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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 14, 2018


अखंड भारत की कल्पना -क्या वेदिक अथवा पौराणिक है ?
तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते -वरन छेत्रीयता के प्रमाण
महाभारत काल से लेकर नवी सदी तक है -जब आदि गुरु शंकराचार्य ने काश्मीर से कन्याकुमारी के मध्य सैकड़ो राजा -महाराजाओ द्वारा शासित इलाके को वेदिक सभ्यता की डोर मे एक सूत्र से बांधा था |

आजकल के ऐतिहासिक टीवी सीरियलों मे चाणक्य के एक संवाद को काफी जोरदार रूप मे दर्शको मे प्रस्तुत किया जाता है "””अखंड भारत "” | परंतु वेदिक काल मे और पौराणिक काल मे भी काश्मीर से कन्याकुमारी तक देश मे किसी एक की सत्ता रही ही नहीं ! छहे वे मरयदा पुरुषोतम राम अथवा नीति गुरु क्रष्ण ही रहे हो | वेदिक काल मे सूक्त है "” भूमि मात्रोहम ,पुत्रोहम प्र्थिव्याह "” अर्थात भूमि मेरे माँ के समान और और मई प्र्थ्वि का पुत्र हूँ !

वेदिक काल से लेकर आजतक सनातन धर्म के सभी कर्मकांडो मे "”संकल्प"” आवश्यक है --- उसमे कहा गया है की"” जंबू द्वीपे भारत खंडे भारतावर्षे {फिर छेत्र } आर्यवरते अथवा ब्रामहावरते अथवा दक्षिणवारते तत्पश्चात -- मगध मद्र- चेदी - आदि बारह महागणराज्यो और राजाओ द्वरा शासित छेत्रों का नाम लेते हुए समीपवर्ती नदियो गंगा -यमुना - नर्मदा - वेत्रवती - तुंगभद्रा आदि नदियो का नाम लेते हुए स्थान को परिभाषित करने के उपरांत जातक अपने गोत्र और और अपना नाम लेते हुए अपने अभीष्ट का संकल्प लेते हुए अपने आराध्य //कूलदेवी या देवता से प्रार्थना करता है |
सीता के स्वयंबर मे मे भी अवध और कौशांबी -अवंतिका आदि के राजाओ का वर्णन है | यद्यपि वर्णन तो रामचरित मानस मे नहीं है परंतु रावण के भी लंका से आने का भी है | महाभारत काल मे भी द्रौपदी के स्वयंबर मे भी अनेकों छेत्र के राजाओ के आने का ज़िक्र है | ये सभी अपने -अपने छेत्रों मे स्वयंभू थे |

अब हम पौराणिक काल को छोडकर उपलब्ध ऐतिहासिक साक्षयो का ज़िक्र करे ---- तो ईसा पूर्व मौर्य साम्राज्य भी बिहार के आसपास तक ही सीमित रहा है ---तब भी वैशाली और लिछवि गणराज्यो का साफ रूप से वर्णन आया है | अर्थात वे भी स्वतंत्र सत्ता रखते थे | अब इन्हे देश माने या राष्ट्र ? यह कठिन प्रश्न है | नवी सदी मे आदि गुरु की धर्म विजय मे काश्मीर से लेकर असम के कामरूप और वारंगल से लेकर मलाबार तक बहुत से राज्यो और उनके शासको का वर्णन है | मौर्य और गुप्त साम्राज्यों की भी सीमा आज के आंध्र -कर्नाटक और केरल से दूर थी | अशोक महान की उड़ीसा विजय भी दक्षिण के राज्यो पर आधिपत्य के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते है |

गुलाम वंश से लेकर मुगलो तक की भी सीमा वर्तमान भारत की सीमा से बहुत छोटी ही थी | उस समय के तत्कालीन दस्तवेज़ों मे साफ रूप से अखंड भारत की कल्पना नहीं है | अकबर के जमाने मे अंग्रेज़ो के आने से पूर्व कर्नाटक- तमिलनाडू की सीमा पर डच चुके थे | उनके बाद पुर्तगाली आए | डचो से फ़्रांसीसियों ने पांडिचेरी हथिया लिया था | 1857 के सैनिक विद्रोह या की आज़ादी की पहली कोशिस तक भी देश मे शासन की एक सत्ता नहीं थी | बहादुर शाह जफर के नेत्रत्व मे हुई इस ज़ंग मे हिन्दुओ को कमल और मुसलमानो को रोटी का निशान ही राष्ट्रियता की पहचान बना था | आज के लोगो को यह नहीं भूलना चाहिए की इस लड़ाई मे सभी धर्मो के लोगो ने कुरबानिया दी | मेरठ के पास की सरधना रियासत के अंग्रेज़ जमीदार की बेगम समरू का नाम भी इस लड़ाई मे सम्मान पाता है |

1857 मे कंपनी साहब बहादुर का राज़ खतम करने के बाद इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया ने यानहा अपना अपना गवर्नर जनरल भेजा जो कंपनी के इलाको मे सीधे शासन करता था और वायसराय के रूप मे वह देशी रियासतो पर '’’सीमित नियंत्रण '’’ रखता था | उसका नियन्त्रण आज के म्यांमार और श्री लंका तक था |

1857 के विक्टोरिया चार्टर , मे तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिपत्य वाले इलाके और वे रियासते जिनहोने कंपनी साहब बहादुर से '’’ अनाक्रमण संधि थी ----जिसके तहत अङ्ग्रेज़ी सेना उनके राज मे रहती थी "” इस पूरे इलाके को चार्टर मे इंडिया या भारत रूप से चिन्हित किया गया था |मेरी समझ से इतिहास मे राजनैतिक रूप से पहली बार भारत या इंडिया का उद्भव हुआ | उसके पूर्व हमारे वेदिक कर्मकांडो मे '’’’भारत के अंतर्गत उन सभी छेत्रों का वर्णन था जो भौगोलिक रूप से पहचाने जाते है | सान्स्क्रतिक रूप से जंबू द्वीप --हमारी प्रथम सीमा थी --- जिसे फिर भिन्न भिन्न इलाको मे विभाजित किया गया था | उदाहरण से इस स्थिति को यूं समझा जा सकता है जैसे अन्तरिक्ष से प्र्थवी को देखे और फिर धीरे - धीरे नजदीक आते जाये तो विभिन्न सीमाए स्पष्ट होती जाये |

| प्रथम और द्व्तिय युद्ध के दौरान अंग्रेज़ो ने तिब्बत को अलग करने के लिए मकमोहन सीमा रेखा खिची , जो आज तक भारत और चीन के मध्य विवाद का मुद्दा बना हुआ है | उधर सिख,, महाराजा रणजीत सिंह के अवसान के बाद कमजोर हो गए थे | बालक दलीप सिंह को अंग्रेज़ो ने पेंशन देकर इंग्लैंड भेज दिया और उनके इलाके को मिला लिया | काश्मीर को डोगरा जोरावर सिंह ने अंग्रेज़ो से संधि करके लिया | पश्चिम उत्तर मे बलूचिस्तान से लेकर अटक { ईरान की सीमा } तक अंगर्जों ने कब्जा जमा लिया |

उन्होने 1947 मे आज़ादी देने के पूर्व उन्होने अपने कब्जे वाले इलाको और //प्रभाव वाली रियासतो को दो भागो मे विभाजित कर दिया |तत्कालीन बर्मा और श्री लंका को इस विभाजन से पूर्व ही स्वतंत्र कर दिया था | म्यांमार की आज़ादी की लड़ाई जनरल आंग -आज की आंग सान सु ची के पिता ने की थी | जैसे पख़्तूनों की आज़ादी का बिगुल खान अब्दुल गफ्फार खान ने बजाया वैसा काँग्रेस ने महात्मा के नेत्रत्व मे देश को अंग्रेज़ो से आज़ादी दिलाई |

इस पूरे घटना क्रम मे काश्मीर से कन्याकुमारी पर एकछत्र शासन सिर्फ अंग्रेज़ो का रहा -----यद्यपि पाँच सौ देशी रियासते अपने इलाके मे राज़ करने को स्वतंत्र थी परंतु उनकी रक्षा और विदेशी संबद्ध ब्रिटिश सरकार के हाथ मे था ,|
1857 से लेकर 1947 अर्थात स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व रियासतो का प्रतिनिधित्व ब्रिटिश साम्राज्य मे नरेंद्र मण्डल और नरेश मण्डल नामक निकाय करते थे | नरेंद्र मण्डल मे वे रियासते थी जिनहे खुद मुख़्तयरी का हक़ था | अर्थात वे अपना झण्डा --सिक्का रखते थे ,एक छोटी सेना भी रखते थे , जो वास्तव परंपरा और विशेस अवसरो के लिए थी | परंतु वह दिखावटी तलवार के समान थी | जिसकी म्यान लोगो को यह भरम देती थी की इसमे तलवार है !!! अनेक रियासतो के अधिपतियों ने अपने इलाके की बटालियनों का नेत्रत्व अंग्रेज़ जनरलो की मातहती मे लड़ा | ये दो वर्दी पहनते थे -------एक अपनी रियासत की पारंपरिक सैन्य वेषभूषा ---दूसरी जो अंगेजी सेना द्वारा निर्धारित थी | त्योहार और विशेस आयोजनो मे ये रियसती ड्रेस पहनते थे | परंतु अपने इलाके के बाहर अंग्रेज़ो की दी हुई वर्दी ही इनकी पहचान थी !! इन्हे वायसरॉय के आयोजनो मे अपनी पारंपरिक वर्दी पहनने की आज़ादी थी | औपचारिक आयोजनो मे इनकी हैसियत का अंदाज़ इनको मिलने वाली तोपों की सलामी से तय होता था | इन्हे '’ हिज हाईनेस का संम्बोधन '’ भी मिलता था | परंतु अपना झण्डा -- सेना और सिक्का रखने वाली रियासते उँगलियो पर ही गिनी जा सकती थी |
गवर्नर जनरल द्वरा शासित इलाको मे '’’’लगान या मालगुजारी '’’ वसूलने का अधिकार रखने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाको के इन लोगो के लिए '’’’नरेश मण्डल '’ था | ये ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से नियुक्त होते थे |

इतनी तफसील इसलिए ज़रूरी थी की आज़ादी के पहले भी मराठी ---गुजराती- बंगाली बिहारी के रूप मे आम पहचान थी | गुजरात मे मे बडौदा-जूनागढ- ध्र्ङध्र्रा --काठियावाड--आदि अनेक रियासते और ठिकाने थे | ये अपनी पहचान अपनी रियासत से कराते थे | आज भी छेत्रीय पहचान होती है| बाला साहब ठाकरे ने दासियो साल पहले '’’’महा राष्ट्र सिर्फ मराठियो के लिए '’ नारा दिया था | जो दक्षिण भारतीयो और भोजपुरी भाषी भैया लोगो के खिलाफ केन्द्रित था | अब वह कभी - अभी फल और सब्जी विक्रेताओ मे गैर मराठी लोगो के प्रति मार पीट के रूप मे मिलता है |
तमिलनाडू मे आर्य या वेदिक अथवा कडगम की परिभाषा मे '’’ब्रामहनवाद '’के खिलाफ सबसे पहले रामास्वामी नायकर ने आवाज़ बुलंद की थी | मंदिरो का बहिसकार हुआ | हिन्दी का विरोध हुआ | आंदोलन हुए -----परिणाम स्वरूप उत्तर भारत की पार्टी काँग्रेस का असर वनहा खतम हुआ | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ चालीस साल से लगातार कोशिस के बाद भी खुले मे शाखा नहीं लगाते है ! नफरत की भावना इस इलाके लोगो मे कितनी है ------इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है की -- तमिलनाडू के चार हिन्दू मुख्य मंत्रियो ने ---- दाह संस्कार के करमकांड को भी त्यागा !!! उन्होने यहूदी -ईसाई और इस्लाम की '’’’दफनाये '’’ जाने की परंपरा को स्वीकार किया !!!!!! तमिल अथवा कडिगा [[ गैर ब्रांहण दाह संस्कार म्र्त्यु भोज –पिर्तर तर्पण आदि सोलह संस्कार नहीं मानते | परंतु जनगणना रजिस्टर मे उनका '’’’’धर्म हिन्दू '’’ है !!!
वेदिक काल से वर्तमान की सान्स्क्रतिक यात्रा मे '’’इंडिया '’ ही संविधान आने तक हमारी कानूनी पहचान रही | संविधान मे पहली बार इंडिया जो की भारत है का उल्लेख प्रथम अनुच्छेद मे है | कुछ अति राष्टर्वादियो की आपति है की इंडिया का उल्लेख ही नहीं होना चाहिए | अब अंतराष्ट्रीय जगत मे जो पहचान है ----उसे बदलने का प्रयास अनेक देशो ने किया है |