Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 29, 2013

दंगो की आंच मे बिखरता अजगर का गठबंधन

दंगो की आंच मे बिखरता  अजगर  का गठबंधन   
                                                                      उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग के मुजफ्फरनगर  मे 27 अगस्त से दस दिनो तक चले दंगो ने उस इलाके मे जो जातीय वैमनस्य  का बीज बो दिया हैं , वह खतम होने मे काफी समय लगेगा |  वैसे संयुक्त  प्रांत के समय से ही यानि की आज़ादी के पहले से  बरेली - मेरठ   आदि के इलाको के लोगो को अलग प्रांत की चाहत थी | परंतु आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश बनने  के बाद भी यह मांग धीमी पद गयी | परंतु इस छेत्र के  पुरोधा नेता चौधरी चरण सिंह  ने जब 1967 मे काँग्रेस को छोड़ कर जन काँग्रेस बनाई , और चन्द्र भानु गुप्ता  की साकार गिरा दी | शब्द '''फ्लोर क्रोससिंग " भी उसी समय से बना अस्तित्व मे आया अगले चुनाव मे  जब उनकी ज़न क्रान्ति दल  पार्टी चुनाव मे उतरी तब उन्होने  पश्चिमी ज़िलो के लिए अलग प्रदेश की मांग उठाई | यही  आरंभ  थी ''हरित प्रदेश ''' की आवाज की | साथ ही  उन्होने काँग्रेस के वोट बैंक के मुक़ाबले  '''अजगर'' बने |

                    अजगर जातियो का एक संगठन था जो चरण सिंह को अपना नेता मानते थे | इसमे  उनकी जाति जाट के साथ अहीर या यादव और गुज़र और राजपूत  थे साथ मे वे मुस्लिम भी थे जिनके सरनम जाटो जैसे थे  मसलन मालिक - जाट आदि वे भी इस अजगर मे शामिल हो गए और चौधेरी साहब का काँग्रेस के समानान्तर  एक वोट बैंक बन गया | जिसके कारण उनके समर्थक इस छेत्र मे प्रभावी हो गए |  हरित प्रदेश और अजगर  के बाद लगा  की इन खेतिहर किसानो के समुदाय को एक राजनीतिक पहचान मिली | हालांकि हरियाणा मे देवीलाल उर्फ ''ताऊ'' भी जाटो के नेता थे परंतु अजगर की अन्य जातीय  उन्हे नेता नहीं मानती थी | इस कारण उनका रास्तरीय राजनीति मे उदय तभी हो पाया जब चरण सिंह का अवसान हो गया | उनकी राजनीतिक विरासत  भी तभी पायी |

                                      आज एक बार फिर इस अजगर  की एकता बिखर रही हैं , देखना होगा की चौधरी  चरण सिंह के पुत्र और केन्द्रीय मंत्री अजित सिंह इस विरासत को कितना सम्हाल पाते हैं | 

Oct 27, 2013

राजनीति मे वंशवाद --देश और दुनिया

        क्या फर्क हैं काँग्रेस के  और भारतीय जनता पार्टी के वंशवाद मे ?

                       वंशवाद के  मूल मे है -- विवाह संस्था , मोदी का यह कहना की काँग्रेस ने देश मे वंशवाद फैलाया हैं , इसका एक अर्थ यह भी हो सकता हैं की ''राजनीति ''' मे वे लोग ही आए जो परिवार छोड़ दे या विवाहित नहीं हो | इस कसौटी  पर तो  श्री  अटल बिहारी  वाजपाई  के अलावा और कौन खरा उतरेगा ,कहना मुश्किल हैं | उनके इस प्रलाप से ग्रीक दार्शनिक अरस्तू  के राज्य के सिधान्त की याद आती हैं , जिसमे उसने कहा था की ''''शासक  बनाने वाले लड़को  को बचपन मे ही  परिवार से अलग कर देना चाहिए | एवं उन्हे विवाह की मनाही होनी चाहिए , हाँ उनके मानो - विनोद के लिए महिलाए सुलभ कराई जानी चाहिए """ | उसका तर्क था की परिवार के कारण शासक मे निस्पक्श्च्ता नहीं रह जाती हैं | वह परिवार के मोह मे फंस जाता हैं |  साम्यवादी क्रांति के बाद चीन मे ''कम्यून "" की स्थापना की थी , जिसमे लड़के और लडकीय अलग -अलग रहते थे | उनका खाना एक साथ होता था , परंतु सोते अलग - अलग थे | परंतु आखिर मे पार्टी नेत्रत्व को यह प्रयोग बंद करना पड़ा | वैसे मोदी ने लोकतन्त्र के चार दुश्मन बताए ---वंशवाद - जातिवाद --संप्र्दयवाद और अवसरवाद , वासतवे मे प्रथम तीन मूल रूप से एक हैं | '''वंश''' से ही कुल -गोत्र - जाति और संप्रदाय  का स्वयमेव  निर्धारण हो जाता हैं | क्योंकि इन तीनों संस्थाओ मे कोई ''''' चुनाव'''करके नहीं आता हैं वरन जनम लेते ही इन तीनों का निर्धारण हो जाता हैं | रही बात अवसरवाद की तो , वह तो ''बुराई'''नहीं वरन '''गुण''' माना जाता  हैं | अङ्ग्रेज़ी और हिन्दी याहा तक की गवई   -गाव  की भाषा मे भी यही कहा गया हैं { मोदी भोजपुरी - मैथिली और मगही मे भी बोले थे } समय चूक पुनि का पछताने अथवा अब पछताए होत का जब चिड़िया चूक गयी खेत  आदि ऐसी ही कहवाते हैं , जिनमे अवसर '''पहचानने """" की सीख दी गयी हैं | पर गुजरात के मुख्य मंत्री  ''उल्टी सीख ''''दे रहे हैं |



                      पटना मे मोदी ने राहुल गांधी को शहज़ादा  कहने पर काँग्रेस पार्टी की प्रतिकृया  का जवाब देते हुए कहा की , मैं उन्हे शहज़ादा कहना  बंद कर दूंगा , बशर्ते  काँग्रेस पार्टी यह वादा करे की वह अपने यहा से वंशवाद को परिवारवाद को खतम कर दे | यानि की उन्हे  काँग्रेस  से ''एलेरजी''  नहीं हैं , वरन उसे उस परिवार से हैं जिसके  दो   लोग  प्रधान मंत्री   रहे हैं , और देश के लिए शहीद हुए | दुनिया के प्रजातांत्रिक इतिहास मे बिरले परिवार ही हुए हैं जिनके दो लोगो ने  देश का  नेत्रत्व किया हो | हाल  ही मे अमेरिका के बुश परिवार के पिता और पुत्र ने देश का नेत्रत्व किया |  श्री  लंका मे यही बात भंडारनायके  परिवार मे भी हुई श्री भंडार नायके  की हत्या के बाद श्रीमति सीरिमावों  भंडारनायके प्रधान मंत्री बनी फिर उनकी पुत्री श्री कुमार तुंगा प्रधानमंत्री  बनी | बाद मे सीरिमावों भंडार नायके  राष्ट्रपति भी बनी | 

                                                           इसलिए परिवारवाद को "कलंक" समझने  की आदत का आधार क्या हैं , यह स्पषट  करना होगा उन लोंगों को जिनका 'आरोप '' हैं की इस वंशवाद ने राजनीति को दूषित कर दिया हैं | अब उनसे यह पूछना होगा की आखिर  क्या हैं कारण ? क्या इसकी वजह यह तो नहीं की  खानदान  की विश्वसनीयता - और पकड़ तथा  जनता मे उनके प्यार से कनही उन लोगो डर तो नहीं लग रहा हैं ---जो इस """ अवसर""" से वंचित हैं ? शायद ऐसा ही हैं | अब दक्षिण के राज्यो से शुरू करे तो हम पाएंगे  की केरल के मुख्य मंत्री  चांडी के पिता भी केरल मे मंत्री रहे फिर मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे | तमिलनाडु मे तो डीएमके  मे करुणानिधि मुख्य मंत्री रहे और और उनका समस्त परिवार  राजनीति मे हैं बेटा विधायक दोसरा बेटा संसद और बेटी भी राज्य सभा सदस्य  हैं | जयललिता  को भी पूर्व मुख्य मंत्री  एम  जी रामचंद्रन की राजनीतिक विरासत मिली जो उनकी पत्नी नहीं प्राप्त कर सकी | अब यह एक संयोग ही हैं की ब्रा महण विरोधी राजनीति की सर्वे सर्वा एक ब्रा महण कन्या ही हैं | गोवा मे भी पिता -पुत्री मुख्य मंत्री  रह चुके हैं |  उड़ीसा  मे बीजू पटनायक मुख्य मंत्री रहे आज उनके चिरंजीव  वहा के मुख्य मंत्री हैं  |  उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा  के पुत्र आज उतराखंड के मुख्य मंत्री हैं |

                     इतने उदाहरणो के बाद क्या मोदी के कथन को ''वज़न'' दिया जा सकता हैं ? बिलकुल नहीं , क्योंकि जो घटनाए इतिहास मे ''स्वयं सिद्ध""" हैं वे एक मुख्य मंत्री के कहने से गलत नहीं हो जाती हैं | उत्तर प्रदेश मे मुलायम सिंह यादव के बाद उनके सुपुत्र अखिलेश यादव आज मुख्य मंत्री हैं |  पंजाब मे पिता -पुत्र अकाली सरकार मे मुख्य मंत्री और उप  मुख्य मंत्री हैं | कश्मीर मे तो तीसरी पीड़ी  मुख्य मंत्री हैं - शेख अब्दुल्ला फिर फारुख अब्दुल्ला और अब ओमर अब्दुल्ला , क्या खराब हुआ वहा पर ?

            मोदी के इस प्रलाप मे उनका साथ उनकी पार्टी के उपाध्यक्ष  प्रभात झा  ने कुछ इस अंदाज़ मे दिया की , अगर किसी नेता के परिवार का सदस्य  राजनीति मे आ जाता हैं तो वह वंशवाद नहीं हैं , लेकिन किसी नेता के पुत्र या पुत्री को इसलिए पार्टी अपना उम्मीदवार नहीं बनती हैं की उसके पिता  पार्टी के नेता हैं | अब इस '''आ जाने''' और रिश्ते के कारण टिकिट न देने का तर्क क्या हैं ? जिस किसी को भी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने का उम्मीदवार बनाया जाता हैं , तो जनता को क्या यह बात नहीं मालूम होगी की पार्टी का प्रत्याशी किसका भाई - भतीजा या पुत्र हैं ? भारतीय जनता पार्टी के अलावा यह आरोप एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लगाया जा रहा हैं , जिसका वजूद ही उसके पिता  के कारण हैं --जी हाँ  वाई एस  आर  रेड्डी  जो आंध्र के मुख्य मंत्री थे उनके सुपुत्र जगन रेड्डी ने तेलंगाना के मुद्दे पर कहा की  सोनिया गांधी अपने पुत्र को प्रधान मंत्री  बनाने के लिए तेलुगू  बेटो के भविष्य  से खिलवाड़ कर रही हैं ! हैं न अजीब बात सूप तो सूप चलनी  भी बोले | आलेख का तात्पर्य मोदी जी के तर्क के जवाब मे  हैं | | क्योंकि वे अगर राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के सदस्य हैं जिसमे ''जीवनदानी''' सदस्यो को आजन्म अविवाहित रहना होता हैं , तो यह उनका फैसला हैं |लेकिन यह कोई ध्रुव  सत्य  नहीं हैं , की ऐसे नेता '' आदर्श''' होते हैं  जो अविवाहित होते हैं | |मैं यहा मोदी जी को एडोल्फ हिटलर का उदाहरण देना चाहूँगा , जिनहोने आतंहत्या करने के पहले एवा ब्राउन से शादी रचाई थी | कहने की बात नहीं हैं की दुनिया जानती हैं की वे कितने ''आदर्श''' लीडर साबित हुए की आज भी लोग उन्हे गाली ही देते हैं | इतिफाक से  हिटलर भी अविवाहित नेता थे !  

Oct 25, 2013

बॉम्बे पिंजरपोल धर्मार्थ संस्था ,--जहा कतार लगा कर चंदा देते हैं गौ माता के लिए

                  बॉम्बे  पिंजरपोल  धर्मार्थ  संस्था  ,--जहा कतार लगा कर चंदा देते हैं  गौ माता के लिए
   Bombay Pinjarpol  a parsi institution where  --Hindu  wait in Q to deposit donation
             
                             रीवा के एक ब्लॉक  मे सौ से अधिक गाय भूखी और बीमारी से मर गयी , यह बात बीते 1अठारह  अक्टोबर  की हैं , जो की  अखबारो के माध्यम से  बहुत बाद प्रकाश मे आई | कुछ तो चुनाव और कुछ ऐसी घटनाओ के प्रति ''' सेलेक्टिव""" नकारने का दृष्टि कोण |  फिर भी  यही घटना कुछ एक ''हिंदुवादी संगठनो ''' के लिए उत्तेजना का कारण बनती ---अगर इसमे कोई ''गैर हिन्दू''' संबन्धित होता | अब ट्रक मे कसाई खाने ले जाने वाले गौ को छुड़ाने का ''पुण्य ''' तो कुछ रण-बांकुरे """लेते , परंतु ऐसा हो न सका क्योंकि ''जय  बसामान  मामा गौशाला समिति ,एक नेता की हैं ,वह भी सत्तारूद दल के , बाद मे जब मृत  पशुओ  से बदबू आने लगी और निकट मे बहने वाले नाले मे उनके शवो को पटक दिया गया , तब गाओन वालों ने हँगामा किया | जिस पर बाध्य होकर ज़िला प्रशासन ने  अदूयकश  योगराज सिंह समेत 20 लोगो के वीरुध मुकदमा कायम किया | परंतु किन धाराओ के अंतर्गत यह पुलिस बताने से गुरेज कर रही हैं |

                                                                यह स्वयंसेवी  संस्था  पिछले छह  वर्षो से शासन द्वारा आवंटित भूमि पर गौशाला चला रही हैं | प्रति वर्ष इसे हजारो रुपयो का अनुदान सरकार से मिलता हैं | फिर भी यानहा गौ माता ''भूख और बीमारी --कुपोषण''' से  मरती हैं | क्योंकि अनुदान और चारा  के पैसा  तो ''नेताजी '' के और उनके सहयोगीयो के पेट मे चली जाती हैं |

                                                              इसके मुक़ाबले मुंबई  मे पारसियों  की एक धर्मार्थ  संस्था हैं  कोवास जी रोड पर ''जिसका नाम हैं  बॉम्बे पिंजारपोल'' , यह संस्था  संभवतः एकमात्र हैं जो किसी व्यसायिक  अथवा लाभ के लिए नहीं चलायी जा रही हैं | यहा  गायों को रखा जाता हैं -- उनकी उचित देख भाल की जाती हैं , उनके लिए डॉक्टर हैं और उनसे मिलने वाला दूध को संभवतः  मुंबई मे सबसे मनहंगा  होता हैं | और यानहा का दूध पाने के लिए कार्ड बनते हैं --जो की सीमित संख्या मे होते हैं | परंतु यह आलेख  का उद्देस्य यह नहीं हैं -वरन यानहा पर मारवाड़ी  और गुजराती  सेठो  और उनकी पत्नियों को  पूर्णमासी और अन्य पर्वो पर यहा  लाइन लगा कर  ''चारे के लिए हजारो का चंदा देते हैं """ | सवाल हैं ऐसा किसी  तथा कथित किसी'"""' हिन्दू'''गौशाला मे क्यों नहीं होता ?  शायद यह पारसी  सज्जनों की """ईमानदारी और निष्ठा """ ही हैं जो गौ माता के प्रेमियो को बाध्य करती हैं ---अंशदान  देने के लिए || क्योंकि यंहा के प्रबन्धको  पर लोगो का विश्वास हैं की वे चारे का पैसा """हजम""" नहीं करेंगे |  मैं ऐसे  गैर हिन्दू  संस्था और उसके प्रबन्धको को शीस  झुकाता  हूँ |

















Oct 23, 2013

किसे कहे गौ रक्षक --- वैदिक धर्म की रक्षा के स्वयं भू अलमबरदार या गैर '''हिन्दू'''को ?

      किसे कहे  गौ रक्षक --- वैदिक धर्म की रक्षा के स्वयं भू अलमबरदार या  गैर '''हिन्दू''' को ?
                                                   
                                                          अक्सर ही अकहबरों मे ऐसे बयान पड़ने मे आते हैं की ट्रक भर गायों को कसाई के हवाले होने से बचाया गया ,  फिर किसी वाहिनी या किसी सेना या फिर कोई और संगठन का नाम होगा , जिनहोने गौ माता की जान बचाने का ''पुण्य'' कमाया |  मुक्त कराई गायों को किसी न किसी न किसी गौशाला  के हवाले कर दिया जाता हैं | जो किसी न किसी  ''हिन्दू''' धर्म के  स्वयं भू अलमबरदार  द्वारा चलायी जाती हैं |  और वनहा क्या होता हैं ---------यह कोई ढकी  छुपी  बात नहीं हैं ,  की इन गौ -सदनो मे '''दूध ना देने वाली '''इन जगजननी  का क्या हाल होता हैं ? यह भी तथ्य हैं की  प्रदेश हो या की केंद्र की सरकार हो , सभी ''ऐसी''' संस्थाओ को आर्थिक मदद तो देती हैं | परंतु इन ''गौ माता के रखवालों''' का हाल तो वही हैं  जो लालू प्रसाद का हैं --यानि की सरकारी अनुदान और चारा ''हजम''' |

                                                             इन पंक्तियों  को लिखने का अभिप्राय  समाज और सरकार के पाखंड को उजागर करना हैं | रीवा ज़िले के  सेमरिया के अटेरिया का पुरवा मे   एक समिति हैं   ''जय बसामन मामा  गौशाला समिति , जो विगत छह वर्षो से चल रही हैं | वनहा 17 अक्टोबर  को भयानक दुर्गंध की शिकायत स्थानीय निवासियों द्वारा की गयी |, तब स्थानीय प्रशासन को मौके पर एक सैकड़ा गायों  के शव मिले | गौ शाला के बगल से निकलने वाले  नाले मैं  भी कुछ गाये मारी पड़ी थी | हल्ला - गुल्ला होने पर और भीड़ के उत्तेजित होने के कारण प्रशासन को गौशाला  के अध्यकक्ष योगराज सिंह समेत बीस लोगो के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ किया | परंतु गिरफ्तारी अध्यकक्ष  के बेटे की ही हुई , क्योंकि ''वे तो नेता जी हैं ''''' अब उन्हे कैसे गिरफ्तार करें?

                                  यह एक घटना  साबित करती हैं की की ज़ोर - ज़ोर से चिल्लाने वाले और अपने को स्वयं भू गौ रक्षक घोसित करने वालों का ''सच'' क्या हैं ? अगर हम लालू प्रसाद यादव को ''चारा घोटाला किंग ''' कहने की हिम्मत करते हैं , तब हुमे ऐसे गौ रक्षको  को क्या कहे ? जो चारा तो चारा अनुदान  भी खा जाते हैं | 

Oct 22, 2013

उन परिस्थितियो मे जंहा चुनने का अधिकार हो ही नहीं ऐसी स्थिति को क्या अच्छा या बुरा कहा जा सकता हैं ?


     उन  परिस्थितियो मे जंहा चुनाव का अधिकार हो ही नहीं ऐसी स्थिति को क्या अच्छा या बुरा कहा जा सकता हैं ?

                       देश और काल तथा परिस्थितिया प्रत्येक जीवधारी के जीवन के लिए निर्णायक होते हैं | जैसे कोई क्न्हा जन्म लेता हैं , किस काल मे लेता हैं , उस समय की परिस्थितिया कैसी हैं , इसमें '''जातक'''या जीव का कोई दाखल नहीं होता हैं | लगता होगा की काफी दार्शनिक व्याख्या की गयी हैं ,परंतु यह एक ऐसा कटुसत्यहैं  जिसके लिए सभी उस जीव या मनुष्य को या तो सराहते हैं अथवा उसे ''कलंकित'''करते हैं | जब की उस ''जातक''' की कोई भूमिका नहीं होती | वेदिक धर्म के एक '''सिधान्त ''''के अनुसार  जीव की ''यौनि ''' अर्थात , उसका स्वरूप क्या हैं --कैसा हैं  इसका निर्धारण '''पूर्व जन्म ''''  के ''कर्मो के आधार पर निर्धारित होती हैं | इस का अर्थ यह हुआ की की एक ऐसा समय जिसका '''ज्ञान'' उस ''''जातक ''' को नहीं हैं , वर्तमान काल का आधार ही वे परिस्थितिया हैं |आजकल की भाषा मे कहे तो कहेंगे की जो हमे मालूम नहीं उस पर विश्वास कैसे करें ? चलो यह तर्क भी मान ले तब भी यह तो स्वीकार करना होगा की आखिर वे '''कौन से कारण ''' हैं जिसकी वजह से वह '''वर्तमान''' को ''भोग ''रहा हैं ?अर्थात वह अगर सिंह हैं तो क्यों और हिरण हैं तो क्यों ? क्या हिरण का जन्म सिर्फ सिंह का ''आहार ''' बनने के लिए हुआ हैं ? वे कौन से कारण या वजह हैं जिन से यह     संभव हुआ   ?  
                   चलिये इन कारणो को हम आज के मानव समाज मे दुहराते हैं और उनके '''फलाफल''' को जानने की कोशिस करते हैं | सर्व प्रथम  हम व्यक्ति  के जन्म की स्थितियो  पर गौर करे ------- वह किस माता  पिता की संतान हैं |? स्त्री हैं अथवा पुरुष या की तीसरा ...वर्ण ? जिनके यानहा जन्म हुआ हैं ,उस कुल --गोत्र -जाति स्थान क्या हैं ? स्वाभाविक हैं और सत्य हैं की ''कर्म'''सिधान्त को चलो हम फिर कभी विचार  करेंगे , लेकिन ''इन ''' सवालो के जवाब तो खोजने ही होंगे | इसका मतलब यह हुआ बहस के दो हिस्से हो गए ----एक जन्म के पूर्व का दूसरा '''वर्तमान''' का | अब मौजूदा हालत पर गौर करे , तो यह मानना होगा की आप का लड़का अथवा लड़की के रूप मे पैदा होना '''नर और मादा के संयोग'' का फल हैं | मेडिकल साइन्स की भाषा मे  अंडाणु  और शुक्राणु का मिलना ही हमारे जन्म का कारण हैं | क्रोमोसोम की गणना  स्त्री - पुरुष एवं तीसरे योनि का फलफल हैं |  अब आप के जन्मदाता आप का पालन - पोषण करते हैं या कोई और करता हैं , इसमें भी ''जातक''की भूमिका नहीं हैं |वे किस ''जाति''के हैं '''छेत्र'' के हैं यह भी  ''जातक''' पर थोपा हुआ हैं , जिससे                      वह ''बंधा '' हुआ हैं ||
                         जन्म के समय से आप के भोजन की व्यसथा कौन करेगा यह भी  उस के द्वारा निर्णीत नहीं हैं ||भ्रूण के फेंके जाने जन्म के बाद  कूड़ेदान या सार्वजनिक स्थानो पर जन्म के बाद छोड़ दिये जाने के लिए भी   वह स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं | परंतु उसे इन स्थितियों को """भोगना"" पड़ता हैं | अब वह किस ''''धर्म ''' मे पैदा हुआ हैं , यह भी वह '''इस अवस्था''' मे नहीं चुन सकता | जिस धर्म के '''पालनहार''' के हाथो पद गया , वही उसका  भविष्य  बन जाता हैं |अब अनाथालयों मे पाले जा रहे बालक - बालिकाओ को किस धर्म के ''''जननी --जनक'''' इस धरा पर लाये  उसकी भी जानकारी ----- दूसरों  द्वारा ही ''जातक'' को दी जाती हैं , उसमे भी  सत्या क्या हैं --वह भी विश्वास की वस्तु होती हैं |

                                                                   जातक को अपनी  पहचान उस आयु  मे पता चलती जब या तो उसका नाम विद्यालय  मे लिखाया जाता हैं अथवा  उसे ''अपनी रोटी''' खुद जुगाडनी पड़ती हैं | पहली वाली स्थिति मे ''रोटी'' की समस्या नहीं होती हैं | दूसरी वाली मे उसकी पहचान समाज या फिर पुलिस बनाती  हैं |  इस समय से हम कह सकते की जातक के '''कर्म''' उसके हैं उसका परिणाम भी उसे ही भोगना हैं | यंहा एक सवाल खड़ा होता हैं की   की ''हम यानि समाज''' उसकी पहचान गढते हैं , या वह स्वयं ? हक़ीक़त  यह हैं यंहा भी वह ''निर्णायक '''की भूमिका मे नहीं हैं |, वरन ''मजबूरी''' की भूमिका मे हैं | जिसे हम अक्सर  उन लोगो को जोड़ते हैं जो या तो बाज़ारो मे  ''पाँच से लेकर दस वर्ष की आयु ''' के होकर भीख मांगते हैं अथवा चाय की दूकानों सड़क के किनारो के ढाबो  मे  अपनी सुविधा के अनुसार कभी ''मुनदु'' कभी मोहन '' तो कभी अब्दुल'' के नाम से बुलाते हैं |तब तक उसे ही ''भ्रम'' रहता हैं की उसका ''असली'' नाम क्या हैं | असली से मेरा आशय  उन नामो से होता हैं जो हमारे देश की आबादी के नब्बे फीसदी लोगो को मिले हैं , यानि समाज के सामने माता - पिता [ जनक - जननी ] द्वारा दिये गए हैं |
                                                                      अगर नाबालिग पेट की भूख के लिए काम कर रहा हैं , अथवा पब्लिक स्कूल मे  क ख  ग पद रहा हैं , दोनों ही परिस्थितियो मे उसकी पहचान  बन जाती हैं | उसका धर्म भी '''नियत''' कर दिया गया होता हैं | हाँ कूल -गोत्र तो ''बड़े भाग्य''' के लोगो की पहचान बनता हैं | अब ऐसी स्थिति मे किसी उस लड़के को हम गाली दे और कहे की तू ''मुसलमान'' हैं या ''हिन्दू''' हैं इसलिए तू  हमारी नफरत का कारण हैं |तो क्या हम उचित और सही कर रहे हैं ? सोचने का विषय हैं |
                           

Oct 6, 2013

ऐसा क्यों होता हैं की कुछ लोग ""खुद को ही राष्ट्र ""मान लेते हैं ?


                 ऐसा क्यों होता हैं की कुछ लोग ""खुद को ही राष्ट्र ""मान लेते हैं ?
                 राज्यो मे विधान सभा  चुनावो की घोसणा होने के बाद तो अनेक समस्याए  'राष्ट्रिय''' बन जाती हैं | भले ही वे प्रश्न  स्थानीय अथवा प्रादेशिक स्तर पर समाधान किए जाने की पात्रता वाले हो | परंतु टीवी शो मे भाग ले ने वाले वक्ता ,जो विभिन्न राजनीतिक दलो अथवा संगठनो से आते हैं , अक्सर यह जुमला ज़रूर कहते हैं की"" देश इसका जवाब चाहता हैं ""अथवा"' राष्ट्र को इसका जवाब चाहिए ""? सवाल यह उठता हैं की राष्ट्र ''कुछ व्यक्तियों ''' अथवा किसी '''व्यक्ति'' तक ही सीमित हो गया हैं ?या फिर इन लोगो ने ही राष्ट्र  की ज़िम्मेदारीसम्हालने की ''हैसियत''' पा  ली हैं ? ऐसा एक बार न्यायपालिका के जज साहेबन ने भी किया था ,जब एक मामले मे उन्होने लिख दिया था "" की वे राष्ट्र को बताएं """ जब की वे राष्ट्र के एक प्रदेश के उच्च न्यायालय के जज ही  थे | 

                              राष्ट्र या देश का प्रत्येक नागरिक उसका वैधानिक अंग हैं ,परंतु क्या वह सम्पूर्ण देश की ओर से ''बोलने या पूछने "का वैधानिक रूप से अधिकारी हैं ? ऐसा माना जाता हैं की जहा ' 'देश ''का कोई  वैधानिक रूप से प्रतिनिधि  नहीं  हो वहा  देश का कोई भी ''वयस्क  नागरिक "" ज़रूरत पड़ने पर अत्यंत सीमित दायरे तक ही नुमायान्द्गी कर सकता हैं | ऐसा केवल विदेश मे ही संभव हैं |अथवा ऐसे आयोजनो मे हो सकता हैं जहा देश का कोई अधिक्रत  नुमायान्द्गि नहीं कर रहा हो , और भारतीय नागरिक के रूप मे आप हाथ  उठाए | परंतु इस से अधिक तो कुछ भी नहीं किया जा सकता क्योंकि ""कुछ करने का ""का अधिकार आप के पास नहीं होता हैं |  अन्तराष्ट्रिय  स्तर पर इसीलिए  देश का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार  वंहा स्थित दूतावास को ही होता हैं |देश की सीमाओ के भीतर तो यह अधिकार तो केंद्र शासन के पास ही हैं |
                        
                                             क्योंकि देश की प्रभुसत्ता केंद्र के निकायो मे निहित हैं | सर्व प्रथम राष्ट्रपति फिर कार्यपालिका मे निहित हैं | क्योंकि वे ही ''राष्ट्र''' की ओर से आधिकारिक रूप से बोल सकते हैं कोई वादा भी कर सकते हैं | जो कोई अन्य व्यक्ति या निकाय नहीं कर सकता |
                                 ऐसे मे जब कोई भी व्यक्ति राष्ट्र की नुमायान्द्गी करता हैं तो , हक़ीक़त मे वह '''पूरे देश या राष्ट्र'''' के लिए नहीं होता हैं |वह तो सिर्फ उस व्यक्ति की निजी रॉय या प्रश्न होता हैं अथवा जिस संगठन या पार्टी का वह प्रतिनिधि हैं उसकी रॉय या सवाल होता हैं | परंतु जिस ज़ोर और ठसके से यह कहा जाता हैं ---तो लगता हैं सारा राष्ट्र या देश उनमे ''उतर ''आया हो | जैसे नवरात्रि मे लोगो को देवी का ''आवेश'' होता हैं वैसा ही कुछ | 
           
                             इस सब को देख समझ कर लगता हैं की क्या राष्ट्र या देश का इतना लघु रूप हो गया हैं की 120 करोड़  मे हर कोई उसका ''चाहे - अनचाहे ''' नुमायान्द्गी कर सकता हैं ? अथवा यह सिर्फ बोलने भर की बात हैं , बाक़ी तो कायदे - कानून से सब होता हैं | सोचिए ............