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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 30, 2022

 

सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी --धरम संसद -कट्टर हिन्दुत्व चुनावी मुद्दा ?

उतराखंड और उत्तर प्रदेश में भगवा धारियो द्वरा धरम संसद आहूत कर अलपसंख्यकों के वीरुध नफरत का माहौल बनाने की कोशिस सर्वोच्च न्यायालय की एक चेतावनी से भरभरा गयी ! इसके पीछे कारण था की न्यायालय ने निर्देशों की अवहेलना पर इन राज्यो के मुख्य सचिव को अदालत में हाजिर होने और कोपभागी होने की चेतावनी दी थी | अदालती निर्देशों की अनदेखी करने पर हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अनेकों बार राज्यो की सरकारो को फटकार लगा चुके हैं | पर वे बहरे कानो द्वरा अनसुनी कर दी जाती थी / है | अभी देश के प्रधान न्यायाधीश रमन्ना द्वरा हाल ही में एक बार फिर सरकारो की नौकरशाही को "” लक्ष्मण रेखा "” का उल्लंघन नहीं करने की समझाइश दी है |

फिलहाल मुद्दा धरम संसद को रोकने का था , जिस पर अदालत ने कहा की अगर ये धार्मिक संसद आहूत हुई तब "” राज्यो के मुख्य सचिव जिम्मेदार होंगे ,और उन्हे अदालत में उपस्थित होकर जवाब देना होगा | प्रदेश की नौकरशाही अपने राजनीतिक आकाओ की मर्जी का पालन करती है | फिर वह कानून और नियमो की अवहेलना ही क्यू ना हो | नौकरशाही के अफसरो को इस बार लगा की गड़बड़ी जिलोमें हो -और सज़ा के लिए मुख्य सचिव अदालत के कटघरे खड़े हो , यह उन्हे मंजूर नहीं था | इसीलिए उत्तराखंड में धरम संसद के आयोजको को पुलिस और प्रशासन ने साफ कह दिया की सरकार में बैठे लोग भले ही आप की चरण वंदना करे ,परंतु हमे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना हैं | इस सिलसिले में कुछ गिरफ्तारिया भी हुई और बाकी साधुओ को समझा दिया गया की "”नफरत फैलाने वाले भासनों को "” नहीं होने दिया जाएगा !!! इसी तारतम्य में उत्तर प्रदेश में मस्जिद और मंदिरो पर लगे लाउड स्पीकरो को उतरवाना भी शामिल हैं | जिस ईमानदारी से जिला प्रशासन ने दोनों ही धर्मो के उपासना स्थलो से इन ध्वनि विस्तारक यंत्रो को उतरवाया वह लाखो लोगो की मांग और संदेशो से भी इन राज्यो की सरकारे नहीं सुन रही थी | जो सुप्रीम कोर्ट की एक चेतावनी से संभव हुआ |

पहली बार शायद अफसर अपने मंत्रियो को समझाने में सफल हुए की "” कानून और व्यव्स्था के नाम पर "” अब बुलडोजर जैसी कारवाई हमसे नहीं होगी | क्यूंकी अब इस कारवाई को करने या अदालती आदेश की नाफरमानी करने के लिए सरकार नहीं वरन वनहा तैनात अफसर जिम्मेदार होगा | जो मैदानी अफसरो को जवाबदेह बनती हैं | अदालत के कोप का भाजन बनने को अब कलेकटर तैयार नहीं | क्यूंकी कानुनन मंत्री या सांसद आदि शांति -व्यव्स्था के लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं | भले ही उनही के कार्यकर्ता इन जुलूसो और कारवाइयों में हो | जिस तरह से मस्जिद की अजान और मंदिरो से हनुमान चालीसा अथवा अन्य धार्मिक उपासनाओ का पाठ किया जाता हो , उसमें लाउड स्पीकरो का इस्तेमाल अन्य नागरिकों के लिए असहज करते हैं |

उत्तर प्रदेश पुलिस द्वरा जिस प्रकार अयोध्या में जिस प्रकार कुछ सनातनी युवको द्वरा मस्जिदों में फटी कुरान और निसिद्ध मांस फेक कर माहौल को अशांत बनाने की कोशिस को " नाकाम " किया हैं , वह "”अद्भुत "” लगता हैं | क्यूंकी बुलंदशहर में हिन्दू और बजरंगसेना के कार्यकर्ताओ द्वरा एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या के दोषियो को अभी सज़ा नहीं मिली | गोरखपुर के मुसलमान डाक्टर कतिल और पत्रकारो को सरकार को कष्ट देने वाले समाचारो पर जेल में दाल दिया जाता है | बलिया के तीन पत्रकारो की गिरफ्तारी और जमानत एक उदहरण है -की किस प्रकार सत्ता अपने आलोचको का मुंह बंद करती हैं | हाल ही में गुजरात के काँग्रेस विधायक जिग्नेश मेवानी को आसाम पुलिस ने एक ट्वीट के कारण गिरफ्तार किया , क्यूंकी वह नरेंद्र मोदी जी की आलोचना में था ! ऐसे माहौल में अयोध्या की गिरफ्तारी मन को शंकालु बनती हैं |

                  संघ और भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली में हुई कोर बैठक में , आगामी लोकसभा और विधान सभा के चुनावो में कट्टर हिन्दुत्व को मुख्य बिन्दु बनाने :- अप्रैल के अंतिम सप्ताह में दोनों संगठनो के शीर्ष नेताओ ने आगामी चुनावो में हिन्दुत्व को एजेंडा बनाने का निश्चय किया हैं | सुप्रीम कोर्ट द्वरा जिस प्रकार देश में फैलते धार्मिक जहर पर नियंत्रण करने सफल कोशिस की हैं , वह आगामी चुनाव में एक बार पुनः कसौटी पर पारखी जाएगी | क्यूंकी देश के सौ से अधिक अवकाश प्रापत नौकरशाहों प्रधान मंत्री नरेंडर मोदी को एक खुले पत्र में मांग की है की वे देश में फैलते धार्मिक उन्माद के जहर के बारे में प्रयास करे |

अवकाश प्रापत रक्षा कर्मियों ने भी एक खुले पत्र में प्रधान मंत्री से देश के दूषित होते सामाजिक सौहार्द को को रोकने का यत्न करे |पर अभी तक सत्तरूद दल द्वरा इस ओर कोई प्रयास नहीं किया गया हैं | लेकिन यह तथ्य साफ हैं की अफ़सर उसी समय तक मंत्रियो की बजाता है , जब तक उस पर कोई आंच नहीं आए | अन्यथा वह

सेफ खेलता हैं | जब तक आंच ना आए |

Apr 25, 2022

 

बुलडोजर संस्क्रती के बाद अब पत्रकारो पर नंगई का हमला !!

वैसे बुलडोजर अभियान की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवाधारी योगी जी की ईज़ाद थी | जिसके द्वरा "” तथाकथित " दंगाइयो और माफिया लोगो को "तुरंता न्याय " देने की नियत थी |

पर पत्रकारो को पुलिस द्वरा नंगा कर के सार्वजनिक परेड कराने की सीख यू पी पुलिस ने मध्य प्रदेश से सीखा हैं सीधी जिले के पड़ोसी जिले में पत्रकारो और रंगकर्मियो को नंगा घुमाने की मिसाल तो मध्य प्रदेश पुलिस ने ही शुरू की हैं |

योगी आदित्यनांथ ने तो अपने सरकारी अमले को अधिकार दे दिया था की बिना नोटिस और अदालती हुकुम के ही इमारतों को नेस्तनाबूद कर दिया जाये | बाद में एक खास वर्ग के लोगो पर "संपती"हानि को वसूलने के लिए पूरी आबादी पर बिना अदालती कारवाई के जुर्माना वसूलने का भी हक़ दे दिया था ! वह तो भला हो हमारे सुप्रीम कोर्ट का की उन्होने इस "जुर्माना "लगाने और वसूलने पर कहा की "”यानहा सरकार ही आरोप लगा रही है और खुद ही जुर्म को साबित मान कर जुर्माना वसूल रही है !” तीनों काम सरकार कैसे कर सकती हैं ? उन्होने योगी सरकार को हुकुम दिया की वे वसूले गए जुर्माने को उन लोगो को वापस करे जिनसे लिया गया है | तब जिलो -जिलो में सरकारी कारिंदो ने हड़बड़ी में जनता से वसूले गए जुर्माने की राशि वापस किया | सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे इस कारवाई को कानूनी तरीके से करने का भी हुकुम दिया |

खैर योगी जी के फार्मूले को मध्यप्रदेश में भी खरगोन में रामनवमी के अवसर पर जुलूस पर पथराव लेकर लोगो की गिरफ्तारी भी हुई और कुछ के घरो को बुलडोज़ भी किया गया | खैर आनन -फानन में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश पर एक ट्राइब्यूनल गठित करने का फैसला किया गया | जिसकी सदारत अवकाश प्रापत जज होंगे | पर मध्य प्रदेश की पुलिस जिसे उत्तर प्रदेश के पुलिस के अमले के मुक़ाबले कानूनी कारवाई करने वाला माना जाता था - समझा जाता था , उसने पत्रकारो को निशना बनाना शुरू कर दिया | विंध्य के सीधी जिले के बगल की औद्योगिक नगरी में पुलिस ने कुछ रंगकर्मियो और चार पत्रकारो को सिर्फ इसलिए ना केवल प्रताड़ित किया की वे एक बीजेपी विधायक के कारनामो को उजागर कर रहे थे जिससे एमएलए साहब नाराज़ थे | लिहाजा थाने की पुलिस ने अपना बार्बर रूप द्खते हुए ना केवल उन्हे मारा -पीटाऔर खूब कुटा और उनकी सारे आम - सारे कपड़े उतार कर नंगा करके सिर्फ चढ़ी में सड़क पर परेड कराई वरन थाने में भी थानेदार साहब के हुजूर में भी उसी हालत में पेश किया गया | इस वारदात का वीडियो जब वाइरल हुआ तब दूसरे दिन उस इलाके के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने कहा की सुरक्षा के कारण हवालात में आरोपियों को इसी हालत में रखा जाता है की कनही वे कपड़ो से रस्सी बना कर फांसी ना लगा लें ! अब इन नौकरशाह को यह बताना चाहिए की महिला आरोपियों के साथ भी क्या वे ऐसा ही व्यवहार कर सकते हैं ? पर इस पुलिस अफसर ने दुबारा इस मसले पर पूछे जाने पर अपने को दूर कर लिया | खैर इस घटना पर मुखय मंत्री शिवराज सिंह ने दोनों पुलिस थानेदारों को "”लाइन हाजिर "किए जाने का आदेश दिया | पर क्या यह कारवाई उन दोनों थानेदारों और उस अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के कथन पर कोई कारवाई नहीं होनी चाहिए ? शायद कोई कारवाई होगी भी नहीं |

पर इस बार उत्तर प्रदेश पुलिस पत्रकारो को नंगा घुमाने की सीख मध्य प्रदेश से ली हैं | कानपुर के एक लोकल चैनल "”के न्यूज़ "” के पत्रकार चन्दन जायसवाल को महाराजपुर थाने की पुलिस ने सारे आम सारे कपड़े उतरवा कर सार्वजनिक परेड कराई !!! फिलहाल योगी जी की सरकार ने पुलिस की इस हरकत पर अभी तक कोई कारवाई नहीं की हैं |

पर क्या हम कह सकते है की हम एक लोकतान्त्रिक देश की व्ययस्था में रह रहे हैं ? क्या यही रूल ऑफ ला है ? अथवा यह राज्य अपने कारिंदो द्वरा अपने क्रूर और गैर कानूनी इरादो को अंजाम दे रहा हैं ? क्या इस प्रकार की घटनाओ से सरकार की बदनामी नहीं होती ---क्या राजी का नेत्रत्व यही चाहता है की उसके नागरिक भयभीत रहे और कानून से नहीं पुलिस से डरे ? सवाल महत्वपूर्ण है जिसका जवाब नागरिकों को खुद खोजना होगा | अगर लोकतन्त्र को जीवित रखना हैं तो कानून और नागरिक अधिकारो का सम्मान सभी को करना होगा , छहे वह सरकार का कोई अंग हो अथवा व्यक्ति हो |

Apr 22, 2022

 

हुज़ूर -बस उजाड्ने की नोटिस तो देते -आखिर जीने का हक़ तो है



सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार जहांगीरीपुरी में उन अधिकारियों को अपने रेडार पर ले लिया है , जिनहोने तोड़ फोड़ पर अदालत के स्थगन के आदेश के बाद भी -मकान और दुकान को तोड़ना जारी रखा था , यह कहते हुए की हमे तो आदेश नहीं मिला ? मतलब अदालत ने उन्हे नहीं बताया है ! जब वृन्दा कारत ने रेजिस्ट्रार का हुकुमनामा दिखाया तब तक फैसला हुए दो घंटे हो चुके थे और ईस समय के दौरान मस्जिद को चोट पहुंचाई जा चुकी थी |

निगम और पुलिस अधिकारियों की इस कोताही पर सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते बाद कारवाई का मन बनाया हैं |अदालत ने कहा जी वे सारे देश में अतिक्रमण कारवाई को रोक नहीं सकता , और अतिक्रमण को हटाने के लिए बुलडोजर की जरूरत होती हैं |

यानहा दो सवाल अहम हैं - अतिक्रमण या अवैध कब्जा या निर्माण की रोकथाम स्थानीय निकाय की ज़िम्मेदारी नहीं ? आखिर सुप्रीम कोर्ट ने ही तो 1700 करोड़ कीमत वाली नोएडा स्थित "”ट्विन टावर "” को बारूद से उड़ाने का फैसला किया हैं | बस बात इतनी हैं की गुरुग्राम और नोएडा में बहुमंजली इमारतों के तामीर {बनते } समय स्थानीय निकायो के जिम्मेदार लोग क्या कर रहे थे ? परंतु अवैध निर्माण या क़ब्ज़े के खिलाफ कारवाई के जिम्मेदारो के खिलाफ कोई कारवाई -कभी नहीं हुई ! अब ट्विन टावर में जिन लोगो ने फ्लॅट खरीदे थे वे भी उसी तरह ठगे हुए हैं --जैसे जहाँगीर पुरी के बाशिंदे | बस दो ही अंतर है फ्लॅट के दावेदारों में हिन्दू हैं तो जनहगीर पुरी में उजड़ने वाले मुस्लिम हैं , और वे गरीब भी हैं ,रोज कमाओ तब खाना_---- पाओ की हालत हैं | यह बुलडोजर संसक्राति हिंसक घटनाओ या धार्मिक दंगो ---- में एक वर्ग विशेस को निशाना बनाया जा रहा है | उनकी संपत्ति लूटी जाती है घर तोड़े जाते हैं और फिर वे ही अभियुक्त बनाए जाते हैं |

खरगोन हो या खंडवा दिल्ली हो कोई और जगह , जनहा इन दो धर्मो वालो के बीच विवाद होता तो झगड़ा सांप्रदायिक दंगा बन जाता है | सलिसीटर जनरल मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया की वनहा हिन्दुओ की 88 संपत्ति टोडी गयी { गौर करे अतिक्रमण हटाया नहीं गया }जबकि मुस्लिमो की कुल 22 संपति ! पर उन्होने यह नहीं बताया की 148 गिरफ्तार लोगो में मात्र 6 हिन्दू है शेष मुस्लिम हैं | उन्होने कहा की अतिक्रमण हटाने के नोटिस 2021 में दिये जा चुके थे | शायद इसी लिए प्रदेश सरकार दंगे में टूटे घरो का पुनर्निर्माण कराएगी | सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान दुष्यंत दवे और कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया की नगर निगम सैनिक फार्म और गोल्फ लिंक्स में हो रहे अवैध निर्माणों पर नज़र नहीं डालती , क्यूंकी वो लोग रसूख और धनवान हैं | कारवाई सिर्फ इन जैसे गरीबो पर ही होती है | क्यूंकी सैनिक फार्म के रहवासी निगम और उसके अफसरो पर भारी हैं |

दुष्यंत दवे ने कहा की अतिक्रमण हटाने के लिए 5 से 15 दिन का नोटिस देना कानूनी जरूरत है जबकि दिल्ली में 1731 अवैध कालोनिया है ,जिनमें 50 लाख लोग रहते हैं | अधिकतर रोज कमाने और रोज खाने वाले लोग हैं |

अनेक केंद्रीय और प्रदेश कानूनों में स्पश्स्त किया गया हैं की खराब मौसम और रात में तोड़ फोड़ और हटाने की कारवाई नहीं की जाएगी | इन हालातो और कानूनों की मौजूदगी में इन भुक्तभोगियों की इतनी सी ही मांग हैं की "” उजाड़ तो दोगे पर कान्हा बसाओगे और कितने दिन में ,बस इतना ही मागना है "” देश की सर्वोच्च अदालत से देश में धार्मिक नफरत के चलते सरकार और प्रशासान एयक तरफा कारवाई ना करे , मनोज तिवारी का दावा की बुलडोजर फिर चलेगा अभी तो अदालत के आदेश से हाल्ट हो गया हैं |

Apr 21, 2022

 

आखिर अल्पसंख्यकों को सत्ता की प्रताड़ना से राहत मिली !!




शासन और सरकार से इंसाफ पाने से नाउम्मीद हुए जहांगीरपुरी


के बाशिंदों को देश की सर्वोच्च अदालत ने कानूनी कवच से


निगम की ज़ोर -ज़बरदस्ती की कारवाई से फिलहाल तो रक्षा की


है| परंतु क्या सर्वोच्च अदालत राज नेताओ के अहंकार के प्रतीक


"”बुलडोजर"” को जनता के एक भाग के संवैधानिक अधिकारो और


उजाड़ने से पहले बसाने और उसमें लाग्ने वाले समय को बताया जाएगा ??

क्या दिल्ली निगम के मेयर की भांति बिना नोटिस दिये "”अतिक्रमण कारवाई "”” करने को जायज़ माना जाएगा ? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल तो इस कारवाई पर रोक लगा दी है परंतु कया मुख्यमंत्रियों और मंत्रियो की इस सनक भरी कारवाई को कानूनी कसौटी पर परखा जाएगा |



रामनवमी के पर्व पर जिस प्रकार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तथा देश की राजधानी में रमज़ान के मौके पर कथित हिंदुवादी तत्वो द्वरा हुड़दंग मचाया गया वह समस्त सनातनी लोगो के लिए लज्जा का बायस बना हैं | इन घटनाओ में प्रशासन और पुलिस की भूमिका स्थितियो को सम्हालने से ज्यादा सत्ताधारी संगठनो के पालित - पोषित अंगो का बचाव करते हुए उन्हे रोकने का प्रयास नहि किया गया | जहांगीरपुरी की बस्ती जो पिछले 25 -30 सालो से बसी हुई है , उसे एक दिन अचानक बुलडोजर से मुस्लिम परिवारों और उनकी दुकानों को जिस प्रकार निशाना बने गया वह पोलिस और दिल्ली निगम की "” बद्नीयती " को इशारा करता हैं |

सबसे ज्यादा आपतिजनक यह रहा की सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश द्वरा तोड़ फोड़ की कारवाई पर स्थगन दिये जाने के फैसले के बाद निगम और पुलिस अधिकारियों का यह "”” बहाना की उन्हे अदालत के आदेश नहीं मिले हैं "”! अंततः वामपंथी नेता व्रनदा कारत जब अदालत का आदेश लेकर बुलडोजर के सामने खड़ी हो गयी तब निगम और पुलिस अधिकारी सकते में आ गये | खैर अब सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्री अमित शाह के बयान की "दंगाइयो के साथ सख्ती के साथ निपटे "” | ! लगता है यह इशारा था की अलपसंख्यकों पर उसी प्रकार बुलडोजर चलाये जैसा उत्तर प्रदेश में भगवा धारी मुख्यमंत्री कर रहे हैं | लगता हैं अब बीजेपी सरकारो ने उत्तर प्रदेश - मध्य प्रदेश और कर्नाटक में "”एकतरफा भारत "” बनाने की तैयारी कर ली हैं | संविधान और न्यायपालिका के आदेशो का जिस प्रकार अनदेखी की जा रही हैं , वह पोलैंड में सरकार द्वरा अदालतों के अधिकारो को सरकार के अधीन करने का ही प्रयास लगता हैं | परंतु पोलिस सरकार की इस कोशिस को वनहा की जनता ने उग्र आंदोलनो द्वरा वापस लेने पर मजबूर किया था | परंतु भारत में ऐसे वैधानिक मुद्दो पर जन आंदोलन होना कठिन हैं | यानहा तो हिन्दी और मुसलमान और मंदिर और मस्जिद के मुद्दे ही माहौल को गरमाते हैं ,क्यूंकी सत्ता ऐसा चाहती है , यद्यपि वह इसे इस रूप में नहीं कहती हैं | वह राष्ट्र के लिए खतरा --- देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बताती हैं | नागरिकों को संविधान के प्रति सम्मान और न्यायपालिका के प्रति आदर भाव नहीं सिखाती हैं | सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे असत्य और भ्रामक तथ्य संगठित रूप से फैलाये जाते हैं ---- जो समाज की गंगा जामुनी सभ्यता को खतम करने की कोशिस ही होते हैं | अब तो सभी को एहसास होने लगा हैं की अज़ान - हिजाब - आदि मुद्दे भी राम सेना या हिंदुवाहिनी द्वरा सत्ता के शीर्ष के संरक्षण में ही किए जाते हैं | क्यूंकी कर्नाटक की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या आज भी पुलिस जांच और अदालत के चक्कर मे चार साल से पड़ी हैं !पर उस ओर सरकार का ध्यान नहीं हैं --क्यूंकी वे नफरत फैलाने वाली ताकतों के खिल्फ लड़ रही थी |

बीजेपी अध्यक्ष जे पी नददा ने हाल में ही एक दावा किया था की काँग्रेस राज में 800 से ज्यदा हिंसक घटनाए हुई थी ,परंतु लोकसभा में एक सवाल के उत्तर मे सरकार ने स्वीकार किया की विगत सात वर्षो में [मोदी के राज़ ] में एक हज़ार से ज्यड़ा हिंसक वारदाते देश में हुई !

दंगो के बारे में सरकारे जांच कराती है , फिर जांच आयोग की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को मानने में असमर्थता बता देती है , और वे सरकार के तोशखाने /या स्टोर में धूल खाती है | इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा का 2018 में दिया गया फैसला ,अत्यंत महत्वपूर्ण है | जिसमें उन्होने हिंसक घटनाओ /दंगो के लिए जिले के अधिकारियों की ज़िम्मेदारी नियत कर दंड दिये जाने की सिफ़ारिश की थी |फैसले में उन्होने कहा था की ज़िले के अधिकारियों को जनता में तनाव के कारणो को दूर करने की कोशिस करी चाहिए | अचानक हिंसक घटना के लिए स्थानीय इंटेलिजेंस की असफलता के लिए दंडित किया जाना चाहिए | ज़िले के अधिकारी की असफलता पर कारवाई होनी चाहिए |घटना के उपरांत कानूनी कारवाई उन सभी के वीरुध होनी चाहिए जो उकसाने या इसके कारण हो | पर जबसे योगी जी ने बिना नोटिस और अदालत की अनुमति के बिना घरो को ज़मींदोज़ करने की कारवाई शुरू की है , आँय बीजेपी शासित राज्यो में यह संक्रामण कोरोना की भांति विस्तार पा रहा है |

प्रदेश में खरगोन और खंडवा में राम नवमी के जुलूस जा मस्जिद के सामने से गुजरे तब दोनों पक्षो में कहासुनी हुई और हिंसक घटना हुई | मज़े की बात यह है की आगजनी और पथराव की घटना में पुलिस समेत दोनों पक्षो के लोग घायल हुए | परंतु इस मामले में 147 लोग गिरफ्तार हुए जिनमे सिर्फ 6 ही हिन्दू थे ! इसका अर्थ यह माना जाये , जैसा की बीजेपी सरकार मान रही है की अवैध अतिक्रमण हटाने पर यह घटना हुई | उत्तर प्रदेश के मुज्जफर नगर के कैराना में भी हिन्दू लोगो ने अपने मकानो पर लिख दिया था '’’’’ मकान बिकाऊ '’’ है ! हालांकि टीवी चैनल के सामने मकान मालिक को कहते सुना गया वह भी महिला कलेक्टर के सामने की किसी ने यह लिख दिया है बाद कलेक्टर के पूछे जाने पर कहा की हमने ही लिखा हैं | यह स्थिति है |

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Apr 8, 2022

 

विधि शास्त्र की और संविधान अवहेलना है अपराधी जांच विधेयक


विधि शास्त्र में दंड की दो शाखये है 1- सुधारातमक और नजीर बनने वाली दंड व्यसथा | दुनिया के प्रजातांत्रिक देशो में अपराध का दंड अपराधी को सुधार के लिए दिया जाता हैं | और अधिनायक वादी और भ्रष्ट निर्वाचित शासन में ऐसे दंड दिये जाते हैं -जिनसे जनता में भाय व्याप्त हो | सभ्य देशो में किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने पर --- सरकार की ज़िम्मेदारी होती हैं की वह आरोपी पर उस अपराध को बिना शक की गुंजाइश के आरोपित अपराध को सिद्ध करे | यह देश के सभ्य लोकतन्त्र देशो की न्यायिक प्रणाली हैं |

वैसे अभी तक भारत को भी इसी श्रेणी के लोकतन्त्र में रखा जाता रहा हैं , जनहा आरोपी और अपराधी में फर्क किया जाता रहा हैं | कम से कम स्वतन्त्रता मिलने के बाद | भारत में अपराध नियंत्रण के लिए ब्रिटिश शासन द्वरा जो तीब कानून बनाए गए वे लगभग 120 वर्ष तक जारी रहे | परंतु अब मोदी सरकार को विभिन्न पुलिस आयोगो की सिफ़ारिशों पर फैसला लेते हुए , पोलिस को "”आरोपी "” और अपराधी के के अंतर को समाप्त करने का अधिकार देने का बिल संसद ने पारित कर दिया हैं |

अभी तक पुलिस में किसी भी अपराध के दर्ज़ होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी की जाती है | उसे यदि अदालत जमानत दे देती हैं , तब वह आम नागरिक की तरह तब तक रहता हैं , जब तक की अदालत उसे सज़ा नहीं सुना देती | सज़ा सुनाये जाने के बाद ही आरोपी को कानून की निगाह में "”अपराधी"” करार हो जाता हैं | इसके बाद जेल में उसकी फोटो ,जिसमे जेल में अलाट किए गए क़ैदी नंबर के साथ खिची जाती है | उसके दसो हाथ की उँगलियो के निशान भी लिए जाते हैं | और इस प्रकार उस क़ैदी की क्रिमिनल हिस्टरी बन जाती हैं | जो सरकार की जांच एजेंसियो के डाटा में रहती हैं |

अब आरोपी के साथ अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं होता था | सिर्फ पुलिस के रोजनामचे में उसका नाम और आरोपित अपराध के बारे में ज़िक्र होता हैं | वह एक सभ्य नागरिक रहता है ---कम से कम कानून की निगाहों में , भले ही पुलिस मी निगाहों में वह "””भला "” ना हो | अथवा उसका नाम पुलिस थाने के संदेहास्पद लोगो के रजिस्टर में हो | वैसे आज़ादी के चालीस -पचास साल तक थाने में एक ऐसा भी रजिस्टर हुआ करता था जिसमें इलाके के भले लोगो के भी नाम हुआ करते थे | जिनसे पुलिस अशांति के अवसरो पर मदद लिया करती थी | पता नहीं अब वह होता भी है या नहीं | क्यूंकी अब "”शरीफ "” वह है जो राजनेता है म भले ही उसपर सभी प्रकार के मुकदमें दर्ज़ हो !!!!

अभी तक किसी भी नागरिक की आज़ादी और निजता को केवल अदालत के आदेश पर ही बाधित किया जा सकता था | परंतु पुलिस कमिसनर प्रणाली ने इसमे सेंध लग दी हैं | अब शांति - व्यसथा के नाम पर किसी को भी "” पाबंद "” किया जा सकता है ----जिसे पुलिस "””चाहे अथवा समझे "” , भले ही उसका कोई ऐसा काम न किया हो जो कानून की नजरों में गलत हो |

हेडिंग

अभिव्यक्ति -आंदोलन और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन -अब अपराध

इस विधेयक का "”अलिखित "” उद्देश्य एक ही है – सरकार के फैसलो के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालो की आवाज़ और उन्हे बंद करके अपराधी जैसा करार देना जिससे समाज में भाय व्यापत हो जाये की नागरिक अपने द्वरा चुनी सरकार के दोष या कमियो को उजागर न कर सके !!

भारत के संविधान के अनुछेद 19 के अनुसार {का} वाक स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार और { } के अनुसार शांति पूर्वक और निरायुध सम्मेलन का अधिकार ------ समस्त नागरिकों को है | इसी तरतमय में अनुछेद 21 के अनुसार समस्त नागरिकों को प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का भी अधिकार हैं | अनुछेद 22 में उन स्थितियो को स्पष्ट किया गया है जिनमें नागरिक की गिरफ्तारी ---- का कारण बताया जाएगा और उसे वकील करने का अधिकार होगा |

अब अभिव्यक्ति का अधिकार का "”नंगा उल्लंघन "” का उदाहरण अभी कुछ दिन पूर्व सीधी जिले के में आठ पत्रकारो और रंगकर्मियो को थाने की पुलिस द्वरा पकड़ कर उन्हे नगा हवालात में रखा गया | जिसकी फोटो सोशल मीडिया में वाइरल हुई !! बाद में जब पुलिस के डीआईजी से इस व्यव्हार पर आपति जताई गयी --- तब उनका जवाब सुनने लायक था --- “” हवालात में बंदी आतम हत्या न कर ले इसलिए उनके कपड़े उतरवा लिए जाती हैं !!! अब अगर किसी महिला को बंदी बनाया जाएगा तब उसके साथ भी ऐसा ही किया जाएगा ??? अभी अपराधी पहचान बिल विधेयक्क नहीं बना है --- उस पर राष्ट्रपति के दस्तखत होने है और उसे सार्वजनिक गज़ट में प्रकाशित किया जाएगा ----तब वह अधिनियम बन जाएगा | कल्पना कीजिये जब बिल बनने पर सरकार के कारिंदे पुलिस जनो के यह हाल हैं ---तब इस कानून की ताकत हाथा पर आने से विधायक -सांसद तथा मंत्री आदि के फैसलो और उनके व्यवहार और कामो पर सवाल करने पर पत्रकारो का क्या हाल होगा ???? क्यूंकी नागरिक तो वैसे ही आतंकित है पुलिस के व्यवहार से !!!

ऐसे हालत में जब किसी एक अदना से विधायक की गैर मामूल हरकतों पर व्यंग किया जाये अथवा उस पर खबर बनाई जाये तब पत्रकारो का यह हाल किया जाये -----तो क्या इसे विधि का शासन कहा जाएगा " ? अथवा पुलिस राज कहा जाएगा जनहा कानून और मौलिक अधिकारो की कोई परवाह सरकार को नहीं है |

एक ओर सुप्रीम कोर्ट एयमेनेसटी इंडिया के पूर्व अध्यछ पारिख को अमेरिका जाते समय हवाई अड्डे पर रोक लिया जाये की-वे देश छोड़ कर नहीं जा सकते --कोई कारण भी नहीं बताया गया | सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के निदेशक को आदेश दिया की "”मात्र संदेह के आधार पर किसी के खिलाफ कारवाई करने के अपने फैसले के लिए वे पारिख से छमा याचना करे !! एक ओर न्याय पालिका नागरिकों के अधिकारो के प्रति इतनी "””संवेदनशील है वनही दूसरी ओर सीधी की घटना है और डीआईजी का बयान है जो नितांत गैर कानूनी है | पर मुख्य मंत्री शिवराज सिंह क्या उन दोषी पुलिस कर्मियों को निर्देश देंगे की वे पीड़ित पत्रकारो से माफी मांगे ! कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं , आखिर सुप्रीम कोर्ट की नजीर भी है ?