हिन्दू - मुस्लिम सद भाव क्यों टूटता हैं ? और कैसे बरकरार हैं
देश मे दोनों धर्म के समुदायो मे कट्टरता अक्सर दो अवसरो पर दिखाई पड़ती हैं --- जब हिदुस्तान और पाकिस्तान का खेल का मैच हो चाहे वह क्रिकेट हो अथवा हॉकी | जब आबादी का काफी हिस्सा ''अपनी - अपनी''' पसंद के साथ खुशी और गुस्से का इजहार करता हैं | पटाखे छूटते हैं मिठाइया खिलाई जाती हैं |लेकिन दूसरे अवसर पर देश का बहुसंख्यक जंहा रोष - गुस्सा व्यक्त करता हैं वंही अल्पसंख्यक समुदाय की ""चुप्पी"" अखरने का एक कारण बन जाता हैं | इसी प्रकार जब सीमा पर देश के सैनिक शहीद होते हैं तब भी इस वर्ग का ''मौन ''' दिलो मे हलचल मचा देता हैं | किश्तवार मे पाकिस्तानी झण्डा फहराना और फिर दंगा होना -- कर्फुए लगना देश मे गलत सिग्नल भेजता हैं | जिससे सर्व धर्म सदभाव का बने रहना मुश्किल हो जाता हैं |
अगर इन मौको से उपजी प्रतिकृया समाज मे दरार सी लगती हैं वंही रायसेन ज़िले के वेदिक धर्म के व्यक्ति द्वारा पूरे रमज़ान मे रोज़े रखना और इस दौरान नमाज़ अदा करने के लिए चार किलोमीटर दूर मस्जिद मे जाना एक सुकून भर देता हैं | वंही एक गैर मुस्लिम का पेश इमाम बन कर ईद की नमाज़ अदा कराना साबित करता हैं की समाज मे ''कट्टरता ''' की बीमारी के किटाणु कम ही हैं |इसीलिए हमारे देश की ''अखंडता '''' बनी रहेगी यह विश्वास मजबूत होता हैं |
लेकिन अगर कोई अलपसंखयकों की ''कतिपय'' मौको पर चुप्पी अथवा अनदेखी के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं तब कुछ घटनाए ऐसी भी हैं जो इस तबके के प्रभावी और समझदार लोगो की विचारधारा को व्यक्त करते हैं | इस संदर्भ मे अजमेर शरीफ के दीवान के दो फैसले गिनाए जा सकते हैं | पहला जब उन्होने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री को """इज्ज़तदार """ शख्सियत का दर्जा देने से इंकार कर दिया था | दूसरा फैसला उनका कबीले तारीफ हैं --- पाकिस्तान द्वारा पाँच सैनिको की सीमा पर घात लगा कर हत्या किए जाने की घटना से जब लोगो का गुस्सा उफान पर था , तब फिर अजमेर शरीफ के दीवान जैनुल आबदीन ने शहीद हुए जवानो के परिवारों को एक - एक लाख रुपये दिये जाने का ऐलान किया | गौर तलब हैं की ख़्वाजा की मज़ार पर न केवल मुस्लिम वरन हिन्दू भी ज़ियारत करने जाते हैं | भारत के अलावा पाकिस्तान - बंगला देश और इंडोनेशिया मलेसिया से लोग आते हैं | इस्लाम मे सूफिवाद का जन्म ख्वाजा के समय मे काफी विस्तारित हुआ था |
लेकिन आज ज़रूरत हैं की किश्तवार की घटना को देश का मुसलमान निंदा करे , नहीं तो उसकी ही नीयत पर शक किया जाएगा |
देश मे दोनों धर्म के समुदायो मे कट्टरता अक्सर दो अवसरो पर दिखाई पड़ती हैं --- जब हिदुस्तान और पाकिस्तान का खेल का मैच हो चाहे वह क्रिकेट हो अथवा हॉकी | जब आबादी का काफी हिस्सा ''अपनी - अपनी''' पसंद के साथ खुशी और गुस्से का इजहार करता हैं | पटाखे छूटते हैं मिठाइया खिलाई जाती हैं |लेकिन दूसरे अवसर पर देश का बहुसंख्यक जंहा रोष - गुस्सा व्यक्त करता हैं वंही अल्पसंख्यक समुदाय की ""चुप्पी"" अखरने का एक कारण बन जाता हैं | इसी प्रकार जब सीमा पर देश के सैनिक शहीद होते हैं तब भी इस वर्ग का ''मौन ''' दिलो मे हलचल मचा देता हैं | किश्तवार मे पाकिस्तानी झण्डा फहराना और फिर दंगा होना -- कर्फुए लगना देश मे गलत सिग्नल भेजता हैं | जिससे सर्व धर्म सदभाव का बने रहना मुश्किल हो जाता हैं |
अगर इन मौको से उपजी प्रतिकृया समाज मे दरार सी लगती हैं वंही रायसेन ज़िले के वेदिक धर्म के व्यक्ति द्वारा पूरे रमज़ान मे रोज़े रखना और इस दौरान नमाज़ अदा करने के लिए चार किलोमीटर दूर मस्जिद मे जाना एक सुकून भर देता हैं | वंही एक गैर मुस्लिम का पेश इमाम बन कर ईद की नमाज़ अदा कराना साबित करता हैं की समाज मे ''कट्टरता ''' की बीमारी के किटाणु कम ही हैं |इसीलिए हमारे देश की ''अखंडता '''' बनी रहेगी यह विश्वास मजबूत होता हैं |
लेकिन अगर कोई अलपसंखयकों की ''कतिपय'' मौको पर चुप्पी अथवा अनदेखी के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं तब कुछ घटनाए ऐसी भी हैं जो इस तबके के प्रभावी और समझदार लोगो की विचारधारा को व्यक्त करते हैं | इस संदर्भ मे अजमेर शरीफ के दीवान के दो फैसले गिनाए जा सकते हैं | पहला जब उन्होने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री को """इज्ज़तदार """ शख्सियत का दर्जा देने से इंकार कर दिया था | दूसरा फैसला उनका कबीले तारीफ हैं --- पाकिस्तान द्वारा पाँच सैनिको की सीमा पर घात लगा कर हत्या किए जाने की घटना से जब लोगो का गुस्सा उफान पर था , तब फिर अजमेर शरीफ के दीवान जैनुल आबदीन ने शहीद हुए जवानो के परिवारों को एक - एक लाख रुपये दिये जाने का ऐलान किया | गौर तलब हैं की ख़्वाजा की मज़ार पर न केवल मुस्लिम वरन हिन्दू भी ज़ियारत करने जाते हैं | भारत के अलावा पाकिस्तान - बंगला देश और इंडोनेशिया मलेसिया से लोग आते हैं | इस्लाम मे सूफिवाद का जन्म ख्वाजा के समय मे काफी विस्तारित हुआ था |
लेकिन आज ज़रूरत हैं की किश्तवार की घटना को देश का मुसलमान निंदा करे , नहीं तो उसकी ही नीयत पर शक किया जाएगा |