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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 3, 2025

सड़क -नगर और गाँव के नाम बदलने के बाद अब राज्य का

 

सड़क -नगर और गाँव के नाम बदलने के बाद अब राज्य का भी नाम बदलने की तैयारी ?



मोदी सरकार के केंद्र और राज्यों में बीजेपी सरकारों के गठन के बाद दो बाते सामने आई है ---एक तो जय श्री राम का नारा और दूसरा पुरातन काल के वैभव की याद !

इसको आधार बना कर दिल्ली की सड़कों के नाम जो मुगल शासकों के नाम से जाने जाते थी --- उनका हिन्दू कारण किया गया | बात यनही नहीं रुकी , फिर नंबर आया गाव और नगरों का यंहा तक रेल्वे स्टेशन के नाम भी बदले गये ---पर वे देश के गौरव के नहीं वरन आरएसएस या बीजेपी के महानुभाव लोगों के नाम थे | जैसे मुगलसराय का नाम बदल गया | पर अब तो गृह मंत्री अमित शाह ने कह दिया की कश्मीर का नाम बदल कर ऋषि कश्यप के नाम पर रखने का विचार हैं ! आखिर इससे होगा क्या ?


अंग्रेजी के प्रख्यात लेखक शेक्सपियर का कथंन था की नाम मे क्या रखा है गुलाब तो एक महकता फूल ही रहेगा ! परंतु मौजूद सरकार और उसके कुछ समर्थक यह समझ रहे है की नाम बदलने से देश का हिन्दूकारण हो जाएगा ! कितना गलत सोच हैं | जिस स्थान या सड़क का नाम परिवर्तन किया है --- सवाल है आम जनता उसकी पहचान किस नाम से जानती है ! वाराणसी सरकारी दस्तावेज़ों और कामकाजों मे बनारस का नाम है | परंतु आज भी आम जन बोलचाल मे अथवा लिखने पड़ने मे उसे भोले बाबा की नागरी बनारस के नाम से ही जानता है ! तीर्थयात्री बनारस जाता है बाबा विश्वनाथ का दर्शन करता है घाट पर जब पंडित उसका संकल्प बोलत है तब वाराणसी कहते हैं | बनारस या वाराणसी का महत्व सैकड़ों साल पहले भी था -- और नाम परिवर्तन के बाद भी है | तब फरक क्या हुआ ? सिवाय कुछ "”परम"” {बनारसी बोलचाल मे } ज्ञानियों की जिद्द पूर्ति के |



फिर एक कानूनी बाधा भी है , स्थान या नगर या ग्राम के नाम परिवर्तन के लिए स्थानीय शासन और राज्य सरकार की सहमति के बाद ही केंद्र का गृह मंत्रालय नाम परिवर्तन कर सकता हैं | परंतु राज्यों के मामले मे वनहा की सरकार निर्णायक है | मद्रास का नाम तमिलनाडु करने के लिए वनहा की विधान सभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव भेजा था | पूर्व मे राज्य पुनर्गठन आयोग , जो आजादी के बाद --रियासतों के विलय के बाद बना था , उसने भी अनेक स्थानों के नए नाम रखे थे | आजादी के पहले देश मे दो शासन व्ययवस्था थी ---ब्रिटिश भारत और रियासती भारत | अब आज का आंध्र तब हैदराबाद ऑफ निजाम के नाम से जाना जाता था | उसके तीन हिस्से हुए एक महाराष्ट्र मे कुछ कर्नाटक मे और बाकी वर्तमान आंध्र मे | कोशिस हैदराबाद का भी नामबदलने की हुई --परंतु स्थानीय विरोध के बाद इरादा छोड़ दिया गया |





समय हमेशा आगे की ओर चलता हैं , पीछे की ओर नहीं , पुरातन का वैभव काभी भी और कांही भी नहीं लौटा है ! रूस ने पहले तो जार के नाम -- निशान को खतम करने की कोशिस की पर नहीं कर पाया | हाँ जार के साम्राजय की सीमा को दुबारा नहीं पा सके | धर्म को साम्यवादी हमेशा से जन विरोधी और सत्ता विरोधी मानते रहे हैं | परंतु रूस के विघटन के बाद आज स्थानों के नाम वापस बदले गये , और आर्थोडॉक्स चर्च आज भी वनहा के लोगों मे स्वीकार है ,लोग चर्च जाते है , स्टालिन के जमाने मे लोग डरते थे | मतलब नामकरण से हालत नहीं बदलते है | ब्रिटिश साम्राज्य हो अथवा जर्मन या खिलाफ़त या ओटटोमॅन सामराज्य दूसरे विश्व युद्ध से पहले इनकी टूटी बोलती थी ----परंतु आज क्या हाल है | क्या इन्हे अपने पुरातन वैभव का ज्ञान या चाह नहीं होगी ---परंतु निष्फल है |


इसलिए चाहे सरकार हो या अदालत कोई भी पुरातन को ना तो खुदाई करके और ना ही नए नाम से उस वैभव को लौट सकता है | हाँ कुछ वक्त के लिए कुछ लोगों की वाह वाही मिल सकती है , हो सकता है वॉटर भी मिल जाए --पर इससे ज्यादा कुछ नहीं | एक शायर ने कहा है "”” गया वक्त फिर वापदस आता नहीं है "” और गृह मंत्री और उनके साथी वेदिक कालीन अथवा सैकड़ों साल पुराने वैभव को लाने की बात करते हैं | रोमन सामराज्य मे इटली , ग्रीक साम्राज्य और कार्थेज आदि इतिहास मे रहे हैं , परंतु आज उनका स्थान कान्हा हैं | दूसरी लड़ाई के पूर्व भारत एक उपनिवेश था आज एक प्रगतिशील राष्ट्र है | यह इतिहास जग जाहीर है ,ज्ञात है | परंतु हजारों साल पूर्व का वैभव जो कुछ ही किताबों मे है उसके कारण इस देश या छेत्र मे अशान्ति या भेदभाव को जनम देना राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक होगा या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा |