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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 18, 2020


भूखा और गरीब मजदूर ---फिर एक बार हारा , सरकार से



| 24 मार्च को कोरोना के कारण राष्ट्रीय तालाबंदी की अचानक मुनादी ने तो --उद्योग - व्यापार आदि सभी पर पूर्ण विराम "”जैसा लगा दिया "” | सरकार की मुनादी के 24 घंटे में ही दिल्ली – अहमदाबाद --सूरत आदि अनेक नगरो में फंसे लाखो मजदूरो पर तो मानो आसमान ही फट पड़ा ! जिसके पास जो कुछ भी था उसे लेकर वह अपने "”मुलुक '’ या घर जाने के लिए उतावला हो उठा | कारण भी था की जिस नौकरी या काम के सिलसिले में घर छोड़ा -परिवार छोड़ा , जब वही बंद हो गया तब किसलिए रुकना ! और दूसरी ओर यह भी शंका थी की कब तक यह तालाबंदी रहेगी यह भी बताने वाला "””सरकार में कोई नहीं "” | तब निराशा में जो जैसा पड़ा निकाल पड़ा | उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की एक गर्भवती महिला 700 किलो मीटर पदयात्रा कर पहुंची ! हजारो लोग पैदल कानपुर - फारुखबाद - कन्नौज -बुलंदशर - अलीगद तक गए | कुछ साइकल से तो कुछ रिक्शा से बिहार तक पहुंचे |

परंतु मुंबई -महाराष्ट्र - सूरत -अहमदाबाद - दिल्ली आदि के लाखो मजदूरो को कोटा के सैकड़ो छत्रों ने मात दे दी | जिन मजदूरो को घर नहीं जाने दिया - निकलने पर पुलिस ने लाठी भांजी – वनही सरकार की कृपा श्रीमंतों के चिर्ञ्जिवियों पर हुई | और सारे कानून धरे रह गए |
तालबंदी मुनादी --की जो जनहा पर हैं -वनही रहे के सरकारी हुकुम के बावजूद प्रावासी मजदूरो की घर वापसी की जद्दो जेहद मार्च अंत तक रही | लगभग लाखो लोग ने घर वापसी की | तब सरकार ने कोरोना संक्रामण को लेकर नागरिको के आवागमन पर पुलिस की लाठी गरजने लगी | चाहे वह दिल्ली - यू पी बार्डर हो या दिल्ली--- मुरैना का गलियारा हो अथवा धौलपुर - भिंड की सीमा हो सभी पर ऐसी निगरानी शुरू हो गयी --मानो कोई विदेशी घुस रहा हो !
फिर शुरू हुई " दमदारों " और "” बेदम"” हुए मजदूरो में सौतेले व्यवहार की ! बात शुरू हुई राजस्थान के कोचिंग केंद्र कोटा से | जनहा बीस-बीस लाख फीस भर कर छात्र आते हैं | जब उन्होने अपने माता -पिता को अपनी तकलीफ़े बताई तो ---- शासन का उदार चेहरा सामने आ गया | कहते है की तुम शक्ल दिखाओ मैं कानून बता दूँगा ! बस फिर क्या था चार सौ बसे आग्रा से 100 बसे झाँसी से कोटा को रवाना की गयी -----तालाबंदी को ठेंगा दिखते हुए !



इसे ही कहते है अपनों का बेगाना हो जाना ! मुसीबत के मारो को उनके राज्यो की सरकारे मदद तो नहीं कर रही थी ,पर मदद के विज्ञापन खूब हो रहे थे |चैनलो पर बड़े - बड़े नेता इन लाखो भूखे - तंगहाल लोगो के लिए ना तो खाने -पीने और रहने का बंदोबस्त हो रहा था ,ना ही इन्हे जाने दिया जा रहा था !
बिहार और उत्तर प्रदेश झारखंड ओरिसा छतीसगढ़ मध्य प्रदेश के आदिवासी भील --------जेल से भी बुरी यंत्रणा भुगत रहे थे |

14 अप्रैल को तालाबंदी खुलने की उम्मीद ---और ट्रेन सेवा के शुरू होने की \ उम्मीद कहो अफवाह कहो – के कारण बांद्रा पर जैसी आप्रवासी मजदूरो की भीड़ एकत्रित हुई थी -----वह मोदी जी की तलबंदी की घोसना के अगले दिन [24 मार्च ] दिल्ली के आनंद पर्वत पर हुई थी | वही तालाबंदी की पहली असफलता थी | फिर उसे ही बांद्रा में 14 अप्रैल को दुहराया गया | क्यू ? बेकाबू हुई अधीरता ? सरकार अभी भी भी केवल महानगरो की समस्याओ और वनहा इलाज पर केन्द्रित हैं | परंतु जेल से भी ज्यड़ा बुरी यंत्रणा भुगत रहे इन मजदूरो को कब इनके घर वापसी होगी - कैसे होगी कोई नहीं बता रहा ___सरकरे मौन हैं