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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 29, 2013

क्यो नहीं चाहते औद्योगिक घराने काँग्रेस की वापसी दिल्ली मे ?

क्यो नहीं चाहते औद्योगिक घराने  काँग्रेस की वापसी दिल्ली मे ?

                          भूतपूर्व  मुख्य मंत्री खंडुरी और रतन टाटा तथा जनता दल के दो -एक सांसदो मे क्या कॉमन हैं ? कोई बहुत ज्यादा कठिन सवाल नहीं है | इन सब की एक शिकायत हैं -- दिल्ली मे मनमोहन सिंह की सरकार | ऐसा क्यों हैं इसका कारण समझने के लिए हुमे कुछ घटनाओ को परखना होगा |  इन सभी की मांग हैं की देश की दुर्व्यसथा  के लिए मनमोहन सरकार और सोनिया गांधी का नेत्रत्व | शिकायत भी हैं की देश की अर्थव्यसथा को ''ठीक'''करने के लिए एक सख़त और प्रभावशाली  नेता की ज़रूरत हैं , जो मनमोहन सिंह नहीं हैं |

                                          इनकी नजरों मे नरेंद्र मोदी ही ऐसे नेता हैं जिनमे दोनों ही गुण हैं |  नेत्रत्व के कठोर होने का क्या टेस्ट है ? आखिर इस कठोरता का क्या मतलब हैं ?  इसका मतलब हैं की नेता ऐसा हो ""जिसका हुकुम"" कोई अनदेखा न कर सके | अर्थ यह हुआ की नेता का फरमान ही कानून बन जाये | क्योंकि अभी तक  2जी या 3जी की जांच कानून के सहारे चल रहा हैं | और उन मामलो मे  देश के बड़े - बड़े औद्योगिक  घरानो के मालिको के नाम जांच मे सामने आए हैं | जो इन बड़े नामची  हस्तियो को काफी नागवार गुजरा है | अभी तक  आर्थिक घोटालो मे इन लोगो को ''भगवान की गाय '' मान कर अलग रखा जाता था | पहली बार  जब सीबीआई  और अदालत के सामने आना पड़ा | तब काफी तकलीफ हुई |

                      क्योंकि अभी   तक  देश के बड़े - बड़े नेताओ से मेलजोल रखने वालों इन ''बड़े लोगो'' को सत्ता के गलियारो मे और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगो द्वारा दी जाने वाली तरजीह  प्रशासन  और कानून का पालन करने वालों को सहमा देती थी | पर इस बार सत्तारूद दल के नेताओ और मंत्रियो तथा ''इन सेठो'' पर पुलिसिया कारवाई हुई तो तिलमिला उठे | क्योंकि इन औद्योगिक  घरानो के मुखिया लोगो को आदत थी सीधे बात करने और अपना काम करवाने की | कोई भी अफसर अगर उनके रास्ते मे आता तो ये उसका तबादला करा देते अगर कोई नियम -कडा आड़े आता तो उसे भी बदलवा देने की ताकत इनके पास थी |

                         इन्हे तो ऐसा नेता मंजूर हैं जो जनता को प्रशासन दे या न दे इनके प्रोजेक्ट पास करवा दे और इनके माल को खरीदे भले ही वह घटिया स्तर का हो , बैंको  से कर्ज़  मिलता रहे  ,फिर भले ही उसे वापस करने की छमता हो या न हो | इनकी सनक ही इमकी  महत्वा कांछा  होती हैं , उसके पूरा करने मे कोई भी रोड़ा बर्दाश्त नहीं कर पाते |  रत्न टाटा  जब कहते हैं की निवेशको का  विश्वास भारत से उठ गया हैं , तब वे खुद अपनी देसी कंपनियो की हालत की ओर गौर नहीं करते | भरोषा नहीं होता की टाटा मोटर्स ऐसी कंपनी के जमशेदपुर प्लांट मे मजदूर से लेकर गेनरल मानेगेरो को भी ''ले ऑफ '''किया जा रहा हैं | पर यह हक़ीक़त हैं | अपने उत्पाद की गुणवत्ता  के बजाय जब औद्यगिक घराने विज्ञापनो के सहारे अपनी गिरती साख को ''टेका'' लगते हैं तब इनके   शेयर एक सौ दस से गिर कर पाँच और दस रुपये पर बाज़ार मे बिकते हैं | आज देश मे उत्पादन करने वाली इकाइयो की हालत ठीक क्या बहुत बुरी हैं , परंतु क्या कभी इनहोने ''ईमानदारी''से धंधा किया हैं?


                   इन घरानो को ''फरमान'' से सरकार चलाने वाला नेता मंजूर हैं क्योंकि ये उसकी ''कीमत '' चुका देंगे और अपना काम निकाल लेंगे | क्या रत्न टाटा ने कभी अपने   शेयर  धारको को सिंगूर से प्लांट हटाने की ''कीमत'' के बारे मे बताया ? शांति व्यसथा ये सभी चाहते हैं पर इनके कारण बेघर होते किसान जिनकी रोज़ी - रोटी का साधन ''ज़मीन'' चीनी जा रही हो उसका ध्यान नहीं हैं |  नॉर्थ  ईस्ट के चाय बागानो द्वारा टाटा के अधिकारियों द्वारा लाखो रुपये ''उग्रवादी संगठनो ''' द्वारा दिये जाना मंजूर हैं , पर किसान का मुआवजा की दर  बड़ाये  जाने पर इन्हे '  मे तकलीफ हैं , क्योंकि वह ''मांग'' करता हैं और उग्रवादी  रकम मांगते हैं , वह भी धमका कर | यह साबित करता हैं की ये सिर्फ ''डर'' की भाषा ही समझते हैं | इसीलिए ऐसा नेता चाहते हैं जो लोगो को इनके कहने पर डरा सके  बस इतनी सी बात हैं ....................................................

                    

जीवेम शरद: शतम एवं पाये दो गुनी पेंशन -भत्ते , बीबी -बच्चे भी निहाल आई ए एस का कमाल

जीवेम  शरद: शतम  एवं पाये  दो गुनी पेंशन -भत्ते , बीबी -बच्चे भी                      निहाल  आई ए एस का कमाल

                 बड़ी - बड़ी खबरों के बीच मे एक छोटी सी खबर थी ,पर जिसका असर बहुत बड़ा होगा | क्योंकि  नौकरशाही  के ब्रम्हा  यानि ''अखिल भारतीय सेवाए "" अर्थात आइ ए येस और पुलिस - विदेश - वन तथा सहयोगी  सेवा के लोगो के अवकाश प्राप्त लोगो की ""पेंशन और भत्ते मे अब क्रमिक रूप  से वढोतरी  भी होगी | और इतना ही नहीं साठ साल तक की नौकरी मे तो ""निश्चित प्रोन्नति   और  विभिन्न वेतनमान  तो लिए ही पर अब वे  पेंशन  मे भी  यही सुविधा  प्राप्त  करेंगे | हैं  न मज़े की बात !

                       इस सुविधा का लाभ अब ""साहब " के  ज़िंदा रहने  या न रहने का मोहताज नहीं हैं ,  नए नियमो के अंतर्गत ''मेम  साहब को यह सुविधा  साहब के परलोक सिधार जाने के बाद भी मिलेगी | हैं न मज़े की बात की एक ओर सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र '''तदर्थवाद '''पर चल रहा है  अस्पतालो मे डाक्टरों को भी ''वेतनमान '' नहीं वरन 'फिक्स' पे पर नियुक्त किया जा रहा हैं , ''वही ''ब्रम्हा जी अपने लिए सुविधा - लाभ - भत्ते जुटाने मे लगे हैं | जो सुविधा उन्होने अपने लिए ली हैं क्या वही सुविधा वे देश की रक्षा करने वालों अर्थात सशस्त्र  सेनाओ को भी देंगे ?  क़तई नहीं | 

                              फिर क्या आधार हैं इस नए पेंशन कानून का ? शायद पर्सनल  विभाग अर्थात  डी ओ पी टी -- इस बात की ज़हमत न उठाए क्योंकि केंद्र का यह कदम  प्रादेशिक सेवाओ के लिए नज़ीर  यानि की उदाहरण बनेगी | मनमोहन सरकार की मजबूरी इस फैसले मे साफ दिखती हैं , अन्यथा लोकसभा चुनाव की संध्या पर ''इतना गैर बराबरी '' को जन्म देने वाले कदम का कोई औचित्य नहीं सीध किया जा सकता |सनातन धर्म को --   जातियो मे विभाजित करने और उनमे  छुआ -छूत जैसी अमानवीय प्रथा के लिए  दोषी  बताया जाता है  , यह कदम भी  कुछ - कुछ वैसा ही है | वैसे सनातन धर्म मे  कर्म के आधार पर ही वर्ण का  वुभाजन किया गया था , परंतु वर्गो मे छुआ छूत की कुप्रथा  कालांतर मे ''धर्म''के ठेकेदारो ने  मै  सर्व  श्रेष्ठ की घोसणा''' करके समाज मे भेद और विद्वेष का बीज बो दिया | वैसा ही यह [ नेहरू के शब्दो ]   लौह कवच केवल अपनी रक्षा के लिए  प्रयासरत है , देश अथवा नागरिकों के लिए नहीं
                              
               प्रशासन  के इन नियंताओ  मे कही  भय तो नहीं समा गया की , उनके फैसलो से ''आने वाले  समय ''मे  उनकी पेन्सन रुपये के गिरते भाव के कारण '''बेदम'' न हो जाये ? वैसे देश के आर्थिक फैसले इसी नौकरशाही  के भाई - बिरादर द्वारा लिया गया है | अब पूरे देश को आर्थिक भँवर मे डाल कर खुद  का बुढापा  सूरक्षित करने की तो जुगत नहीं हैं ? सवाल तो उठेंगे ही ---अब जवाब के ''रूप''मे सामने क्या आता हैं यह समय अर्थात काल ही बताएगा .........................
                         

Aug 28, 2013

तथ्यो को नकारते तर्क और आरोप

तथ्यो को नकारते तर्क और आरोप 
                                                         खाद्य  सुरक्षा कानून पर आलोचना के दो तीन मुख्य  बिन्दु हैं , जिनके बारे मे या तो जन प्रतिनिधियों को कुछ गलत फहमी हैं अथवा वे जानबुझ कर इन तथ्यो की अनदेखी कर रहे हैः | फिलहाल जो भी हो , | सार्वजनिक वितरण प्रणाली को केंद्र सरकार द्वारा ""बर्बाद "" करने का आरोप लगाया गया | हक़ीक़त यह हैं की प्रदेश सरकारे ही इस व्यसथा को न केवल चलती हैं वरन यह उनका संवैधानिक दायित्व भी हैं | अब प्याज के दाम आसमान छूने लगे तो भी दिल्ली सरकार की कमजोरी | हर राज्य मे आवश्यक  वस्तु अधिनियम  लागू हैं | जिसके अधीन प्रदेश का खाद्य एवं आपूर्ति विभाग राज्य मे जींसों की उपलब्धता निश्चित करता हैं | जब कभी जमाखोरी अथवा कालाबाजारी की कोशिस होती हैं तब इस मोहकमे की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती हैं | प्याज़ के आसमानी  दामो के समय ही यह खबरे भी आई की आढतियो ने और कुछ कोल्ड स्टोरेज वालों ने प्याज का स्टॉक कर लिया हैं ,और वे दामो को जबर्दस्ती बदने दे रहे हैं | सभी खाद्यनों और वस्तुओ के लिए सरकार एक ''सीम्स'' निर्धारित करती हैं | अगर व्यापारी आम जनता का शोषण करने और मुनाफा कमाने के लिए जमाखोरी कर रहे हैं , तब शासन '''भंडारण''' की सीमा को ""घटा "" देता हैं , फलस्वरूप बाज़ार मे उस वस्तु की आवक बड़ जाने से दाम नियंत्रित रहते हैं | अब यह कारवाई राज्य सरकारो द्वारा नहीं की जाये और दोष केंद्र सरकार के माथे मढ दिया जाये तो यह बात हजम नहीं होती | क्योकि आरोप  तथ्यो पर आधारित नहीं हैं | 
                          राजनीतिक दलो द्वारा  चुनाव के समय की जाने वाली घोसणाओ मे मुफ्त बांटी जानी वाली वस्तुओ का वादा आखिर क्या हैं ? क्या ? खाद्य सुरक्षा कानून को वोट कैचिग कानून कहने से क्या इस प्रयास की सार्थकता  समाप्त हो जाती हैं ? आखिर पिछले बीस वर्षो से तमिलनाडु और आंध्र मे मुफ्त चावल और मंगल सूत्र वितरित करने वाली सरकारो को तो वोट के लिए '''दोष'''नहीं दिया गया ,वरन इन योजनाओ को जन - कल्याङ्कारी बताया गया |तब फिर अब इस भूख समाप्त करने वाले प्रयास को राजनीतिक बता कर विरोध का ढोंग करना कितना अर्थपूर्ण  है ? लोकसभा मे विधेयक के प्रस्तुत करते समय संशोधनों की बा ढ आ गयी थी , परंतु काँग्रेस अदयक्ष सोनिया गांधी के  भाषण के बाद जब यह स्पष्ट हो गया की सरकार का इरादा पक्का हैं , तब सौ से अधिक संशोधनों का परिणाम स्पष्ट हो गया था | आखिर मे वामपंथी दलो के अलावा सभी ने विधेयक पर मतदान करने की भी हिम्मत नहीं दिखाई | ऐसा क्यो ? क्या विरोध सिर्फ मीडिया मे भाषण देने के लिए ही था ?

                              एमजीआर  ने तमिलनाडू मे मुफ्त चावल देने की शुरुआत की थी , फिर एनटीआर ने आंध्र मे भी गरीबो को राशन देने की शुरुआत की थी | इसके बाद मुंबई नगरनिगम  पर काबिज होने के बाद झुमका -भख़र की दूकाने मुंबई के सार्वजनिक स्थलो पर खोली थी |  जंहा पाँच रुपये मे एक रोटी बाजरे की और चटनी | इन सब तथ्यो को रखने का तात्पर्य यह हैं की सरकार  के जिस प्रयास को ''साधनो पर गैर ज़रूरी ''' दबाव बता रहे थे उन सभी ने किसी न किसी वक़्त मे खुद ऐसी ही योजनाओ को शुरू किया था | भा जा पा के दोनों प्रदेशो की सरकारे यानि छतीसगढ और मध्य प्रदेश सरकरे भी गरीबो को सस्ता अनाज वितरित कर रही है | केंद्र की ''अंतयोदय'' योजना मे प्राप्त धनराशि को ''मुकया मंत्री खदायन्न योजना ''' के नाम से चलाया जा रहा है | हाँ  इस ''जन कल्याण कारी योजनो मे  बीजेपी का विकास मोडेल गुजरात शामिल नहीं है | फिर देश मे बेकार का इस योजना के ''दुष्प्रचार'' का अर्थ क्या है ?
                        

Aug 25, 2013

राजनैतिक झगडे में धार्मिक असलहे का इस्तेमाल

राजनैतिक झगडे में धार्मिक असलहे का इस्तेमाल 

   अयोध्या  में  ८४ कोशी परिक्रमा को ले कर विश्व  हिन्दू परिषद् और  उत्तर प्रदेश की समाजवादी  सरकार के बीच चल; रही रस्सकाशी  का परिणाम वैसा ही हुआ जैसा की अप्पेक्षित था । उन्होंने  मुट्ठी  भर लोगो और थोड़े से भगवाधारी   साधुओ के साथ सरयू नदी से जल लेकर ""सांकेतिक"" यात्रा की शुरुआत की और तोगड़िया समेत दो -तीन सौ लोग गिरफ्तार हो गए ।  इस प्रकार दोनों ही पक्षों की ""जिद्द"" पूरी हो गयी । एक कहानी हैं की मारवाड़ के एक राजा ने बूंदी  का किला  फतह करने के बाद ही पानी पिने की क़सम खायी थी । परन्तु यह काम आसन क्या बहुत ही कठिन था । अब दरबारियों ने रजा के प्राण बचाने के लिए उनसे अपनी प्रतिज्ञा छोड़ने का आग्रह किया , परन्तु राजा  तो फिर राजा  थे ,अड़े रहे , आखिर राजपूती शान जो ठहरी । आखिरकार मंत्री ने एक """विक़ल्प """ सुझाया , जिस से  प्रतिज्ञा भी पूरी हो जाए और प्राण भी सुरक्षित रहे । 

                        वह उपाय था की मिटटी का एक किला जो बूंदी के किले की  प्रतिकृति था । उसे फ़तेह कर के राजा  जल ग्रहण कर सकते थे । ऐसा ही किया गया । परन्तु बूंदी के कुछ हाडा राजपूत जो राजा  की सेना में थे  , उन्हें यह मात्रभूमि का अपमान लगा । एवं वे इस """सांकेतिक "" युद्ध में भी झूठे किले की रक्षा करते हुए मारे गए ।  सवाल यह उठता हैं की क्या इस पूजा को को संकेत माना जाए  ? तब यह भी मंज़ूर करना होगा की कुछ लोग  तो इसमें भी मारे जायेंगे । तब इस संकेत का दोषी औं ? राजनीती अथवा धर्म ? अब यह तो अपने - अपने विस्वास की बात हैं की कौन किस तरफ हैं । परन्तु जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ , हालाँकि यह साफ़ हो गया की  धर्म  का उन्माद बिना राजसत्ता की हामी के नहीं भड़कता हैं । 

Aug 20, 2013

लड़ाई सत्ता की और शिकार होते लोग तथा उपासना स्थ

लड़ाई सत्ता की और शिकार होते लोग तथा उपासना स्थल  
                                                                                   मिस्र  मे मुरसी समर्थको तथा  वंहा की सेना के बीच चल रहे  संघर्ष  मे चर्च पर  हो रहे हमले  का कारण वंहा के कोपटिक ईसाइयो के उपासना स्थलो को बर्बाद करना ही हैं | आखिर मुरसी समर्थको का गुस्सा इन धरम स्थलो पर क्यो ? यह प्रश्न अब मीडिया की खबरों मे उभर कर आ रहा हैं | अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार अभी तक 36 चर्च पर हमले हो चुके हैं |  आखिर ऐसा क्यो? हक़ीक़त मे  मुस्लिम ब्रदर हूड़ का पूरा गुस्सा   इन कोपटिक ईसाइयो को लेकर ही हैं | वास्तव मे मुरसी ने सत्ता मे आने के बाद संविधान मे परिवर्तन कर के इन  वर्गो को निर्वाचन  से बरतरफ  करने की कोशिश की |, थी जिसका विरोध ''तहरीर चौक '''मे  प्रदर्शन  के रूप मे  आया | परंतु  वह खिलाफत  मुरसी के इस कदम के विरुद्ध थी | लेकिन यह नियति ही हैं की जो आंदोलन सत्ता के अन्याय के विरुद्ध शुरू हुआ वही अब मुस्लिम ब्रदर हूड़ द्वारा  कब्जे मे ले लिया गया | 

                                         मुस्लिम ब्रदर हूड़ का एक मात्र उद्देस्य मुरसी को सत्तासीन कराना ही हैं | जिस से की मिस्र  को इस्लामिक राज्य बनाने का सपना पूरा हो सके | वैसे इस संगठन ने  अल्जीरिया  मे इस प्रकार की कोशिस कर चुका हैं परंतु वंहा के सैनिक शासको ने उनके मंसूबे को ध्वस्त कर दिया हैं | उसके बाद ''मध्य - पूर्व '' के अनेक देशो मे इस संगठन  ने चुनाव के जरिये सत्ता पर क़ाबिज़ होने का पर्यटन किया , परंतु वे अपने '''अतिवादी''' नज़रिये के कारण उन देशो की मुख्य धारा मे समाहित नहीं हो पाये | धर्म के नाम पर वे आम लोगो को अपने साथ तो कर लेते थे परंतु अपनी ''विचार धारा ''' मे उन्हे रंग नहीं पाते थे |यही कारण था की चुनाव मे सफलता पाने के बाद भी वे राजनीति की राह पर उन्हे  अपने साथ ""ले जाने मे असफल"" रहते थे |

                                    वर्तमान राजनीतिक हालत हुमे  वापस उसी युग की याद दिलाते हैं , जब इस्लाम और ईसाइयो मे धर्म युद्ध हुआ था | क्योंकि आज कल कुछ लोग फिर यह मांग करने लगे हैं की फिर कोई '''सलादीन'''आएगा क्या ? आखिर क्यों  ऐसी धारणा पनप रही हैं ? क्या इशारा करता हैं यह रुझान ? क्योंकि सलादीन ने जेरूशलम के लिए हुए दूसरे युद्ध मे इस्लामी राज्यो की सेनाओ का सेनापति था ,जिसने ईसाइयो की सेनाओ को पराजित किया था | कुछ ऐसी ही भावना इस्लाम के मानने वालों के मन तब पनपी थी जब इराक  के सद्दाम  हुसैन को ''मेंहदी'' के रूप मे देखा जा रहा था | घोड़े पर सवार उसकी  मूरत को बताया गया | परंतु युद्ध मे  अमेरिका के हाथो  पराजित होने के बाद  यह भरम  टूट गया | 

                    इस अतिवादी सोच ने साइप्रस  का  विभाजन  कराया  फिर लेबनान मे गृहयुध को जनम दिया जो आज तक जारी हैं | बम के धमाके और कार बम से मरने वालों की संख्या सैकड़ो तक मे पहुँच जाती हैं | इन बेगुनाहों की मौत का कारण  बस इतना ही हैं की वे किसी ऐसे धर्म को मानते हैं जिसके दुश्मन सिर्फ  मौत का नंगा नाच करना जानते हैं |शिया  - सुन्नी अथवा कुर्द और तुर्क , अरबी और यमनी इन  सम्प्रदायो  अथवा  इलाकाई  कारणो से  पनप रही  दुश्मनी  सिर्फ  इस्लाम के बंदो मे क्यों हैं ? अन्य धर्मो के लोग जैसे ईसाई किसी भी संप्रदाय के हो आपस मे सहज हो कर ज़िंदगी बिताते हैं | परंतु इस्लाम के मानने वाले ही क्यो लड़ते रहते हैं ?यह सवाल जवाब चाहता हैं | 

Aug 18, 2013

इस्लामिक कट्टर वादियो का कहर अब मिश्र पर

 इस्लामिक  कट्टर वादियो का कहर  अब मिश्र पर 
                                                                       अल्जीरिया  से शुरू हुए मुस्लिम ब्रदरहूड़  के राजनीतिक मुहिम के कारण उनके द्वारा  चुनाव जीतने के बाद  देश को इस्लामिक राज्य बनाने की उनकी कोशिसों को  वंहा की सेना और बुद्धिजीवियों  ने उनका तख़्ता पलट दिया और और एक गैर इस्लामी राज्य तंत्र की स्थापना की | इसी कट्टरवाद का नतीजा पहले साइप्रस  मे परणाम दिखा चुका था , इनहि तत्वो के कारण उस देश का विभाजन हो गया और वंहा की अर्थ व्यसथा  चौपट हो गयी | क्रिश्चियन  और मुस्लिमो मे यह पहली मुठभेड़ थी | कुछ यही कारण थे जिनके वजह से पूरब का  लॉस वेगास कहे जाने वाले बेरूत  को बम धमाको ने हिला कर रख दिया | आज लगभग पचास साल बाद भी लेबनान  गृहयुध  मे झुलस रहा हैं | फिर आय सुडान जंहा दो मुस्लिम जातियो मे ही इस्लाम की परिभाषा पर हुए विवाद ने कट्टर पंथियो को  संघर्ष  की ओर धकेल दिया | अल्पमत  मे होने के बावजूद  वे एक जाती का पल्ला पकड़ने मे सफल हुए | परंतु इस हथियारो की लड़ाई का फल सुडान के विभाजन के रूप मे सामने आया |
                                                                                        युगोस्लाविया  के मुस्लिम बहुल और ईसाई  बहुल छेत्रों मे   विकास मे उनदेखी और भेदभाव  की शिकायत को लेकर जो संघर्ष  शुरू हुआ वह  दुनिया के अनेक देशो के लिए चिंता का विषय बन गया | देश के इस आंतरिक संघर्ष  को ईसाई  बनाम इस्लाम का रूप दे दिया गया | एक ओर अमेरिका जैसे राष्ट्रओ ने वंहा शांति की अपील की वंही लड़ाको  को हथियार की सप्लाइ को लेकर अरब मुल्को पर शक की उंगलिया  उठने लगी | बीच - बचाव से युद्ध तो शांत हुआ परंतु देश के तीन टुकड़े हो गए युगोस्लाविया  का नामो -निशान मिट गया , मार्शल  टीटो की विरासत समाप्त हो गयी | इस लड़ाई को लेकर अनेक इस्लामिक  आतंक वादियो ने ईसाई  मुल्को खासकर अमेरिका  को  निशाना  बनाया और वंहा  ""धमाके "" भी किए | उनकी शिकायत थी  की मुसलमानो का कत्ले -आम के जिम्मेदार यही ईसाई मुल्क हैं |

             ईसाई और इस्लाम के झगड़े के बाद इराक मे  शिया - सुन्नी मे हिंसक झड़पे शुरू हो गयी जो आज तक़ भी जारी हैं ,  रमज़ान के माह मे मस्जिद मे नमाज़ अदा कर रहे लोगो को  गोलियो का निशाना बनाया गया | इन हमलो मे सैकड़ो जाने गयी | शिया बहुल ईरान मे सुन्नियों को यह शिकायत हैं की उनके साथ भेदभाव किया जाता हैं | गाहे - बगाहे  वंहा भी बमो के धमाको की आवाज सुनाई  पड जाती हैं |

                                         सबसे ज्यादा खराब हालात  तो पाकिस्तान मे हैं , जंहा  न केवल शिया  वरन अहमदिया और खोजा मुस्लिम भी  सुन्नी  दहशत गर्दो के निशाने पर रहते हैं |  अमूमन  हर हफ्ते पख्तूनिस्तान - बलूचिस्तान मे शिया या अहमदिया  लोगो पर गोलाबारी  अथवा बम के धमाके होते रहते हैं | इतना ही नहीं चूंकि यह इलाका इस्लामिक  आतंकवादियो का ठिकाना बना हुआ हैं , और वे अक्सर पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान मे घुसपैठ कर के वंहा भी अफरा -तफरी मचा देते हैं | लाशकरे -तोईबा का सरगना  ओसामा बिन लादेन भी यानही रहता था | जिसे अमेरिका के फौजी जवानो ने मार डाला था | जिसके बाद से उसके संगठन ने अमेरिका को धम्की दी हैः की वे उसके ''नागरिकों और  सैन्य  ठिकानो पर हमला कर के नेस्तनाबूद कर देंगे | इन इस्लामिक कट्टर वादियो पर न तो पाकिस्तान की हुकूमत का कोई कंट्रोल हैं नहीं उन्हे किसी का खौफ |

                           अधिकतर कट्टर वादियो का मानना हैं की प्रत्येक देश मे इस्लाम की हुकूमत हो और '''शरीयत'' कानून का पालन हो | मज़े की बात यह हैं की दुनिया लगभग साथ ऐसे देश हैं जंहा इस्लाम मानने वालों का बहुमत हैं , परंतु शरीयत का कानून सिर्फ विवाह और तलाक तथा विरासत -मेहर के मामलो मे ही लागू हैं | आपराधिक और अन्य मामलो वंहा भी अलग कानून हैं | केवल एक र्श्त्र सऊदी  अरेबिया ही हैं जंहा  शरीयत का ही कानून हैं | उसके पड़ोसी जॉर्डन या यमन मे भी सऊदी अरेबिया जैसी हालत नहीं हैं |

            मिश्र मे भी यही हुआ तख़्ता पलट के बाद हुए चुनावो मे मुस्लिम  ब्रदर हूड़ का बहुमत बना | राष्ट्रपति मुरशी  ने सत्ता समहलने के बाद ''डिक्री ''' के सहारे शासन करना शुरू कर दिया , जबकि आम जनता की मांग थी की संविधान के अनीसर काम - काज हो | उन्होने संविधान मे संशोधन कर के देश के दस प्रतिशत  कोप्टिक ईसाइयो और गैर मुसलमानो को अनेक नागरिक अधिकारो से वंचित कर दिया | जिसका विरोध हुआ | तहरीक चौक मे प्रदर्शन के कारण जब हालत बिगड़ने लगे और राष्ट्रपति मुरशी ने किसी भी रद्दो - बादल करने से इंकार कर दिया | तब उन्होने सेना को ''इस आशंतोष'' को दबाने का हुकुम दिया | परंतु सेना पहले तो ऐसा करने से इंकार करती रही ,तब उन्होने सेना मे भी दखलंदाज़ी करना शुरू किया | जिसका विरोध हुआ | फिर सेना ने उनको वार्ता से मामले को सुलझाने को कहा | परंतु मुस्लिम ब्रदर हूड़ की ताकत पर वे इंकार करते रहे , और हालत बिगड़ते रहे | फलस्वरूप  मुरसी को नज़रबंद करके अन्तरिम सरकार बनाई गयी जिसके मुखिया सूप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस  बने | अब आबादी मे एक ओर सेना के समर्थक थे दूसरी ओर उसके विरोधी | यह सिलसिला आज ताक़ जारी हैं |
                                             

                                            अब हालत इतने बिगड़ गए हैं की विदेशी दूतावास के लोगो को उनकी सरकार ने वापस बुलाना शुरू कर दिया हैं | अमेरिका  ने शांति की अपील करते हुए संयुक्त  सेना के अभ्याश को मुल्तवी कर दिया हैं | लगता हैं सीरिया जैसे हालत यानहा भी पैदा न हो जाये | इस सब को लिखने का मतलब यही हैं की इस्लाम के कट्टर पंथियो ने ना केवल अपने मजहब को बदनाम कर दिया वरन उनके कारण करोड़ो लोग हिंसा  के शिकार हो रहे हैं | उनके सगे - संबंधी गोलियो का शिकार हो रहे हैं फिर चाहे वह ब्रदर हूड़ की हो या सेना की | इतना तो साफ हैं की कुछ थोड़े से लोग धरम के नाम पर हिसा फैला रहे हैं | भारत वर्ष मे भी कुछ तंज़िमे हैं जो ऐसी हरकतों को जायज मानती हैं | परंतु क्या किसी प्रकार का कट्टर वाद किसी भी समस्या का समाधान हैं | अफगानिस्तान  मे तालिबानों ने राज किया परंतु जब चुनाव हुए तो वे बाहर कर दिये गए | परंतु कुछ थोड़े से लोग हर मुल्क मे अशांति फैलते ही हैं | जैसे बंगला देश मे हो  रहा हैं |
                                           

Aug 10, 2013

हिन्दू - मुस्लिम सद भाव क्यों टूटता हैं ? और कैसे बरकरार हैं कम ही हैं

 हिन्दू - मुस्लिम   सद भाव  क्यों टूटता हैं ? और कैसे बरकरार हैं 
                                                               देश मे  दोनों धर्म के समुदायो मे  कट्टरता  अक्सर दो अवसरो पर दिखाई पड़ती हैं --- जब हिदुस्तान और पाकिस्तान का खेल का मैच हो चाहे वह क्रिकेट  हो अथवा  हॉकी | जब आबादी का काफी हिस्सा ''अपनी - अपनी''' पसंद के साथ खुशी  और गुस्से का इजहार करता हैं | पटाखे छूटते हैं मिठाइया  खिलाई जाती हैं |लेकिन दूसरे अवसर पर देश का बहुसंख्यक  जंहा  रोष - गुस्सा व्यक्त करता हैं वंही अल्पसंख्यक समुदाय की ""चुप्पी"" अखरने का एक कारण बन जाता हैं | इसी प्रकार जब सीमा पर देश के सैनिक  शहीद  होते हैं तब भी इस वर्ग का  ''मौन ''' दिलो मे हलचल मचा देता हैं |  किश्तवार  मे पाकिस्तानी झण्डा फहराना और फिर दंगा होना -- कर्फुए लगना देश मे गलत सिग्नल भेजता हैं | जिससे  सर्व धर्म सदभाव  का बने रहना मुश्किल  हो जाता हैं |

                       अगर इन मौको से उपजी प्रतिकृया  समाज मे दरार  सी लगती हैं वंही रायसेन ज़िले के  वेदिक धर्म के व्यक्ति द्वारा पूरे रमज़ान मे रोज़े रखना और इस दौरान नमाज़ अदा करने के लिए  चार किलोमीटर दूर मस्जिद मे जाना एक सुकून भर देता हैं | वंही एक गैर मुस्लिम का पेश  इमाम बन कर ईद की नमाज़ अदा  कराना साबित करता हैं की समाज मे ''कट्टरता ''' की बीमारी के किटाणु कम ही हैं |इसीलिए  हमारे देश की ''अखंडता '''' बनी रहेगी यह विश्वास मजबूत होता हैं |

                  लेकिन अगर कोई अलपसंखयकों की ''कतिपय'' मौको पर चुप्पी  अथवा अनदेखी  के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं तब कुछ घटनाए ऐसी भी हैं जो इस तबके के प्रभावी और समझदार लोगो की विचारधारा को व्यक्त करते हैं | इस संदर्भ मे  अजमेर शरीफ  के दीवान के दो फैसले गिनाए जा सकते हैं | पहला  जब उन्होने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री को  """इज्ज़तदार """ शख्सियत का दर्जा देने से इंकार कर दिया था | दूसरा फैसला उनका कबीले तारीफ हैं --- पाकिस्तान द्वारा पाँच सैनिको की सीमा पर   घात  लगा कर  हत्या किए जाने की घटना से जब लोगो का गुस्सा उफान पर था , तब फिर अजमेर शरीफ के दीवान  जैनुल आबदीन ने  शहीद हुए जवानो के परिवारों को  एक - एक लाख रुपये  दिये जाने का ऐलान किया | गौर तलब हैं की  ख़्वाजा  की मज़ार पर न केवल मुस्लिम वरन हिन्दू भी ज़ियारत करने जाते हैं | भारत के अलावा पाकिस्तान - बंगला देश और इंडोनेशिया मलेसिया  से लोग आते हैं | इस्लाम मे सूफिवाद  का जन्म  ख्वाजा के समय मे काफी विस्तारित हुआ था |
        लेकिन आज ज़रूरत हैं की किश्तवार की घटना को देश का मुसलमान  निंदा करे , नहीं तो उसकी ही नीयत पर शक किया जाएगा | 

Aug 9, 2013

क्या आइ ए एस अफसरो को प्रदेश मे नियुक्ति संवैधानिक रूप से ज़रूरी हैं ?

 क्या आइ ए एस  अफसरो को प्रदेश मे नियुक्ति संवैधानिक रूप से ज़रूरी हैं 
                   दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को लेकर इस फैसले के उचित अथवा  न्यायसंगत  होने की  बहस के दौरान समाजवादी पार्टी के सांसद राम गोपाल यादव के बयान ने इस विवाद की धारा ही बदल दी हैं | देश के मीडिया मे निलंबन के सरकार के फैसले की हो रही आलोचना  के मद्दे नज़र उन्होने केंद्र सरकार के मंत्री नारायनसामी  द्वारा प्रदेश शासन से इस मामले की रिपोर्ट मांगे पर नाराजगी ज़हीर करते हुए  केंद्र सरकार को चुनौती दे दी की की अगर दिल्ली चाहे  तो राज्य से सभी आइ ए एस अफसरो को बुला ले , राज्य प्रशासनिक सेवाओ के अधिकारियों से शासन चला लेंगे |

                 इस बयान से दो ध्वनिया उठती हैं -- क्या राज्य सरकारे इस भांति अखिल भारतीय सेवाओ के अधिकारियों को वापस लेने की मांग कर सकती हैं ? दूसरा  यह की क्या केंद्र अधिकारियों के अलॉट्मेंट का कोटा  अपनी सुविधा से करती हैं अथवा  इसका कोई  आधार और संवैधानिक कर्तव्य हैं ? 
                  आज़ादी के बाद हमने ब्रिटिश स्टाइल  की सरकार और प्रशासन तंत्र को अंगीकार किया था | सिविल सर्वेण्ट की अवधारणा  उसी विरासत का परिणाम हैं | राष्ट्रपति  प्रणाली मे भी  संघीय और राज्य के अधिकारियों की जरूरत होती हैं | ब्रिटेन मे  प्रशासन दो इकाइयो से चलता हैं -- बरो और काउंटी  | बरो के समान हमारे  यंहा नगर परिषद - नगर पालिका - नगर निगम ,यद्यपि अनेक नगर निगम इतने विशाल हैं की वनहा से प्रदेश विधान सभा के लिए अनेक और लोकसभा के लिए भी कम से कम एक और अधिक से अधिक चार सांसद चुने जाते हैं | मुंबई नगरनिगम से तीन सांसद चुने जाते हैं |  खैर स्थानीय शासन की इन संस्थाओ के बाद राज्य विधान सभा के लिए विधायक चुने जाते हैं जो प्रदेश मे सरकार बनाते हैं | लोकसभा के निर्वाचन छेत्र से चुने सांसद  केंद्र की सरकार बनाते हैं | ब्रिटेन मे राज्य सरकारो का वजूद नहीं हैं ,  कम से कम  जैसे हमारे यंहा ''प्रदेश''' सरकारे काम करती हैं | उनको संविधान से निश्चित  शक्तिया  और दायित्व  प्राप्त हैं |  ब्रिटेन  के प्रदेश स्कॉटलैंड - आयरलैंड - वेल्स  का शासन परंपरों  के आधार पर चल रहा हैं | 

              फिर भी ब्रिटेन मे परमानेंट  नौकरशाही का वजूद हैं , उन्होने ही राष्ट्रमंडल  देशो के शासन के लिए  इंपेरियल  सर्विसेस  का गठन किया  जिसके सहारे गौरांग प्रभुओ ने  हम पर शासन किया |  सिविल सेवाओ के लिए और पुलिस सेवाओ के लिए अलग - अलग संगठन बनाए | जिनके आधार पर आज के आइ एएस और आइ पी एस  और विदेश सेवा का गठन हुआ | जिनके बाद  प्रदेशों मे भी सेवाओ का गठन हुआ |आज़ादी के बाद  इसी तरीके से नीचे से लेकर  दिल्ली  तक का प्रशासन  चल रहा हैं | इस व्यवस्था  को संवैधानिक  सुरक्षा भी हैं |  

                                      आज़ादी के बाद इन सेवाओ को खतम करने की मांग पर जवाहर लाल नेहरू ने कहा था की यह '''लौह  कवच  ही देश को बांध के रखेगा "" यह बात आज भी लागू हैं | संघ  का दांचा  होने बावजूद भी केंद्र  की शक्ति सर्वोपरि हैं | एवं केंद्र अपनी सेवाओ को जमीनी हक़ीक़त से रूबरू रखने के लिए इन सेवाओ को राज्यो मे नियुक्त करता हैं | इस के नियम हैं |
                इसलिए  राम गोपाल यादव  की चुनौती न केवल बेमानी हैं वरन संविधान की आत्मा के विपरीत हैं | उन्हे  यह भूल जाना होगा की वे एक स्वतंत्र रियासत के नहीं वरन संघ की एक इकाई के प्रशासन  चलाने की ज़िम्मेदारी भर ही निभा रहे हैं | जितनी जल्दी यह सच जान ले इनके लिए  अच्छा  हैं ..............................
                 

Aug 8, 2013

हवाई ईधन पर वैट टैक्स घटाया -- जमीनी सफर नहीं हुआ सस्ता घाटा

हवाई ईधन  पर वैट  टैक्स घटाया -- जमीनी सफर नहीं हुआ सस्ता 
                                                    प्रदेश   सरकार ने विगत दिवस  प्लेन  फ्युल पर लगनेवाले   वैट टैक्स को घटा  दिया हैं , परिणाम स्वरूप राज्य के भीतर की सीमा मे व्हाइट पेट्रोल जिसका इस्तेमाल हवाई जहाज मे किया जाता हैं | इस से सबसे ज्यादा   फ़ायदा राज्य सरकार को होगा | क्योंकि हवाई  कंपनी  के जहाज  भोपाल - इंदौर  मे कम ही ईधन भरवाते है | अधिकतर   सरकारी जहाज और हेलीकाप्टर  तथा कुछ निजी  कपनियों  इस छूट का भरपूर उठायाएंगे | लेकिन ''आम आदमी''' निजी  कंपनी  की  खटारा बसो  पर हिचकोले खाता  सड्को के गड्डे के ऊपर - नीचे हो कर अपनी यात्रा के लिए मालिको के मनमाना किराया  का भुगतान  करता रहेगा | 



Aug 7, 2013

उत्तम खेती माध्यम बान निषिद्ध चाकरी भीख निदान --कितना सही ?

उत्तम खेती माध्यम बान निषिद्ध  चाकरी  भीख निदान --कितना सही ? 
                                                            सौ साल पहले यह कहावत कितनी सही लगती थी , परंतु आज  दो हज़ार तेरह  साल मे यह कहावत बिलकुल गलत सिद्ध हो चुकी हैं | यद्यपि आज भी देश और प्रदेश  का शासन चलाने  वालो  मे आधे से अधिक  नेताओ का   पेशा  कृषि ही हैं | परंतु  फिर भी उनकी आय का मुख्य श्रोत्र  किसानी नहीं हैं | 

                                          हालांकि देश के किसानो की भलाई  के  लिए विगत समय मे  सरकारो द्वारा अनेक कदम उठाए गए , परंतु  औद्योगिक  राष्ट्र  बनने की दौड़ मे किसानी  का काम ''''हेय''' हो गया | कहने को सहकारी आंदोलन - उर्वर्को  पर अनुदान आदि के कदम उठाए गए | सभी कृषि उत्पादो के न्यूनतम  मूल्य निर्धारित किए गए | परंतु बात बनी नहीं | 

                      कृषि की दुर्दशा का उदाहरण पंजाब के  किसानो का आंदोलन हैं जिसमे उन्होने अपने क़र्ज़ चुकाने के लिए  अपने ''अंग''' बेचने की अनुमति प्रधान मंत्री से मांगी हैं |  पंजाब और हरियाणा  गेंहू और तिलहन तथा कपास  के उत्पादन के लिए देश मे सबसे आगे हैं | दोनों ही परदेशो मे केमिकल खाद का उपयोग इतना ज्यादा किया गया की , ना केवल खेतो की उर्वरता  बहुत कम हो गयी वरन उत्पादन  बड़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओ के दामो के कारण किसान कर्ज़ दर हो गया | उम्मीद के सहारे अगली फसल के ठीक होने पर ''क़र्ज़ '' चुकाने की उम्मीद भी झूठी  पड़ती  गयी | और   बैंको का कर्जा चक्रवृद्धि  ब्याज की दर के कारण तीन सालो मे मूल का दोगुना होता गया | पहले तो ज़मीन बेच कर  बैंको  की उधारी चुकाने की कोशिस  की परंतु वह भी व्यर्थ सिद्ध हुई | 

                  जब कर्जा साल दर साल बदता ही गया तब इन लोगो ने अपने ''अंग'' बेच कर उधर पटाने का प्रयास किया | परंतु कानून की उलझन के कारण वे सफल नहीं हुए | 
                                 परंतु पंजाब के किसानो के इस आंदोलन ने एक सवाल खड़ा कर दिया हैं की  कृषि छेत्र मे दिये जाने वाले कर्ज़  से पचासों गुना अधिक धनराशि उद्योग के छेत्र मे दी जाती हैं |  उद्योग के छेत्र मे बड़े - बड़े बक़ायादारों  के खिलाफ बंकों द्वारा कोई कारवाई नहीं की जाती | क्योंकि इन  बैंको पर इनहि उद्योगपतियों का नियंत्रण होता हैं |  उदाहरण के तौर पर सूती मिलो - शक्कर  कारखानो - शराब उत्पादको -- हवाई जहाज कोंपनियों पर अरबों -अरब रुपये का बकाया हैं , परंतु नहीं सत्यम के मालिको ने न किंग फिशर  हवाई कंपनी के मालिको  की संपातीय कुर्क की गयी |  कृषि और उद्योग छेत्र के बीच इस  दो तरह के पैमानो से यह साफ हो गया की सरकार को भी कृषि और कीससनों की परवाह नहीं हैं | 

सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा कदिलपुर गाँव मे मस्जिद की दीवार ढहने के मामले मे दुर्गा शक्ति को क्लीन चिट

सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा  कदिलपुर गाँव मे मस्जिद की दीवार ढहने के मामले मे दुर्गा शक्ति को क्लीन चिट 
                                                      नोएडा के कदिल पुर ग्राम मे मस्जिद की दीवाल के गिराए जाने को लेकर  निलंबित की गयी आइ एएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल  को समाजवादी पार्टी के नेताओ द्वारा अशांति  फैलाने का प्रयास करने के आरोप को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने करारा झटका दिया हैं | वक्फ बोर्ड ने अपनी विज्ञप्ति मे साफ कहा की दुर्गा वंहा       पर दीवाल गिरने नहीं गयी थी , वरन उन्होने लोगो को समझाया की उनका निर्माण ''गैर कानूनी''' हैं | 

                                            दुर्गा नागपाल के समझने पर  ग्राम  वालों ने खुद ही  उस विवादास्पद दीवाल को गिरा दिया , जिस समय दीवाल गिराई गयी थी उस वक़्त मौके पर दुर्गा मौजूद ही नहीं थी | दीवाल  गिराने की घटना की रिपोर्ट  तहसीलदार ने बनाई थी | उसकी रिपोर्ट मे भी साफ लिखा हैं की दुर्गा के समझने पर गाव वालों ने खुद ही आगे आकार गिराया , इस करवाइमे कोई सरकारी  आमला नहीं था | 

                                                  लखनऊ मे बैठे सीनियर अफसर और सरकार को चला रहे मंत्री और मुख्य मंत्री अखिलेश यादव  को अब कुछ नए कारण ''केंद्र'' को बताने होंगे दुर्गा शक्ति नागपाल के ........ 

मनचाहा हो तो अच्छा ना हो तो और भी अच्छा, बालू खनन पर पर्यावरण ट्राईबुनल द्वारा प्रतिबंध

मनचाहा  हो तो अच्छा  ना हो  तो और भी अच्छा  
                                                                    उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव  का  दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित करने का फैसला बरकरार रख कर अपने  ही पैरो पर कुल्हाड़ी मार लिया है | नरेंद्र भाटी की ज़िद पूरा करके वास्तव मे भाटी की  आमदनी को ज़ीरो  कर दिया हैं |  इतना ही नहीं  प्रदेशो  मे सत्तारूद  दल के  नेताओ  की आमदनी  का जरिया भी खतम कर दिया हैं | 

                                         यमुना अथवा गंगा के  कछार  से बालू की खुदाई का मामला हो अथवा बेल्लारी मे आइरन ओर  अथवा  छतीसगढ मे स्टोन या मगनीज की खुदाई हो सभी मे सत्तारूद दल के लोग ''सहयोगी''' रहते ही हैं | जो सहयोग की कीमत भरपूर वसूलते ही हैं |, अब इसे सेवा का प्रतिदान कहे या साझेदारी , कुछ भी नाम आप दे सकते हैं | परंतु तथ्य यही हैं , अब इसमे पार्टी कौन हैं ? यह महत्वपूर्ण नहीं हैं | 

                                       वैसे खनन   के मुखिया लोगो  को तो मेजर मिनेरल्स  का ठेके से नवाजा जाता हैं , ज़िला और नगर स्तर के ''पार्टी''' के स्थानीय नेताओ को  पत्थर  और बालू  ही मिलती हैं | जिस का एक  पट्टा बना दिया जाता हैं , फिर उसकी आड़ मे साल दर साल  हजारो ट्रक  ''माल''' बाज़ार मे भेज दिया जाता हैं | इन  जमीनी  """फलो"" से  लाखो  पॉलिटिकल  व्यक्तित्व  और परिवारों का ''भला''' हुआ हैं | इसी कारण  बालू - मुरम - पत्धर  से संपन्नता का रहस्य अब तिलस्मी राज़ नहीं रहा |  
                                        परंतु समाजवादी पार्टी की सरकार ने दुर्गा शक्ति का निलंबन करके  ''राजनेताओ''' के चमचो का घर भरने के रास्ते को ''मूँद दिया हैं |  राष्ट्रिय पर्यावरण ट्रिबूनल ने '''तत्काल प्रभाव '''से  देश की नदियो से बालू - मुरम  की खुदाई पर रोक लगा दी हैं | इस कदम से देश के सभी राज्यो मे सत्तारूद दल के समर्थको पर ''गाज़'''' गिरि हैं | अब देखना यह हैं की क्या पर्यावरण प्राधिकरण  अब अपने हुकुम को लागू करवा पाएगा ?  अगली कारवाई तक  इंतज़ार ............

Aug 6, 2013

मंदिर को बचाने वाली शिला को ''देवत्व ''' का परिणाम घोसित करने का आग्रह

 मंदिर को बचाने वाली शिला को ''देवत्व ''' का परिणाम  घोसित करने का आग्रह       
          केदारनाथ समेत पूरे उत्तराखंड मे हुई तबाही को एक ओर धर्म भीरु  ''दैवी प्रकोप'' बता रहे हैं , वही  ''धर्माचार्यो '''ने केदारनाथ मंदिर के  पीछे के भाग मे दीवार से  सटे हुए बोल्डर को   दैवी कृपा निरूपित किया हैं | भू - स्खलन  के परिणाम स्वरूप केदारनाथ मंदिर के पीछे के भाग से जो मलवा आया था  उसमे  जल के साथ पत्थरो की बहुत बड़ी  राशि थी | पानी और पत्थरो  को महती धारा को इस चट्टान ने एक ओर मंदिर की दीवार को बचाया , वही दूसरी ओर पहाड़ से आते उस मलवे  को दो भागो मे बाँट दिया था | परिणाम स्वरूप  होने वाले नुकसान मे काफी कमी आई |
                                  
                                                        अभियंताओ और भू गर्भ शास्त्रियों  का कहना हैं की यदि यह  चट्टान मंदिर से नहीं लगती तब संभवतः  मंदिर छतिग्रष्त  हो जाता और करोड़ो वेदिक धर्म मानने वाले लोगो की सनातन श्रद्धा   नेचर की भेंट  चढ    जाती || परंतु ऐसा हुआ नहीं और मंदिर ज्यो का त्यों  बना रहा | हाँ मंदिर के अंदर पहाड़ से बह कर आई मिट्टी और पत्थर  जरूर भर गए थे |  यद्यपि  वह भी एक प्रकार से  बचाव का कारण हो गया, और बाहर के दबाव के बावजूद इमारत को  यथा  स्थित बनाए रखा | 

                           अब स्थानीय लोगो ने इस  शिला को देव स्थान  घोसीत किए जाने की मांग मंदिर के धार्मिक और प्रशासनिक अधिकारियों से की हैं | अब सनातन धर्म मे ''देवत्व''' किसी के द्वारा दिया जाये ऐसा नहीं होता | या तो यह जन्मना होता हैं अथवा यह ऋषियों -मुनियो के  आशिर्वाद से फलित होता हैं | वैदिक धर्म मे  भक्त  ही भगवान को बनाते हैं | कहने का आशय यह हैं की व्यक्ति अथवा स्थान की  कीर्ति ही  , उसके दैवी  होने का प्रमाण होता हैं , | कोई धर्माचार्य अथवा उनका समूह ऐसा नहीं कर सकता | अब देखना होगा की  धार्मिक --और प्र्शसनिक व्यसथा इस बारे मे क्या निरण्य लेती हैं |

धर्म की आड़ मे दुर्गा नागपाल के निलंबन की राजनीति मे सूराख

 धर्म की आड़ मे  दुर्गा नागपाल के निलंबन की राजनीति मे सूराख 
                                                                देश की राजधानी से सटे छेत्र नोएडा  की आई ए एस  अफसर  दुर्गा नागपाल के निलंबन के लिए उत्तर प्रदेश शासन कह रहा हैं की रमजान के माह मे मस्जिद की चहारदीवारी  को गिरने से सांप्रदायिक तनाव हो जाता | अधिकारी की जरा सी चूक  प्रदेश मे शांति -व्यसथा को चुनौती देने वाली  घटना बन जाती | सरकार  के इस ''झूठ '' को सबसे पहले  टीवी चैनल  द्वारा  दिखया गया , जिसमे साफ पता चल रहा था की  दीवाल  को धक्का मार कर गिराया गया हैं | क्योंकि नीव खुदी दिखाई ही नहीं दे रही थी |एवं दीवाल जैसे एलईटी गयी हो ऐसा प्रतीत हो रहा था |

                                             निलंबन पर सभी समाजवादी नेताओ  के बयान आए  इन बयानो से दो बाते साफ थी एक तो ''फैसला सही है '' क्योंकि यह नेता जी या अखिलेश ने लिया हैं , दूसरा यह की रमज़ान के माह मे मस्जिद की दीवाल को गिरवा देना  मतलब अल्पसंख्यको  के हितो पर चोट करना | समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान जो की मंत्री भी हैं और ''' पार्टी के मुस्लिम  समर्थन के ठेकेदार भी हैं {{ ऐसा उनके पीछे चलने वाले कहते हैं }}} उन्होने ने भी सांप्रदायिक तनाव हो जाने की आशंका व्यक्त की | इतना ही नहीं उन्होने कहा अभी '''इंसाफ कान्हा हुआ डीएम को तो सस्पैंड नहीं किया '''' | मतलब अखिलेश जी आपने तो हुकूमत का जलवा ही नहीं दिखाया \ 

                                       परंतु उनके बयान की प्रतिकृया मे '' इतेहदुल - मुस्ल्मिन ''' ने कहा की कदलीपुर  गाँव मे मस्जिद को बनवाने वाले  भाति ही , जिनके कहने पर  ग्रामीण  जानो ने निर्माण कार्य किया था | जब नागपाल मौके पर गयी और उन्होने उन लोगो को समझाया की यह गैर कानूनी है , यानहा की गयी इबादत और नमाज़ मंजूर नहीं होगी | तब ग्रामीणो ने खुद ही आगे हो कर दीवाल को  दाहा दिया | उन्होने कहा की अपनी हरकतों के लिए मजहब का  सहारा लेना गैर मुनासिब हैं |
                       इस बयान के बाद इस रामपुरिया  नेता की ज़ुबान नहीं खुली हैं | इंतज़ार हैं उनके बयान का .........................क्योंकि  इस संगठन के बयान ने इनकी हस्ती मे ही सूराख कर दिया हैं |

Aug 2, 2013

STATE CRAFT PERMITS TO SPREAD FALSE CLAIMS AND RUMOERS --DURGA SHAQTI"SI SUSPENSION

 STATE CRAFT PERMITS TO SPREAD FALSE CLAIMS  AND RUMOERS --DURGA SHAKTI'S SUSPENSION
                                         Miss Durga Shaqti  Naagpaal was till recently Sub divisonal magistrate of New Okhla Industrial Development Area , who tries to check  the one ''industry'' Illegal miniing of Yamuna Sand , by goons who have the political patronage. It is very surprizing that the NOIDA was created to facilitate the industries , which were earlier situated in capital area . But no industry of consequense  came to this area . Instead  ONLY tWO INDUSTRY ARE SEEN IN THIS AREA ONE LEGAL ANOTHER ILLEGAL . lEGAL IS BUILDING CONSTRUCTION AND ILLEGAL IS MINIING . NOW THE DURGA BECAME TARGATE OF MINING ''MAFIA'' WHO HAS THE PROTECTION OF A GUJAR LEADER NARENDRA BHATTI .

                                   LET US SEE THE HOW THE EVENTS FOLDED IN THIS MATTER -FIRST  JUST AFTER THE INSPECTION OF DISPUTED PLACE AND GETTING THE WALL REMOVED ON REACHING OFFICE SHE BRIEFED THE  DISTRICT MAGISTRATE . JUST THEN COLLECTOR INFORMS DURGA NAAGPAL OF HER SUSPENSION ORDER. AFTERWARDS HE SENT HIS REPORT OF THE ENTIRE EPESODE TO LUCKNOW .MEANTIME MEDIA GOT THE WIND AND NEWS WAS SPREAD IN CHHANELS . STATE HEAD QUARTERS CLARIFIED THAT THE REMOVAL OF WALL COULD HAVE CAUSED  COMMUNAL  TENSION IN THE AREA . IT WAS CLAIMED THAT LOCAL INTELIGENCE UNIT HAS INFORMED THE  PHQ. STATE GOVERNMENT CLAIMED THAT DURGA'S ACTION MIGHT HAVE INFURIATED MINOROTIES IN THE MONTH OF RAMADAN . BUT AFTERWARDS  DISTRICT MAGISTRATE SAID THAT HE HAS GIVEN CLEAN CHIT DURGA AS HE HIMSELF HAS SENT HER ON THE SPOT .THEN AS  FACE SAVING ATTEMPT ACTING CHIEF SECRETARY TOLD MEDIA THAT STATE IS RECONSIDERING HER CASE .
                                                     LATER AFTER RETURNING FROM KARNATKA CHIEF MINISTER AKHILESH YADAV WAS TOLD ABOUT THE INSTRUCTIONS OF MULAYAM SINGH JI TO  SUSPEND DURGA SHAKTI . HE ENDORSED THE ACTION  AND SAID SHE SHOULD HAVE THOUGHT BEFORE TAKING ACTION . MEANWHILE IAS  ASSOCIATION  MEMBERS WENT TO SEE THE STATE MINISTER PERSONAL IN CENTRAL GOVT. THIS ACTION  WAS SEEN AS A CHALLENGE BY THE POLITICAL LEADERSHIP . AND NEW ARGUMENT WERE EXTENDED    IN SUPPORT OF GOVT ACTION .

                 BUT THEN CAME THE NARENDRA BHATI WHO HAVE FOUGHT ELECTION OF LOK SABHA FROM G.B.NAGAR BUT WAS DEFETED . HE SAID THAT  DURGA WAS REMOVING THE ENCROCHMENTS FROM GOVT. LANDS , SHE HAS REMOVED A TEMPLE AND THE MASZID WALL WAS REMOVED .. IN A GATHERING OF OF LOCALS  HE BOASTS THAT HE GOT DURGA SHAKTI REMOVED WITHIN 41 MINUTS . IT IS BELIVED THAT DURGA HAS GOT MORE THAN 60 CASE REGISTERED IN POLICE AND CONFISCATED TRUCKS -TRACKTOR  JCB MACHINES  WHICH ARE STILL IN THE VARIOUS POLICE STATIONS . ONE CHHANEL ALSO DID STOREY .

                                                    NOW THE TRUTH CAME OUT AND THE FACT IS THAT ONE OF THE BHATI'S MAN NAMED OMINDRA WAS ARRESTED AND HIS TRUCKS WERE CONFISCATED BY DURGA . THIS INCIDENT BHATI COULD NOT SWALLOW .AND ON THE PRETEX OF COMMUNAL TENSION HE ASKED MULAYAM SINGH TO SUSPEND THE LADY OFFICER FROM THEIR . MULAYAM SINGH LISTENED TO HIS OLD ALLY AND DIRECTALY ORDERED THE ACTING CHIEF SECRETARY TO SUSPEND HER . AND HIS DIKTAT WAS CARRIED OUT . NOW THE HIGH COURT AND GOVERNMENT OF INDIA  HAS ASKED FOR A DETAILED REPORT ON THE WHOLE INCIDENT . HIGH COURT HAS ALSO ASKED A REPORT ON THE SAND MAFIA OF NOIDA . NOW THE UP  GOVT . IS FEELING THE HEAT . BUT IN THE WHOLE EVENT ONE THING CAME OUT THAT EVERY TIME GOVT. GAVE NEW EXCUSE FOR HIS ACTION BUT WHEN THAT REASON IS ELAMINATED THEN A NEW REASON WAS BROUGHT FORWARD . PUTTING FALSE FACTS AND FEEDING WRONG INFORMATION IS STATE CRAFT ,IS IT NOT !