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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 19, 2022

 

दगे हुए कारतूस  बेल्ट को भरा दिखाते है पर काम के नहीं होते !

 

यह बात हाल ही में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी में हुए संगठनात्मक  बदलाव  के बारे में हैं | जिसमें  पार्टी के “”त्रिगुट ने  केंद्रीय सड़क मंत्री गडकरी  और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  को चुनाव समिति और प्रबंध समिति से “बेदक्खल “” किया गया हैं | इस परिवर्तन को इस लिए महत्ता  मिली हैं क्यूंकी   शिवराज सिंह  विगत 16 सोलह सालो से मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री है , और कमीबेशी के साथ  उन्होने कमलनाथ सरकार को प्क़्न्द्रह महीनो में गिरा कर , पुनः सत्तासीन होने की सफलता प्राप्त  की हैं |  उधर गडकरी को यह गौरव  मिलता हैं की की उन्होने देश में  अनेक “”राष्ट्रीय राजमार्गों “ का निर्माण कर के  सड़क यातायात को  सुलभ करने के लिए  प्रयास किए हैं |  यह बात और हैं की  उनके इन मार्गो में बने ओवर ब्रिज  और पुल  इस साल की बरसात में धराशायी  हो गए हैं |  परंतु  टोल  टैक्स  की दरो में व्रधी को लेकर जनता में आशंतोष  उपजा हैं |

                                    परंतु गडकरी को  आरएसएस का का प्रियपात्र  होने का सत्य , अब यह बताता हैं की नरेंद्र मोदी सरकार  में  केवल और केवल  मोदी ही सर्वोपरि  हैं , वरन वे किसी भी अन्य सहयोगी  की जनता में बढती साख और हैसियत  को बिलकुल नापसंद करते हैं | वे ना केवल सरकार में मनमाने निर्णय फेर -बदल  कर सकते  वरन पार्टी  को भी वे उसी तर्ज़  पर चलाते  हैं | इससे  भारतीय जनता पार्टी  पर संघ  की पकड़  की बात मिथ्या साबित होती दिखती हैं | भले ही चुनावो के समय  पार्टी  अपनी रक्षा के लिए  “”त्राहिमाम “” करती हुई नागपुर  को शरणागत हो जाए | परंतु  सरकार बनते ही संघ नेत्रत्व  को निसप्रभावी  करने का गुर  नरेंद्र मोदी को आता हैं |  जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे  तब से वे  आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद का इस्तेमाल  सफलता पूर्वक कर चुके हैं | यानहा तक की उनकी पसंद के लोगो को  बीजेपी संसदीय पार्टी  द्वरा बदले जाने पर उन्होने  विद्रोह के तेवर  दिखा दिये थे | फल्स्वरूप  बीजेपी संसदीय दल को  उनकी मांगो  का सम्मान करना पड़ा था

 

               अब संसदीय बोर्ड में येदूरप्पा  और सत्य नारायण जटीया  और आसाम के सोनेवाल  का मनोनयन  यह साबित करने में  पूरी तरह सक्षम  है की  प्रधान मंत्री जी को अपनी  नकल करने वालो और  मन मुताबिक  परिणाम नहीं देने वालो  को वे सार्वजनिक रूप से  नीचा दिखाने  से नहीं चूकते | यह वे सिद्ध करने के लिए करते हैं , की एकमात्र  वे ही देश -पार्टी और संघ संगठन को चलाने और मार्गदर्शन  देने में सक्षम  हैं | अगर इस तथ्य की जांच करे तो पाएंगे की कर्नाटक  में येदूरप्पा  को ना केवल भ्र्स्टाचार का सामना करना पड़ा वरन वे खुद भी  इसके दोषी पाये गाये | बीजेपी को भी वे कर्नाटक  में सम्हाल कर नहीं रख सके और   विधान सभा में  त्यागपत्र की घोसना करनी पड़ी थी |   वर्तमान समय में में कर्नाटक में  हिंदुवादी तत्वो के कारण “”हिजाब “” को लेकर हुए आंदोलन के कारण  बोममाई सरकार को बहुत आलोचना  से दो – चार होना पड़ा |  आगामी विधान सभा चुनावो में लिंगयत  मतदाताओ को बीजेपी में लाने यह कोशिस में येदूरप्पा  कितना सफल होंगे यह समय बताएगा |  परंतु अभी तक के परिणाम उनकी “” सफलता “” पर सवालिया निशान लगाते हैं |

                                 मध्य प्रदेश में भी  चुनावो में शिवराज सिंह  बीजेपी का एकमात्र चेहरा साबित हुए हैं | हालांकि  दल बादल के कारण  काँग्रेस और अन्य डालो से आए विधायकों  को समायोजित  करने के उपायो ने उनकी हैसियत को कुछ हद्द तक लचीला बना दिया हैं | 16 साल तक मुख्यमंत्री  रहने का यह कीर्तिमान  कोई अन्य नेता तोड़ पाएगा --- यह कहना मुश्किल हैं |

                  दगे हुए कारतूसों का उदाहरन  चुनावो में इन नामित नेताओ की सफलता  के आधार पर हैं | जटिया उज्जैन  से सांसद रहे हैं , इनके परिवार के लोगो पर ,यह आरोप लगे थे की  की उनके मंत्री रहते हुए अनेक  लाभ लिए गए | अब इन आरोपो की कोई जांच नहीं हुई  इसलिए इनकी सत्यता के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता | परंतु  उनके नामित होने से  उज्जैन -इंदौर छेत्र में पार्टी को कोई लाभ होगा ----यह  संदेहास्पद ही हैं | भले ही जाति के आधार पर समायोजन  को उचित बताया  जाये , पर जमीनी  सत्य तो यह नहीं हैं |

                            गडकरी एक परखे और सिद्ध मंत्री हैं | जब वे  महाराष्ट्र में मंत्री थे तब उन्होने धन कुबेर और मोदी जी मित्र अंबानी जी को फ़्लाइ ओवेरों के निर्माण को लेकर  पूंजी के प्रश्न पर कहा था की “”आप देखते जाइए की मुंबई में  सड़क आवागमन को कितना सुविधा जनक बनाया जा सकता हैं |  उनके बारे में यह सर्व विदित हैं की वे नरेंद्र मोदी को  “” समतुलयों में प्रथम “” मानते हैं | अपना मालिक और सर्वशक्तिमान नहीं मानते | हाला ही में उन्होने मौजूदा राजनीति को  सत्ता का संघराश  बताते हुए कहा था की गांधी जी की जमाने में राजनीति सामाजिक सरोकारों की होती थी | इस पर उन्होने कहा था “”की मन करता हैं की राजनीति छोड़ दु , क्यूंकी अब यह सिर्फ सत्ता पाने का जरिया बन गया हैं |”” अब मोदी जी की मन की बात के बाद गडकरी जी की मन की बात कैसे  वातावरण में रह सकती हैं | तो यह एक वार है , जो मोदी जी के फैसलो पर आशंतुष्ट हो !!!!”””

Aug 18, 2022

 

मनुष्य परिवार से ही सामाजिक प्राणी हैं -प्लेटो को नकारा गया है

 

       स्वतन्त्रता  दिवस पर प्रधानमंत्री या प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी जी ने देश की सबसे बड़ी समस्या – राजनीति में परिवारवाद को बताया ! उनके  उदबोधन  से साफ झलकता था की वे राष्ट्र की समस्याओ को नहीं वरन -वे अपनी पार्टी के एजेंडे पर बोल रहे हैं |उनके अनुसार राजनीति में परिवारवाद  योगिता को नकारता हैं !  पर क्या वास्तव में ऐसा हैं ?  कम से कम  भारत में तो एक ऐसा परिवार हैं  जिसने देश को तीन प्रधान मंत्री दिये – और उनमें से दो देश के लिए शहीद हुए ! जी हाँ  मैं इन्दिरा जी और राजीव जी की बात कर रहा हूँ | नेहरू -गांधी परिवार से ही पंडित जवाहर लाल नेहरू -इन्दिरा प्रियदर्शिनी गांधी और राजीव गांधी हुए हैं |  कम से कम इन तीनों ने देश को अपने सामर्थ्य के अनुसार  आर्थिक और सामरिक रूप से बलशाली बनाया हैं | उनकी उपलब्धियों  को व्हात्सप्प यूनिवेर्सिटी  के गंदे प्रचार  से  हिंदुवादी  ना तो नकार सकते हैं और नाही धुंधला कर सकते हैं |

             यूनान के एक अदर्शनिक हुए हैं उनका नाम प्लेटो था , उनकी अवधारणा थी की  शासक वर्ग  के लिए उन लोगो को चुना जाना चाहिए जो नागरिकों और समाज को न्याया दे सके | उनकी निसपक्षता  के लिए  , उनका सुझाव था की की नागरिकों के बालको को परिवारों से अलग कर के  लालन पालन किया जाए | उनकी देखरेख  विद्वानो द्वरा की जाये जो उनकी शारीरिक और बौद्धिक छमता के विकास को सुनिश्चित करे | परिवार से अलग होने के कारण उनमें  सबके लिए “” समान भाव “” होगा | इन लोगो को उन्होने “दार्शनिक शासक “ कहा था | परंतु यह प्रयोग बुरी तरह निष्फल हुआ |

                       क्यूंकी मनुष्य जन्म  के पश्चात  दस – बारह वर्ष की आयु तक  माता -पिता के संरक्षण में ही  बड़ा होता हैं | वह परिवार के सहारे ही समाज में “”परिचय “” पाता हैं | परिवार से ही जाति-धरम  मिलता हैं |  प्राचीन काल में व्यवसाय भी परिवार से ही मिलता था | ईशा मसीह के पिता बढई थे उन्होने बाल्यकाल में पिता की मदद की थी | अगर हम विश्व का इतिहास देखे तो  राजवंशो का इतिहास  पारिवारिक विरासत  का ही इतिहास हैं | ऐसा ही कुछ व्यापारी वर्ग में भी होता था | और आज भी बड़े – बदर औद्योगिक घराने  वंशानुगत  ही चल रहे हैं | छहे वे अंबानी हो -बिरला हो या या फिर अन्य कोई | जो नए उद्योगपति बने हैं वे भी अपने परिवार जानो को व्यापार की बागडोर दे रहे हैं |

                               ऐसे में मोदी जी का कथन  उनके राजनीतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  और भारतीय जनता पार्टी को छेतरीय दलो से मिल रही चुनौतियों  की गंभीरता  को उनकी चिंता हैं |  संघ परिवार में  अधिकतर उच्च पदाधिकारी  अविवाहित हैं | कहते हैं की संघ के अनुसार परिवार  राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन  के कार्य में  बाधा बनते हैं |  जो  आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने वालो  के जीवन से गलत साबित होता हैं |  महात्मा – पंडित नेहरू – सरदार पटेल  मौलाना आज़ाद  आचारी कृपलानी आचारी नरेंद्र देव  के पूर्वा लोकमानी तिलक – सुरेन्द्र नाथ बनेरजी  आदि कितने भी नाम ले सभी विवाहित थे | हाँ  क्रांतिकारी  सभी अविवाहित थे – आज़ाद ,भगत सिंह , असफक़ुल्लह खान  आदि | परंतु इन सभी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ा हुआ था | अनिश्चित जीवन के कारण ही इन क्रांतिकारियों ने विवाह नहीं किया | परंतु संघ  की “”क्रांति “” में लगा हैं जो अविवाहित लोगो द्वरा संगठन को संचालित किया जा रहा हैं ?  क्रांतिकारी हिनसा करते थे , अंग्रेज़ो के कानून तोड़ते थे , इसलिए उन्हे जीवन की अनिश्चितता  थी | पर आज संघ को गुरु दक्षिणा के रूप मे  करोड़ो रुपये मिलते हैं , उनके सामाजिक संगठनो को चलाने के लिए ---फिर परिवार  से अलगाव क्यू ?  अकसर संघ के “”जीवनदानी स्वयंसेवको “  का अंतिम समय बहुत ही दयनीय  अवस्था में गुजरता हैं | दो मौको का मैं स्वयं साछी रहा हूँ |जिसके कारण संगठन द्वरा  जीवन के स्वर्णिम काल को इस्तेमाल कर  अंत समय में संगठन द्वरा  उन्हे उनके हाल में छोड़ देना अमानवीय लगता हैं | इस अवस्था में भी  उन स्वयंसेवको  को उनके परिवारों ने ही  सहारा दिया , जिनकी खोज खबर  उन्होने अपने युवा काल में नहीं की थी |

            लोकतान्त्रिक देशो में भी राजनीति  में परिवारों के लोग आए हैं | अमेरिका  में जार्ज बुश और उनके पुत्र दोनों रेपब्लिकन पार्टी से राष्ट्रपति बने | कैनेडी  राष्ट्रपति बने  उनकी हत्या की गयी ,फिर उनके भाई राबर्ट  केनेडी  अट्टार्नी जनरल बने उनकी भी हत्या की गयी | उनके तीसरे भाई  एडवर्ड केनेडी  सीनेटर  बने उनकी भी रहस्यमय  स्थितियो में माउट हुई | अभी पूर्व उप राष्ट्रपति डिक चेनी की पुत्री सीनेटर हैं परंतु वे पार्टी में उम्मीदवारी के लिए हुए प्राथमिक चुनावो में हार गयाई हैं |  वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प  के वीरुध जांच कर रही समिति की सदस्य हैं | इसलिए  ट्रम्प ने उनके वीरुध प्रचार किया |

 

राज्यो के छेत्रीयदल  और परिवारवाद

 मोदी जी को सबसे ज्यड़ा फिकर  उत्तर प्रदेश में मुलायम सिह की समाजवादी पार्टी ---बिहार में  लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल – तेलंगाना में टीएसआर की तेलंगाना परिषद से आंध्र में नायडू की काँग्रेस से उड़ीसा में बीजू जनता दल से -बंगाल में ममता बैनेरजी की त्राणमूल काँग्रेस से तमिलनाडू में द्र्विन मुनेत्र कडगम से  और नागालैंड में संगमा की पार्टी से | इतेफाक से बिहार – उड़ीसा – तेलंगाना – आंध्र – तमिलनाडू  बंगाल -और नागालैंड में गैर बीजेपी सरकारे  हैं | 2024  के लोकसभा चुनावो में इस बार कोरोना और बदती मंहगाई तथा बेरोजगारी  तथा  सरकारी नौकरियों में कमी , और उनमें भर्ती ना होना – प्रतियोगिताओ के परिणाम रद्द किए जाना , आदि बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जी नौजवानो को परेशान किए हुए हैं | मोदी के आठ  साल के शासन में गत वर्षो  मे उनके और उनकी सरकार के खिलाफ  जनता में काफी रोष हैं |  अब बीजेपी  राम मंदिर और हिन्दू -मुस्लिम मुद्दा उठाकर  चुनावी लाभ नहीं ले सकती हैं |

                          फिर जिस प्रकार महाराष्ट्र में  केंद्र के इशारे पर  दल बादल कराकर  उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराया गया , उससे बीजेपी सरकार द्वरा  लोकतान्त्रिक  मूल्यो के हनन  का द्राशय सामने हैं | यह बात दूसरी हैं की  बिहार में नितीश कुमार ने  जिस सफाई से बीजेपी को विधान सभा में अकेले विपक्ष  में बैठा दिया हैं , उसकी मिसाल सिर्फ दिल्ली में अरविंद केजरीवाल  की सफलता से ही दी जा सकती हैं |  आप पार्टी की पंजाब में सफलता ने  , उनके लिए हिमाचल में सरकार बननाने  की राह खोल दी हैं | इसीलिए केजरीवाल मंत्रिमंडल के  एक मंत्री को ई डी ने बंदी बनाया हुआ हैं | खबर यह भी गरम हैं की अगला नंबर  सिसौडिया जी का हैं | क्यूंकी  आजकल वे हिमाचल में  आप के चुनाव प्रचार  को देख रहे हैं | बीजेपी को हिमाचल में सेव उत्पादको  के कोप का भजन होना पद रहा हैं | उत्पादको के सेव 5 रुपए किलो  में खरीद कर  दिल्ली के बाज़ारो  50 रुपए किलो बेच रहे हैं |

 इन सभी कारणो से नरेंद्र मोदी  जी को  परिवारवाद से खतरा लग रहा हैं | हालांकि केजरीवाल  पर और नितीश कुमार पर परिवारवाद  का आरोप नहीं लगेगा |

 

 

 

 

Aug 14, 2022

 

आरोपी -तफतीश  के दौरान क्यू रहते हैं जेल में -जमानत क्यू नहीं ?

 

      अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की जुस्टिस सुंदरेश  की डिवीजन बेंच ने  अपने फैसले में कहा की  आरोपी को जमानत पाने का अधिकार हैं | जिसे अदालतों द्वरा सम्मान किया जाना चाहिए | कुछ ही दिन बाद  जस्टिस खानविलकर की बेंच ने  मनी लौंडेरिंग के मामले में  प्रवर्तन निदेशालय  को बिना वारंट और कारण बताए बगैर  गिरफ्तारी  को जायज बताया !  वनही  प्रधान न्यायाधीश  जुस्टिस रमन्ना  ने भी  एक फैसले में कहा की  “” बेल बट नो जेल “”  | ऐसी विरोधाभाषी  स्थिति में  निचली अदालतों के पास   दोनों ही स्थितियो को “”न्यायिक “ सिद्ध करने के लिए  कारण और तथ्य मौजूद हैं !  सवाल हैं की  देश की जेलो में 4 0000, चालीस हज़ार से अधिक क़ैदी  “”आरोपी हैं | एवं वे भी सालो से अपने मुकदमो  का इंतज़ार कर रहे हैं | जिन कारागारों को अपराधियो की सज़ा के उद्देश्य से बनाया गया , आज वे बंदीग्रह बन गए हैं | जनहा अपराधियो से भी ज्यादा वे लोग क़ैद हैं जिन पारा अभी भी “”अपराध “” सिद्ध नहीं हुआ हैं | क्यूंकी   जांच एजेंसियो  ने अपनी तफतीश पूरी नहीं की है , और और अदालतों में चार्जशीट  दाखिल नहीं की गयी हैं

 

  जांच एजेंसियो द्वारा  चार्जशीट  पेश करने में महीनो का विलम्ब और मुकदमें के दौरान  “”सबूतो  को समय पर पेश नहीं करने “” के कारण  बहुत  से आरोपी  “”न्याय की इस प्रक्रिया में ही बेहाल  हो कर निराश हो जाते हैं “ | आरोपी की बेगुनाही साबित होने की दो वजहे हैं :-

1-         सबूत का अपराध को सिद्ध करने में सीधा संबंध नहीं होना

2-         आरोपी के वीरुध अपराध करने की नियत और अपराध का सीधा संबंध नहीं होना |

 इसकारण  कई बार सबूतो के अभाव में उन्हे छोड़ दिया जाता हैं | परंतु जब अदालत आरोपी को पूर्णतया निर्दोष मानते हुए “”बाइज्जत बरी “” करने का फैसला सुनाती है , तब तो जांच अधिकारी की योगिता और उसकी नियत पर शंका उठना स्वाभाविका है |  महात्मा गांधी हत्यकाण्ड में  हिंदू महासभा  के नेता सावरकर जिनहे वीर सावरकर भी कुछ लीग कहते हैं , वे भी  एक अभियुक्त थे |  [परंतु  हत्या के षड्यंत्र में  सीधा संबंध नहीं होने के कारण  उन्हे आरोपो से मुक्त किया गया था , परंतु उन्हे बाइज्जत बरी नहीं किया गया था | इस स्थिति का फल यह होता हैं की अगर भविष्य में इस संबन्धित अपराध में कोई नए सबूत मिलते हैं जो उनके वीरुध होते हैं ,तब उन्हे दुबारा अदालत में पेश किया जा सकता है |

                 परंतु महात्मा गांधी हत्यकाण्ड में भी सावरकर को जेल में नहीं रखा गया था | यद्यपि वे आरोपी थे | परंतु आज तो  फाजिल के मामले में अलीगरह हालत यह है की छोटे से छोटे अपराध के आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पुलिस द्वरा लाये जाने पर  --अदालत उनसे यह नहीं पूछती है की आप को जमानत चाहिए या नहीं ? सीधे पुलिस के हिसाब से  डायरी देख कर सीधे हिरासत में भेजे जाने का हुकुम लिख दिया जाता हैं | अफसोस तो यह हैं की  अपील की अदालते भी जिला अदालत के फैसले को “”सरसरी “” निगाह से देखती हैं |  गोरखपुर के डॉफाजिल के मामले में अलीगड के जिलाधिकारी द्वरा यूएपीए के तहत  “ दो समुदायो के मध्य नफरत और वैमनस्य फैलाने के जुर्म में  बंदी बनाए जाने का हुकुम दे दिया | जिस भासन के आधार पर यह अपराध होना पाया गया था , उसे सुप्रीम कोर्ट   ने “”निर्दोष भासन “” बताया , और टिप्पणी की क्या जिलाधिकारी ने पुलिस केकसबूतों को  ध्यान से परखा होता तो उन्हे पता चलता की भासन में कोई भी ऐसा अंश नहीं हैं जिसे “” नफरत भरा “” कहा जा सके |  रिहाई के बाद डॉ फाजिल  ने कहा की मेरी सज़ा यह होनी चाहिए की मैं उन कलेक्टर साहेब का ड्राईवर बानु -जिससे की वे मेरी शक्ल देख कर  अपने फैसले  के गलत होने का अंदाज़ कर सके |

                               रायपुर की एनआई ए की अदालत ने  यू एपी ए  कानून के तहत  121 आदिवासियो को नक्सलवादी मानने से इंकार कर दिया | उन पर आरोप था की 2017 में उन्होने  सीआरपीएफ़  के 26 जवानो को मार दिया था |  अदालत ने फैसले में लिखा की अभियोजन द्वरा  ना तो कोई ऐसा बयान ही प्रस्तुत किया गया और नाही ऐसा कोई सबूत जो इन आदिवासियों  को जबत हथियारो से जोड़ता हो |  6 जंगल  गावों  से बंदी बनाए गाये आरोपी 2017 में मुश्किल से बीस या तीस वर्ष के रहे होंगे | जिनके माओ वादी होने का कोई भी सबूत पुलिस नहीं दे पायी हैं | केवल पुलिस के आरोपो  को सबूत नहीं माना जा सकता |  पुलिस यह साबित करने मेंविफल रही की आरोपी वारदात के समय  मौके पर मौजूद थे ! 

रिहाई के बाद इन आदिवासियो के चेहरे पर  कोई खुशी नहीं थी उन्होने मीडिया से भी बात करने से गुरेज  किया | वे बस अपने -अपने परिवारों से मिलने की जल्दी में थे ---जिनसे वे 5 वर्षो से अलग रहे | वंचितों  केसमुदाय से  कानून की इस नाइंसाफी ने उन्हे तोड़ दिया था |

एक दूसरे मामले में एन एस ई एल  के एक आरोपी को  को तीन साल जेल में इसलिए रहना पड़ा क्यूंकी जमानत की राशि 3 लाख रुपये थी | जो वह नहीं जूता सका | तीन साल तक जेल में रहने के पश्चात अदालत को ख्याल आया की की जब बाकी सभी आरोपी इस मामले में  जमानत में है –तब यह क्यू बंदी ग्रहा में रहे | तब अदालत ने  जमानत की राशि 1 लाख कर दी | परंतु उसके पैसे वाले साथी 3 साल पहले जेल से मुक्त होकर आज़ादी की हवा में सांस ले रहे थे ----पैसे की कमी ने उसे बंदीग्रह में ही रखा !!!!

              प्रदेश को बदनाम करने वाले व्यापम कांड , जिसमें पीएमटी  प्रतियोगिता में पैसा लेकर  छात्रों  को पास कराने के लिए कई  गिरोह  शामिल थे | 2022 में इस कांड को 8 साल हो गए हैं , कुल 67 मुकदमो में से सिर्फ 21 मामलो में सुनवाई पूरी हो पायी हैं | इनमें 19 मामलो में सीबीआई  अभियुक्तों को सज़ा दिलाने में सफल हुए हैं |  

लेकिन दो मामले जिनमे 300 लोग आरोपी हैं , में सीबीआई ने चालान तो पेश कर दिया पर गिरफ्तारी नहीं हुई है इसलिए  मामलो को सुनवाई शुरू नहीं हुई |  कहने का अर्थ  हैं की की जांच एजेंसियो की धीमी चाल और अदालतों में सुनवाई के लिए मामलो का अंबार नागरिकों को न्याय  देने में विलंब कर रहा हैं |

और  न्याय में देरी  अन्याय के समान है

 

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उच्च न्ययालयों और सर्वोच्च न्यायलय  के हाल के विरोधा भाषी फैसलो ने – आम लोगो में एक सवाल खड़ा कर दिया हैं ---- क्या  अदालते  नागरिकों  के अधिकारो की सुरक्षा के लिए हैं ,अथवा  सरकार के कानूनों और फैसलो को सही घोषित करने का काम कर रही हैं |  विगत में में सुप्रीम कोर्ट  ने जनता के मध्य उठ रहे मामलो और घटनाओ  पर “”खुद संगयान “” ले कर देश के नागरिकों में संविधान और विधि के शासन की अवधारणा  को मजबूत किया हैं | उदाहरण के लिए  जेसिका हत्यकाण्ड  मामले में काँग्रेस के एक बड़े नेता का बेटा आरोपी था | परंतु प्रारम्भिक अदालती कारवाई में गवाहो  और जांच करने वाले को आरोपी द्वरा प्रभावित किया गया | जिससे  पीड़िता बहन  न्याय पाने की उम्मीद ही खो बैठी थी |

 लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्टर  की कोशिस ने  अंततः  प्रधान न्यायाधीश भगवती को इस मामले को पुनः खोलने पर सहमत किया | परिणाम हुआ की हरियाणा के काँग्रेस नेता के चिरंजीवी  जेल में वक़्त काट रहे हैं |  भले ही उन्हे पैरोल मिलने में आसानी हो जाती हैं |

       आज  देश में अनेक स्थानो पर राज्यो की सरकारे  कानून के साथ मनमानी करती नज़र आते हैं | सरकरे अपने संवैधानिक जैसे  बुलडोजर संसक्राति  को लेकर  सुप्रीम कोर्ट तक ने  उसे “”अवैध “” नहीं बताया | उनका  कहना की स्थानीय  निकाय  को गैर मंजूरी के बिना निर्मित इमारत को ढाहाने  का अधिकार हैं |  यानहा एक सवाल हैं की  जिस प्रकार पुलिस  “”बेगुनाहों “ को  बंद कर देती हैं ,| बाद में अदालत से वे बेगुनाह साबित हो जाते हैं | क्या   पुलिस या अदालत  उस नागरिक को कोई राहत दे पाती हैं ?  

न्यायायिक  प्रक्रिया हैं की  व्यक्ति हो या संस्थाए अथवा सरकार का कोई विभाग  हो अगर वह किसी नागरिक के वीरुध कोई कारवाई करता हैं तो उसे  “”” लिखित में कारण  बताना होता हैं “”  यह शर्त आजकल बुलडोजर  चलाने  के समय  प्रभावित को नहीं दी जाती | बिना लिखित नोटिस के कारवाई  को सुप्रीम कोर्ट की सहमति ----नागरिक  के संवैधानिक अधिकारो पर हमला हैं |

 धरम विशेस  के लोगो को निशाना बना कर  सार्वजनिक रूप से बयान बाज़ी और प्रदर्शन को उच्च और सर्वोच्च  न्यायालय  द्वरा  नियंत्रित नहीं किया जाना , एक प्रकार से इन तत्वो को हिम्मत देती हैं | जो समाज के लिए घातक हैं |

 न्यायालय समदर्शी नहीं हैं :-  नूपुर शर्मा कांड में  अदालत  ने एक पुरानी फिल्म के शॉट को ट्वितीर  पर डालने  पर  ज़ुबैर  को तो 30 दिनो तक दिल्ली और उत्तर प्रदेश  की जेलो  और अदालतों की सैर करनी पड़ी | जबकि दूसरी अभ्युक्त नूपुर शर्मा को अभी तक ना गिरफ्तार किया गया और नाही  वे अदालत में पेश हुई हैं | जिस सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर की लानत -मलान्त की वह अब चुप है !!!!!!!