ध्रुवीकरण कितना माफिक होगा शिवराज को ?
नरेंद्र मोदी का राजनीतिक छितिज पर ऐसे समय मे आना जब जब प्रदेश की सरकार के लिए चुनाव होने जा रहे हैं , भारतीय जनता पार्टी के लिए कितना माकूल होगा यह देखना होगा | क्योंकि संघ की वोटो को '''इकठा""'करने की रणनीति से शिवराज को कितना लाभ या हानि होगी इसका लेखा - जोखा करना होगा | अभी जल्दी ही भोपाल मे भी मोदी की ''जुंगी'''सभा का ऐलान किया गया हैं , उसका अलपसंखयकों पर क्या प्रभाव होगा ? अथवा समाज के सभी वर्गो को लेकर चलने की मुख्य मंत्री शिवराज सिंह की नीति गलत साबित होगी या सही ?
आगामी विधान सभा चुनावो मे प्रदेश मे बीस से तीस विधान सभा छेत्रेय ही ऐसे हैं जंहा मुस्लिम मतदाताओ का समर्थन ''निर्णायक ''' साबित हो सकता हैं | इत्फाक से सदन मे बहुमत और नंबर दो पर आने वाली पार्टी मे भी अनुमानतः इतनी ही सीटो का अंतर होने की संभावना बताई जा रही हैं | विगत विधान सभा चुनाओ मे यह फर्क कही ज्यादा था | हालांकि अभी चुनवो की विधिवत घोसना नहीं हुई हैं परंतु रण का शंखनाद तो हो ही चुका हैं | काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओ के बीच आरोपो का दौर - ए -दौरा शुरू हो गया हैं | ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से काँग्रेस को एक खूबसूरत चहरा मिल गया हैं जो खबरिया चैनलो के काफी माफिक हैं , इसलिहाज से सत्तारूद दल को कुछ कण अहमियल मिलेगी |
अक नयी बात सामने आ रही हैं की मुख्य मंत्री पार्टी को पीछे रखकर अपने को आगे कर के चुनाव प्रचार कर रहे हैं | इसलिए अगर चुनाव मे विजय हुई तो उनकी होगी और पराजय भी उनही के खाते मे जाएगी | तुरंत ही मुख्यमंत्री के समर्थको की ओर से इसका प्रति उत्तर भी आ गया की अगर चुनाव जीते तो शिवराज और हारे तो उत्तर प्रदेश के दंगे और मोदी जिम्मेदार | अब इसका अर्थ तो यही हुआ की सत्तारूद दल मे भी मोदी के ''चुनावी प्रभाव''' को लेकर असमंजस हैं | यानि की पार्टी मे भी ''उदारवादियों और अनुदारवाड़ियों "" की अलग - अलग रॉय हैं |
एक सवाल यह भी हैं की इस प्रदेश मे 1957 से आज तक जीतने भी चुनाव हुए वे ''दो ही पार्टियो''' के मध्य होते रहे हैं | 1967 और 1977 और 2002 के चुनावो मे गैर काँग्रेस और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार बनी है | इसलिए कुछ लोगो का यह ''अंदाज़''' बिलकुल गलत हैं की प्र्तदेश मे किसी तीसरी पार्टी के सहयोग से सरकार बनेगी | क्योंकि बहुजन समाज और समाजवादी पार्टी का प्रभाव कुछ ही छेत्रों मे हैं , और कोई ''चमत्कार हो जाये तभी """ केंद्र की भांति '''मिलीजुली''' सरकार की कल्पना की जा सकती हैं | अन्यथा नहीं |
इस माह के अंत तक विधान सभा चुनावो की तिथियो की घोसणा होने की संभावना हैं | उसी के साथ ही ''चुनावी आचार संहिता '''' लग जाएगी | उस परिप्रेक्ष्य मे मोदी का जय हिन्द के स्थान पर वन्देमातरम और गुजरात के महात्मा गांधी के स्थान पर उनके अनुयाई वल्लभभई पटेल का स्मारक बनाने वह भी नुयोर्क की स्वतन्त्रता की देवी की मूर्ति से दो गुणी बड़ी , काफी महतवाकांछी योजना हैं | इस मूर्ति के निर्माण के लिए देश के सभी ग्रामो से उन्होने ''किसान के हल का का लोहा "" मांगा हैं | उनकी यह मांग अयोध्या मे राम मंदिर के निर्माण के समय विसवा हिन्दू परिषद द्वारा हर घर से |"| एक - एक ईंट ""' की मांग की गयी थी | लोगो का कहना हैं की राम को तो बारह वर्ष का वनवास हुआ था लेकिन अयोध्या मंदिर को बीस वर्ष से ज्यादा का वनवास हो गया परंतु ज़मीन से ऊपर मंदिर के बनने की कोई उम्मीद नहीं हैं | कनही वैसा ही वल्लभ भाई पटेल की इस योजना के साथ न हो ?
नरेंद्र मोदी का राजनीतिक छितिज पर ऐसे समय मे आना जब जब प्रदेश की सरकार के लिए चुनाव होने जा रहे हैं , भारतीय जनता पार्टी के लिए कितना माकूल होगा यह देखना होगा | क्योंकि संघ की वोटो को '''इकठा""'करने की रणनीति से शिवराज को कितना लाभ या हानि होगी इसका लेखा - जोखा करना होगा | अभी जल्दी ही भोपाल मे भी मोदी की ''जुंगी'''सभा का ऐलान किया गया हैं , उसका अलपसंखयकों पर क्या प्रभाव होगा ? अथवा समाज के सभी वर्गो को लेकर चलने की मुख्य मंत्री शिवराज सिंह की नीति गलत साबित होगी या सही ?
आगामी विधान सभा चुनावो मे प्रदेश मे बीस से तीस विधान सभा छेत्रेय ही ऐसे हैं जंहा मुस्लिम मतदाताओ का समर्थन ''निर्णायक ''' साबित हो सकता हैं | इत्फाक से सदन मे बहुमत और नंबर दो पर आने वाली पार्टी मे भी अनुमानतः इतनी ही सीटो का अंतर होने की संभावना बताई जा रही हैं | विगत विधान सभा चुनाओ मे यह फर्क कही ज्यादा था | हालांकि अभी चुनवो की विधिवत घोसना नहीं हुई हैं परंतु रण का शंखनाद तो हो ही चुका हैं | काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओ के बीच आरोपो का दौर - ए -दौरा शुरू हो गया हैं | ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से काँग्रेस को एक खूबसूरत चहरा मिल गया हैं जो खबरिया चैनलो के काफी माफिक हैं , इसलिहाज से सत्तारूद दल को कुछ कण अहमियल मिलेगी |
अक नयी बात सामने आ रही हैं की मुख्य मंत्री पार्टी को पीछे रखकर अपने को आगे कर के चुनाव प्रचार कर रहे हैं | इसलिए अगर चुनाव मे विजय हुई तो उनकी होगी और पराजय भी उनही के खाते मे जाएगी | तुरंत ही मुख्यमंत्री के समर्थको की ओर से इसका प्रति उत्तर भी आ गया की अगर चुनाव जीते तो शिवराज और हारे तो उत्तर प्रदेश के दंगे और मोदी जिम्मेदार | अब इसका अर्थ तो यही हुआ की सत्तारूद दल मे भी मोदी के ''चुनावी प्रभाव''' को लेकर असमंजस हैं | यानि की पार्टी मे भी ''उदारवादियों और अनुदारवाड़ियों "" की अलग - अलग रॉय हैं |
एक सवाल यह भी हैं की इस प्रदेश मे 1957 से आज तक जीतने भी चुनाव हुए वे ''दो ही पार्टियो''' के मध्य होते रहे हैं | 1967 और 1977 और 2002 के चुनावो मे गैर काँग्रेस और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार बनी है | इसलिए कुछ लोगो का यह ''अंदाज़''' बिलकुल गलत हैं की प्र्तदेश मे किसी तीसरी पार्टी के सहयोग से सरकार बनेगी | क्योंकि बहुजन समाज और समाजवादी पार्टी का प्रभाव कुछ ही छेत्रों मे हैं , और कोई ''चमत्कार हो जाये तभी """ केंद्र की भांति '''मिलीजुली''' सरकार की कल्पना की जा सकती हैं | अन्यथा नहीं |
इस माह के अंत तक विधान सभा चुनावो की तिथियो की घोसणा होने की संभावना हैं | उसी के साथ ही ''चुनावी आचार संहिता '''' लग जाएगी | उस परिप्रेक्ष्य मे मोदी का जय हिन्द के स्थान पर वन्देमातरम और गुजरात के महात्मा गांधी के स्थान पर उनके अनुयाई वल्लभभई पटेल का स्मारक बनाने वह भी नुयोर्क की स्वतन्त्रता की देवी की मूर्ति से दो गुणी बड़ी , काफी महतवाकांछी योजना हैं | इस मूर्ति के निर्माण के लिए देश के सभी ग्रामो से उन्होने ''किसान के हल का का लोहा "" मांगा हैं | उनकी यह मांग अयोध्या मे राम मंदिर के निर्माण के समय विसवा हिन्दू परिषद द्वारा हर घर से |"| एक - एक ईंट ""' की मांग की गयी थी | लोगो का कहना हैं की राम को तो बारह वर्ष का वनवास हुआ था लेकिन अयोध्या मंदिर को बीस वर्ष से ज्यादा का वनवास हो गया परंतु ज़मीन से ऊपर मंदिर के बनने की कोई उम्मीद नहीं हैं | कनही वैसा ही वल्लभ भाई पटेल की इस योजना के साथ न हो ?