लोकतंत्र संविधान से नहीं चलता है --वह नागरिकों के निश्चय और समझ से चलता है !
मुद्दा यह हुआ की भारत के संघीय गणराज्य में { संविधान के अनुसार } अब मोदी सरकार विविधता को समाप्त कर "”एकरूपता "” लाना चाहती है | अब मामला संसद और देश की राज्य सरकारों पर है की वे इस संविधान संशोधन के बारे में क्या निश्चय करते हैं | परंतु मोदी सरकार का यह निर्णय तब अनेक शंकाये उत्पन्न करता हैं , जबकि देश में निर्वाचन आयोग की कार्य प्रणाली और e v m के प्रयोग के बारे में "”अविश्वास "” का वातावरण बना हुआ हैं | वैसे सरकार द्वरा "”एक देश एक चुनाव "” के तहत लोकसभा - तथा राज्यों की विधान सभा और जिला पंचायत के चुनाव "निश्चित अवधि " के लिए कराए जाने का विधान हैं | इस कानून को लागू करने के लिए अनेक राज्यों की विधान सभाओ की अवधि को घटना अथवा बदाना पड़ेगा | क्यूंकी सात दशक के लोकतंत्र में अधिकांश प्रदेशों में अल्पमत मे सरकारों के आने के बाद "मध्यवधि" चुनाव हुए हैं | अर्थात यह एक "” ऐसा संशोधन होगा -जो लोकतंत्र की आत्मा को ही बदल देगा ! इसके जवाब मैनमोदी सरकार का जवाब है की साल भर कांही ना कांही राज्यों मे चुनाव होते रहते हैं | लोकसभा के भी उपचुनाव अनेक कारणों से कराने पड़ते हैं | सरकार का बहुत अधिक धन इन चुनावों की व्यवस्था करने में लगता है --- जो बहुत अधिक धन तथा सरकारी साधनों से होता हैं | अब सरकार धन बचाने के लिए ही यह व्ययस्थ करना चाहती है की चुनाव सिर्फ और सिर्फ पाँच साल बाद ही हो | जिससे मंत्रियों और राजनीतिक दलों को "” अपना काम काज करने का अवसर मिले ! {वैसे यह काम काज क्या होगा ,पता नहीं }अर्थात नेताओ को चुनवी दौरों और जनता से संवाद करने की कवायद से राहत मिले | अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में बीजेपी के मंत्री या नेता पत्रकारों को तभी तक मंजूर करते है ---जब तक उनसे जमीनी हकीकत अथवा शासन की खामियों के बारे में पूछ ताछ नहीं की जाती ! ऐसे सवाल उठाने वाले अखबार कर्मियों पर नजर रखी जाती है |अर्थात सरकार के नुमाइंदे सिर्फ अपनी "”कहानी"” सुनाना और छपवाना चाहते है ! स्वभाविक है ,कोई भी नेता या अफसर अथवा बाबू अपनी जिम्मेदारी पर सार्वजनिक रूप से जवाब नहीं देना चाहता |
अब सरकार के इस प्रस्ताव पर देश में कांही कोई "” जनता में प्रतिक्रिया नहीं है | इसलिए क्यूंकी भाजापा शासित प्रदेशों में अन्य राजनीतिक दलों के दफ्तरों पर छावनी जैसी "”सुरक्षा "” है | साथ ही सरकार या उसके मंत्री के विरुद्ध किसी भी प्रकार का धरना या प्रदर्शन की जिला प्रशासन अनुमति ही नहीं देता | संविधान प्रदत्त "”असहमति जताने "” के अधिकार को बुलडोज़ कर दिया गया हैं | यह उस पार्टी द्वरा किया जा रहा जिसके राज में मस्जिद टोडी गई थी ! अब तो पेयजल या बिजली कंपनी की शिकायत को लेकर भी कोई विरोध नहीं किया जा सकता |
अब इसके मुकाबले दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति नू द्वरा राजनीतिक असहमति रखने वाले दलों को दबाने के लिए "”देश में मार्शल ला "” की घोसन की थी !! जिसका तात्कालिक विरोध हुआ | फलस्वरूप छह घंटे में ही राष्ट्रपति को अपनी घोषणा वापस लेनी पड़ी | वनहा के विपक्षी सांसद और जनता ने सड़कों पर आकार फौज की संगीनों के सामने विरोध प्रदर्शन किय
दूसरी घटना ब्रिटेन की यानि की दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की
{ वनहा गडतंत्र नहीं -राजतन्त्र है } मे लेबर सरकार ने किसानों पर नए टैक्स का प्रस्ताव किया -- परिणाम स्वरूप लंदन की सड़कों पर भीमकाय ट्रॅकटरों का जुलूस निकाल गया | किसानों ने फसल उगाने से मना कर दिया अगर सरकार ने अपना फैसला वापस नहीं लिया ! यह दो घटनाए बताती है की लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए राजनीतिक दलों को ही नहीं वर्ण देश के मतदाताओ को आगे आना पड़ेगा | अन्यथा सरकार तो सायं - दंड -भेद से अपनी मनमर्जी चलाएगी | अब फैसला देश्वसियों के हाथ में है |
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