कर सकते हो -ना कर पाएंगे | आपातकाल का ज़िक्र बहुत कर रहे है ---- परंतु तब भी सब कुछ संविधान और नियमो के तहत हुआ था ---आप तो नोटबंदी का अधिकार रिजर्व बैंक अक्त की 26 [2] धारा के अनुसार यह अधिकार सिर्फ वनहा के गवेरनार का है | आपका नहीं | 50 दिन मे सब कुछ ठीक करने की डींग मारी थी सारा देश अभी भी उस झटके से उबरा नहीं है | लें - दें सामान्य नहीं हुए है |
न्हासन के दौरान उन्होने 1857 मे क्रांति के निशान कमल और रोटी का ज़िक्र करते हुए कहा ---तब भी कमाल था आज भी कमाल है और रहेगा | मोदी जी आप को पता नहीं की कमल तो वेदो और पुराणो के समय मे भी था और आपके नहीं रहने पर भी रहेगा | वह हिन्दू - मुसलमान की एकता का प्रतीक था | एक मुगल बादशाह को सभी क़ौमों ने अपना नेता माना था | नाना जी तक ने भी | पर आप का कमल सिर्फ गैर मुसलमान और ईसाई का है | वैसे तो राम ने रामेस्वरम मे देवी पूजा मे 108 कमल छड़ने का "”संकलप "”लिया था जब एका कमल कम हो गया तो वे कमल समान अपने नयन को निकालने पर तत्पर हो गए थे | आप तो कमल के लिए एक कटरा खून भी नहीं बहाएँगे | मत करिए तुलना नुकसान मे रहेंगे |