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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 8, 2012

चुनावी घोषणा पत्र एक छलावा या जनता से किया गया एक पवित्र वादा?

चुनावी घोषणा पत्र एक छलावा या जनता से किया गया एक पवित्र वादा ? यह  सवाल इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया हैं की अगले कुछ समय में गुजरात और हिमाचल में चुनाव होने  वाले हैं ।सभी बड़ी राजनितिक पार्टियाँ  जनता के सामने बड़े -बड़े वायदे कर के सत्ता प्राप्त करने के लोकतान्त्रिक आज़ादी का प्रयोग करेंगे ।पर सवाल यह हेंकी आम तौर पर इन वायदों का बुरा हाल होता हैं .। ऐसा लगता हैं की मतदाताओ को लुभाने के लिए कुबेर का खज़ाना खुल जाता हैं ।उदाहरण  के लिए उत्तर प्रदेश  में समाजवादी पार्टी ने सभी को काम सुलभ करने का वादा किया था , छात्रो को टैबलेट और लैपटॉप देने की बात कही गयी थी ।परन्तु जब रोजगार दफ्तरों में काम मांगने वालो भरी भीड़ आने लगी ,तब नौकरी के आवेदन पत्रों को लेकर दफ्तर की रद्दी में  फेके जाने की खबरे आने लगी । जब इन खबरों ने राजनैतिक आंच  देनी शुरू की तब वायदे में संशोधन किया गया की स्नातक पास लोगो की नौकरी लगेगी ।महिलाओ को काम देने के नियम थोडे कड़े किये गए ।जैसे भारतवर्ष में विधायिका  में बैठे जन - प्रतिनिधि कानून बनाते हैं , परन्तु कानून की आत्मा का गला रूल्स के सहारे  अफसर घोट देते हैं ।कलंक नेता के माथे और माल अफसर के पास ! किसान को क़र्ज़ न चूका पाने की स्थिति में आतम हत्या करनी पड़ती हैं , पर बड़े -बड़े उद्योगपति  अरबो रुपये का कर्ज़  डकार जाते हैं ,और सरकार  औद्योगिक  उन्नति के नाम पर इस राशी को बत्ती खाते में दाल देती हैं । हैं न मज़ेदार किस्सा !  
                                       अभी किंग  फिशर हवाई कंपनी का ही मामला हैं हजारो करोड़ रुपये सरकारी बैंको के अरबो रुपये डकार गए पर मालिको या प्रबधन के विरुद्ध कोई करवाई नहीं हुई । 
                       
                                           लेकिन अभी बात चुनावी घोषणा  पत्र की पवित्रता पर ---तो बात थी की छात्रो को लैपटॉप  बाँटने की पर उत्तर प्रदेश की सरकार  को एक साल बीत जाने के बाद भी कोई ऐसी कंपनी नहीं मिल पायी जो उनके अनुसार टैब लेट       की आपूर्ति कर सके ।अब सरकार कह रही हैं की हमारी मंशा तो साफ़ हैं पर कोई कंपनी ही नहीं तैयार हैं ? सवाल हैं की जब वादा किया था तब वित्तीय आंकलन किया था की प्रदेश में कितने छात्र-छात्राओं को यह उपकरण देना होगा ? इस पर कितना खर्च आएगा ?क्या सरकारी खज़ाना इस व्यय को सह पायेगा ?  हकीक़त यह हैं की चुनाव के जोश में नेताओ में होड़ मची थी की कौन कितना बड़ा लुभावना वायदा मतदाताओ से कर के उनके वोट कबाड़ सकता हैं । जब प्रश्न वायदे को पूरा करने का आया तब सभी समस्याएं सामने आयी |इसे क्या समझे की वादा करते समय इसे पूरा करने की कवायद का विचार ही नहीं आया ।हालाँकि केंद्र सरकार का भी इस सम्बन्ध में ट्रैक रिकॉर्ड कोई बहुत अच्छा नहीं हैं , जिस आकाश उपकरण को दो हज़ार में छात्रो -छात्राओ को सुलभ करने की बात थी ,वह  भी अभी तक पूरी नहीं हो पायी हैं ।अब अगर केंद्र नहीं अपने कहे हुए को पूरा नहीं कर पा  रहा हैं  तब उत्तर प्रदेश का क्या कहना ?    

                   एक और मुद्दा हैं  किसानो को बिजली देने का ,-- सभी राजनैतिक दलों  में होड़ लगी रहती हैं ।कोई किसानो को सस्ती बिजली देने का वादा करती हैं , तो कोई चौबीस घंटे विद्युत् आपूर्ति की बात करता हैं ,तो अकाली दल ने  तो मुफ्त में बिजली देने की बात की ,। परिणाम यह हुआ की  सभी प्रदेशो के विद्युत् बोर्ड लम्बे -लम्बे  घाटे  में चल रहे हैं । हालत यह हो गए हैं की सभी प्रदेश सरकारे  बिजली की कमी से दो -चार हो रही हैं ।अब अगर वादा न पूरा हुआ तो ग्रामीण छेत्र के मतदाता तो सरकार के खिलाफ हो जायेंगे ।यही डर  सभी सत्तारूद  दलों को प्रदेशो मैं सताता रहता हैं । परिणाम स्वरुप बोर्ड  घाटे में चलते रहते हैं ।हर साल के बजट में राज्यों को अरबो रुपये का इंतजाम बिजली के मद में करना पड़ता हैं ।अगर सभी दल यह समझ ले की राज्यों की आधारभूत संरचना  की कीमत पर राजनैतिक वायदे आखिर कार राज्य को रसातल में ही ले जायेंगे ।

                                अब इन सब बातो का तात्पर्य  यही हैं की सरकार बनाने के लालच में शासन को ही न लंगड़ा कर दे ।