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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 25, 2021

इतिहास में केवल विजेताओ का ही नहीं -पराजितों का भी ज़िक्र है

 

इतिहास में केवल विजेताओ का ही नहीं -पराजितों का भी ज़िक्र है



अभी हाल में ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो वाइरल हुआ है , जिसमें देश के सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल जी कहते हैं की --- इतिहास में केवल विजयी सभ्यताओ का ही ज़िक्र हुआ हैं | पराजितों का नहीं ! वे शायद विवेकानंद भाषण माला को संबोधित कर रहे थे |

इस संदर्भ में मुझे उनका कथन कुछ अटपटा लगा , क्योंकि स्स्र्ष्टी के आरंभ में जब समस्त प्रथ्वी जलमगन थी और भगवान विष्णु शेष शय्या में योग निद्रा में थे तब उनकी नाभि के कमल पर बैठे ब्रम्हा को खाने के लिए मधु और कैटभ नामक दो दैत्य प्रयास कर रहे थे | इसका ज़िक्र दुर्गा शप्तसती के प्रथम अध्याय में हैं | किस्सा यह हुआ की पाँच हज़ार वर्षो तक उन दोनों दैत्यो से भगवान विष्णु का युद्ध हुआ , अंत में थक कर उन दैत्यो ने विष्णु से वरदान मांगने को कहा | और विष्णु ने उनसे मांगा की आप दोनों का वध मेरे द्वरा हो | इस पर उन दोनों ने कहा की जनहा जल ना हो ऐसी जगह पर हमारा वध करो !! तब विष्णु जी ने अपनी जांघ पर उन दोनों के सर अपनी जंघा पर रख कर सुदर्शन चक्र से काट दिये | अब इसमें क्या विजेता के साथ पराजित का उल्लेख नहीं हैं ? वह भी पौराणिक कथा में ! सतयुग में राजा सूर्यवंश में अयोध्या के राजा हरीश चंद्र और महर्षि दुर्वाषा की कथा में कौन विजेता और कौन पराजित इसका निर्णय करना मुश्किल हैं | परीक्षा देने वाले सत्यवादी राजा हरीश चन्द्र और और परीक्षा लेने वाले दुर्वाषा में महिमा तो राजा हरिश्चंद्र की ही हुई , भले ही परीक्षा के दौरान उन्हे अत्यंत कष्ट उठाने पड़े |

द्वापर युग में मानव के रूप में परमात्मा का अवतरण अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के रूप में हुआ | अब भक्तो के लिहाज से तो रावण राछस था , जिसने जानकी जी का हरण किया | तत्पश्चात राम किष्किंधा नरेश सुग्रीव और हनुमान की सहायता से लंका जाकर रावण का वध किया और विभीषण को वनहा का राजा बनाया | भारत में चल रही दर्जनो राम कथाओ में रावण के वर्णन के बगैर वे पूरी नहीं हो सकती | उनमें मेघनाथ --कुंभकरण और रावण की शक्तियों और पराक्रम का भी वर्णन होता ही हैं | हालांकि थे वे भी "”पराजित "” | राम को वानर राज बाली के छुप कर तीर मारने पर लेकर विवाद हैं की क्या वह धरम युद्ध था ? धरम युद्ध उसे कहते हैं जनहा दोनों योद्धा एक दूसरे की द्राशटी में हो | इस परिभाषा से शायद यह घटना उचित ना हो | पर पराजित बाली की वीरता का वर्णन महाकवि बाल्मीकी और राम चरित मानस के लिखने वाले गोस्वमी तुलसीदास ने भी किया हैं | अब हुआ तो वह भी पराजित ही था | लेकिन उसके शौर्य का वर्णन तो किया ही गया |

त्रेता युग में महाभारत का आरंभ हुआ तो धरम युद्ध के नियमो के तहत ही था | परंतु कौरव सेनापति शांतनु पुत्र देवव्रत जिनहे लोग भीष्म के नाम से जानते हैं , जिनहे इच्छा म्रत्यु का वरदान था | जब उन्होने पांडवो की सेना का विध्वंश कर डाला , तब क्रष्ण ने अर्जुन से कहा की वे उनसे उनकी म्र्त्यु कैसे होगी --यह प्रश्न पितामह से करे | तब पितामह ने बताया की इस जन्म में शिखंडी जो पूर्व जन्म में काशी राज की पुत्री अम्बा थी | चूंकि मैंने उसे स्त्री रूप मै ही देखा हैं , अतः मैं उस पर तीर नहीं चला सकता | इस रहस्य के बाद देव्व्रत 18 दिन चले महाभारत के अंत तक वाणों की शय्या पर लेते रहे | अब देवव्रत या भीष्म को पराजित माने अथवा विजयी ? इसी प्रकार कर्ण का भी वध हुआ ,जो निश्चय ही धरम युद्ध के नियमो की अवहेलना था | परंतु यादव कुल श्रेष्ठ कृष्ण के कहने पर दोनों घटनाए हुई ------अतः वे धरम के अनुकुल मानी गयी | अब दोनों पात्रो को पराजित ही माना जाएगा ,क्यूंकी वे कौरवो किओर से लड़े थे ---जिनकी महाभारत में पराजय हुई | पर दोनों को ही अप्रतिम वीर माना गया | जबकि थे वे भी "” पराजित "” | शांतनु पुत्र देवव्रत ब्राम्ह्चर्य का जीवन भर निर्वाह किया -----इसलिए आज भी सनातन धर्मी से अपेक्षा है की वह पितरो को अघर्य देते समय अंत में भीष्म को भी जल दे |भले ही वह ब्रामहन हो या छ्त्रीय हो या वैश्य | अब थे तो वे पराजित लेकिन वेदिक वांगमय में जो स्थान अवतारो को नहीं मिला , वह इस राजपुत्र को मिला |


क्रष्ण लीला में मामा कंश को मारने के बाद मथुरा पर मगध सम्राट जरासंध के लगातार आक्रमणों से अपने स्वजनो को रक्षा के लिए सारे यादव गुजरात में द्वारका चले गए | अब पराजित कौन था --जरासंध अथवा क्रष्ण ? इसी निर्णय के कारण उन्हे "” रणछोड़ "” भी कहते हैं | लेकिन हमारे धरम ग्रंथो में उन्हे ही '’’’विजयी'’ निरूपित किया गया | हालांकि उनकी पत्नी जांबवनती के पुत्र सांब की हरकतों के कारण द्वारका के समुद्र के तट पर उगी '’काँस '’ [ एक प्रकार की घास जो बदन को काट सकती है ] ही इतनी धारदार बन गयी की क्रष्ण के समूचे कुल और वंश का नाश हो गया | यद्यपि इसका कारण गांधारी का श्राप बताया जाता हैं | सवाल अभी भी वही है की इतिहास में या धार्मिक आख्यानो में क्या पराजितों को स्थान नहीं मिलता ?

2---लिखित इतिहास ;- अगर हम लिखित एतिहासिक घटनाओ पर नज़र डाले तो – यूनान के सम्राट सिकंदर और तक्षशिला नरेश पुरू या पोरस के युद्ध में , पुरू पराजित हुए | परंतु उनके उत्तर ने उन्हे सिकंदर की बराबरी मे ला दिया | उस समय के भारत वर्ष के राजाओ की ईर्ष्य ने उन्हे सिर्फ "””अपना ही अपना "” सोच में रखा | विदेशी आक्रमण का मुक़ाबला मिल कर कर सकते थे , परंतु "” मैं श्रेष्ठ "” के अहंकार ने उहे एक नहीं होने दिया |

महमूद गजनवी द्वरा भारत पर किए गए हमलो से द्वारिका में सोमनाथ मंदिर के अलावा भी लूट पात की गयी | सिंध के अंतिम हिन्दू सम्राट दाहिर के राज्य को भी गजनावी ने लूटा , पर किसी पड़ोसी राजा ने मदद नहीं की !

ऐसा ही मुहम्मद गोरी के समय में हुआ , अजमेर और दिल्ली के राजा प्र्थ्विराज चौहान पर बारंबार आक्रमण हुए ,पर कन्नौज या मगध के राजाओ ने कोई मदद नहीं की | परिणाम "” चार बांस चौबीस गज़ अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है -मत चुकयो चौहान "” चंद बरदाई का यह दोहा दिल्ली के अंतिम हिन्दू शासक के लिए था |

बाबर और इब्रहीम लोदी के पानीपत के युद्ध में राणा सांगा का निसक्रिय रहना ही लोदी की हार बनी | तथा दिल्ली में मुग़ल वंश आया | शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को पराजित कर आमेर के किले में [ जो आजकल पाकिस्तान में है , परंतु उसके शासक आज भी राजपूत ही हैं "””] शरण लेने पर मजबूर किया |जनहा मुग़ल सम्राट अकबर का जन्म हुआ | जिनहोने काबुल से लेकर दक्षिण के गोदावरी नदी तक अपने राज्य विस्तार किया | परंतु मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह ने मुग़ल सम्राट के सामने सर झुकाने से इंकार किया | परिणाम स्वरूप सीमित साधन और छोटी सेना के बल पर वे जंगल जंगल भटकते रहे | उनके छोटे भाई शक्ति सिंह ने भी उनकी मदद नहीं की !!वे पराजित हुए परंतु उनकी वीरता और यानहा तक की उनके घोड़े चेतक की तारीफ में लिखा गया | औरंगजेब के राज़ में मराठा सरदार शिवाजी भोसले लड़े परंतु संसाधनो की कमी से उन्हे औरंगजेब के समय उन्हे मुग़ल दरबार में समर्पण करना पड़ा | वे पराजित हुए , परंतु हिम्मत नहीं हारी फलस्वरूप वे मराठा साम्राज्य खड़ा कर सके |

अंत में बस इतना ही की इतिहास में विजयी और पराजित एक ही पलड़े पर नहीं रखे जाते , परंतु जिक्र उनका भी होता ही है भले कुछ कम हो |



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Jan 15, 2021

 

उत्तरायन में जाता सूर्य -क्या किसानो की पहल को सफलता देगा ?

50 दिन से दिल्ली को चारो ओर से घेरे बैठे किसानो को पहली सफलता तो मिल गयी , जब करनाल में बीजेपी द्वरा विवादित क्रशि कानूनों के समर्थन में मुख्य मंत्री खट्टर की सभा को जनता के रोष के सामने स्थगित करना पड़ा | उसके बाद उप मुख्य मंत्री दुष्यंत चौटाला की प्रधान मंत्री मोदी से मुलाक़ात के बाद , गृह मंत्री अमित शाह की की अपील की कानूनों के समर्थन में सम्मेलन नहीं किए जाये !! हालांकि इस खबर को मात्र एक खबरिया चैनल ने दिखाया | परंतु सरकारी आयोजनो को ले कर जनता के गुस्से को देखते हुए यह फैसला उचित ही हैं | उधर सुप्रीम कोर्ट द्वरा नियुक्त चार सदस्यीय क्र्षी विश्स्ज्ञो मैं से एक द्वरा इस्तीफा दिये जाने और – किसानो के हित में लड़ाई लड़ने के बयान ने ----पूरे "”परिद्र्श्य"” को बादल दिया हैं | अब आधी -अधूरी समिति की वैधानिकता पर ही सवालिया निशान लगा दिया हैं |

शायद केंद्र सरकार के इस फैसले के पीछे हरियाणा सरकार की जान छुपी हैं | दुष्यंत चौटाला की जजप पार्टी के विधायक जात किशान हैं | जो की इस आंदोलन के पक्ष में हैं | आन्दोलंकारियों को दूध - लस्सी और गन्ना तथा महिलाओ को ठहरने का स्थान भी हरियाणा के किसानो द्वरा मुहैया कराया जा रहा हैं | चौटाला के विधायकों ने पहले ही कह दिया था की अगर आन्दोलंकारियों पर पुलिस ने हिंसा बरती या मुक्द्में दर्ज़ किए तो वे इस्तीफा देकर सरकार गिरा देंगे | उधर काँग्रेस नेता शैलजा ने बयान दिया है की जेजेपी के विधायक हमारे संपर्क में हैं | जिनकी संख्या कुल विधायकों के एक तिहाई से ज्यादा हैं | चुनाव अयोग्यता कानून के अनुसार यदि किसी पार्टी के एक तिहाई से ज्यदा नेत्रत्व के खिलाफ विद्रोह करते हैं ---तब उसे पार्टी का विखंडन माना जाएगा ! परिणाम स्वरूप उनकी विधान सभा की सदस्यता बरकरार रहेगी | जिसका अर्थ हुआ की वैकल्पिक सरकार बनाने का विकल्प खुला रहेगा | अब खट्टर की सरकार चौटाला के समर्थन के अभाव में गिरने के बाद बीजेपी विरोधी सरकार बनने की पूरी संभावना हैं | बीजेपी तथा आरएसएस द्वरा इस जन आक्रोश को नियंत्रित किए जाने की संभावना अब निर्मूल हो गयी हैं |

यदि हरियाणा में ऐसी हलचल हुई --तो बंगाल में त्राणमूल विधायकों को खरीद कर ममता सरकार को गिराने का बीजेपी नेता कैलाश विजया वर्गीय का दावा कमजोर पद जाएगा | मध्य प्रदेश में काँग्रेस विधायकों को तोड़ कर कमलनाथ सरकार गिराणे का खेल सफल तो हुआ | परंतु जमीन पर यही संदेश गया की आरएसएस विश्व हिन्दू परिषद और बीजेपी की ट्रोइका को जन समर्थन से सरकार नहीं बनने पर "” पैसे के दम पर विधायकों को खरीद कर राज करने की आदत हैं "” | अरुणाचल हो या आँय कोई राज्य जनहा बीजेपी की साझा सरकारे हैं ---वनहा पर बीजेपी अपने साथी को हजम करने की दोषी रही हैं | बिहार के विधान सभा चुनावो में जिस प्रकार नितीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड को कमजोर करने के लिए पासवान का इस्तेमाल किया गया , उसी के कारण नितीश ने यह कहा "” दोष्त और दुश्मन पहचानने में भूल हुई "” | इस बयान के बाद बीजेपी और आरएसएसके कान खड़े हो गए | फिर जेडीयू की सफाई आई की "”हम एनडीए के साथ थे और रहेंगे "” | गौर तलब हैं की बिहार में भी बीजेपी की साझा सरकार हैं |

अगर चुनाव की बेला में हरियाणा में रद्दो बदल हुआ तो बीजेपी के सपने बंगाल और तमिलनाडू में बिखर जाएंगे | इन राज्यो में भी बीजेपी हिन्दू - मुसलमान कार्ड ही खेल रही हैं | परंतु हरियाणा के नूह और पटौदी इलाके के मुसलमान सीखो केसाथ डट के खड़े हैं | उनकी दोस्ती को कट्टर हिन्दू और मुस्लिम विरोधी संगठनो के प्रयास असफल हो चुके हैं | यानहा तक की पंजाब और हरियाणा के बीच की दुखती रग --””सतलज व्यसा पानी बटवारा "” भी पंजाब के सिखो और हरियाणा के जाटो को आंदोलन से अलग नहीं कर पाया | जातो का कहना हैं की बड़े भाई { सिख} से इस बारे मेन बाद में बात करेंगे ----आज हमारे ऊपर और हमारी किसानी पर हमला हुआ हैं , इसलिए आज तो लड़ाई दिल्ली सरकार के तीन काले कानूनों से हैं | इसलिए मिल कर लड़ेंगे !




Jan 12, 2021

 

अदालत के फैसलो से क्या न्याय मिल जाता है ?

संविधान में न्यायपालिका की व्याख्या करते हुए कहा गया है की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला "”सही है "” ऐसा इसलिए माना जाता है , चूंकि उसके फैसले की कोई अपील नहीं हो सकती | जो इस बात का परीक्षण करे की अदालत का आदेश "”न्यायिक " है अथवा नहीं | संविधान में मौलिक अधिकारो को इसीलिए शामिल किया गया हैं की – न्यायालय नागरिकों के अधिकारो की रक्षा - व्यक्ति अथवा समूहो और सरकार से करेगा ! यह सवाल आज इसलिए मौजू हो गया हैं की विगत कुछ वर्षो में अनेक मामलो में शायद ऐसा नहीं हुआ हैं | भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश मिश्रा के समय सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशो द्वरा सुप्रीम कोर्ट की कार्य प्रणाली पर

सवालिया निशान लगाए गाये थे | फिर जुस्टिस गोगोई ने पदभार सम्हालने के उपरांत अयोध्या मामले में पहली सुनवाई में कहा की अदालत भूमि के मालिकाना हक़ के बारे में सुनवाई होगी , उसके धार्मिक महत्व पर नहीं | परंतु अंतिम आदेश में स्थिति विपरीत हो गयी | बाद में जब उन्हे सरकार ने राज्य सभा के लिए नामित किया तब लोगो को उनकी न्यायिक द्र्श्ति पर संदेह हुआ | पर कुछ नहीं किया जा सकता था ,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम है और उसके वीरुध कोई अपील नहीं की जा सकती !

फिर आया प्रशांत भूषण का मामला जिसमे " जज की मानहानि " का मामला था | यद्यपि तथ्य बिलकुल सही थे , परंतु तब भी बार और मीडिया में अदालत के रुख की आफै आलोचना हुई | तब 1 रुपया का जुर्माना लगाया गया ! फिर आया मामला सुशांत की मौत की परिस्थिति की "” जांच "” का | क्रिमिनल प्रोसिज़र कोड के अनुसार इसकी जांच संबन्धित पुलिस थाने द्वरा की जानी थी |परंतु बिहार सरकार द्वरा इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गयी | महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई को जांच देने से इंकार किया , क्योंकि बिना राज्य सरकार की अनुमति के सीबीआई जांच नहीं कर सकती थी | फिर सुप्रीम कोर्ट ने अपने चार्टर का उल्लंघन करते हुए "”एकल पीठ "” का निर्माण किया | जनहा बिहार सरकार की अर्ज़ी पर न्यायमूर्ति ने सीबीआई को सुशांत मामले की जांच के आदेश दिये ! वह एकल पीठ ने उसके बाद किसी अन्य मामले की सुनवाई नहीं की ! खैर सीबीआई ने भी महाराष्ट्र पुलिस की जांच परिणाम को ही स्वीकार किया |

1-- किसान आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट :- लगभग 48 दिनो से दिल्ली की चरो सीमाओ पर शांतिपूर्वक तरीके से तीन क्रशि कानूनों को वापस अथवा रद्द किए जाने की मांग कर रहे हैं | अभी तक इस आंदोलन के चलते 62 किसानो की मौत हो चुकी हैं | तीन लोगो ने सरकार के रुख विरोध में आतंहत्या भी कर ली हैं |

परंतु सरकार की ओर से केंद्रीय क्रशि मंत्री तोमर 8 दौर बैठक कर चुके हैं | परंतु अदालती कारवाई की तरह किसानो को हर बैठक के बाद एक नयी तारीख दे दी जाती हैं | इसी बीच दिल्ली पुलिस और कुछ अन्य सरकार समर्थक संगठनो ने सुप्रीम कोर्ट में आंदोलन हम के खिलाफ कारवाई की मांग की | पहले दिन की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश बोरबड़े की तीन सदस्यीय पीठ ने की | उस दिन उन्होने जो कुछ कहा वह न्यायिक भी था और वास्तविकता से परे भी था | उन्होने कहा की "हम भारत के सुप्रीम कोर्ट हैं " यह वक्तव्य निश्चित रूप से कोर्ट रूम में मौजूद लोगो के लिए तो नहीं था | क्योंकि उन लोगो को तो मालूम ही था , फिर किस के लिए कहा गया ? सरकार अथवा किसानो के लिए ? पहले दिन ही अदालत ने तीनों कानूनों के लागू किए जाने पर रोक लगा दी | परंतु यह भी कहा की हम अनिश्चित काल के लिए रोक नहीं लगा सकते ! कुछ ऐसा ही रुख सेंट्रल विस्टा के मामले भी हुआ था , जब केंद्र सरकार को फटकारते हुए कोर्ट ने कहा था की "” हम समझते थे की आप समझदार हैं -परंतु फिर भी आपने शिलान्यास किया | अब स्थिति में परिवर्तन नहीं हो | परंतु कुछ समय बाद ही 950 करोड़ की लागत से प्र्स्तवित इस परियोजना को कोर्ट ने मंजूरी दे दी ! जबकि देश की धरोहर और पेड़ो की कटाई तथा पर्यावरण की जांच को नकारते हुए सरकार को गो अहेड़ मिल गया | कुछ ऐसा ही किसान आंदोलन में हुआ पहले दिन लगा की अदालत नागरिकों के कष्ट को समझ कर कुछ करेगी | परंतु दूसरे दिन चार लोगो की जो समिति बनाई गयी -जो विवादित तीन कानूनों की व्यवख्या करेगी और दो माह में रिपोर्ट देगी -----वे चरो व्यक्ति पहले ही मीडिया में आंदोलन की आलोचना कर चुके है तथा सरकार की नीति और तीनों कानूनों का समर्थन कर चुके हैं !!! अब ऐसी समिति से क्या उम्मीद जिसके रुख का पता सबको हैं ! प्रधान न्यायधीश बोरबड़े ने आग्रह किया की आंदोलन गांधी जी के सत्याग्रह की भांति हो ! महात्मा गांधी के आंदोलन में ---- नमक सत्याग्रह ,---- विदेशी वस्तुओ का बहिसकार --- और सविनय अवज्ञा आंदोलन थे | जिनमे इतनी संख्या में ---इतने दिनो तक शांति पूर्ण तरीके से सरकार के वीरुध धरना चला हो | सिर्फ एक घटना हरियाणा में हुई जिसमे मुख्य मंत्री खत्तर की जन सभा को नहीं होने दिया गया |

सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिन की सुनवाई में जो आशा किसानो के मन में जगाई थी -----वह मात्र 24 घंटे ही रही | उसके बाद जो हुआ वह उनके लिए वज्रपात ही था | हालांकि आंदोलनकारी अपना उद्देश्य पहले ही बता चुके हैं __की वे तीनों कानूनों की वापसी से कम पर तैयार नहीं हैं | वही कौल उन्होने कोर्ट द्वरा समिति गठित किए जाने और दो माह में रिपोर्ट देने के आदेश के बाद बरकरार रखा |

अब आंदोलनकारी गुजरात में हुए नव निर्माण समिति की तर्ज़ पर विधायकों से अपने समर्थन में त्यागपत्र देने की मांग कर रहे हैं | गुजरात में भी स्वर्गीय अरुण जेटली ने इसी तरकीब से काँग्रेस की चिमनभाई पटेल को धराशायी किया था | हरियाणा की साझा सरकार में शामिल चौटाला की पार्टी के सात विधायकों ने पहले उप मुख्य मंत्री चौटाला को बता दिया हैं की अगर हरियाणा के किसानो पर पुलिस ने कोई कारवाई की तो वे विधान सभा में सरकार के खिलाफ वोट करेंगे | गौर तलब हैं चौटाला की पार्टी में 11 विधायक हैं | उनकी समर्थन वापसी खट्टर की सरकार को परेशानी में डाल सकती हैं |

जिस प्रकार सरकार और उसके भोपू संगठन आंदोलन में '’’खालिस्तानी '’ और पाकिस्तानी तत्वो के शामिल होने की बात काही है ,जैस्पर सुप्रीम कोर्ट ने अट्टार्नी जनरल वेणुगोपाल से हलफनामा मांगा हैं | अब देखना होगा की सरकार आंदोलन के किन नेताओ पर यह छाप लगती हैं | सरकार समर्थको और दिल्ली की बहुमंजली इमारतों के रहवासी आंदोलन स्थल के इंतज़ामों से अभिभूत है --वे इसे '’’पिकनिक ;; बताते हैं | सवाल हैं कड़ाके की ठंड में खुले आसमान में बैठे लोगो का लंगर खाना - खीर खाना और गरम पानी से नहाना और वॉशिंग मशीन में कपड़े धोने के द्राशय उन्हे सुहावने लगते है , परंतु इसके पीछे छिपी उस शपथ को वे नहीं देख पाते जो उन्होने दिल्ली आने के पूर्व गुरुद्वारे में माथा टेकते हुए ली थी – – जब तक कानून वापस नहीं होते हम वापस नहीं लौटेंगे !!!! अब ऐसी प्रतिज्ञा सरकार के सांसदो -विधायकों और मंत्रियो ने ली होगी , सिर्फ दो नेताओ प्रधान मंत्री और गृह मंत्री को छोडकर जो कुछ कारणो से इन कानूनों के पीछे है |

2---- इस आंदोलन में जिन दो उद्योग पटियो के नाम सार्वजनिक रूप से आ रहे वे है रिलायन्स के मुकेश अंबानी और गौतम अदानी | अदानी के साइलों फूड कार्पोरेशन के गोदामो की जमीन में बने है | हरियाणा के एक स्थान की फोटो भी वाइरल हुई है | सवाल यह है की किसानो से खरीद एफ़सीआई करेगी अथवा अदानी एफ़सीआई के लिए करेंगे | सरकारी भूमि पर निजी व्यापारी को गोदाम बनाए जाने से यह तो साफ है की मोदी सरकार इन दोनों धन कुबेरो से उपक्रट हैं , इसलिए सरकारी एजेसी का काम निजी हाथो में दे रही हैं | जो मुनाफे के लिए भंडारण नियमो में बदलाव करा रहे हैं | जिससे की वे देश के खाद्यान्न बाजार पर एकाधिकार कर सके , और देशवासियों को भूखा मार सके | भूखी भीड़ को कोई ना कोई मसीहा मिल ही जाता हैं | इस संदर्भ में इतिहास की एक घटना हैं की मिश्र के फरौन के पुजारियों ने बड़े -बड़े मिट्टी के साइलों में गेंहू भर रखा था और भूखे यहूदी मजदूरी कर रहे थे | मूसा जो की मिश्र के राजाओ की देवताओ की बड़ी बड़ी मूर्तिया और पिरामिड बना रहे थे | उन्हे जब मजदूरो के कम काम करने का कारण पता लगाया तब उन्हे मालूम चला की वे अधपेट खा कर काम कर रहे हैं | तब उन्होने फैरो के पुजारियों के इन साइलों को तोड़ दिया और यहूदी गुलामो को गेंहू ले जाने का आदेश दिया | जब फैरो ने उनके फैसले का कारण पूछा ----तो उन्होने कहा की कमजो और भूखे श्रमिक कम काम करेंगे | अगर उनके पेट भरे होंगे तो वे अच्छे से काम करेंगे ,और फैरो ने पुजारियों को दाँत कर भागा दिया | क्या आज के फैरो इस से सबक लेंगे ----जब तक किसान खुशहाल नहीं होगा -देश खुशहाल नहीं हो सकता |

3:--- अमेरिकी और पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ----- हाल में वाशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रम्प समर्थको द्वरा कैपिटल हिल में काँग्रेस के दोनों सदनो पर हमला कर तहस -नहस करने की घटना के पीछे वह भासन था जो उन्होने नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेंन के चुनाव की आधिकारिक घोसना को रोकने के लिए की थी | इसके पहले पराजित ट्रम्प मतदान और मतगणना तथा परिणामो की राज्यो में घोषणा को लेकर लगभग 60 याचिका फेडरल सुप्रीम कोर्ट में लगा चुके थे | गौर करने वाली बात हैं की कोर्ट के 5 जजो में से 3 जजो की नियुक्ति ट्रम्प के काल में हुई थी और वे प्रारम्भिक दौर में रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक थे | परंतु पांचों न्यायाधीशो ने एक मत से ट्रम्प की अपील को सबूतो के अभाव में खारिज किया ! जबकि बहुत से अमेरिकी सोच रहे थे की सुप्रीम कोर्ट कनही 3-2 से ट्रम्प को आगे काम करने का नहीं दे दे | वनहा के चुनाव आयोग ने भी ट्रम्प द्वरा पोस्टल वोट को अवधानिक करारा देने की अपील ठुकरा दी थी | मतगणना में धांधली के आरोप पर कई राज्यो में दुबारा मतगणना हुई , परंतु परिणाम पूर्वत ही रहे | फेडरल कोर्ट ने नागरिकों और संविधान का सम्मान करते हुए न्यायिक मर्यादा को बनाए रखा |

पाकिस्तान के फेडरल कोर्ट ने भी - खैबर पख्तूनवा इलाके के करक जिले के तेरी गाव में परमहंस जी के मंदिर को 30 दिसंबर 2020 को एक धरम उन्मादी भीड़ ने हमला कर के तोड़ दिया | इस घटना का स्वतः संगयन लेते हुए अदालत ने वनहा की सरकार को उन्मादी लोगो की और नेत्रत्व करने वालो को गिरफ्तार करने का आदेश दिया ,तथा की गयी कारवाई से अवगत कराने का आदेश दिया | फलस्वरूप तीन मौलाना सहित 45 लोग गिरफ्तार हुए | अदालत ने उन्मादी भीड़ से जुर्माना वसूल कर दो माह में मंदिर का पुनः निर्माण करने का आदेश जारी किया | इस काम की ज़िम्मेदारी सरकार पर डाली गयी | गौर तलब है की 1997 में भी उन्मादी भीड़ ने इस धरम स्थल को हानी पनहुचई थी , तब भी फेडरल कोर्ट ने संगयन लेते हुए पुनर्निर्माण का आदेश पाकिस्तान सरकार को दिया था |

Jan 11, 2021

 

विचारधारा का बनना "”कल्ट"” और लोकतन्त्र में हिंसा का तांडव !


लोकतन्त्र में राजनीतिक दल अपनी विचार धाराओ के आधार पर मतदाता के पास जाते हैं | परंतु इस प्रणाली का दुरुपयोग सबसे पहले जर्मनी में एडोल्फ हिटलर ने किया था | चुनाव जीतने के बाद अपने विरोधियो को देश द्रोही बता कर प्रताड़ित किया | आखिर में उसने "”बुन्डसटैग"” जो की वंहा का संसद भवन था उसमें आग लगवा कर राजनीतिक विरोधियो को कैद कर लिया | फिर शुरू हुआ हिटलर कल्ट – जिसमें वही सर्वोतम नेता और पुरुष था | उसके वीरुध बोलने वाले अथवा उसकी सरकार के आदेशो की आलोचना करने वालो को "”बदनाम "” एसएस गार्ड रात में घर से पकड़ कर ले जाते थे फिर उनका कोई पता नहीं चलता था | हिटलर ने भी अपने सभी कामो और फैसलो को "” राष्ट्रवाद "” का नाम दिया था | राष्ट्रवाद के पहले दुश्मन यहूदी थे , जिनहे वह जर्मन भूमि पर बोझ मानता था और देशद्रोही मानता था | इसी अंध राष्ट्रवाद की बलि लाखो यहूदी स्त्री -पुरुष और बच्चे चाड गए |कुछ -कुछ भारत में जैसे मुसलमान और ईसाई जिनका धरम के नाम पर हिन्दू कल्ट के अंधभक्त प्रताड़ित करते है | कभी गाय के नाम पर कभी लव जिहाद के रूप में कभी नागरिकता को लेकर , मतलब यह की हिन्दुओ को ही भारतवर्ष में रहने का अधिकार हैं | मंदिर बनाने के लिए मस्जिद तोड़ी जाये , यह कान्हा का लोकतन्त्र है ? शायद इसी लिए संविधान में '’सर्व धरम संभव या धरम निरप्र्क़्श्ता "” को हटाने की आरएसएस की मांग को इसी कट्टर राष्ट्रवाद के कल्ट के रूप में देखा जा सकता हैं |

आंदोलनकारी किसानो को सरकार समर्थक संस्थाए और लोग इन्हे सिख आतंकवादी या नक्सलवादी कह कर बदनाम कर रहे हैं | वे भूल जा रहे है की डीएसएच की सेना में सिखो की बहुत बड़ी संख्या हैं | उनका अपमान जातिगत रोष में परिवर्तित हो सकता हैं |

1::---- अमेरिकी लोकतन्त्र का काला दिन !


चुनाव में पराजित होने के बाद भी - परिणाम बदलने की दमित इच्छा ही थी , जिसने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अपने समर्थको को कैपिटल हिल स्थित दोनों सदनो सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेन्सेनटेटिव की कारवायी में बाधा डालने को उकसाया ! चुनाव परिणामो की घोसना चुनाव आयोग द्वरा किए जाने के बाद की वे अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडेंन से पराजित हो चुके हैं , उन्होने चुनावो में धांधली होने का आरोप लगाया | संचार साधनो को झूठा बताते हुए अपने "””गिरोह "” के लोगो के मन में भर दिया की उनको हटाने के लिए चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट सब "”मिल गए है "” | विरोधियो ने हमारी जीत को चुरा लिया हैं ! विश्व के बड़े लोकतान्त्रिक देश का राष्ट्रपति संवैधानिक संस्थाओ को इस प्रकार बदनाम करे --- ऐसा तो किसी ने सोचा भी नहीं था |परंतु ट्रम्प के अंध भक्त समर्थक , अपने नेता के झूठ या असत्य भासन को '’सच'’ मानतेरहे |जैसे कोई ढोंगी साधु सीधे साधे लोगो को अपनी बातो से '’’’’ठगता '’’ है बस वही डोनाल्ड ट्रम्प ने किया | लेकिन उनके उकसावे से उनके भक्तो ने --जो तांडव मचाया ,उसका उद्देश्य था की जो बाइडेन और कमला हैरिस की विजय को उप राष्ट्रपति माइक पेन्स सीनेट में घोषित ना कर सके | ट्रम्प समर्थको के हमले से सभी सांसद और सीनेटर अपनी अपनी जान बचाने के लिए कुर्सी और मेज़ के नीचे शरण लेने पर मजबूर हुए | पर भक्तो के मंसूबे असफल हुए , परिणामो की घोषणा विधिवत हुई |

इस घटना से दो बाते सामने आती हैं की - काँग्रेस भवन यानि कैपिटल हिल की सुरक्षा कितनी ढीली हैं ! 200 गार्ड के भरोसे इस भवन के छेत्र की सुरक्षा कितनी कमजोर हैं | सीएनएन और बीबीसी पर आए अतिथियो ने कहा की ट्रम्प की रंगभेद की नस्लवादी सोच में गोरे लोगो ने घंटो तक इतना हँगामा मचाया , और गार्ड्स ने बल प्रयोग नहीं किया ? अगर यही भीड़ गैर गोरो या अफ्रीकन अमेरीकन और एसियान की होती तब गोली चला कर सैकड़ो लोगो को जान से मार दिया जाता | इस तथ्य को "” ब्लैक लाइफ मैटर्स"” के वक्ताओ ने राष्ट्रिय कमजोरी बताया | जिससे संघीय और स्थानीय पुलिस ग्रस्त हैं | अगर हम भारत में देखे तब पाएंगे की अगर आंदोलनकारी हिन्दू हैं और भगवा पार्टी से जुड़े हैं --तब पुलिस का व्याहर बिलकुल अलग होता हैं | जैसा की शाहीन बाग में बीजेपी के कपिल मिश्रा ने किया था |वनही अगर पीड़ित अनुसूचित जाति या मुसलमान हैं तो उसके प्रति पुलिस में वही खूंखार पन आ जाता -जो एक अपराधी के प्रति होता हैं | ट्रम्प का पराभव चार्ल्स विले और फ्लायड जार्ज की पुलिस वालो के हाथ बर्बरता पूर्वक हत्या के बाद सम्पूर्ण अमेरिका में हथियारो पर पाबंदी और पुलिस क्रूएरता पर नियंत्रण और पीड़ित को न्याय का आंदोलन चला था | वही से ट्रम्प की साख उनके समर्थको में भी खतम होनी शुरू हो गयी थी | परंपरागत रूप से दक्षिण के जो राज्य रिपब्लिकन पार्टी के गढ माने जाते थे ----वनहा से भी जब मतगणना के दौरान डेमोक्रेट प्रत्याशी को ज्यादा समर्थन मिलने लगा तब ट्रम्प ने मतदान की प्रक्रिया -वोटो को रखने पर सवाल उठाने शुरू कर दिये | जार्जिया जैसे रिपब्लिकन राज्य से ना केवल जो बाइडेंन को ट्रम्प से अधिक वोट मिले , वरन कुछ दिन बाद सीनेट के दो पदो पर भी डेमोक्रेट ने विजय पायी | जिसका परिणाम हुआ की डेमोक्रेट का बहुमत सीनेट में हो गया, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में उनका बहुमत पहले से था |

इस स्थिति के बाद फ्लॉरिडा के इस धन कुबेर को जो राजनीति को भी पद - पैसा - प्रभाव के लिए इस्तेमाल कर रहा था | उसे आम आदमी को देने के लिए "”नारे अमेरिका फ़र्स्ट "” या "न्यूज़ पेपर झूठे और खतरनाक हैं "” ये आम नागरिकों के शत्रु है '’ ऐसे नारे जो लोकतन्त्र की संवैधानिक संस्थाओ पर प्रहार करते है , और उन्हे शंका के घेरे में लाते है |

2;- वंहा भी और यंहा भी :- विगत जनवरी को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया में जिस प्रकार केंद्र नियंत्रित पुलिस ने छात्रों पर बर्बरतापूर्वक लाठी चार्ज किया था , उसकी रिपोर्ट में उनही लोगो को आरोपी बनाया गया जिनहे राश्त्र्वादी तत्वो ने लाठी और डाँडो से मारा था | अध्यापको को भी इन तत्वो ने नहीं छोड़ा !! फिर भी पुलिस ने इन घायलो को आक्रमांकारी बताया , जबकि शाहीन बाग में बैठी मुस्लिम महिलाओ के सामने दो "” कायर लोगो ने तमंचे से गोली चलायी "” उनमें एक को गाजियाबाद की बीजेपी इकाई ने सदस्य घोषित कर दिया | वह तो जब इस घटना को लेकर सत्तारूद दल के नेत्रत्व पर सावला उठाए गए तब उसे पार्टी से निकाल दिया गया | परंतु उन्नाव जिले के अनुसूचित जाती की महिला से बलात्कार करने वाले विधायक को अभी तक बीजेपी अपना सदस्य बनये हुए हैं | शाहजहाँ पुर के भगवा धारी सन्यासी और परमार्थ निकेतन के गुरु जो पूर्व में केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं ----उनके ऊपर भी एक छात्रा ने बलात्कार का आरोप लगाया था | परंतु उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री भगवा धारी योगी आदित्यनाथ की कृपा से उन्हे गिरफ्तारी के बाद अस्पताल में भर्ती करा दिया गया | जबकि आरोपित कन्या जेल में रही |

3:- किसान आंदोलन ----- 50 दिन से दिल्ली को आने वाली चारो राहो पर हजारो किसान राशन -पानी लेकर धरना दिये हुए हैं | सरकार के नुमाइंदे क्रशि मंत्री तोमर अभी तक 9 नौ बार उनके साथ बात कर चुके हैं , पर हर बार अदालत की भांति अगली तारीख वार्ता की दे दी जाती हैं |

किसान तीनों क्रशि कानूनों को रद्द करने से कम पर राजी नहीं हैं , और मोदी सरकार इन कानूनों को ना तो रद्द करना छाती हैं और नाही वापस लेना चाहती हैं | उधर किसानो की शंका को सच करते हुए मुकेस अंबानी की रिलान्स न कर्नाटक में धन की सीधी खरीद शुरू कर दी हैं | मंडी के बाहर खाद्यान्न को खरीद कर रिलायन्स अपनी पुरानी चाल चल रहा हैं | जैसा की जियो को लांच करने के समय की थी | पहले मुफ्त में कनेकसान दिये --जिससे बीएसएनएल के ग्राहको को तोड़ लिया , फिर धीरे - धीरे दाम बदना शुरू कर दिया | हालांकि इससे टाटा और वोडाफोन को बहुत नुकसान उठाना पड़ा | परंतु सरकार के सहारे अंबानी ने अपना बाजार बड़ाने में सफल हुए | हालांकि पिछली तिमाही के परिणामो के अनुसार उनके ग्राहक अब दूसरी कंपनियो को जा रहे हैं | क्योंकि ना तो जियो वादे के मुताबिक सर्विस दे पा रही हैं ना शिकायतों को दूर कर रही हैं | अब जियो ने बाज़ार में नया झुनझुना दिया है 5जी नेटवर्क का | देखते हैं कितने लोग इस जाल में फसते हैं | जैसे ट्रम्प के फैसले जनता के हित के लिए नहीं वरन कारपोरेट के लाभ के लिए होते थे कुछ वैसा ही भारत में हो रहा हैं | क्रशि कानून उसी का परिणाम हैं | क्रशि को व्यवसाय ना मानकर उत्पादन की श्रेणी में रखा हैं | और उसके द्वरा अपने उत्पाद को बेचने को व्यापार की श्रेणी में रखा हैं | कान्टैक्ट फ़ार्मिंग पुरानी तालुकदारी का ञ संस्कारण हैं | बस अंतर यह हैं की यंहा जमीन किसान की हैं और जोतने -बोने का अधिकार कारपोरेट का हैं |
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