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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 12, 2020

 

सरकार की संवेदन् शीलता सिर्फ अपनों के लिए --सबके लिए नहीं !

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जिस प्रकार कंगना राणावत के मामले में केंद्र सरकार द्वरा "सुरक्षा " मुहैया करने में तत्परता दिखाई गयी -वह अद्भुत ही कही जाएगी ! क्योंकि उनके मुँहफट अंदाज़ से शिवसेना के संजय राऊत को जवाब भले ही मिला हों , पर जिस प्रकार उन्होने मुख्यमंत्री ठाकरे को गुस्सायी महिला के अंदाज़ में अंगुली तोड़ कर श्राप दिया हैं -वह बहुत दार्शनिक अंदाज़ में हैं , खास कर की मेरा घर तोड़ने वाले -तेरा घमंड भी टूटेगा ! पर केंद्र ने सिर्फ वाई श्रेणी की सुरक्षा कवच ही नहीं उपलब्ध कराया , वरन अपने संवैधानिक प्रतिनिधि उर्फ राज्यपाल शी कोशियारी जी को भी सचेत किया की वे भी ,इस मामले में दिलचस्पी ले ! सो उन्होने कंगना के आफिस के अवैध निर्माण को महापालिका द्वरा तोड़े जाने पर --संबन्धित अफसरो को तलब कर लिया | इतना ही नहीं उन्होने मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव को भी राज्यपाल निवास बुला कर सवाल - जवाब किए ! इतनी तत्परता शायद कोशियारी जी ने तब भी दिखाई थी जब उन्होने बीजेपी के नेता फड्नविस को भोर के धुंधलके में सरकार को शपथ दिलाई थ ! जिस ताबड़तोड़ तरीके से तब राज्य से राष्ट्रपति शासन हत्या गया और मुख्यमंत्री फड्नविस और अजित पवार को कसम दिलाई थी ---वह भी तीव्र कारवाई का एक उदाहरण था ! तब भी राज्यपाल की कारवाई पर विवाद हुआ था की "आखिर इतनी जल्दी भी क्या थी "सरकार बनवाने की ! हालांकि सभी यह समझ रहे थे की ,जो कुछ भी हुआ वह "”दिल्ली "” के कहने पर ही हुआ | इस बार भी ऐसा ही हुआ शायद , क्यूंकी राज्यपाल जी ने मुंबई से लाखो मजदूरो के जाने पर प्रदेश सरकार से कभी नहीं पूछा की -इन लोगो को राहत के अथवा आने -जाने का क्या बंदोबस्त किया हैं ! उन लाखो बेसहारा मजदूरो की कहानिया बाद में प्रकाशित होती रही की कैसे लोग ट्रको में तिपहिया वाहनो से और साइकल से सैकड़ो मील की दूरी तय करने निकाल पड़े थे | शायद तब संवैधानिक प्रमुख का मन नहीं पसीजा -क्योंकि दिल्ली भी निरुपाय थी और सिवाय बयानबाजी के कोई भी राहत सुलभ कराने में "” असमर्थ थी शायद "” ! अब गैर बीजेपी शासित राज्यो में राज्यपाल की भूमिका काफी विवादो में रही हैं , मसलन राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा जी , जिस प्रकार उन्होने गहलौत सरकार के आग्रह पर विधान सभा की बैठक बुलाने में "”आनाकानी "” कर के सरकार की स्थिति को आम लोगो की नजरों में अस्थिर बनाने की कोशिस की थी | जबकि संविधान के अनुसार मंत्रिमंडल की सलाह पर विधान सभा का सत्र आहूत करने के लिए वे बाध्य हैं | उन्होने अनेक कारणो में -एका कारण "” करोना "महामारी भी बताया था की ,ऐसे अवसर पर सदन की बैठक उचित नहीं हैं ? जबकि उनही के साथी राज्यपाल स्वर्गीय लालजी टंडन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वरा कोरोना महामारी के कारण सदन को स्थगित किए जाने की प्रार्थना की थी ! तब उन्होने अपने विशेसाधिकार का प्रयोग करते हुए विधान सभा की बैठक आहूत कर मुख्यमंत्री को विश्वास अर्जित करने का निर्देश दिया था | मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार ने इस्तीफा दे दिया था | परिणाम स्वरूप 22 विधान सभा स्थानो के लिए उप चुनाव होने वाले हैं |

यानहा एक घटना याद आती हैं की जब केरल के कुनुर जिले में आपसी झगड़े में आरएसएस के एक स्वयंसेवक की मौत हो गयी थी , तब भी केंद्र सरकार के तत्कालीन ग्र्हमंत्रि राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री विजयन से फोन पर ही प्रदेश की शांति - व्यवस्था की शिकायत की थी | तब वनहा के राज्यपाल पूर्व के न्यायाधिपति थे | उन्होने भी उस सेवक की हत्या के कारणो की जानकारी गृह सचिव और पुलिस के मुखिया को तलब करके मांगी थी | क्योंकि आरएसएस ने उस मौत को राजनीतिक हत्या बताया था | इन सभी घटनाओ से एक बात साफ नजर आती हैं केंद्र सरकार को अपनों की अर्थात आरएसएस या बीजेपी अथवा गौ रक्षक या बजरंग दल के किसी सदस्य को चोट पहुंचे ----तो दर्द दिल्ली तक होता हैं |

लेकिन उनके संगठन अथवा दल से जिंका संबंध नहीं हो अथवा जो विरोधी दल के हो उनकी सुरक्षा की परवाह नहीं हैं | राजीव गांधी की हत्या के बाद उनके परिवार को एनएसजी का सुरक्षा घेरा दिये जाने के लिए कानून में प्रविधान किया गया था | इसी कारण उन्हे आवास ऐसा सुलभ कराया जाता था जनहा सुरक्षा के माकूल बंदोबस्त किए जा सके | विचारणीय हैं की जिसके पिता और दादी {इन्दिरा गांधी } देस सेवा करते हुए हत्यारो के निशाना बने ---उनसे ज्यादा सुरक्षा किसे होगी ? कंगना राणावत को सुरक्षा घेरा सुलभ कराने से यह साफ हो जाता हैं -की सरकार निर्लज्जता से पक्षपात पूर्ण काम कर रही हैं | जबकि प्रधान मंत्री समेत सभी ने शपथ ली हैं की "” बिना किसी भेद भाव अथवा दुराग्रह के सबके साथ विधि के अनुरूप काम करेंगे "” | कितना बड़ा मज़ाक है की जिस दल के लोग आरोप लगाते हैं की कांग्रेस के राज में गांधी परिवार "”राजवंश "” बन गया था | यह कोई नहीं बताता की इस परिवार के दो सदस्य देश की सेवा में हत्यारो के शिकार हुए !! खालिस्तानी और तमिल लिट्टे के निशाना बने ये लोग किसी देशवासी के वीरुध अथवा अपने हित में काम नहीं कर रहे थे | जैसा आज सत्तरूद दल और उससे जुड़े संगठन के लोग कर रहे हैं | बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर की बजरंग दल के गौ रक्षको द्वरा हत्या में आज तक उस परिवार को न्याय नहीं मिला | जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री आदित्यनाथ ने अपने वीरुध चल रहे गंभीर अपराधो के मुकदमों को अदालतों से वापस करा दिया हैं | जबकि नागरिकता संशोधन कानून का शांतिपूर्ण विरोध करने वाले पूर्व पुलिस महानिरीक्षक दारापुरी पर मुकदमा लंबित हैं ! धरने पर बैठी सैकड़ो महिलाओ पर दर्ज़ मुकदमें आज भी लंबित हैं |

केंद्र सरकार की नेक नीयती पर एक और घटना प्रश्न चिन्ह लगाती हैं ---वह हैं महाराष्ट्र के "”भीमा -कोरेगाव्न "” का मामला | इस स्थान पर एतिहासिक रूप से पेशवा कि सेना को ईस्ट इंडिया कंपनी ने दलितो की फौज से पराजित किया था | दलित इसे अपने स्वाभिमान का स्थान मानते हैं | वर्षो से इस स्थान पर दलित लोग एकत्र होकर अपनी सफलता के किस्से सुनते थे | परंतु फड्नविस की बीजेपी सरकार ने इसे पेशवा की सेना के पराजय को कलंक के रूप में लिया | और कुछ कट्टर पंथी लोगो और संगठनो के विरोध से इस आयोजन को बंद करा दिया ,तथा विरोध करने वालो को बंदी बना कर मुकदमें चलाये | इस आंदोलन के पाँच परमुख लोगो में डॉ तलपड़े और पाँच और लोगो को जेल में डाल दिया गया | विधान सभा चुनावो के दौरान शिव सेना तथा अन्य राजनीतिक दलो ने इस मुकदमें को वापस लेकर बंदी लोगो को रिहा करने का वादा किया | ठाकरे सरकार ने गठन के पश्चात इस मामले को वापस लेने की घोसना की | तब बीजेपी की ब्रामहन लॉबी ने केंद्र पर दबाव बनाया | जिससे की केंद्र सरकार इस मामले को एन आई ए से जांच कराने का फैसला किया | परिणाम उन पाँच समाजसेवियों -लेखक -कवि लोगो को जेल की सलाखों के पीछे ही रहना पद रहा हैं | 6 माह से ज्यादा समय हो जाने के बाद ना तो मुकदमा चलाया जा रहा हैं अथवा ना ही बंदियो को जमानत दी जा रही हैं | कोरोना महामारी के समय भी इन 60 साल से ऊपर की आयु के लोगो को अस्पताल में इलाज भी नहीं कराया जा रहा हैं !

ऐसा इसलिए हो रहा हैं क्योंकि वे केंद्र की सत्ता और उससे जुड़े संगठनो के जी हूजिरिये नहीं हैं | वरना इन पाँच लोगो से देश की सुरक्षा को कैसा खतरा हैं ????

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मुंबई के महाभारत में दो द्रौपदिया और राम मंदिर का दखल !,

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एक का चीर हरण मीडिया के चटखारे की खबर हैं , तो दूसरी ने तो कौरवो की सभा के समान अपने अपमान के लिए "सभी जिम्मेदार लोगो को दोषी बता दिया हैं "”! रिया चक्रवर्ती केंद्र में सत्तासीन दल के निशाने पर इसलिए आ गयी क्योंकी बिहार के चुनावो में इस मामले से सत्तारूद दल को लाभ होने की संभावना हैं | वनही हिम कन्या कंगना ने पहले तो मुंबई की फिल्म उद्योग को गंदा बताया फिर मुंबई को पाक अधिकरत काश्मीर बता दिया | शिवसेना के संजय राऊत से उनका वाक युद्ध भी हुआ जो मीडिया की सुर्खी बना | पर केंद्र द्वरा सुरक्षा घेरा दिये जाने के बाद वे मुखर हो गयी --- और काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से कहा की "”इतिहास उन्हे कभी माफ नहीं करेगा , उनके अपमान पर मौन रहने के लिए "”! तब यह साफ हो गया की यह एक दिलजली अभिनेत्री का गुबार ही नहीं हैं -वरन इसके पीछे राजनीति भी हो रही हैं |

एक द्रौपदी जेल में हैं तो दूसरी गैर बीजेपी नेताओ पर बान चला रही हैं | सवाल यह हैं की शरद पवार जैसे राजनीति के भीष्म के सामने बीजेपी शिखंडी को खड़ा कर रहे हैं ! परंतु इस युग के महाभारत में भीष्म अपनी सरकार की रक्षा कर रहे हैं | कंगना के आफिस के गैर मंजूर निर्माण को तोड़ने पर --जैसा श्राप मुख्य मंत्री को कंगना ने दिया वह कोई नया नहीं हैं |

लेकिन इस घटना में राम मंदिर के निर्माण से जुड़े संगठन विश्व हिन्दू परिषद और भगवा धारियो का संगठन "”आखाडा परिषद "” ने भी शिव सेना के मुख्य मंत्री ठाकरे को अयोध्या में पैर नहीं रखने की सलाह दी हैं ! कहा की अगर वे यानहा आए तो उन्हे भरी विरोध का सामना करना पड़ेगा ! अयोध्या की हनुमान गढ़ी के पुजारी ने भी यही धम्की दुहराई हैं | इस घटना चक्र से यह साफ हो गया की राम मंदिर में वही जा सकेगा जो आरएसएस और वीएचपी तथा भगवा धारियो तथा बीजेपी का क्र्पा पात्र होगा | अन्यथा उसे सनातनी नहीं माना जाएगा ! अब इससे राम मंदिर को देश सभी सनातन धर्म के लोगो का नहीं वरन सिर्फ उपरोक्त संगठनो के समर्थको और शिष्यो का ही माना जाएगा ! तब इस मंदिर के निर्माण में उन लोगो को सहयोग कैसे मिलेगा जो सत्तारूद दल से संबन्धित नहीं हैं ,वरन उनके विरोधी हैं | तब तो अयोध्या के राम सिर्फ आरएसएस और वीएचपी तथा आखाडा परिषद के ही आराध्य हैं क्या ?

सुशांत की मौत की हत्या की गुत्थी सुलझाने गयी सीबीआई की फौज सात दिनो तक 5-5 सात सात घंटे रिया से पूछताछ करने के बाद भी जब महाराष्ट्र पुलिस की भांति किसी नतीजे पर नहीं पाहुच सकी तो उसने मामला इंफोर्समेंट डिरेक्टोरेट को दे दिया की वे पैसे का लें - दें देखे , जिससे की मौत का उद्देस्य का तो पता चले | बैंक और आम्दानी और खर्चो के हिसाब की बड़ी बारीकी से जांच हुई , पर अफसोस यानहा भी सुशांत के परिवार वालो का आरोप मिथ्या निकला की रिया चक्रवर्ती सुशांत के पैसे ले गयी ! वैसे इस विंग के बारे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कन्डेय काटजू ने कहा की "” जब से यह सरकार ने आर्थिक अपराधो की जांच के लिए बनाया हैं तब से आजतक इस्क मुश्किल से 10 मामलो में सफलता मिली हैं ! जब यह उपाय भी खाली गया तब नारकोटिक्स ब्यूरो को "जांच की रिले रेस का डन्डा "”” थमाया गया | अब ड्रग के मामले तो हत्या से कई गुना ज्यादा होते हैं , इसलिए बिना किसी बरमदगी के ही हाकिम अफसरो ने शक के आधार पर दस लोगो को बंदी बनाया | जिनमें पहले गिरफ्तार हुए दो आरोपियों को जमानत भी मिल गयी ! रिया को पूछताछ केलिए ब्यूरो ने न्यायिक हिरासत भी नहीं मांगी | क्योकि मौखिक बयान पर गिरफ्तारी हुई थी | लेकिन उससे सीबीआई का बोझ हल्का हो गया ----की आखिरकार रिया को जेल में डाल दिया गया !!

उधर सुशांत की मौत के लिए फ़िल्मनगरी में वंशवाद और घरानो की राजनीति को प्रतिभशाली रंग कर्मियों के शोषण का आरोप लगाया | बड़बोले पैन और आधारहीन आरोप लगाने के लिए कंगना रनौट मशहूर रही हैं | उन्होने जिस भी निदेशक या अभिनेता के साथ काम किया उससे बाद में उनके "”कोप "” का भजन होना पड़ा | ऐसे लोगो की लंबी लिस्ट हैं |




Sep 11, 2020

 

सरकार की संवेदन् शीलता सिर्फ अपनों के लिए --सबके लिए नहीं !


जिस प्रकार कंगना राणावत के मामले में केंद्र सरकार द्वरा "सुरक्षा " मुहैया करने में तत्परता दिखाई गयी -वह अद्भुत ही काही जाएगी ! क्योंकि उनके मुँहफट अंदाज़ से शिवसेना के संजय राऊत को जवाब भले ही मिला हों , पर जिस प्रकार उन्होने मुख्यमंत्री ठाकरे को गुस्सायी महिला के अंदाज़ में अंगुली तोड़ कर श्राप दिया हैं -वह बहुत दार्शनिक अंदाज़ में हैं , खास कर की मेरा घर तोड़ने वाले -तेरा घमंड भी टूटेगा ! पर केंद्र ने सिर्फ वाई श्रेणी की सुरक्षा कवच ही नहीं उपलब्ध कराया , वरन अपने संवैधानिक प्रतिनिधि उर्फ राज्यपाल शी कोशियारी जी को भी सचेत किया की वे भी ,इस मामले में दिलचस्पी ले ! सो उन्होने कंगना के आफिस के अवैध निर्माण को महापालिका द्वरा तोड़े जाने पर --संबन्धित अफसरो को तलब कर लिया | इतना ही नहीं उन्होने मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव को भी राज्यपाल निवास बुला कर सवाल - जवाब किए ! इतनी तत्परता शायद कोशियारी जी ने तब भी दिखाई थी जब उन्होने बीजेपी के नेता फड्नविस को भोर के धुंधलके में सरकार को शपथ दिलाई थ ! जिस ताबड़तोड़ तरीके से तब राज्य से राष्ट्रपति शासन हत्या गया और मुख्यमंत्री फड्नविस और अजित पवार को कसम दिलाई थी ---वह भी तीव्र कारवाई का एक उदाहरण था ! तब भी राज्यपाल की कारवाई पर विवाद हुआ था की "आखिर इतनी जल्दी भी क्या थी "सरकार बनवाने की ! हालांकि सभी यह समझ रहे थे की ,जो कुछ भी हुआ वह "”दिल्ली "” के कहने पर ही हुआ | इस बार भी ऐसा ही हुआ शायद , क्यूंकी राज्यपाल जी ने मुंबई से लाखो मजदूरो के जाने पर प्रदेश सरकार से कभी नहीं पूछा की -इन लोगो को राहत के अथवा आने -जाने का क्या बंदोबस्त किया हैं ! उन लाखो बेसहारा मजदूरो की कहानिया बाद में प्रकाशित होती रही की कैसे लोग ट्रको में तिपहिया वाहनो से और साइकल से सैकड़ो मील की दूरी तय करने निकाल पड़े थे | शायद तब संवैधानिक प्रमुख का मन नहीं पसीजा -क्योंकि दिल्ली भी निरुपाय थी और सिवाय बयानबाजी के कोई भी राहत सुलभ कराने में "” असमर्थ थी शायद "” ! अब गैर बीजेपी शासित राज्यो में राज्यपाल की भूमिका काफी विवादो में रही हैं , मसलन राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा जी , जिस प्रकार उन्होने गहलौत सरकार के आग्रह पर विधान सभा की बैठक बुलाने में "”आनाकानी "” कर के सरकार की स्थिति को आम लोगो की नजरों में अस्थिर बनाने की कोशिस की थी | जबकि संविधान के अनुसार मंत्रिमंडल की सलाह पर विधान सभा का सत्र आहूत करने के लिए वे बाध्य हैं | उन्होने अनेक कारणो में -एका कारण "” करोना "महामारी भी बताया था की ,ऐसे अवसर पर सदन की बैठक उचित नहीं हैं ? जबकि उनही के साथी राज्यपाल स्वर्गीय लालजी टंडन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वरा कोरोना महामारी के कारण सदन को स्थगित किए जाने की प्रार्थना की थी ! तब उन्होने अपने विशेसाधिकार का प्रयोग करते हुए विधान सभा की बैठक आहूत कर मुख्यमंत्री को विश्वास अर्जित करने का निर्देश दिया था | मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार ने इस्तीफा दे दिया था | परिणाम स्वरूप 22 विधान सभा स्थानो के लिए उप चुनाव होने वाले हैं |

यानहा एक घटना याद आती हैं की जब केरल के कुनुर जिले में आपसी झगड़े में आरएसएस के एक स्वयंसेवक की मौत हो गयी थी , तब भी केंद्र सरकार के तत्कालीन ग्र्हमंत्रि राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री विजयन से फोन पर ही प्रदेश की शांति - व्यवस्था की शिकायत की थी | तब वनहा के राज्यपाल पूर्व के न्यायाधिपति थे | उन्होने भी उस सेवक की हत्या के कारणो की जानकारी गृह सचिव और पुलिस के मुखिया को तलब करके मांगी थी | क्योंकि आरएसएस ने उस मौत को राजनीतिक हत्या बताया था | इन सभी घटनाओ से एक बात साफ नजर आती हैं केंद्र सरकार को अपनों की अर्थात आरएसएस या बीजेपी अथवा गौ रक्षक या बजरंग दल के किसी सदस्य को चोट पहुंचे ----तो दर्द दिल्ली तक होता हैं |

लेकिन उनके संगठन अथवा दल से जिंका संबंध नहीं हो अथवा जो विरोधी दल के हो उनकी सुरक्षा की परवाह नहीं हैं | राजीव गांधी की हत्या के बाद उनके परिवार को एनएसजी का सुरक्षा घेरा दिये जाने के लिए कानून में प्रविधान किया गया था | इसी कारण उन्हे आवास ऐसा सुलभ कराया जाता था जनहा सुरक्षा के माकूल बंदोबस्त किए जा सके | विचारणीय हैं की जिसके पिता और दादी {इन्दिरा गांधी } देस सेवा करते हुए हत्यारो के निशाना बने ---उनसे ज्यादा सुरक्षा किसे होगी ? कंगना राणावत को सुरक्षा घेरा सुलभ कराने से यह साफ हो जाता हैं -की सरकार निर्लज्जता से पक्षपात पूर्ण काम कर रही हैं | जबकि प्रधान मंत्री समेत सभी ने शपथ ली हैं की "” बिना किसी भेद भाव अथवा दुराग्रह के सबके साथ विधि के अनुरूप काम करेंगे "” | कितना बड़ा मज़ाक है की जिस दल के लोग आरोप लगाते हैं की कांग्रेस के राज में गांधी परिवार "”राजवंश "” बन गया था | यह कोई नहीं बताता की इस परिवार के दो सदस्य देश की सेवा में हत्यारो के शिकार हुए !! खालिस्तानी और तमिल लिट्टे के निशाना बने ये लोग किसी देशवासी के वीरुध अथवा अपने हित में काम नहीं कर रहे थे | जैसा आज सत्तरूद दल और उससे जुड़े संगठन के लोग कर रहे हैं | बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर की बजरंग दल के गौ रक्षको द्वरा हत्या में आज तक उस परिवार को न्याय नहीं मिला | जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री आदित्यनाथ ने अपने वीरुध चल रहे गंभीर अपराधो के मुकदमों को अदालतों से वापस करा दिया हैं | जबकि नागरिकता संशोधन कानून का शांतिपूर्ण विरोध करने वाले पूर्व पुलिस महानिरीक्षक दारापुरी पर मुकदमा लंबित हैं ! धरने पर बैठी सैकड़ो महिलाओ पर दर्ज़ मुकदमें आज भी लंबित हैं |

केंद्र सरकार की नेक नीयती पर एक और घटना प्रश्न चिन्ह लगाती हैं ---वह हैं महाराष्ट्र के "”भीमा -कोरेगाव्न "” का मामला | इस स्थान पर एतिहासिक रूप से पेशवा कि सेना को ईस्ट इंडिया कंपनी ने दलितो की फौज से पराजित किया था | दलित इसे अपने स्वाभिमान का स्थान मानते हैं | वर्षो से इस स्थान पर दलित लोग एकत्र होकर अपनी सफलता के किस्से सुनते थे | परंतु फड्नविस की बीजेपी सरकार ने इसे पेशवा की सेना के पराजय को कलंक के रूप में लिया | और कुछ कट्टर पंथी लोगो और संगठनो के विरोध से इस आयोजन को बंद करा दिया ,तथा विरोध करने वालो को बंदी बना कर मुकदमें चलाये | इस आंदोलन के पाँच परमुख लोगो में डॉ तलपड़े और पाँच और लोगो को जेल में डाल दिया गया | विधान सभा चुनावो के दौरान शिव सेना तथा अन्य राजनीतिक दलो ने इस मुकदमें को वापस लेकर बंदी लोगो को रिहा करने का वादा किया | ठाकरे सरकार ने गठन के पश्चात इस मामले को वापस लेने की घोसना की | तब बीजेपी की ब्रामहन लॉबी ने केंद्र पर दबाव बनाया | जिससे की केंद्र सरकार इस मामले को एन आई ए से जांच कराने का फैसला किया | परिणाम उन पाँच समाजसेवियों -लेखक -कवि लोगो को जेल की सलाखों के पीछे ही रहना पद रहा हैं | 6 माह से ज्यादा समय हो जाने के बाद ना तो मुकदमा चलाया जा रहा हैं अथवा ना ही बंदियो को जमानत दी जा रही हैं | कोरोना महामारी के समय भी इन 60 साल से ऊपर की आयु के लोगो को अस्पताल में इलाज भी नहीं कराया जा रहा हैं !

ऐसा इसलिए हो रहा हैं क्योंकि वे केंद्र की सत्ता और उससे जुड़े संगठनो के जी हूजिरिये नहीं हैं | वरना इन पाँच लोगो से देश की सुरक्षा को कैसा खतरा हैं ????





Sep 9, 2020

 

सुशांत की मौत - सीबीआई और डी आई तथा अब एनसीबी !!





कहावत हैं की "” ना खुदा ही मिला ,ना विसाले सनम "” वही हो रहा हैं सुशांत की मौत की गुथी सुलझाने में | आत्म हत्या अथवा आतम हत्या के लिए मजबूर करना अथवा हत्या

इन तीन मुद्दो पर जांच एजेसी तो नहीं वरन मीडिया पूरी जांच कर रहा हैं !! एनसीबी के एक अफसर चैनल पर कहते पाये गए की आप लोगो से जो इनपुट मिल रहा हैं ,हम उस पर भी जांच कर रहे हैं ! वाह क्या बात हैं ! यानि सीबीआई की तरकीब अब काम नहीं आ रही हैं | शायद इसी लिए विवाद की केंद्र "रिया" को नशाखोरी के इल्ज़ाम में में जेल भेज दिया गया | यानि रिया को जेल भेजने का "”वादा"” तो पूरा ही हुआ , भले ही वह जमानत पर छूट जाये | कहने को तो होगा "”हमने पूरी कोशिस की पर अदालत ने हमे नाकाम कर दिया "” |

सुप्रीम कोर्ट की सिंगल जज बेंच के जुस्टिस ऋषिकेश जी ने सुशांत की मौत की जांच सीबीआई को सौपी थी --- बिहार में लिखी तत संबंधी प्राथमिकी के आधार पर ! कानून यह हैं की की घटनास्थल के छेत्र की पुलिस ही अपराध की जांच करती हैं | पर इसके उलट पटना की एफ आई आर जांच का आधार बनी ! और मुंबई में पहले बिहार पुलिस ने जांच की कोशिस की , जब बात नहीं बनी तब मौत की जांच सीबीआई को सौपी गयी | सीबीआई ने तुरत -फुरत मुंबई पहुँच कर डेरा डाला और आरोपियों को कई - कई दिनो तक सात से आठ आठ घंटो तक पूछ ताछ की पर कोई सुराग न मिला | तब एम्स की आठ डाक्टरों की टीम बुलाई --उसने भी घटनास्थल की जांच की -पर कोई हल ना निकला ! तब नरकोटिस कंट्रोल बोर्ड को काम पर लगाया गया | अभी तक मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती समेत 10 लोगो को एनसीबी ने गिरफ्तार किया | जिसमें दो आरोपी दो दिन में ही जमानत पर बाहर आ गए ! एनसीबी के मुख्य जांचकर्ता श्री वानखेडे की अगुआई में हो रही गिरफ्तारिया ड्रग यानि की नशे की गोली और पाउडर की खरीद -फरोख्त की जांच कर रहे हैं | उनकी प्रशस्ति यह हैं की वे बड़े - बड़े फिल्मी लोगो के घरो पर छापा मार चुके हैं | कुछ को गिरफ्तार भी क्या ----पर किसी को भी सज़ा नहीं दिला पाये ! वैसे कहा जाता हैं की उनकी पत्नी भी अभिनेत्री हैं कुछ फिल्मों में काम भी किया हैं | वैसे जांच अधिकारी का "”हित"” अगर दिखाई पड़े तो उसे जांच से अलग कर देते हैं , पर यानहा ऐसा नहीं हुआ |

सवाल यह हैं की जांच होनी थी सुशांत की मौत के हालातो की , पर उसे मोड दिया गया की --- उसे ड्रग दी जाती थी या वह ड्रग लेता था? क्या उसकी मौत ड्रग के वशीभूत होने के कारण हुई ,अथवा किसी ने जबर्दस्ती उसे नशा दिया ?

फिलहाल यह तो दिखाई पड़ रहा हैं की सुशांत की मौत आत्म हत्या थी -तो क्या किसी ने उसे ऐसा करने पर दबाव डाला अथवा निराशा के कारण उसने ऐसा कदम उठाया ? फिलहाल यह तो साफ हैं की सीबीआई को कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं लगा जिससे की रिया और उसके "”परिचितों"” को जांच के दायरे में लाया जा सके ! अब खबरिया चैनल भी दबी जबान से मान रहे हैं की इस मामले में किसी मंत्री को दबिश नहीं डी जा सकती हैं | क्योंकि सीबीआई का रेकार्ड रहा हैं की उसने कभी भी गिरफ्तारी के 90 दिन के अंदर अपनी जांच रिपोर्ट अदालत को नहीं सौपी हैं | हाँ न्यायिक हिरासत में आरोपियों को जेल में रखने का उनका कीर्तिमान हैं | उनका मुकदमो की सफलता का प्रतिशत किसी भी राज्य की पुलिस से "”कुछ"” कम ही हैं ! चूंकि सीबीआई के पास जांच के अमले और वैज्ञानिक साधन कनही अधिक हैं -----पर परिणाम उसके अनुपात में नहीं हैं | वैसे राजनीतिक कारणो से भी इस एजेंसी का प्रयोग भी होता रहा हैं -जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की थी "” सरकार का तोता "” , अतः अब यह तोता जब तक अपनी कारगुजारी दिखाता रहेगा --जब तक की दिल्ली से वापस आने का "”हुकुम "”नहीं आ जाता | एक खबर यह भी हैं की बिहार पुलिस के मुखिया भी इस मामले में जबर्दस्त दिलचस्पी दिखा रहे हैं | जब बिहार के नारी संरक्षण ग्रहो में लड़कियो को "”बड़े और रसुखदार "” लोगो के पास भेजे जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तब उनकी पुलिस की काफी लानत - मलामत हुई थी | तब वे चुप रहे थे -तब दर्द नहीं हुआ था ? अब एक नवोदित राजपूत अभिनेता की रहस्यमय मौत पर जितनी "”तड़प" दिखाई दे रही हैं , वह क्या उनके भावी जीवन की प्लान का कारण तो नहीं ? कहते हैं की स्वैछिक अवकाश लेने के बाद भी दुबारा उन्होने सेवा में अपनी आमद दी ? आखिर क्यू ? क्या इसलिए ए सुशांत के बहनोई हरियाणा में पुलिस महानिदेशक हैं , जो उनके मित्र हैं ? अथवा विधान सभा चुनावो में राजपूत मतो को सत्ताधारी गठजोड़ की ओर मोड़ने का पैंतरा हैं ? खुद पंडित जी है अगर राजपूत वोट उन्हे मिल जाये तो तो सफलता निश्चित हैं | वैसे पंडित जी और राजपूत ज्यदतर एक -दूसरे के विरोधी खेमो में रहते हैं | बिहार और -उत्तरप्रदेश में यह आमबात हैं ,चुनावो के दौरान | अब इस पारंपरिक प्रतिद्वंदीता को मीडिया के प्रचार के सहारे कितना भुनाया जा सकता हैं , यह विधान सभा चुनावो के परिणाम बताएँगे ---- खैर वह तो अभी दूर की बात हैं | इंतज़ार रहेगा की अब इस मामले में आगे क्या "”” जांच "”” होती हैं ?



Sep 3, 2020

 

अब सत्ताधारियों के निशाने पर -फेसबूक ? राजनीतिक विचारधारा बताए ?



संसदीय समिति द्वरा फेसबूक में राजनीतिक पक्श्च्पात करने के आरोप में उसके प्रबंध निदेशक अजित मोहन पर दोनों ओर से हमला किया गया की --उनके साथ अन्याया हो रहा हैं !! इस वक़्त फेसबूक की दशा उस किसान की तरह हैं , जिसकी दो पुत्री थी | जिनमें एक का विवाह किसान से और दूसरी का कुम्हार से हुआ | बरसात के मौसम {चुनाव} में एक ने पिता से कहा की वर्षा हो तो फसल अच्छी होगी , वनही कुम्हार की पत्नी ने कहा की वर्षा को रोके , क्योंकि उसके मिट्टी के बर्तन सूखने के लिए रखे हैं | अब वह किंकर्तव्य विमुढ था | भारतीय जनता पार्टी के सांसदो का आरोप था की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भसनों के "” फ़ैक्ट चेक़ "” किए तो सोनिया गांधी के बयानो के कितने फ़ैक्ट चेक़ किए गए ? एक दिन पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर अपनी प्रैस वार्ता में इस जांच के लिए अपने सांसदो को हमले का मसाला काफी दे चुके थे | उन्होने आरोप लगाया राश्त्र्वादी विचारधारा के पोस्ट हटाये गए | उन्होने यह भी आरोप लगाए की फेसबूक के करमचारी प्रधान मंत्री को अपशब्द कहते हैं | संसदीय समिति ने यह भी पूछा की करमचरियों की विचारधारा क्या हैं ?

फेसबूक को लेकर विवाद उस समय हुआ --जब विधान सभा चुनावो के समय और जे एन यू तथा जामिया मिलिया में हुए छात्र द्वरा नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन में पुलिस कारवाई तथा सत्ता धारी नेताओ और उनके संगठनो के भड़काऊ भासनों की पोस्ट को लेकर आपति की गयी | दिल्ली के विधान सभा चुनावो को लेकर केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग और बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के बयान टीवी पर चले समाचारो की मुख्य मुद्दे बने थे | गृह मंत्री अमित शह ने भी टकसाली बयान देकर गरिमा खोयी थी |

आभासी दुनिया अर्थात फेसबूक और व्हात्सप्प में ट्रोलिंग टोली किस संगठन की हैं ----अब यह छुपा नहीं रहा | सच को झूठ और आज के मुद्दो का जवाब देने के बजाय पंडित नेहरू और इतिहास को दोषी बताना | सरकार के फैसलो की आलोचना करने वाले "”ट्रोलिंग टोली "” द्वरा तुरंत देश द्रोही -राष्ट्र द्रोही "” “” करार दिया जाता हैं | जिनको समाज आदर देता है - ऐसे लोगो ओ "”राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा बताया जाता हैं ! भीमा कोरे गाव्न हो या छतीसगड में कराय कर रही डॉ सुधा हो डॉ पचपूड़े हो या आईएएस की नौकरी छोड़कर समाज सेवा में आए वे भी समाज के लिए खतरा बन गए ! जिन दो लोगो ने नागरिकता कानून का विरोध कर रही महिलाओ पर गोली चलाने वालो पर दिल्ली पुलिस ने कोई एफ आई आर दर्ज़ नहीं की | देश व्यापी हिन्दू वाद के हिमायतियों को इल्लाहबाद हाइ कोर्ट ने झटका दिया ----- जब डॉ काफिल पर राष्ट्रीय सुरक्षा लगाने के अलीगड़ जिलाधिकारी के वीरुध कड़ी टिप्पणी की | हालांकि डॉ काफिल ने रिहा होने पर आशंका जताई है की उत्तर प्रदेश सरकार उन्हे किसी अन्य मामले में फंसा सकती हैं | उधर दिल्ली हाइ कोर्ट ने भी कुमारी कालीता को जमानत दे दी हैं -हालांकि तीन अन्य मुकदमो में अभी भी वे जेल में हैं |ये सभी क्या राष्ट्र द्रोही या देश द्रोही हैं ? फिर अदालत ने क्यू जमानत दी ? क्या यह राजनीतिक विद्वेष का फैसला नहीं था जिसे पुलिस और प्रशासन ने अपने राजनीतिक आकाओ को प्राषण्ण करने के लिए किया ?

हेट स्पीच या भडकाउ भासन -क्या जय श्रीराम नहीं हैं ?

सस्न्सदीय समिति के एक सदस्य ने यह भी पूच्छा की क्या जय श्री राम कहना सांप्रदायिक हैं ? सवाल यह हैं की सनातन परंपरा में अभिवादन “”नमस्ते या प्रणाम अथवा चरण स्पर्श “” हैं | जैसे मुस्लिमो में आदाब अर्ज़ अथवा सलाम वालेकुम है अथवा ईसाइयो में गुड मॉर्निंग आदि हैं | अब अगर जय श्री राम को अभिवादन माना जाये , जो की भारत की एक रेजीमेंट का युद्धघोष {वार क्राइ } हैं | तब मुसलमान अगर अल्लाह -हु - अकबर अथवा या अली कहे अथवा ईसाई हेल मैरी “” कह सकते हैं जो --वास्तव में युद्ध घोष ही हैं | हिन्दी भाषी छेत्रों में राम -राम या गुजरात में जय श्री कृष्ण भी अभिवादन ही हैं | परंतु रामचरित मानस पर बनी टीवी सीरियल रामायण में जय श्रीराम का घोष सामने वाले दानवो को आतंकित करने हेतु ही किया गया गया हैं |इसलिए अगर गोरखा लोगो युद्ध घोष है “”आयो गुरखाली “” तथा रेजीमेंट का वाके है जय महाकाली | परंतु आपस मिलते समय वे जय महाकाली नहीं कहते हैं | 2014 के बाद देश में जिस हिन्दू राष्ट्रियता का प्रचार किया गया वह ---वह पूरी तरह गलत हैं | देश और राष्ट्र का अंतर समझने के लिए राजनीति शास्त्र के पन्ने देखने होंगे | देश की भौगोलिक सीमा होती है राष्ट्र का आधार संसक्राति और डीएचआरएम और समुदाय होते हैं | नए -नए हिन्दुओ को यह अंतर जानने के लिए वेदिक धरम में किसी भी धार्मिक कार्य को संपादित करने के लिए “”संकलप पा लिया जाता हैं ---उसमें हैं जंबू द्विपे भारत खन्डे भारत वर्षे अमुक छेत्र स्थित ................मम गोत्र उतपनने अमुक प्रयोजन हेतु ......| अब राष्ट्र में खान पान -पहरावा के साथ आस्था भी कारण हैं | बंगला देश के हिन्दू हो अथवा पाकिस्तान के सिंधी वे भी वैसा ही पहरावा पहनते हैं , जैसा उनके पड़ोसी देश --भारत में पहना जाता हैं | ढकेस्वरी देवी का ढाका में मंदिर हैं ,वनहा दुर्गा पूजा में नौ दिन देवी स्त्रोत का पाठ होता हैं | बलूचिस्तान के हिंगलज मंदिर में भी वेदिक कर्मकांड समान ही हैं | जैसे सलवार -कुर्ता पंजाबी पहनते हैं वैसा ही सटे हुए इलाके के पाकिस्तानी भी पहनते हैं | अम्रत्सर की वाघा बार्डर पर भी उनके सैनिक सलवार और कमीज़ पहने दिखते हैं | बंगला देश में आए रोहिङिया मुसलमानो की महिलाए भी बंगाली स्त्रियो की भाति साड़ी पहनती हैं | केरल का मुसलमान भी ओणम को उसी हर्ष से मानता हैं जैसे उसके हिन्दू भाई | उनका खान - पान भी एक जैसा हैं | इसलिए राष्ट्र की भौगोलिक सीमा नहीं होती | जबकि देश की होती हैं |


सवालो का जवाब देने का जिम्मेदार कौन ?

जिस तरह से रविशंकर जी अपने सहयोगीयो ---पार्टी जनो तथा नेताओ को अप शब्द कहने पर रोष जताया हैं , वह वाजिब हैं \ पर क्या उनकी “”ट्रोलिंग टोली “” जिस प्रकार राहुल गांधी को मुसलमान का पौत्र बताती है --वह असती और झूठ नहीं हैं ? क्या वे इसके लिए भी बोलेंगे | नेहरू जी देश के पहले प्रधान मंत्री रहे हैं ---उनकी इज्ज़त में कई देशो ने मूर्तिया स्थापित हैं | महात्मा गांधी को 170 देशो में मूर्तियो के अलावा सड़के -इमरते भी हैं | जब तथा कथित राष्ट्र वादी जिनकी पैरोकारी रवि शंकर कर रहे हैं -----वे अपने प्रधान मंत्री और सहयोगीयो का विरोध करने पर “””नाराज़”” हो रहे हैं | एक जुमला व्हात्सप्प पर इस “”पाखन्ड “”को उजागर करता हैं की – फिरोज गांधी --फारसी नहीं मुसलमान थे क्योंकि वे राहुल के दादा थे | तब वरुण के दादा भी तो फिरोज ही थे ----उन्हे मुसलमान की संतान क्यू नहीं कहते ? मेनका गांधी भी तो उसी परिवार से हैं ---- उनको सम्मान देने वाले सोनिया क्यू नहीं सम्मान नहीं देते , आखिर वे देश की एक बड़ी पार्टी के नेता हैं ?

महात्मा गांधी को --- गोडसे और माफ़ी मांग कर रिहा होने वाले सावरकर से तुलना और उन्हे {गांधी } हिन्दू द्रोही बताना कितना सच हैं ! भले ही कुछ लोगो की रॉय हो सकती हैं , पर दुनिया को झूठा नहीं बना सकते | मोदी की प्रतिमा गुजरात में भले ही लग जाये पर दुनिया के किसी भी देश में वे वह सम्मान नहीं प सकते जो गांधी और नेहरू को दुनिया ने दिया |

रविशंकर जी गिरेबान मे झाँके की दोषी कौन ?