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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 28, 2023

 

ना काम उम्मीदों का दंगल !

हम चुने जन प्रतिनिधि –लेकिन तुम उम्मीदवार कैसे चुनो !

 

        मध्य प्रदेश में  2023 के विधान सभा चुनावो में पार्टी के टिकट यानि की उम्मीदवारी  का “बी” फार्म  पाने के लिए जैसा घमासान  मचा है , वैसा विगत  चालीस सालो मे नहीं देखा गया | यह बात मई खुद के अनुभव से कह रहा हूँ |  सवाल उठता है की ऐसा क्यू ?  कांग्रेस्स और बीजेपी  दोनों ही पार्टियां  इस में फांसी हुई है ,  इन पार्टी के “”बड़े  नेताओ को भरोसा है की  नाम वापसी तक सब –ठीक कर लेंगे !  लेकिन जिले स्टार के जिन नेताओ को  जनता में अपनी जमीन  की पकड़  का भरोसा है , वे तो नामांकन भी दाखिल कर आए है | इसी उम्मीद में की  पार्टी का चुनाव चिन्ह  पर वे ही चुनाव लड़ेंगे | और अगर ऐसा नहीं हुआ तब वे आज़ाद उम्मीदवार  बन कर मैदान में अपनी किस्मत आज़माएँगे |

       अब नाम वापसी के पूर्व  तक तो पिक्चर साफ होती नजर नहीं आती | फिर भी दोनों पार्टी  दिन –रात मशक्कत कर रही है इस बगावत को काबू पाने के लिए |  इन दोनों पार्टियो को खतरा यह भी है की  , इस राज्य में जनहा सदैव से दो ही पार्टी चुनाव के खेल की खिलाड़ी रही है , उनका खेल बिगड़ने के लिए राजी के बाहर के दल भी मैदान में आ गए है | मसलन  केजरीवाल की आप ,  मायावती की बसपा  और अखिलेश की समाजवादी पार्टी  और अब नीतिस कुमार की जदयु  भी बगावती लोगो को टिकट  दे कर उन्हे  राजनीति में औरस संतान का ओहदा दे रही है | अब यह बात अलग है की जनता उनके इस हैसियत को कितना  मानती है , यह तो उनको मिले  समर्थन से पता चलेगा | वैसे इन लोगो की जमात  से कांग्रेस्स और बीजेपी द्नो ही दलो  को खतरा अपने “”वोट “ कटने का है | मतलब  लबो तक प्याला आने के पहले उसके छ्लक जाने का है |  1977 से हरियाणा में भजन लाल द्वरा जिस आया राम –गया राम की परंपरा की शुरुआत हुई थी , वह अब खूब फल – फूल रही है |  अनेकों टिकतारथी  , जिनकी जन्म कुंडली  बताती है की वे एक से अधिक बार  अपनी राजनीतिक “”निष्ठा”” बदल चुके है | इनमे काँग्रेस और बीजेपी दोनों के ही लोग है |  मजे की बात है की आप और समाजवादी तथा  बसपा ने जिन लोगो को अपने उम्मीदवार होने का ऐलान किया है --- उनमे से कितने लोगो पार्टी “”बी” फोरम देकर नवाजेगी  , यह भी अनिश्चित है | क्यूंकी इन टिकट अभिलाषियों को जिस “धन “ की मदद की आशा है वह कितने हद्द तक पूरी होगी ,यह कहना मुश्किल है |  बसपा के लिए तो यह आरोप भी लग चुका है की वनहा उम्मीदवारी खरीदी जाती है ! अब कितना सच या गलत है यह बहस् का मुद्दा  है , जो यानहा  पर नहीं है | रही बात इन पार्टियो के  जन समर्थन की यानि की इलाके में इनके कितने “वोट “ है  वह तो बहुत ही अनिश्चित है | मसलन  केजरीवाल की आप पार्टी को राजनीतिक रूप से एक ही  स्थान मिला हुआ है –वह है सिंगरौली के मेयर पद का | परंतु  उनके पंजाब के मुख्य मंत्री   चंबल इलाके में प्रचार भी कर आए है | बात इतनी सी है की इस इलाके में विभाजन के बाद  काफी लोग पाकिस्तान के पंजाब से यानहा आकार बसे है |  उनमे से एक नाम सुनहरे अक्षरो में लिखे जाने योग्य है  आज़ाद हिन्द फौज के कर्नल ढिल्लन का , उन्होने यही आकार किसानी शुरू की थी |  उनका फार्म आज भी ग्वालियर के पास है | इस इलाके में  इनकी बसाहट तो है , पर ये सिख कितना  पंजाब के मुख्य मंत्री भगवंत सिंह मान  की अपील का मान रखेंगे  यह अनिश्चित है |  रही बात समाजवादी और जदयु पार्टियो की  तो उनका बेसिक आधार तो पिछड़ी जातियो के वोट माने जाते है | परंतु क्या वे उम्मीदवार की जाति को देख कर वोट नहीं देंगी ! क्यूंकी ग्रामीण इलाके में  जातियो की पंचायत का प्रभाव तो है |  क्यूंकी इन दलो की राजनीतिक विचारधारा  तो उनके चुनाव घोसना पत्र तक ही सीमित होते है | बाकी सब जाति पर ही निर्भर करता है |

                 इन फुटकर राजनीतिक दलो का की एक निर्णायक  भूमिका  से दोनों ही यानि की कॉंग्रेस  और बीजेपी  आशंकित रहते है , वह है इनकी वोट काटने की छमता !  क्यूंकी विगत चुनावो मे देखा गया है की जिन सीटो पर हार – जीत का अंतर कुछ हजार का रहा है वनहा  इनको मिले वोट ही निर्णायक बने है विजयी उम्मीदवार के लिए | यह  खतरा काँग्रेस को ज्यादा हुआ है  , बीजेपी को इस  बात से कम ही नुकसान हुआ है | क्यूंकी कमोबेश  उनका वोट बैंक भी जातियो पर  निर्भर है , परंतु उसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  के समर्थन से उनकी नैया  पार हो जाती है | परंतु इस बार  संघ के कुछ पुराने स्वयं सेवको ने अपनी मातर् संगठन  के वीरुध मोर्चा खोल कर  चकित कर दिया है | ऐसा मालवा छेत्र में हुआ है | परंतु  ऐसा भीकहा जा रहा है की यह भी एक सुनियोजित  रणनीति के तहत किया जा रहा है | मोदी के नौ साल के कार्यकाल मे  अनेकों बार संघ के लोगो को  सत्ता धारी  दल के कुछ फैसलो  से गहरा अशन्तोष हुआ है | यह  जमीनी स्तर तक महसूस किया गया है | अपने इस समर्थन वोट को  दूसरे दलो की झोली में जाने से बचाने  के लिए  अपनी दूसरी झोली  में गिरने का प्रयास है | इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता , क्यूंकी संघ व्यक्ति  से निजी स्तर पर जुड़ा होता हो | दल बदल कर सरकार बनाने की मोदी –शाह  की कोशिसों को काफी समर्थक  नाराज़ है | उनकी नजरों में जिस प्रकार  व्यापारियो  पर छापे  मारे जा रहे वह भी उनकी नाराजगी का एक कारण है |  वे हिन्दू राष्ट्र के समर्थक है , परंतु मणिपुर  क घटनाओ  से उनमे बेचैनी है | क्यूंकी उत्तर – पूर्व में  व्यापारियो का वर्ग आखिर है तो  ऊँह का समर्थक | परंतु  स्थानीय आक्रोश का शिकार नहीं होना चाहते है | परंतु मोदी जी नीति जमीन पर हिन्दुओ और खासकर  व्यापारियो  और उनके प्रतिस्थानों  पर हमले  उन्हे  असुरक्षा  ही दे रहे है |

               खबर लिखे जाने तक  काँग्रेस  और इंडिया गठबंधन के आप –समाजवादी  और जदयु से “” अण्डरस्टैंडिंग “”  होने की खबर आई है | जिसके परिणाम स्वरूप  ज्यादा  खतरनाक उम्मीदवारों की जगह  कुछ कमजोर उत्साही लोगो को उम्मीदवार  बनाया गाय है | वनही मोदी सरकार के संकट मोचक  गृह मंत्री अमित शाह  भी राज्य में बीजेपी  की गंभीर हालत को देखते हुए  अशन्तुष्ट  नेताओ से मुलाक़ात कर  उनको आशवश्न दे कर संतुष्ट  कर रहे है | उनकी समझाइश  का असर भी हो रहा है |  अब चुनावी तस्वीर  नाम वापसी  के बाद ही साफ होगी | तब तक इंतज़ार रहेगा |

======================================================================================बॉक्स

       सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी  का   राम मंदिर का मोह और पाकिस्तान तथा मुस्लिम विरोध  उनके चुनावी राग का संपुट  समान है | मोदी राग में  काँग्रेस और पाकिस्तान तथा मुस्लिम एक ही सुर में लगते है |  वनही राम मंदिर उनका लंबा आलाप सरीखा है | जो गाहे – बगाहे  पंचम सुर में गूँजता है |  अब चूंकि अयोध्या में  राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि की घोषणा  हो चुकी है – जो गणतन्त्र  दिवस  से पूर्व की है |  इसलिए  बीजेपी  इस मुद्दे को  एक बार फिर भुनाने  की कोशिस  कर रही है | इस नुस्खे  की आजमाइश इतनी बार हो चुकी है , की अब इसके  लाभ की गुंजाइश  कम है | परंतु  फिर भी बीजेपी के लिए  लोगो को   धरम के नाम पर जोड़ने की कोशिस  तो है ही |  इसीलिए बीजेपी चुनाव आचार संहिता लाग्ने के बाद भी  इस उदघाटन  के पोस्टर जगह – जगह लगा रही है | वनही  बीजेपी उनके विरोध को राम का विरोध बता रही है |  गनीमत है की काशी की ज्ञानवापी मस्जिद को प्राचीन शिव मंदिर  और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि  मे बनी मस्जिदों का मसला नहीं प्रचारित कर रही है | क्यूंकी काशी वाले मसले को हाइ कोर्ट  के मुख्य न्यायधीश  ने  पूरी सुनवाई को ही रोक दिया है | क्यूंकी जिन जज साहेबन ने इस मामले की सुनवाई की थी  उनको  यह मामला  कोर्ट के रजिस्ट्रार  की लिस्ट से आवंटित ही नहीं हुआ था | अब यह तो गजब ही है की जज साहब  इस बेसिक  बात की जांच किए बिना ही मुकदमा सुनने बैठ गए |  दूसरी ओर मथुरा के मामले को भी आगे किसी भी कारवाई से सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है | इस लिए बीजेपी डरती है की अदालत की रोक के बाद  अगर प्रचार हुआ तो मामला अदालत के पास पनहुक जाएगा | और पार्टी का अनुभव  इस मामले मे  अच्छा नहीं रहा है |

            रही बात आढ्य में राम मंदिर की तो  उसको लेकर तो अमित शाह  जी ने  तीन दिवाली मनाने का सुझाव दिया है | 1- कार्तिक मास की दीपावली  2—प्रदेश में  बीजेपी की [ शिवराज की नहीं ]  सरकार के गठन के समय और 3--- अयोध्या मे राम मंदिर में मूर्ति स्थापना के दिन |  अब इन्हे कौन समझाये की दशहरा  -दीपावली  तिथि पर मनाए जाते है |  लंका विजय  पर दशहरा  और अयोध्या आगमन पर दीपावली होती है | सरकारो के बनने और बिगड़ने पर नहीं बनती है | यह कोई निजी समारोह नहीं है की  घर पर दिये जला लिए और बिजली के बलब  लगा लिए | उनको  मालूम होना चाहिए की जन विश्वास है की   पर्व की प्रतिस्था  तिथि से है , नाकी बीजेपी की जय – पराजय से | दीपावली तो एक ही होगी योगी जी चाहे  तो अयोध्या में सरकारो खर्चे  से  दिये जलवा सकते है ----पर वह दीपावली तो नहीं होगी |