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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 20, 2013

क्यों भरोसा नहीं होता हैं अपने राज्य की पुलिस पर ?

क्यों  भरोसा नहीं होता हैं अपने राज्य की पुलिस पर ?
                                                                              माहौल चुनाव का गरमा रहा हैं और हम हैं की परेशान हैं की ""आम आदमी "" को अपनी पुलिस पर भरोसा नहीं होता | बात कुछ ऐसी हैं की हर खास - ओ - आम के जेहन मे पुलिस का नाम लेते ही एक  कडक  चेहरा और हाथ मे बैटन  तनी मुछे और इन सब का खौफ अगल - बगल के लोगो को ज़रा हट के चलने पर विवश करता हैं | परंतु अखबार मे छपी खबर के अनुसार बीते दिनो  छोटे लाट {[ राज्यपाल का नाम जो बरतनिया हुकूमत के दौर मे चलता था ]} के घर के सामने पुलिस के एक आला अफसर  {[सहायक  पुलिस महानिरीक्षक}] जो अपनी सरकारी गाड़ी से पुलिस मुख्यालय जा रहे थे , उसी समय एक बाइक पर सवर तीन ''नौजवानो''' ने सड़क पर ही स्टंट दिखाना शुरू कर दिया |जिस से चलते यातायात मे रुकावट आई और आला अफसर की भी गाड़ी फंस गयी | जब इनहोने देखा की ''छोकरे'' तो अपनी ज़िद पर आमादा हैं , तब उन्होने जा कर उन्हे समझाया की उनकी हरकत गैर कानूनी हैं और उन्हे ऐसा नहीं करना चाहिए | तब उसमे से एक ''बरखुरदार '' जिनके वालिद {पिता} ने हॉकी  मे नाम किया और ओलिम्पिक पदक हासिल किया था , उन्होने आव न देखा ताव और  अफसर के गिरेबान पर हाथ डाल दिया और हुज्जत करने लगे | कहा जाता हैं की औलादों ने तो यानहा ताक़ कह दिया की '''तू होता कौन हैं हुमे रोकने वाला " | इतना सब कुछ होता रहा और सड़क पर आने - जाने वाले  शहरी {नागरिक}  आते - जाते रहे , एक निगाह डालते और आगे बाद जाते मानो कुछ हुआ ही नहीं | किस्सा - कोताह यह की आला अफसर को पुलिस को फोन करना पड़ा तब पुलिस के दो जवान आए और लड़को को अपने साथ बैठा कर  सब  डिविजनल मैजिस्ट्रेट  की अदालत ले गए | पर चूंकि अफसर ने एफ आई आर  नहीं लिखाई थी , इसलिए मोटर साइकल  पर सवार  'तीनों ' लड़के  गुर्राते हुए नवाब भोपाल  की  रिहाइस {निवास} के बगलगीर हो लिए | जी हाँ वे सभी भोपाल की सबसे मंहगी और पोष  कॉलोनी  कोहे ए फिजा के रहने वाले थे |

                                                                          इस किस्से को यहा बयान करने का आशय सिर्फ इतना हैं की इस घटना से एक तथ्य बहुत ही साफ तरीके से सामने आया  हैं की --- दो - दो लाख की मोटर साइकल पर चलने वाले इन नौजवानो को सिर्फ "" फिल्मी "" कारनामे ही  भाते हैं , और अपने हेरो की नक़ल करने की कोशिस करते हैं | अब यह बात अलग हैं की उनकी इस गलत हरकत मे कानून और भले नागरिकों को कितनी दिक़्क़त यथानी पड़ती हैं | वह उनके लिए कोई  मायने नहीं रखता , क्योंकि  वे तो पैसे वालो जागीरदारों और रसूख वालो की औलाद हैं |  इसीलिए तो पुलिस अफसर पर हाथ उठाने के बावजूद  भी आधे घंटे मे राज़ी - खुसी घर पहुँच गए | जबकि यही भोपाल  पुलिस चौराहो पर किसी अकेले जा रहे  छात्र को ड्राइविंग और गाड़ी कागज़ दिखाने के नाम पर उलझा लेते हैं |

                                  सड़क पर हुए इस कारनामे  के कई दूरगामी परिणाम हुए हैं --पहला तो यह की ''पुलिस''' का रुतबा  खतरे मे पद गया हैं | कहावत हैं की  पुलिस  से बुरे लोगो को खौफ होना चाहिए और भले लोगो को संरक्षण मिलना चाहिए | परंतु  यहा कुछ  उल्टा ही हो रहा हैं | भले लोग तो वर्दी और थाने से डरते हैं और बदमाशो से पुलिस डरती हैं | दूसरा सदको पर चलना कितना  सुरक्शित हैं यह भी पता लगता हैं की , जब एक पुलिस का आला अफसर  अगर बेइज़्ज़त होता हैं इसलिए की वह कुछ सही और कानूनी काम को आंजम देना चाहता था | फिर मध्य प्रदेश सरकार की """ सिटीजेन्स पुलिस """ योजना को भोपाल लागू करने का क्या मतलब हैं ? शायद यही वजह हैं की  दुर्घटनाओ मे  घायलों की  चीख सुनने के बाद भी लोग नज़र बचा कर चले जाते हैं | फिर जब ''निर्भया""जैसी वारदात  होती हैं तब '''समाज और नागरिक ''की ज़िम्मेदारी की बात की जाती हैं |  पर क्या इस घटना को देखने वालों ने और पदने वालों  के तो दिल - दिमाग मे तो यह बस ही गया होगा की ''भैया'' आपण बच के चलो |

                                                        जिस घटना का हवाला ऊपर की  पंक्तियों  मे किया गया हैं  उसका सचित्र हवाला भी भोपाल के सभी अखबारो  ने  सचित्र  छापा  हैं |   सहायक पुलिस महानिरीक्षक  संदीप  दीक्षित  ,जिनके साथ यह घटना हुई , उन्होने '' दया  वश ""  रिपोर्ट लिखना उचित नहीं  समझा , की लड़को का कैरियर[[ {जो की है ही नहीं }}बर्बाद न हो जाये | परंतु भले नागरिक --सहृदय पुरुष --की भूमिका तो निभाई परंतु उन्होने  ''जनता के रक्षक अर्थात पुलिस  के जिम्मेदार अफसर के रोल को निभाने ज़रूर चूक हुई हैं | दूसरी ओर एक महिला पुलिस अधिकारी के पति जो की  उद्योग  विभाग मे समुक्त संचालक  है , जिन पर एक  छात्रा  के साथ दफ्तर मे अश्लील हरकत करने का आरोप हैं , उन्हे मध्य प्रदेश पुलिस 11 ग्यारह डीनो से नहीं पकड़ पा रही हैं | जबकि ऐसे ही आरोप मे तथाकथित   [अ]]संत  आशा राम  जोधपुर की जेल मे आराम फार्म रहे हैं | अब किसे चुस्त - दुरुस्त पुलिस माने राजस्थान की पुलिस को या मध्य प्रदेश की पुलिस को ?

                                 इन बातों का उल्लेख इसलिए समीचीन हैं क्योंकि अगले ही महीने प्रदेश मे राज्य की विधान  सभा के चुनाव होने हैं | ऐसी स्थिति मे इन घटनाओ से लोगो का मॉरल  डाउन होता हैं | उधर हरदा मे सांप्रदायिक  सघर्ष  होने और कर्फ़्यू लगाए जाने के बाद  वातावरण कुछ   गड बड हो गया हैं | उम्मीद तो यह की जा रही थी की चुनाव की पदचाप  सुनकर सरकार और प्रशासन  बेहतर  हालत की ओर अग्रसर होंगे , परंतु यहा  तो मामला उल्टा ही पड़ रहा हैं | कल तक जो उत्तर प्रदेश मे मुजजफ्फरनगर  की घटनाओ के लिए वनहा की सरकार से इस्तीफा मांग रहे थे , आज वे खुद उसी हालत मे हैं | इसे कहते हैं """ खुदरा फजीहत -दीगरा नसीहत """