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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 26, 2016

क्यो नहीं राम और कृष्ण को जल देते है और गंगापुत्र को देते है

क्यो नहीं राम - कृष्ण को जल देते और गंगापुत्र को देते है
पित्ःपक्ष के सोलह दिनो मे सनातन धर्मी अपने पिता - बाबा और परबाबा तथा माता पक्ष के लोगो को जल देते है | परंतु किसी के लिए भी अचरज की बात हो सकती है की किसी भी अवतारी विभूति को यह गौरव नहीं प्राप्त है जो कुरुवंशी शांतनु पुत्र देवव्रत को है |

इस पक्ष के दौरान अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए भोजन और जल देने का वेदिक विधान है | एक प्रकार से यह व्यक्ति को उसके परिवार के इतिहास के बारे मे अवगत करता है -वनही उनके गौरव से अभिभूत होता है | यह भी माना जाता है की ट्राप्त होकर पूर्वज अपनी वंश परंपरा के वाहको को आशीर्वाद देते है |
तर्पण की क्रिया के तीन भाग होते है | देव तर्पण मे 28 देवो को जल दिया जाता है | इसमे अंतिम जलांजलि "”ग्राम के चारो ओर के भूत "”” को भी प्रदान की जाती है | इनमे ब्रमहा _--_विष्णु रुद्र-- समेत -ऋषि - गंधर्व - यक्ष - पिशाच--आदि समेत सरिता -पर्वत सभी को स्मरण करके उन्हे "”ट्रप्त"” करने की प्रार्थना की जाती है |इन्हे अच्छत के साथ जल देते है | ऋषि तर्पण मे दस ऋषियों का आवाहन कर के जल स्वीकार करने की प्रार्थना की जाती है | अचरज की बात है की हम रावण के पिता पुलसत्य का भी आवाहन करते है | इसका अर्थ यह हुआ की मानव और -दानव का अंतर बाद का है
अंत मे दिव्य तर्पण मे हम अपने पिता -बाबा परबाबा और नाना -परनाना आदि समस्त दिवंगत सम्बन्धियो की आत्मा की शांति के लिए उन्हे जल देते है |

ऋषि तर्पण मे यज्ञोपवीत गले मे माला जैसा और दिव्य तर्पण मे उल्टे बांह मे रखा जाता है | 14 यमो को भी जल दिया जाता है | यह अपसव्यहो कर किया जाता है | इसके उपरांत ही शांतनु पुत्र देवव्रत जिनहे विश्व भिस्म पितामह के नाम से जानता है ---उन्हे देवता समान जल देते है | एक प्रश्न उठता है की जिस सभ्यता मे अनेक अवतार हुए – उन्हे इस कर्मकांड मे क्यो स्थान नहीं दिया गया ? और गंगा पुत्र को यह गौरव कैसे मिला की वे जब तक वेदिक संसक्राति रहे तब तक लोग उन्हे स्मरण करे और उन्हे जल प्रदान करे ?
मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार देवव्रत वसु थे जिनहे शाप मिला था -जैसा की गंगा ने शांतनु को छोड़ते हुए कारण बताया था | दूसरे सभी अपने पिता को "”वसु स्वरूप "” मानकर ही जल देते है | तीसरा यह की इच्छा म्रत्यु का वरदान पाकर इस आर्यावर्त मे धर्म की स्थापना का करी किया था | चूंकि वे आजीवन ब्रांहचारी रहे ---इसलिए वंश मे उनकी बेल उनही के साथ समाप्त हो गयी | अब ऐसे महा मानव को हजारो वर्षो तक सभ्यता और धर्म के प्रति पालक के रूप मे स्मरण करना हमारा सौभाग्य है |



Sep 25, 2016

पितरपक्ष - पुरखो की याद -उनमे भी जिनमे पुनर्जनम नहीं है

पितरपक्ष - पुरखो की याद -उनमे भी जिनमे पुनर्जनम नहीं है

वेदिक वर्ष के कार्तिक माह मे सोलह दिन सभी सनातन धर्मियों के लिए विशेस अवसर होता है जब वे अपनी वंशावली को स्मरण करते है | परंपरा यह है की जिनके जनक //पिता का अवसान हुए एक वर्ष से अधिक हो गाय है -उनका ज्येष्ठ पुत्र अथवा उसमे कठिनाई होने पर कनिष्ठ पुत्र पूर्वजो का तर्पण कर सकता है | पहले कुछ पंडित और समाज के लोग स्त्रियो द्वारा तर्पण किए जाने को घोर अनुचित मानते थे | परंतु अब शिक्षा और समझदारी के साथ लड़को की भांति लड्किया भी अब दाह संस्कार सम्पन्न करती है उसी प्रकार सामूहिक तर्पण के आयोजनो मे लड़कियो और महिलाओ को भो नदी मे जलांजलि देते देखा जा सकता है |

कर्मकांड के अनुसार सभीको पिता -माता , बाबा - दादी , परबाबा -परदादी के साथ ही परनाना -परनानी ,नाना -नानी मामा -मामी तथा ससुर और सास को भी जलांजलि देने का विधान है | इस प्रक्रिया का अर्थ हुआ की हमे अपने इन सभी पूर्वजो के नाम मालूम होने चाहिए | यदि यजमान को नाम विस्मरत हो गया है तब अमुक बोल कर काम चलाया जाता है |


अब मुख्य प्रश्न यह है की वेदिक धर्म मे पुनर्जनम की अवधारणा है इसलिए एवं आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए हम साल मे एक बार उन्हे पूर्णमासी से अमावस्या तक स्मरण करते है | परंतु अन्य धर्मो मे जनहा पुनर्जनम की अवधारणा नहीं है वनहा भी पूर्वजो को याद करने की प्रथा है | इस्लाम मे पूर्वजो को '''बरावफ़ात '' के दिन स्मरण करते है | उस दिन पूर्वजो की कब्र को साफ करके रोशनी करते है | ईसाई लोग भी अपने पूर्वजो की कब्र पर जा कर उन्हे फूल चदाते है | इन दो धर्मो का उल्लेख इसलिए किया चूंकि इनके यहा एक अर्थात वर्तमान जनम की ही अवधारणा है | और "””आखिरात अथवा The Judgement Day की व्यवस्था है ---जिसके अनुसार आत्मा को अनंत काल का स्वर्ग अथवा नरक उसके कर्मो के आधार पर प्राप्त होता है

Sep 11, 2016

कंधे - साइकल और हाथठेला पर ले जाते शव – बेशरम समाज

कंधे - साइकल और हाथठेला पर ले जाते शव – बेशरम समाज

उड़ीसा के कंधमाल के एक आदिवासी को जब अपनी पत्नी का शव दस किलोमीटर तक कंधे पर ले जाना पड़ा और दस साल की बालिका झोला लिए रोती-रोती चल रही थी वह फोटो देखकर सभी सरकार की ह्रदय हीनता -अस्पताल की लापरवाही को ही दोष देते रहे | सत्तर वर्ष की आयु मे यह मेरे लिए भी पहला संयोग था | पचास साल के पत्रकारिता के अनुभव मे भी --- समाज के ऐसे निर्दयी चेहरे की मैंने कल्पना भी नहीं की थी | परंतु सत्या यही है की ऐसा हुआ | और तकलिफ़देह बात है की अभी भी ऐसा हो रहा है | शहडोल मे भी एक आदिवासी को पत्नी का शव साइकल पर बांध कर ले जाना पड़ा | हाथठेला पर पर लाश ले जाने की खबर ग्वालियर छेत्र से आई थी |

सागर के एक गाँव मे लोगो को शव की दाह क्रिया के लिए कमर - कमर पानी मे चल कर जाना पड़ा | क्योंकि परंपरागत राह पर गाँव के दबंग का कब्जा था | भिंड के पास एक गाँव मे दो नाबालिग भाइयो को सड़क के किनारे ही बहन को गाड़ना पड़ा --क्योंकि शमशान की भूमि पर दबंगों का कब्जा था |

इन सभी घटनाओ मे प्रारम्भिक ज़िम्मेदारी सरकार की ना होकर उस समाज की बनती है जंहा ये रहते है | क्योंकि सदियो की सामाजिक और धार्मिक परंपरा रही है की गाँव मे शोक के अवसर पर सभी एकत्र हो कर परिवार का संबल बनते थे | दिलासा देते थे | इलाके के "”बड़े और समर्थ "” परिवार गामी वाले घर को खाना भिजवाते थे | प्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद की कहानी "”कफन "” मे भी ज़िक्र है | वेदिक धर्म मे शव को पूज्य माना गया है भले वह चांडाल का ही हो | अब इन परम्पराओ के बावजूद समाज के लोग इतने निर्मम हो गए की जाते हुए शव के सम्मान मे सर झुकाने के बजाय उसकी ''अनदेखी'' करे | ?

आखिर सरकार के पाहुचने से पूर्वा उसके पड़ोसी और अन्य परिजन कान्हा थे ? शायाद इस सवाल का उत्तर जीवन शैली के बदलाव मे है | जंहा पड़ोसी को यह नहीं मालों होता की बगल मे कौन रहता है | मिलने - जुलने के सभी सामाजिक सरोकार जैसे खतम हो गए | इन सभी उदाहरणो मे प्रभावित व्यक्ति ''गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन ''करने वाले थे | कंधमाल मे बीमार महिला के इलाज़ के लिए गाँव से उसके पति और बेटी के अलावा कोई नहीं था | आज के ''हानि - लाभ'' नापने वाले समय मे शायद परोपकार भी बिकता होगा | नहीं तो शहरो मे इतनी धार्मिक संस्थाए है --जो शव को अंतिम संस्कार का "”सम्मान "” दिला सकती है | उन्के पास धन और साधन की कमी नहीं है | मंदिरो -मस्जिदों और गिरिजाघरों द्वारा इस ओर पहल करने की आज सबसे ज्यादा ज़रूरत है |


क्योंकि जनम और मौत सभी की एक जैसी होती है चाहे वह गरीब हो या अमीर

Sep 9, 2016

अंतर अयोध्या मे हनुमंगडी और रामलला के स्थान का

अंतर -अयोध्या मे हनुमंगड़ी और राम लला के स्थान का

काँग्रेस नेता राहुल गांधी की अयोध्या यात्रा को लेकर राजनीतिक छेत्रों मे और खासकर सोश्ल मीडिया मे काफी चहल - पहल मचाए हुए है | इसके अनेक कारण है - पहला तो यह की नेहरू गांधी परिवार धार्मिक नहीं है इस "”विश्वास " को राजनीतिक दलो द्वारा प्रचार किया जाना ,,दूसरा यह की परिवार के सदस्यो द्वारा धार्मिक स्थलो की परिक्रमा नहीं करना | समाजवादी और वां पंथी दलो के द्वरा इस प्रचार मे भाग नहीं लिया जाना ही संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेताओ के लिए इस परिवार के सदस्यो को "”अधार्मिक "” बताने और "”सोनिया गांधी से राजीव के गांधी के विवाह "” के उपरांत इन संगठनो तथा इनके द्वारा "”पालित - पोषित "” उप अंगो द्वरा इसमे "”विधर्मी - क्रिस्तान '' जैसे आरोपो को भी जड़ दिया गया |
अगर हम रामायण अथवा रामचरित मानस का अध्ययन करे तो पाएंगे की हनुमान या बजरंगबली राम के लिए भी संकटमोचक थे , सुग्रीव के लिए भी और महाभारत मे अर्जुन के लिए भी | अब ऐसे मे राहुल गांधी का सहसत्रों वर्ष पुरानी परंपरा के प्रतीक के दर्शन करना उचित था अथवा "”विवादित स्थान पर तिरपाल "” के नीचे बैठे रामलला के दर्शन करना ? समझदारी तो इसीमे है की "'संकट"” मोचन को माथा नवाया जाये | वैसे मंदिर आंदोलन के अगुआ आडवाणी या उमा भर्ती अथवा स्वयं प्रधान मंत्री भी तिपाल मे बैठे रामलला को "” वांछीत"” स्थान दिलाएँगे क्या | क्योंकि उनकी ही कृपा से तो पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है | और बीजेपी यही कहती रही है की बहुमत हो तो हम "”भव्य"” मंदिर बनवा देंगे | हालांकि वीएचपी के नेता स्वर्गीय सिंघल जी के समय जमा किए गए "”चंदे "”” का हिसाब आजतक"”” सार्वजनिक "”” नहीं किया गया है | वैसे बीजेपी या वीएचपी के नेता "”बजरंग सेना तो बनाते है --परंतु उनके स्वनयमधन्य नेता "””जय श्रीराम "”के इस अन्नय भक्त के दर्शन करने कितने बार गए ? मुझे तो नहीं याद पड़ता --सत्ता मे आने के बाद एक बार भी गए हो | बात 26 साल बाद आने की भी लिखी गयी – अब यही सवाल तो किस से भी पूछा जा सकता है | संघ के मुखिया भागवत जी ने या उनके प्रमुख सहयोगीयो ने एक बार भी चरो धाम मे से किसी एक के दर्शन किए हो ? जिनके नेताओ ने सिर्फ तीर्थ यात्रा ट्रेन चलवा कर आईटीआई श्री कर ली वे क्या जानेंगे |

लोगो की स्म्रती शायद अधिक पुरानी बात को ना याद कर पाये परंतु बताना ज़रूरी है की हनुमान गढी का इतिहास गोस्वामी तुलसीदास रचित राम चरित मानस से अधिक पुराना है | यहा के महंत हाथीनशीन रहे है --अर्थात वे सन्यासी होकर भी हाथी की सवारी करते थे --जो शासक या राजा
का वाहन हुआ करता था | अयोध्या मे सीता रसोई भवन हुआ करता था जो की सूर्यवंशी राजाओ की यादगार था | 1950 मे तत्कालीन फ़ैज़ाबाद के कलेक्टर के के के नय्यर की लापरवाही से मस्जिद मे कुछ लोगो ने तोड़ फोड़ कर "”अखंड "” रामायण शुरू कर दी | जिस से अदालत ने प्रशासन को हस्तक्षेप करने से रोक दिया | वह रामायण विध्वंश तक जारी रही | बाद मे नय्यर और उनकी पत्नी दोनों संघ के कोटे से सांसद भी बने | अब समझा जा सकता है की अखंड रामायण कैसे शुरू हुई | षड इन प्र्श्नो के उत्तर



यह सही है की पंडित जी यानि की जवाहर लाल नेहरू इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी ने धर्म का "”प्रदर्शन नहीं किया परंतु अधार्मिक नहीं थे | पंडित जी के बारे मे लोगो को मालूम था की वे नियमित रूप से योगाभ्यास करते थे | तब जबकि आज के योग व्यापारी रामदेव का उदय भी नहीं हुआ था | इंदिराजी भी योग आसान किया करती थी - उनके योग शिक्षक धीरेन्द्र ब्रांहचारी थे |
उन्होने ही देश मे पहली बार केन्द्रीय विद्यालयो मे और योग शिक्षा को अनिवार्य विषय करवाया था | उन्होने योग शिक्षको को तैयार किया था जिनहे विद्यालयो मे नियुक्त किया गया था | उन्होने भगवा वस्त्र नहीं पहना | वे कभी भी सार्वजनिक रूप से राजनीतिक मंच अथवा बयानबाजी मे नहीं पड़े | उनके ही समान पुणे के श्रीमान अय्यर थे जो याग पारंगत थे | उन्होने अनेकों लोगो को असाध्य बीमारी से योग द्वारा मुक्ति दिलाई | परंतु उन्होंमे भी अपनी विद्या का ना तो प्रचार किया और नाही "”व्यापार "” किया जैसा की आज के योग शिक्षक कर रहे है ---वह भी धर्म की आड़ मे भगवा वस्त्र पहन कर | इन्दिरा गांधी और राजीव ने अपने धर्म के बाहर के लोगो से विवाह किया ----परंतु विवाह वेदिक रीति से ही सम्पन्न हुए | इन्दिरा गांधी के विवाह को तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था | राजीव गांधी के विवाह मे प्रख्यात कवि हरिवंस रॉय बच्चन का बंदोबस्त था |


भारतीय जनता पार्टी के-मुखर नेता सुबरमानियम स्वामी की पुत्री ने भी मुस्लिम से विवाह किया है | बाला साहब ठाकरे के परिवार की एक सदस्या ने भी मुस्लिम युवक से विवाह किया है | इन लोगो को कभी भी "”विधर्मी "” संज्ञा से नहीं नवाजा गया क्यो ? शायद इन प्रश्नो के उत्तर कोई नहीं देगा और इस इतिहास को कोई झुठला भी नहीं सकेगा

Sep 6, 2016

सरकार या प्रदहन मंत्री की आलोचना ना तो देशद्रोह है और नाही मानहानि सुप्रीम कोर्ट

हार्दिक और कन्हैया---सत्यग्राही या देशद्रोही ??

बीते समय मे सरकार की आलोचना को जिस प्रकार "”राष्ट्र द्रोह "”अथवा "”देशद्रोह "” के रूप मे वाचाल नेताओ और तत्वो द्वारा प्रस्तुत किया जाता था , उसे शायद विराम तो शायद नहीं परंतु झटका ज़रूर लगा होगा सुप्रीम कोर्ट के ताज़े फैसले से | न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति यू सी ललित की खन्ड पीठ ने स्पष्ट किया की भारतीय दंड संहिता की धारा 124[] जो की देशद्रोह को परिभाषित करती है ,, उसके अनुसार शासन अथवा सरकार की आलोचना देशद्रोह तो बिलकुल नहीं है | प्रख्यात वकील प्रशांत भूसण द्वारा एक स्वयं सेवी संगठन कामन काज की याचिका की पैरवी करते हुए कहा की पाँच जजो की संविधान पीठ ने 1964 मे ही केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राजी के मामले मे स्पष्ट रूप से रेखांकित किया था की सरकार या उसके सदस्यो की आलोचना देशद्रोह नहीं है |

यद्यपि अपने फैसले को राज्यो की पुलिस को भेजे जाने की प्रार्थना को मंजूर नहीं किया | उनका कहना था की यदि किसी को भी परेशान करने की नीयत से इस आरोप मे गिरफ्तार किया जाता है तो वह हमारे पास आ सकता है | चूंकि इस मामले मे व्याख्या की मांग है अतः यह फैसला |

इस निर्णय की रोशनी मे गुजरात के पटेलों के आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और जवाहर लाल नेहरू विस्वविद्यालया के छात्र नेता कन्हैया को पुलिस प्रशासन द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 124[] जो की देशद्रोह से संबन्धित है की गयी गिरफ्तारी और कारवाई पूरी तरह "””गलत और अवैधानिक "” सीध हो जाती है |
एक प्रकार से यह फैसला ऐसे समय मे आया है जब "”राष्ट्र"” के तथा कथित "”स्वयंभू रक्षक "” की पोल खोल देता है | वनही दिल्ली और गुजरात पुलिस -प्रशासन की "””दबंगी "” का खुलाषा करता है | इस फैसले यह स्पष्ट हो जाता है की "”गिरफ्तारी और निरूढ़ '' करने क्ले अधिकार का उपयोग राजनीतिक उद्देसय से किया गया है | दोनों ही मामले मे इन नेताओ ने गुजरात की सरकार और नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री की नीतियो की सार्वजनिक रूप से पोल खोली थी |

राष्ट्रद्रोह शब्द का इस्तेमाल बीते समय मे सत्तारूद पार्टी {केंद्र मे } के नेताओ द्वारा अपने आलोचको का मुंह बंद करने के लिए किया गया | भले ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यो को इस संबंध मे निर्देश नहीं दिये --परंतु प्रभावित - पीड़ित व्यक्ति अदालत से संरक्षण तो प्रापत तो कर ही सकता है

Sep 4, 2016

मदर टेरेसा को संत उपाधि पर कुछ प्रतिकृया और वास्तविकता
अल्बानिया मे जन्मी ,और भारत जिनकी कर्म भूमि रही , लगभग पचास वर्षो तक जिनकी पहचान निराश्रितों और कुष्ट रोगियो के लिए आशा की लौ मदर टेरेसा को रविवार को वैटिकन मे पोप ने संत के रूप मे कैथोलिक ईसाई धर्म मे मान्यता दी | नवभारत टाइम्स मे मेरे सहयोगी रहे प्रख्यात पत्रकार डॉ वेद प्रताप वेदिक ने आज नया इंडिया मे एक आलेख मे लिखा है की "”उन्हे संत बनाने की प्रक्रिया नितांत अवैज्ञानिक है "” उन्होने संत के लिए आवश्यक चमत्कारो को भी अमान्य किया "” उनके अनुसार उन्होने दुनिया के बदनाम और दागी लोगो से "”आर्थिक "”मदद ली | इतना ही नहीं उन्होने कलकत्ता मे निराश्रितों और कुष्ट रोगियो की उनकी सेवा को "”धर्मांतरण "” की प्रक्रिया का एक अंग बताया | इसके लिए उन्होने मदर टेरेसा के बारे मे एक बंगाली सज्जन द्वरा लिखी गयी किताब का उधारण दिया --तथा एक डाकुमेंटरी का भी हवाला दिया जिसमे मदर द्वारा अवांछित लोगो से धन लेने की बात कही गयी थी |

उनके आरोपो की सत्यता के बारे मे कोई विवाद उठाने से पूर्व वेदिक जी से मेरे कुछ प्रश्न है --- महात्मा - संत – साधु - स्वामी और महामंडलेश्वर -मंडलेश्वर --बाबा आदि के जो विशेषण आज कल समाज मे अनेक भगवा धारी लोग लगाए फिरते है – अथवा जो मठाधीश अपने भक्तो को राजनीतिक दलो की ओर मोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते है ---क्या उन्हे "”धार्मिक "” रूप से "”पूज्य "” मानना चाहिए | योन शोसन के आरोपो से जेल मे बंद आशाराम के "”चेले "” क्या उन पर चल रहे मुकदमे से अंजान है ? अथवा जानकार भी भोले बन रहे है और सरकार पर आरोप लगा रहे है की "”राजनीतिक "”कारणो से उन्हे फंसाया गया है | पहले यही आरोप मनमोहन सिंह पर लगता था अब नरेंद्र मोदी पर लग रहा है | उनकी अकूत ज़मीन जायदाद उनके और उनके पुत्र और रिश्तेदारों के नाम है खरबो रुपये की संपति के वे बेनामी मालिक है | इसी कड़ी मे मथुरा मे हुए गोलीकांड का भी ज़िक्र करना उचित होगा --जो जय गुरुदेव की अरबों रुपयो की संपाति पर क़ब्ज़े का असफल प्रयास था | हरियाणा मे एक डेरा है बाबाब राम रहीम का जो जब चलते है तो दस -बारह करो का काफिला चलता है | वे अपने ऊपर एक फिल्म भी बनवा चुके है | एक और डेरा है जिसके स्वामी का देहावसान हो जाने के बाद उनके शिष्यो ने शव को अंतिम साँसकर के लिए नहीं ले जाने दिया |

वेदिक जी मई जिस धर्म का उल्लेख कर रहा हूँ वह आपकी भाषा मे "””हिन्दू "”है | जिसमे दर्जनो भगवा वस्त्रधारी महिला के यौन शोषण और धोखा धड़ी और अन्य अपराधो मे भी लिप्त पाये गए | परंतु इन सभी महानुभावों के "”भक्तो "” की श्रद्धा ने कभी "”वैज्ञानिकता और तथ्यो "”” की जांच - परख ''नहीं की | फिर भी वे बाबा है लोग उनके पैर छूते है दान देते है उन्हे परमात्मा का "”दूत "” मानते है | पर इनमे से कितनों ने समाज के लिए परोपकार का कारी किया हो तो मुझे बता दीजिये ? मेरी द्राशती मे अगर "”तप"” की मिसाल देनी हो तो दिगंबर मुनियो की देनी होगी | जो नितांत "”अपरिग्रह "” का पालन करते है | जादा - गर्मी -धूप शीट बरसात सहते है भूमि पर सोते है | एक समय अंजुरी भर कर भोजन करते है | पैदल ही विचरण करते है कोई सवारी नहीं स्वीकार करते | उनकी तुलना मे महामंडलेस्वर जो विदेशी और एयर कंडीसन कारो मे चलते है --- बिना चाँदी या स्वर्ण मंडित सिंहासन के और छात्र तथा छावर के सवारी नहीं निकलती | जिन सन्यासियों के लिए स्त्री छूना निषेध है वे अपने चरणों मे उन्हे स्थान देते है | स्त्री के साथ एकांत भगवा वस्त्रधारियों के लिए ''पाप'' है --- परंतु उत्तर से दक्षिण भारत के दर्जनो ऐसे नाम गिनाए जा सकते है जो ऐसा करते है |

ये वेदिक धर्म की सनातन परंपरा की किस कड़ी का पालन करते है ?? इनमे कोइ भी समाज के लिए कल्याण नहीं करता | अपना और थोड़ा बहुत अपने ''भक्तो '' का ''कल्याण '' करते है | भूखे को भोजन और रोगी को इलाज़ तथा निराश्रित को आश्रय का काम तो मदर टेरेसा ने भारत मे किया इतना तो वेदिक जी आप भी मानेंगे | भूख गरीबी की सबसे बड़ी कमजोरी है --जो उस से कोई भी पाप कराति है | उनको भोजन देने का पुण्य तो उन्हे मिलेगा की नहीं ? भोजन सुलभ करने जैसा महान कार्य हमारे सीख धर्म के गुरुद्वारों के '''लंगर'' मे होता है |जनहा बिना भेदभाव के सबको पेट भर भोजन मिलता है --बिना यह पूछे हुए की वह किस धर्मा का है ?


वेदिक जी आपने लिखा है की वे बीमार के गले मे दो घूंट जल ड़ाल कर उसे ईसाई बनाती थी – मुझे कहते हुए संकोच है की ईसाई धर्म मे धर्मांतरण की लंबी प्रक्रिया है -वैसी ही जैसे वेदिक धर्म द्विज बनाने की | एक प्रश्न और उनके यानहा के बीमारों को कितनों को ''दफनाया ''गया और कितनों का दाह संस्कार हुआ -जरा पता कर ले | कलकत्ता नगर निगम से आंकड़े मिल जाएंगे | और अंत मे एक प्रश्न के साथ बात समाप्त करूंगा की – मोहनदास करमचंद गांधी को इस देश ने क्यो '''महात्मा '' कहा क्यो उन्हे ''राष्ट्रपिता '' का नाम दिया क्या वे इसके पात्र थे की नहीं ? आप का उत्तर नहीं होगा परंतु फिर आप उनही के बराबर के व्यक्ति का नाम बता दीजिएगा | बंदे  

भीड़ का प्रजातन्त्र या कुछ लोगो की गिरोहबंदी

भीड़ का प्रजातब्न्त्र अथवा कुछ लोगो की गिरोहबंदी ?

एक अङ्ग्रेज़ी दैनिक की खबर के अनुसार KFC फूड चेन के वीरुध कुछ हिन्दू और मुस्लिम लोगो ने एकत्र हो कर इकबाल मैदान मे कंपनी को देश मे बंद किए जाने की मांग की है | ताज्जुब की बात है की इस हस्ताक्षर अभियान मे शहर क़ाज़ी मुश्ताक़ अली नदवी ने तथा मस्जिद कमिटी के यासीर अराफात तथा हिन्दुओ की ओर से अरुण छावरिया से इस अभियान को केएफ़सी मुक्त भारत अभियान का नाम दिया |वजह यह बताई की केएफ़सी को बताना चाहिए की वे हलाल का बेचते है या झटके का मांस बेचते है | उन्होने पुलिस मे शिकायत भी दर्ज़ कराई है की इस कंपनी के व्यापार से उनके "”धार्मिक भावनाओ "”” को आघात पहुंचा है | वैसे दूकान पर जाना वैसे ही है जैसे शराब की दूकान पर जाना | इस्लाम मे शराब भी हराम कही गयी है ,, पर उस पर कोई मांग या आंदोलन नहीं है | जो झटके या हलाल से ज्यादा ज़रूरी है ,, घर - घर मे झगड़े और मारपीट का मूल है |

जंहा मुस्लिमो का एतराज़ केएफ़सी मे मिलने वाले मांस के "”हलाल"” का ना होने की थी वनहा छावरिया का कहना था के वे "”गौ संरक्षण "” की मांग करते है | क़ाज़ी के अनुसार केएफ़सी को बताना चाहिए की वे जो बेच रहे है वह " हलाल " का गोष्त है झटके का नहीं | इन दो परस्पर विरोधी मांगो के लिए "”एक साथ "” हस्ताक्षर अभियान कुछ समझ मे नहीं आती है | अभी तक गाय को बचाने के लिए उनको ट्रको मे ले जाने वाले मुस्लिम व्यापारियो को अनेक स्थानो पर बहुसंख्यक समुदाय के आक्रोश का सामना करना पड़ा था | दूसरा केएफ़सी मे "”बीफ "”” का इस्तेमाल नहीं होता है , ऐसा उनके प्रबंधन का कहना है | फिर गाय संरक्षण की इस अवसर पर ज़रूरत नहीं समझ आ रही है |
मुस्लिम समुदाय के लिए हलाल ही जायज है ,, उनका
विरोध तो समझ मे आता है | परंतु प्रपट रिपोर्टों के अनुसार कंपनी अपने लिए मुर्गो की खरीद गोदरेज और वेनन्की से खरीदती है | जो हलाल का सर्टिफिकेट बॉम्बे के एक मुफ़्ती द्वारा दिया गया है | अब क़ाज़ी नादवी का कहना है की वह सर्टिफिकेट केएफ़सी को नहीं दिया है | वे इस बात को नहीं समझना चाहते है की केएफ़सी कोई मुर्गी पालन केंद्र नहीं चलती है --जहा से वे अपने वितरण केन्द्रो पर चिक़ेंन बेचते है |


क़ाज़ी साहब का कहना है की केएफ़सी इस बात की सार्वजनिक घोसणा करे की वे झटका बेचते है या हलाल ? इस मांग से धर्म गुरु की कमजोरी साफ झलकती है | इस्लाम मे हलाल को ही जायज कहा गया है --तब यह हर बंदे का फर्ज़ बंता है की वह यह तसदीक़ करे की जो गोष्त वह ले रहा है वह वाजिब है या नहीं | शहर मे बहुत से मांस बेचने वाली दूकानों पर लिखा होता है की यानहा झटके का मीट मिलता है | अब यह लेने वाले की मर्ज़ी वह कान्हा से ले | पर यह कहना की हर होटल या रेस्टुरेंट इस बात को बाहर लिखवा दे की यानहा हलाल का मांस मिलता है या झटके का --यह तो बहुत '''गैर वाजिब "”बात है | अगर आदमी को अपने उसूलो से इतना महत्व है तो वह ''ऐसी ''जगह पर ना जाये | वैसे तो इस्लाम मे शराब भी "””हराम "” है तो क्या शहर की सभी शराब की दूकानों को बंद कर दिया जाएगा ?? यही है भीड़ या गिरोह की राजनीति