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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 21, 2022

 

भगवानो के चेहरे हम तय करते है या फिल्म और सीरियल ?

 

     सभी सनातनी  धरम के लोगो के लिए   राम -कृष्ण अवतारी पुरुष है , जो बहुतों के लिए आराध्य है | उनकी कथा रामचरितमानस -रामायण  में हैं |   भारत में उनके हजारो मंदिर भी हैं ,जनहा उनकी मूर्तिया की पुजा -अर्चना  सुबह -शाम  की जाती हैं |  परंतु इन सभी मंदिरो में उनके चेहरे  एक समान नहीं हैं | केवल एक आराध्य ऐसे हैं जो करोड़ो जगह एक जैसे ही  पुजा अर्चना होती है  ----वे है देवधिदेव  महादेव , क्यूंकी उनकी लिंग स्वरूप में आराधना होती है |  अन्य  देवताओ में सूर्य हैं -जिनकी आराधना उनके आगमन पर अर्घ्य देकर होती हैं |  वह भी सार्वदेशिक हैं |

                     अगर देखे तो हम पाएंगे की मनुष्य ने ही अपने आराध्य के स्वरूप को  मूर्त रूप दिया हैं |   हजारो और सैकड़ो वर्ष प्राचीन मंदिरो में जिन आरध्यों की प्राण प्रतिस्ठा हुई हैं  वे भी किसी न किसी मूर्तिकार की कल्पना  ही होती हैं | जिसे उस काल के शासक  और धरम के अधिकारियों ने मान्यता दी होगी | तभी तो उनकी निरंतर  आराधना ,आज तक की जा रही हैं |  जनहा तक हमारे देवी – देवताओ  के चित्र स्वरूप  का सवाल हैं , तो अधिकतर  राजा रवि वर्मा  द्वरा चित्रित हैं |  उन्होने लगभग  सभी देवी देवताओ के चित्र बनाए हैं |   राम दरबार , और राधा -कृष्ण  हो  अथवा  शिव -पार्वती हो , गंगा अवतरण  हो अथवा देवी द्वरा महिशासुर  का संहार हो , इन सभी घटनाओ का चित्रांकन  उनके द्वरा किया गया हैं |  यह सब आखिर उनकी कल्पना ही तो हैं !  अब हम उन्हे  पूज्य मानकर अपने घरो अथवा  मंदिरो में लगाते  हैं | उनकी आराधना  करते हैं , पूरी निष्ठा  और आस्था से | इस प्रकार हम देखे तो हमने ही अपने देवी -देवताओ को स्वरूप दिया हैं | जो हमारी आस्था का प्रतीक हैं |

                        देवी -देवता की मूर्ति  बनाने वाले  हमेशा  अपनी कल्पना से  ही किसी भी मूर्ति का निर्माण करते हैं | आज कल की तरह नहीं जनहा नेताओ की फोटो देकर चित्र या मूर्ति बनवाई जाती हैं |  परंतु मंदिरो में स्थापित मूर्तिया उन मूर्तिकारों की कल्पना होती हैं | इसीलिए जगन्नाथ पूरी के के और मथुरा के बाँके बिहारी में विराजे क्रष्ण की मूर्तियो में कोई साम्य नहीं हैं | सिवाय इसके की सनातनी दोनों को ही समान श्रद्धा  पूर्वक मानते हैं | 

                                इस आलेख का मन्तव्य  यह हैं की रामानन्द सागर की रामायण  टीवी सीरियल में सीता का पात्र निभाने वाली श्रीमति चीखलिया  ने  आदि पुरुष में रावण  का पत्र निभा रहे सैफ अली खान  के चित्र  पर टिप्पणी की थी “की रावण कम से कम  मुग़ल जैसा नहीं था ! अब उनके  इस कथन  को देखे तो पहला सवाल उठता हैं ,की वास्तविक रावण कैसा दिखता था ?  यह कोई मानव नहीं बता सकता , ना ही कोई ज्योतिषी  या धर्माचार्य ही | कारण यह हैं की उस समय कोई ऐसी विधा या विज्ञान नहीं था जिससे लोगो के चित्र लिए जा सकते | हाँ कुछ अति उत्साही  लेखक पुष्पक विमान के भी चित्र को तकनीकी रूप से संभव बताते नहीं थकते |  लेकिन अगर हम तर्क और तथ्य  पर  उस शक्ति की महत्ता  को जाने तब हम पाएंगे की  दुनिया के सभी धर्मो में “उस शक्ति “” को अव्यक्त और निराकार  ही पाते हैं | अब्राहम और -मूसा का खुदा हो अथवा ईसाई या इस्लाम का खुदा हो सभी को कमोबेश एक प्रकाश पुंज के रूप में माना गया हैं | केवल मूसा को ही उस शक्ति से वार्ता करने का अवसर मिला , जब उस शक्ति ने उन्हे  दस निर्देश  यहूदी समाज के लिए दिये |  अब्राहम और ईसा के समय में देवदूतों द्वरा उस शक्ति की इच्छा  उन लोगो तक पहुंचाई गयी थी | हालांकि ईशा को उस शक्ति का पुत्र माना जाता हैं  जिसे ,यहूदी औ र इस्लाम  नहीं मानते | उनके अनुसार ईश्वर कोई इंसान नहीं जिसके पुत्र हों | परंतु विश्वव्यापी ईसाई धर्म के विभिन्न घटको द्वारा  उन्हे देव पुत्र  ही माना जाता हैं |  इस्लाम में मोहम्मद साहब को  खुदा का संदेश वाहक  माना जाता हैं |  कुरान को खुदा की सीख के रूप में मान्यता हैं |  कहने का तात्पर्य हैं की मूल रूप से सभी धर्मो में उस पराशक्ति को निराकार और प्रकाश  के रूप में माना गया हैं | मूर्ति पुजा को भारत -नेपाल -म्यांमार की कुछ जातियो द्वरा तथा लाओस और थायलैंड  कंबोडिया आदि में प्रचलन हैं |  

                     तथ्य यह हैं की भारत में बौद्ध और जैन धरम का उद्भव  मूर्ति पुजा और उसके कर्मकांड में पुजारियों द्वरा किए जाने वाले भेदभाव  के वीरुध ही हुआ था | मूल रूप से दोनों ही धरम मूर्ति पुजा के स्थान पर “””आत्मा “” की शुद्धता  पर कर्म -सदाचार पर ज़ोर देते हैं | परंतु कालांतर में चीन -जापान और म्यांमार ,थायलैंड  आदि में बुध की बड़ी -बड़ी प्रतिमाए लगी ,और उनकी पुजा -अर्चना की जाती हैं | अब यह समय और मानव समाज की समझ की बात हैं की जिस उद्देश्य से मूर्ति पुजा का विरोध हुआ ----उसी की मूर्ति की पुजा की जाने लगी |

इस सब को देख कर यही लगता हैं की ईश्वर ने यह ब्राम्हांड बनाया है या नहीं -यह तो  डार्विन सिधान्त  विवादित कर चुका हैं | परंतु मानव समाज ने अपनी आस्था और विश्वास को व्यक्त  करने के लिए  अपनी कल्पना को साकार रूप देकर मूर्ति रूप में आराधना – उपासना शुरू  कर दी | वास्तव में यही इंसानी फितरत हैं | इस आलेख में उठाए गए सवाल या परिणाम तर्क और तथ्यो पर आधारित हैं | जिनसे किसी भी समुदाय अथवा व्यक्ति की आस्था को हानी पाहुचना उद्देश्य नहीं हैं | यदि किसी को ऐसा लगता हैं ---तब मैं उन सभी से करबद्ध हो कर छमा मांगता हूँ |