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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 4, 2018


विधि शास्त्र का सूक्त है "” केवल न्याय किया जाना ही पर्याप्त नहीं है ,, वरन ऐसा लगे भी की "न्याय किया गया है "” इस कसौटी पर विगत कुछ समय मे सर्वोच्च न्यायालय द्वरा किए गए फैसले "” सटीक प्रतीत नहीं हो रहे है ! | जज लोया और जुस्टिस जोसेफ का मामला तो न्यायपालिका का ही है ---परंतु कावेरी जल बंटवारा और अनुसूचित जाति और जनजाति, अत्याचार निवारण अधिनियम को संशोधित करने पर प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति मनोहर खानविलकर एवं न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की पीठ के निर्देश और फैसले "" इंसाफ देते हुए नहीं लगते ""
एक सवाल क्या आगामी 25 दिनो मे जुस्टिस जोसेफ सुप्रीम कोर्ट मे शामिल हो संकेंगे ?? संकेतो से तो नहीं लगता |

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विगत कुछ समय मे सर्वोच्च न्यायालय के अनेक न्ययिक और प्रशासनिक फैसलो से लोगो के मन मे पूरी तरह से संतुष्टि नहीं है | अनेक बार पीठ के सवालो और वकीलो के जवाब पर जो रूख सार्वजनिक हुआ है ---- पूर्ण रूप से संदेह से परे नहीं है | कभी कभी लगता है की एक सिधान्त को सीमित स्तर पर तो मानी किया परंतु अन्य स्थितियो मे उसे नहीं मान्य नहीं किया गया ! गुरुवार को पीठ ने कावेरी जल बंटवारा प्राधिकरण के बारे मे केंद्र से 8 मई तक जवाब पेश करने का निर्देश दिया | अब सभी को यह मालूम है की कावेरी के जल के बँटवारे को लेकर कर्नाटक और तामिलनाडु की जनता बहुत संवेदनशील है | पानी के इस मुद्दे पर तमिलनाडू मे लोगो ने " आतमदाह "भी किया है | विधान सभा चुनाव के चलते कर्नाटक की सिधदारमैया सरकार को किसी भी तरह से मुश्किल मे डालने वाला यह फैसला --- समयोचित तो बिलकुल नहीं है "” | यद्यपि केंद्र सरकार की ओर से अट्टार्नी जनरल वेणुगोपाल ने अदालत को बताया की मंत्रिमंडल के सदस्य इस समय चुनव मे व्यस्त है , अतः और समय दिया जाये " इस पर पीठ की ओर से यह कहा जाना की हमे इसे कोई मतलब नहीं है !! न्याय तो नहीं कहा जाएगा | अब कर्नाटक सरकार ने साफ किया है की वह प्रदेश के नागरिकों के खेतो और उनको प्यासा रखकर तामिलनाडु को पानी नहीं दे सकता | पूर्व प्रधान मंत्री देवगौड़ा ने भी मुख्यमंत्री को चेतावनी दी है वे तामिलनाडु को पानी दिया जाना सहन नहीं करेंगे , जनता पार्टी के नेता की इस धम्की के बाद कोई भी दल जो चुनाव मे भाग ले रहा है वह"” सुप्रीम कोर्ट के इस संबंध मे आदेश की की अवज्ञा ही करेगा "” !!

कुछ ऐसा ही रुख एससी एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम मे सुप्रीम कोर्ट की इसी पीठ ने गुरुवार 3 मई को सुनवाई करते हुए ----केंद्र सरकार की इस दलील को ठुकरा दिया की वे अपने पहले के फैसले पर पुनर्विचार करे ! पीठ के अनुसार "” रिपोर्ट लिखाते ही गिरफ्तारी जीवन के अधिकार मे व्यवधान है ! आपातकाल मे भी इसी जीवन जीने के अधिकार पर बहस हो चुकी है | तब सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियमित व्यवस्था के अंतर्गत इस अधिकार पर नियंत्रण की बात काही थी , इस फैसले को बाद मे बड़ी बेंच ने निरस्त कर दिया था "” | अगर प्रधान न्यायधीश की पूर्ण पीठ के "” बिनासबूत गिरफ्तारी को जीवन जीने के अधिकार मे व्यवधान मानटे हुए ---केंद्र सरकार की स्थगन की मांग को नामंज़ूर कर दिया !! अब अगर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश की पीठ के इसी "” सूत्र वाक्य को "” को कानून की परिभाषा की कसौटी मे देखे ------तब लगेगा की सम्पूर्ण क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के अंतर्गत पुलिस की कारवाई "” गैर कानूनी हो जाएगी "” ! क्योंकि साधारण तौर पर प्राथमिकी लिखे जाने के बाद पुलिस नामित अथवा जांच मे बाद पता चले दोषी को ------ कोड की धारा के अनुसार गिरफ्तार करती है | अब "”जीवन जीने के अधिकार की व्याख्या "” से किसी को बिना सबूत के बंदी ही नहीं किया जा सकता !!! शांति - व्यवस्था के लिए निरोधक कारवाई मे हिरासत मे लेने की प्रशासन की कवायद भी गैर कानूनी हो जाएगी !!!!! इस निर्देश से तो देश मे अराजकता व्यापात हो जाएगी !अदालतों पर बहुत काम बड जाएगा --- इस सवाल का जवाब तो साफ करना होगा की "””गिरफ्तारी पर रोक की कारवाई सिर्फ दहेज निरोधक और एससी एवं एसटी अत्याचार निरोधक कानून के संबंध तक ही सीमित रहेगी अथवा सभी गिरफ्तारियों पर भी लागू होगी ?? वैसे इस प्रतिबंध का लाभ समाज "”” के सवर्ण वर्ग के लोगो को ही होगा "” |क्योंकि अधिकतर इन कानून मे उनके वीरुध ही कारवाई होती है !!!
देश की नयायपालिका द्वरा अपनी "” बिरादरी के दो सदस्यो को न्याय देने मे विफल रहने का भी मामला है | जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच से प्रधान न्यायाधीश की पीठ का इंकार करते हुए याचिका को "” राजनीति प्रेरित "” होने का आरोप लगाया था !! वनही उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट मे पदोन्नति को केंद्र सरकार द्वारा नामंज़ूर किए जाने का मसला भी है | सोहरबुद्दीन हत्या मामले की सुनवाई कर रहे जज लोया की '''संदेहजनक स्थितियो मे मौत होना इंसाफ की डगर पर चलने वालो को भयभीत कर रहा है "” ! उनके मन मे यह भय है की सत्ताधारी दल और उसकी सरकार के खिलाफ कोई फैसला ''' घातक ''' हो सकता है |पूर्व प्रधान न्यायधीश लोढा का यह कथन की "” जिन चार जजो ने गवाही दी है --- उनसे आम गवाहो पर लागू नियमो की भांति - वकीलो को उनसे जिरह की इजाजत कानूनन जरूरी है | इतना ही नहीं लोया के मामले की पैरवी कर रहे नागपूर के एक वकील की "”अदालत की सातवी मंजिल से गिर कर मौत भी संदेह के घेरे मे है ? लोया के मामले मे एक रिटायर जज ने भी अपनी हत्या किए जाने की आशंका जताई है !! अब वकील की संदेहस्पद स्थिति मे मौत और जज द्वरा अपनी जान का खतरा बताया जाना – न्याय और कानून की नजरों बुरा है "! आखिर पीठ को लोया मामले मे राजनीति किस "”” दस्तावेज़ अथवा शपथ पत्र की किस धारा से '' दिखाई पड़ी ? क्यो आपराधिक मामले मे कुछ गवाहो को "””जिरह से छूट दी गयी ?? और ऐसा करने का कार्न क्या इतना ही था की वे जज थे ? अगर ऐसा है तब जुस्टिस कुदूस की सीबीआई द्वरा गिरफ्तारी पर रोक लगाना – ठीक है क्या ?? मै यनहा राष्ट्रपति वी वी गिरि द्वरा उनके चुनाव के वीरुध दायर याचिका मे गवाही देने खुद "”सुप्रीम कोर्ट मे आए थे "” वैसे उन्हे अदालत ने कहा था की यदि वे चाहे तो वकीलो को उनके आवास पर भेजा जा सकता है "! परंतु उस मजदूर नेता ने न्यायालय की गरिमा को श्रेष्ठ बताते हुए "”साधारण नागरिक की भांति सुप्रीम कोर्ट मे पेश हुए "” ! उनसे वकीलो ने जिरह भी की | अगर देश का राष्ट्रपति अदालत मे पेश होकर बयान दे सकता है और उससे वकील जिरह कर सकते है -
लखुभाई पाठक के मामले मे प्रधानमंत्री के रूप नरसिंहा राव कड़कदुमा की अदालत मे एसएन ढींगरा के समक्ष एक अभियुक्त के रूप मे पेश हुए !! उन्होने बाकायदा बयान दर्ज़ कराया और अभियोजन सीबीआई के वकील ने जिरह भी की | श्रीमति इन्दिरा गांधी को मोरार जी भाई की जनता सरकार ने भ्रस्ताचर के आरोप मे बंदी बना कर जेल मे रखा | पूर्व प्रधानमंत्री के प्रोटोकाल को तत्कालीन सरकार ने नहीं माना और उन्हे जेल मे ही अदालत लगाकर सुनवाई की गयी |
अब इतनी बड़ी हैसियत के लोगो से तो '''बड़े ''' वे चार जज नहीं ही हो सकते --- प्रोटोकाल मे [[[ आर्डर ऑफ पृसीडेन्स ]]] मे इन जिला जजो का स्थान काफी नीचे ही होगा ||

अब तक की कालेजियम की कारवाई से यह इंगित होता है की जुस्टिस जोसेफ की पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट मे होना कठिन ही नहीं असंभव है | 2 मई को कालेजियम की बैठक मे जुस्टिस जोसेफ का मामला नहीं आया | अबा दूसरी बैठक कब होगी मालूम नहीं !! उधर जुस्टिस जोसेफ उत्तराखंड उच्च्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद से 30 जून को मुक्त हो जाएंगे || उस दिन वे 60 वर्ष के हो जाएँगे जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशो के अवकाश प्राप्त की निर्धारित आयु है | प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा ने खुली अदालत मे 100 वकीलो की ओर से याचिका पेश करते हुए इन्दिरा जयसिंह से कहा की आप की सहयोगी इन्दु मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप मे "”” नामित किया गया है "” आपको खुशी नहीं है ? “ तब इन्दिरा जयसिंह ने जुस्टिस जोसेफ का मसला उठाते हुए कहा की कालेजियम ने जब दो नाम सरकार को भेजे थे --- तब एक को मंजूर किए जाने पर आपति है ,आप उन्हे शपथ नहीं दिलाये | इस पर दीपक मिश्रा ने कहा की सरकार को "”नाम वापस करने का हक़ है "” | उन्होने उपस्थित वकीलो को भरोसा दिलाया की जल्दी ही कालेजियम की बैठक करके जुस्टिस जोसेफ का नाम दुबारा भेजा जाएगा "”| अभी तक की परंपरा के अनुसार कालेजियम द्वरा एक बार नामंज़ूर हुए नाम को जब दुबारा भेजा जाता है --तब सरकार को उसे मंजूरी देना बाध्यता है | लेकिन 25 दिनो मे मंजूरी मिलना नामुमकिन सा लगता है |