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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 17, 2018


अटल जी एक पत्रकार --जैसा की मैंने उन्हे देखा --यादों के झरोखे से

पहले वे संघ के स्वयंसेवक थे - फिर पत्रकार तब नेता और कवि




बात उस समय की है -----बात लखनऊ की है -- जब मै दर्जा का छात्र था कान्यकुब्ज कालेज मे | परिवार गणेशगंज मे रहा करता था | स्टेशन रोड से होते हुए पी सेन रोड से कालेज जाना पड़ता था | कालेज मे जूनियर हाइ स्कूल से स्नातक की पढाई होती थी | राह मे ही बांस मंडी का इलाका पड़ता था जनहा | तत्कालीन उन्नाव नरेश होटल के बगल की इमारत से उत्तर प्रदेश की राजधानी से पहला संध्या दैनिक "”” तरुण भारत "” प्रकाशित होता था | अखबार के बगल मे बांस -बल्ली के सौदागर साबित अली कुतुब अली की दुकान हुआ करती थी | उस समय प्रदेश के मुख्य मंत्री थे डॉ सपूर्णानन्द , जो राजनीतिक कारणो से कम अपनी विद्वता -- और दार्शनिक अध्ययन की वजह से जाने जाते थे |

ऐसे ही समय मे लखनऊ मे अटल बिहारी वाजपेयी जी तरुण भारत के सम्पादक बन के आए थे | उनके साथ स्वर्गीय लललन प्रसाद व्यास -बचनेस त्रिपाठी की टीम हुआ करती थी | चूंकि मेरे पिता स्वर्गीय लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी नेशनल हेराल्ड मे संवाददाता हुआ हुआ करते थे | अतः तरुण भारत के साइन बोर्ड को पद कर मन मे उत्सुकता हुई , तो मैंने उनसे इस बारे मे पूछा तब उन्होने यह विवरण बताया | | पहला संध्या दैनिक होने के नाते शहर मे काफी उत्सुकता थी लोगो के मन मे |

स्टेशन रोड से जनहा ए पी सेन मार्ग मिलता था , उसी कोने मे विनायक भवन हुआ करता था , जिसमे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहा करते थे | अटल जी को भी मैंने वनहा अनेकों बार देखा था |

1957 मे लोकसभा चुनावो मे अटल जी मथुरा और तत्कालीन गोंडा ज़िले की बलराम पुर संसदीय छेत्र से भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार के रूप मे लड़े | उन्होने काँग्रेस की उम्मीदवार सुभद्रा जोशी को पराजित किया था | सुभद्रा जोशी और वाजपेयी जी दोनों ही यद्यपि बाहरी व्यक्ति थे , परंतु सुभद्रा जी काँग्रेस के वामपंथी खेमे से जुड़ी थी , वनही अटल जी पूरी तरह से दक्षिणपंथी पार्टी के उम्मीदवार थे | उस समय पूर्वञ्चल मे समाजवादी विचारधारा का बोलबाला था | गन्ने की खेती किसानो के लिए नक़द फसल हुआ करती थी | उस छेत्र मे चीनी मिलो को गन्ना की आपूर्ति के लिए इलाके निश्चित हुआ करते थे | इन लोगो का संगठन "””गन्ना समितिया '’ हुआ करती थी | आचार्य नरेंद्र देव का राजनित्क प्रभाव हुआ करता था | वे काँग्रेस को त्याग कर प्रजा सोसलिस्ट पार्टी बना चुके थे | तत्कालीन समय मे यह काँग्रेस का मुख्य प्रतिद्वंदी दल बन चुका था | ऐसे समय मे अटल जी की बलरामपुर से विजय महत्वपूर्ण थी |


1977 के लोकसभा चुनावो मे जनता दल की विजय के उपरांत विदेश मंत्री के रूप मे जब वे पहली बार लखनऊ आए , तब मै नवभारत टाइम्स मे कार्यरत था | मुझे अच्छे से स्मरण है की उनकी प्रैस वार्ता विधान सभा भवन के सम्मुख पार्टी कार्यालय मे हुई थी | वैसे लखनऊ का पत्रकार जगत अनेकों राष्ट्रीय नेताओ को अपने सवालो से निरुतर किया करता था | परंतु उनकी प्रैस वार्ता के पूर्व सरी अच्युता नन्द मिश्र जो उस समय दैनिक अमर उजाला के ब्यूरो चीफ़ हुआ करते थे ----उन्होने हम लोगो को बोल दिया था की कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा | वैसे यह सलाह // निर्देश कुछ युवा पत्रकारो तक ही सीमित था | उस वार्ता मे आज के राजेन्द्र दिवेदी और अमर उजला के सुभाष दवे {{ जो अनिल माधव दवे के चाचा थे } अशोक निगम आदि साथ थे | वरिष्ठ पत्रकारो मे पीटीआई के ए एन सप्रू पैट्रियट के सल्हुद्दीन साहब आदि का स्मरण है | अच्युतनंद मिश्रा जी के कहने पर '’’मैंने कहा भाई साहब अगर सवाल नहीं पूछेंगेतब क्या इमला लिखेंगे --उन्होने मुस्कराते हुए कान्हा की वे यानहा पत्रकार रह चुके है , अतः आज इमला ही लिखो | वैसा ही हुआ बहुत कम सवाल ही पूछे गए | परंतु वे प्रश्नो का जवाब हस्ते मुस्कराते हुए देते और उत्तर के पहले वे उनके नाम से संभोधित करते थे | इससे भारत के विदेश मंत्री उस समय एक सीनियर पत्रकार और संपादक की भांति व्यवहार कर रहे थे |


लखनऊ मे यूं तो बहुतों से उनका घरोपा सा संबंध था , परंतु मेरे परिचितों के नेटवर्क पर स्वर्गीय अश्वनी कुमार जलोटा और खन्ना कांसट्रकसन के मालिक खन्ना जी | उनके अनुज स्वर्गीय कैलास नारायण खन्ना की हजरतगंज मे फर्नीचर की दुकान थी --- जनहा जलोटा जी तथा समाजवादी -काँग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अक्सर आया करते थे | एक तरह से इस अड्डे बाज़ी मे विरोधी विचधाराओ के लोग आते थे |


चूंकि जलोटा जी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जीवनदानी सदस्य थे --इसलिए वे भी अविवाहित थे | वे खन्ना काँसत्र्क़्सन के भागीदार भी थे | वे मवैया मोहल्ले मे खन्ना जी के साथ ही रहते थे | उनके यानहा पंडित दीन दयाल जी और अटल जी भी अक्सर रुकते थे | तब पार्टी के नेताओ को डाक बंगले और होटल मे रुकने की आदत नहीं थी | खन्ना जी की पत्नी लता खन्ना जी उस समय जनसंघ की महिला नेताओ मे एक थी | तब जनसंघ मे महिलाए कम ही थी | काडर आधारित पार्टी मे महिलाओ के स्थान की संभावना ना के बराबर थी | मुझे याद आता है की लखनऊ मे जब पहली बार महापालिका बनी और उसके सभासदो के चुनाव हुए तब लता जी भी चुनी गयी थी | जनसंघ के रामकुमार पहले मेयर चुने गए थे | लालजी टंडन भी तभी सभासद बने थे | संभवतः यन्ही से उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हुई थी |

इस दुनिया को अलविदा कहने के '’काफी पहले '’’उन्होने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया था | फिर प्र्क्रती ने भी उन्हे मजबूर कर दिया था -----वरना '’’’ हार नहीं मानूँगा - रार नहीं ठनूँगा '’’ के व्यक्ति ने '’ आज के राजनीतिक माहौल के मद्दे नज़र दूर ही रहना श्रेष्ठ समझा