अटल
जी
एक
पत्रकार
--जैसा
की
मैंने
उन्हे
देखा
--यादों
के
झरोखे
से
पहले
वे संघ के स्वयंसेवक थे -
फिर
पत्रकार तब नेता और कवि
बात
उस
समय
की
है
-----बात
लखनऊ
की
है
--
जब
मै
दर्जा
छ
का
छात्र
था
कान्यकुब्ज
कालेज
मे
|
परिवार
गणेशगंज
मे
रहा
करता
था
|
स्टेशन
रोड
से
होते
हुए
ए
पी
सेन
रोड
से
कालेज
जाना
पड़ता
था
|
कालेज
मे
जूनियर
हाइ
स्कूल
से
स्नातक
की
पढाई
होती
थी
|
राह
मे
ही
बांस
मंडी
का
इलाका
पड़ता
था
जनहा
|
तत्कालीन
उन्नाव
नरेश
होटल
के
बगल
की
इमारत
से
उत्तर
प्रदेश
की
राजधानी
से
पहला
संध्या
दैनिक
"””
तरुण
भारत
"”
प्रकाशित
होता
था
|
अखबार
के
बगल
मे
बांस
-बल्ली
के
सौदागर
साबित
अली
कुतुब
अली
की
दुकान
हुआ
करती
थी
|
उस
समय
प्रदेश
के
मुख्य मंत्री थे डॉ सपूर्णानन्द
,
जो
राजनीतिक कारणो से कम अपनी
विद्वता --
और
दार्शनिक
अध्ययन की वजह से जाने जाते
थे |
ऐसे
ही समय मे लखनऊ मे अटल बिहारी
वाजपेयी जी तरुण भारत के
सम्पादक बन के आए थे |
उनके
साथ स्वर्गीय लललन प्रसाद
व्यास -बचनेस
त्रिपाठी की टीम हुआ करती थी
|
चूंकि
मेरे पिता स्वर्गीय लक्ष्मी
कान्त त्रिपाठी नेशनल हेराल्ड
मे संवाददाता हुआ हुआ करते
थे |
अतः
तरुण भारत के साइन बोर्ड को
पद कर मन मे उत्सुकता हुई ,
तो
मैंने उनसे इस बारे मे पूछा
तब उन्होने यह विवरण बताया |
| पहला
संध्या दैनिक होने के नाते
शहर मे काफी उत्सुकता थी लोगो
के मन मे |
स्टेशन
रोड से जनहा ए पी सेन मार्ग
मिलता था ,
उसी
कोने मे विनायक भवन हुआ करता
था ,
जिसमे
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के
पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहा
करते थे |
अटल
जी को भी मैंने वनहा अनेकों
बार देखा था |
1957
मे
लोकसभा चुनावो मे अटल जी मथुरा
और तत्कालीन गोंडा ज़िले की
बलराम पुर संसदीय छेत्र से
भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार
के रूप मे लड़े |
उन्होने
काँग्रेस की उम्मीदवार सुभद्रा
जोशी को पराजित किया था |
सुभद्रा
जोशी और वाजपेयी जी दोनों ही
यद्यपि बाहरी व्यक्ति थे ,
परंतु
सुभद्रा जी काँग्रेस के वामपंथी
खेमे से जुड़ी थी ,
वनही
अटल जी पूरी तरह से दक्षिणपंथी
पार्टी के उम्मीदवार थे |
उस
समय पूर्वञ्चल मे समाजवादी
विचारधारा का बोलबाला था |
गन्ने
की खेती किसानो के लिए नक़द
फसल हुआ करती थी |
उस
छेत्र मे चीनी मिलो को गन्ना
की आपूर्ति के लिए इलाके निश्चित
हुआ करते थे |
इन
लोगो का संगठन "””गन्ना
समितिया '’
हुआ
करती थी |
आचार्य
नरेंद्र देव का राजनित्क
प्रभाव हुआ करता था |
वे
काँग्रेस को त्याग कर प्रजा
सोसलिस्ट पार्टी बना चुके थे
|
तत्कालीन
समय मे यह काँग्रेस का मुख्य
प्रतिद्वंदी दल बन चुका था
|
ऐसे
समय मे अटल जी की बलरामपुर से
विजय महत्वपूर्ण थी |
1977
के
लोकसभा चुनावो मे जनता दल की
विजय के उपरांत विदेश मंत्री
के रूप मे जब वे पहली बार लखनऊ
आए ,
तब
मै नवभारत टाइम्स मे कार्यरत
था |
मुझे
अच्छे से स्मरण है की उनकी
प्रैस वार्ता विधान सभा भवन
के सम्मुख पार्टी कार्यालय
मे हुई थी |
वैसे
लखनऊ का पत्रकार जगत अनेकों
राष्ट्रीय नेताओ को अपने
सवालो से निरुतर किया करता
था |
परंतु
उनकी प्रैस वार्ता के पूर्व
सरी अच्युता नन्द मिश्र जो
उस समय दैनिक अमर उजाला के
ब्यूरो चीफ़ हुआ करते थे
----उन्होने
हम लोगो को बोल दिया था की कोई
सवाल नहीं पूछा जाएगा |
वैसे
यह सलाह //
निर्देश
कुछ युवा पत्रकारो तक ही सीमित
था |
उस
वार्ता मे आज के राजेन्द्र
दिवेदी और अमर उजला के सुभाष
दवे {{
जो
अनिल माधव दवे के चाचा थे }
अशोक
निगम आदि साथ थे |
वरिष्ठ
पत्रकारो मे पीटीआई के ए एन
सप्रू पैट्रियट के सल्हुद्दीन
साहब आदि का स्मरण है |
अच्युतनंद
मिश्रा जी के कहने पर '’’मैंने
कहा भाई साहब अगर सवाल नहीं
पूछेंगेतब क्या इमला लिखेंगे
--उन्होने
मुस्कराते हुए कान्हा की वे
यानहा पत्रकार रह चुके है ,
अतः
आज इमला ही लिखो |
वैसा
ही हुआ बहुत कम सवाल ही पूछे
गए |
परंतु
वे प्रश्नो का जवाब हस्ते
मुस्कराते हुए देते और उत्तर
के पहले वे उनके नाम से संभोधित
करते थे |
इससे
भारत के विदेश मंत्री उस समय
एक सीनियर पत्रकार और संपादक
की भांति व्यवहार कर रहे थे
|
लखनऊ
मे यूं तो बहुतों से उनका घरोपा
सा संबंध था ,
परंतु
मेरे परिचितों के नेटवर्क
पर स्वर्गीय अश्वनी कुमार
जलोटा और खन्ना कांसट्रकसन
के मालिक खन्ना जी |
उनके
अनुज स्वर्गीय कैलास नारायण
खन्ना की हजरतगंज मे फर्नीचर
की दुकान थी ---
जनहा
जलोटा जी तथा समाजवादी -काँग्रेस
और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता
अक्सर आया करते थे |
एक
तरह से इस अड्डे बाज़ी मे विरोधी
विचधाराओ के लोग आते थे |
चूंकि
जलोटा जी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ के जीवनदानी सदस्य थे
--इसलिए
वे भी अविवाहित थे |
वे
खन्ना काँसत्र्क़्सन के भागीदार
भी थे |
वे
मवैया मोहल्ले मे खन्ना जी
के साथ ही रहते थे |
उनके
यानहा पंडित दीन दयाल जी और
अटल जी भी अक्सर रुकते थे |
तब
पार्टी के नेताओ को डाक बंगले
और होटल मे रुकने की आदत नहीं
थी |
खन्ना
जी की पत्नी लता खन्ना जी उस
समय जनसंघ की महिला नेताओ मे
एक थी |
तब
जनसंघ मे महिलाए कम ही थी |
काडर
आधारित पार्टी मे महिलाओ के
स्थान की संभावना ना के बराबर
थी |
मुझे
याद आता है की लखनऊ मे जब पहली
बार महापालिका बनी और उसके
सभासदो के चुनाव हुए तब लता
जी भी चुनी गयी थी |
जनसंघ
के रामकुमार पहले मेयर चुने
गए थे |
लालजी
टंडन भी तभी सभासद बने थे |
संभवतः
यन्ही से उनकी राजनीतिक यात्रा
की शुरुआत हुई थी |
इस
दुनिया को अलविदा कहने के
'’काफी
पहले '’’उन्होने
सक्रिय राजनीति से सन्यास ले
लिया था |
फिर
प्र्क्रती ने भी उन्हे मजबूर
कर दिया था -----वरना
'’’’
हार
नहीं मानूँगा -
रार
नहीं ठनूँगा '’’
के
व्यक्ति ने '’
आज
के राजनीतिक माहौल के मद्दे
नज़र दूर ही रहना श्रेष्ठ समझा