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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 27, 2023

 

अदालत—अस्पताल में होती “”अति”” –आज का सच !

 

     अदालत की अति का परिणाम  आज देश में राजनीतिक  हलचल का परिणाम है |  सत्ता दल इसे जिस प्रकार अपने विरोधी के राजनीतिक भविष्य का अंत ,देख रही है , वनही देश में विरोधी दलो का राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त किए जाने को , सत्ता का बुलडोजरी  कारनामा  बता रही है | सूरत के चीफ जुडीसियल मजिस्ट्रेट द्वरा  सुनाई गयी सज़ा भले ही न्यायिक कारवाई हो , परंतु जिस प्रकार याचिकाकारता ने पहले अपने प्रार्थना पत्र पर सुनवाई को स्थगित कराया , और साल भर बाद उसकी सुनवाई की अर्ज़ी दी , वह याचिका कर्ता की नियत पर संदेह व्यक्त करता है !

                      फिलहाल इस घटना ने जिस प्रकार राष्ट्रिय और छेतरीय दलो को मोदी सरकार के विरूध एक कर दिया हैं , वह अनेकों दलो के प्रयास से भी संभव नहीं हो रहा था | परंतु इस घटना ने सभी गैर बीजेपी  दलो के मन में यह आशंका  भर दी है की कोई भी मोदी सरकार के निशाने पर आ सकता हैं |  जो उनके राजनीतिक यात्रा को समाप्त करसकता हैं | ऐसा निर्णय पहले कभी भी नहीं देखा गया हैं |  आज आम भारतीय  इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा है { सिर्फ मोदी भक्तो को छोडकर } की इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की परंपरा का वंशज  देश द्रोही हो सकता है !  जिस परिवार ने पाकिस्तान को दो बार युद्ध में घुटने चटाये , जिसने बंगला देश का निर्माण कराया  उनका पोता देशद्रोही ! और राजीव गांधी  जिनहोने देश में वर्तमान कम्प्यूटर  क्रांति का जनक होने का सौभाग्य हैं उनका पुत्र  विदेश में जा कर देश के वीरुध बोलेगा ! जवाहरलाल नेहरू से लेकर इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी  तक ने विदेशो मे अनेक गणमान्य संस्थाओ में उद्बोधन किया है , उतना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नहीं किया हैं | उन्होने भर्ता की तर्ज़ पर अनिवाशी भारतीयो की भीड़ को ही संभोधित किया हैं | चाहे  ट्रम्प के समर्थन में रैली हो या ब्रिटेन में , मोदी जी “”टकसाली “” भासन हर जगह लगभग एक ही सुर मे होता था --- 2014 के बाद ही भारत में विकास हुआ हैं ! इसके पहले भ्र्स्तचर  ही हुआ करता था | वैसे  उनकी खूबी यह हैं की वे सिर्फ अपनी या अपने मन की बात ही करते हैं , दूसरों को “”सुन “” नहीं सकते ! यही कारण हैं की हिंदन्बेर्ग  रिपोर्ट

में देश की सत्ता की मशीनरी  के घालमेल का आरोप लगाने पर  ही राहुल गांधी की सदस्यता  समाप्त  की गयी |  इतना ही नहीं मोदी जी और  गौतम अदानी के संबंधो को लेकर उनके सवालिया  भासन को लोकसभा की कारवाई  से “” विलोपित “” कराया जाना भी इशारा करता हैं की ---कुछ तो है जिसको सरकार छुपना चाहती है |

     मोदी सरनेम  केवल पीएचडी जातियो का नहीं होता हैं | देश की आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश के पहले  राज्यपाल सर होमी मोदी , पारसी  थे | स्वतंत्र पार्टी के सांसद पिलु मोदी भी पिछड़ी  जाती के नहीं थे | मोदिनगर के  संस्थापक राय बहादुर गूजरमल मोदी भी वणिक थे |  अब नरेंद्र मोदी अगर  पिछड़ी जाती के है  तो यह कोई छेतरीय कारण होगा |  इसलिए यह कहना की सभी मोदी पिछड़ी जाती के होते हैं , सही नहीं है | उदाहरण  के लिए  शर्मा  सरनेम  ब्रांहनों  के लिए हैं |  पुजा के समय  सभी ब्रामहन  अपने गोत्र के साथ जब अपना नाम लेते हैं   तब उन्हे नाम के पश्चात शर्मा लगाना अनिवार्य है |   परंतु आज  पिछड़ी जातियो के बढई आदि भी शरमा उपाधि का प्रयोग करते हैं !  आजकल सूर्यवंशी  राम के वंसज नहीं है , नाही च्ंद्र्वन्शी  श्री क्रष्ण के | अभी तक ऐसा कोई विधान देश में नहीं हैं की कुछ खास “”सरनेम”” कुछ निश्चित जातियो के लोगो द्वरा ही लगाया जा सकेगा !

    अब उदाहरण के लिए महाभारत  के नायक भीष्म , जिनहे आदरपुर्वक  पितामह का संभोधन ही दिया जाता हैं | पितरो के तर्पण में अपने पूर्वजो के बाद , और सूर्य को अघर्य के पूर्व  “”शांतनु पुत्र  प्रिय व्रत “” को वर्मा सरनेम  से संभोधित किया जाता हैं | अब  छत्रियों  में यह सरनेम इस्तेमाल नहीं होता | केवल केरल के राजवंश  में वर्मा सरनेम का प्रयोग हुआ है | जिसका उदाहरण  एष के सर्वाधिक  प्रसिद्ध चित्रकार  राजा रवि वर्मा  हैं | आज देश में जीतने भी देवी – देवताओ  अवतारो  के रूप हैं वे सभी  उनही की तूलिका का चमत्कार हैं |

     अब वर्मा को कायस्थ भी प्रयोग करते है और  कलार या जाइसवाल भी नाम के साथ लगाते  हैं | अब क्या सरनेम से जाति का बोध कसौटी है ? शायद नहीं | क्यूंकी  किसी सरनेम  का इस्तेमाल करने पर कोई कानूनी  प्रतिबंध नहीं है |

 तब कोई कैसे कह सकता है की मोदी कहने से पिछड़ो

का अपमान हुआ हैं ?

अदालत और अस्पताल में होता कहर :-  मध्य प्रदेश की अदालतों में विगत पंद्रह दिनो से कोई काम काज नहीं हो रहा है ----वजह वकील साहबान ने हरताल कर रखी है !

कारण यह है की उच्च न्यायालया ने  अदालतों से कहा हैं की वे  25 मुश्किल मुकदमो को  तीन माह में  निर्णायक स्थिति में लाये | मतलब यह की मुकदमेन की सारी कारवाई  इस अवधि में पूरी कर के अदालत फैसला सुना दे | 

             अब वकील साहबों का कहना हैं की इतने कम दिनो में  मुकदमो का फैसला की स्थिति में पाहुचना “”संभव”” नहीं हैं |  बहुट से  कागज और दस्तावेज़  लगानी होते हैं | उसके लिए टाइम लगता हैं |   हक़ीक़त यह हैं की वकील साहब  अपने मुवक्किल से हर पेशी  के हिसाब से अपनी फीस लेते है | जितना लंबा मुकदमा चलेगा  उतनी ही उनको आम्दानी होगी !  अब तीन माह की अवधि से उनकी आम्दानी बहुत घाट जाएगी |

     हाइ कोर्ट ने बार असोशिएशन  की हड़ताल को अवैध करार दिया हैं | परंतु  वकीलो का संगठन  ज़िद्द पर अड़े है -----आखिर पापी पेट का सवाल है !

 

2- - राजस्थान  में गहलौट सरकार के  जनता को स्वास्थ्य सुविधा सुलभा कराणे के लिए  एक कानून लाये हैं | जिसमें निजी अस्पतालो को भी  क्रिटिकल मरीजो को चिकित्सीय सुविधा सुलभ कराना  “”अनिवार्य “” किया है | इस प्रावधान से निजी अस्पतालो द्वरा  दुर्घटना अथवा बीमारी की हालत में लाये जाने वाले  मरीजो की चिकित्सा  नहीं करने पर दंड का प्रविधान हैं | अब निजी अस्पताल तो “” नोट देख कर ही इलाज़ करते हैं “” ऐसे में  उनका गंभीर मरीजो से पैसा वसूलने का उद्देश्य तो सरकार के कानून के आगे धरा रह जाएगा |

 बस काले कोट और सफ़ेद कोट की हड्ताल  का कारण फीस भर है ----ना वादकारी को न्याय दिलाना और नाही मरीज को मर्ज से निजात दिलाना !!

 

 

Mar 5, 2023

 

धरम –जाति के बाद अब छेत्रीयवाद  का खतरा –संघ राष्ट्र को

       जाति के कारण कुछ समय पूर्व तामिलनाडु के एक मंदिर में अनुसूचित जाति के लोगो का प्रवेश वर्जित था , जब ज़िला प्रशासन ने वनहा दाखल देकर उनको मंदिर में प्रवेश दिलाया ,तब किसी शरारती ने वनहा की पानी की टंकी में  मानव मल मिला दिया | फलस्वरूप दर्जनो बच्चे उस पानी को पीकर अचानक बीमार हो गए |  फिर महिला कलेक्टर को स्वयं वनहा जाकर  लोगो को सम्झना पड़ा की कानून के अनुसार किसी भी हिन्दू को मंदिर में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता |

          इधर धरम को लेकर  उत्तर प्रदेश पुलिस मुस्लिम माफिया के घरो को प्रयाग उर्फ इल्लाहबाद में एक के बाद एक घरो पर बुलडोजर चलती जा रही हैं !  वैसे वनहा की पुलिस के पास 43 ऐसे लोग हैं जो माफिया के रूप में कुख्यात हैं | परंतु उन पर अभी तक कोई कारवाई नहीं हुई !

          जाति और धरम  के आधार पर सत्ता प्रतिस्थानों द्वरा  नफरत की जिस आग को आसरा या शहारा दिया जा रहा हैं  उसकी घटना  राजस्थान के दो मुस्लिमो की बालेरों गाड़ी में जला कर हत्या की घटना  हाल ही की हैं | अब चूंकि हत्या के दोषी हरियाणा के हैं , और उनमे तीन लोग हरियाणा पुलिस के मुखबिर हैं , तो उनकी गिरफ्तारी  तो हुई नहीं , हाँ एक सह अभियुक्त की गिरफ्तारी राजस्थान पुलिस ने की है | उसने 8 आठ लोगो के वारदात में शामिल होने की बात मंजूर की हैं | राजस्थान पुलिस के दबाव में हरियाना पुलिस ने उन लोगो के फोटो सार्वजनिक कर उनको फरार बताया हैं !  कहते हैं जुनैड और उसके साथियो को इन आठो  लोगो के गैंग ने  गाय की तस्करी के संदेह में पकड़ा था | हरियाणा पुलिस के श्रोतों ने स्वीकार किया इनमें तीन लोग उनको जानवरो की तस्करी की खबर देते थे |

                          खबर लिखे जाने तक  कोई और गिरफ्तारी नहीं हुई हैं | हाँ  राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलौट ने  म्र्त्को के परिवारों के नाम पाँच  लाख की मियादी जमा और 1 लाख नकद की सहता उनके गाव्न में जाकर की हैं | यानि अब गाय को लेकर जो राजनीति उत्तर प्रदेश  से शुरू हुई थी वह अब हरियाणा और राजस्थान तक पहुँच गयी हैं |  गाय को लेकर  जनहा उत्तर भारत में इतनी मारा मारी है , वनही  उत्तर पूर्व के राज्यो नागा लैंड , मेघालय और त्रिपुरा में  बीजेपी नेताओ की मौजूड़ी में नए सत्तारूद दल के नेताओ  ने खुले आम कहा हैं की सरकार में आने के बाद “”बीफ” यानि गौ मांस सस्ता मिलेगा !! अब यह विरोधाभास  भारत में ही हैं की उत्तर पूर्व और दक्षिण राज्यो में  बीफ खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं ! हाँ गौ की तस्करी के लिए मुस्लिमो की जान जरूर ली जा सकती हैं | क्यू ना इन बजरंग दल के उत्साही नेताओ को मेघालय या नागालैंड  भेज दे | वनहा उनकी बहादुरी  अपने आप टेस्ट हो जाएगी |

              छेत्रवाद का जहर एक बार फिर पंजाब की शांति – व्यव्स्था  को दहलाये हुए हैं | जिस प्रकार वारिस पंजाब दे के नेता  अमृतपाल सिंह ने अजनला में पुलिस ठाणे पर हमला कर के हथियारबंद लोगो को गुरु ग्रंथ साहब की पालकी के पीछे  रख कर पुलिस को बेबस कर दिया , उसकी अमृतसर के स्वरण मंदिर से आलोचना या भर्तसाना नहीं करना –एक बार फिर भिंडरनवाले के धार्मिक आतंक की याद दिला रहा हैं |  राज्य की पुलिस  इस अलगाववादी आंदोलन के आतंकी संगठन  को यदि नहीं रोका गया तब आपरेशन ब्लू  स्टार जैसी पुनरावरती हो सकती हैं | पंजाब के मुख्य मंत्री मान ने देश के गृह मंत्री अमित शाह से मिल कर  इस समस्या पर बात की हैं | यह वास्तविकता  हैं की इस समस्या का हल पंजाब सरकार अकेले नहीं निकाल सकती | क्यूंकी गोल्डेन टैम्पल   और गुरुद्वारा प्रबंध समिति में  अकाली दल  का वर्चस्व है ----जिनकी  विधान सभा चुनावो में बुरी तरह पराजय हुई हैं | अब हरमंदिर साहब से  कोई फरमान  इस बाबत नहीं निकालना की गुरु ग्रंथ साहब की पालकी को ढाल बनाकर ऐसी हरकत करना  गैर वाजिब है , अपने आप में शक पैदा करता हैं | इतना ही नहीं घटना के बाद वे सभी लोग राइफल बंदूकों फारसा आदि से लैस हरमंदिर साहब दर्शन करने गए | वनहा किसी भी प्र्करा की रोक –टॉक नहीं होना अचंभे की बात हैं |

 

         इधर यह हो रहा था उधर तमिलनाडु  में बिहारी और उत्तर भारतीय मजदूरो का तमिल गुंडो द्वरा उत्पीड़न किए जाने की घटना ने वनहा के सूती मिलो में भाय पैदा कर दिया हैं | कारण  तमिल मजदूर 8 घंटे से ज्यड़ा काम नहीं करना चाहते हैं | जबकि परवासी उत्तर भारतीय कमाई के लिए 12 से 14 घंटे तक काम करते हैं | साथ  ही वे अनुशासित रहते हैं , जबकि तमिल मजदूर शराब के नशे में वातावरण को गंदा करते हैं |  यह घटना अभी भले दो स्थानो की हो परंतु यह बाल ठाकरे के महाराष्ट्र सिर्फ मराठियो का –आंदोलन की याद ताज़ा कर देता हैं | जब दक्षिण भारतीयो के रेस्टुरेंट और होटलो को निशाना बनाया गया |  वैसा बुरा वक़्त  उद्योग और देश की एकता को खंडित करने वाला हैं | भले ही प्रांतवाद की अवधारणा  स्थानीय अस्मिता को उभरने में सहायक हो , जो स्थानीय राजनैतिक दलो के लिए भले ही सहायक हो परंतु छेत्र की अखंडता के लिए घटक होती हैं |

     कुछ दशक पूर्व आसाम में भी वनहा के छात्रों ने असम गण परिषद  के तले  गैर आसामिया लोगो को विशेस्कर बंगालियो के खिलाफ   आंदोलन चलाया बाद में वे  विधान सभा चुनाव जीत कर सरकार भी बनाई | परंतु आसाम के डांचे में आज भी कोई बहुत बदलाव नहीं आया | और वे  राजनीतिक अखाड़े से बिलकुल बाहर हो गए | अब वनहा बीजेपी है | यह सब लिखने का अर्थ सिर्फ इतना हैं की केंद्र सरकार को इन घटनाओ की खबर करनी कहिए , वरना बात के हाथ से निकाल जाने के बाद .................

Mar 3, 2023

 

 | सुप्रीम कोर्ट के फैसले

चुनाव आयोग को शेषन जैसा शेर मिलने की उम्मीद , अदानी के बहाने स्टाक मार्केट और सरकारी सौदो की जांच !

 

                संवैधानिक पीठ द्वरा चुनाव आयोग को सक्षम- तथा सरकार  से स्वतंत्र बनाने का प्रयास – निश्चय ही नरेंद्र मोदी और उनके साथियो को  बेहद नागवार  लगा होगा , खासकर  लोकसभा और नौ विधान सभा चुनावो  के ठीक पहले |

 

      परंतु अब उनकी भी हालत वैसी ही है , जैसी अडाणी मामले में  विपक्ष  की मांग को नामंज़ूर करके उनकी सरकार ने संसद में  खुशी और –संतोष जाहीर किया था , अबकी बार विपक्षी दलो को ताली बजाने का मौका आठ  साल बाद मिला हैं !  विभिन्न राज्यो में हुए चुनावो  में –आयोग की कारवाई और फैसलो को लेकर सभी विपक्षी दल  चुनाव आयुक्तों के फैसले से  असंतुष्ट  रहे थे | हाल का शिवसेना का मामला एक उदाहरण ही –जिसमें  मुख्य चुनाव आयुक्त ने ना केवल  नाम और चुनाव चिन्ह ही शिंदे गुट को आवंटित किया --- वरन उसकी संपाती और कोश को भी  शिंदे गुट को द्दिए जाने  का हुकुम दिया ! अब दल की समपट्टी और कोश  का मामला दीवानी की अदालत का छेत्रधिकर है –चुनाव आयोग का नहीं ! परंतु वो कहते हैं ना की मोदी है तो सब मुमकिन  हैं ,  परंतु साधारण जागरूक  नागरिक जो कानून की सीमाओ को जानते हिन ,उन्हे यह फैसला , ऐसा लगा की चुनाव आयोग ने किसी संतुष्ट  करने के लिए अपने अधिकारो से बाहर जाकर फैसला किया | दलो में दो फाड़ , कोई पहली बार नहीं हुआ है ---काँग्रेस का दो फाड़ इन्दिरा गांधी के जमाने में हुआ था | उन्हे मूल पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह तथा कोश सभी कुछ नहीं मिला था | वे तब प्रधान मंत्री थी ! तब शिव सेना के शिंदे जी तो सिर्फ मुख्य मंत्री है और वह भी बीजेपी की मदद  से ! तब तो इन्दिरा गांधी को काँग्रेस के विद्रोही सांसदो ने बहुमत दिया था !  तब भी उनको  कांग्रेस {आई } की पहचान  ही मिली थी | यानहा तो  बहुमत ही बाहरी पार्टी के एमएलए लोगो से बना |

          एक  टीवी चैनल  की बहस में  पूर्व अट्टार्नी जनरल  मुकुल रोहतगी ने संविधान पीठ  के फैसले को  सरकार के अहीकर छेत्र में दखलंदाज़ी बताया | उन्होने कहा की जब पिछले 70 सालो से  आयोग को संवैधानिक स्थिति , नहीं मिली , क्यूंकी कानून नहीं बनाया गया | जबकि संविधान स्वतंत्र न्यायपालिका के साथ मजबूत  लोकतन्त्र केय लिए  - निसपक्ष चुनाव आयोग की अवधारणा  की थी |  समिधान पीठ के मुखिया जुस्टिस जोसेफ  ने कहा की सत्ता को निरंतर अपने हाथो मे रखने की धारणा लोकतन्त्र के लिए खतरा हैं |  काँग्रेस नेता राहुल गांधी हो या ममता बैनर्जी  हो  या तेलंगाना के चंरशेखर हो सभी चुनावों के दरम्यान बीजेपी को  प्रचार में “” विशिस्ट सुविधा दिये जाने की शिकायत करते थे ---या केन्द्रीय सुरक्षा बालो द्वारा  बीजेपी के लोगो की गाड़ियो की जांच नहीं करते थे –वनही  अन्य दलो को गाड़ियो को जांच के नाम पर घंटो रोके रखते थे |

       अभी हाल का मामला है हिमञ्चल के विधन सभा के चुनवो की घोसना  तब तक रोके रखी गयाई –जब तक मोदी जी की जन सभाए और राइल्ली  सम्पन्न नहीं हो गयी |  इसी प्रकार का मामला है  चुनाव आयुक्त लवाशा का , जिनहोने नरेंद्र मोई और अमित शाह –के वीरुध आयोग में की गयी शिकायत  पर तथ्यो के आधार पर  दोनों नेताओ को “क्लीन चिट” देनी से इंकार कर दिया | जब उन्होने आयोग के फैसले को सार्वजनिक करने की मांग की तब  मुख्य चुनाव आयुक्त ने ऐसा करने से इंकार कर दिया ! इतना ही नहीं जब लवाशा ने आशंतुष्ट होकर आयोग से इस्तीफा दे दिया , तब उनके ऊपर ईडी द्वरा दबिश दी गयी –उनकी पत्नी के एन जी ओ  को लेकर ! यह थी सच बोलने की कीमत |

               पूर्व अट्टार्नी  जनरल रोहतगी जी ने कहा की  चुनाव आयोग की नियुक्तियों के लिए कालेजियम  का प्रावधान  , कार्यपालिका के छेत्र में दखलंदाज़ी है ---जो संविधान की तीनों निकायो {विधायिका –कार्यपालिका और न्यायपालिका }  के कार्य का विभजन करता हैं | मेरी जानकारी के अनुसार मोदी सरकार के पहले पाँच सालो में सीबीआई  के राजनेताओ पर छापे को लेकर तत्कालीन प्रधान न्यायधीश ने इसके निर्देशक पद की नियुक्ति के लिए  कालेजियम बनाया था --- मध्य प्रदेश के डीजी  शुक्ल जी , इसी कालेजियम की सहमति से सीबीआई डाइरेक्टर बने थे |

        एक घटना याद आती है पिछले लोकसभा चुनावो की थी शायद  कर्नाटक  में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  के दौरे के समय  एक चुनाव पर्यवेक्षक  ,जो  की आईएएस  थे और  मुस्लिम थे !  उन्होने उनके विमान की तलाशी  लेने की कोशिस की ---जो उनका अधिकार था | परंतु प्रधान मंत्री के लोगो ने प्रधान चुनाव आयुक्त को  खबर भेजी ---- परिणाम स्वरूप  प्रधान चुनाव आयुक्त का संदेश  उस अफसर  के पास आया की वे  तलाशी लेने की कोशिस ना करे  और उन्हे तुरंत उनके  दावीत्वों से मुक्त कर दिया  |

 

  चुनाव के दौरान  गैर बीजेपी दलो  के वाहनो और घरो पर छापा मारना  और  परेशान करऐसी बरमदगी नहीं हुई !ना  , कई बार कर्नाटक हो या बंगाल आंध्र या तेलंगाना  में गैर बीजेपी दलो के वाहनो से  लाखो रुपये की बरमदगी  की खबरे आती रही -----पर कभी भी बीजेपी के वाहनो से  ऐसी बरमदगी नहीं हुई | जबकि बीजेपी द्वरा  मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को या  महाराष्ट्र की ठाकरे  की सरकार को गिराने में  कितना पैसा खर्च हुआ होगा ,यह किसी का भी कोई अनुमान हो सकता हैं |  फिर चुनावो में इस पैसे का इस्तेमाल नहीं हुआ हो –ऐसा संभव नहीं !

Mar 1, 2023

 न्याय की देवी या देवता – उसको क्यू नहीं दिखता अन्याय ?

         

    आजकल अनेक ऐसे मामले सामने आ रहे हैं की  न्याय की देवी या देवता के ऊपर से जनता के मन में  अविश्वास होने लगा है ! लोगो को लगता हैं की पुलिस  या अन्य जांच एजेंसिया   गरीबो और  सत्ता के आलोचको के मुंह बंद कराने का ही काम कर रही है | परंतु वनही  अदालतों द्वरा इन जांच एजेंसियो  के काम की कानूनी परख नहीं किए जाने से इस अन्याय  में अडालाते भी अन्याय की भागीदार  बनती जा रही हैं | इसके लिए क्या कानून की देवी के आंखो की पट्टी जिम्मेदार  है ? कहते है की सनातन धरम में न्याया  के देवता  शनि {एक ग्रह} हैं , अगर ऐसा हैं तब  अधिकान्स सनातनी समुदाय इस देवता के प्रकोप से भयभीत रहता हैं | इसीलिए सड़क और चौराहो तथा बाजारो में शनिवार के दिन  एक बाल्टी में एक काला पत्थर जो की सरसो के तेल में डूबा रहता है –उसे लेकर एक लड़का या आदमी  “”शनिदेव शनिदेव  की गुहार लगाता हुआ  सभी स्त्री –पुरुषो के आगे पैसे के लिए तेल भरी बाल्टी आगे कर देता है ----फिर वे धरम भीरु लोग कुछ सिक्के निकाल कर उसमें दाल देते हैं ! बिना यह जाने समझे की वह याचक क्या शनि के शमन का मंत्र को जनता भी है अथवा नहीं !  बस यह एक अंधश्रद्धा  की परंपरा  चलती जाती हैं | कनही शाम को तेल और बाल्टी  का ठेकेदार   उस तेल और  पैसे की वसूली करता हैं | 

                 अब अगर हमारे न्याया के देवता का यही हल हैं ----तब तो मौजूदा न्याया व्ययस्था  का भी यही हाल है | अदालतों में  पैसे का प्रयोग कुछ  कानूनी और कुछ गैर कानूनी रूप से होता दिखाई पड़ता हैं | हमारे संविधान की उद्घोषणा में भारत के संघ की सीमा में रहने वाले सभी नागरिकों को धरम –जाती या वर्ग के भेदभाव के बिना न्याय देने की प्रतिज्ञा  लिखी हुई हैं , परंतु ऐसा कभी होता नहीं दिखाई देता ! क्यू ऐसा होता है या ऐसा क्यू हो रहा हैं  यह सवाल कोचता रहता हैं |

     वैसे तो अदालत या न्याय के मंदिर  - बहुत ख़र्चीले और  समय खाते हैं , वादी या याची  के हिस्से में आती है ,बस तारीख और वकील की फीस और अदालत के पेशकार को और पुलिस के सिपाही को रिश्वत !  शायद यही कारण हैं की आजकल  सनातनी समुदाय  भी अपने आरध्य के दर्शन के लिए  भी  “”टिकट” लेने पर बाध्य हैं |  चाहे वह    चार धाम की यात्रा हो अथवा  त्रिवेन्द्रम का पद्मनाभ मंदिर हो –तिरुपति हो अथवा सुबरमानियम मंदिर हो आजकल सभी बड़े मंदिरो में  टिकट से दर्शन होते हैं | अब यह उन लोगो के लिए  सबक हैं जो मुगलो द्वरा सनातनी लोगो की धरम यात्रा पर जज़िया कर लगता था ----बस फर्क इतना हैं की  तब कर का पैसा राज्य को जाता था –अब टिकट का पैसा  मंदिर की प्रबांध करिणी को मिलता हैं ! सवाल यह हैं की हमारे धरम शास्त्रो  में जब सभी जातियो के श्राद्धलुओ  को “”निर्बाध “” दर्शन के अधिकार भावना हैं , तब टिकट क्यू ? आज़ादी के पहले काफी मंदिरो में  अनुसूचित जाती के लोगो को  मंदिर प्रवेश और दर्शन की अनुमति नहीं थी | तब संसद ने एक कानून पास करके मंदिर में प्रवेश को वर्जित करने को “”अपराध””  घोषित किया | परंतु अभी हाल में ही तमिलनाडू के एक इलाके में अनुसूचित जाती के के मंदिर प्रवेश को लेकर  किसी “” कट्टर पंथी “” ने पानी की टंकी मानव मल घोल दिया , जिसे की दर्जनो बच्चो की तबीयत खराब हो गयी | जब जिला अधिकारियों ने जांच की पानी की तब  यह राज़ खुला | परिणाम स्वरूप महिला कलेक्टर  ने सब को समझ्या  तब अनुसूचित जाती को उनका न्याय  पूर्ण अधिकार मिला |

यह घटना लिखने का तात्पर्य यह हैं की संवैधानिक अधिकार को प्रपात करना  भारत में कितना मुश्किल हैं | तब न्याय के देवता  आम जनता को किस प्रकार न्याय दिला पाएंगे ? यह सवाल इसलिए भी जरूरी हैं की – जो तथ्य या तर्क  निचली अदालत में सज़ा का आधार होते हैं ----उनकी उच्च या उच्चतम न्यायालय  “” गलत  बता देता हैं ! तब  क्या  उस न्यायाधीश को कोई सज़ा मिलनी चाहिए ? अथवा उसके फैसले को  “”  बिना विद्वेष के किया गया सहज कार्य “” मानकर छोड़ देना चाहिए ?

 

1—कुछ उदाहरण हैं  जिनमे बड़ी अदालतों ने निचले  अधिकारियों /या जजो के  अवधारणाओ को  कानून सम्मत नहीं होने पर गलत सीध किया |  इस संदर्भ में  अभिनेता शाहरुख़ खान के बेटे की नारकोटिक ब्यूरो  द्वरा गिरफ्तारी   और मजिस्ट्रेट द्वरा उसको पुलिस रिमांड पर दिये जाने का आदेश था | सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में पाया की नरकोटिक ब्यूरो  ने मैजिस्ट्रेट  के सामने  “”ड्रग बरामदगी में साफ –साफ लिखा हुआ था की आर्यन  के पास से कोई भी ड्रग नहीं बरामद हुई | फिर भी  मजिस्ट्रेट  ने उसे रेमंड पर भेज दिया ---क्यूंकी ब्यूएरो को शक था की आर्यन को मालूम था की किसके पास ड्रग थी !! अब यह तो ब्यूरो  के वकील की बुद्धि थी और मजिस्ट्रेट  की समझ की एक “”बेगुनाह”” को दो माह जेल में रहना पड़ा !!  इस पर ना तो बंबई हाइ कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट ने उस मजिस्ट्रेट  के विरूह कोई कानूनी कारवाई नहीं की ? आखिर क्यू ?

 संविधान के अनुछेद 32 में सुप्रीम कोर्ट और 226 में हाइ कोर्ट को “” निचली अदालतों के देखरेख {superntendens right } का हक़ हैं | अब लाखो बेगुनाहों को  जेल के अंदर “”हवालाती “” यानि बिना सज़ा के  लोगो की संख्या  वनहा सज़ा काट रहे क़ैदियो  से ज्यादा हैं !

2-   कभी कभी बड़े  हैसियतों अथवा रसूखो वाले  अभियुक्तों की सुनवाई के लिए काफी बड़े  सुरक्षा इंटेजम किए जाते रहे हैं |  साथ के दशक में डाकू मानसिंह के बेटे तहसीलदार सिंह का मुकदमा जेल में सुना गया | हरियाणा के बाबा राम रहीम का मुकदमा भी  जेल में सुना गया और जज जगदीप सिंह ने बाबा को 20 साल की सज़ा सुनाई |

परंतु जज लोया की संदिग्ध परिस्थितियो में हुई मौत को  सत्ता ने “”महज एक दुर्घटना करार दिया “! जबकि पूरा देश जानता हैं की वे गुजरात  से ट्रान्सफर किए गए बहुत ही समवेयनशील मामले की सुनवाई कर रहे थे | परंतु ना तो उन्हे सुरक्षा दी गयी और नाही उनकी मौत की जांच के लिए तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के जज साहबान राज़ी हुए |  इतना ही नहीं सालो पुरानी ट्वीट के लिए सीबीआई  न्यूज़ लांड्री  के जुनैद्द को उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस ने दर्जनो एफ आई आर  दर्ज़ कर गिरफ्तार करके जगह जगह पुलिस उन्हे घूमती रही | बाद में सुप्रीम कोर्ट को भी कहना पड़ा की पुलिस ने  जानबूझ कर उन्हे परेशान किया | आखिर में  सारे एफआईआर  को क्लब किया गया और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे रिहा कर दिया | पर सुप्रीम कोर्ट ने उन अफसरो के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की जिनहोने इस कारवाई को अंजाम दिया !  बात साफ है की सत्तामें  ही बैठे लोगो ने  अपने खिलाफ बोलने वालो को  “” सबक सिखाने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया “”  अब  जनह एजेंसिया और अदालते  इस बात की अनदेखी करती हैं ------तब न्याय के मंदिर  शोषण का तीर्थ बने रहेंगे ----जनहा कानून भीरु लोग पिस्ते रहेंगे