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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 31, 2019


बलात्कारी -आतंकी को फांसी दो - 22 साल बाद अदालत ने निर्दोष माना ?र्ंप


आए दिन अखबारो मैं दुर्घटनाओ मैं मौत होने के बाद "” गुस्सायी भीड़ "” दोषी को फांसी दो के नारे लगाती हैं ! सरकार के मंत्री और पुलिस अधिकारी भी "”कठोर से कठोर कारवाई करने का बयान देते हैं | दोषी को बकशा नहीं जाएगा – राजनेता जनता के आक्रोश को शांत करने के लिए यह भी आश्वशन देते हैं | परंतु हक़ीक़त मैं देखा जाए तो क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देशा मैं विगत बीस सालो मैं मात्र 48 लोगो को ही फांसी की सज़ा का पालन हुआ है ! इसके दो कारण हैं , पहला तो पुलिस या जांच एजेंसी की कारवाई ना तो पर्याप्त सबूत पाती हैं , इसलिए अदालत मैं उसकी टाय-टाय फिस्स हो जाती है | फिर पुलिस या सीबीआई अथवा एनआईए सारा दोष अदालत के माथे लगा देते हैं | चूंकि हमारे देश मैं अपने दायित्वों के प्रति "” Accountbility “” मैं असफल होने पर दोषी अधिकारी पर कारवाई करने का कानून नहीं हैं | गौर तलब है की पड़ोसी देश पाकिस्तान मैं ऐसा कानून हैं , जिसके तहत प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति के वीरुध मुकदमे चलाये गए हैं | नवाज़ शरीफ और आसिफ ज़रदारी इसी कानून के तहत जेल मैं हैं ,तथा परवेज मुशरफ देश छोड़ कर भागे हुए हैं |
उन्नाव के बीजेपी विध्यक कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा एक लड़की से सतत बलात्कार किए जाने ,फिर विरोध करने पर उसके पिता को जेल भिजवा देने ,और पुलिस की हिरासत मैं मौत हो जाने की घटना के बाद जन आक्रोश पर उत्तर प्रदेश मैं रामराज का "”दावा"” करने वाले आदित्यनाथ योगी की सरकार को मामले की जांच सीबीआई को देनी पड़ी | पिछले सप्ताह जब लड़की उसकी चाची और उसके वकील रायबरेली से उन्नाव लौट रहे थे , तब एक ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मार दी | परिणाम स्वरूप चाची और एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गयी | शिकायत करने वाली लड़की और उसके वकील बुरी तरह घायल हो गए !! फिलवक्त उनका इलाज़ लखनऊ मेडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर मैं चल रहा हैं | प्रदेश के डीजी इसे एक "”सड़क दुर्घटना बता रहे हैं "” !! ट्रक की नंबर प्लेट को ग्रीस से छिपा दिया गया था | बजाय इसके की पुलिस इस काम को "”अपराध "” मानती , बह कहती है की ट्रक मालिक ने पाइस देने वालो की नजर से बचाने के लिए नंबर प्लेट छुपा दी थी ---वाह रे वाह यूपी पुलिस ! इस घटना को लेकर मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी मैं कराये जाने की मांग को लेकर , लखनऊ और दिल्ली मैं जन प्रदर्शन तो हुए ही , पर संसद के दोनों सदनो मैं विपछि सदस्यो ने गृह मंत्री अमित शाह से इस मामले मैं बयान की मांग की | जो सरकार ने अभी तक अनसुनी कर दी | इंदौर मैं नगर निगम को बैट से मरने वाले बीजेपी विधायक आकाश विजयवर्गीय की हरकत से नाराज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जो गुस्सा दिखाया था ,उससे लोगो को आभास हुआ था की सार्वजनिक जीवन मैं पार्टी सदस्यो के व्यवहार को लेकर वे खासे चिंतित हैं | परंतु उन्नाव के विधायक की इस हरकत पर उनका "”मौन "” रहना उस घटना को फीका कर देता हैं | जबकि आकाश बीजेपी के बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के चिरंजीव हैं ! अब या तो कुलदीप सेंगर का मसला पार्टी के लिए प्रतिस्था बन चुका हैं , अथवा योगी जी ने इसे अपने सम्मान का प्रश्न बना चुके हैं ---क्योंकि सेंगर भी एक ठाकुर है !!!
ऐसे उदाहरण जब समाज के मन को झकझोरते रहेंगे और लोगो के मन मैं सवाल उठते रहेंगे तब क्या लोगो की बलात्कारी और -हत्यारे को फांसी की मांग का कोई औचित्य बचेगा ???
अब बात करते हैं फांसी की सज़ा पाये अपराधियो की ---- बॉम्बे हाइ कोर्ट ने पुरुषोतम बोरते और कोकड़े ने 2007 मैं दो युवतियों को टॅक्सी मैं बैठाकर पहले उनके साथ बलात्कार किया फिर उनकी हत्या कर दी | हत्यारो को सेशसन अदालत से 2012 मैं फांसी की सज़ा मिली | जिसे हाइ कोर्ट ने बहाल रखा | सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील को खारिज किया | राज्यपाल ने हत्यारो की दया याचिका को 2916 मैं खारिज कर दिया | फिर राष्ट्रपति ने भी इसे जघन्य अपराध मानते हुए 2017 मैं माफी देने से इंकार कर दिया | परंतु महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग ने लापरवाही बरतते हुए फांसी की सज़ा की तारीख तो तय कर दिया ----परंतु डैथ वारंट हाइ कोर्ट से हासिल नहीं किया !! वरन सेशान अदालत को फांसी देने की तारीख नियत करने का निर्देश दिया | अब बिना डैथ वारंट के किस को भी फंदे से लटकाया नहीं जा सकता | यह हाइ कोर्ट से जारी किया जाता हैं ! फलस्वरूप दोनों अपराधियो की फांसी की सज़ा 35 साल की क़ैद मैं बादल दी गयी ! तो यह हैं फांसी पाये अपराधियो के मामले मैं सरकार की लापरवाही | मजे की बात है की ---इस मामले मैं महाराष्ट्र सरकार इस भयानक गड़बड़ी के लिए किसी को भी दंडित नहीं करने के मूड मैं हैं !!!
बलात्कार के हालिया के समय मैं सबसे जघन्य और चर्चित मामले "” निर्भया"” कांड के के भी किसी अपराधी को फांसी की सज़ा नहीं दी जा सकी ! जनमत के दबाव मैं सरकार ने ऐसे मामलो मैं फांसी की सज़ा को "”अनिवार्य "” बनाने हेतु आवश्यक विधि बनाने की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश वर्मा के नेत्रत्व मैं आयोग गठित किया | उन्की भी रिपोर्ट मैं सिफ़ारिश की गयी की फांसी की सज़ा के लिए भारतीय दंड संहिता मैं की धारा 303 है , जिसके दोषी को सिर्फ फांसी की सज़ा का प्रावधान हैं | अन्य मामलो मैं फांसी के साथ ही आजीवन कारावास की सज़ा का भी विकल्प हैं | घटना की गंभीरता और अभियुक्तों की नियत को देख कर सज़ा दी जाती हैं | अतः प्रत्येक बलात्कार के मामले मैं फांसी की सज़ा देना प्राक्रतिक न्याया के वीरुध होगा |

परंतु भीड़ तंत्र मैं तो आजकल गाय चुराने या गौकाशी करने के शक मैं ,अथवा टोना -टोटका के संदेह मैं गावों मैं आठ - दस लोगो की भीड़ कानून अपने हाथ मैं लेकर "”मौके पर ही फैसला कर देती हैं "” !
मध्यप्रदेश की सरकार ने गाय के परिवहन को कानूनी जामा देने के लिए हाल ही मैं विधान सभा मैं एक कानून पास किया हैं | जिसके अनुसार अनुमति प्राप्त परिवहन कर्ता को कोई परेशान नहीं कर सकेगा ,और पुलिस को फौरी कारवाई करनी होगी | राजस्थान ने भी आनर किलिंग और भीड़ द्वरा पशुओ को ले जाने वालो को दंडित करने का कानून बनाया हैं | जिस पर बीजेपी की प्रतिकृया थी की "”आखिर इस कानून की जरूरत क्या हैं "” ! जबकि उसी प्रदेश मैं गाय को कत्ल करने के "”संदेह "” मैं तथा कथित गौ रक्षको ने तीन मुस्लिम युवको को मौत के घाट उतार दिया था !

सवाल यह हैं की कानूनों के बनने से अपराध नहीं रुका करते , उनका अनुपालन जब तक सही और निसपक्ष तरीके से नहीं होगा तब तक अपराधियो के मन मैं दर नहीं बैठेगा | माना की ऐसे अपराधी को अदालत के सामने पुलिस खड़ा भी कर देती हैं | पर सबूत मैं खामी की वजह से वे छूट जाते हैं | तब वे और बेखौफ हो जाते हैं – की कानून और अदालत ने हमारा क्या कर लिया !!!
वनही दूसरी ओर आतंकी होने के "”शक "” मैं नेशनल इंवेस्टिगटिंग एजेंसी जिन लोगो को "”आतंकी बता कर जमानत भी नहीं मिलने देती , उसके द्वरा पकड़े गए नागरिक बहुतायत से अदालत से बाइज्जत बारी हो जाते हैं __ पर तब तक उनकी ज़िंदगी के बहुमूल्य साल बर्बाद हो जाते हैं | विगत सालो मैं आतंकी होने के मामलो मैं इस जांच एजेंसी का रेकॉर्ड बहुत ही खराब रहा हैं | चाहे वह दिल्ली का बम बनाने वाला "”टुंडा "” रहा हो अथवा केरल के छ मुस्लिम पूना बेकरी बम कांड के अभियुक्त रहे हो | सभी को अदालतों ने सबूतो के अभाव मैं बारी कर दिया | हाल ही मैं 1996 दौसा बम कांड और दिल्ली के लाजपत नगर मैं हुए बम कांड के आरोपी आगरा निवासी रईस बेग को 1997 मैं गिरफ्तार किया गया " इन्हे इन आतंकी घटनाओ का दोषी बताया गया था | आतंकी विरोधी कानून के अनुसार अभियुक्त को जमानत अथवा पैरोल नहीं मिलती | सिवाय कुछ परिस्थितियो के , जैसे राजीव हत्यकाण्ड की अपराधी नलिनी को मद्रास हाइ कोर्ट ने पैरोल दिया हैं | गौर कीजिये की सीबीआई हो या एन आइए इन जैसी "” महान जांच एजेंसियो को इसकी परवाह नहीं होती की , की किसी व्यक्ति की आज़ादी को छिनने का अर्थ क्या होता हैं ! अभी सीबीआई के निदेशक और अतिरिक्त निदेशको की खिचतानी की बात जब सामने आई तब भी सरकार के जिम्मेदार लोगो ने इन दोनों को जबरिया अवकाश पर नहीं भेजा !! जबकि ये दोनों एक दूसरे के खिलाफ भी केस बनाने और रिश्वतख़ोरी के आरोप लगा रहे थे !! तब ऐसे अफसर आम नागरिक रईस बेग की 22 साल की हिरासत की क्या परवाह करेंगे ? उधर मोदी सरकार ने मौजूदा कानून की परिधि भी बड़ा कर उन्हे सारे देश मैं कारवाई का अधिकार दे दिया हैं < अब ऐसे मैं भगवान ही मालिक हैं ----नागरिक की आज़ादी का !

अब अगर कोई सभ्य लोकतान्त्रिक देश होता तब जिन अफसरो ने लोगो की आज़ादी को छिना था वे सस्पेंड तो होते ही साथ ही उनपर अदालत मैं "””बदनीयती से मुकदमा "” चलाने का अपराध भी लगता | परंतु भारत के वर्तमान लोकतन्त्र मैं पुलिस और अखिल भारतीय सेवाओ के अधिकारियो को अपराध प्रक्रिया संहिता का कवच मिला हुआ हैं | जिसके कारण ये लोग बेलगाम होकर कानून का नहीं अपने राजनीतिक आक़ाओ के हुकुम का काम करते हैं |