Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 14, 2018


अब मंदिर चुनाव का मुद्दा नहीं रहा -- संघ बन गया चुनावी बहस का केंद्र


मध्य प्रदेश काँग्रेस के विधान सभा चुनाव के वचन पत्र ने राजनैतिक माहौल मे मंदिर के नाम पर हिन्दू --मुस्लिम वोट की राजनीति अब हट कर संघ के उपर केन्द्रित हो गयी है | एक तरह से यह बहुत बड़ा परिवर्तन है अभी तक बीजेपी या संघ सार्वजनिक बहस के मुद्दे तय करते थे ----इस बार वे असफल हुए |



क्या निर्वाचन प्रक्रिया मे राजनीतिक दलो के अलावा किसी सामाजिक या धार्मिक संगठन की दखलंदाज़ी नियमानुकूल है ? आदर्श चुनाव संहिता मे साफ तौर पर इस बात की मनाही है की चुनाव मे ऐसे संगठनो की मदद निर्वाचन को शून्य कर देगी | परंतु सैकड़ो सामाजिक और धर्मिक् संगठन के लोग खुले आम चुनाव प्रचार मे भाग ले रहे है | मुश्किल यह है की जब इन्हे कानून के सामने लाया जाता है तब ये कह देते की "” मै इस संगठन से नहीं जुड़ा हूँ |”” ऐसे ही एक सामाजिक संगठन है "”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ --जिसके राजनीतिक दखलंदाज़ी को लेकर हमेशा से विवाद रहा है | जानते सभी है ---परंतु साबित कैसे करे ?बाबरी मस्जिद के समय जब नरसिम्हा राव सरकार ने संघ समर्थित सरकाओ को हटाने का फैसला किया ---तब का किस्सा है की तत्कालीन मुख्या मंत्री सुंदरलाल पटवा ने पत्रकार वार्ता मे कहा था की हमारा कोई संबंध संघ से नहीं है ! उनका तर्क था की संघ मे सदस्यता सूची नहीं होती , अतः यह नहीं सिद्ध किया जा सकता की अमुक का संबंध संघ से है | उन्होने क्हा यह तथ्य सिद्ध नहीं हो सकता | तन मैंने कहा था की की अगर शासन की "”नीयत हो तो यह हो सकता है , उन्होने मुझसे प्रति प्रश्न किया की कैसे ? मेरा जवाब था की गुरु पूर्णिमा के दिन सभी भक्त {संघ के } शाखाओ मे ध्वज प्रणाम के बाद " गुरु दक्षिणा देने वालो के नाम नोट किए जाये ----क्योंकि वे ही संघ के सदस्य या शिष्य है !
परंतु ना तो काँग्रेस और नाही गैर बीजेपी सरकारो ने यह सतर्कता दिखाई , फलस्वरूप दुविधा आज भी बनी हुई है | सच्चाई सामने है पर सिद्ध करना कठिन है





सम्पूर्ण चुनाव आयोग के प्रदेश दौरे के पहले तक ---राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ - विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल समेत तमाम आनुषंगिक संगठनो
समेत भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेत्रत्व भी इस मुद्दे को चुनावी माहौल मे गरमाये रखना चाहता है | इस का स्पष्ट प्रमाण वित्तमंत्री अरुण जेटली के उस बयान से भली भांति स्पष्ट होता है "””जिसमे उन्होने मंदिर निर्माण के बारे -भगवाधारियो और संघ के सुझाव ---सरकार मंदिर निर्माण के लिए अध्यदेश लाये अथवा संसद से कानून बनवाए ------पर जवाब दिया था की "””जैसे अयोध्या मे जनता ने ही राम को स्थापित किया --जैसे मंदिर के स्थान को साफ किया {{अर्थात मस्जिद का ध्वंश कर जमीन को सपाट कर दिया |}} उसी प्रकार जनता मंदिर भी बना लेगी |”” उनका तात्पर्य स्पष्ट था की सरकार इस मामले मे कोई पहल नहीं करेगी ! “”

इस के बावजूद संघ के गैर राजनीतिक ///संगठन के नेताओ और विषेस कर भगवा ब्रिगेड की ओर से हरिद्वार अथवा अयोध्या आदि स्थानो से हांक लगाए जा रही है "”” जैसे भी हो सरकार 2019 से पूर्व अयोध्या मे रामलला का मंदिर बनवाए --अथवा सोमनाथ मंदिर की भांति खुद ही आगे आकार इस ज़िम्मेदारी को पूरा करे ---नहीं तो मंदिर निर्माण की ज़िम्मेदारी -उन तीन संगठनो को दे दे जिनहोने मंदिर निर्माण के लिए विगत सालो मे धन -चंदा एकत्र किया है ---ईंट और संगमरमर अयोध्या लाये है |परंतु जेटली के इस जवाब से भाजपा अध्यछ अमित शाह को कोई तकलीफ नहीं है ? परंतु वे मंदिर का संपुट अपने चुनावी प्रवचनों मे करते रहते है |

तीन राज्यो मे विधान सभा चुनावो की तारीखों की घोसना के बाद आदर्श आचरण संहिता के लागू हो जाने के उपरांत अचानक मंदिर का मुद्दा तब गरमा गया जब सर्वोच्च न्यायालय ने जमीन के मालिकाना हक़ की अपील पर फैसला सुरक्शित रखा | जिस पर सरकार समेत उमके सहयोगी संगठनो ने सुप्रीम कोर्ट के इस रुख पर "””अप्रसन्नता ---रोष जताते हुए अमित शाह जी ने कहा था की धार्मिक मामलो मे अदालतों को नहीं पड़ना चाहिए { सबरीमाला मामले मे } | अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी '’’’इस मुद्दे पर मौनी बाबा '’ बन गए है ,परंतू पार्टी -और सरकार मे उनके सहयोगी '’सुर्री'’ छोड़े जा रहे है !


परंतु मध्यप्रदेश काँग्रेस कमेटी द्वारा 12 नवंबर को "””वचन पत्र "” जारी किए जाने के बाद --- निश्चित ही अयोध्या मैं राम मंदिर निर्माण का मसला अब संघ और उसके आनुषंगिक संगठनो के लिए दोयम दर्जे का हो गया है | अब वचन पत्र मे किए गए वादे--- काँग्रेस सरकार सरकारी संस्थानो मे "”शाखाओ के लगाए जाने पर प्रतिबंध लगाएगी "” ने नागपूर से नियंत्रित सभी संगठनो को मंदिर मुद्दा भूल जाने पर मजबूर किया | अब एक ही मुद्दा मीडिया और चुनावी भासनों प्रमुख है वह है की काँग्रेस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रही है ! यह है संघ का के प्रचार तंत्र का नमूना --बात सरकारी संस्थानो मे शाखाओ को मिली सरकारी छूट को समाप्त करने की ----और फैलाया जा रहा है की संघ पर प्रतिबंध लगाने का ! बीजेपी के अनेक अतिउत्साही नेताओ ने तो तो चुनौती दे दी है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसे "”राष्ट्रभक्त संगठन पर प्रतिबंध लगाने की हिम्मत तो दिखाये ! “
इन नेताओ को याद दिलाना पड़ेगा की कोङ्ग्रेद्द के जिस लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा का अनावरण प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है ---उन्होने ही संघ को प्रतिबंधित कर दिया था | जिसे तत्कालीन सरसंघ चालक श्री गोलवलकर की प्रार्थना और इस वचन के बाद वापस लिया गया की संघ सिर्फ "”सामाजिक कार्यो मे ही सीमित रहेगा और राजनीतिक गतिविधियो से अलग रहेगा !

अभी निर्वाचन आयोग ने भोपाल दौरे के समय इस मसले को फिर से उलझा दिया है | राजनीतिक दलोके साथ जहनुमा होटल मे हुई बैठक मे मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत जी ने कहा था की "” सामाजिक या धार्मिक संगठन से संबद्ध व्यक्ति को चुनाव कार्यो मे नहीं लगाया जाये, आदर्श संहिता मे भी इस बात का उल्लेख है | जब एक दल ने इस बात उनसे प्र्शन किया तन उन्होने कहा की '’नाम बताए और सिद्ध करे "” की अमुक संघ या उसके आनुषंगिक संगठन से जुड़ा है !!

यह सर्व विदित तथ्य है की संघ हो या विश्व हिन्दू परिषद अथवा बजरंग दल इन संगठनो का ना तो कोई पंजीयन है ना ही कोई संगठन का डांचा है | ना तो कोई अधिकरत सदस्य सूची और न कोई पहचान पत्र | फिर भी इनके सहयोगीयो द्वारा सार्वजनिक पथ संचालन किया जाता है | लेटर हैड से ही काम चलाया जाता है | अब इस अवस्था मे कैसे यह सिद्ध किया जाये की अमुक व्यक्ति संघ का समर्थक या सहयोगी है ?? इस समय देश मे सनातन तथा श्रीराम सेना जैसे हजारो स्वयंभू संगठन है ---जिनके नाम पर अखबारो मे विज्ञापतिया प्रकाशित होती है , जैसे स्वस्थवर्धक विज्ञापन ! जिनकी न तो कोई ज़िम्मेदारी है नाही कोई जवाबदेही | फिर कोई शासन या सरकार कैसे इनके वीरुध पुख्ता कानूनी कारवाई करे ???