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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 12, 2021

 

धरम से जाति और अब आरक्षण से समाज में सद्भाव


आपातकाल के दौरान देश के सांविधान में एक क्रांतिकारी संशोधन किया गया था इस प्रक्रिया में 42 वा था | इसें कहा गया था की "” भारत संप्रभु समाजवादी ध्रमनिरपेक्ष लोकतन्त्र गणराज्य है "” प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के एक मार्गदर्शक बल्ल्भ्भई पटेल हैं ,जिनकी याद में उन्होने दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनवाई है | 1931 के कराची में काँग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष पद से संभोधित करते हुए कहा था "”मैं भारत एन समाजवादी गणराजय चाहता हूँ " उन्होने चार उद्देश्य भी कार्यकर्ताओ के सम्मुख रखे थे –

1- जाति प्रथा और धार्मिक अंधविसवासों का खत्म हो

2-किसानो और मजदूरो को समाजवादी कार्यक्रम के आधार पर संगठित किया जाये |

3- स्त्रियो की सार्वजनिक भूमिका मे बदलाव हो

4- नौजवानो को अनुशासन सिखाया जाए

अब 127वे सविधान संशोधन ने तो बल्लभ भाई के सपनों को चकनाचूर कर दिया हैं | जाति गत आरक्षण राजनीति एन एन तो नहीं हुआ --पर शिक्षा और सरकारी सेवाओ एन किया गया , वह भी सुप्रीम कोर्ट की नियत सीमा से अधिक ! इतिहास में 1931 और 1978 तथा 2021 की तिथिया अंकित हो गयी जो एक दूसरे की विरोधाभाषी हैं |

पर इसी समय देश के अनेक हिस्सो से जातिगत जनगणना की जोरदार मांग भी उठी | जिसे सरकार ने मानने से इंकार कर दिया ! सवाल उठता हैं की जब शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्राविधान किया हैं तब विधान सभाओ और लोकसभा तथा अन्य निकायो में क्यू नहीं ?

मजे की बात यह हैं की मोदी सरकार ने जातिगत आरक्षण के लिए संविधान को बदलने की कोशिस की तो की , परंतु राजनीति में अर्थात विधान सभाओ और लोकसभा में जातिगत आरक्षण से इंकार किया | इतना ही नहीं स्त्रियो के आरक्षण की सुविधा केवल स्थानीय निकायो तक ही सीमित रही , आखिर क्यू ?

देश ने विगत सात वर्षो में दो मुख्य धरमो के बीच कट्टरता के कारण जिस प्रकार नफरत का वातावरण बना हैं , वह अब और आगे बड़ा दिया हैं --- 124वे संविधान संशोधन ने | इसके द्वरा राज्यो को यह आज़ादी दी गयी हैं की वे अपने छेत्र की पिछड़ी जातियो

को 24 प्रतिशत आरक्षण दे सकेंगे | यदि सर्वोच्च न्यायालय ने रोक नहीं लगाई | वैसे अभी यह रोक जारी हैं | वैसे धरम के आधार पर कोई आरक्षण नहीं हैं | परंतु राजनीतिक दलो ने फूँक मारकर इन्हे वोट बैंक में बदलने की पूरी कोशिस की हैं |

वैसे ब्रिटिश हुकूमत ने धर्म और जाति के आधार पर तथा -पेशे के आधार पर प्रांतो की धारा सभाओ में स्थान आरक्षित किए थे |

1934 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में मुस्लिम , सिख और भारतीय ईसाइयो तथा एयरोपियन समुदाय को आरक्षण दिया गया था | इतना ही नहीं पिछड़े छेत्र और जन जातियो को भी यह सुविधा थी |इतना ही नहीं जो काम हमारे संविधान निर्माताओ से बिसर गया -वह था महिला आरक्षण , ब्रिटिश सरकारने उसका भी प्रविधान किया था | इतना ही नहीं व्यापार और उद्योग , भूमि स्वामियों और विश्वविद्यालयो तथा श्रमिकों का भी स्थान आरक्षित था ! कुल बारह प्रकार के आरक्षण थे | परंतु तब स्वतन्त्रता संग्राम की धुन में समाज के वर्गो में वैमनस्यता का अभाव था | इसलिए इन सुविधाओ का राजनैतिक लाभ उठाने की किसी भी राजनीतिक दल ने नहीं की -----जिसकी इस संविधान सनसोधन से पूरी संभावना हैं |

एक बात और इन आरक्षण में थी की -मुस्लिम

महिलाओ को बंबई - मद्रास - बंगाल -और सयुक्त प्रांत में तथा पंजाब और सिंध में था |मद्रास में 6 सीट थी बॉम्बे 5 सीट तथा संयुक्त प्रांत में 4 सीट थी |बिहार और सेंट्रल प्रोविन्स एन 3 -3 थी | आसाम में 4 सीट थी |औसतन महिलाओ का आरक्षण 3 से 6 प्रतिशत था | आज़ादी के सत्तर वर्ष बाद भी कानुन बनाने में महिलाओ की भागीदारी राजनीतिक दलो के नेताओ की कृपा पर निर्भर हैं | इस कारण महिलाओ को अपने नेताओ की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता हैं | जो स्वास्थ्य परंपरा नहीं हैं |