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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 3, 2021

 

धार्मिक कट्टरता का ही परिणाम हैं -तालिबानीअफगानिस्तान 

आखिर जो नहीं होना चाहिये था -वो ही हुआ ! और अफगानिस्तान में लोकतन्त्र की शुरुआत की अकाल मौत हो गयी ! इसके साथ ही इंसानियत पर मरसिया कहने का वक़्त हो गया | सात साल तक रूस और बीस साल तक अफगानिस्तान को सभ्यता का प्रकाश देने की कोशिश नाकाम हुई ,और जिहादी हिंसा ने एक बार पुन्ह अफगानिस्तान के आम आदमी के जीवन में अंतहीन अंधेरा छा गया | मर्दो की हत्या और लड़कियो और औरतों का अपहरण अब आम हो गया हैं | जो सभ्य समाज में अपराध माना जाता हैं , वह तालिबानी हुकूमत में मुजाहिदीन का हक़ हैं ! ना कोई कानून और न कोई अदालत, बस हथियार बंद लोग डाकुओ की तरह मनमानी कर रहे हैं , जैसा की वनहा से आ रहे वीडियो में दिखाया जा रहा हैं |

अब उनकी हुकूमत कैसी होगी ? उसमें आम लोगो की भागीदारी भी होगी ? महलाओ की शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी होगी ? इन सब सवालो के जवाब में हैं --- अमीर -उल मोमिन अर्थात एक ऐसा आदमी जिसे धार्मिक और दुनिया के मामले में फैसला लेने का अंतिम हक़ हैं ! उसके फैसले का आधार क्या हैं ,यह भी सवाल नहीं किया जा सकता , अगर किया तो गरदन शरीर से अलग हुई ! होने को तो एक सरकार भी होगी जो उसने ही चुनी होगी | आम आदमी की उसमें कोई भागीदारी नहीं |

अरब देशो और अफ्रीका में जिस प्रकार कबीलाई संघरश विगत डसको से चला आ रहा हैं ,मसलन यमन -सुडान और नाइजीरिया इराक और ईरान में कुर्द तथा लेबनान समेत अनेक देश इस्लाम के नाम पर कुछ फिरको द्वरा जल्लादी ज़ेहनीयत के चलते दूसरे फिरको के लोगो को सारे आम गोली मार देना और बच्चो और लड़कियो को अगवा कर लेना आम बात हो गयी हैं | नाइजीरिया में तो "”बोको हराम "” का आतंक इतना हैं की अगवा किए गए लड़के -लड़कियो को रिहा करने के लिए सरकार "”विनती " करती हैं | अब राजनीति शासत्र में एक नयी शासन प्रणाली का अध्ययन करना होगा जिसमें मोमिन का पद वंशनुगत तो नहीं होगा ---परंतु वह भी देशी मठो के महंतो की भांति अपने उतरा धिकारी को नामित करेगा !

ईरान में शाह को अपदस्थ करने के बाद दुनिया को ईरान के खोमइनी के मंसूबो का पता चला | आज दुनिया को उनके परमाणु कार्यक्रम से खतरा हैं |जैसा उत्तरी कोरिया से | इनका नेत्रत्व दुनिया को आतंकित करना चाहता हैं | दोनों ही तानाशाही खसलत के हैं | सऊदी अरब इलाके में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए यमन और इरानियों के विरोधियो को मददा करता हैं | पहले इन इस्लामिका देशो की निगाह में इज़राइल नंबर एक का दुश्मन था | पर अब बीसियों साल से उसके हाथो मात खाने के बाद अब खाड़ी के देश और सऊदी भी दोस्तना संबंध रखना चाहता हैं |

अफगानिस्तान का भविष्य :- काबुल की सरकार के पास अमेरिका के छोड़े हथियारो और गोला बारूद का जखीरा भले कुछ दिन तक तालिबानी सैनिक {जो वे है नहीं } दाग ले , परंतु उनके गोला -बारूद खतम होने के बाद कौन देगा ? वही हाल अनाज और खाने पीने की जींसों का हैं | संयुक्त राष्ट्र संघ ने चेतावनी दी हैं की अफगानिस्तान के पास सिर्फ एक से दो माह का ही राशन हैं | अगर अंतराष्ट्रीय मदद नहीं मिली तो अफगानिस्तान में यमन की तरह ही भूखमरी हो जाएगी | तब तक तालिबानी आतंकी समूह के लडाके खूब गोली चला ले और बिरयानी खा ले उसके बाद तो फाका करना पड़ेगा , अगर दुनिया के देशो की बात नहीं मानी |

खबरों में अमेरिका द्वरा अफगानिस्तान में युद्ध के छोड़े सामान को लेकर बहुत चिंता जताई जा रही हैं | सही भी हैं की जीतने युद्धक हेलेकोप्टर अम्रीका ने वनहा छोड़े हैं , उतने तो एसिया के मुल्को के पास भी नहीं हैं ! टैंक – आर्मर्ड कार तथा अन्य साजो सामान भी किसी छोटे मुल्क की सेना के लिए पर्याप्त हैं |

परंतु इन हथियारो के लिए गोला-- बारूद और वाहनो को चलाने के लिए "”तेल"” कान्हा से आएगा ? फिलवक्त तो इनका जशन मन जाएगा पर उसके बाद ??? क्या होगा | वैसे हुकुमते अक्सर ज्यादा गंभीरता से भविष्य की चिंता नहीं करती , वे बस "” यह समय निकाल जाये कुछ दिन और कुछ माह निकाल जाये , हो सकता वक़्त खुद ही कोई समाधान दे दे !! जैसे भारत सरकार का रुख हैं ! अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को अपनी फौज के लिए साजो -समान और खनिज तेल तथा अपने आवाम या लोगो अथवा प्रजा के के खाने के लिए अनाज का बंदोबस्त करना होगा ! अफ़्गानिस्तान के तालिबन अभी तक अफीम की कमाई से अपनी मुहिम चला रहे थे, परनातू अब उन्हे कुछ हजारो लड़ाको की ही नहीं फिकर करनी हैं ,वरन मुल्क की सारी आबादी के भोजन की वयवस्था करनी हैं | वरना देरी होने पर यानहा भी यमन और सुडान जैसे हालात बनने में देर नहीं लगेगी | और इन समस्याओ का समाधान तब तक नहीं हो सकता जब तक विश्व समुदाय को मौजूदा नेत्रत्व यह भरोसा नहीं दिला देता की वे "”सभ्य सरकार "” की भाति काम करेगे | तब तक ना तो विश्व समुदाय उन्हे "”एक हुकूमत "” के रूप में मानिता देगा और ना ही अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोशा और वर्ल्ड बैंक अफगानिस्तान को सहायता नहीं देंगे , ऐसा ही संकेत मिल रहा हैं | अल - कायदा के संगठन आइसिस खुराशन का उजडपन और आतंकी वारदात को अंजाम देने के तेवर भी मौजूदा नेरत्व के लिए कठिनाइया खड़ी करसकते हैं | माना यह जा रहा की तालिबन अपने को अफगानिस्तान तक ही सिमिटा रखना चाहते हैं , जबकि आइसिस खुरासान ने साफ कर दिया हैं की की "” वह काश्मीर पर बिलकुल बोलेगा " यह बयान भारतवर्ष के लिए चिंता का विषय हैं | क्योंकि काबुल दिल्ली से हज़ार किलोमीटर ही दूर हैं -----जो दिल्ली से केरल की भी दूरी से कम हैं ! अब यह समझना मुश्किल नहीं की अफगानिस्तान की हलचल हम पर कितना प्रभाव डालेगी ?????????