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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 28, 2023

 

लोकतन्त्र में राजदंड नहीं होता – ब्रिटेन की राजशाही में होता है

 

  सेंगोल नामक  एक “दंड” जो कभी चोला – और चालुक्य राजवंशो में सत्ता हस्तांतरण  का प्रतीक होता था –उसे 21 वी सदी में  लोकतन्त्र की जन संसद में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथा में लेकर –परोछ    रूप से सत्ता के दैवीसिधान्त  को मानिता दी हैं ! वह भी उस संसद के सामने  जिसके सदस्य  जनता से निर्वाचित हो कर आते हैं ! जिसमे गद्दी विरासत से नहीं मिलती –वरन राजशाही में तो वंशानुगत ही सत्ता का हस्तांतरण होता है |

 

 ब्रिटेन  में हाल ही में हुए सम्राट चार्ल्स थर्ड की ताजपोशी में प्रोटेस्टेंट धरम के द्वितीय प्रमुख लॉर्ड कैनटनबरी ने उन्हे  “”राजदंड “” सौपा था | प्रथा है की दिवंगत महारानी की अंतिम यात्रा में उनका मुकुट – राजदंड और सामराज्या  का प्रतीक  ग्लोब उनके शव पर राका रहता हैं | ताबूत को कब्र में उतारने के समय  तीनो  “”राज चिन्ह “” उता लिए जाते हैं | बाद में नए राजा को धरम गुरु उन्हे ये सौपते हैं |

       रविवार को  वैभवपूर्ण समारोह  में जिस प्रकार सेंट्रल विस्टा ,जिसे नया संसद भवन  कहा जाएगा  उसके उदघाटन के अवसर पर  तामिलनाडु के “”” धरमपुरम अधिनम “”के 25 सन्यासियों  की ओर से यह “”सेंगोल “”  एक आयोजन में प्रधान मंत्री आवास  पर उन्हे दिया गया ||  जिसे नयी संसद में  प्रधान मंत्री स्थापित करेंगे |

   लोकतन्त्र में इस प्रकार के राजसी और वैभव पूर्ण आयोजन  की तुलना  लंदन मे सम्राट चार्ल्स  की ताजपोशी  के मुक़ाबले इसलिए बदरंग है की ----इस समारोह में आम जनता की कोई भागीदारी नहीं दिखाई दे रही |  एक ओर  राजशाही में जनता के उत्साह को सारी दुनिया ने देखा था ---- और सेंट्रल विस्टा में नयी संसद  के उदघाटन को लेकर भारत में भी वैसा उत्साह नहीं हैं | यही इस आयोजन की सबसे बड़ी विफलता हैं !  क्यूंकी उन्होने अपनी परंपरा का पालन किया और हमारे प्रधान मंत्री  रोज –ब रोज नयी परंपरा स्थापित करने की नाकाम कोशिस कर रहे हैं |  शायद यही इनकी विफलता हैं |

 

2 आयोजन  तो बहाना है –मकसद दक्षिण के राज्यो में  पैर जमाने की कोशिस है |

अगर हम विगत दिनो की घटनाओ पर गौर करे तो पाएंगे की मोदी – शाह की जोड़ी को विधान सभा चुनावो में यह लगातार  तीसरी पराजय है | बंगाल – हिमांचल और कर्नाटक  में इन नेताओ के बदबोलेपन  की पोल  चुनाव  परिणामो में मतदाता ने खोल दी !  केरल –तमिलनाडु और कर्नाटक में बीजेपी की मूल संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  की चालीस से पचास सालो की कोशिस के बाद भी  बीजेपी को वनहा के समाज ने दुतकारा है |  क्यूंकी बताने के लिए आरएसएस  एक सामाजिक संगठन है , जो वास्तव में बीजेपी नमक दल के लिए जमीन बनाने का काम करता हैं | 

 3-           यह एक संयोग ही है की इन तीनों दक्षिणी प्रदेशों में  उतार भारत की तुलना में कनही अधिक मंदिर है , और यंहा की सनातनी आबादी भी अधिक धरम भीरु और मंदिर जाने वाली हैं | मंजूनाथ –तिरुपति – और त्रिवेन्द्रम के पद्यनाभ  का मंदिर विश्व के सर्वाधिक अमीर उपासना स्थलो के रूप में जाने जाते है | केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश  को लेकर जब मंदिर प्रबंधन और स्त्री मुक्ति मोर्चा  में टकराव हुआ तब भी आरएसएस ने कट्टर वादी मंदिर प्रबंधन के समर्थन में आंदोलन किया | इस आशा के साथ  की कट्टर हिंदुवादी लोग उनके “”पालित –पोषित “” राजनीतिक दल बीजेपी को राजनीतिक समर्थन देंगे | शायद कुछ हुआ भी , परंतु उसके बाद हुए सभी लोकसभा और विधान सभा चुनावो में  उन्हे निराशा ही हाथ लगी |  जब –जब आरएसएस और वनहा के वाम पंथी पार्टी अथवा काँग्रेस पार्टी समर्थको में हिंसक भिड़ंत हुई ------तब तब दिल्ली के गृह मंत्री का फोन त्रिवेन्द्रम में मुख्य मंत्री विजयन और राज्यपाल को पहुँच जाता था ---चाहे व राजनाथ सिंह रहे हो अथवा अमित शाह | यंहा तक की राज्यपालसे संबन्धित घटना  की रिपोर्ट भी  दिल्ली तलब कर ली जाती थी | ऐसी तत्परता  मोदी सरकार  मणिपुर में हो रही जातीय हिनशा  के मामले नहीं दिखा रही है , जिसमें  फौज – केंद्रीय बल और तथा प्रदेश  किपुलिस भी लगी हुई हैं |

              यह घटनाए साबित करती है की केन्द्रीय सरकार  का  ध्यान राजनीतिक लाभ  के लिए  होता हैं  ना की  जमीन की  समस्या की गंभीरता को देखते हुए |

 4-  आरएसएस और बीजेपी नेत्रत्व  तमिलनाडू में  आज़ादी के समय से ही पैर जमाने के लिए  प्रयासरत रहे है | उसका कारण  था की 1933 और उसके बाद की प्रांतीय सभाओ में तथा  मद्रास प्रांत {जैसा ब्रिटिश काल में जाना जाता था }  में  ब्रामहन और चेट्टियार का वर्चस्व रहा कर्ता था |  संग की समझा यह थी की की जिस प्रांत की जनता अपने समाज के ब्रामहन वर्ग को नेत्रत्व  मानती है –और जनहा  के महिला और पुरुष  सुबह –सुबह मंदिरो में दर्शन के लिए लाइन लगा कर  अपना दिन शुरू करते है ------उस राज्य की ज़मीन  संघ की कततारवादी हिन्दुत्व जिसका प्रतिपादन गांधी हत्याकांड के आरोपी रहे सावरकर  ने किया { गौर तलब है की नयी संसद का उदघाटन भी सावरकर की जनम जयंती  को ही हुआ है , संयोग तो नहीं प्रयोग ही है } उसका इस छेत्र में फल्ना –फूलना तो पक्का है |

             परंतु वे भूल गए की रामास्वामी नायकर का द्रविड़ कडगम आंदोलन भी चालीस साल पूरे कर रहा था | उन्के सिधान्त भी केवल राजनीतिक ही नहीं थे वरन वे  सनातन धरम के अवतरवाद और वर्ण व्यसथा  पर गहरी चोट करते थे | कडगम आंदोलन सनातन धरम की आसथाओ के बिलकुल विपरीत था |  यही कारण है की के कमराज की 1962 में सरकार काँग्रेस की अंतिम सरकार थी | उसके बाद डीएम के अन्नादूरई के नेत्रत्व में सरकार बनी | वे पेरियार के निकटतम थे परंतु उनके द्वरा एक ब्रामहन कन्या से विवाह को लेकर उन्होने संगठन तोड़ दिया ------ | द्रविड़ आंदोलन में सवर्ण और ब्रामहन का कट्टर विरोध था |  तब से लेकर आज तक वनहा  करुणानिधि के डी एम के और जयललिता वाले ए आई डी एमके  की ही सरकरे बनी है -----इस दौरान  बीजेपी को कोई राजनीतिक उपलब्धि नहीं हुई |

                   केरल – आंध्र – तमिलनाडू  में हमेशा असफल होने के बाद  संघ और मोदी के पास , पुनः धरम को परंपरा और पुरातन गौरव के  लिफाफे में लपेट कर  देश के सामने रखने की मजबूरी  है |  अगर नयी संसद के उदघाटन  पर मोदी जी का भासन  सुने तो पाएंगे --- “” पुरातन गौरव – इतिहास का वैभवशाली समय --- अमरतकाल  और आत्म निर्भर भारत – जैसे शब्द पाएंगे | जो उनके दल की  सोच को दर्शाते है ---- जिसमे  वर्तमान इतिहास को बदल्ने  की तड़प  है | अब वे 1 अगस्त 1947 के पंडित नेहरू के ऐतिहासिक भासन जैसा तो “”बोल ही “”नहीं सकते तो अवसर इवैंट बनाकर देश के सामने पेश कर सकते है |

 

    परंतु  दक्षिण के लोग कितने भी धरम प्रवण हो  ,परंतु वे धार्मिक कट्टरता के जहर को पूरी तरह अस्वीकार  करते है | यह केरल की अनेक घटनाओ से सीध हैं |