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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 20, 2018

आनंदीबेन के मध्यप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किए जाने के निहितार्थ ?

मुद्दतों बाद प्रदेश को स्थायी राज्यपाल मिला है – रामनरेश यादव के सितंबर 2016 मे कार्यकाल समाप्त होने के बाद से, गुजरात के राज्यपाल ओ पी कोहली ही कार्यवाहक राज्यपाल थे अब गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री राज्य की लाट साहब होगी | यू तो इस नियुक्ति मे कोई राजनीतिक महत्व की बात सतही तौर पर नहीं दिखे देती | परंतु प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली के वाक़िफ़ों का मानना है की यह पदस्थापना प्रदेश के लिए '''हलचलकारी'' होने को संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता | क्योंकि 2014 के पूर्व एक आध राज्यपालों ने राज्य की राजनीति मे दखल दिया था | परंतु मोदी काल मे यह ''मान्य और सिद्ध "” है की राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद के पर्यंत तक नहीं नरेंद्र मोदी की क्रपा तक ही पदासीन रहेंगे | दूसरे गैर भाजपा राज्यो मे तो राज्यपालों के कथन और क्र्त्या काफी 'विवदासप्ड ' रहे है | दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर और केजरीवाल की चुनी सरकार का उदाहरण सामने है |
समझा जाता है की जिस प्रकार विगत डीनो मे केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय विभाग द्वरा प्रदेश के आईएएस अफसरो की संपति का ब्यौरा और उनके ऊपर तथा उनके परिवारजनों के इलाज़ पर किए गए खर्च का विवरण देने से मुख्य सचिव बी पी सिंह ने तो टूक इंकार कर दिया है उस से भी केंद्र की नौकरशाही आशंतुष्ट है | यह तो सर्व विदित है की मोदी जी ''फीड बॅक ''' अधिकतर आईएएस अफसर ही होते है | इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता की नयी राज्यपाल अफसरो और मंत्रियो से जवाब तलब करे | क्योंकि वे नरेंद्र मोदी की विश्व्स्त सहयोगी है | इसलिए आने वाले समय मे कुछ धमाके भी हो सकते है |

2014 के पहले राज्यपाल का पद राजनीतिक रूप से उन महानुभावों के लिए होता था जिनहे सक्रिय और दलीय राजनीति से अवकाश देना होता था | कुछ ऐसे भी उदाहरण है जनहा नौकरशाहो को भी इस पद से नवाजा गया | परंतु कूल मिलकर यह पद "” शांत और निष्क्रिय "” भरा होता था | स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस को भाषण देने का होता था | जिसे सरकार का “””रबर स्टैम्प””माना जाता था |उनकी पंद्रह दिनी रिपोर्ट गृह मंत्रालय को परंपरागत रूप से भेजना ही केंद्र के प्रति कर्तव्य की इति श्री होती थी | पर अब अनेक प्रकार केंद्र को सूचित करना पड़ता है |


समझा जाता है की राजय की योजनाओ और कार्यक्रमों की सफलता की कहानी विज्ञापनो के माध्यम से काफी विस्तारित हुई है | परंतु जमीनी रिपोर्ट मे उन दावो को झुठला दिया है | बीजेपी के एक वारिस्ठ नेता का कहना है की ''काम शुरू बहुत हुए -परंतु वे कितने दिन चले इसका ख्याल शासन द्वारा नहीं रखा गया | परिणाम स्वरूप नर्मदा के किनारे के पौधरोपन के ''करोड़ो पौधे सूख गए '' | राज्य की अफसरशाही की मनमानी की कहानी भी अक्सर छपती रही है | इन विरोधा भाषों के चलते पार्टी की पकड़ ढीली हुई है | विधान सभा उप चुनावो मे धुनवाधार प्रचार के बाद चित्रकूट मे पराजय का अंतर बढा है स्थानीय चुनावो मे भी कहुदाह सालो से सत्ता से बाहर रहने के बाद भी सत्तासीन पार्टी की बराबरी भी जमीनी हक़ीक़त बयान करती है |