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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 9, 2021

 

सुलह का झण्डा नहीं -मोदी जी ने किसानो को डंडा दिखाया हैं -

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किसान आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता यही हुई की "””मोदी जी उर्फ साहब "” को 72 दिन बाद समस्या के निदान के लिए कमान खुद हाथ में लेनी पड़ी ! वरना जनता की ज्वलंत समस्याओ पर वे आध्यात्मिक नुस्खे समझाते हैं | पहली बार उन्हे जन प्रतिनिधियों की सभा में अपने किए की सफाई देनी पड़ी | परंतु वे अपनी सरकार के किए गए फैसलो को बताने के बजाय "” दिवंगत नेताओ "”” के ::नेम ड्रापिंग "” करते रहे |अपनी ज़िम्मेदारी से बचते हुए ----उन्होने क्रशि में क्रांतिकारी परिवर्तन और बड़े बाज़ार के निर्माण की विगत सरकारो को भी आज की स्थिति के लिए जिम्मेदार बताया | मोदी जी ने यानहा तक कहा की "”वे तो मनमोहन सिंह जी के काम को ही पूरा कर रहे हैं "” |

आंदोलन पर अपने समर्थको की टिप्पणियॉ को आगे बदते हुए कहा की "” आन्दोलन में बैठे व्रध और महिलाओ -बच्चो को आंदोलन के नेताओ को घर वापस भेज देना चाहिए | हस्बमामूल उन्होने बिना बोले यह साफ कर दिया की "” कानून तो वापस नहीं होगा ,” शायद किसी को वादा कर दिया हैं | अब वादा जनता से होता तो जुमला बन सकता था -पर "सहयोगी या कहे मददगार "” को बात देना गंभीर बात हैं |

उधर समझौते के प्रस्ताव पर किसान यूनियन ने रजामंदी वयक्त की हैं | पर टिकैत ने भी साफ कर दिया की हम अक्तूबर तक इंतज़ार करेंगे की सरकार तीनों कानून वापस ले | तब तक हम दिल्ली के चारो ओर बैठे रहेंगे | ऐसी हालतमें जब दोनों पार्टियो का रुख है की पंचो की रॉय सर माथे पर , परनाला तो वनही से बहेगा तब किस प्रकार से समाधान होगा ? 11 बार वार्ता होने के बाद भी जब कोई हल की आशा नहीं निकली ! तब इस बार की वार्ता महज रशम अदायगी ही होगी --- जैसा की भारत और चीन की सीमा वार्ता में होता हैं |घंटो -घंटो वार्ता के बाद अंतिम परिणाम यही होता है की "”अगली बैठक कब और कान्हा तथा किस समय होगी "” | यानि तारीख पर तारीख बस |

जिस प्रकार राज्य सभा में मोदी जी ने अपनी पुरानी कला में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया वह अब बहुत घिसा -पिटा हो गया हैं |साथ ही वे स्वयं को सर्वज्ञ पीठ का स्वामी समझते हुए सबके हित के लिए खुद को ही अंतिम निर्णायक मान रहे हैं | अब अपनी ज़िद्द के लिए वे आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनो की पूरी तरह अवहेलना कर रहे हैं | जिसका खामियाजा बीजेपी को आगामी विधान सभा चुनावो में भोगना पड सकता हैं |

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अपने भाषण में मोदी जी ने अनेक नए शब्दो को गड़ा-- आन्दोलंजीवी - आंदोलन परजीवी और एफ़डीआई का नया अर्थ - फारेन डिस्टरकटिव आइडिया [जबकि इसे फारेन डाइरेक्ट इनवेस्टमेंट ] बताया | नीति आयोग के मुख्या कार्यपालन अधिकारी का यह कहना की "”देश में कुछ ज्यदा ही लोकतन्त्र हैं "” कोई अनायास बयान नहीं हैं ---वरन इशारा है की देश में नए किश्म का लोकतन्त्र अब सरकार लाने को है ! जिसमे सरकार ही राष्ट्र है और राष्ट्रवाद ही लोकतन्त्र हैं | लोक का भला '’’ तंत्र '’ या शासन ही जानता हैं | लोग तो नासमझ हैं | जिस सरकार में नेत्रत्व नागरिकों को महज एक '’संख्या '’ माने तो उसके लिए ऐसे '’’नासमझो '’’ से कैसी बात ? वही किसान आंदोलन में हो रहा हैं |

रूस में राष्ट्रपति पुतिन के वीरुध भ्रस्ताचार की पोल खोलने वाले नोवोतनी की गिरफ्तारी पर भी लगातार आंदोलन प्रदर्शन हो रहे हैं | पड़ोसी म्यांमार में भी जनतंत्र को खतम कर फौज के जनरलो ने सत्ता हथिया ली है | अब वनहा युवा और छात्र सडको पर प्रदर्शन कर रहे हैं | आखिर तंत्र या सरकार जब नागरिकों की अनदेखी करे और उनके अधिकारो को कुचले ------ तब निरीह नागरिक आंदोलन के अलावा क्या कर सकता हैं |

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कहते हैं की '’’ हाकिम का हुकुम फौज -फाटे से नहीं , रुतबे से चलता हैं '’ पर मौजूदा सरकार का रुतबा और '’कौल '’ दोनों ही शक के दायरे में है | या करो --काला धन वापस ला कर -सभी को 15 लाख देने का '’’’जुमला '’साबित हुआ | नोटबंदी ने गरीबो की जमा को निकलवाया ,जो उनकी बचत हुआ करता था | हारी - बीमारी में घर की महिला के आँचल से कुछ ना कुछ मदद हो ही जाती थी | नोटबंदी और उसके बाद सरकार द्वारा लगातार मुद्रा की शकल को '’रंगीन '’ बनाने से उस की रही सही इज्ज़त भी नहीं रही |बस इस्तेमाल करो और आगे बढो --- फलस्वरूप बचत करने का जज़्बा ही खतम हो गया | जिससे की देशबंदी के दौरान मज्दुरों को अपना सामान बेचना पड़ा |400 किलो मीटर साइकल हाला कर अपने पिता को झारखंड स्थित घर पाहुचने वाली साहसी बालिका को पुरानी साइकल के भी आठ हज़ार रुपये देने पड़े | अब जो सरकार लाखो मजदूरो की परेशानी और भूख -प्यास के बारे में ----परेशान नहीं हुई | वह लाख किसानो के धरणे पर बैठने से और 207 लोगो के जान जाने के बाद भी नहीं --पसीजी क्या वह टिकैत -दर्शन लाल और अन्य नेताओ के आंदोलन से झुकेगी ? अब यह तो वक़्त बताएगा |