अनुछेद
370
और
35
ए
ने देश को आतंकवाद और अलगाव
वाद ही दिया !
क्या
ईद की कुर्बानी शांति से
काश्मीर मैं हो सकेगी ?
राष्ट्र
के नाम रेडियो और टीवी चैनलो
पर ,
संसद
मैं गृह मंत्री अमित शाह के
बयान को "”पुनर्भाषित
करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी ने कहा की अनुछेद 370
और
35
ए
ने काश्मीर को आतंकवाद और
अलगाववाद के सिवा कुछ नहीं
दिया "””
,
देश
के प्रधान मंत्री द्वरा
सार्वजनिक तौर पर संविधान
निर्माताओ और पूर्वर्ती
सरकारो पर ऐसा कलंक का आरोप
शायद ---
अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प
के अलावा और किसी ने नहीं किया
होगा !!!
लोकसभा
के पूर्व महासचिव सुबाश कश्यप
ने सरकार के कदम पर कहा की "
370 अस्थायी
उपबंध था "
! सच
हैं संविधान मैं ऐसा ही लिखा
हैं |
परंतु
इसके भाग 371
क
मैं नागालैंड के बारे मैं
विशेस उपबंध भी हैं !371ख
मैं असम और 371
ग
मैं मणिपुर तथा 371
घ
मैं आंध्रा और तेलंगाना तथा
371
च
मैं सिक्किम एवं 371
छ
मैं मिजोरम और 371
ज
अरुनञ्चल तथा 371
झ
गोवा राज्य के बारे मैं भी
अस्थायी और विशेस उपबंध
विद्यमान हैं |
इस
प्रकार प्रधान मंत्री का यह
कथन की अनुछेद 370
और
अनुसूची की धारा 35
ए
ने अलगाववाद दिया ----
सही
नहीं प्रतीत होता !
क्योंकि
इस व्यवस्था द्वरा काश्मीर
के लोगो की सान्स्क्रतिक पहचान
बनाए रखने के लिए – निवास -
नागरिकता
-
उनके
अधिकारो -
सरकारी
नौकरी मैं अवसरो – को दूसरे
प्र्देशों के लोगो से रक्षा
करने के लिए था ,
जो
महाराजा हरी सिंह ने 1927
की
दरबार की शाही आज्ञा का
उद्देश्य था |
क्या
केंद्र द्वारा नागालैंड -
असम
-
मिजोरम
-
अरुनञ्चल
और मणिपुर--
सिक्किम
मैं लागू “”अस्थायी और विशेस
संवैधानिक उपबंधो को को भी
“”अलगाव वाद और आतंक ‘” का
कारण मानते हुए इन्हे समाप्त
करेगी !
जिससे
की भारत के नागरिक इन राज्यो
मई जा कर बस सके -
व्यापार
कर सके और उद्योग लगा सके ,
जिससे
की स्थानीय लोगो को रोजगार
मिल सके ,
तथा
उनकी आर्थिक हालत मैं सुधार
हो ??
प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार
ऐसा करने का साहस नहीं जूता
सकती !
क्योंकि
इन राज्यो मैं मुसलमानो की
संख्या नहीं के बराबर हैं !!!
हाँ
इसियों की संख्या अरुनञ्चल
और नागालैंड मैं बहुतायत से
हैं |
परंतु
उड़ीसा मैं पादरी माइकल स्टेंस
को जलाने के आरोपी ,
तत्कालीन
बजरंग दल के प्रदेश के संयोजक
जो अब केंद्रीय मंत्री है
प्रताप चंद्र षडगी,
सत्ताधारी
दल को दुनिया के ईसाई देशो के
कोप का ख्याल हैं |
शायद
इस लिये और स्थानीय निवासियों
के
पुरजोर हिंसक -सशस्त्र
विरोध के सतत चलते हुए ना तो
काँग्रेस और ना ही अटल बिहारी
वाजपाई सरकार इन अस्थायी और
विशेस उपबंधो को समाप्त कर
पायी |
अब
इसे तत्कालीन सरकारो की कायरता
कहे अथवा शांति बनाए रखने की
कोशिस ---यह
बहस का मुद्दा हो सकता हैं |
परंतु
तथ्य यही हैं |
अब
कश्मीर घाटी {
जम्मू
और लद्दाख छोड़कर }
मैं
सूत्रो और खबरों के अनुसार
करीब
पाँच लाख केंद्रीय सुरक्षा
बल और सेना के दस्ते हैं !!!
आबादी
कुल शायद 64
लाख
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं ,
की
यह शांति कितने फौजी बूटो और
सड्को पर लगी कंटीली बाधाओ
और
धारा 144
मैं
मिलने वाले कर्फ़ुव पासो से
नागरिकों की आवाजही संभव हैं
|
शायद
धारा 144
मैं
पास का प्राविधान मेरी स्मरण
शक्ति मैं पहली बार सुना हैं
|
1
:- क्या
इस बार काश्मीर मैं ईद -उज
-जुहा
पर शांति पूर्वक कुर्बानी
दे सकेंगे ?
आगामी
सोमवार यानि 12
अगस्त
को केंद्र द्वरा किए गए शांति
-व्यवस्था
के बंदोबष्ट की कठिन परीक्षा
होगी !
कश्मीर
मैं मौजूदा फौजी बंदोबस्त
और चप्पे -
चप्पे
पर बंदूक धारी वर्दिधारी
जवानो और चौराहो पर फौजी वाहन
डेट हुए हैं |
ऐसी
हालत मैं आम काश्मीरी राशन
और दवा तथा रोज़मर्रा के सामानो
की खरीद के लिए मुश्किल से
निकलता हैं ------वह
कान्हा से कुर्बानी के लिए
बकरा या भेड खरीदने के लिए
निकलेगा |
गावों
से आने वाले पशुपालक शहर आने
इसलिए कतराते है की थोड़ी -
थोड़ी
दूर पर राह मैं फौजी पूछताछ
होती हैं |
पहचान
बताने के कागज दिखाने होते
हैं |
डांट-
डपट
अलग से |
अब
श्रीनगर मैं तो बकरे पाले
नहीं जाते ,
उन्हे
तो बाहर से लाना ही होगा |
परंतु
मौजूदा हालत मैं यह बहुत कठिन
हैं |
12 अगस्त
को इस धार्मिक पर्व को क्या
काश्मीरी अपने हिस्से की
कुर्बानी दे पाएगा ?
क्या
वह इस्लाम मैं ज़कात दे पाएगा
?
शायद
नहीं |
वैसे
प्रधान मंत्री के खास और देश
के सुरक्षा सलाहकार अजित
डोवाल जी "”
निर्देश
दे रहे की काश्मीरियों को कोई
तकलीफ नहीं होनी चाहिए "”
पर
फौजी इंतेजामत कोई ढिलाइ नहीं
हो लोगो को एकत्रित नहीं होने
दिया जाये |
अब
इन्हे कौन बताए की यह दीपावली
नहीं हैं की -घर
मैं अकेले भी दिये जला लो !
कुर्बानी
--
इस्लाम
मैं हर मुसलमान के लिए एक
दायित्व हैं ,
जैसे
नमाज़ और ज़कात |
आम
तौर पर कुर्बानी सार्वजनिक
स्थान मैं ही की जाती हैं |
जनहा
साफ़ -सफाई
से कुर्बानी हो सके |अब
कुर्बानी के बकरे का खून और
खाल का बंदोबस्त भी आम तौर पर
मुसलमानो की इंतेजामिया
कमेटिया करती हैं |
इसके
लिए उन्हे शहर मैं कई जगहो
मैं जाना पड़ता हैं ,
जनहा
से खालों को एकत्र कर उनको
बेचा जाता हैं |
जिससे
बाद मैं धार्मिक स्थलो की
मरम्मत मैं लगाया जाता हैं |
2:-
घाटी
मै कश्मीरी युवको को शिछा और
रोजगार के अवसर सुलभ करने का
वादा ?
जब
देश मैं आई आई एम और आई आई टी
तथा डेंटल और पोलेटेक्निक
मैं लड़के आदमिससोन नहीं ले
रहे हो उस समय एक मात्र सरकारी
नौकरी ही सहर बचता हैं |
370 और
35
ए
के रहते घाटी की सरकारी नौकरियों
मैं केवल काश्मीर के "”नागरिक
"”
ही
आवेदन कर सकते थे |
परंतु
अब यह संतुलन बिगड़ेगा ,
क्योंकि
डोगरी या काश्मीरी भाषा नहीं
जानने वाले भी इन नौकरियों
के लिए आएंगे |
भले
ही केंद्र सरकार कुछ बोल नहीं
रही हो परंतु जिस प्रकार
कश्मीर पुलिस को निसक्रिय
किए जाने की कवायद की जा रही
हैं ,
कम
से कम वह स्थानीय लोगो का
विश्वास जीतने मैं "”असफल
"”
ही
होगी |
इतना
ही नहीं अब काश्मीर पुलिस मैं
जम्मू छेत्र के लोगो का बोलबाला
हो सकता हैं |
जो
धरम और इलाके से अंजान होंगे
|
अब
ऐसे मैं क्या मोदी जी अथवा
डोवाल साहब का यह कहना की
त्योहार के मौके पर किसी
कश्मीरी को कोई दिक्कत नहीं
होनी चाहिए -------महज
रसम अदायगी ही लगती हैं |
अब
12
अगस्त
के बाद ही स्थिति साफ होगी की
सरकार के इस कदम को
केंद्रीय
बलो और सेना के जवानो की मौजूदगी
मैं कितनी और -कैसी
शांति बहाल होगी !!!