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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 29, 2013

क्यो नहीं चाहते औद्योगिक घराने काँग्रेस की वापसी दिल्ली मे ?

क्यो नहीं चाहते औद्योगिक घराने  काँग्रेस की वापसी दिल्ली मे ?

                          भूतपूर्व  मुख्य मंत्री खंडुरी और रतन टाटा तथा जनता दल के दो -एक सांसदो मे क्या कॉमन हैं ? कोई बहुत ज्यादा कठिन सवाल नहीं है | इन सब की एक शिकायत हैं -- दिल्ली मे मनमोहन सिंह की सरकार | ऐसा क्यों हैं इसका कारण समझने के लिए हुमे कुछ घटनाओ को परखना होगा |  इन सभी की मांग हैं की देश की दुर्व्यसथा  के लिए मनमोहन सरकार और सोनिया गांधी का नेत्रत्व | शिकायत भी हैं की देश की अर्थव्यसथा को ''ठीक'''करने के लिए एक सख़त और प्रभावशाली  नेता की ज़रूरत हैं , जो मनमोहन सिंह नहीं हैं |

                                          इनकी नजरों मे नरेंद्र मोदी ही ऐसे नेता हैं जिनमे दोनों ही गुण हैं |  नेत्रत्व के कठोर होने का क्या टेस्ट है ? आखिर इस कठोरता का क्या मतलब हैं ?  इसका मतलब हैं की नेता ऐसा हो ""जिसका हुकुम"" कोई अनदेखा न कर सके | अर्थ यह हुआ की नेता का फरमान ही कानून बन जाये | क्योंकि अभी तक  2जी या 3जी की जांच कानून के सहारे चल रहा हैं | और उन मामलो मे  देश के बड़े - बड़े औद्योगिक  घरानो के मालिको के नाम जांच मे सामने आए हैं | जो इन बड़े नामची  हस्तियो को काफी नागवार गुजरा है | अभी तक  आर्थिक घोटालो मे इन लोगो को ''भगवान की गाय '' मान कर अलग रखा जाता था | पहली बार  जब सीबीआई  और अदालत के सामने आना पड़ा | तब काफी तकलीफ हुई |

                      क्योंकि अभी   तक  देश के बड़े - बड़े नेताओ से मेलजोल रखने वालों इन ''बड़े लोगो'' को सत्ता के गलियारो मे और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगो द्वारा दी जाने वाली तरजीह  प्रशासन  और कानून का पालन करने वालों को सहमा देती थी | पर इस बार सत्तारूद दल के नेताओ और मंत्रियो तथा ''इन सेठो'' पर पुलिसिया कारवाई हुई तो तिलमिला उठे | क्योंकि इन औद्योगिक  घरानो के मुखिया लोगो को आदत थी सीधे बात करने और अपना काम करवाने की | कोई भी अफसर अगर उनके रास्ते मे आता तो ये उसका तबादला करा देते अगर कोई नियम -कडा आड़े आता तो उसे भी बदलवा देने की ताकत इनके पास थी |

                         इन्हे तो ऐसा नेता मंजूर हैं जो जनता को प्रशासन दे या न दे इनके प्रोजेक्ट पास करवा दे और इनके माल को खरीदे भले ही वह घटिया स्तर का हो , बैंको  से कर्ज़  मिलता रहे  ,फिर भले ही उसे वापस करने की छमता हो या न हो | इनकी सनक ही इमकी  महत्वा कांछा  होती हैं , उसके पूरा करने मे कोई भी रोड़ा बर्दाश्त नहीं कर पाते |  रत्न टाटा  जब कहते हैं की निवेशको का  विश्वास भारत से उठ गया हैं , तब वे खुद अपनी देसी कंपनियो की हालत की ओर गौर नहीं करते | भरोषा नहीं होता की टाटा मोटर्स ऐसी कंपनी के जमशेदपुर प्लांट मे मजदूर से लेकर गेनरल मानेगेरो को भी ''ले ऑफ '''किया जा रहा हैं | पर यह हक़ीक़त हैं | अपने उत्पाद की गुणवत्ता  के बजाय जब औद्यगिक घराने विज्ञापनो के सहारे अपनी गिरती साख को ''टेका'' लगते हैं तब इनके   शेयर एक सौ दस से गिर कर पाँच और दस रुपये पर बाज़ार मे बिकते हैं | आज देश मे उत्पादन करने वाली इकाइयो की हालत ठीक क्या बहुत बुरी हैं , परंतु क्या कभी इनहोने ''ईमानदारी''से धंधा किया हैं?


                   इन घरानो को ''फरमान'' से सरकार चलाने वाला नेता मंजूर हैं क्योंकि ये उसकी ''कीमत '' चुका देंगे और अपना काम निकाल लेंगे | क्या रत्न टाटा ने कभी अपने   शेयर  धारको को सिंगूर से प्लांट हटाने की ''कीमत'' के बारे मे बताया ? शांति व्यसथा ये सभी चाहते हैं पर इनके कारण बेघर होते किसान जिनकी रोज़ी - रोटी का साधन ''ज़मीन'' चीनी जा रही हो उसका ध्यान नहीं हैं |  नॉर्थ  ईस्ट के चाय बागानो द्वारा टाटा के अधिकारियों द्वारा लाखो रुपये ''उग्रवादी संगठनो ''' द्वारा दिये जाना मंजूर हैं , पर किसान का मुआवजा की दर  बड़ाये  जाने पर इन्हे '  मे तकलीफ हैं , क्योंकि वह ''मांग'' करता हैं और उग्रवादी  रकम मांगते हैं , वह भी धमका कर | यह साबित करता हैं की ये सिर्फ ''डर'' की भाषा ही समझते हैं | इसीलिए ऐसा नेता चाहते हैं जो लोगो को इनके कहने पर डरा सके  बस इतनी सी बात हैं ....................................................

                    

जीवेम शरद: शतम एवं पाये दो गुनी पेंशन -भत्ते , बीबी -बच्चे भी निहाल आई ए एस का कमाल

जीवेम  शरद: शतम  एवं पाये  दो गुनी पेंशन -भत्ते , बीबी -बच्चे भी                      निहाल  आई ए एस का कमाल

                 बड़ी - बड़ी खबरों के बीच मे एक छोटी सी खबर थी ,पर जिसका असर बहुत बड़ा होगा | क्योंकि  नौकरशाही  के ब्रम्हा  यानि ''अखिल भारतीय सेवाए "" अर्थात आइ ए येस और पुलिस - विदेश - वन तथा सहयोगी  सेवा के लोगो के अवकाश प्राप्त लोगो की ""पेंशन और भत्ते मे अब क्रमिक रूप  से वढोतरी  भी होगी | और इतना ही नहीं साठ साल तक की नौकरी मे तो ""निश्चित प्रोन्नति   और  विभिन्न वेतनमान  तो लिए ही पर अब वे  पेंशन  मे भी  यही सुविधा  प्राप्त  करेंगे | हैं  न मज़े की बात !

                       इस सुविधा का लाभ अब ""साहब " के  ज़िंदा रहने  या न रहने का मोहताज नहीं हैं ,  नए नियमो के अंतर्गत ''मेम  साहब को यह सुविधा  साहब के परलोक सिधार जाने के बाद भी मिलेगी | हैं न मज़े की बात की एक ओर सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र '''तदर्थवाद '''पर चल रहा है  अस्पतालो मे डाक्टरों को भी ''वेतनमान '' नहीं वरन 'फिक्स' पे पर नियुक्त किया जा रहा हैं , ''वही ''ब्रम्हा जी अपने लिए सुविधा - लाभ - भत्ते जुटाने मे लगे हैं | जो सुविधा उन्होने अपने लिए ली हैं क्या वही सुविधा वे देश की रक्षा करने वालों अर्थात सशस्त्र  सेनाओ को भी देंगे ?  क़तई नहीं | 

                              फिर क्या आधार हैं इस नए पेंशन कानून का ? शायद पर्सनल  विभाग अर्थात  डी ओ पी टी -- इस बात की ज़हमत न उठाए क्योंकि केंद्र का यह कदम  प्रादेशिक सेवाओ के लिए नज़ीर  यानि की उदाहरण बनेगी | मनमोहन सरकार की मजबूरी इस फैसले मे साफ दिखती हैं , अन्यथा लोकसभा चुनाव की संध्या पर ''इतना गैर बराबरी '' को जन्म देने वाले कदम का कोई औचित्य नहीं सीध किया जा सकता |सनातन धर्म को --   जातियो मे विभाजित करने और उनमे  छुआ -छूत जैसी अमानवीय प्रथा के लिए  दोषी  बताया जाता है  , यह कदम भी  कुछ - कुछ वैसा ही है | वैसे सनातन धर्म मे  कर्म के आधार पर ही वर्ण का  वुभाजन किया गया था , परंतु वर्गो मे छुआ छूत की कुप्रथा  कालांतर मे ''धर्म''के ठेकेदारो ने  मै  सर्व  श्रेष्ठ की घोसणा''' करके समाज मे भेद और विद्वेष का बीज बो दिया | वैसा ही यह [ नेहरू के शब्दो ]   लौह कवच केवल अपनी रक्षा के लिए  प्रयासरत है , देश अथवा नागरिकों के लिए नहीं
                              
               प्रशासन  के इन नियंताओ  मे कही  भय तो नहीं समा गया की , उनके फैसलो से ''आने वाले  समय ''मे  उनकी पेन्सन रुपये के गिरते भाव के कारण '''बेदम'' न हो जाये ? वैसे देश के आर्थिक फैसले इसी नौकरशाही  के भाई - बिरादर द्वारा लिया गया है | अब पूरे देश को आर्थिक भँवर मे डाल कर खुद  का बुढापा  सूरक्षित करने की तो जुगत नहीं हैं ? सवाल तो उठेंगे ही ---अब जवाब के ''रूप''मे सामने क्या आता हैं यह समय अर्थात काल ही बताएगा .........................