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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 15, 2013

पंद्रह कंपनी पाँच सौ करोड़ रुपया और पचास लाख लोगो का पैसा गायब

पंद्रह कंपनी पाँच सौ करोड़ रुपया  और पचास लाख लोगो का पैसा गायब  
                                                                                        नए - नए सपने और मोहक वादे तथा तुरत फुरत  लखपति बना देने का विज्ञापन , काफी लोगो को  भरमाने का इंतज़ाम  होता हैं | मध्य प्रदेश के छोटे --छोटे और इंदौर ऐसे बड़े शहरो में ऐसी कंपनियो का जाल आज भी हैं | अभी हाल में हुए एक सर्वे के अनुसार  इन फर्जी कंपनियो ने भोले - भाले  नागरिकों  की जमा -पूंजी हड़प कर के नौ - दो ग्यारह हो गए | आज भी  प्रदेश और देश में लगभग सात हज़ार  ऐसी कंपनी  अपना जाल फैलाये हुए हैं , पर हमारा  वित  मंत्रालय और रिजर्व  बैंक  की ओर से इनके कारोबार को को पूरी तरह बंद करने का कोई ठोस  प्रयास नहीं किया जा रहा है | रिजर्व  बैंक ने वित्तीय गदबड़ियों के उजागर होने पर  सिर्फ पाँच बंकों और चार संस्थानो को ''नोटिस'' दे कर फर्ज़ पूरा कर दिया | उधर  शारदा  चित फ़ंड कंपनी के घोटाले को लेकर  बंगाल सरकार मुसीबत मे पड़ी हैं | उस पर राजनीति तो दोनों ओर से हो रही हैं ,उधर जिन लोगो के पैसे डूब गए हैं उनके तो सपने ही टूट गए और उनके सामने तो कोई विकल्प  ही नहीं हैं | निवेशको  द्वारा  आत्महत्या  किए जाने की घटनाए रोज़ - रोज़ हो रही हैं | 
                                                अभो दिल्ली  पुलिस ने 1998 मे  गिरफ्तार जेवीजी  फ़ाइनेंस कंपनी  के मालिक  विजय शर्मा को  700 करोड़ के गबन मे गिरफ्तार कर लिया हैं | पंद्रह वर्ष पहले सात सौ करोड़ की रकम बहुत बड़ी होती थी , पर अब मंहगाई ने रुपये की कीमत को काफी घटा दिया हैं , परंतु   कानून की रफ्तार  अभी भी  धीमी कीं धीमी ंही बनी हुई हैं  अब  इस रफ्तार को तेज़ करके ही  इस विकराल  संक्रामक रोग से निजात पायी जा सकती हैं | 
                                 अभी भी बाज़ार में  कम से कम सात हज़ार से ज्यादा  नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी  अभी भी आम लोगो से हर शाम रोजंदारी  रकम वसूली जाती हैं , सिर्फ इस आशा पर ही  निवेशक रोज़ -रोज़ रकम जमा कराता हैं की जरूरत के वक़्त उसे यह जमा  राशि  वापस मिल  जाएंगी , जिस से वह लड़की की शादी कर सकेगा अथवा मकान की किशत | भर सकेगा या गाड़ी खरीदेगा | परंतु  जमादारों  के सपने  उस समय चूर - चूर हो जाते हैं जब वह अखबार  मैं पड़ता हैं की जिस कंपनी मैं अपनी  बचत जमा करा रखी हैं उसका दफ्तर बंद हो गया हैं | यह खबर  उस पर वज्रपात  बन कर आती हैं , जब वह कंपनी के दफ्तर पहुंचता हैं तब  वह देखता हैं की केवल उसका सपना ही चूर हुआ हैं बल्कि उस जैसे हजारो लोगो  की सपने बिखर चुके हैं |
                                            निराश और गुस्से से भरे  निवेशक तोड़ -फोड़ पर उतर आते हैं , मौके पर पुलिस आ जाती  हैं और लोगो को समझाती हैं की '''कानून'' अपने हाथ मे न ले | पर भीड़ पूछती हैं की क्या करे ,उनका पैसा मिलेगा  की नहीं ? इन सवालो का जवाब होता हैं की   हम कारवाई  करेंगे  परंतु  वह कारवाई थाने के कागज़  मे दम तोड़ने की कतार मे लग जाती हैं , जंहा ऐसे  काफी मामले दम  तोड़ रहे होते हैं | और एक बार फिर अखबारो  मे दो - चार दिन तक खबरे  छपती  हैं फिर धीरे - धीरे उनका साइज़  भी छोटा होता चला  जाता हैं | कानून  अपनी जगह दो - चार दिन कुछ कारवाई करने की कोशिस करती हैं पर  कंपनी  के स्थानीय  प्रतिनिधि  ही हाथ लगते हैं | , जिनहे बस इतना ही मालूम होता हैं की '''सर ''' अक्सर  दिल्ली या बॉम्बे  जाते थे ,उसे यह भी नहीं मालूम होता की वे कहा  के  रहने वाले थे  या उनका परिवार कहा  रहता हैं  यह जानकारी उसे नहीं हैं ,|  अब  इन हालत मैं पुलिस को फौरी तौर पर कुछ नहीं सूझता हैं ,इसलिए वह मामले को '''दाखिल दफ्तर '' कर देता हैं | 
                                            अब यह कहानी  साल मे दस - बारह बार दुहराई जाती हैं , पर न तो पुलिस न ही सरकार  इसका कोई  कारगर इलाज़ नहीं खोज पाती हैं , और आम लोग धोखा  खाते रहते हैं | सवाल यह हैं की यह कहानी कब तक दुहराई जाती रहेगी ?