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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 27, 2012

Desh ka madhya yaani madhya pradesh

                                                                                 भारतीयम . कॉम                                                                      
           देश का मध्य यानी मध्य प्रदेश 
     
    प्रत्येक कार्य अथवा स्थिति का  का आरम्भ होता हैं वैसे ही उसकी इति  भी होती हैं ,\। वैसे ही इस स्थिति या  स्थान का एक मध्य भी होता हैं  जंहा  आरम्भ और अंत का मिलन होता हैं ।वैसे ही इस भारत देश के मध्य मैं स्थित हमारे प्रदेश की हैं ।उत्तर प्रदेश --झारखण्ड --छतीस  गड -- महारास्ट्र --राजस्थान -से घिरे हुए इस छेत्र मैं जितनी विविधता भाषा -बोली और खान -पान तथा वेस्भूसा  तथा खानपान की विविधता  यंहा स्पस्ट दिखाई पड़ती हैं ।जैसे उत्तरप्रदेश और झारखण्ड की सीमा से लगे जिले  सीधी -शहडोल--  रीवा आदि की बोली की तुलना हम मालवा छेत्र  की बोली से करें तो पायंगे की दोनों मैं काफी भिन्नता हैं ।इसी प्रकार यंहा के खानपान और पहरावे को देखे तो  जमीं आसमान का अंतर दिखाई पड़ेगा । इसी प्रकार इंदौर -धर -झाबुआ आदि जिलो मैं जो भासा बोली जाती हैं वह राजस्थान की मारवाड़ी से प्रभावित हैं ।यह असर राजगृह -गुना मैं भी दिखयी पड़ता हैं ।भिंड --मुरैना  की बोली अगर आगरा  और इटावा  से मिलती हैं तो बंद और अल्ल्हाबाद की बोली और भासा का असर रेवा मैं स्पस्ट दिखयी पड़ता  है । एक प्रकार से हम पाते हैं की हमारे प्रदेश मैं विभिन्न छेत्रीय संस्कृतियों  का मिलन हैं , एक प्रकार से यह  एक ऐसा पात्र हैं जेंह उपरोक्त सभी भाषा   बोली और संस्कृति के लोग  सामंजस्य  से रहते हैं ।                                                                                                                            .                                                                      गौर करने की बात हैं की आज़ादी के समय सैकड़ो छोटी        बड़ी रियासतों  मैं विभाजित यह छेत्र  बिलकुल अलग -थलग सा लगता था ।परन्तु 1957 मैं वर्त्तमान स्वरुप मैं आने के चालीस साल बाद ही इसे विभाजन की  पीड़ा      झेलनी पड़ी ---छतीस गड के गठन के रूप मैं ।  परन्तु  विकास की यात्रा अनवरत   चलती रही . ।अभी  छतीस गड  के गठन के बाद ही एक बार बोली और संस्कृति के आधार पर पृथक बुंदेलखंड की मांग उठने लगी हैं ।परन्तु वंहा भी एक पेंच फस हुआ हैं --यंहा जिस छेत्र को भावी प्रदेश मैं शामिल करने की बात की जा रही , उसे और उत्तर प्रदेश के   बांदा  -अतरा हमीरपुर  -जालौन-झाँस--ललितपुर                 को मिला कर एक बृहद बुंदेलखंड की कल्पना की गयी हैं ।अब उत्तर प्रदेश का विभाजन तो रास्ट्रीय मुद्दा हैं जो  निकट भविष्य मैं  सुलझाता नहीं नज़र आता हैं ।इसलिए इस मांग को ज्यादा बल मिलेगा इसकी सम्भावना कम हैं ।                                                                                        
                                                                            वैसे राजस्थान को छोड़कर बाकि सभी राज्यों मैं ब्रिटिश राज  था , इसलिए वंहा पर शासन की संस्कृति भिन्न थी , जबकि राजे - राजवाडे  के अदब - कायदे  अलग ही थे  ।परन्तु प्रदेश गठन के बाद यंहा पर अगर ""दरबार "'और ""हुकुम "" या मारवाड़ी संस्कृति ""घडी  खम्भा "" की परंपरा आज भी हैं तो वह कोई अधीनता या दरबारी नहीं हैं ।वरन वह भी एक तरह से  विनम्रता  का ही प्रतिक बन गया हैं . ।जिसके प्रयोग से एक शराफत ही दिखाई पड़ती हैं ।शासन मैं जो निकटता  नागरिको से होनी चहिये  --और जो अंग्रेजो द्वारा शासित प्रदेशो  मैं पूरी तरह से गायब हैं , वह यंहा के राजनैतिक नेतृत्व और प्रशासन के अधिकारियो  के प्रयासों का फल हैं । मैं स्वयं  चालीस सालो तक उत्तर प्रदेश मैं रहा हूँ , इसलिए यह बात मैं दावे  के साथ कह सकता हूँ की  --जो  कुछ भी शासन मैं पारदर्शिता  बची हैं वह इन्ही दोनों  वर्गों के  प्रयासों का फल हैं ।हालाँकि इसके बाद भी समाचार पत्रों मैं और स्वयं सेवी  संस्थाओ के लोग जब यह कहते हैं की  ----प्रशासन निष्ठुर हैं तो मैं अनुभव से यही कह सकता हुईं की ""हुजुर आपने अभी हाकिम का हुकुम कैसे  कहर बरपा करता हैं इसे देखा ही नहीं हैं "" इसका यह मतलब नहीं की  मध्य प्रदेश मैं ""स्वर्ग" बस्ता हैं पर  पडोसी राज्यों से तुलना करें तो बात ज्यदा जल्दी समझ आएगी । यह विरासत किसी एक राजनैतिक दल की सर्कार की नहीं नहीं हैं ,वरन  अगल -बगल से ली  गयी संस्कृति से आई हैं ।                      
                                                                                                                                  यंहा  एक ऐसी  बात का जिक्र  करना जरूरी हैं 1957 मैं प्रदेश के गठन के समय यंहा एक तिहाई आबादी आदिवासी भाइयो की थी जो राष्ट्र की मुख्य  धारा  से काफी दूर थे ।पंच्वार्सिय  योजना मैं उनके लिए विशेस प्रयास किये जाने थे । यह काम  किसी अन्य राज्यों  मैं नहीं होना था ।जबकि झारखण्ड और गुजरात  तथा राजस्थान  तथा ओड़िसा  से  मिली सीमा मैं बसे इन आदिवासी यों  को स्वस्थ्य  -पेयजल और अवागमन      की सुविधा सुलभ करना बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी  थी ।जिसे  तब से लगा कर आब तक की सरकारों ने निभाने की कोशिस की हैं ।अब आंकलन मैं   कोई कुछ भी कहे  पर सभी दलों     की सरकारों ने   अपनी जिम्मेदारी  निभाई हैं .।अब कोई दलीय नजरिये से देखे तो  बात दूसरी हैं ।                                                                 पार्ट वन जारी ..........                                                                                                    

Aug 6, 2012

QUO__VADIS of team Anna movement

BHARTIYAM DOT IN

                On 29th of July on this Blog  I have  written that  Anna movement has gone disarray , because it has lost the basic decency in a democratic set-up. By insulting the Newly elected President  of the Republic Mr Pranav Mukerjji they have gone down in the esteem of people who have  some respect for their movement . It was like the "QUO VADIS" meaning which way..... .In the same article  I have mentioned an event of the similar type , in which socialist leader Raj Narain  has protested against the then congress govt. led by Chief Minister Mr Kamlapati Tripathi . That protest rally failed because government did not use any coercive method like arrest - lathi charge etc. . Due to absence of  police action  protest lost its very purpose to attract the attention of the people and press.

                                                                      Similarly Anna was forced to abandon  his movement and Fast unto death  , because administration did  nothing to stop them from what they were doing. Also Government of India declared that it would not have diolouge  with the leaders of the  agitation . And Media which gave the hype to Anna"s movement  have adopted  neutral posture , which has irritated the leaders of the movement. And on being  attacked by the supporters of the Anna media also got upset, which reflected in their coverage of the event . This created  a situation where Jantar-Mantar gave  a deserted look in news papers and on Chanels . The organizers realized that  without resistance  people wont be attracted to their cause .

                 Hence  the Legal  mind of the movement Mr Shanti Bhusan and his son Prasant Bhusan  advised the fellow leaders that for a respectful exit  it would be better if the agitation is withdrawn or called off. The collective wisdom  came out with a ""Brilliant" idea of forming a political party . Throughout the agitation members  of team Anna were lambasting the political parties and their leaders from the dias , and from same dias they announced the formation of a political party ------should we term it a solution or suicide ?