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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 31, 2017

2017 याद रहेगा -- दुनिया मे किसान और मजदूरो को हक़ दिलाने की क्रांति के शताब्दी वर्ष की मानिंद ---- २३ साल पहले जिस बदलाव को खुलेपन के नाम पर बदला गया ---आज वंहा लोकतन्त्र के रूप मे ब्लादिमीर पुतिन का भ्रष्ट तंत्र है !! जिसमे उनके विरुद्ध कोई चुनाव नहीं लड़ सकता --- पर निर्वाचन का नाटक – सांगोपांग तरीके से हो रहा
1917 की जन क्रांति के शताब्दी वर्ष मे बहुजन हिताय की भावना का तर्पण होते भी देखा इस वर्ष !!! यूरोप मे चेक्स्लोवकीया हो या पेरु हो जंहा अरबपति ''चुनाव'' जीते !! राजनीति कितनी बिकाऊ है इसका उदाहरण अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प है !! जिनहोने राजनीति के नाम पर सिर्फ '''चंदा देना सीखा ''' और बिना किसी राजनीतिक अनुभव के वे एक बड़े प्रजातांत्रिक देश के राष्ट्र नायक चुने गए !!
इन अनुभवो से चुनावो की प्रणाली और उसकी सत्यता पर सवालिया निशान लग रहे है ----
क्या इनके उत्तर हम आने वाले साल मे खोज पाएंगे ??
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जाते साल मे रूस के राष्ट्रपति का "”चुनाव "” संभवतः दुनिया के देशो मे अपने तरीके से होने वाला अकेला'' चुनाव ''होगा | जनहा वर्तमान राष्ट्रपति ब्लादिर्मीर पुतिन चौथी बार चुनाव लड़ रहे है | उनके विरोधी आलेक्सेई को वनहा की अदालत ने भ्रस्ताचर के मामले मे दोषी करार दिया हुआ है |जिसका मतलब यह होगा की वे भी भारतीय राजनीतिक दलो मे अध्यक्क्ष के निर्वाचन की भांति एक पक्षीय जीत हासिल करेंगे | निर्वाचन तो केवल दिखावे के लिए ही होगा| अब पुतिन की विजय का रास्ता साफ है | चुनाव परिणाम के पूर्व ही यह स्पष्ट हो गया | वह भी प्रजातन्त्र के नाम पर ? कुछ ऐसा ही तुर्की मे चुनावो मे आर्डूवान ने किया – खुद तो सरकारी खर्चे पर चुनाव लड़े – तब भी विरोधी को मात्र दो प्रतिशत के अंतर से पराजित कर पाये |
क्या पुतिन के चुनाव को या आर्डूवन के निर्वाचन को लोकतान्त्रिक कहा जा सकता है ??वेनेजुयाला मे राष्ट्रपति मदुरों ने तो अपने विरुद्ध ''महाभियोग'' लगाने वालो को न्यायालय से '''अक्षम ''' सिद्ध करा दिया ?चिली हो या पेरु दक्षिण अमेरिका के देशो मे तो '''लोकतन्त्र '''का नाटक है --प्रजातन्त्र नहीं !!
यूनाइटेड किंगडम अर्थात ब्रिटेन मे राजतंत्र है ---जापान मे भी सम्राट है --परंतु वनहा लोकतन्त्र के अंतर्गत ईमानदार निर्वाचन होते है | एशिया मे चीन मे एक दलीय गणतन्त्र है !!! ईरान या इराक़ -- पाकिस्तान अथवा म्यांमार मे भी है तो बहू दलीय प्रजातन्त्र परंतु उसे सदैव शंका की निगाहों से देखा जाता है | भारत मे राजनीतिक दलो मे भले ही आंतरिक चुनाव नहीं है --- सभी पार्टियो मे गुट अथवा व्यक्ति का नियंत्रण है | वे ही ब्लॉक से लेकर ज़िले और प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर '''पदाधिकारियों का चयन \\या निर्वाचन करते है || इस गुण से देश की सभी राजनीतिक पार्टिया और सामाजिक अथवा अन्य संगठन ग्रश्त है |परंतु गाहे - बगाहे एक दूसरे पर बंधुवा संगठन चलाने का आरोप लगते रहते है | परिवार और व्यक्ति भी इसी श्रेणी मे आते है !
जब संगठन स्तर पर लोकतन्त्र मर चुका है तब राष्ट्र स्तर पर उसकी कल्पना करना तो खां खयाली ही होगी | हवाई वादे और हवाई दावे कभी भी लोकतन्त्र की आधारशिला नहीं हुआ करते है | लोकतन्त्र जमीनी यथार्थ और नागरिकों की समस्याओ के हल के लिए होता है | जन को भीड़ मे बदल कर ---फिर उन्हे जादूगर की भांति सपने दिखाना प्रजातन्त्र नहीं है | परंतु लोकतन्त्र की सफलता की पूरी ज़िम्मेदारी तो महती लोक पर है जो अपने शासक को चुनता है ---उसकी गलती उसे ही भुगतनी होगी !!

Dec 27, 2017

प्रजातन्त्र --- जनता के लिए - जनता के द्वारा निर्वाचित शासन व्यवस्था
के कर्णधार राजनीतिक दल--- खुद के संगठनो मे चुनाव नहीं कराते
फलस्वरूप राजनीतिक दलो मे स्थानीय और प्रदेश स्तर पर नेता नहीं
पिछलग्गु निकल रहे है -जो छेत्र से अधिक आक़ाओ की फिकर करते है

भारत के संविधान मे राष्ट्रपति को तीनों निकायो अर्थात – विधायिका एवं कार्यपालिका और न्यायपालिका मे संतुलन का रखवाला माना गया है | परंतु गणराज्य के विगत साथ वर्षो से अधिक काल मे यही देखा गया है की --- कार्यपालिका ही स्वयंभू हुई है | संसद के निकले सदन मे बहुमत प्रापत दल अथवा गुट ही सरकार का गठन करता है | एवं इसी कारण वह विधायिका पर भी नियंत्रण करता है | चूंकि सरकार की सलाह राष्ट्रपति को मानना अनिवार्य है --अतः वे भी राजनीतिक सीमाओ के अतिक्रमण के मूक दर्शक ही बने रहते है | जिस प्रकार महाभारत मे द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म जैसे महारथी भी मूक साक्षी बने रहे ---कुछ - कुछ वैसा ही राष्ट्रपति की हैसियत है |

सोचा तो यह गया था की लोकसभा के जन प्रतिनिधि सरकार को उचित राह पर चलने के लिए मजबूर करते रहेंगे | परंतु राजनीतिक दलो के "”गिरोह "”” ने जनता की आवाज़ को उभरने का ही मौका नहीं दिया | देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस हो अथवा दक्षिण पंथी भारतीय जनता पार्टी या की वामपंथी साम्यवादी दल हो सभी मे संगठन के नाम पर --कतिपय नेताओ के समर्थको का हूजूम ही होता है | स्थानीय नेत्रत्व के मजबूत होने से शीर्ष मे बैठे '' नेताओ '' की पकड़ ढीली होने की आशंका से ---- कभी भी ,किसी भी दल मे सदस्यता सूची सार्वजनिक नहीं की ज़ाती | यह भी देश के नागरिकों को नहीं पता चल पाता की किस संगठन अथवा व्यक्ति ने किस दल को कितना चंदा दिया है |इसकी जानकारी भी गैर सरकारी संगठनो के जरिये चलती है | मजदूर या कामगार संगठनो के सदस्यो की संख्या के आधार पर उन्हे प्रबंधन के साथ वार्ता का अधिकार प्राप्त होता है ---वनहा भी सब कुछ गोलमाल ही रहता है | प्रबंधन मनचाहे संगठन को मान्यता प्रदान कर देता है |लेकिन किस आधार पर किया इसका खुलासा नहीं होता !
निर्वाचन आयोग से मान्यता पाने के लिए – राजनीतिक दलो को '''चुनाव ' मे प्राप्त मत ही आधार होते है |जिसके आधार पर उन्हे छेतरीय या राष्ट्रीय दल की मान्यता मिलती है |पूर्व निर्वाचन आयुक्त टी एन शेषन ने एक निर्देश द्वरा सभी राजनीतिक दलो {{छेत्रिय अथवा राष्ट्रीय }}} को संगठन के चुनाव कराना अनिवार्य कर दिया था | परंतु इन दलो मे चुनाव हो रहे है अथवा चुनाव का नाटक हो रहा है ---इसके लिए कोई व्यसथा नहीं की गयी थी | फलस्वरूप आज सभी राजनीतिक दलो मे संगठन के चुनाव का नाटक ही होता है --इसीलिए सभी राष्ट्रीय अध्यक्ष सर्वसम्मति से निर्वाचित होते है !! इससे बड़ा प्रजातन्त्र का मखौल और क्या हो सकता है ??

जिस देश मे ग्राम पंचायत के चुनाव मे "”सर्वसम्मति "” नहीं होती {{कुछ बिरले उदाहरण छोडकर }} वहा लाखो सदस्यो वाली राजनीतिक पार्टियो मे ज़िलो से लेकर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर तक के पदाधिकारी सर्वसम्मति से चुने जाते है अथवा मनोनीत होते है ? सभी दलो मे सदस्य
अपने राजनीतिक आक़ाओ की "”चापलूसी और गणेश परिक्रमा "” के बल पर ही संगठन के पद पर आसीन होते है | हालत इतने बदतर है की ब्लॉक स्तर पर भी '''मनोनयन''' ही होता है !! इसी लिए किसी भी दल के सदस्य छेत्र मे काम करके पार्टी मे जगह नहीं बनाने की सोचते --- वरन गणेश परिक्रमा मे भरोसा रखते है " इसी कारण एक प्रदेश के नेता को दूसरे प्रदेश से सदन मे भेज देते है|एक ज़िले के कार्यकर्ता को दूसरे ज़िले मे चुनाव लड़ने का "””टिकट"” दिया जाता है |

जिन राजनीतिक दलो पर देश और प्रदेश को चलाने की ज़िम्मेदारी है ---वे अपने संगठनो मे भी चुनाव नहीं कराते है -----इस से बड़ा भारत का और क्या दुर्भाग्य हो सकता है|


Dec 5, 2017


मंदिर -मस्जिद विवाद के 25 साल अथवा --मूर्ति रखे जाने के 78 साल ??

22 दिसम्बर 1949 को फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन कलेक्टर के के के नायर ने लखनऊ मे तत्कालीन गृह मंत्रालय को भेजे रेडिओग्राम मे राज्य सरकार को सूचित किया था की बाबरी मस्जिद के प्रांगण मे मूर्ति "”रख दी गयी है "” | मूर्तियो के रखे जाने अथवा "”चमत्कारिक रूप से प्रकट होने की "” बात तत्कालीन गोरखनाथ मठ के महंत दिग्विजयनाथ और हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओ द्वारा कही गयी !! इस विवाद को अदालत ने स्थगन देते हुए जनहा पुजारिओ को राम की मूर्ति की सेवा - श्रुषा करने के लिए आगे दी --वनही मस्जिद को मुस्लिमो को नमाज़ पढने की भी इजाजत दी | मामला अदालत के विचारधीन रहा |
6 दिसम्बर 1992 को विश्व हिन्दू परिषद तथा भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओ ने लाल कृष्ण आडवाणी -मुरली मनोहर जोशी तथा उमा भारती के नेत्रत्व मे मस्जिद के गुंबद को धराशायी कर दिया | कल्याण सिंह सरकार ने यद्यपि अदालत मे शपथ पत्र दिया था की --””उनकी सरकार मस्जिद को सुरक्षित रखने के लिए संकल्पित है "”” | परंतु फिर भी भीड़ ने मस्जिद के भवन को धराशायी कर दिया !!! घटना के बाद मुंबई – दिल्ली --हैदराबाद तथा भोपाल मे हिन्दू -मुस्लिम दंगे हुए | भयानक हिंसा का ज्वार फैला | लेकिन फ़ैज़ाबाद और लखनऊ मे कोई दंगा नहीं हुआ !!! बताया जाता है की लखनऊ के नदवा -तुल - उलेमा के रेकटर मौलाना अली मिया ने उत्तेजित मुसलमानो को संयम से रहने की सलाह देते हुए अदालत के फैसले पर भरोसा करने को कहा | वे तब मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड के अध्यक्ष थे |यह थी एक धर्म के गुरु की शक्ति --की हजारो गुस्साये मुसलमानो को शांत कर दिया | आग लगाना तो आसान है --पर उसे बद्ने ना देना - मुश्किल काम है |


6 दिसंबर 2017 को उस घटना को किस रूप मे याद रखे ?? जबकि सुप्रीम कोर्ट मे यह मामला विचारधीन है | यद्यपि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा का यह कहना की "”उनके लिए यह मामला सिर्फ ज़मीन की मिल्कियत का है --- वे इस बात से बिलकुल चिंतित नहीं है की अदालत के बाहर क्या हो रहा है !!!!

अगर अयोध्या विवाद की जयंती मना रहे है तो यह 43 वर्ष की होनी चाहिए ना की 25 वर्ष की जिसको लेकर समाज मे फूट पड़े | फिर अदालत का यह कथन भी कुछ खटकने वाला है की बाहर क्या हो रह है वह विचारणीय विषय नहीं है | क्योंकि इस मामले मे बहुसंख्यक और मुस्लिम अल्प संख्यक दोनों ही बानहे चदाए है | धार्मिक भावना का अतिरेक अरब प्रायद्वीप मे कितनी मारकाट मचाए हुए है | इसके अलावा ब्रिटेन और अमेरिका फ्रांस मे कुछ लोग सामान्य नागरिक जीवन को कितना "”असुरक्षित बना देते है "” | अतः अदालत का यह कथन समीचीन नहीं है | इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वरा इस मामले मे दिया गया फैसला "” विधि के इतिहास मे अनूठा है "” जिससे सभी पक्षो को अगर संतोष नहीं हुआ तो आशंतोष भी नहीं हुआ | क्योंकि विवादित भूमि को तीनों पक्षो मे वितरित करने से '''समवेदनाए अगर पूर्ण नहीं हुई ----तो अपूर्ण भी नहीं रही "” क्योंकि सभी को कुछ मिला | संतोष भले ही ना हुआ हो परंतु ''असन्तोष '' भी नहीं हुआ | एवं अदालत पर भरोसा बना रहे सुप्रीम कोर्ट को ऐसी ही युक्ति खोजनी होगी | तभी देश और समाज का भला होगा | वरना फिर कोई ............

Dec 4, 2017

आगामी छह सालो मे भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यसथा होगी – अंबानी क्या ऐसा तथ्यात्मक हो सकता है क्योंकि इसमे जापान को शामिल नहीं किया गया है ?
यह कथन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणो मे किए जा रहे आश्वासनों का ही एक भाग लग रहा है | मोदी सरकार का कार्यकाल 2019 तक ही है | फिलहाल अभी तो मूडीज़ द्वारा भारतीय अर्थ व्यसथा को दी गयी रेटिंग पर ही विवाद है --- ऐसे मे किसी उद्योगपति द्वरा भावी तस्वीर पेश किया जाना उनकी "”सदिच्छा "” ही काही जा सकती है | यह सही है की मुकेश अंबानी की रिलान्स और जियो कंपनी ऑइल शोधन और दूर संचार के छेत्र मे "”एकाधिपत्य "” रखती है | एवं उनकी कंपनियो का टर्न ओवर देश की अर्थ व्यवस्था का एक अहम भाग है | परंतु फिर भी खेती -किसानी आज भी महत्वपूर्ण भाग है |


ऐसे मे किसी भी उद्योगपति का भविष्यवाणी करना अपने उद्योग के प्रति तो न्यायसंगत और तथ्यात्मक हो सकता है |परंतु समस्त देश के लिए यह बताना कुछ असंगत सा लगता है | अंबानी और अदानी समूह गुजरात से संबन्धित है--- एवं अनेक प्रोजेक्ट को लेकर काफी विवाद भी है | जैसे "””कावेरी बेसिन "” और अदानी समूह को भारी - भरकम कर्ज़ सुलभ कराने मे केंद्रीय सरकार द्वारा निर्णायक भूमिका पर भी विवाद एवं विरोध है |आस्ट्रेलिया मे कोयले के खनन के प्रोजेक्ट के लिए स्टेट बैंक द्वरा हजारो करोड़ का क़र्ज़ सुलभ कराया गया है --- उसपर पर्यावरण को हानि को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थानिक पेड़ -पौधे और समुद्र के जीवो के विनाश की आशंका व्यक्त की जा चुकी है | आस्ट्रेलिया के अनेक संगठनो ने इस परियोजना के विरोध मे प्रदर्शन भी किया गया है | गुजरात कच्छ छेत्र मे भी अदानी समूह द्वारा भूमि अधिग्रहित किए जाने से वनहा के मछुवारों को बहुत मुश्किले आ रही है | पहले वे समुद्र मे 5 से दस मील जा कर पर्याप्त मछली पकड़ लेते थे |परंतु अदानी की परियोजना के बाद समुद्र मे मछलिया दुर्लभ हो गयी है | इसलिए अब मछली पकड़ने के लिए उन्हे बीस या तीस मील समुद्र के अंदर जाना पड़ता है | इसी प्रकार कावेरी बेसिन से अंबानी समूह द्वारा इंडियन ऑइल की साइट से तेल निकालने का विवाद अभी चल ही रहा है | नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले यह विवाद "”पंचाट "” के सामने आ गया था | चूंकि दोनों ही पक्ष भारतीय थे इसलिए इसका निर्धारण भारतीय कानून और व्यसथा के अंतर्गत होना था | परंतु 2015 मे केंद्र ने इस विवाद को अंतर्राष्ट्रीय पंचाट को सौप दिया | अब अंबानी की एक साझेदार कंपनी के विदेश मे स्थित होने से "”मामले को अंतराष्ट्रीय रूप दे दिया गया "”” जिसका परिणाम यह हुआ जो मामला अपील मे आगामी पाँच से दस सालो मे सुप्रीम कोर्ट से अंतिम रूप से निर्णीत होजाने की आशा थी ------वह अब अन्न्त काल के लिए उलझा रहेगा | जैसे भारत ---पाक सीमा विवाद !!!!

Nov 29, 2017

आखिरकार प्रधानमंत्री के मन की बात सुप्रीम कोर्ट मे केंद्र की दलील के रूप मे
आ ही गयी !
दिल्ली विधान सभा के चुनावो मे --''देश विजेता को मिली पैदली मात "”ही
अरविंद केजरीवाल सरकार को ''बिजूका ''बना कर रख देना चाहती है
दिल्ली सरकार को कार्यकारी शाक्तिया देना राष्ट्रीय हित मे नहीं !!
अर्थात दिल्ली सरकार सिर्फ एक बिजूका भर ही है --राज़ तो केंद्र ही करेगा ??
जबकि केंद्र को '''सीधे शासन ''' करने का अधिकार ही नहीं है ???



कहावत है की '''खैर --खून – खांसी --खुशी ''' कभी छिपती नहीं है | 2014 मे हुए लोकसभा चुनावो मे "”दिग्विजयी "” परचम फहराने के बाद – ही दिल्ली विधान सभा के सम्पन्न चुनावो मे भारतीय जनता पार्टी के अश्वमेघ घोड़े को दिल्ली विधान सभा चुनावो मे आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने ना केवल रोका --वरन बांध भी लिया | नरेंद्र मोदी को अपने "”प्रचार तंत्र और साधनो की प्रचुरता "” पर पूरा भरोसा था --- की इस पिद्दी से इलाके को तो मुट्ठी मे करना कोई चुनौती नहीं है | हालांकि इस सोच के बाद भी उन्होने "”धुआधार "” प्रचार और रोड शो तथा रैली मे भीड़ जुटाकर लोगो को ''यह एहसास दिलाने मे सफल रहे की मैदान -उनका ही है | परंतु मतदान की पेटी से निकले परिणाम ने उनके गुरूर को चूर -चूर कर दिया | यहा तक की बीजेपी को मात्र तीन सीट ही मिली !! जो की सदन नेता प्रतिपक्ष के लिए भी नाकाफी था | उसके लिए उन्हे 9 सीट ज़रूरी थी !! जिससे बीजेपी 6 सीट कम थी | बस उस दिन इस भयंकर पराजय ने ना केवल उनके '''दिग्विजयी ''' होने के भ्रम को तोड़ दिया -वरन पार्टी मे यह कहा जाने लगा -की लोकसभा की जीत '''संघ और बीजेपी ''' की सम्मिलित परसो का परिणाम है -----नरेंद्र मोदी का "”अकेले का नहीं "” |

बस उसी दिन से अरविंद केजरीवाल की सरकार को गिराने के लिए "”कानूनी और राजनीतिक शिकंजो "” की शुरुआत हो गयी |
जो इस सीमा तक जी गयी की देश को लगने लगा की दिल्ली मे जनता की चुनी हुई सरकार नहीं है | बल्कि वह केंद्र शासित एक "”परगना ''मात्र भर है | जनहा जनता की चुनी हुई सरकार का "”हुकुम ''' नहीं लेफ्टिनेंट गवेर्नर का राज़ है !!!!
आखिरकार दिल्ली सरकार ने अपने अधिकारो की लड़ाई के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया |
सुप्रीम कोर्ट मे जब लेफ्टिनेंट गवर्नर और निर्वाचित सरकार के अधिकारो की सीमा रेखा पर सरकार से जवाब मांगा गया --तब अतिरिक्त सलिसीटर जनरल मानिंदर सिंह ने अदालत को बताया दिल्ली सरकार के पास विशिष्ट कार्यकारी शाक्तिया नहीं है !! उन्होने लेफ़्टि गवर्नर को राज्यपाल समान नहीं हो सकते | उन्होने दलील दी की "”ओहदे से दर्जे मे बदलाव नहीं हो जाता है "” ||संघ शासित छेत्र राष्ट्रपति के अधीन होता है !! इन शक्तियों को दिल्ली के संदर्भ मे कम नहीं किया जा सकता !! दिल्ली सरकार के पास विशिष्ट कार्यकारी शक्तिया नहीं है --- इस तरह की शक्तिया प्रदान करना राष्ट्रिय हित मे नहीं है !!!

केंद्र की इस दलील मे एक बड़ी खामी है ---की दिल्ली की विधान सभा को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है | दिल्ली को विधान सभा का दर्जा देते समय "””केंद्र और राज्य "”के अधिकारो मे बंटवारा हुआ था | जिसके अनुसार ---दिल्ली पुलिस --दिल्ली के राजस्व मामले पर विधान सभा कानून नहीं बना सकेगी | शेष मामलो मे राजय सरकार स्वतंत्र होगी | केंद्र के इशारो पर एलजी ने केजरीवाल सरकार के फैसलो पर अड़ंगे लगाना शुरू कर दिया | हालत इतनी बिगड़ी की जो अधिकार शीला दीक्षित या सुषमा स्वराज अथवा बीजेपी सरकारो को थी वे भी केजरीवाल सरकार को नहीं दी गयी | यहा तक शिक्षा और स्वास्थ्य तथा पेयजल के मामले भी एलजी लटकाने लगे |
तब इस विवाद को सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजो वाली संवैधानिक पीठ मे पहुंचा | जनहा मोदी सरकार ने अपना पुराना कवच "””राष्ट्रीय हित"”” का नारा बुलंद किया |

Nov 19, 2017

अर्श से फर्श तक पहुंचे --- राष्ट्र नायक बने खलनायक
इन्डोनेशिया के सुकर्णो और जिम्बावे के रोबर्ट मुगाबे

अपने देश को विदेशी दासता से मुकि दिलाने वाले सुकर्णो और मुगाबे की कहानी
लगभग एक जैसी ही है | वे स्वतन्त्रता संघर्ष के अगुआ और पराधीन देश वासियो के लिए आशा की किरण थे | परंतु सत्ता ने उनके सारी कुर्बानियों को धूमिल कर दिया | सत्ता के माध्यम से से विरोधियो को समाप्त करने की उनकी कोशिस ने धीरे -धीरे उन्हे राष्ट्र नायक से खलनायक बना दिया |

वर्तमान इन्डोनेसिया के जावा प्रांत मे स्कूल अध्यापक के यानहा सुकर्णो का जन्म 1901 मे हुआ था | उस समय उनका देश डच {{नीदरलैंड}} की गुलामी मे था | सुकर्णो ने उनके विरुद्ध लड़ाई छेड़ी हुई थी | डच सरकार ने उनको जेल मे ड़ाल दिया था | दूसरे महायुद्ध मे जापानियों ने इन्दोनेसिआ पर क़ब्ज़े के बाद सुकर्णो को जेल से मुक्ति दिलाई 1944 मे | उन्होने 17 अगस्त 1945 को देश की बागडोर सम्हाली | संसदीय लोकतन्त्र मे उन्होने वामपंथियो की हत्या करवाना शुरू किया था |और 1957 मे उन्होने संसदीय लोकतन्त्र को एक प्रकार से समाप्त ही कर दिया | परंतु देश की आर्थिक और ---वित्तीय स्थिति बदतर होती गयी | अंततः फौज ने जनरल सुहारतों के नेत्रत्व मे सत्ता सम्हाल ली | एवं अपने ही राष्ट्र नायक को राष्ट्रपति निवास मे नज़रबंद कर दिया | 1967 मे उन्होने अंतिम सांस ली | 22 साल सत्ता के शीर्ष पर रहने के बाद भी उन्हे देशवासियों ने ठुकरा दिया |

कुछ ऐसा ही जिम्बावे के रोबर्ट मुगाबे के साथ हुआ उनका जनम 1924 |को हुआ था | गोरो की गुलामी से देश को आज़ादी दिलाने के वे अगुआ थे | 1980 से 1987 तक वे प्रधान मंत्री रहे | बाद मे वे संविधान बदल कर राष्ट्रपति दो बार राष्ट्रपति बने | उन्होने ने भी अपने विरोधियो को फ़िफ्थ ब्रिगेड से लगभग हजारो लोगो की हत्या करवाई | 2018 के चुनाव मे वे अपनी तीसरी पत्नी ग्रेस को राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे | जिसका देश मे बहुत विरोध था |
फलस्वरूप 16 नवंबर को फौज ने उन्हे भी राष्ट्रपति आवास मे नज़रबंद कर दिया | ज़िम्बावे अफ्रीकन नेशनल यूनियन पार्टी --जिसके वे नेता थे ,,उसने भी दो दिन बाद बैठक कर के उनके विरुद्ध ''अविश्वास प्रस्ताव "” पारित कर,, उन्हे पदमुक्त कर दिया | ऐसा ही प्रस्ताव अन्य प्रांतो की भी इकाइयो ने पास कर दिया | अब फौज उनसे शांति से पद छोडने का आग्रह कर रही है | इसके बदले उनके खिलाफ गबन और अव्यवस्था के आरोप मे मुकदमे नहीं नहीं क्नलने की गारंटी देने का सुझाव दिया है | उन्होने भी चुनाव के नाम पर धांधली कर के निर्वाचित हुए थे | संसदीय लोकतन्त्र मे उन्होने विपक्षी दलो को सत्ता के सूत्रो और हत्या के जरिये समाप्त करने का कारी किया | जिसके आरोप उनके विरुद्ध लगते रहे है |

इसी लाइन मे कंबोडिया के प्रधान मंत्री हूँ सेन भी आ रहे है | उन्होने प्रमुख विपक्षी दल के नेताओ को पहले तो आरोप लगा कर जेल मे ड़ाल दिया | अब सुप्रीम कोर्ट द्वरा पूरी पार्टी को ही "”देश द्रोही "” करार दिला कर प्रतिबंध लगवा दिया | इस प्रकार उन्होने लोकतन्त्र के स्थान पर चीन के समान "”एकल पार्टी "” शासन कर दिया है | जिसका अंतर्राष्ट्रीय जगत मे बहुत विरोध हो रहा है | अमेरिका की सीनेट ने त्वरित रूप से कंबोडिया पर प्रतिबंध लगाने की सिफ़ारिश की है | गौर तलब है की कंबोडिया का सर्वाधिक निर्यात टेक्सटाइल है --जो की यूरोपियन यूनियन के देशो को होता है | हालांकि चीन ने कंबोडिया सरकार के निर्णय का समर्थन किया है | परंतु यूरोप द्वरा प्रतिबंध लगाने से देश की आर्थिक स्थिति बदतर होने की आशा है | हौंसें भी विगत 30 वर्षो से "”निर्वाचित"” होने का नाटक करते आ रहे है | उनके भी खलनायक बनने की उल्टी गिनती शुरू होने की आशंका है |