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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 12, 2015

क्या हिन्दी का अज्ञान सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री पद से दूर रखा ?

क्या हिन्दी का अज्ञान  सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री पद से दूर रखा ?

          मनमोहन सिंह जी को जिस समय  सोनिया गांधी ने काँग्रेस संसदीय दल के नेता के रूप मे प्रधान मंत्री  के पद पर मनोनीत किया उस समय ना केवल काँग्रेस सांसद  वरन अन्य  राजनीतिक दलो के नेता भी  अचंभित  रह गए थे | उसके पूर्व  भारतीय जनता पार्टी की महिला नेताओ  सुषमा स्वराज और उमा भारती  ने सोनिया गांधी को  प्रधान मंत्री पद से दूर रखने के लिए  सर मुंडवा लेने की धम्की  भी दी | कहा जाने लगा की राष्ट्रपति कलाम  ने उन्हे उनके जन्म  स्थान इटली के कारण इस पद से विरत रहने की सलाह दी थी | यद्यपि उन्होने बाद मे अपनी किताब मे स्पष्ट किया की “”यदि सोनिया गांधी “” कहती तो मै उन्हे शपथ  दिलाने के लिए  बाध्य था | क्योंकि संविधान मे लोक सभा मे बहुमत प्राप्त दल या गठबंधन  का नेता ही प्रधान मंत्री पद का दावा कर सकता है |
          परंतु  एक विचार  यह भी आया की  प्रधान मंत्री पद ना लेने का कारण  उनका अल्प  हिन्दी ज्ञान होना भी हो सकता है |  विश्व हिन्दी सम्मेलन मे  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्वीकार किया की उन्होने  उत्तर प्रदेश के ग्वालो को चाय बेचते  हुए हिन्दी सीखी | तब एक विचार आया की पहले तीन प्रधान मंत्री तो हिन्दी भाषा के छेत्र सेआते थे | पहले राष्ट्रपति भी बिहार से आते थे | पंडित जवाहर लाल नेहरू –लाल बहादुर शास्त्री  और इन्दिरा गांधी तो उत्तर प्रदेश से चुने गए थे | पर उनके बाद मोरार जी भाई देसाई  गुजरात के थे | उनके बाद चरण सिंह भी उत्तर प्रदेश से थे | इन सब को देश की जनता से संवाद करने के लिए हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान था |  अहिंदी भाषी  नरसिम्हा राव तेलुगू थे परंतु उनका अनेक भाषाओ पर अच्छी पकड़ थी | वे साहित्यिक भी थे | उनके बाद गुजराल  मूलतः पंजाबी थे परंतु उर्दू मिश्रित हिन्दी  बोलते थे | वे संवाद कर लेते थे | देवगौड़ा  जी कडिगा यानि कर्नाटक के थे उनके लिए अङ्ग्रेज़ी ही संवाद करने की भाषा थी | फिर  राजीव गांधी प्रधान मंत्री बने वे भी हिन्दी मे धारा प्रवाह बोल लेते थे | फिर चंद्रशेखर सिंह प्रधान मंत्री बने |उनको भी हिन्दी पर पकड़ थी वे भी हिन्दी प्रदेश उत्तर प्रदेश से संबंध रखते थे | मनमोहन सिंह भी गुजराल जी की तरह पंजाबी थे परंतु उन्हे भी उर्दू - हिन्दी मिश्रित भाषा  मे भली भांति संवाद करते थे | नरेंद्र मोदी भी मोरारजी भाई देसाई की तरह गुजरात से  आते है |

           इस प्रकार यह तो स्पष्ट  हो गया की हिन्दी भाषा की जानकारी देश के प्रधान मंत्री पद के लिए नितांत ज़रूरी है | क्योंकि जम्मू –कश्मीर से लेकर राजस्थान – हरियाणा – मध्य प्रदेश और छतीसगढ के अलावा उड़ीसा  गुजरात और महाराष्ट्र  मे कम से कम हिन्दी प्रभावी रूप से  संवाद करने की भाषा तो है ही | यह सच्चाई मोदी ने सार्वजनिक रूप से से स्वीकार किया |

किसके क्षमापन पर्व पर मांसाहार पर प्रतिबंध- बलि पर भी रोक लगेगी क्या ?

किसके  क्षमापन पर्व  पर  मांसाहार पर प्रतिबंध- बलि पर भी रोक लगेगी क्या ?

          जैन समुदाय ने  राजस्थान – मुंबई –छतीसगढ़  -गुजरात मे पशु वध पर प्रतिबन्ध का मामला  अब अदालत तक मे पहुंचा दिया है |  इस संदर्भ मे दो सवाल है की ---- यह पर्व क्या सम्पूर्ण जैन समाज का है ,अथवा उसके एक वर्ग का ?  जैनियो मे मुख्यतः तीन संप्रदाय है – दिगंबर –श्वेतांबर एवं स्थानकवासी | अब क्षमापन पर्व  जो 8 सितंबर से शुरू हुआ वह  श्वेतांबर  संप्रदाय का है  जो  18 सितंबर तक चलेगा | दिगंबर संप्रदाय का क्षमापन पर्व  गणेश चतुर्थी  यानि 17 से लेकर 27 सितंबर  अर्थात अनंत चतुर्दसी  तक चलेगा | उपरोक्त तीनों सम्प्रदायो मे  सर्वाधिक मतावलंबी  दिगंबर समाज के है |   इन तथ्यो से साफ है की शाकाहार की उग्रता  और मांसाहार का विरोध  “”केवल श्वेतांबर”” समूह द्वारा किया गया है | इसे सम्पूर्ण जैन समाज की ओर से की गयी पहल नहीं मानना  चाहिए | क्योंकि यह प्रसार तंत्र मे प्रचार पाने की कोशिस ही है |
                 अभी एक जैन संप्रदाय के ही सज्जन ने मुझे यह सत्या बताया –क्योंकि हम सनातन परंपरा के लोग   इन गूढ भेदो को नहीं जानते थे | जैसा की इस्लाम मतावलंबियो मे शिया और सुन्नियों मे मुहर्रम मनाने के अलग तरीके है | वैसे ही श्वेतांबर और दिगंबर मे भी क्षमापन पर्व  की तिथिया भी अलग -अलग होंगी जैसे हमारे यहा कई  त्योहार ""सन्यासियों के अलग तिथि पर और ग्रहस्थों के अलग तिथि पर """ मनाए जाते है | संभवतः यह एक की दूसरे पर श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए किया गया प्रयास है |

         परंतु मै महान तू नीच ,, मै अच्छा तू पापी  की अवधारणा हर धर्म की अलग  -अलग है | जैन धर्म के अनुसार और बौद्ध धर्म के अनुसार  जीव हत्या पाप है | परंतु उनके द्वरा अभी भी सनातन परंपरा को ""हेय "" बताने का काम कभी नहीं किया गया | जबकि जैन और बौद्ध दोनों धर्मो का प्रवर्तन एक ही काल मे हुआ था | चीन  के कम्युनिस्ट होने और धर्म को ""गैर कानूनी ""करार ""दिये जाने के पहले बौद्ध धर्म विश्व का प्रथम था , मतावलंबियों की संख्या मे , बाद मे दूसरे नंबर पर आ गया| आज भी वह ईसाई धर्म के बराबर संख्या मे है | इस तुलना मे महावीर के अनुयायियों ने  भारतवर्ष  मे ही प्रसार नहीं किया | अब यह तथ्य ''गर्व करने योग्य है अथवा ....""""थायलैंड मे  सनातन धर्म को राजा की मान्यता है --उसके नाम मे राम का प्रयोग  अवश्यंभावी है --परंतु  वह एक प्रथा है की बौद्ध विहार मे जाकर  दो से तीन वर्ष तक अध्ययन करने की | यह है धर्म का """सह अस्तित्व ""| अगर कुछ लोगो के कारण यह टूटा तो """अल्प संख्यक  जैन संप्रदाय को ""' भरी कीमत चुकनी पड़ेगी |

                फिलवक्त तो मामला जैन संप्रदाय द्वारा  मांसाहारी लोगो के ""मौलिक अधिकारो "" पर आघात करने का है | वेदिक धर्म मे तो बलि प्रथा सनातन काल से चली आ रही है |  नरमेघ -अश्वमेघ -का तो ज्ञान लोगो ने पड़ा ही है | धीरे - धीरे  इनमे भी संप्रदाय बने ,, उनके आचार -नियम बने | मुखी तौर पर अभी चार संप्रदाय है -- शक्ति उपासक  - शिव उपासक  और विष्णु उपासक एक अति न्यून और विलुप्त होने की कगार पर ""अघोरी "" भी है | जहा  शक्ति मे बलि के द्वारा ही पूर्णाहुति दी जाती वही वैष्णव  अनेक अवसरो पर ''''कुम्हड़े '''की बलि देकर इस कर्मकांड को सम्पूर्ण करते है | यह नितांत ऐच्छिक है |  परंतु बलि करने वालों को वैष्णवों ने कमतर नहीं माना और शकतो ने भी ऐसा ही किया | सभी तीर्थों पर सभी संप्रदाय के लोग जाते है गणेश वंदना से प्रारम्भ हुआ अनुस्ठान बलि से पूर्ण होता है |
                      इन स्थितियो मे अगर शक्ति उपासक  जैन संप्रदाय की इस "" प्रयास "" को अपने ''आस्था"" पर कुठराघात माने तब तो उनका बहुत ''अहित''' हो जाएगा | मुंबई मे राज ठाकरे ""जय भवानी "" के उद्घोष के लोग है राजस्थान मे भी राजपूत शक्ति पूजते है |  अब ऐसी स्थिति मे क्या वेदिक धर्म के आचार को "" अधर्म """ घोषित करेंगे ?? तब संघर्ष  होगा क्योंकि आस्था के मामले पर ही अगर अयोध्या मे मस्जिद टूट सकती है तब \कुछ  भी हो सकता है|
यह एक भयावह स्थिति होगी | थोड़े से सिरफिरे लोग ""जैनिस्तान "" की मांग कर बैठे है --उनसे मेरा प्रश्न है की आपकी संख्या कितनी है ? क्या आप तीनों संप्रदाय इस मांग पर एक है ? क्या समस्त जैन यह ""शपथ "" ले सकते है की वे ज़ैन मुनियो के रास्ते पर चल रहे है | अभी मै एक श्वेतांबर मुनि का व्हात्सप पर प्रवचन सुन रहा था ,,जिसमे उन्होने सभा मे बैठे सभी स्त्री - पुरुषो को धिक्कारा था की आधे से अधिक लोग यहा  मांसाहार लेते है शराब पीते है | उनके बच्चे होटलो मे जाकर चिकन बर्गर पिज्जा  खाते है | सभा मे कोई प्रतिरोध करने वाला नहीं था | परोपकार  के लिए उन्होने  सिख धर्म की भूरि भूरि तारीफ की --उनही के शब्दो मे की बिना धर्म -वर्ण पूछे बिना दिन रात ""''लंगर चलाते है """ वंहा किसी भी दान दाता का नाम ना तो बोला या बताया जाता है पट्टिका लिखवाने की बात ब्दूर की है | जैन समाज को कोसते हुए उन्होने कहा था की ""देंगे थोड़ा सा और नाम लिखवा देंगे पोते -पोतियो तक का"""" | उन्होने कहा की कितनी त्रासदियों मे जैन समाज ने भोजन कराया अथवा इनके रहने की व्यसथा की ??""   दूसरा बिन्दु है की  कभी वेदिक धर्मियों ने  दिगंबर मुनियो के "" निर्वस्त्र "" रहने पर आपति जताई ? यद्यपि यह आस्था देश के कानून के विपरीत है | पर क्या किसी मुनि श्री को इस मामले मे गिरफ्तार किया गया ? यदि नहीं तो जैन समाज के थोड़े से लोग  अपनी महत्वाकांचा के लोभ मे पूरे ""समाज "" को  सनातन धर्मियों के क्रोध का शिकार बनवा देंगे |  इन धार्मिक आतंकवादियो को नहीं मालूम की ""असहिष्णुता"" की यह धार उन्हे खा जाएगी | यह कदम दूसरे  धर्म के लोगो मे उन्माद भर देगा | स्थिति विकराल हो सकती है | इन लोगो को ""सहचर """ की भावना  अपनानी पड़ेगी |