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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 13, 2020


हर बार गुनहगारों को आकाश -पाताल से पकड़ने की हुंकार – पर टांय टांय फिस्स !


माब लिंचिंग हो या जे एन यू हो और अब दिल्ली के दंगे -अमित शाह जी !!


दिल्ली दंगो पर संसद में हुई बहस का उत्तर देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर पुरानी टेक दुहराई की दोषियो को पाताल से भी पकड़ लाएँगे ! वैसे उनकी यह हुंकार अब बासी हो गयी हैं | क्योंकि कनहिया कुमार के राजद्रोह मम्म्ले में चार साल बाद मुकदमा शुरू हुआ | जिस टुकड़े - टुकड़े गैंग को देश द्रोह का आरोप बनाया गया ----उसके अस्तित्व से प्रधान मंत्री कार्यलय और गृह मंत्री कार्यालय पूरी तरह से इंकार करते हैं ! बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर की बजरंग दल और संघ के संयोजक पर हत्या के लगे आरोप -का निपटारा आज तक नहीं हुआ |
अभी लखनऊ में जिला प्रशासन ने जिस तरह की तानाशाही दिखाते हुए नागरिकता कानून के विरोध में आंदोलन किया -धरना दिया --- उनको नीचा दिखाने के लिए लखनऊ शहर के कई चौराहो पर उनके फोटो-पते सहित प्रदर्शित किए गए | जब इलाहाबाद उच्च न्यायालया के मुख्य न्यायाधीश की खंड पीठ ने ---सरकार से पूच्छा की किस कानून के अंतरगत ऐसा किया गया है – तब सरकारी वकील राघवेंद्र सिंह अडवोकेट जनरल अदालत से ही सवाल कर बैठे की आप कैसे यह मामला सुन रहे हैं ? यह तो लखनऊ बेंच के न्यायाधिकर का हैं ! तब मुख्य न्यायाधीश माथुर ने वकील साहब को उनकी हैसियत बताते हुए कहा की वे सम्पूर्ण प्रदेश के मुख्य न्ययाधीश है !
अमित शाह जी ने सदन में दावा किया की कैमरो की मदद से दिल्ली के 1100 दंगाइयो को पहचान लिया गया हैं | इनमें 336 उत्तर प्रदेश से आए |अभी तक 2647 लोगो गिरफ्तार किया जा चुका हैं | गृह मंत्री ने जब दिल्ली पुलिस की तारीफ करते हुए कहा की 36 घंटे में दंगे पर काबू पा लिया गया , इसके लिए पुलिस बधाई की पात्र हैं | अब आजकल चैनलो की मददा से कोई भी घटना या वारदात को बहुत दबाया नहीं जा सकता | यह हक़ीक़त हैं की दंगे 23 फरवरी से 26 फरवरी तक होते रहे | उसी तारीख की रात को घायलों को अस्पताल पाहुचने के लिए पुलिस की सुरक्षा का आदेश दिल्ली हाइ कोर्ट के न्यायमूर्ति मुरलीधर ने दिया था | दूसरे दिन उन्होने सुनवाई करते हुए सलिसीटर जनरल तुषार मेहता को बीजेपी नेता कपिल मिश्रा - सांसद परवेश वर्मा और केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर के वीडियो अदालत में दिखते हुए इनके वीरुध पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करने की बात की थी | तब तुषार मेहता ने कहा की ऐसा करने से माहौल खराब होगा !!! नफरत भरे भाषण देने वालो को रोका नहीं गया | खुद गृह मंत्री भी विधान सभा चुनाव में शाहिन बाग़ को करेंट मारने को कह रहे थे !
दंगो की हक़ीक़त यह हैं की 23 तारीख को शुरू हुए झड़प 24 और 25 तथा 26 को जारी रहा इसी दिन जुस्टिस मुरलीधर का निर्देश हुआ | तब किस तरह से अमित शाह जी कह रहे हैं की दंगो को 36 घंटो में काबू पा लिया गया ? दंगो की सुनियोजित षड्यंत्र बताने का दावा करने वाले --अमित शाह जी के अधीन खुफिया ब्यूएरो हैं उसने कोई सूचना क्यो नहीं दी ? दिल्ली विधान सभा चुनावो में हिंदुस्तान -पाकिस्तान किसने कहा { कपिल मिश्रा } किसने कहा की देश के गद्दारो को – गोली मारो सालो को "" आदि | अमित शह जी ने दावा किया दंगाइयो की पहचान कर ली गयी ? भाई कैसे ? कैमरो से लोगो को शक्कलों तो आ जाती हैं | परंतु उनकी पहचान कैसे हो सकी ? क्या इसके लिए आधार कार्ड और वॉटर कार्ड के डाटा का इस्तेमाल किया गया ? अमित शह जी ने लिकसभा को बताया की ड्राइविंग लाइसेन्स का सहारा लिया गया था |

जिस दिल्ली पुलिस की तारीफ कर रहे थे --अमित शाह जी उसके कंट्रोल रूम के रजिस्टर में 13000 हज़ार फोन किए गये थे --पुलिस की मदद के लिए !!! परंतु पुलिस ने किसी पर भी कोई कारवाई नहीं की ! इसका कारण उन्होने नहीं बताया ! जबकि रजिस्टर इसका सबूत हैं ! जिसमें मदद के लिए आए फोन का रेकॉर्ड हैं ! आधे अधूरे जवाब से क्या भला होगा | बीजेपी सांसदो ने नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक हुए दंगो का हवाला देकर ---- अपनी सरकार की क्लीन चिट देने की कोशिस की | जुस्टिस मुरलीधर के आदेश का पालन क्यो नहीं किया गया -इसका भी जवाब नहीं दिया गया !
सुप्रीम कोर्ट के तीन अवकाश प्राप्त जजो जुस्टिस पटनायक और के नेत्रत्व में दंगा प्रभावित इलाको का दौरा किया और कहा ----लूट मार और आगजनी की घटनाए एक समुदाय विशेस को निशाना बनाया गया | दंगो को नियंत्रण करने के लिए ---शाबाशी देने से पहले शह जी को पूर्व पुलिस महा निदेशक प्रकाश सिंह का बयान देखना चाहिए --””” जिसमें उन्होने कहा की लगता हैं की पुलिस कर हाथ बंधे थे !” यही जुस्टिस जोसेफ की खंड पीठ ने सुप्रेम कोर्ट में सुनवाई करते हुए भी कहा था – मौके पर पुलिस ने प्रभावी कारवाई करने के लिए आदेश की प्रतिछ कर रहे थे ! कुछ ऐसा ही नजारा जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय में एक संगठन द्वरा छत्रों और अध्यापको को मारने और संपाती नष्ट करने की घटना भी – 60 दिन बाद कोई चालान नहीं | कोई आरोपी गिरफ्तार नहीं | जबकि वीडियो प्रस्तुत किए गए |
अमित शाह जी ने वीडियो की वैज्ञानिक जांच कराये जाने का दावा किया , परंतु देश के चैनलो की बात छोड़े ---परंतु विदेशी चैनलो जैसे बीबीसी या सीएनएन के वीडियो में साफ -साफ दिखाई दे रहा हैं की पुलिस पथ्थर फेकने वाले को पीछे से मदद कर रही हैं ! आखिर इन सवालो का जवाब क्या हैं ?क्या कभी मिलेंगे भी ? शायद नहीं | क्योंकि केंद्र इन दंगो की अदालती जांच कभी नहीं कराएगा , अन्यथा इन सवालो के जवाब जिम्मेदार लोगो को देने पड़ेंगे | वैसे भी अयोध्या में बाबरी मस्जिद को भग्न करने वाली अदालती जांच आज भी पूरी नहीं हुई ! जबकि सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर बनाने को हरी झंडी दे दी |




Mar 12, 2020


सत्ता के जनविरोधी फैसलो के प्रतिरोध का प्रतीक -शाहीन बाग़


ख़लक़ खुदा का -मुल्क आईन का हुकूमत अवाम की -पर चलेगी मेरी मर्ज़ी !!!


लोकसभा में जिस प्रकार ग्रहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली में 23 से 27 फरवरी तक हुए दंगो { सांप्रदायिक } में 50 से अधिक भारतीय लोगो के मारे जाने और सैकड़ो के घायल होने तथा करोड़ो रुपए की संपाति की हानि के घटना को पूर्व नियोजित बताया ! उससे देश की जनता भले ही रद्द करे पर संसद की कारवाई में उन्होने मोदी सरकार को जल्लाद की भूमिका के आरोप से बचा लिया ! उन्होने मरने वालो और घायलों को "धरम" की पहचान के बजाय देश की पहचान यानि भारतीय कहा ! जो संघ प्रवर्तित राजनीतिक पार्टी में संशोधन का प्रतीक हैं |
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की जुस्टिस यू सी ललित की खंड पीठ ने साफ तौर पर उत्तर प्रदेश की सरकार को लखनऊ में नागरिकता संशोधन विरोध में आंदोलन करने वाले आरोपियों के चित्र को पोस्टर के रूप में महानगर के चौराहो पर लगाए गए बैनरो को कानून के विपरीत बताते हुए , इस मसले को प्रधान न्यायाधीश से बड़ी बेंच द्वरा सुने जाने का आग्रह किया हैं ! गौर तलब हैं की इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंड पीठ ने लखनऊ में लगे पोस्टरो को 16 मार्च तक हटाने का आदेश दिया था | अब नवीन परिस्थिति में उत्तर परदेश सरकार हाइ कोर्ट के आदेश को तब तक ---नहीं पालन करेगी ,जब तक की सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ { तीन जजो वाली } कोई अंतिम फैसला नहीं दे देती | विवाद सिर्फ इतना सा था की क्या पुलिस को या प्रशासन को यह अधिकार प्राप्त हैं की वह किसी भी आरोपी को अपराधियो के समान इशठरी मुजरिम बन सकती हैं ? उच्च न्यायालय में अडवोकेट जनरल इल्लाहबाद में ऐसे किसी कानूनी प्रावधान को हवाला नहीं दे सके -----जिसमें प्रशासन को किसी को भी इश्तिहारी द्वरा उसके वीरुध दर्ज़ आरोपो की नुमाइश करे ! क्योंकि विधि शस्त्र और भारत के संविधान के अनुसार जब तक किसी भी व्यक्ति के खिलाफ "” आरोप सीध नहीं हो जाता --तब तक वह अपराधी नहीं कहा जा सकता | परंतु लगता हैं की अब यह मामला अदालत और सरकार के बीच रस्साकसी का मसला बन गया हैं | एक आम नागरिक की भांति मैं भी यह समझता हूँ की "””यदि किसी ने कोई कानून तोड़ा हैं --तो उसे 24 घंटे के अंदर अदालत के सामने प्रस्तुत करना होता हैं | फिर उस पर लगाए आरोपो की पुष्टि के लिए सबूत दिये जाते हैं | इस मामले में अगर सिर्फ पुलिस की रिपोर्ट को ही अंतिम सबूत मान लिया गया ---तब देश के हर नागरिक के मूल अधिकार संकट में पद जाएँगे ? सुप्रीम कोर्ट ने काश्मीर का मसला 5 जज़ो से बड़ी बेंच द्वरा सुनवाई किए जाने की अर्ज़ी को खारिज कर दिया था | और कहा था की वही पाँच जज सुनवाई करेंगे !! फिर इस ज़रा से मामले में ---जिसमें प्रशासन को किसी नागरिक को बदनाम करने का कोई कानूनी आधार नहीं हैं , उसमें सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ फैसला ना ले पाये --कुछ अजीब लगता हैं | चलिये योगी आदित्यनाथ के अहम को भले ही इससे तुष्टि हो जाये -पर संविधान की घोर अवहेलना होगी |

उधर नफरत फैलाने वाले भाषणो पर कारवाई की सुनवाई फिर दिल्ली हाइ कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश ने आगे बड़ा दी | जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जल्दी सुनवाई करने का निर्देश दिया था | लगता हैं आदेश और निर्देश पाहुचने में कुछ देर लग रही हैं |

परंतु उत्तर प्रदेश में कानून हो या ना हो --पर मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ जी की मर्ज़ी ही चलेगी, भले उसके लिए कानून हो या नहीं , जो लखनऊ में नागरिकता विरोध में आंदोलन करने वालो को सरे आम आरोपी से अपराधी बनाने का फैसला ! मामला नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ के घंटाघर में शाहीन बाग की तर्ज़ पर हुए धरणे और प्रदर्शन में भाग लेने वाले बा इज्ज़त शहरियों पर पुलिस द्वरा सरकारी संपाति की तोडफोड का आरोप लगते हुए 150 से अधिक लोगो के फोटो नाम -पते सहित नगर के चौराहो पर बड़े -बड़े बैनर की तर्ज़ पर लगाए गए | कानून के अनुसार केवल कानून के भगोड़े या अदालत द्वरा घोषित अपराधी की फोटो ही अदालत की आज्ञा से लगाई या प्रकाशित किए जा सकते हैं |परंतु गोरख नाथ मठ के महंत तो अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को कुचलना चाहते है , फिर कोई कानून हो या नहीं !
सदको पर लगाए गए बैनरो के द्वरा --- जिसमें हर खास ओ आम को इतिला दी गयी की ये वो लोग हैं, जिनहोने सरकार की 85 लाख से ज्यादा मालियत की संपाति का नुकसान किया हैं ! शाहीन बाग़ की तर्ज़ पर किए गए इस आंदोलन की पहली शहीद फरीदा खातून रही --50 वर्षीय यह महिला बारिश में भीग जाने से ठंड की वजह से अल्लाह को प्यारी हो गयी ! उनका कोई भी ज़िक्र ज़िला और पुलिस की कारवाई में नहीं हैं !!!

लखनऊ के ज़िला प्रशासन और पुलिस आयुक्त की इस कारवाई का इलाहाबाद उच्च न्ययालय ने के मुख्य न्ययाधीश की कांड पीठ ने स्वतः ज्ञान से इस मामले को रविवार 8 मार्च को सुनवाई की | खबर मिलते ही मुख्य अधिवक्ता राघवेंद्र सिंह और अतिरिक्त अधिवक्ता त्रिपाठी तथा चार अन्य शासकीय वकीलो ने ---इस मामले की सुनवाई पर आपति की | जब मुख्या न्यायधीश ने एडवोकेट जनरल से कानून का वह प्रविधान दिखने को कहा -जिसके तहत प्रशासन ने लोगो के फोटो नाम पते सहित शहर में लगवाए हैं ? तब राघवेंद्र सिंह अँड कंपनी निरुतर हो गयी ! अदालत ने 16 मार्च तक सभी होर्डिंग हटाने के बाद रिपोर्ट देने को कहा | परंतु योगी जी की मेरी मर्ज़ी को तो अदालत के फैसले से धक्का लगा | राघवेंद्र सिंह ने तो मुख्य न्यायधीश से यानहा तक कह दिया की --- यह मामला लखनऊ का हैं ,जिसे इल्हाबड़ मे नहीं सुना जा सकता ! तब मुख्य न्यायाधीश ने उन्हे बताया की वे पूरे प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश हैं , सिर्फ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नहीं !! परंतु भगवा धारी मुख्य मंत्री योगी जी को इस फैसले से ठेस पहुंची , फलस्वरूप गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीश यू सी ललित की खंड पीठ ने सुनवाई की |

इसी तारतमय में बात कर्नाटक के बीदर जिले के ज़िला न्यायले का फैसला | वनहा के शाहीन प्राथमिक और उच्च विद्यालया में बालको ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में एक नाटक का मंचन किया था | पुलिस ने नाटक करने वालो के साथ विद्यलय के प्रबन्धक अब्दुल कादिर को राजद्रोह ए आरोप में बंदी बना लिया | ज़िला न्यायधीश मङ्गोली प्रेमवती ने कहा की पुलिस की पेश सबूतो से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता ! और उन्होने कादिर को जमानत दे दी !!!

Mar 10, 2020


आरोपी को अपराधी दिखाने की योगी ट्रिक


नागरिकता कानून के विरोध में आंदोलन करने वाले--इश्तहारी मुजरिम है क्या


नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए देश व्यापी आंदोलन के दौरान योगी सरकार ने लखनऊ के ---- आन्दोलंकारियों को आपराधिक मुकदमें में आरोपी बना कर बंदी बना लिया | इन आरोपियों में सत्तर वर्षीय अवकाशप्राप्त डी आई जी दारापुरी तथा सान्स्क्रतिक कर्मी कबीर भी थे | पुलिस के आरोप के अनुसार दारापुरी ने पुलिस पर हमला किया था ! इन सभी आन्दोलंकारियों के अपराध यू तो "”जमानत योग्य "”की श्रेणी के हैं , परंतु पुलिस प्रशासन "ऊपर के निर्देशों के कारण इनसे अमानवीय व्यवहार ही करता रहा हैं | गिरफ्तार रंगकर्मी महिला की दुधमुंही बालिका को माँ का दुग्धपान नहीं करने दिया गया ! अब इन पर बलवा और अशांति फैलाने के अपराध के मुकदमें दर्ज़ हैं |परंतु अदालती सुनवाई में पुलिस की कारवाई सिद्ध होने तक "” ये सभी निर्दोष ही माने जाएँगे "” | जिससे पुलिस की बहादूरी पर बदनुमा दाग ही साबित होगा ! इस लिए कानून के अपराधी
की सामाजिक इज्ज़त और हैसियत को खराब करने के लिए आरोपियों को अपराधी दिखाने की कोशिस हैं | योगी सरकार के न्याय से पाखंड तो उसी दिन उजागर हो गया था - जब मुख्य मंत्री "योगी " आदित्यनाथ ने खुद के खिलाफ अदालतों में चल रहे दर्जनो आपराधिक मुकदमो को वापास कराया | तटकलिना मुख्या सचिव ने इलाहाबाद उच्च न्ययालाया को बताया की सरकार अब इन मुकदमो पर आगे कारवाई नहीं करना चाहती ! उन पर सरकारी अधिकारी के कर्तव्य निर्वहन में बाधा पाहुचाने और अधिकारी से झूमाझटकी करने का भी आरोप था | वही आरोपी दूसरे आन्दोलंकारियों को बिना मुकदमा चलाये ही अपराधी घोषित करने की कवायद की हैं !!!
आम तौर पर सरकार जिन आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर पाती उनको भगोड़ा घोषित करके उनपर इनाम जारी करती हैं -----जो उन आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए होता हैं | यानहा आरोपियों की गिरफ्तारी हुई -उनकी जमानत हो गयी | तब किस आधार पर लखनऊ के चौराहे पर योगी सरकार इन लोगो के बड़े - बड़े चित्र के पोस्टर लगा रही हैं ? इसका सिर्फ एक ही मक़सद संभव हैं ----- अदालत में कानून की परीक्षा में सरकार इन लोगो के अपराध को साबित करने में शायद सफल नहीं होगी | इसीलिए अदालत न सही सरे राह बदनाम करने की कोशिस ही काही जा सकती हैं | हालांकि सार्वजनिक छेत्र में काम करने वाले इन सामाजिक कार्यकर्ताओ को विरोध की ज्यादा परवाह नहीं होती | क्योंकि इनके आंदोलन और नाटक साधारण तौर पर समाज के बहुसंख्यक वर्ग की स्थापित अवधारनाओ --वर्जनाओ को तोड़ता हैं | परंतु कानुन के अनुसार भारत के किसी भी नागरिक को {{ फिलवक्त जबतक राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर नहीं लागू हो जाता }} बिना मुकदमा चलाये अपराधी नहीं करार दिया जा सकता | न्यायशास्त्र और भारतीय न्याया पद्धति में भी आरोपी का अपराध "” पूर्णरूपेण से साबित होना चाहिए – उसके अपराधी होने पर किसी भी प्रकार तार्किक संदेह नहीं रह जाना चाहिए ! अब योगी जी के मातहत पुलिस अधिकारी मुख्य मंत्री को कानून की स्थिति नहीं बताते -वरन उनके अहंकार को ईधन सुलभ कराते रहते हैं | आन्दोलंकारियों को आरोपी से अपराधी दिखाने की कोशिस ह -गाना ही हैं | जैसे कुछ समय पहले इंदौर के सहकारी बैंक मे अपने उन कर्जदाताओ के घर और दफ्तर के सामने -किन्नर लोगो की टोली का नाच गाना कराते थे | मक़सद था की लोग यह जान जाये की अमुक आदमी ने क़र्ज़ लिया हैं --और उसको चुका नहीं रहा हैं | इससे समाज में व्यक्ति की "”हैसियत "” का खुलाषा हो जाता था | की भले ही ये कोठी - बंगले - बड़ी बड़ी कार वाले दिखते हो --पर हैं क़र्ज़दार !!! परंतु यानहा तो मामला ही उल्टा हैं ! अरे भाई जिन लोगो को आप ईश्तहार में दिखा रहे हो उन्हे कुछ लोग जानते है और बहुतों ने उनका नाम और काम देखा -सुना हैं | इसीलिए उन्हे "” बदनाम "” करने की कोशिस कामयाब नहीं होगी | राम मंदिर के लिए आंदोलन करने वाले दूसरे आंदोलन करियों को "”विधरमी " और देश द्रोही ही बताते हैं | उनका स्व्यंसिद्धा होने का अहंकार -विमत और असहमत रखने वाले लोगो को आरोपी नहीं -अपराधी ही मानते हैं | जैसे नाजी जर्मनी में होता था | हमने कह दिया की तुम अपराधी हो तो - बस कोई अदालत या अधिकारी इसे गलत नहीं बता सकता , वरना ठुकाई - पिटाई और देश के गद्दारो को गोली मारो सालो को का सूत्र वाक़ई तो है ही !
इल्हाबाद उच्च न्यायालय ने रविवार होने के बावजूद आन्दोलंकारियों की याचिका पर सुनवाई की | सरकार ने अदालत से आग्रह किया की एडवोकेट जनरल दोपहर तक बेंच के सामने हाजिर होंगे | इसलिए सुनवाई 12 बजे तक स्थगित की गयी थी |

इलाहाबाद हाइ कोर्ट की यह सुनवाई का असर दिल्ली पुलिस की कारवाई पर भी पड़ेगा | क्योंकि दिल्ली पुलिस ने भी पाँच दिनी दिल्ली दंगो में हुई तोड़ फोड़ के लिए टीवी से "”सूरत निकाल कर "” पहचाना है की कौन हैं आरोपी या अपराधी ? जिससे नुकसान की भरपाई करी जाये ! अब सरकार की इस कारवाई पर न्यायपालिका के फैसले का बेसबरी से इंतज़ार रहेगा --क्योंकि इसका परिणाम सरकार और पुलिस की सीमा तय करेगा |


नागरिकता संशोधन - शाहीन बाग़ और लखनऊ के आन्दोलंकारियों के पोस्टर !!



इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश माथुर की खंड पीठ द्वरा उत्तर प्रदेश शासान को शहर मे पुलिस द्वरा लगाए गए पोस्टर को तुरंत उतारने और 16 मार्च तक अदालत को बताने का हुकुमनामा योगी सरकार के कारकुनों पर तमाचा हैं | लखनऊ में नागरिकता विरोधी प्रदर्शन में भाग लेने वालो पर पुलिस ने रिपोर्ट लिख कर --उन 150 से अधिक बा शहरियों के पोस्टर नगर में लगवा कर उन्हे भी सुल्ताना डाकू और मानसिंह की श्रेणी में ला दिया | भले ही इस काम को अंजाम देने वाले जिलधिकारी और पोलिस कमिसनर हो , परंतु हुआ तो यह योगिराज आदित्यनाथ की कृपा से हुआ होगा ! क्योंकि जिस आक्रामक तेवर से वे विधान सभा में तलवार लहराने वालो की आरती उतारने वालो में हम नहीं ----कहते हैं , वह उनकी ज़िद्द और नफरत का परिचायक हैं ! वैसे लखनऊ के घंटाघर में 50 दिन से अधिक तक धरणे पर बैठने वाली फरीदा खातून शायद नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लड़ाई की पहली "”शहीद "” हैं |
भले ही फरीदा की मौत पर कोई शोक न मनाया गया हो -----परंतु उच्च न्यायालय द्वरा खुद आगे बड़ कर पुलिस प्रशासन द्वरा जिस प्रकार सरकार के विरोध में प्रदर्शन करने वालो को --””नीचा दिखने या फरार अपराधी जैसा बताने "”की गंदी हरकत की सुनवाई करना | यह दर्शाता हैं की अभी भी पुलिस के जूतो के बल पर चल रहा नागरिक प्रशासन कानून की कोई परवाह नहीं करता !! प्रधान अधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की मुख्य न्ययाधीश की अदालत में यह दलील देना की "” यह घटना लखनऊ की हैं इसे आप नहीं सुन सकते ! तब जुस्टिस माथुर को कहना पड़ा की मैं इलाहाबाद हाइ कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश हूँ - लखनऊ बेंच भी मेरे तहत हैं ! फिर अतिरिक्त मुखी अधिवक्ता त्रिपाठी ने कहा की आप को इस घटना का स्ंज्ञान नहीं लेना चाहिए था – जब अदालत ने प्रश्न किया की क्यो ? तब उनका तर्क { कुतर्क} था की सभी लोग जिनके फोटो और पते सहित पोस्टर शहर के अनेक हिस्सो में लगाए गये हैं , वे अपना मुकदमा लड़ने में सक्षम हैं ! परंतु जब मुख्य न्ययाधीश माथुर ने सवाल किया की प्रशासन ने किन कानूनी प्रावधानों के तहत यह कारवाई की है ? तब सरकार के आधे दर्जन वकीलो के मुंह पर टाका लग गया !! सरकार के वकीलो ने माना की पुलिस या प्रशासन के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं हैं !! अदालत ने उन्हे बताया की आरोपियों के इश्तहार अदालत की आज्ञा से ही लगाए जाते हैं | पुलिस द्वरा नहीं |
हालांकि सरकारी वकील इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की फिराक में हैं | क्योकि उन्हे लगता हैं की अदालत की फैसले से ना केवल पुलिस और ज़िला प्रशासन कि सरेआम किरकिरी हुई हैं ,वरन राजनीतिक आक़ाओ की मर्ज़ी को भी ठोकर लगा हैं | जिस प्रकार मौजूदा प्रदेश सरकार पुलिस और प्रशासन की क्रउर हरकतों से लोगो की आवाज दबाने की कोशिस ही है |जिसे उच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकार में अभिवयिकती और निजता के हनन करार दिया | इस फैसले से यह संदेश दिया की सरकार को अपने फैसले कानून की परिधि में रहकर लेना चाहिए | ना किसी सनक या ज़िद्द के वशीभूत हो कर | यानि एक भी नारा सरकार के वीरुध लगा की ---- सरकार को क्रोध आया और दे दिया गिरफ्तार करने का हुकुम | चौरी चौरा से गांधी पद यात्रा निकाल रहे छात्रों को पहले गाजीपुर में गिरफ्तार करना और फिर उन्हे 48 घंटे के बाद बिना एसएचआरटी छोड़ भी दिया | परंतु उनकी यात्रा दुबारा प्रारम्भ होने के बाद उन्हे फिर एक बार गिरफ्तार किया गया "”शांति भंग "” के अंदेशे से और उन्हे फ़तेहपुर की जेल भेज दिया गया ! अब क्या इस गिरफ्तारी को वैधानिक और न्यायपूर्ण कहा जा सकता हैं !
फिलहाल तो शाहीन बाग से शुरू हुआ नागरिकता संशोधन विधायक का विरोध के सिलसिले ने जनहा देश - दुनिया में शांतिपूर्ण धरना और आंदोलन का प्रतीक तो बन ही गया हैं |

Mar 4, 2020


आस्था से अधिक आतंक का घोष बनता--


जय श्री राम या बंदे मातरम अथवा जन - गण मन - मारपीट कर कहलाना !!!!


दिल्ली के चुनाव परिणामो की घोषणा के समय भारतीय जनता पार्टी के आतुर देशभक्तों को कुछ ऐसे अवसर मिले थे जब , मतगणना में उनके उम्मीदवार और आप के प्रत्याशी में सैकड़ो का अंतर रह जाता था "” तब स्वयंसेवको की टोली बड़ी ज़ोर से जय श्री राम का घोष करती थी ! पुलिस से शिकायत करने पर इमान्दार और निसपक्ष पुलिस अधिकारी कहते थे की यह तो धार्मिक नारा हैं – इससे चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन नहीं होता ! परंतु जब जवाब में आप वालो ने जय बजरंग बली का नारा बुलंद करना शुरू किया | तब माहौल में गर्मागर्मी आने लगी | जब ईमानदार दिल्ली पुलिस ने आप वालो को नारा लगाने से रोकने को कहा -तब उनहोने जय श्री राम वालो को भी चुप करने को कहा ! शायद देश के इतिहास में पहली बार धरमऔर राजनीति की चासनी बनाकर परोसने वाले सत्तारूद दल तथा संघ के आनुसंगिक संगठनो को पुलिस ने जय श्री राम का नारा लगाने से रोका ! ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि धार्मिक बयानो में भगवधारी स्वामभू संत – कह गए हैं की भगवान से भक्त बड़ा !!!
परंतु यह एक मात्र घटना हैं जब जय घोष को रोकने वाले के वीरुध बयानबाजी नही हुई | अन्यथा इन आतुर धरम प्रेमियो के सामने ना तो कानून टिकता हैं --नाही कोई संगठन ! क्योंकि सत्ता का सहारा पाये ये "वीर "” अकेले नहीं होते हमेशा झुंड में ही नारा लगाते --लोगो को डराते - लुटपाट करते हिनशा करते निकाल जाते थे | क्योंकि सत्ता या सरकार का संरक्षण इन " शरीफ लोगो को होता था | बुलंद शहर में पुलिस के इंस्पेक्टर को बजरंग दल और स्वयंसेवक संघ के संयोजक ने हत्या कर दी | परंतु पुलिस अपने ही साथी के हत्यारो को नहीं पकड़ पा रही थी | क्योंकि कहते हैं की उस स्वयंसेवक को योगी जी का अभयदान था | जब उस घटना का वीडियो बाज़ार में आ गया ,जिसमें उसकी भूमिका साफ नजर आने लगी तब लज्जित हो कर उसे सरेंडर कराया जैसा की गंगा जल फिल्म में किया गया था |

आतंक के बलपर राष्ट्र वादी और देश भक्त बनाना
अभी हाल में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगो में एक वीडियो आया --जिसे बीबीसी ने अपनी समाचार बुलेटिन में दिखाया --की किस प्रकार चार पुलिस के जवान---जमीन पर घायल पड़े पाँच लोगो पर डंडे और लात मार कर कह रहे की "चलो राष्ट्र गान सुनाओ !! अब कराहते हुए उन लोगो ने दो लाइने बोली भी |फिर उन बहादुर पुलिस वालो ने कहा की चलो भारत माता की जय बोलो , तब उन घायल लोगो ने जय भी बोली | अब उन जवानो को इतना तो मालूम हैं की "”राष्ट्र गान"” लेट कर नहीं गाया जाता बल्कि --खड़े होकर और वह भी सावधान की मुद्रा में अलर्ट होकर गया जाता हैं ! जब बीबीसी ने इस वीडियो पर दिल्ली पुलिस से प्रतिकृया मांगी तो वे "” मौन रहे -चुपचाप रहे यानि की कोई प्रतिकृया नहीं दी | इसी तारतम्य में तीन मार्च को भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल की बैठक में जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने - पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह पर व्यंग्य किया की भारत माता की जय बोलने से उन्हे बु आती हैं !! मोदी जी बु तो आपके द्वारा अपने पूर्व के प्रधान मंत्री को ना समझने से आती हैं | आपने ही तो झारखंड की कुनवी सभा में बोला था _की मैं कपड़ो से पहचान जाता हूँ कौन हैं ! जब आप इतने सक्षम हैं तो यह भी जन गए होंगे की ज़मीन पर पड़े हुए लोग किस समुदाय के हैं !!!
ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में मध्य भारत में ठग बहुत थे | जो तीर्थ यात्रियो की टोली में भजन गाते -बजते हुए चलते थे | फिर जैसे ही मौका मिलता था वे रेशमी रुमाल से यात्री का गला घोंट देते थे --और बहुत ज़ोर का जय कारा बोलते थे "”जय महाकाली "” | इतना ही नहीं वे माथे पर लाल टीका -रामनामी द्पटट्टा ओड़े रहते | लोगो की धार्मिक आस्था का ये ठग लाभ उठाते थे | उनके द्वरा महा काली का जैकारा कोई पुण्य नहीं हो जाता था --- वे थे तो हत्यारे ही !! आखिर कार लॉर्ड विलियम बेनतिक ने कर्नल स्लिमन को इन ठगो को पकड़ने का हुकुम दिया| फौज देख कर ठग तितर - बितर हो गए | फिर स्लिमन ने तीर्थ यात्रियो का भेष बनाकर ही उनके लोगो को पकड़ा | उनके सरदार ने कहा की हम तो महाकाली के नाम पर काम करते हैं ! पर स्लीमन ने जब पकड़ -पकड़ कर सदको पर उन्हे खुले आम फांसी पर लटकाया तब धरम के नाम से लूट और हत्या की यह प्रथा बंद हुई | लॉर्ड विलियम बेनतिक ने ही सती प्रथा को भी बंदा कराया था ! सोचे वह एक व्यापारिक कंपनी का अधिकारी था ---जिसका काम कंपनी के व्यापार को सुचारु रूप से चलाना , पर उसने आर्य सभ्यता में पौराणिक समय की कुछ कुरीतियो को धर्मा के नाम पर नहीं कहलने दिया ------और यानहा तो कानून का खुले आम उलंघन ही जय श्री राम के नारे से होता हैं !!
मोदी जी ने सांसदो से कहा की "”देश को तोड़ने वालो के खिलाफ खड़े रहना हैं !! देश के विभाजन का खतरा विगत 70 वर्षो में नहीं हुआ --सिर्फ अभी हुआ | क्योंकि आपकी सरकार ने देश के भिन्न भिन्न धरम के समुदायो के लोगो को निशाना बनाना शुरू कर दिया | जो कल तक सरकार चुनते थे --जिनहोने आपको चुना ----उनही से नागरिक होने के दस्तवेजी सबूत मांगे | जिन दस्तावेज़ो को पहले तक "” स्व्यंसिद्ध "” प्रमाण माना जाता था ,उन्हे भी त्रिबुनल और उच्च न्यायालय तक "”अमान्य करते हैं "” |मजे की बता यह हैं हाइ कोर्ट यह भी नहीं बताता की कौन सा दस्तावेज़ अंतिम हैं --जो उनकी नागरिकता सिद्ध कर दे !!
2------- अब बात गलत और सही नारे की ! हैदराबाद में संचार माध्यम की छात्रा अमूल्य लियोना द्वारा दस ज़िंदाबाद के नारो की | अमूल्य ने मंच से हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के बाद पाकिस्तान ज़िंदाबाद -भूटान ज़िंदाबाद - चीन ज़िंदाबाद और अफगानिस्तान तथा ईरान श्रीलंका ---म्यांमार के भी जिंदाबाद के नारे लगयाए | पर तेलंगाना पुलिस प्रशासन को सिर्फ पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा आपतिजनक \आपराधिक लगा | और पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 { राजद्रोह }} में उसके खिलाफ "”प्राथमिकी "” लिखी | जबकि दिल्ली के दंगो में नफरत भरे भाषण देने वाले चार नेताओ के खिलाफ हाइ कोर्ट के न्यायाधीश के निर्देश को उसी कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने 5 हफ्ते की तारीख दी --क्योंकि सरकारी वकील क दलील थी की अभी गिरफ्तारी होने से माहौल गड़बड़ हो जाएगा !!! परंतु अमूल्य के मामले में तो शक्ल देख कर कानूनी कारवाई हुई ! संविधान में अभिव्यक्ति की आज़ादी और कानून के सामने सभी नागरिकों की बराबरी का वादा सिर्फ "”कागजी "” रह गयी !!
अंत में यही लिखना हैं की कानून तो सब अच्छे हैं -पर उनका अनुपालन करने वाले ही जय श्री राम करने वाले बन गए -गौर तलब हैं की आज कल शवयात्रा में भी यही नारा लगता हैं | फर्क इतना हैं की उसमें सिर्फ एक आवाज़ ही निकलती हैं बाक़ी लोगो के सर झुके रहते हैं !