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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 29, 2017

कौन ना मर जाये माल्या की सादगी पर की लड़ते है मगर हाथ मे तलवार नहीं --कटोरा है -मदद का - दान का या भीख का ??
लंदन से शराब के मशहूर कारोबारी और हिंदुस्तान के तड़क -भड़क वाले विजय माल्या का की हमने तो सरकार से किंग फिशर एयर लाइन को बचाने के लिए मदद मांगी थी | क़र्ज़ नहीं ! अब कौन उनसे पूछे की जब वे बैंको मे अपनी कंपनियो की जायदाद गिरवी रख रहे थे --तब उन्हे नहीं समझ मे आया की वे उधार ले रहे है ? जिसे उन्हे ब्याज सहित चुकाना पड़ेगा ?

उन्होने कहा की वे तो बस जिस तरह से सरकार एयर इंडिया को घाटे के समय मदद करती है ,,उसी प्रकार उन्हे भी मदद दे | अब कितनी भोली बात काही है सब समझेंगे की उनकी मांग जायज है | परंतु वे भूल जाते है की एयर इंडिया भारत सरकार का सार्वजनिक उपक्रम है | किसी की जायदाद नहीं | नहीं जैसा की किंग फिशर हवाई कंपनी | जिसके लाभ - हानि किसी की या फिर कुछ लोगो की नहीं होती है | पूरे देश की होती है |
एयर इंडिया के कैलेंडर मे अधनंगी माडलो की उत्तेजक तस्वीरे होती है | जिस कैलेंडर को पाना और घर मे रखना शान मानी जाती है | एयर इंडिया के गोवा मे रिज़ॉर्ट नहीं है जनहा धन पशु सैलानी अय्याशी करने के लिए माल्या जी का आतिथ्य स्वीकार करते है | जो आसानी से नहीं मिलता | इस सरकारी कंपनी मेकाम करने वालो को वक़्त से वेतन और भत्ते मिलते है | जहाज मे किंग फिशर की भांति फ्री की शराब नहीं दी जाती है |

माल्या जी आप ने हवाई कंपनी अपने शौक के लिए चलायी की आप जनहा भी जाये अपनी कंपनी के यान से जाये | परंतु एयर इंडिया किसी के शौक के पूरे करने के लिए नहीं वरन देश के मंत्रियो और महत्वपूर्ण अतिथियों के लिए चलायी जा रही है | उसके भी लाभ - हानि के ब्योरे पर संसद मे बहस होती है | अधिकारियों को अपने फैसले पर जवाब देना पड़ता है | जो की आप की किंग फिशर मे के "”तो आला हज़रत "” आप खुद ही थे | सारा स्याह - सफ़ेद के जिम्मेदार भी आप ही थे |

क्या आप को नहीं मालूम की अर्थशास्त्र की भाषा मे "””मदद'' का मतलब क़र्ज़ ही होता है | आप मदद का मतलब कही "”दान "” तो नहीं समझ लिया की आप को दान या भीख मिलेगी | मेरे समझ से इतना भोला उद्योगपति तो कोई होगा नहीं |
कांग्रेस् के एहसान फरामोश मुख्य मंत्री - अब
अभी हाल मे ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्य मंत्री रहे और इन्दिरा जी के मंत्रिमंडल के केन्द्रीय मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने पचास वर्षो की अपनी प्रजा समाजवादी पार्टी से शुरू होकर कांग्रेस की राजनीतिक यात्रा मे उस समय कलंक लगा लिया जब वे अपने अदालत से घोषित पुत्र शेखर के लिए बीजेपी के दिल्ली मुख्यालय मे अमितशाह से मिलकर उसे पार्टी मे शामिल करा दिया | अभी 28 जनवरी को कर्नाटका के दो बार मुख्य मंत्री रहे और केंद्र मे भी मंत्री रहे एस एम कृष्ण ने दल की प्राथमिक म्सदस्यता से इस्तीफा पार्टी आद्यकश सोनिया गांधी को भेज दिया है | रविवार को वे प्रैस कोन्फ़्रेंके कर के बताएँगे की उनका मोहभंग क्यो हुआ | परंतु वे इसका ज़िक्र बिलकुल नहीं करेंगे की पार्टी ने उन्हे कितना सम्मान दिया |
उनके बाद नंबर आता है उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा के पुत्र शेखर बहुगुणा का | जिनहोने पार्टी हाइ कमान से अनबन होने पर कांग्रेस् से इस्तीफा देकर साथियो सहित भारतीय जनता पार्टी मे आमद डाल दी | उसके कुछ दिनो बाद ही उत्तर प्रदेश की काँग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा ने भी पार्टी से रवानगी डाल दी और भगवे की साया मे चली गयी जिसे वे हमेशा गाली देती रही इस से यह साबित हो रहा है की अब राजनीतिक दलो के सिधान्त पत्र और उनके घोषणा भी महज एक खानपुरी ही है | वे

Jan 24, 2017

कटनी कांड मे आखिरकार मंत्री संजय पाठक से 500 करोड़ के हवाला कांड मे पूछताछ ईडी ने शुरू की पर पुलिस ने बरामद दस्तावेजो को देने मे हिला - हवाला किया
साल की शुरुआत कटनी के खनन फर्म एस आर मिनरल्स के लिए हॅप्पी न्यू ईयर ना होकर कुछ डरावनी साबित हुई | जब 7 जनवरी को हवाला के शक मे दो व्यक्तियों बर्मन और संजय तिवारी को बंदी बनाया गया | तब यह राज़ खुला की ठेला भर कर बरामद दस्तावेज़ वास्तव मे एस आर मिनरलस से संबन्धित है | जिनमे उनके द्वरा किए गए लेन-देन के वाउचर है जिनसे पता चलता है की काफी बड़ी मात्रा मे रुपये इधर से उधर किए गए है |

ज़िला पुलिस कप्तान गौरव तिवारी की इस कारवाई से घबड़ा कर संजय तिवारी ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान देने की मंशा ज़हीर की | उसने बयान मे सरावगी बंधुओ का तथा मंत्री संजय पाठक का नाम उजागर किया | जब यह खबर बाहर आई तब सरकार मे हलचल मच गयी | मामला एक ऐसे मंत्री से जुड़ा था जो सत्तारूद पार्टी के लिए बहुत "”कीमती "” थे | आनन -फानन मे सरकार हरकत मे आई और पुलिस कप्तान गौरव तिवारी को ज़िले से चलता कर छिंदवाड़ा रवाना कर दिया और उनके स्थान पर शासन के प्रिय राजी पुलिस सेवा के शशि कान्त शुक्ल को तैनात कर दिया | जिनहे अपुष्ट खबरों के अनुसार की गयी पुलिस कारवाई को ढिलका करना था |

पुलिस अफसर के तबादले को लेकर कटनी मे जन आंदोलन शुरू हो गया - जिसको पुलिस के डंडे से काबू मे किया गाय | इस संबंध मे हाइ कोर्ट मे दायर याचिका को कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश राजेंद्र मेनन और अनुराग श्रीवास्तव की पीठ ने "” दुर्भावना से प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया "” यह भी टिप्पणी की मंत्री को बदनाम करने के लिए यह वाद प्रस्तुत किया गया है |
परंतु इस फैसले के दूसरे ही दिन धनशोधन निरोधक अधिनियम के तहत 500 करोड़ के काले धन को एक्सिस बैंक के अधिकारियों से मिलकर ठिकाने लगाया है | इस प्राथमिकी के दर्ज़ करने के बाद मंत्री संजय पाठक से भी पूछ -ताछ की गयी |

अगर उच्च न्यायालय संजय तिवारी के कलाम बंद बयान को मँगवा कर देख लेती तब शायद साफ हो जाता की कैसे एक बीपीएल कार्ड धारी संजय तिवारी एस आर मिनरल्स का डाइरेक्टर हो गया | परंतु लगता है और बड़े मामलो की भांति ही इस केस को भी पुलिस दाखिल दफ्तर कर देगी | एका बार फिर नियम और कानून पराजित होगा |
बनना ट्रप का राष्ट्रपति और होना विरोध दुनिया भर मे --
महिलाओ का विरोध क्या रंग लाएगा ??

बीस जनवरी को पद की शपथ लेने के समय वाशिंगटन के कैपिटल हिल मे जितने ट्रम्प समर्थक एकत्रित हुए थे ----उसके दस गुना महिलाए चौबीस घंटे बाद उसी स्थान पर नारे लगा रही थी "”” ट्रम्प मेरा राष्ट्रपति नहीं है और ट्रम्प अमेरोका नहीं है "”” | किसी भी अन्य 44 पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों का ऐसा विरोध कभी नहीं हुआ | विरोध की यह लहर समूचे यूरोप मे फ़ेल गयी थी | ब्रिटेन मे हो अथवा फ्रांस या फिर जर्मनी या सिडनी मे हो – महिलाओ का ट्रम्प विरोध पूरी दुनिया मे एक '''रेकार्ड "” बन गया है | शायद ही कभी किसी अन्य उद्देस्य के लिए दुनिया भर मे इतना जन - समर्थन सड्को पर उमडा हो |

परंतु इस विलंबित आक्रोश का क्या फल होगा सकता है ? किसी को नहीं मालूम | इतना तो निश्चित है की डोनाल्ड ट्रम्प इस विश्वव्यापी आक्रोश से तनिक भी विचलित नहीं है | फिर क्या यह निस्वार्थ महिला सम्मान बचाओ प्रयास निष्फल हो गया ?? भले ही पचास राज्यो की आधी आबादी [महिलाए ] उन्हे नफरत की निगाह से देखती है --उन्हे एक स्त्री विरोधी और घटिया इंसान मानती है | पर इन सब समवेदनाओ से क्या हुआ अथवा क्या होगा --इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं | ट्रम्प ने चुनाव प्रचार के समय कहा था - उसकी शुरुआत भी उन्होने पहले दिन से करी ओबामा हेल्थ केयर को खतम करने का प्रशासनिक आदेश देकर | परंतु उनका यह आदेश भी निष्फल होगा जब तक काँग्रेस उनके कदम को मंजूरी ना दे | फिलहाल तो उनकी ही रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर और लोवर हाउस के सदस्य भी उनके विरोध मे है | जिनहोने कसमखुरानी की रष्म का बहिसकार किया था |
इस खींचातानी के माहौल मे वे एक छत्र रूप से शासन तो नहीं कर पाएंगे | उनके बड़बोलेपन ने उस पद की शालीनता और गरिमा को तो खतम ही कर दिया है | जैसा की भारत मे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पद के अनुरूप देश के नेता की गरिमा को खो कर एक राजनीतिक दल के भाकर - भकर नेता की हैसियत हासिल कर ली है जो तीस महिने बाद भी गंभीर नहीं हो पा रहे है | लेकिन ट्रम्प ने पहला वादा निभाया --परंतु मोदी जी ने तो किसी के भी खाते मे एक रुपया नहीं डाला -यह अंतर भी है |

दोनों ने ही अपने - अपने देश के बेरोजगार और असंतुष्ट महिला और यूवकों को "”अच्छे दिन का सपना दिखाया है "” अब भारत मे तो तीस माह बाद उस सपने की पदचाप भी नहीं सुनाई पद रही है | वैसे महिला आन्दोलंकारियों को विश्वास है की डोनाल्ड रोज़मर्रा की ज़िंदगी मे कोई बदलाव नहीं कर पाएंगे | सिर्फ खाने - पेनेय की वस्तुए महंगी हो सकती है |

दुनिया भर मे ट्रम्प के विरोध मे सड्को पर उतरी महिलाओ के साथ कुछ पुरुष भी थे | इतना तो तय माना जा रहा है की जिस प्रकार भारत मे बड़े औद्योगिक घरानो के हिट संवर्धन का काम मोदी सरकार द्वरा किया जा रहा है – वैसा ही ट्रम्प प्रशासान भी करेगा | उनके मंत्रिमंडल मे महिला और वंचितों की हाज़िरी भर है | परंतु कोई योजना नहीं | उनके पास भी आम आदमी को लुभाने वाले भावूक नारे है अमेरिका फ़र्स्ट और बंद कारखानो को चालू कर के काम के नए अवसर देने ----वे भी सैनिको के त्याग बलिदान की बात करते है जैसे भारत मे किया जा रहा है --परंतु सैनिको की मांगे नहीं मानी जा रही | दोनों नेताओ मे अहम और बड़ बोले पन का फूल स्टाक है
अब इन हालातो मे नारी आंदोलन की विशालता और त्वरितता विश्व के इतिहास मे एक मानक होगा----- परंतु इतने विशाल आंदोलन से जितने महान उपलब्धि की संभावना थी -वह केवल वक़्त के बाद किए गए इस प्रयास से हो गई | का वर्षा जब कृषि सुखाने --- ट्रम्प तो राष्ट्रपति बन ही गए भले ही अब उमके निशाने पर मीडिया और पूर्ववर्ती प्रशासन और उसके काम है | जिन पर हमला कर के वे काफी समय निकाल सकते है जैसे मोदी जी सत्तर साल का हिसाब मांङ्ग मांग कर निकाल रहे है | अंत मे भविष्य के सुनहरे सपने दिखा कर भूतकाल के गहरे अंधेरे का एहसास सबके लिए एक जैसा नहीं होता |

प्रधान मंत्री मोदी तो नोटबंदी करके 150 करोड़ जनता के मन मे तो है ----परंतु किस रूप मे है यह तो वक़्त ही बताएगा |

Jan 20, 2017

हैसियत तो बताइये जनाब - कितने के मालिक है आप ?

लोकपाल और लोकयुक्त अधिनियम के अंतर्गत सभी लोक सेवको को वर्ष भर मे अर्जित की गयी संपति का ब्योरा देना अनिवार्य है | परंतु सरकार और शासन के मंत्री और अफसर इस प्राविधान का जितनि अवमाननना कर सकते है ---उसे वे खुले आम बयान करने मे गुरेज भी नहीं करते | अखिल भारतीय सेवाओ के सदस्यो के लिए तो यह नितांत आयाशयक है | क्योंकि केन्द्रीय कार्मिक एवं नियुक्ति विभाग ने इस संबंध मे साफ परिपत्र भी जारी किए है | परंतु इन स्वयंभू देवताओ ने उसे भी अनदेखा -अनसुना कर दिया | उल्टे उन्होने परिपत्र के को ''अनावश्यक "” निरूपित किया |

नियम के अनुसार सभी अफसरो को स्वयं अपनी पत्नी और नाबालिग संतानों के नाम पर अर्जित संपति --जिसमे बीमा की पॉलिसी - शेयर - भूमि - भवन के अलावा बैंक के खाते और फ़िक्स्ड डिपॉजिट की जान करी देनी होती है | इतना ही नहीं यह जानकारी उन्हे ऑन लाइन सार्वजनिक भी करना परमावश्यक है | परंतु जिस प्रकार सरकार की योजनाए अस्सी फीसदी धरातल पर अवतरित नहीं होती है उसी प्रकार इस आदेश //निर्देश का भी पालन नहीं हो रहा है | परंतु राज्य शासन ने दूसरी और तीसरी श्रेणी के कर्मचारियो के लिए यह आदेश निकाला है --की यदि वे संपत्ति का ब्योरा नहीं देंगे तो उनकी प्रोन्नति नहीं की जाएगी |

इसे कहते है खुदरा फजीहत दीगरा नसीहत --खुद की हैसियत तो बहैसियत तो बताइये हुज़ूर - कितने के मालिक है आप ?

लोकपाल और लोकयुक्त अधिनियम के अंतर्गत सभी लोक सेवको को वर्ष भर मे अर्जित की गयी संपति का ब्योरा देना अनिवार्य है | परंतु सरकार और शासन के मंत्री और अफसर इस प्राविधान का जितनि अवमाननना कर सकते है ---उसे वे खुले आम बयान करने मे गुरेज भी नहीं करते | अखिल भारतीय सेवाओ के सदस्यो के लिए तो यह नितांत आयाशयक है | क्योंकि केन्द्रीय कार्मिक एवं नियुक्ति विभाग ने इस संबंध मे साफ परिपत्र भी जारी किए है | परंतु इन स्वयंभू देवताओ ने उसे भी अनदेखा -अनसुना कर दिया | उल्टे उन्होने परिपत्र के को ''अनावश्यक "” निरूपित किया |

नियम के अनुसार सभी अफसरो को स्वयं अपनी पत्नी और नाबालिग संतानों के नाम पर अर्जित संपति --जिसमे बीमा की पॉलिसी - शेयर - भूमि - भवन के अलावा बैंक के खाते और फ़िक्स्ड डिपॉजिट की जान करी देनी होती है | इतना ही नहीं यह जानकारी उन्हे ऑन लाइन सार्वजनिक भी करना परमावश्यक है | परंतु जिस प्रकार सरकार की योजनाए अस्सी फीसदी धरातल पर अवतरित नहीं होती है उसी प्रकार इस आदेश //निर्देश का भी पालन नहीं हो रहा है | परंतु राज्य शासन ने दूसरी और तीसरी श्रेणी के कर्मचारियो के लिए यह आदेश निकाला है --की यदि वे संपत्ति का ब्योरा नहीं देंगे तो उनकी प्रोन्नति नहीं की जाएगी |

इसे कहते है खुदरा फजीहत दीगरा नसीहत
--खुद की हैसियत तो बताएँगे नहीं लेकिन अपने अधीनस्थ को धम काएंगे की अगर नहीं दिया तो उसी पद पर सड़ते रहोगे |

Jan 18, 2017

अदालत ने मोदी सरकार से पूछा की जवानो को कैसा खाना दिया जाता है – आखिर यज्ञ प्रताप सिंह की आह लगी
सोशल मीडिया पर सीमा सुरक्षा दल के लांस नायक यज्ञ प्रताप सिंह का वीडियो जिसमे उन्होने पनीली दाल और जली हुई रोटी को दिखा कर 14 घंटे की सीमा की ड्यूटि के हालातो को उजागर किया था | पब्लिक मे इस विडियो ने बहुत हलचल मचा दी | इस विडीओ आने के बाद फौजी इंतिज़ाम के बारे मे सवाल किए जाने लगे | तब वर्दिधारी संगठनो के अफसरो ने "”इसे छोटी -मोटी" घटना बता कर रफ़फा - दफ़फा करने की कोशिस की | केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय भी "”मौन सिंह "”बन गया |

पर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश रोहिणी एवं जुस्टिस संगीता ने इस शिकायत पर गौर करते हुए देश के सभी केन्द्रीय सुरक्षा बलो और सरकार को नोटिस देकर पूछा है की उन्हे बताया जाये की सीमा पर जवानो को कैसा खाना दिया जाता है | इसी बीच अनदेखे सरकारी प्रयासो से समाचार पतरो मे अवकाश प्रापत अफसरो के बयान और लेख छापने लगे | जिससे इस सवाल को टरकाया जा सके | इसी कड़ी मे जनरल कादियांन का लेख छ्पा - जिसमे उन्होने खाने की इन शिकायतों को छोटी - मोटी घटना बताया !! उनके अनुसार जब कोई आदमी सैन्य संगठन मे भर्ती होता है तो उसे ''वनहा का अनुशसन मालूम होता है "” उसे अगरइससे कोई शिकायत है तो वह छोड़ सकता है | जनरल साहब ने जवानो को बहुत ही तुच्छ मानते हुए --जाली हुई रोटी और पनीली दाल की शिकायत को खारिज कर दिया | यही घटना अगर आफिसेर्स मैस मे होती तब जनरल साहब बावर्ची समेत रसोई के सूबेदार मेजर को भी तुरंत सज़ा सुना देते | परंतु यानहा बात सिपाहियो की थी इसलिए यह छोटी -मोटी बात थी | सेना और केन्द्रीय सुरक्षा बलो मे अफसर और जवानो के खाने की ज़िम्मेदारी सरकार की है | अफसर और जवान के मेनू भिन्न हो सकते है ---परंतु भोजन ऐसा हो जो उन्हे पौष्टिकता दे और स्वादिस्ट हो |

अब जो दायित्व सीमा सुरक्षा बल - केन्द्रीय सुरक्षाबल – भारतीय -तिब्बत सीमा पुलिस - असम राइफल तथा केन्द्रीय औद्यगिक बल तथा एस एस बी आदि के अफसरो को दिल्ली हाइ कोर्ट को जवाब देना होगा | कम से कम जवानो से आदमी की भांति व्यवहार करना होगा |

Jan 17, 2017

सुख -सुविधा -सफलता को जीती जवानी का बेसहारा बुढापा


समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह -जिनहोने जवानी मे अपने भाई शिवपाल सिंह के साथ साइकिल चला चला कर उत्तर प्रदेश मे सरकार बनाई --- आज वे अपनी ही संस्था से बाहर और बेघर कर दिये गए | कुछ इसी प्रकार देश मे खादी और चरखा को पहचान दिलाने वाले महात्मा गांधी या बापू आज खड़ी ग्रामोद्योग के कलेंडर और डायरी से भी बाहर कर दिये गए है | अब इसे समय की ही बलिहारी कह सकते है |
ऐसा क्यो हो रहा है की जो माता -पिता पेट काट -काट कर अपने लड़को को पढाते है ,,वे ही ''सुपुत्र'' नौकरी से अवकाश ग्रहण के पश्चात उनके साथ रहना पसंद नहीं करते ---- वे उन्हे व्रद्धाश्रम मे छोड़ जाते है | क्या यह आज की उपयोगिता आधारित थियरि है अथवा युवाओ की स्वतन्त्रता और बेरोक टोक व्यवहार मे इन बुजुर्गो की टोकाटोकी या फिर वे अपने बुजुर्गो का खर्च उठाने मे असमर्थ है
आज हम दुनिया के सम्पन्न देशो अम्रीका - ब्रिटेन -फ़्रांस आदि को देखे तो वनहा शेलटर होम है | भारत मे भी व्रध आश्रमो की संख्या तेज़ी से बढ रही है | जो इंगित करता है की आज आदमी अकेले रह कर कुत्ता या बिल्ली अथवा घोडा के साथ वक़्त बिता सकता है --पर इंसान के साथ नहीं | आखिर ऐसा क्यो हो रहा है ? प्र्क़्रती ने स्त्री --पुरुष मे '''काम'' {{सेक्स }} की भूख को शांत करने के लिए बनाया | परंतु इस आधुनिक सोच और सभ्यता ने पुरुष को पुरुष और महिला को महिला संग पति - पत्नी रहने की कानूनी इजाजत दी है | अब इस को विकास कहा जा सकता है ?? व्यक्ति की निजता क्या प्र्क़्रती के नियमो से भी ऊपर है ? शायद हाँ --- क्योंकि अब तो पुरुष भी “””जनने “” लगे है | अब मर्दाना और जनाना मे कोई अंतर नहीं रह गया है | क्योंकि अब सहवास -संभोग के लिए स्त्री - पुरुष का साथ -साथ होना ज़रूरी नहीं है |
संपन्नता सुख या आश्रय का प्रतिमान विगत शताब्दी मे भले ही रहा हो -पर इक्कीसवी सदी मे मे ऐसा नहीं है | यानहा विकसित और अर्ध विकसित देशो मे यह सब बुराइया अथवा परिवर्तन दिखाई देंगे | परंतु अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कम विकसित देशो मे आज भी पुरुष और स्त्री मिलकर ही परिवार बनाते है | संतति आगे बदाते है | परंतु यूरोप के विकसित देशो मे संतान को जीवन की गति का स्पीड ब्रेकर समझा जाता है | इसलिए शादीशुदा जोड़े { स्त्री - पुरुष ] भी संतानहीन रहना पसंद करते है | इसी सुविधा भोगी ड्राष्टिकोण ने जापान के व्रद्धजनों को सर पर छत और भोजन की निश्चितता मिलने के कारण चोरी करने पर मजबूर किया है | फोरथम यूनिवरसिटी की एसोसिएट प्रोफेसर टीना मसाची के अध्ययन के अनुसार 2015 मे जापान की जेलो मे बंद क़ैदियो मे 20% लोग 65 वर्ष से ऊपर के थे | अधिकतर ऐसे लोग छोटे - मोटे अपराध जैसे चोरी या उठाई गिरि के अपराधो के दोषी थे | उनका इतिहास उनके अपराध को आदत नहीं ''मजबूरी '' की ओर इंगित कर रहा है | चूंकि जापान मे नगरो मे रहना - खाना और कपड़ा बहुत महंगा हो गया है | पारंपरिक सभ्यता का औद्योगिक क्रांति मे लोप हो गाय है | अब गाँव मे कोई रहना नहीं चाहता और नगरो मे वे ही लोग रह सकते है जो '' काफी कमाते हो "” ऐसे मे अगर औसत दर्जे का व्यक्ति 65 या 70 वर्ष के बाद जेल मे भोजन और छट खोजे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए |

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Jan 16, 2017

हिन्दू एकता अथवा वेदिक धर्मियों की एकता ? संघ का उद्देस्य ----भागवत

कलकते मे उच्च न्यायालय की अनुमति मिलने के बाद राष्ट्रीय सेवक संघ की रैली को संबोधित करते हुए सर संघचालक मोहन भागवत ने उपरोक्त बयान दिया | हमेशा की तरह इस टकसाली बयान का कोई गुड अर्थ तो नहीं लगाया जा सकता है | क्योंकि संघ और उसके 29 आनुसंगिक संगठन और राजनीतिक चेहरा भारतीय जनता पार्टी को आम तौर पर विदेशी लेखक भी "”हिंदुवादी संगठन "” के रूप मे चित्रित किया गया है | जो काफी हद्द तक यथार्थ है | अक्सर बीजेपी को मज़हबी दंगो का जनक माना जाता है | हालांकि अदालती जाँचो मे वे ''दोषी '' नहीं सिद्ध हो पाये |

परंतु कानूनी नज़र से भले ही ये सभी संगठन मजहबी ना माने जाये \ परंतु आम लोगो की रॉय मे इनकी दो ही छवि है --- हिंदुवादी संगठन --जो की मुस्लिम और ईसाई धर्मो का कट्टर विरोध करता है | अक्सर इनके नेताओ के बयान काफी जहर उगलने वाले होते है | अयोध्या की बाबरी मस्जिद का विध्वंश का दोषी इनहि संगठनो के नेताओ को माना जाता है | सुप्रीम कोर्ट की अपील मे भी इन संगठनो के नेताओ के नाम ''अभियुक्त ''के रूप मे दर्ज़ है |

इन तथ्यो के संदर्भ मे भागवत जी का बयान उनके राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी के लिए थोड़ी ''कठिनाई '' तो पैदा ही करेगा | क्योंकि जल्दी ही पाँच प्रदेशों मे विधान सभा चुनाव होने है | ऐसे मे मुस्लिम मतदाताओ का अहम रोल होगा | उत्तर प्रदेश मे इनकी भूमिका तो निर्णायक है सरकार के गठन मे | ऐसे मे संघ के नेता से यह बयान आना की "”” संघ केवल हिन्दू एकता के लिए कटिबद्ध है "”” | इस का एक अर्थ यह भी है की बहुधर्मी और बहु संसक्रति वाले इस देश मे विविधता को समाप्त कर के ,एकरूपता यानि एक ड्रेस एक सोच वाला देश | जिसकी इजाजत भारत का संविधान नहीं देता |

लेकिन मोहन भागवत जी के इस बयान से यह तो सिद्ध है की उनका उद्देश्य भारत को एक ''हिन्दू राष्ट्र ''' बनाना है | अब यह इस देश की जनता और मतदाता की समझदारी पर निर्भर है की वे इस देश को सेकुलर बनाया रखना चाहते है --अथवा इसे एक धर्म का राष्ट्र बनाना चाहते है |
शिक्षा -- मंदिर का प्रसाद है - या किसी संस्थान की दुकान ? फोरम के अनुसार शिक्षा वस्तु नहीं और छात्र उपभोक़ता
मध्य प्रदेश सरकार ने निजी विद्यालयो पर नियंत्रण के लिए निश्चय तो किया है --परंतु वह भी स्कूल प्रबंधन के हित के लिए | उसमे छात्र और अभिभावक के हित की पूरी तरह से अनदेखी की गयी है | शासन मी मंशा इसी प्रावधान से उजागर हो जाती है की "” सरकार इन विद्यालयो की फीस पर नियंत्रण तो रखेगी पर यह नहीं तय कर पाएगी की फीस कितनी हो ? दूसरा मुद्दा ज़िला और राज्य स्तर पर बनने वाली समितियों मे अभिभावकों का कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं होगा ! अब यह कैसा नियंत्रण है वह तो सरकार के सचिव और मंत्री ही जाने | सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही मे निजी मेडिकल कालेजो की मनमानी फीस पर नियंत्रण लगाने का आदेश दिया था | तब इनके मालिको ने धम्की दी थी की भर्ती और फीस के नियम सरकार तय कर रही है तब वह खुद ही इन संस्थानो को चलाये | कई ने तो चाभी देने की पेश काश की थी | परंतु यह सिर्फ बंदर घुड़की ही साबित हुई | इस परिप्रेक्ष्य मे निजी विद्यालयो को दी जा रही रियायत समझ मे नहीं आती |
दूसरी ओर दिल्ली के उपभोक्ता फोरम ने एक छात्र की शिकायत पर फरमान सुना दिया की "””ना तो शिक्षा कोई वस्तु है और ना ही छत्र उपभोक्ता | मामला था की एक तकनीकी संस्थान ने इवैंट मानेजमेंट के डिप्लोमा के एक वर्षीय कोर्स के लिए 3.52 लाख रुपये लिए | यह वादा करते हुए वह उसे इनतेरन्शिप देंगे | ऐसा नहीं होने पर छत्र ने मुकदमा किया था | जिस पर फोरम ने उपरयुक्त फैसला दिया | सवाल यह है की जब शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है तब छात्र और संस्थान मे कौन सा रिश्ता है ?
                           पुरातन सभ्यता मे शिक्षा का महत्व बहुत अधिक है | प्राचीन काल मे श्रृषियो के आश्रम मे सभी जाते थे | उसके बाद गुरुकुल होने लगे जिनमे विविध विद्याओ के लिए अलग -अलग गुरु हुआ करते थे | फिर ईशा पूर्व तछशीला और नालंदा विषयाविदलयो का युग आया | इस समय तक गुरु और शिष्य की परंपरा थी | उसके बाद शिक्षा व्यसस्था बिखर सी गयी | अंग्रेज़ो के आगमन के बाद अमीर - उम्र के बच्चो के लिए विशिस्त संस्थान बने | जिनमे भाषा के साथ उन्हे राज़ दरबार के तौत तरीके तथा यूरोपियन वेश भूषा और टेबल मैन्नर्स सिखाये जाते थे | वस्तुतः इन स्कूलों मे इतने ही विषय पदाए जाते थे जिनसे वे अंग्रेज़ो की शिक्षा की परीक्षा पास कर ले | इन छत्रों मे बिरले ही उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन जाया करते थे | ऐसे स्कूलो मे लखनऊ का कोलविन ताल्लुकदार , ग्वालियर का सिंधिया स्कूल अजमेर का मेयो और रायपुर का राजकुमार तथा इंदूर का डेलि कॉलेज आदि |
आज़ादी के पूर्व 1935 मे जब ब्रिटिश शासित इलाको मे काँग्रेस की सरकरे बनी तब प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूलो का प्रादुर्भाव हुआ | महारानी विक्टोरिया के शासन काल की जुबली मनाने के लिए हर ज़िले मे एक इंटेर्मेडिएट स्कूल खोले गए | हालांकि महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विषविदयालाय और सर सैयद अहमद ने अलीगरह मुस्लिम यूनिवरसिटि की स्थापना कीथी | उधर कवि गुरु रवीद्र नाथ टैगोर ने बंगाल मे विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की थी | आज़ादी के बाद छात्राओ के लिए राजस्थान मे गंगाधर शास्त्री ने वनस्थली की स्थापना की | जनहा लड़कियो को घुड़सवारी - राइफल शूटिंग के अलावा तैराकी और नौकयान भी सिखाया जाता था +|
देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने इस ओर बहुत प्रयास किए | उन्होने विस्वविद्यालयों को वित्तीय रूप से सक्षम बनाने के लिए विशेस व्यवस्था की | देश की सभी संस्थानो मे विषयो की एक रूपता तथा प्राध्यापको के लिए नियम बनाए | परंतु उनके देहावसान के बाद उनका काम धीमा पड गया | किनही कारणो से इस ओर आज़ादी के बाद के बीस वर्षो मे अधिक कुछ उल्लेखनीय नहीं हुआ | हाँ जवाहर लाल नेहरू की दूर दर्शिता से देश मे तकनीकी शिक्षा के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी खुले | जिनकी ज़रूरत देश के आने वाली परियोजनाओ मे थी | यानहा से निकले इंजीनीयरों ने देश का नाम रोशन किया | |
बीसवी सदी के छठे दशक से कुछ उदारमना लोगो ने कालेजो की स्थापना की बिहार - उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र तमिलनाडू बंगाल मे ऐसे संस्थान आज भी चल रहे है | जाती विशेस या व्यक्ति विशेस के नाम पर स्थापित इन संस्थानो मे कोई साधारण तबके का भी बालक या बालिका शिक्षा प्रापत कर सकते थे |
देश मे शिक्षा की बदती भूख ने कुछ धनपतियों को सेवा के इस छेत्र मे व्यापार और लाभ की अपार समभावनए देखी | फलस्वरूप हर शहर और नगर मे मिशनरि संस्थानो और "”पब्लिक स्कूलो की बाढ"” सी आ गयी | इन निजी स्कूलो के पीछे प्रचार -प्रसार की संस्थाओ और भवन निर्माताओ की लॉबी अधिक कर के थी | जिनका मूल उद्देश्य कम पूंजी मे अधिक लाभ कमाना था | शैछिक संस्थाओ मे अपार सफलता के बाद इन लोगो ने जगह - जगह पर अपने नाम के उपयोग की अनुमति देकर एक प्रभावी लॉबी बना ली | जैसे दिल्ली पब्लिक स्कूल – | मिशनरी इस बुराई से दूर रहे | परंतु उन्होने अपने साधनो से अपने स्कूलो का प्रसार किया |
जैसा की लिखा जा चुका है की इन स्कूलो मे फीस के नाम पर प्रतिमाह सात से द्पंद्रह हज़ार रुपये लिए जाते है | ड्रेस और कितबे भी छत्रों को नियत कीमत पर पहले से नियत दूकान से ही लेना होता है | इन दोनों ही मामलो मे स्कूल प्रबंधन की भागीदारी रहती है | इनकी बसे वातानुकुलित होती है ---इनके भवनो मे सुविधाओ के नाम पर खासी रकम वसूली जाती है | औसतन इन संस्थानो मे पड़ने वाले एक बच्चे का खर्च दस से पंद्रह हज़ार होता है !! अब आप ही सोचे की इतना खर्चा कोई भी पालक कैसे उठाता होगा ? जिन परिवारों की माहवारी आय एक लाख से कम होगी वे कैसे इन संस्थानो मे बच्चो को पड़ा सकते है ?

मज़े की बात यह है की इन संस्थानो का रेज़ल्ट भी केन्द्रीय विद्यालयो के मुक़ाबले बहुत पिछड़ा होता है | इनकी फीस और सुविधाओ का हिसाब -किताब सरकार ना तो पूछती है ना ही इन्हे नियंत्रित करती है | क्योंकि इनके चलाने वाले सरकार मे काफी दखल रखते है | पालको के अनेक वर्षो के विरोध और सरकार के आश्वासनों के बावजूद इन निजी स्कूलो मे किताब और ड्रेस की एक रूपता नहीं लायी जा सकी है | भरी - भरकम फीस का औचित्य भी इनके प्रबन्धक नहीं देना चाहते है |