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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 4, 2021

 

मोदी सरकार की आलोचना अब --देशद्रोह का अपराध नहीं बनेगा !


पुलिस और उन भक्तो के लिए अब - विरोध करने वाले को राष्ट्रद्रोही


का प्रमाणपत्र देने की आदत अब '’बदलनी पड़ेगी "” क्योंकि अब


सरकार को भी अब – विरोध --आलोचना -और सवाल सुनने की


आदत डालनी होगी | क्योंकि अब न्यायिक व्यवस्था संविधान और


कानून की किताबों के हिसाब से "”देश के लोगो को "”नागरिक


का अधिकार दिलाने का प्रयास करेगी ----जिसकी बानगी ज़िले


की अदालत से लेकर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के


फैसलो में मिलती हैं | देश में लोकतन्त्र बचा रहे --इसके लिए जरूरी


है की जनता --- नागरिक रहे ना की सरकार की प्रजा बने !



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पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी और उसकी जमानत ने न्यायिक व्ययस्था को एक नयी संजीवनी दी है | 23 फरवरी के पहले पुलिस द्वरा अदालत के सामने देशद्रोह के आरोप के लिए ----सरकार के किसी फैसले की आलोचना ,अथवा सरकार विरोधी किसी राजनैतिक या सामाजिक मुहिम का समर्थन भी "” सरकार को हानि पाहुचाने वाला बता कर "” अंग्रेज़ो के समय के देशद्रोह की धारा को आरोपी पर लगा दिया जाता था | विदेशी सत्ता के समय सरकार -ब्रिटिश साम्राज्य की प्रतिनिधि थी |

उस समय "”प्रजा"” को संवैधानिक अधिकार उतने नहीं थे जीतने आज भारतीय संविधान में "”नागरिकों "” को मिले हैं | इन अधिकारो में अभिव्यक्ति की आज़ादी --के तहत सरकार का विरोध करने के लिए "”धरना - प्रदर्शन - और हड़ताल "”जैसे अधिकार निहित हैं | परंतु अंग्रेज़ो के जमाने की तर्ज़ पर "”आज भी नागरिकों सरकार उम्मीद करती हैं की वे ------ आला हज़रत सरकार के फैसलो पर ना तो सवाल उठाए और ना ही उसके खिलाफ बयानबाजी करे |

दिल्ली मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट धर्मेंद्र राणा के एतिहासिक फैसले के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली दंगो को लेकर दिल्ली पुलिस को जो फटकार लगाई --फिर सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार की एजेंसियो जैसे – सीबीआई – आईबी – ईडी या नरकोटिक्स अथवा एनएसए द्वरा नागरिकों से की जाने वाली पूछताछ के लिए --सीसीटीवी कैमरो का होना जरूरी बताया | जस्टिस नरीमन की खंड पीठ – इस बारे में सॉलिसीटर जनरल तुषार कान्त द्वरा "”निश्चित तिथि "” नहीं बताए जाने पर --टिप्पणी की "”लगता हैं

की सरकार की नियत इस मामले में साफ नहीं हैं | इस सख़त टिप्पणी के बाद सरकार की ओर से उत्तर देने के लिए समय की मांग की गयी |

3 मार्च को ही जुस्टिस किशन कौल की खंड पीठ ने फारुख अब्दुल्ला के वीरुध एक वकील द्वरा "”देशद्रोह "” की याचिका दायर की गयी थी | जिसमें आरोप लगाया गया था की उन्होने जम्मू और काश्मीर के राज्य के दर्जे को खतम करना और इलाके को तीन हिस्सो में बाँट कर केंद्र शाससित बना देने के मोदी सरकार के फैसले का विरोध करने का ब्यान दिया था | याचिका में यानहा तक आरोप लगाया गया था की --अपने उद्देश्य केकी बात भी लिए उन्होने चीन सरकार से सहायता लेने की भी बात काही थी | सर्वोच्च न्यायालय की खंड पीठ ने "” कहा की सरकार के मत या फैसले से अलग रॉय रखना कोई देशद्रोह नहीं हैं | बल्कि उन्होने "अति उत्साही याचिका कर्ता पर 50 हज़ार का जुर्माना भी लगाया " |

इन फैसलो ने चीफ मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट धर्मेन्द्र राणा द्वरा दिशा रवि के मामले में जमानत के समय कहा गया वाक्य अमिट बन गया की "” सरकार के ज़ख्मी गुरूर पर मरहम लगाने के लिए देश द्रोह के केस नहीं थोपे जा सकते " | वैसे दिल्ली विधान सभा चुनाव के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वरा अलपसंख्यकों के वीरुध "” जहरीला और भड़काऊ भाषण देने के वीडियो सबूत होने पर --- पुलिस को उनके वीरुध कारवाई करने के निर्देश देने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के जज को सुबह होते ही हरियाणा उच्च न्यायालय को तबादला कर दिया गया !!!

अब उसी दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली के सांप्रदायिक दंगो में पुलिस की भूमिका को लेकर --काफी खरी -खोटी सुनाई हैं | दंगो के एक मुस्लिम आरोपी का पुलिस के सामने दिया गया "” बयान या कबूलनामा "” मीडिया में लीक हो जाने पर अदालत ने दिल्ली के विशेस पुलिस आयुक्त को पेश होने का निर्देश दिया हैं | पुलिस की एक खुफिया रिपोर्ट में यह लिखा हुआ पाने पर की "” अगर हिन्दू युवको को गिरफ्तार करेंगे तब उनके समुदाय में अशांति फ़ेल सकती हैं "” अदालत ने इस रिपोर्ट की बाबत पुछे जाने पर पुलिस ने कहा --- ऐसी रिपोर्ट आ जाती हैं | तब उच्च न्यायालय ने आदेश दिया की विशेस पुलिस आयुक्त पाँच ऐसी रिपोर्ट लाकर दिखाये | अब देखना हैं की विगत एक साल में दिल्ली में पुलिस द्वरा जे एन यू -जामिया मिलिया के छत्रों के दमन पर क्या होगा | उनके संस्थान में और विरोध प्रदर्शन के दौरान की गयी सत्तारूद संगठन के समर्थको द्वरा मारपीट के मुकदमो का क्या होगा ? क्या अदालते विगत वर्ष जनवरी में जे एन यू के कॅम्पस में बाहरी लोगो द्वरा मार पीट की घटना --की जांच हो सकेगी ? एवं क्या उन्हे न्याया मिल सकेगा ? इन सवालो के जवाब तो भविष्य ही बताएगा --- और वह भी पाँच राज्यो के चुनाव परिणामो में !