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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 19, 2013

सूत न कपास जुलाहे से लठम लट्ठा- सहमती से सहवास

सूत  न कपास  जुलाहे से लठम  लट्ठा - सहमती से सहवास 
                           क्रिमिनल  लॉ  अमेंडमेंट बिल  में सर्वाधिक  विवाद  का मुद्दा था लड़की की सहमती की आयु -- सरकार के अध्यादेश में यह १८ वर्ष थी , जिसे मंत्रियो के ग्रुप ने सोलह वर्ष किये जाने की सिफारिश की थी । इस सिफारिश को ही  राजनितिक और सामाजिक संगठनो ने आपतिज़नक  बताते हुए देश में "सांकेतिक " धरना -प्रदर्शन किये । मज़े की बात यह की सरकार ने भी यह  बताने का प्रयास नहीं किया की , ऑर्डिनेंस में अठारह  वर्ष ही हैं । केवल मंत्री समूह ने इसे सोलह वर्ष किये जाने की सम्मति दी थी । अध्यादेश को विधि बन ने के लिए संसद की मंज़ूरी ज़रूरी थी । अब किस रूप में यह  पारित  हो इस पर  तो संसद  ही फाइनल मुहर लगाती । तो हुआ य़ू  की सडको पर प्रदर्शन  और  धरने हुए कमरों में बैठ कर निंदा के प्रस्ताव भी पारित हुए कंही कलेक्टर तो कंही कमिश्नर को ज्ञापन दिए गए । पर  पक्ष -विपक्ष में कोई तर्क नहीं दिया गया । 
                                                                  और सरकार ने सहमती की आयु को  बरक़रार  रखते हुए अठारह वर्ष  ही रखा । सहमती से  सहवास की उम्र , लडकी के लियुए विभिन्न काल में अलग -अलग रही हैं ।                                                                 
अंग्रेजो के समय में सनातनी समाज में लड़की का विवाह दस वर्ष की उम्र में कर दिया जाता था । इसे धर्म  सम्मत कहा जाता था । वैदिक निर्देशों में  कहा गया हैं की "कन्या के रज़स्वला  होने के पूर्व ही विवाह करना उत्तम हैं "" १८९१  में  एक कानून बनाया जिसे '' एज़ ऑफ़ कन्सेंट " नाम दिया इसमें उन्होने सहवास के लिए बारह वर्ष की आयु नियत की गयी थी । जिसे १९८३ में संशोधन द्वारा सोलह वर्ष की गयी , जो अभी तक प्रभावशाली हैं । मज़े की बात हैं की विगास्त तीस सालो में किसी राजनितिक दल या संगठन अथवा  मंच द्वारा यह आवाज़ नहीं उठाई गयी की सहमती की उम्र में वृधि  की जाए ?  बल्कि  यह काम  सरकार ने किया । हाँ विरोधी  दल यह श्रेय ले सकते हैं की ""उन्होंने शासन को ऐसा करने पर मजबूर किया . "" हालाँकि मणिपुर राज्य में अभी भी सहवास के लिए चौदह साल की ही उम्र रहेगी , अब वंहा कोई चैनल  नहीं जायेगा न ही कोई प्रिंट मीडिया .


        अब एक और मुद्दा हैं जिसमें यह कहावत चरितार्थ होती हैं की ""करे कोई ,भरे कोई ""वह हैं दो इटालियन नौसैनिकों  का , जिसमें ज़बरदस्ती केंद्र सरकार को निशाने पर लिया जा रहा हैं । जबकि उन दोनों की"पैरोल "
 सर्वोच्च  न्यायलय  द्वारा मंज़ूर की गयी थी । अब सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध तो कोई आन्दोलन  -प्रदर्शन - भरना नहीं किया जा सकता , क्योंकि  वह "अवमानना ' का मामला बन जायेगा । इसलिए धुनों सरकार को  चाहे दायें से या बाएं से , इसी को कहते हैं सूत न कपास जुलाहे से लट्ठम  लट्ठा ...........