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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 7, 2020


लोकसभा में - प्रधान मंत्री के कथन कितने वाजिब ?



नरेंद्र मोदी जी के लोकसभा में कथन और – वचन , कसौटी पर कितने सच ?


राष्ट्रपति के अभिभाषषण पर लोकसभा पर प्रधानमंत्री का जवाब सुन कर पहले तो यह लगा की दिल्ली चुनाव प्रचार की खुमारी अभी भी बाक़ी है |उन्होने अभिभाषण पर विरोधियों द्वरा सरकार पर लगाए गए आरोपो पर पूरी चुप्पी साधे रही | अब इसका कारण यह हो सकता हैं की - उनके उत्तर के लिए ज़रूरी "’तथ्य और कथ्य "” नहीं था | पूरा भाषन सुनने से लगा की यह वही शैली हैं जो उन्होने रामलीला मैदान में आयोजित बीजेपी की सभा में किया था !! अब सावल यह हैं की क्या संसद भी जनता की भीड़ हैं – जनहा प्रवचन देकर बस अपनी ही बात कहनी हैं !! अथवा विधायिका की भांति सदस्यो की आपतियों और प्रश्न का समाधान करने का कर्तव्य करना होता हैं ? लेकिन सत्र के आरंभ में एनडीए के सांसदो को सम्भोधित करते हुए कहा था "”” ये लोग हमारी बात को नहीं मानेंगे --इसलिए इनकी फिक्र करना छोड़ दीजिये ! अर्थात जो हमारे साथ नहीं हैं --उसकी परवाह हमे {सरकार और पार्टी को } नहीं करनी हैं !!! जनमत में यह वैचारिक विभाजन ,, की सबसे बड़ा उदाहरण हैं | अब जो भक्त यह कहते हैं की वे तो देश के प्रधान मंत्री हैं --तो कानूनी रूप से भले ही सही हों ,परंतु भावनात्मक रूप से – वे देश में सबका साथ -सबका विश्वास के अपने नारे को खुद ही झूठा करार दे रहे हैं !! इसी को आगे देखे तो पाएंगे की उनकी शाहीन बाग आंदोलन के प्रति "” संयोग या प्रयोग "” का टकसाली जुमला भी धरणे पर बैठे लोगो का अपमान ही हैं ! वे भी जनता का हिस्सा हैं -जिसके वे अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करते हैं | इसी पद के कारण ही उनका दुनिया के दर्जनो देशो में विरोध हो रहा हैं | क्योंकि वे भारत के प्रधान मंत्री हैं ---बीजेपी के चुनावी भाषण कर्ता भर ही नहीं हैं !! वैसे भी भारत में सरकार कभी मतदाता की बहू संख्या पर नहीं बनती हैं | हमेशा ही उम्मीदवारों में विभाजित मतो में सर्वाधिक मत पाने वाला ही विजयी होता हैं | जैसे बीजेपी को भी लिकसभा चुनावो में कुल डाले गए मतो का एक तिहाई ही मिला था |
अब एक पाखंड और उनका की संसद से पारित कानून की अवहेलना अराजकता हैं !!! कहते हैं की मोदी जी राजनीति शास्त्र में स्नातक हैं ---- उन्होने कोर्स में अनेक देशो के संविधान तो पढे ही होंगे | भारत का संविधान तो विशेस ध्यान से देखा होगा , आखिर उन्हे आगे चल कर इसी से वास्ता पड़ने वाला था |संविधान में संसद से पारित कानून के शांतिपूर्ण विरोध को कनही भी "”अराजकता "” नहीं परिभाषित किया गया हैं | ना ही कानून की किसी किताब लिखा हैं की संसद के कानून का विरोध अराज्क्ता का अपराध हैं ! अगर नरेंद्र मोदी जी की बात "”सच "” होती तो संसद के बने कानूनों को अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती थी ! आज भी हजारो की संख्या में विभिन्न केंद्रीय कानूनों और राज्य के विधियो के खिलाफ मुकदमें नहीं चल रहे होते | अब देश का प्रधान मंत्री इस हक़ीक़त से वाकिफ ना हो --तो यह बहुत बड़ी कमजोरी उनकी है और उससे ज्यादा उनके चारो ओर मंडराने वाले सलहकारो की | उन्हे मोदी जी को बताना चाहिए की संसद के बने कानूनों की "””जांच "” का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास हैं | जैसे ऊतराखंड में काँग्रेस की रावत सरकार को अपदस्थ करने के राष्ट्रपति के आदेश को , उच्च न्यायालय ने निरस्त किया था | तब भी बीजेपी के वकील ने कहा था की यह राष्ट्रपति का आदेश हैं ---इसे मानना ही होगा | तब मुख्य न्यायाधीश जोसेफ ने कहा था की वे कोई भगवान नहीं हैं ,की उनसे गलती नहीं होगी | बाद में इनहि मुखी न्यायाधीश जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नता करने के प्रस्ताव पर मोदी जी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय कोलेजियम के प्रस्ताव को नहीं माना था , परंतु दुबारा भेजे जाने पर मोदी सरकार को मानना पड़ा था | अब एक बार चोट खाने के बाद ऐसी बात कहना तो नादानी ही मानी जाएगी |
संविधान में कुछ आदेश ऐसे भी हैं जिनहे न्यायिक परीक्षण से बाहर रखा गया हैं | अब मोदी जी चाहे तो संसद के पारित सभी कानूनों को अदालतों की संवाइध्ङ्क्ता की जांच से बाहर करा दे तभी ----- संसद के कानून के खिलाफ आंदोलन "””अराजकता होगा "”” ,अन्यथा नहीं |
लोकसभा को मोदी जी ने एक बार फिर आज़ादी की लड़ाई के बाद देश के पुनर्गठन और विभाजन तथा उन परिस्थितियो की बिलकुल नयी व्याख़्या की -उनके अनुसार जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मंत्री बनने के के लिए ब्रिटिश इंडिया का विभाजन स्वीकार किया !!! राजनीति शास्त्र के साथ आधुनिक इतिहास भी पढ लेते तो शायद ऐसी भूल नहीं करते | अब अगर ऐसा उन्होने जान बूझ कर गढा हैं तो उनकी ट्रेनिंग और शिक्षा को प्रणाम हैं | एक सवाल हैं की पंडित नेहरू प्रधान मंत्री नहीं होते तो कौन होता ?? निश्चय ही उस वक़्त तक तो जनसंघ का उद्या नहीं हुआ था , और सावरकर को गांधी हत्यकाण्ड के षड्यंत्रकारी के रूप में पहचान थी | तब मोदी जी के आदर्श सरदार बल्लभा भाई पटेल अगर होते तो क्या वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध नहीं लगते ? या गोलवलकर और आँय नेताओ को बंदी नहीं बनाते ? क्या वे महात्मा की हत्या की अनदेखी कर देते ? अब इनके उत्तर नरेंद्र मोदी जी के पास शायद हो ---मैं कोई अंदाज़ इस बारे में नहीं लगाता हूँ | गनीमत हैं अभी वे ब्रिटिश इंडिया के विभाजन का दोषी पंडित नेहरू को बताते हैं ----- कनही प्लासी के युद्ध में अंग्रेज़ो की जीत का दोषी भी काँग्रेस को बता सकते हैं | अमित शाह जिस आज़ादी की पहली लड़ाई को उजागर करने का श्रेय विनायक सावरकर को बताते हैं ----- 1857 की इस लड़ाई में अंग्रेज़ो के खिलाफ थोड़े से राजा - महाराजाओ को छोड़कर सारे देश के हिन्दू - मुसलमान ---दिल्ली के शाह बहादुर शाह जफर के नेत्रत्व में लड़ी गयी थी | उस समय हिन्दू और मुसलमान दोनों ही तोपों से बांध कर उड़ाए गए | अवध की बेगम हज़रत महल भी नाना साहब और तात्या टोपे के साथ लड़ी थी | ना उस लड़ाई में धरम अलगाव ल पाया था और ना ही महात्मा के आज़ादी के आंदोलन में था | मोदी जी और अमित शाह जी आप की हैसियत उस महतमा के सामने क्या हैं , जिसे दुनिया आज भी इंसानियत और अहिंसक आंदोलन का जनक मानती हैं | लगभग 87 देशो में महात्मा की मूर्ति लगी हैं और उनके नाम पर मार्ग हैं | परंतु मोदी जी की पार्टी के सांसद अन्नत हेगड़े महात्मा के संघराश को "”ड्रामा " बताते हैं | प्रज्ञा ठाकुर गोडसे को देश भक्त कहती हैं , पर मोदी जी इतने कमजोर हो गए हैं {{ अथवा रणनीति के तहत }} की वे इन लोगो की अनुशासान हीनता पर दंड नहीं दे पाते | अब लोग इसे बीजेपी का नाटक बताते हैं --क्योंकि 30 जनवरी को जब नरेंद्र मोदी जी राजघाट पर महात्मा की समाधि पर फूल छड़ा कर माथा नवा रहे थे लगभग उसी समय हेगड़े जी का प्रवचन चल रह था | क्या संयोग है अथवा प्रयोग हैं ? समय ही बताएगा \