Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 29, 2013

पानी किसी के बाप का नहीं , पर समाज और सरकार का हे

 पानी किसी के बाप का नहीं , पर समाज और सरकार का हे 
                                                                                 महारास्ट्र और गुजरात मे होली के  अवसर पर  कथावाचक  आषाराम बापू ने  अपने  "भक्तो" के साथ होली खेलने मे पिचकारी की जगह होज पाइप से रंगो को भीड़ पर  डाल कर उन्हे रंगो से सराबोर कर दिया  | जबकि  महारास्ट्र  सरकार ने पानी की राज्य मे कमी को देखते  हूए होली पर पानी का प्रयोग न करने की अपील  तथा पानी के दुरुपयोग पर  प्रतिबन्ध की  घोसणा की थी | परन्तु मुंबई मे आशा राम बापू के  अनुयाई  लोगो ने महानगर निगम  काय अधिकारियों से मारपीट की | अब "धर्म  गुरु " के खिलाफ कोई  कारवाई कैसे होती ? सो  सिर्फ  घटना समाचार  पत्रो  और प्रचार माध्यमों  तक सिमट गयी | 
                            यही घटना  गुजरात मे भी दुहराई  गयी , तब जनता मे भले ही रोष व्याप्त हुआ हो , परन्तु  आसाराम  और उनके भक्तो पर तो समाज और राज्य की समस्या का  कोई प्रभाव नहीं पड़ा | हस्बमामूल भक्तो की  अपार  भीड़  देख कर "बापू " मगन हो गए और सामाजिक और प्रचार माध्यमों मे  हो रही आलोचना से बेखबर  उन्होने फिर मुंबई का इतिहास दुहराया | जब किसी ने उनसे कहा की उनके होली खेलने के तरीके से और पानी के दुरुपयोग का  आरोप लग रहा हे | तब उन्होने निहायत अक्खड़ तरीके  से कहा था की ""पानी किसी के बाप का नहीं " | अब यह भाषा किसी ऐसे व्यक्ति तो नहीं हो सकती जो लाखो लोगो का "अगुआ " हो , और जो धरम  की सीख देता हो , उसे समाज और लोगो  की परवाह ही न हो ? अगर  कोई गुरु समाज के प्रति इतना संवेदनहीन हो तब उसके समाज को नेत्रत्व देने की  छमता पर संदेह होना ज़रूरी हे |  यह कहा जा सकता की उनके तो "लाखो भक्त " फिर क्यो उन्हे "पूजते " हे ? तब ज़रूर लगता हे की हमारे देश मे ""अंध श्रद्धा" ने हमेशा तर्क  और वास्तविकता को दबाया हे | अब इसको क्या कहेंगे की उनके भक्त टी वी   चैनल  पर यह कहते हे की बापू ने पानी बरबादी  नहीं की हें , यह तब जब उसी चैनल मे होज पाइप से  होली खेलते "बापू "  दिखाई पड़ रहे थे | अब इसे बेसरमी कहे या अहंकार ? 

दारुल अमन भारतवर्ष मे "हिजाब क्यो नहीं और नकाब ही क्यो"

 दारुल  अमन भारतवर्ष मे "हिजाब क्यो नहीं और नकाब ही क्यो" 
                                                                                      इस्लाम की पवित्र किताब कुरान और दीगर हदिसो मे भी महिलाओ  के  लिए यह ताकीद की गयी हे की वे "हिजाब" बरते | अब 71 इस्लामिक मुल्को मे भी इस को दो तरह से अपनाया गया हे | जॉर्डन , फिलिस्तीन , सऊदी अरब के  कुछ थोड़े से  हिस्सो मे बद्दू और अनेक मुल्को मे परंपरा से चले आ रहे हिजाब को अपनाया हे | जिसमे महिला अपने "कान  और गले को कपड़े या दुपट्टा टाइप से  बांध के रखती हे |  बाक़ी एशिया के मुल्को मे भारत पाकिस्तान , मलेसिया आदि मे "नकाब " का रिवाज हे , जिसमे महिला की सिर्फ आंखे ही दिखती हे बाक़ी चेहरा छुपा रहता हे | 
                                                                     सवाल  हे की जब आज की दुनिया मे मर्द और औरत बराबरी की ज़िंदगी जी रहे हे , तब बुर्के  मे महिला के होने का कोई  अर्थ नहीं समझ  आता हे ? हाँ  यदि परंपरा का निर्वहन ही उद्देस्य हो तो बात दूसरी हे | जोधपुर मे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की महिला शाखा  का "महिला  सशस्क्तिकरण " के मुद्दे  पर हुए अधिवेसन मे  भी महिलाओ का नकाब पहनना कुछ अटपटा लगा था | वैसे इस देश मे किसी को कोई भी ड्रेस  पहनने की आज़ादी हे , इसलिए कोई ऐतराज भी नहीं कर सकता | पर एक बात जो थोड़ी सी खटक रही की यदि  ""दीनी" तौर पर एक बेहतर विकल्प हो तो उसे  अपनाने मे  अड़चन क्यो हे ? 
                                                 वैसे अगर हिंदुस्तान के "उलेमा और मौलवी " इस बात पर गौर करे तो शायद मुस्लिम महिलाओ को एटीएम  मे जाने मे कोई दिक़्क़त नहीं होगी | दूसरी ओर स्कूटर और कार चलाने  की आज़ादी भारतवर्ष मे हे पर जब ट्रेफिक  पुलिस  लाइसेन्स  देखती हे तब वह  तसदीक़ नहीं कर पाती हे की ड्राईवर वही हे जो लाइसेन्स  मे दिखाया गया | ट्राफिक  नियमो के उल्लंघन करने पर भी दिक़्क़त होती हे , पर आज अगर ऐतराज नहीं किया ज़ रहा हे तो यह नहीं मान लेना चाहिए की जो हो रहा वह सही हे | 

इस्लाम मे बिना जाति के आरक्षण कैसे होगा ?

इस्लाम मे बिना जाति के  आरक्षण कैसे होगा ? 
                                                                  उज्जैन मे मुस्लिम पर्सनल  ला बोर्ड के  सालाना जलसे मे यह मांग की गयी हे की मुसलमानो को भी आरक्षण मिलना चाहिए , परन्तु वे लोग  यह भूल गए की इस्लाम मे सभी बंदे "बराबर " हे | जबकि सनातन धर्म मे ही जाति का संगठन हे | भारतीय संविधान भी उनही जातियो को आरक्षण देता हे जिनका पेशा ""सामाजिक - आर्थिक और  सैक्षणिक रूप से "" उन्हे समाज मे बराबरी का दर्जा नहीं देता | धर्म  ग्रंथो के  आधार पर यह साबित हुआ हे की जातियाँ  सनातन या हिन्दू धर्म मे मौजूद हे | अब ऐसी स्थिति मे बोर्ड किस आधार पर रिज़र्वेशन  लेगा ? 
                                                एक बात यह सामने आ रही हे की अगर हिन्दुओ मे पेशा  ने जाति को निर्धारित किया हे तब मुसलमानो मे भी यह फार्मूला  अमल मे लाया जा सकता हे | पर हिन्दुओ मे  पेशा  बदल लेने  से जाति नहीं बदलती क्योंकि वह "जन्मना ""होती हे | जबकि  इस्लाम मे  "सुन्नत " के  बाद सभी बंदे  बराबर होते हे , इसका उधारण नमाज़ अदा करते वक़्त  और ""दसतरखन "" के  मौके पर होता हे | जबकि  सनातन धर्म मे  ""रोटी - बेटी " का संबंध पेशे से नहीं जाति से  होता हे | 
                                                                       इस से यह जरूर शक होता हे की बोर्ड ने कुछ  नेताओ की आवाज पर तो यह मांग नहीं उठाई हे ? 
क्योंकि   जब रिज़र्वेशन का आधार ही जाति हे और इस्लाम मे जाति का वजूद नहीं हे तब कैसे यह मांग पूरी की जा सकेगी ? अगर कुछ पेशो  को आरक्षण की परिधि मे लाया गया तब  बाक़ी लोग भी उसी पेशे को अपना लेगे | और भारतवर्ष  मे "हर नागरिक को अपना पेशा चुनने की आज़ादी हे | तब इस मसले का हल क्या होगा ? क्या फकत  यह कुछ मांगने की ही कवायद भर तो नहीं ? 

कारगिल और जनरल मुशर्रफ - घुसपैठ या युद्ध , तब और अब

 कारगिल  और  जनरल मुशर्रफ - घुसपैठ  या युद्ध , तब और अब  
                                                              जनरल मुशर्रफ आज दावा कर रहे हे की उन्हे गर्व हे की पाकिस्तानी सेना ने  यह अभियान सफलता पूर्वक सम्पन्न किया | जनरल के रूप मे और राष्ट्रपति के ओहदे  पर रहते हुए जिस बात को उन्होने हमेशा "गलत और झूठ " करार  दिया , उस हक़ीक़त को आज वे खुद सही बता रहे हे | पाकिस्तान नेशनल एसम्ब्ली के चुनाव की पूर्व , यह प्रचार उन्हे एक फायर ब्रांड नेता की छवि दिलाने मे कामयाब होगा शायद यही सोच कर जनरल नाय "कल के कलंक को  आज उपलब्धि "काय रूप मे पेश कर रहे हे | 
                                                    अन्तराष्ट्रिय मंचो पर और टी वी पर वे हमेशा इस मुद्दे से बचते रहे हे , परन्तु पाकिस्तान पहुँचते ही उन्होने ये दावा करना शुरू कर दिया | जो हक़ीक़त एक प्रशासक के रूप  मे नामंज़ूर थी , उसे आज वे गले मे लटकाए फिर रहे हे | बस इस उम्मीद मे की पाकिस्तान की जनता उन्हे बेनज़ीर भुट्टो के हत्यारे के रूप के  बजाय  भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एक सिपाही की हैसियत से  जाने | अब यह नारा कितना कारगर साबित  होगा यह देखने वाली बात होगी ? अगर तो पाकिस्तान की जनता  वाकई  दहशतगर्दो  की हरकतों  से  परेशान हे , तब तो जनरल को मुंह की खानी  पड़ेगी | अगर आज भी पाकिस्तान के लोग हिंदुस्तान से नफरत की खुराक  पर ज़िंदा हे ,तब बात दूसरी हे | फिलहाल तो जनरल  पर सिंध हाई कोर्ट के  बाहर  जूता फेंका गया हे , जो आम आदमी के  मिजाज की बानगी हे , अब देखना  हे की ऊंट किस करवट बैठता हे ? 

Mar 23, 2013

कानून की निगाह में कौन हैं हैं किशोर ?

        कानून की निगाह में कौन हैं हैं किशोर  ? 
                                                                   दिल्ली में दिसम्बर में हुए "दामिनी " बलात्कार काण्ड में एक आरोपी की  आयु  को लेकर  सारे  देश में  समाचार  पत्र -पत्रिकाओ से लेकर रेडियो और टीवी  में बहुत बहस चली थी । परन्तु मामला  अनसुलझा  ही  रह गया । बल्कि यह कहा जा सकता हैं की बहस पूरी - पक्की और मामला जस का तस । दिल्ली पुलिस ने विवेचना में उस 'अभियुक्त ' की उम्र को लेकर उसे " नाबालिग" करार दिया । ताज्जुब  इस बात का हैं की जिस आदमी के पाशविक अत्याचार और अमानुषिक व्यव्हार   के कारन "दामिनी " की असामयिक  मौत हुई उसे ही कानून की कमजोरी का लाभ मिला । 
                                                   हांलाकि  तब भी उसकी उम्र का  सबूत स्कूल का प्रमाण पत्र था । हालाँकि यह मांग भी की गयी थी ,आरोपी की उम्र निर्धारण  करने के लिए मेडिकल  टेस्ट किया जाए , परन्तु पुलिस ने इस मांग को ठुकरा दिया । मज़े की बात हैं की स्कूल के प्रिंसिपल ने यह मंज़ूर किया की आरोपी के जन्म का प्रमाण पत्र , अर्थात अस्पताल का सर्टिफिकेट  नहीं प्रस्तुत  किया गया था । सिर्फ उसके  पिता के कहने पर ही स्कूल में ज़न्म  तिथि  दर्ज की गयी थी । तब भी यह सवाल उठा था ,की क्या वह आदमी जिसने एक लड़की के साथ जघन्य   व्यय्हार किया वह क्या एक  "" किशोर '' का था ? 
                                         इस मुद्दे को लेकर  जब मानवाधिकार  संगठनो  ने यूनाइटेड नेशंस  की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा" किशोर " ऐसा अपराध  नहीं कर सकता ! परन्तु बीजिंग  रूल्स में भी  कहा गया हैं की  ""अपराध की ज़िम्मेदारी के लिए उम्र  का निर्धारण  उसकी 'मानसिक और  बौद्धिक परिपक्वता  को '' ध्यान में रख कर किया जायेगा ."'। इस स्थिति में   हमारे देश के कानून  के अनुसार जो भी  अट्टारह साल स्वय कम होगा वह   किशोर ही माना  जायेगा । 
                                                           अब इस विषय को सुप्रीम  कोर्ट  ने अपने संज्ञान में  लिया हैं । इस मुद्दे को  पहले एक जनहित याचिका के माध्यम से उठाया गया था । परन्तु  जनता पार्टी के  अध्यक्ष  सुब्रमनियम  स्वामी ने भी इस मुद्दे पर एक याचिका दाखिल की , तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार  को नोटिस देकर  पुक्षा  हैं की  सयुक्त  राष्ट्र  के  बालको के अधिकारों के सम्मलेन और बीजिंग नियमो  का उल्लान्घ्गन हैं , । क्योंकि जो  अपराध अमानवीय और जघन्य  किस्म का हो उसमें  अभियुक्त  की अपराध  करने की छमता और उसके  ज्ञान को ध्यान रखना होगा । वर्ना बलात्कार कर  जान से मार देने का जुर्म करने वाले को  "कतई  किशोर  नहीं  माना  जाना  चाहिए , और नहीं उसको किशोर कानून का लाभ नहीं मिलना चाहिए , वर्ना यह कानून और न्याय व्यस्था का मजाक होगा । सरकार को इस मुद्दे पर अपना  रुख  स्पस्ट करना होगा । 
                             

Mar 19, 2013

सूत न कपास जुलाहे से लठम लट्ठा- सहमती से सहवास

सूत  न कपास  जुलाहे से लठम  लट्ठा - सहमती से सहवास 
                           क्रिमिनल  लॉ  अमेंडमेंट बिल  में सर्वाधिक  विवाद  का मुद्दा था लड़की की सहमती की आयु -- सरकार के अध्यादेश में यह १८ वर्ष थी , जिसे मंत्रियो के ग्रुप ने सोलह वर्ष किये जाने की सिफारिश की थी । इस सिफारिश को ही  राजनितिक और सामाजिक संगठनो ने आपतिज़नक  बताते हुए देश में "सांकेतिक " धरना -प्रदर्शन किये । मज़े की बात यह की सरकार ने भी यह  बताने का प्रयास नहीं किया की , ऑर्डिनेंस में अठारह  वर्ष ही हैं । केवल मंत्री समूह ने इसे सोलह वर्ष किये जाने की सम्मति दी थी । अध्यादेश को विधि बन ने के लिए संसद की मंज़ूरी ज़रूरी थी । अब किस रूप में यह  पारित  हो इस पर  तो संसद  ही फाइनल मुहर लगाती । तो हुआ य़ू  की सडको पर प्रदर्शन  और  धरने हुए कमरों में बैठ कर निंदा के प्रस्ताव भी पारित हुए कंही कलेक्टर तो कंही कमिश्नर को ज्ञापन दिए गए । पर  पक्ष -विपक्ष में कोई तर्क नहीं दिया गया । 
                                                                  और सरकार ने सहमती की आयु को  बरक़रार  रखते हुए अठारह वर्ष  ही रखा । सहमती से  सहवास की उम्र , लडकी के लियुए विभिन्न काल में अलग -अलग रही हैं ।                                                                 
अंग्रेजो के समय में सनातनी समाज में लड़की का विवाह दस वर्ष की उम्र में कर दिया जाता था । इसे धर्म  सम्मत कहा जाता था । वैदिक निर्देशों में  कहा गया हैं की "कन्या के रज़स्वला  होने के पूर्व ही विवाह करना उत्तम हैं "" १८९१  में  एक कानून बनाया जिसे '' एज़ ऑफ़ कन्सेंट " नाम दिया इसमें उन्होने सहवास के लिए बारह वर्ष की आयु नियत की गयी थी । जिसे १९८३ में संशोधन द्वारा सोलह वर्ष की गयी , जो अभी तक प्रभावशाली हैं । मज़े की बात हैं की विगास्त तीस सालो में किसी राजनितिक दल या संगठन अथवा  मंच द्वारा यह आवाज़ नहीं उठाई गयी की सहमती की उम्र में वृधि  की जाए ?  बल्कि  यह काम  सरकार ने किया । हाँ विरोधी  दल यह श्रेय ले सकते हैं की ""उन्होंने शासन को ऐसा करने पर मजबूर किया . "" हालाँकि मणिपुर राज्य में अभी भी सहवास के लिए चौदह साल की ही उम्र रहेगी , अब वंहा कोई चैनल  नहीं जायेगा न ही कोई प्रिंट मीडिया .


        अब एक और मुद्दा हैं जिसमें यह कहावत चरितार्थ होती हैं की ""करे कोई ,भरे कोई ""वह हैं दो इटालियन नौसैनिकों  का , जिसमें ज़बरदस्ती केंद्र सरकार को निशाने पर लिया जा रहा हैं । जबकि उन दोनों की"पैरोल "
 सर्वोच्च  न्यायलय  द्वारा मंज़ूर की गयी थी । अब सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध तो कोई आन्दोलन  -प्रदर्शन - भरना नहीं किया जा सकता , क्योंकि  वह "अवमानना ' का मामला बन जायेगा । इसलिए धुनों सरकार को  चाहे दायें से या बाएं से , इसी को कहते हैं सूत न कपास जुलाहे से लट्ठम  लट्ठा ...........

Mar 14, 2013

Diplomatic relations are not based on emotions

   Diplomatic relations are not based on emotions 
                                                                         Some voices are coming  that we should break our relations with Pakistan and withdraw our ambassador from Italy .Reason for these demands are that Italy has not kept its promise , by  not sending back two mariners , who are accused of murder charges .And particularly when Italian ambassador has given affidavit in the Supreme Court that these two accused will be brought back to India after casting their vote . But it was not done . Now some voices are asking that we should  withdraw our representative . Same voices are also asking same action against Pakistan , for the cease fire violation -beheading our soldiers and spreading terrorist activity . But the question is whether these action would result be fruitful ? Or it will be only a futile show of ''vehemence''.? 
                                                          It is unfortunate that those who are making such demands have been in the government . And they are aware  of the limitations of the government .Indian government can declare the Italian  ambassador  "persona -non -grata ""meaning you are not required in our country . But the same can be repeated by Italian Government with Indian ambassador. Then what will be achieved ?    Let us also take the example of Pakistan , if we send back the Pakistan ambassador to Islamabad .Then Indian ambassador will also be send back to New Delhi . Then what will be gained ? 
                                         Let us thrash the issue , we have one option  of taking the matter to the International Court Of Justice , or open the talks with both the countries . Because in Diplomacy negations are the only acceptable way , for getting the solutions.And slogans -statements can vent the emotions but not pave the way for reaching the solution . It is high time that our political leaders should learn the limitations of running the government and remaining in the international community as respectable Nation . 

क्या हिंदी के लिए फिर लोहिया को जन्म लेना होगा ?

   क्या  हिंदी के लिए फिर  लोहिया को जन्म लेना होगा ?
                                                             साठ  के दशक में राष्ट्र  भाषा हिंदी के सार्वजनिक  रूप से प्रयोग की मांग को लेकर समाजवादी नेता डोक्टर  राम मनोहर लोहिया  ने राष्ट्र व्यापी आन्दोलन किया था । लेखक उस समय विश्व  विद्यालय का छात्र था , एवं समाजवादी युव जन सभा का सदस्य था । उस समय अंग्रेजी में लिखे साइन बोर्ड और सरकारी  सूचना पट  पर कालिख पोतने का काम छात्रो के जिम्मे था । आन्दोलन का सूत्रपात हिंदी में सरकारी विभागों के प्रतियोगिता  में जवाब लिखने की आज़ादी की मांग से हुई थी । आन्दोलन  का ही नतीजा था की स्तम्भ लेखक और पत्रकार डोक्टर  वेद प्रताप वैदिक  ने   जवाहर लाल नेहरु  विश्व  विद्यालय  में अपनी थीसिस  हिंदी में लिखी ,और डाक्टरेट  की उपाधि प्राप्त की । 
                             उसके बाद हिंदी को  राष्ट्र भाषा  का  दर्ज़ा  तो मिला .लेकिन इस प्राविधान के साथ की केंद्र सरकार पत्र व्यवहार  करते समय गैर हिंदी भाषी प्रान्तों की भाषा  में उसका अनुवाद भी भेजेगी । दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदी आन्दोलन की प्रतिक्रिया में हिंसक आन्दोलन हुए ।  जिसमें जन- धन की काफी हानि हुई थी , रेल गाड़िया  जलाई गयी पोस्ट ऑफिस फूंके गये   थे । उनकी मांग थी की हिंदी को उन पर  थोपा नहीं जाए । परिणाम स्वरुप  संविधान में उल्लिखित  सभी भाषाओ में सरकारी प्रतियोगिताओ  में उत्तर देने  की आज़ादी दी गयी । तब गैर हिंदीभाषी  राज्यों के लोगो को संतोष हुआ । 
                                                            आज संघ लोक सेवा आयोग ने अंग्रेजी के पर्चे को  अनिवार्य करके फिर एक विवाद खड़ा कर दिया हैं । उस समय  भी प्रांतीय  भाषाओ की  अनदेखी  नौकर शाहों की हरक़त का परिणाम था , जिसका खामियाजा तत्कालीन कांग्रेस सरकारों को भुगतना पड़ा था ।  आज फिर उसी  शासन तंत्र के हिस्से ने षड़यंत्र पूर्वक अखिल भारतीय  सेवाओ की प्रतियोगिताओ न केवल छेत्रिय  भाषाओ  की  अवहेलना की हैं वरन हिंदी जो की राष्ट्र भाषा हैं , उसका अपमान खुले आम किया हैं ।   
                       भाषा का यह विवाद फिर राजनितिक रूप लेगा , तमिलनाडु  में  इस मुद्दे पर डी एम् के  और अन्ना  डी एम् के    के सुर एक हो गए हैं  । दोनों ने ही केंद्र सरकार के इस निर्णय की भर्त्सना की हैं । देखना हैं की भाषा का यह विवाद कंही गटबंधन की सरकार को खतरे में न ड़ाल  दे   , तब नौकर का   किया  मालिक भोगेगा  । 
                  

Mar 13, 2013

गाँव के लोगो को खुले में जाने की आदत ?

   गाँव के लोगो को खुले में जाने की आदत ?
                                                                       भले ही पंचायत हो या नगरीय विकास अथवा शिक्षा  विभाग हो ,स्कूल भवनों  का निर्माण  सभी करते हैं , परन्तु कमरे और आँगन बनाने का काम भर ही करते हैं ।  लड़के या लडकियों के लिए टॉयलेट बनाने की ज़हमत नहीं उठाते । हाँ  अगर किसी  मास्टर जी ने  निर्माण के दौरान भूमिका  निभाई तो   उनकी बिरादरी के लिए कुछ टेम्परेरी  व्यस्था तो हो ही जाती हैं । आप गांवो  में जाइये  और मुआयना करिए  , सच आपके सामने आ जायेगा ।  
                                                            आखिर ऐसी अनदेखी  क्यों ?  शायद योजना बनाने  वाले इस प्राकृतिक जरूरत को इसलिए भूल जाते हैं क्योंकि शायद गाँव वालो के लिए ''टॉयलेट'' जरूरत की चीज़ नहीं हैं ! शहरी  लोगो की सोच की ''गाँव में लोगो को खुले में जाने की आदत हैं ''। 
                                                                                      शायद यही सोच ही स्कूल में टॉयलेट न होने की वज़ह हैं । क्योंकि नवोदय स्कूलों के छात्रावास में केन्द्र  सरकार टॉयलेट की सही व्यव्स्था करती हैं । फिर प्रदेश सरकार  क्यों नहीं एक जनरल  आदेश से निश्चित करती हैं की स्कूल  या छात्रावास  के भवनों में छात्र और छात्राओं के लिए अलग -अलग शौचालय बनाने की बाध्यता होगी ।  
                                        फिलहाल प्रदेश में ३०४९५  स्कूल  भवनों में लडकियों  के लिए कोई व्यवस्था नहीं हैं । एक रिपोर्ट के अनुसार पांचवी क्लास के बाद  लडकियां इस लिए  पढाई   छोड़ देती हैं क्योंकि  उनको स्कूल  में  उनकी ''ज़रुरत '' के वक़्त कोई सुरक्षित जगह नहीं मिलती हैं । आज   शिक्षा के प्रसार के लिए ज़रूरी हैं  सुरक्षा -शौचालय - पेय जल , इनके बिना देश की मुख्य धारा  में हमारे गांवो  की सहभागिता निश्चित नहीं की जा सकती ।  

Mar 12, 2013

प्रदेश से राष्ट्रीय छितिज़ पर पहुंचे शिवराज

   प्रदेश से राष्ट्रीय छितिज़ पर पहुंचे  शिवराज 
                            तीसरी बार विधान सभा चुनावो  के लिए कमर कस  रहे  शिवराज सिंह चौहान  को आज भारतीय जनता पार्टी  के राष्ट्रीय नेतृत्व  में जगह मिलने का मौका मिला हैं । मोदी  को जिस प्रकार देश के भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया गया था , उस से लगता था की ''वे '' पार्टी की एकमात्र  पसंद हैं । परन्तु हाल में हुई राजनीतिक घटनाओ ने शिवराज को  उनके मुकाबले  खड़ा कर दिया हैं । यद्यपि अभी वे  पार्टी के उस खेमे के साथ खड़े दीखते हैं जिसे ""नेतृत्व "" ने  अनदेखा  कर दिया हैं ।  परन्तु इस परिवर्तन ने एक बात स्पष्ट कर  दिया हैं की आगामी विधान सभा चुनावो में ""उनकी "" पसंद ही चलेगी । क्योंकि अब जिन लोगो को "दिल्ली से मुख्यमंत्री " के  खिलाफ  मदद की उम्मीद थी अब वे भी खुले रूप में तो इस मुहीम में साथ नहीं दे  सकेंगे ।  क्योंकि दलीय राजनीती में  शीर्ष  नेतृत्व सदैव  एक ''संतुलन'' बना कर चलता हैं । जिसके अभाव में पार्टी का अस्तित्व  खतरे में पड  सकता हैं । 
                                                                         आज  भा ज पा  इसी दो राहे  पर खड़ी  दिखायी पड़ रही हैं । मोदी और संघ परिवार ने  पार्टी के अन्दर एक स्पष्ट  लाइन खींच दी हैं । इसी का परिणाम दिखाई देगा ,जब  राष्ट्रीय  कार्यकारिणी का गठन होगा । क्योंकि आडवानी -सुषमा का  खेमा  स्पष्ट  रूप से शिवराज  सिंह की पीठ पर हाथ रखे दिखाई पड़ेगा । हाँ  संघ का भय   दिखा कर जो लोग "दबाव"  बनाना  चाहते  हैं , शायद उनके लिए   कुछ  निराशा ही हाथ लगे । वैसे  संघ की पसंद और वर्त्तमान नेतृत्व से  भी   शिव राज  सिंह  ने किनारा नहीं किया हैं । अगर आडवानी  शहडोल में  अटल  ज्योति का उद्घाटन करते हैं तो , सुषमा  स्वराज विदिशा में सरकार  को मज़बूत करने के लिए कार्यक्रम करती हैं .। मुरली मनोहर  जोशी  निमाड़ में और राजनाथ सिंह  भी  आदिवासी  छेत्र  में  कार्य क्रम करते  हैं । 
                             अगर  हम इस समय हो रही गतिविधियों पर नज़र डाले  , तो पाएंगे की पार्टी में  एक लाइन खिची हुई हैं , जो मोदी को आगे कर  के संघ की पक़ड को मज़बूत करना छाहती हैं । वन्ही दूसरी और आडवानी जी  सुषमा  स्वराज ऐसे लोग हैं जो राजनातिक  व्यव्हार  को संघ के  नितांत गैर राजनैतिक  एजेंडे  की बलि नहीं बन ने देना चाहते  हैं ।  
                                          मोदी का नया  नारा ''सेकुलरिज्म '' के पहले राष्ट्र  भी संघ की विचार धारा  का ही प्रतीक हैं । वह भी मजबूरी का , एक और इस से जंहा  गैर  भा ज पा  दलों  की  विचार  धारा को नकारना हैं ,वंही  लोकसभा  चुनावो में एन डी  ऐ गठबंधन के अन्य दलों में अपने ''आदमी '' की स्वीकार्यता  बनाना भी हैं  । क्योंकि  ज़मीनी हकीक़त यही हैं की पार्टी को वांछित  बहुमत का आधा  हिस्सा ही मिल सकता हैं । क्योंकि  लगभग २ ५ २ लोकसभा की ऐसी सीटें  हैं जंहा  पिछले  हुए सभी चुनावो में कभी भी पार्टी को सफलता नहीं मिली हैं । ऐसे में शेष छेत्रो में  शत प्रतिशत  सफलता की  आशा करना ''मृग मरीचिका ''ही होगी । परन्तु  संघ इस यथार्थ  को स्वीकार नहीं करना चाहता । परंपरागत नेतृत्व जंहा यथार्थ को आगे रख कर बढना  चाहता  हें , वंही संघ को संगठन का भरोसा हैं । 
                                               फिलहाल  इस कश्मक़श  के माहौल में  शिवराज सिंह  का नाम दिल्ली के रास्ते गुजने लगा हैं , कुछ तो लोग उन्हें प्रधान मंत्री पद के लिए समझौता उम्मीदवार के रूप में देखने लगे हैं । सत्य तो आने वाला  समय ही बता सकेगा ।  

Mar 8, 2013

बस अब और मेहमाननवाजी नहीं परवेज साहेब

 बस अब और मेहमानवाजी  नहीं परवेज साहेब  
                                                                   सेना के एक सैनिक हेमराज की हत्या कर उसका सर काट ले जाने की घटना के बाद भारत सरकार ने राजनयिक सौहार्दता को स्थगित किये जाने के फैसले को , मौलानाओ -या उलेमाओं  ने  तो नहीं सराहा । परन्तु  अजमेर के  खवाजा मोइनुदिन  चिस्ती की  दरगाह के मुख्य दीवान   जैनुल आबदीन ने जियारत के लिए आ रहे पाकिस्तानी प्रधान मंत्री परवेज़ अशरफ की यात्रा का विरोध करने का ऐलान किया हैं । 
                                                    पहली बार किसी मुस्लिम धरम गुरु ने देश की भावनाओ को सम्मान करते हुए पाकिस्तानी प्रधान मंत्री की जियारत नहीं करने के अपने फैसले से , उन लोगो के मुंह पर ताला  लगा दिया हैं  जो हर मुस्लमान को संदेह की नज़र से देखते थे । इस बयान  का महत्व यह हैं की मज़हब को देश भक्ति से जोडने की मानसिकता को धक्का लगा हैं , और हिंदुस्तानी मुस्लमान सुर्क्हरू  हुआ हैं । 
                                                                                 प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह ने भी इस अवसर पर स्पस्ट किया की जब तक पाकिस्तान  अपनी  जमीन से भारत विरोधी आतंक वादियों के कैंप को ख़तम नहीं करता हैं तब तक  भारत रिश्ते सामान्य नहीं होंगे ।  अमूमन  तौर पर किसी खास  मेहमान के आने पर दरगाह के  दीवान उसकी जियारत करते हैं , परन्तु पाकिस्तानी प्रधान मंत्री भले ही निजी हैसियत में यंहा आ रहे हो , पर उनकी सुरक्षा और स्वागत उनके पद के अनुरूप ही होता हैं । लेकिन इस बार  दरगाह की इंतजामिया  कमेटी  ने अपने फैसले से साफ़ कर दिया की  आप आये  पर आप का स्वागत नहीं होगा । 
                                                                 उधर इस्लामाबाद में भी जनरल कियानी  ने राष्ट्रपति ज़रदारी से देश में बदते हुए आतंक की गतिविधियों पर रोक लगाने की सलाह दी हैं । पाकिस्तान में फौजी जनरल की सलाह  एक तरह का हुकुमनामा होता हैं , जिसे न मानने पर तख़्त पलट जाता हैं ।  उम्मीद करें की इन हालातो में पाकिस्तान सरकार जैशे मोहम्मद , या लश्करे तैयाब्बा  जैसे आतंक फ़ैलाने वाले संगठनो पर नकेल कसेंगे ।  
                                                            

Mar 7, 2013

महिला दिवस एवं उनके विरुद्ध बढते अपराध

    महिला दिवस एवं उनके विरुद्ध बढते  अपराध  
                                                                     महिलाओ के विरुद्ध  अपहरण - शादी का वादा करके भगा ले जाना तथा  दहेज़ के लिए प्रताड़ना  अदि ऐसे अपराध हैं जिनके  कारण सनातन धर्म  की देवी को पैर की  जूती बना दिया गया हैं । यह स्थिति किसी खास छेत्र अथवा मानव समूह तक ही सीमित नहीं हैं । यह कमी  महामारी  की तरह सारे  देश में व्याप्त हैं । महिलाओ के विरुद्ध अपराधो का अंदाज़ कुछ आंकड़ो से लगता हैं । हम यंहा पर  मध्य प्रदेश  में पांच सालो में गुम हुई लडकियों की संख्या  लगभग तीस हज़ार हैं । इसमें से लगभग पांच हज़ार अभी भी बरामद नहीं हुई हैं । एक निस्क़र्ष  यह भी हैं की इनमें से अधिकतर  या तो मुंबई या दिल्ली  के वेश्यालय  में पहुंचा दी गयी हों । 
                                                            उधर सरकार  का कहना हैं की मानव तस्क़री  का अपराध  तब बनता  हैं जब ऐसी कोई शिकायत  करता हैं  अर्थात जब  तक कोई यह सूचना न दे  की गम  लडकिया  किस चकला घर  में हैं तब तक कोई पुलिस कारवाई  नहीं हो सकती । अब इतनी खबर लाने के बाद   तो स्थानीय पुलिस  भी कारवाई  कर सकती  हैं । लेकिन सरकार का कथन  भी बिल्कुल अनर्गल  नहीं हैं , क्योंकि जब तक कोई सुराग  न हो  कारवाई  भी संभव नहीं । 
                                                     लेकिन  इस संख्या में दो तिहाई  संख्या  ""नाबालिग"" लडकियों की हैं , जिन्हे बहला फुसला कर के  सब्ज बाग़ दिखा कर के घर से भगा ले जाते हैं । बालिग़  लडकियों को  बेहतर  वेतन  और  सुविधाओ   का लालच  देक़र  बहलाया  जाता हैं फिर उन्हे  किसी के घर  में "बंधुआ"  मजदूर  बना  कर रख दिया जाता हैं । इस के बाद हम खबरों से  ही जान पाते हैं की किसी ने नौकरानी को घर में ताला   बंद कर के  पंद्रह दिन के लिए घुमने  चले गए । हकीक़त  यह हैं की दिल्ली और  अन्य शहरो में ""घरो ""में नौक़र  रखने की बड़ी चाहत रहती हैं। यह  की , हमारे घर पर मैड सर्वेंट  हैं । इन नव धनवानों  के शौक़  की शिकार होती हैं  मंडला की आदिवासी अथवा गुना की सांसी युवती । अब वे ""मालिक "" की वासना और  मालकिन  की मार पीट  की शिकार होती हैं , तब तक जब तक कोई हमदर्द न मिल जाए अथवा वे किसी अपने को  अपनी दास्ताँ न बता दे । 
                                  इस किस्से  का एक और भी पहलु हैं , नाबालिग लडकियों की गुम्सुदगी और उनको वेश्यलाओ में बेचे जाने  की घटनाये । इतना ही  नहीं उनके साथ बलात्कार  और अनेको मामलो में दूष्कर्म  के बाद उनकी हत्या  । मध्य प्रदेश में विगत पांच  सालो में  सवा  सात हज़ार से ज्यादा नाबालिगो के साथ बलात्कार हुआ हैं ।  विगत २ ० १ ० से अब तक  यानी की तीन सालो में उन्नीस  लडकियों की बलात्कार  के बाद उनकी  हत्या कर दी गयी । इसी अवाधि  में दस वर्ष से कम  उम्र की लडकियों से   बलात्कार    की संख्या   १ ६ ६ थी । इसमें सर्वाधिक  शिकार  पिछडे  वर्ग की ५ ९ थी ,जबकि अनुसूचित जाति और जन जाति की सत्तर बालिकाए थी  शेस ३ ७ सामान्य वेर्ग की थी । इन आकड़ो से स्थिति गंभीरता को समझा जा सक ता हैं ।  हम यही कामना करे की नाबालिग   लडकियों  के साथ दुष्क़र्म  न हो , नहीं तो हमे ""सभ्य " कहलाने का  अधिकार नहीं रहेगा  । 

Mar 6, 2013

गेंहू भले ही सड जाए पर गरीबो को न बंट पाये ?

  गेंहू भले ही सड  जाए पर गरीबो को न बंट पाये  ? 
                                                                   गेंहू की पैदावार  अच्छी  होने की आशा जंहा  लोगो के मन में खुशियों का संचार भले  ही हो , पर यह जान कर की हजारो -लाखो टन अनाज सरकारी गोदामों में पड़ा सड  जाता हैं , हमलोगों के मन में कडुआ हट भर देता हैं । एक सवाल कौंधता  हैं की आख़िर  किसान की मेहनत  क्यों बर्बाद हुयी ? जबकि करोडो लोगो के लिए भूख के खिलाफ लडने की मुहीम का यह ज़बरदस्त  हथियार हैं , फिर किसकी  गलती से  लाखो  लोगो   के  मुंह का निवाला ऐसे ख़राब होने दिया गया ? क्या यह लापरवाही  नहीं हैं ? 
                    एक  जानकारी  के अनुसार  फ़ूड कारपोरेशन  ऑफ़ इंडिया  के गोदामों  में  विगत तीन सालो में सड़े  गेंहू  की मात्र  साड़े  सोलह हज़ार टन थी ,  यह  दुर्भाग्यपूर्ण घटना पांच राज्यों के गोदामें  में हुआ । अचरज की बात हैं की   सबसे ज्यादा अनाज  ख़राब हुआ  बिहार में , जंहा  भुखमरी की समस्या सबसे ज्यादा विकराल हैं । जिन अन्य राज्यों में बर्बादी हुई वे हैं कर्नाटक - राजस्थान असाम । इन सभी राज्यों  में अनाज की  काफी कामी रहती हैं  । जबकि  पंजाब - हरियाणा  जैसे राज्यों में , जंहा  लोगो की ज़रुरत से ज्यादा अनाज पैदा होता वंहा बर्बादी नहीं होती । फिर वही  बात की बर्बादी अक्सर वंहा होती जंहा वास्तु की बहुतायत होती हो , लेकिन यंहा तो गरीबी में भी आटा {गेंहू} गीला  {बर्बादी} हो रहा हैं ।  अब यह बाद इन्तजामी हैं या लापरवाही  ? 
                                                                                             

Mar 4, 2013

कमजोर शिक्षा तंत्र पर मायाजाल का महल

          कमजोर शिक्षा तंत्र पर मायाजाल  का महल 
                                                                      प्रदेश में शिक्षको की बेमियादी हड़ताल से एक तथ्य तो स्पष्ट हैं की प्राथमिक एवं माध्यमिक प्रणाली में व्यासायिक संस्थानों के लिए छात्र सुलभ करने की छमता नहीं हैं । यद्यपि राज्य  में इंजीनियरिंग और प्रबंध तथा कंप्यूटर की शिक्षा देने के लिए संस्थानों की संख्या कुकुर मुत्ते  की तरह बदती जा रही हैं । अनेक संस्थानों ने अगर विभिन्न कोर्सो  में सीट  बडाई हैं वन वंही  अनेक नए संसथान भी खुल गए हैं ।  मेडिकल  कालेजों  की संख्या और उनमें स्थानों  से पास हुए लडको को जंहा नौकरी की दिक्क़त नहीं हैं ,वंही इंजीनियरिंग और प्रबंध तथा कंप्यूटर  की डिग्री लेकर इन कालेजों से निकले लड़के  नौकरी के लिए मारे -मारे  फिर रहें हैं । हालत यह हैं की उन्होंने साल भर में जितनी फीस जमा की हैं उतने की भी नौकरी उन्हे नसीब नहीं हो रही हैं । एक साल में जिन संस्थानों में १ . ५ ० लाख प्रति  वर्ष फीस  देने और इतना ही सालाना खाने  रहने  का ख़र्च होता हैं , मतलब तीन लाख खर्च करने के बाद अगर लडका  डेड़ -दो   लाख़ की नौकरी के लिये  मारा -मारा  फिरे यह तो दुर्भाग्यपूर्ण हैं । 
                             इसका कारण यह हैं की हमारी शिक्षा व्यवस्था  धरातल पर  बहुत कमजोर हैं । ऐसे कमजोर आधार  पर व्यवस्था ने बहु मजिली  ईमारत खड़ी कर रखी हैं । अब ऐसे में व्यवसायिक  संस्थानों में जो कुछ कच्चा  माल छात्रो के रूप में जा रहा हैं , वह प्रतियोगिता के लिए कैसे  उप युक्त  होगा ? यही कारण हैं की मध्य प्रदेश के छात्र आल इंडिया प्रतियोगिता  में पिछड़  जाते हैं । 
                                             राज्य में २ २ ४  इंजिनीयरिंग कालेज हैं   जिनमें  ९ ५ ० ० ० सीट हैं  और उनमें २ ३ हज़ार सीटे  खाली   गयी हैं ।  इसका अर्थ  यह हुआ की युवा लोगो को  सुनहले  भविष्य की यह तस्वीर अब नहीं  "भा"  रहा हैं । इसका कारण यह हैं की विगत चार - पांच सालो में  इन संस्थानों   द्वारा जो "दावे' या" "  वायदे " किये गए थे वे सब "झूठे " निक़ले  । कडवी सच्चाई सबके सामने आ गयी । जिसने गाँव - कस्बे के लोगो के लडको और लडकियों का भ्रम  भी टूट गया । अच्छा हुआ की लोगो की ज़मीने  और माताओ  के गहने  गिरवी  होने  से "शायद ""  बच जाएँ । 
                                 लेकिन एक बात न समझ में आने वाली हैं की केंद्र सरकार  को लगातार इन संस्थानों में  ख़ाली  जाती साल दर साल की सीटो   का  अर्थ नहीं समझ  पा रही हैं । इसका एक ही कारण हो सकता  हैं की सरकार को  छात्रो के भविष्य  से ज्यादा अपने "नेताओ"  के स्वार्थो  को तरजीह  देती हैं । वर्ना जिस राज्य में मौजूद स्थानों के लिए छात्र आगे नहीं आ रहे  हों , वंहा नए संस्थान  की इज़ाज़त  देना और या फिर वर्त्तमान  कालेजो  में स्थान  बढाने की आज्ञा देना शिक्षा जगत के लिए घातक हैं । क्योंकि  सरकार के फैसले से गुणवत्ता पर कुप्रभाव हो रहा हैं । वंही ग्रामीण छेत्रो  के लोगो को नक़ली सपने दिखाने वाले लोगो को बढावा  भी मिल रहा हैं  । 

Mar 2, 2013

नाबालिग दुराचार अथवा नाबालिगो का दुराचार ?


 नाबालिग  दुराचार अथवा नाबालिगो का दुराचार  ?
                                                                        दामिनी  बलात्कार  कांड के बाद केंद्र ने जस्टिस वर्मा को घटना के समस्त पहलुओ पर रिपोर्ट देने  के लिय अधिकृत किया । महीनो में  रिपोर्ट देने की चुनौती अगर समिति ने पूरी की ,तो केंद्र ने भी  तुरत -फुरत में अध्यादेश ल कर अपने कहे को पूरा किया । उधर वेंकाया  नायडू  की संसदीय  समिति  ने अपनी रिपोर्ट  भी सरकार को दे  दी हैं । अपनी रिपोर्ट में समिति ने न तो  बलात्कारियो  के लिए फांसी की सजा की सिफारिश की ,और ना       ही"किशोर " अवस्था को कम करके सोलह साल साल किये जाने की सिफारिश की । हाँ एक बात उन्होने सन्दर्भ  से बाहर  जा कर यह  कहा हें की बलात्कार  के मामले में     दया याचिका को मंज़ूर नहीं किया जाए । दया याचिका  के बारे में यह भी सिफारिश की हैं की  राष्ट्रपति  के यंहा कोई भी याचिका तीन माह से ज्यादा  लंबित नहीं रहना   चाहिए । अब यह सिफारिश राष्ट्रपति के विवेकधिकारो  पर पाबंदी जैसी हैं । अगर अदालतों में मुक़दमें  के फैसले में  सालो लग जाते हैं तो याचिका के निपटारे  के लिए  सिर्फ तीन माह कोई  उचित समय नहीं हैं । 
                                                           हालांकि  संसदीय समिति  ने यह माना हैं की ५ ४ % बलात्कार के अपराधी दुबारा  फिर जुर्म करते हैं । अब   ऐसे अपराधियों  के लिए यह कहना की इन्हे सजाए मौत  ना दिया जाए  , कुछ समझ में आने वाली बात नहीं हैं । जब जब ऐसे अपराधी दुबारा  यही जुर्म करते हैं तो  उसमें भुक्तभोगी  की हत्या कर दी जाती हैं ।  सवाल  यह उठता हैं की यह कहना की ''बिरले मामले में ही '' सजाए  मौत   दी जानी चाहिये ।    
                         सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में कहा हैं की ''बिरले मामलो ही फांसी  की सजा दी जानी चाहिए , इसी को समिति ने शायद आधार माना हैं  । लेकिन यंहा प्रश्न हैं की किशोर या नाबालिग  क्या बलात्कार ऐसा जघन्य  अपराध कर सकता हैं ?अगर  ऐसा कर सकता हैं तो क्या उसे ''किशोर  '' कहा जा सकता हैं ? यही सवाल आज के आलेख का भी हैं । 
                                 समिति की रिपोर्ट में कहा गया की पति - पत्नी के संबंधो  में ''बलात्कार ''को इसलिए नहीं माना जा सकता की पत्नी की सहमति  नहीं हैं । हालाँकि महिला संगठन  इस सिफारिश  से नाराज़ हैं ।  लेकिन असली मुद्दा  की ''क्या नाबालिग '' को गंभीर अपराधो में संलिप्तता  को  छोटा या माफ़ी देने लायक ''कृत्य''  हैं ?

Mar 1, 2013

Whether the crime be considered or the accused age

    Whether the crime be considered or the accused age ? 
                                                                                     In the aftermath of ""Damini"" rape case the issue of "Minor " age  came  for a larger than life debate , as to whether the real accused who was responsible for the death of Medical student "Nirbhya"" . In the investigation  of police the fact of 'his 'being minor came to light . Which  gave rise to the countrywide debate  as to whether the crime should  be considered for trial purposes or the age of the accused ? The NGO and human right activists pleaded that since the perpetrator was minor, he should be treated as such , this meant that the man responsible for Rape - Unnatural sex-and cruelty crime was going to be dealt not Under Indian Penal Code but Juvenile Act ! The logic given was the certificate of school leaving proves "him" minor . Now the issue is whether the "adult"crime can be commited by a minor ? 
                    Logic of minor is not main tenable when the crime is such like murder-dacoity-rape , then how we should considered the age factor ? Because these crime are of the nature which are  considered to be committed by Major persons.But the human right activists logic was that the minor can commit crime without considering the consequence ,hence the punishment and trial should not be like a major . But they overlooked the fact  that these crimes  are committed  by adults ''normally '' . Logic was extended that if a Hungary child  is accused of shop lifting of a bread or roti or some thing which can quench his hunger ,then it should be treated lightly not harshly . Even if we consider this logic then the hunger of brutal sex can not be a child's work ? Recently in Bhopal two sixteen year boys kidnapped a fourteen year girl , and they kept her in one room house  and  raped her for two days .According to the victim she was continuously for two days by both the minor boys . N ow the police is in dilemma because the accused and victim both are ''minor '' but can we accept it that minor boy of sixteen years of age behaving like a monster . Now in this light of facts we can say that it is the nature of crime committed should be taken into consideration and not the 'school leaving ''certificate , which is not supported by birth certificate . Now the police have to suggest the law makers of the country that they should amend the Indian Penal Code and insert a section which should deal with the cases of minors -whether as victim or as accused .