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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 12, 2021

 

सत्तातंत्र की सच की शपथ और जमीनी हक़ीक़त का अंतर !

उत्तर प्रदेश के पंचायत के चुनावो ने योगी सरकार की गवर्नेंस की हक़ीक़त को देश की जनता के सामने ला दिया हैं ! ग्राम पंचायतों के सदस्यो से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष और फिर ब्लाक प्रमुखो के चुनाव में जिस प्रकार राज्य के नेत्रत्व और प्रशासनिक तंत्र ने कानून और निर्वाचन नियमो की ओर से आँख मूँद कर --सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों को येन - केन प्रकारेंन "”विजयी होने का प्रमाण पत्र "” जारी करने की कवायद की हैं , उसने लोकतन्त्र को ::एक तंत्र '’ में बदलने की बानगी दिखा दी हैं कि किस प्रकार तहसीलदार - अनुभागीय अधिकारी और जिला अधिकारी चुनावो द्वरा किसी भी गिरोह को सत्तासीन करा सकते है | इससे राजनीतिक दलो कि उपयोगिता और "””मतपत्र"” कि पवित्रता खतम हो जाती हैं |

वनही लोकतंत्र को प्रजातन्त्र और नागरिक के फैसले निरर्थक बन देते हैं | अभी तक केंद्रीय चुनाव आयोग संसदीय और विधान सभा में जिस प्रकार सरकार कि "यथा स्थिति "” बनाए रखने के आरोप राजनीतिक दलो द्वरा लगाए जाते रहे हैं , उनही कि पुनराव्रती उत्तर प्रदेश के राज्य चुनाव आयोग ने भी कि हैं ! हर सरकार का मंत्री सच और सदाशयता और निरपेक्षता कि शपथ लेता हैं | पर लगता हैं कि अब उत्तर प्रदेश में यह शपथ केवल सरकार के "हमराहियों "” के लिए हैं , राजनैतिक विपक्षियों के लिए नहीं हैं |

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने ब्लाक प्रमुखो के चुनाव में जिस प्रकार गैर भाजपाइ उम्मीदवारों को नामजदगी का पर्चा तक दाखिल नहीं करने दिया ---- उसने बिहार में मतदान केन्द्रो को बाहुबलियो और सत्ता का संरक्षण प्राप्त द्वरा लूटा जाता था ,उसकी याद दिला दी | एवं जिस प्रकार दलितो और पिछड़े वर्ग के मतदाताओ के वोट बिना उनके गए बटन दबा कर डाले जाते थे ---उसकी याद दिला दी ! कुछ लोगो का मानना है कि यह 2022 में हने वाले विधान सभा चुनावो का "”रिहर्सल "” हैं | अगर यह सच हैं कि बीजेपी नेत्रत्व ऐसा सोच – समझ कर कर रहा हैं ,तब एक बार फिर "”जंगल राज "” का उदय होगा | जो हमारे स्वतन्त्रता संग्राम एन वयस्क मताधिकार के मौलिक और संवैधानिक अधिकार को "”हड़प कर लेगा "” ? क्या आरएसएस ऐसी संस्था का यही उद्देश्य हैं कि देश में केवला उन लोगो को ही शासन और सरकार बनाने कि प्रक्रिया में भागी बनाया जाये ,जो उनके समर्थक हो ? अगर ऐसा हैं तब भारत को चीन या रूस ऐसे एकतंत्र कि देश बनने से रोका नहीं जा सकता ! होने को वनहा भी "”” चुनाव और मतदान कि प्रक्रिया होती हैं , पर चीन में चुनावो में केवल एक ही प्रत्याशी होता हैं , जिसे मतदाता {कम्युनिस्ट पार्टी } के सदस्य या तो समर्थन कर सकते हैं या विरोध ----बस इतनी ही आज़ादी वनहा हैं | क्या उत्तर प्रदेश में वही ढंग अपनाया जा रहा हैं ? जिस प्रकार पंचायत चुनावो में निर्विरोध लोग निर्वाचित हुए हैं वैसा तो आज़ादी के बाद के चुनावो में कभी नहीं हुआ ! देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के चुनाव में भी उनके खिलाफ प्रत्याशी खड़ा हुआ था | कोई भी राष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध नहीं हुआ ! फिर ऐसी कौन सी लहर उत्तर प्रदेश में बहने लगी कि ग्राम पंचायत सदस्य से लेकर ब्लाक प्रमुख और ज़िला पंचाट के अध्याछ बन गए ?? 1952 और 1957 के लोकसभा चुनावो में केवल तहरी - गडवाल संसदीय छेत्र से वनहा के महाराजा ही निर्विरोध चुने गए थे | क्यूंकी उत्तराखंड केदारनाथ मंदिर का संरक्षक माना जाता था | जो उन्हे दैवीय छवि ,जनमानस में देता था | बाकी कोई और उदाहरण नहीं हैं |

उत्तर प्रदेश कि आज़ादी के तुरंत बाद बनी विधान सभा में एक प्रख्यात समाजवादी नेता ने गोविंद वल्लभ पंत मंत्रिमंडल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बलते हुए कहा था कि "””” अध्यक्ष महोदय मुझे सदन में असत्य बोलने का अधिकार चाहिए , क्यूंकी सच तो वही माना जाएगा जो वक्ते हुकूमत कहेगी हम सच भी कहेंगे तो उसे तो सत्य मन नहीं जाएगा "” | लगता हैं उनके वचन आज आम आदमी के लिए हक़ीक़त बन गए हैं | इसीलिए तो सारे राज्य में पंचायत चुनावो में जिस प्रकार कि धांधली और अन्याय हुआ हैं और हिनशा हुई हैं -----उसके बाद मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ टीवी पर पत्रकारो से यह नहीं कहते कि "”” चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए हैं | जनता ने बीजेपी को भरपूर विजयी बनाया हैं "” जबकि उनही कि सरकार का पुलिस मोहकमा कहता हैं कि चुनावी हिंसा में 150 से ज्यादा लोगो के वीरुध मामले दर्ज़ किए गए हैं !

एक ओर बीजेपी हिन्दू और मुसलमानो में दरार डालने के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने कि बात कह रही हैं | जिसमें दो से अधिक संतान वालो को नौकरी और सरकारी सुविधाओ से वंचित करने का प्रविधान किया जाएगा | वनही दूसरी ओर श्रीमति इन्दिरा गांधी के परिवार नियोजन के नारे "”” हम दो ,हमारे दो "” नारे कि खिल्ली उद्दाई ज्ञी थी | एक बात आरएसएस और बीजेपी को समझ लेनी होगी कि परिवार नियोजन के तहत आपातकाल में नसबंदी कार्यक्रम के कारण ही जनता ने कांग्रेस्स को सत्ता से बेदखल किया था | इनके साथ भी वैसा ही होगा अगर जनता इस फैसले और और चुनाव में डनडा और सरकरी तंत्र से मनमानी करने का परिणाम भी 1977 जैसा होगा | अगर समय रहते सरकार और सत्ता धारी दल ने अपने फैसलो में सुधार नहीं किया |

चीन में कानून बना कर केवल एक बच्चे कि अनुमति का कानून बना था , परिणाम यह हुआ कि अब बीस साल बाद उसे अपने फैसले पर ना केवल पुनर्विचार करना पड़ा , वरन जिन लोगो के दूसरी संतान को सरकार ने दूसरे मटा पिता को दे दिया था , वे आज अपने "”जनक और जननी "” कि खोज कर रहे हैं | जापान में स्वतः लोगो ने इतना नियंत्रण किया वनहा का युवा विवाह से ही विरत हो गया | औद्योगिक उन्नति के लिए वनहा के लोग अपने काम के प्रति बहुत गंभीर हैं | परिणाम स्वरूप दस -दस घंटे काम करते हैं | फलस्वरूप आज वनहा विवाह बहुत कम हो रहे हैं | केवल अमीर लोग ही विवाह और परिवार बना रहे हैं | इससे वनहा के बहुसंख्यक युवा और युवती पचास -साथ साल कि उम्र में एकाकी हो रहे हैं | एक कमरे में ही उनकी ज़िंदगी कटती हैं | फलस्वरूप व्रधों में आतम्हत्या कि घटनाए इतनी बड़ी कि सरकार को वनहा "”नागरिकों के एकाकीपन को दूर करने के लिए एक मंत्रालय बनान पड़ा | सिर्फ किसी धर्म को निशाना बना कर कानून बनाना अंततः देश और राष्ट्र को बहुत हानिकारक होगा |