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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 22, 2013

उन परिस्थितियो मे जंहा चुनने का अधिकार हो ही नहीं ऐसी स्थिति को क्या अच्छा या बुरा कहा जा सकता हैं ?


     उन  परिस्थितियो मे जंहा चुनाव का अधिकार हो ही नहीं ऐसी स्थिति को क्या अच्छा या बुरा कहा जा सकता हैं ?

                       देश और काल तथा परिस्थितिया प्रत्येक जीवधारी के जीवन के लिए निर्णायक होते हैं | जैसे कोई क्न्हा जन्म लेता हैं , किस काल मे लेता हैं , उस समय की परिस्थितिया कैसी हैं , इसमें '''जातक'''या जीव का कोई दाखल नहीं होता हैं | लगता होगा की काफी दार्शनिक व्याख्या की गयी हैं ,परंतु यह एक ऐसा कटुसत्यहैं  जिसके लिए सभी उस जीव या मनुष्य को या तो सराहते हैं अथवा उसे ''कलंकित'''करते हैं | जब की उस ''जातक''' की कोई भूमिका नहीं होती | वेदिक धर्म के एक '''सिधान्त ''''के अनुसार  जीव की ''यौनि ''' अर्थात , उसका स्वरूप क्या हैं --कैसा हैं  इसका निर्धारण '''पूर्व जन्म ''''  के ''कर्मो के आधार पर निर्धारित होती हैं | इस का अर्थ यह हुआ की की एक ऐसा समय जिसका '''ज्ञान'' उस ''''जातक ''' को नहीं हैं , वर्तमान काल का आधार ही वे परिस्थितिया हैं |आजकल की भाषा मे कहे तो कहेंगे की जो हमे मालूम नहीं उस पर विश्वास कैसे करें ? चलो यह तर्क भी मान ले तब भी यह तो स्वीकार करना होगा की आखिर वे '''कौन से कारण ''' हैं जिसकी वजह से वह '''वर्तमान''' को ''भोग ''रहा हैं ?अर्थात वह अगर सिंह हैं तो क्यों और हिरण हैं तो क्यों ? क्या हिरण का जन्म सिर्फ सिंह का ''आहार ''' बनने के लिए हुआ हैं ? वे कौन से कारण या वजह हैं जिन से यह     संभव हुआ   ?  
                   चलिये इन कारणो को हम आज के मानव समाज मे दुहराते हैं और उनके '''फलाफल''' को जानने की कोशिस करते हैं | सर्व प्रथम  हम व्यक्ति  के जन्म की स्थितियो  पर गौर करे ------- वह किस माता  पिता की संतान हैं |? स्त्री हैं अथवा पुरुष या की तीसरा ...वर्ण ? जिनके यानहा जन्म हुआ हैं ,उस कुल --गोत्र -जाति स्थान क्या हैं ? स्वाभाविक हैं और सत्य हैं की ''कर्म'''सिधान्त को चलो हम फिर कभी विचार  करेंगे , लेकिन ''इन ''' सवालो के जवाब तो खोजने ही होंगे | इसका मतलब यह हुआ बहस के दो हिस्से हो गए ----एक जन्म के पूर्व का दूसरा '''वर्तमान''' का | अब मौजूदा हालत पर गौर करे , तो यह मानना होगा की आप का लड़का अथवा लड़की के रूप मे पैदा होना '''नर और मादा के संयोग'' का फल हैं | मेडिकल साइन्स की भाषा मे  अंडाणु  और शुक्राणु का मिलना ही हमारे जन्म का कारण हैं | क्रोमोसोम की गणना  स्त्री - पुरुष एवं तीसरे योनि का फलफल हैं |  अब आप के जन्मदाता आप का पालन - पोषण करते हैं या कोई और करता हैं , इसमें भी ''जातक''की भूमिका नहीं हैं |वे किस ''जाति''के हैं '''छेत्र'' के हैं यह भी  ''जातक''' पर थोपा हुआ हैं , जिससे                      वह ''बंधा '' हुआ हैं ||
                         जन्म के समय से आप के भोजन की व्यसथा कौन करेगा यह भी  उस के द्वारा निर्णीत नहीं हैं ||भ्रूण के फेंके जाने जन्म के बाद  कूड़ेदान या सार्वजनिक स्थानो पर जन्म के बाद छोड़ दिये जाने के लिए भी   वह स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं | परंतु उसे इन स्थितियों को """भोगना"" पड़ता हैं | अब वह किस ''''धर्म ''' मे पैदा हुआ हैं , यह भी वह '''इस अवस्था''' मे नहीं चुन सकता | जिस धर्म के '''पालनहार''' के हाथो पद गया , वही उसका  भविष्य  बन जाता हैं |अब अनाथालयों मे पाले जा रहे बालक - बालिकाओ को किस धर्म के ''''जननी --जनक'''' इस धरा पर लाये  उसकी भी जानकारी ----- दूसरों  द्वारा ही ''जातक'' को दी जाती हैं , उसमे भी  सत्या क्या हैं --वह भी विश्वास की वस्तु होती हैं |

                                                                   जातक को अपनी  पहचान उस आयु  मे पता चलती जब या तो उसका नाम विद्यालय  मे लिखाया जाता हैं अथवा  उसे ''अपनी रोटी''' खुद जुगाडनी पड़ती हैं | पहली वाली स्थिति मे ''रोटी'' की समस्या नहीं होती हैं | दूसरी वाली मे उसकी पहचान समाज या फिर पुलिस बनाती  हैं |  इस समय से हम कह सकते की जातक के '''कर्म''' उसके हैं उसका परिणाम भी उसे ही भोगना हैं | यंहा एक सवाल खड़ा होता हैं की   की ''हम यानि समाज''' उसकी पहचान गढते हैं , या वह स्वयं ? हक़ीक़त  यह हैं यंहा भी वह ''निर्णायक '''की भूमिका मे नहीं हैं |, वरन ''मजबूरी''' की भूमिका मे हैं | जिसे हम अक्सर  उन लोगो को जोड़ते हैं जो या तो बाज़ारो मे  ''पाँच से लेकर दस वर्ष की आयु ''' के होकर भीख मांगते हैं अथवा चाय की दूकानों सड़क के किनारो के ढाबो  मे  अपनी सुविधा के अनुसार कभी ''मुनदु'' कभी मोहन '' तो कभी अब्दुल'' के नाम से बुलाते हैं |तब तक उसे ही ''भ्रम'' रहता हैं की उसका ''असली'' नाम क्या हैं | असली से मेरा आशय  उन नामो से होता हैं जो हमारे देश की आबादी के नब्बे फीसदी लोगो को मिले हैं , यानि समाज के सामने माता - पिता [ जनक - जननी ] द्वारा दिये गए हैं |
                                                                      अगर नाबालिग पेट की भूख के लिए काम कर रहा हैं , अथवा पब्लिक स्कूल मे  क ख  ग पद रहा हैं , दोनों ही परिस्थितियो मे उसकी पहचान  बन जाती हैं | उसका धर्म भी '''नियत''' कर दिया गया होता हैं | हाँ कूल -गोत्र तो ''बड़े भाग्य''' के लोगो की पहचान बनता हैं | अब ऐसी स्थिति मे किसी उस लड़के को हम गाली दे और कहे की तू ''मुसलमान'' हैं या ''हिन्दू''' हैं इसलिए तू  हमारी नफरत का कारण हैं |तो क्या हम उचित और सही कर रहे हैं ? सोचने का विषय हैं |