अब ठेका मजदूरो का भी ठेका मूल नियोक्ता का हैं
आज कल भले ही निजी संस्थान हो या सरकारी अथवा अर्ध सरकारी सभी एक रुपये मे तीन अठन्नी भुनाने के फेर मे रहते हैं | इसी कारण स्कूल कॉलेज हो या फ़ैक्टरि अथवा मिल सभी जगह नियोक्ता या आम शब्दो मे कहे तो मालिक ''ठेके'' पर मजदूर रखने के मूड मे रहता हैं | इसका एक कारण होता हैं की यदि उसी काम के लिए किसी कामगार की भर्ती करे तो उसे वेतन - भत्ते के साथ सुविधाए भी देनी होती हैं | जो की उनके लिए काफी खर्चीला होता हैं | अतः वे पतली गली से ''ठेके'' पर उस काम को कराते हैं , जिस से वह काम सस्ते मे निपट जाता हैं , साथ ही अगर कोई दुर्घटना होती हैं तो वह फ़ैक्टरि कानून से बचा रहता हैं |
यानि फायदा आप का और नुकसान सामने वाले का | भारत सरकार की भी अनेक संस्थानो मे जनहा विशाल पैमाने पर उत्पादन किया जाता हैं वंहा भी मैनेजर इसी प्रथा को अपनाते हैं | इस प्रकार से उनका तो काम सस्ते मे हो जाता हैं परंतु श्रमिक नुकसान मे रहता हैं | ठेके के मजदूर कुछ दिन या महीने तक रहते हो और एक अवधि के बाद उन्हे स्थायी कर दिया जाता हो तो भी बात समझ मे आती हैं , परंतु सालो - साल गुजर जाते हैं और वह ''ठेके'' मे ही भर्ती होता हैं और उसी स्थिति मे वह ''मर '' भी जाता हैं \ प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार के विभाग हो अथवा संस्थान हो सभी जगह यह छूत की बीमारी लगी हैं | बात सिर्फ इतनी सी हैं की ''कम लागत मे अधिक लाभ '' हो | जबकि केंद्र या प्रदेश सरकारो के सैकड़ो कानून श्रमिकों की भली के लिए बने हैं परंतु उनको लागू करवाने वाली ''शाखा'' को इतना कमजोर बना के रखा गया हैं की वे सिर्फ किताबों मे बंद हो के रह गए हैं |
परंतु जैसा की एक कहावत हैं की सोलह साल बाद ''घूरे'' के भिऊ दिन बहुरते हैं , मतलब की उप्पेछित को भी न्याय मिलता हैं , सो बॉम्बे हाइ कोर्ट ने अपने एक फैसले मे ''स्पष्ट कर दिया हैं की ठेके के मजदूर की ज़िम्मेदारी भी उस नियोक्ता की होगी जिसका काम वह करता हैं ,,न की उस ठेकेदार की जो उसे वंहा पर लाया हैं ,और काम करा रहा था | मामला यह था की महिंद्रा अँड महिंद्रा के वाहनो को लाने ले जाने का काम कंपनी ने एक फ़र्म को दे रखा था , वाहनो के परिवहन मे एक ड्राईवर की दुर्घटना मे मौत हो गयी | यूनाइटेड इंडिया इन्स्योरेंस ने ड्राईवर की मौत का हरजाना देने से यह कहते हुए मना कर दिया की वह कंपनी का कर्मी नहीं था | इस पर अदालत ने फैसला दिया की बीमा की राशि देने की ज़िम्मेदारी महिंद्रा अँड महिंद्रा की हैं | चूंकि वही मूल नियोक्ता हैं , और मरने वाला उनके ही दायित्व को पूरा कर रहा था | यह ऐतिहासिक फैसला बीमा कंपनियो मे कितनी समझ देगा भविस्य की बात हैं
आज कल भले ही निजी संस्थान हो या सरकारी अथवा अर्ध सरकारी सभी एक रुपये मे तीन अठन्नी भुनाने के फेर मे रहते हैं | इसी कारण स्कूल कॉलेज हो या फ़ैक्टरि अथवा मिल सभी जगह नियोक्ता या आम शब्दो मे कहे तो मालिक ''ठेके'' पर मजदूर रखने के मूड मे रहता हैं | इसका एक कारण होता हैं की यदि उसी काम के लिए किसी कामगार की भर्ती करे तो उसे वेतन - भत्ते के साथ सुविधाए भी देनी होती हैं | जो की उनके लिए काफी खर्चीला होता हैं | अतः वे पतली गली से ''ठेके'' पर उस काम को कराते हैं , जिस से वह काम सस्ते मे निपट जाता हैं , साथ ही अगर कोई दुर्घटना होती हैं तो वह फ़ैक्टरि कानून से बचा रहता हैं |
यानि फायदा आप का और नुकसान सामने वाले का | भारत सरकार की भी अनेक संस्थानो मे जनहा विशाल पैमाने पर उत्पादन किया जाता हैं वंहा भी मैनेजर इसी प्रथा को अपनाते हैं | इस प्रकार से उनका तो काम सस्ते मे हो जाता हैं परंतु श्रमिक नुकसान मे रहता हैं | ठेके के मजदूर कुछ दिन या महीने तक रहते हो और एक अवधि के बाद उन्हे स्थायी कर दिया जाता हो तो भी बात समझ मे आती हैं , परंतु सालो - साल गुजर जाते हैं और वह ''ठेके'' मे ही भर्ती होता हैं और उसी स्थिति मे वह ''मर '' भी जाता हैं \ प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार के विभाग हो अथवा संस्थान हो सभी जगह यह छूत की बीमारी लगी हैं | बात सिर्फ इतनी सी हैं की ''कम लागत मे अधिक लाभ '' हो | जबकि केंद्र या प्रदेश सरकारो के सैकड़ो कानून श्रमिकों की भली के लिए बने हैं परंतु उनको लागू करवाने वाली ''शाखा'' को इतना कमजोर बना के रखा गया हैं की वे सिर्फ किताबों मे बंद हो के रह गए हैं |
परंतु जैसा की एक कहावत हैं की सोलह साल बाद ''घूरे'' के भिऊ दिन बहुरते हैं , मतलब की उप्पेछित को भी न्याय मिलता हैं , सो बॉम्बे हाइ कोर्ट ने अपने एक फैसले मे ''स्पष्ट कर दिया हैं की ठेके के मजदूर की ज़िम्मेदारी भी उस नियोक्ता की होगी जिसका काम वह करता हैं ,,न की उस ठेकेदार की जो उसे वंहा पर लाया हैं ,और काम करा रहा था | मामला यह था की महिंद्रा अँड महिंद्रा के वाहनो को लाने ले जाने का काम कंपनी ने एक फ़र्म को दे रखा था , वाहनो के परिवहन मे एक ड्राईवर की दुर्घटना मे मौत हो गयी | यूनाइटेड इंडिया इन्स्योरेंस ने ड्राईवर की मौत का हरजाना देने से यह कहते हुए मना कर दिया की वह कंपनी का कर्मी नहीं था | इस पर अदालत ने फैसला दिया की बीमा की राशि देने की ज़िम्मेदारी महिंद्रा अँड महिंद्रा की हैं | चूंकि वही मूल नियोक्ता हैं , और मरने वाला उनके ही दायित्व को पूरा कर रहा था | यह ऐतिहासिक फैसला बीमा कंपनियो मे कितनी समझ देगा भविस्य की बात हैं