क्या फर्क हैं काँग्रेस के और भारतीय जनता पार्टी के वंशवाद मे ?
वंशवाद के मूल मे है -- विवाह संस्था , मोदी का यह कहना की काँग्रेस ने देश मे वंशवाद फैलाया हैं , इसका एक अर्थ यह भी हो सकता हैं की ''राजनीति ''' मे वे लोग ही आए जो परिवार छोड़ दे या विवाहित नहीं हो | इस कसौटी पर तो श्री अटल बिहारी वाजपाई के अलावा और कौन खरा उतरेगा ,कहना मुश्किल हैं | उनके इस प्रलाप से ग्रीक दार्शनिक अरस्तू के राज्य के सिधान्त की याद आती हैं , जिसमे उसने कहा था की ''''शासक बनाने वाले लड़को को बचपन मे ही परिवार से अलग कर देना चाहिए | एवं उन्हे विवाह की मनाही होनी चाहिए , हाँ उनके मानो - विनोद के लिए महिलाए सुलभ कराई जानी चाहिए """ | उसका तर्क था की परिवार के कारण शासक मे निस्पक्श्च्ता नहीं रह जाती हैं | वह परिवार के मोह मे फंस जाता हैं | साम्यवादी क्रांति के बाद चीन मे ''कम्यून "" की स्थापना की थी , जिसमे लड़के और लडकीय अलग -अलग रहते थे | उनका खाना एक साथ होता था , परंतु सोते अलग - अलग थे | परंतु आखिर मे पार्टी नेत्रत्व को यह प्रयोग बंद करना पड़ा | वैसे मोदी ने लोकतन्त्र के चार दुश्मन बताए ---वंशवाद - जातिवाद --संप्र्दयवाद और अवसरवाद , वासतवे मे प्रथम तीन मूल रूप से एक हैं | '''वंश''' से ही कुल -गोत्र - जाति और संप्रदाय का स्वयमेव निर्धारण हो जाता हैं | क्योंकि इन तीनों संस्थाओ मे कोई ''''' चुनाव'''करके नहीं आता हैं वरन जनम लेते ही इन तीनों का निर्धारण हो जाता हैं | रही बात अवसरवाद की तो , वह तो ''बुराई'''नहीं वरन '''गुण''' माना जाता हैं | अङ्ग्रेज़ी और हिन्दी याहा तक की गवई -गाव की भाषा मे भी यही कहा गया हैं { मोदी भोजपुरी - मैथिली और मगही मे भी बोले थे } समय चूक पुनि का पछताने अथवा अब पछताए होत का जब चिड़िया चूक गयी खेत आदि ऐसी ही कहवाते हैं , जिनमे अवसर '''पहचानने """" की सीख दी गयी हैं | पर गुजरात के मुख्य मंत्री ''उल्टी सीख ''''दे रहे हैं |
पटना मे मोदी ने राहुल गांधी को शहज़ादा कहने पर काँग्रेस पार्टी की प्रतिकृया का जवाब देते हुए कहा की , मैं उन्हे शहज़ादा कहना बंद कर दूंगा , बशर्ते काँग्रेस पार्टी यह वादा करे की वह अपने यहा से वंशवाद को परिवारवाद को खतम कर दे | यानि की उन्हे काँग्रेस से ''एलेरजी'' नहीं हैं , वरन उसे उस परिवार से हैं जिसके दो लोग प्रधान मंत्री रहे हैं , और देश के लिए शहीद हुए | दुनिया के प्रजातांत्रिक इतिहास मे बिरले परिवार ही हुए हैं जिनके दो लोगो ने देश का नेत्रत्व किया हो | हाल ही मे अमेरिका के बुश परिवार के पिता और पुत्र ने देश का नेत्रत्व किया | श्री लंका मे यही बात भंडारनायके परिवार मे भी हुई श्री भंडार नायके की हत्या के बाद श्रीमति सीरिमावों भंडारनायके प्रधान मंत्री बनी फिर उनकी पुत्री श्री कुमार तुंगा प्रधानमंत्री बनी | बाद मे सीरिमावों भंडार नायके राष्ट्रपति भी बनी |
इसलिए परिवारवाद को "कलंक" समझने की आदत का आधार क्या हैं , यह स्पषट करना होगा उन लोंगों को जिनका 'आरोप '' हैं की इस वंशवाद ने राजनीति को दूषित कर दिया हैं | अब उनसे यह पूछना होगा की आखिर क्या हैं कारण ? क्या इसकी वजह यह तो नहीं की खानदान की विश्वसनीयता - और पकड़ तथा जनता मे उनके प्यार से कनही उन लोगो डर तो नहीं लग रहा हैं ---जो इस """ अवसर""" से वंचित हैं ? शायद ऐसा ही हैं | अब दक्षिण के राज्यो से शुरू करे तो हम पाएंगे की केरल के मुख्य मंत्री चांडी के पिता भी केरल मे मंत्री रहे फिर मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे | तमिलनाडु मे तो डीएमके मे करुणानिधि मुख्य मंत्री रहे और और उनका समस्त परिवार राजनीति मे हैं बेटा विधायक दोसरा बेटा संसद और बेटी भी राज्य सभा सदस्य हैं | जयललिता को भी पूर्व मुख्य मंत्री एम जी रामचंद्रन की राजनीतिक विरासत मिली जो उनकी पत्नी नहीं प्राप्त कर सकी | अब यह एक संयोग ही हैं की ब्रा महण विरोधी राजनीति की सर्वे सर्वा एक ब्रा महण कन्या ही हैं | गोवा मे भी पिता -पुत्री मुख्य मंत्री रह चुके हैं | उड़ीसा मे बीजू पटनायक मुख्य मंत्री रहे आज उनके चिरंजीव वहा के मुख्य मंत्री हैं | उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा के पुत्र आज उतराखंड के मुख्य मंत्री हैं |
इतने उदाहरणो के बाद क्या मोदी के कथन को ''वज़न'' दिया जा सकता हैं ? बिलकुल नहीं , क्योंकि जो घटनाए इतिहास मे ''स्वयं सिद्ध""" हैं वे एक मुख्य मंत्री के कहने से गलत नहीं हो जाती हैं | उत्तर प्रदेश मे मुलायम सिंह यादव के बाद उनके सुपुत्र अखिलेश यादव आज मुख्य मंत्री हैं | पंजाब मे पिता -पुत्र अकाली सरकार मे मुख्य मंत्री और उप मुख्य मंत्री हैं | कश्मीर मे तो तीसरी पीड़ी मुख्य मंत्री हैं - शेख अब्दुल्ला फिर फारुख अब्दुल्ला और अब ओमर अब्दुल्ला , क्या खराब हुआ वहा पर ?
मोदी के इस प्रलाप मे उनका साथ उनकी पार्टी के उपाध्यक्ष प्रभात झा ने कुछ इस अंदाज़ मे दिया की , अगर किसी नेता के परिवार का सदस्य राजनीति मे आ जाता हैं तो वह वंशवाद नहीं हैं , लेकिन किसी नेता के पुत्र या पुत्री को इसलिए पार्टी अपना उम्मीदवार नहीं बनती हैं की उसके पिता पार्टी के नेता हैं | अब इस '''आ जाने''' और रिश्ते के कारण टिकिट न देने का तर्क क्या हैं ? जिस किसी को भी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने का उम्मीदवार बनाया जाता हैं , तो जनता को क्या यह बात नहीं मालूम होगी की पार्टी का प्रत्याशी किसका भाई - भतीजा या पुत्र हैं ? भारतीय जनता पार्टी के अलावा यह आरोप एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लगाया जा रहा हैं , जिसका वजूद ही उसके पिता के कारण हैं --जी हाँ वाई एस आर रेड्डी जो आंध्र के मुख्य मंत्री थे उनके सुपुत्र जगन रेड्डी ने तेलंगाना के मुद्दे पर कहा की सोनिया गांधी अपने पुत्र को प्रधान मंत्री बनाने के लिए तेलुगू बेटो के भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं ! हैं न अजीब बात सूप तो सूप चलनी भी बोले | आलेख का तात्पर्य मोदी जी के तर्क के जवाब मे हैं | | क्योंकि वे अगर राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के सदस्य हैं जिसमे ''जीवनदानी''' सदस्यो को आजन्म अविवाहित रहना होता हैं , तो यह उनका फैसला हैं |लेकिन यह कोई ध्रुव सत्य नहीं हैं , की ऐसे नेता '' आदर्श''' होते हैं जो अविवाहित होते हैं | |मैं यहा मोदी जी को एडोल्फ हिटलर का उदाहरण देना चाहूँगा , जिनहोने आतंहत्या करने के पहले एवा ब्राउन से शादी रचाई थी | कहने की बात नहीं हैं की दुनिया जानती हैं की वे कितने ''आदर्श''' लीडर साबित हुए की आज भी लोग उन्हे गाली ही देते हैं | इतिफाक से हिटलर भी अविवाहित नेता थे !
इतने उदाहरणो के बाद क्या मोदी के कथन को ''वज़न'' दिया जा सकता हैं ? बिलकुल नहीं , क्योंकि जो घटनाए इतिहास मे ''स्वयं सिद्ध""" हैं वे एक मुख्य मंत्री के कहने से गलत नहीं हो जाती हैं | उत्तर प्रदेश मे मुलायम सिंह यादव के बाद उनके सुपुत्र अखिलेश यादव आज मुख्य मंत्री हैं | पंजाब मे पिता -पुत्र अकाली सरकार मे मुख्य मंत्री और उप मुख्य मंत्री हैं | कश्मीर मे तो तीसरी पीड़ी मुख्य मंत्री हैं - शेख अब्दुल्ला फिर फारुख अब्दुल्ला और अब ओमर अब्दुल्ला , क्या खराब हुआ वहा पर ?
मोदी के इस प्रलाप मे उनका साथ उनकी पार्टी के उपाध्यक्ष प्रभात झा ने कुछ इस अंदाज़ मे दिया की , अगर किसी नेता के परिवार का सदस्य राजनीति मे आ जाता हैं तो वह वंशवाद नहीं हैं , लेकिन किसी नेता के पुत्र या पुत्री को इसलिए पार्टी अपना उम्मीदवार नहीं बनती हैं की उसके पिता पार्टी के नेता हैं | अब इस '''आ जाने''' और रिश्ते के कारण टिकिट न देने का तर्क क्या हैं ? जिस किसी को भी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने का उम्मीदवार बनाया जाता हैं , तो जनता को क्या यह बात नहीं मालूम होगी की पार्टी का प्रत्याशी किसका भाई - भतीजा या पुत्र हैं ? भारतीय जनता पार्टी के अलावा यह आरोप एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लगाया जा रहा हैं , जिसका वजूद ही उसके पिता के कारण हैं --जी हाँ वाई एस आर रेड्डी जो आंध्र के मुख्य मंत्री थे उनके सुपुत्र जगन रेड्डी ने तेलंगाना के मुद्दे पर कहा की सोनिया गांधी अपने पुत्र को प्रधान मंत्री बनाने के लिए तेलुगू बेटो के भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं ! हैं न अजीब बात सूप तो सूप चलनी भी बोले | आलेख का तात्पर्य मोदी जी के तर्क के जवाब मे हैं | | क्योंकि वे अगर राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के सदस्य हैं जिसमे ''जीवनदानी''' सदस्यो को आजन्म अविवाहित रहना होता हैं , तो यह उनका फैसला हैं |लेकिन यह कोई ध्रुव सत्य नहीं हैं , की ऐसे नेता '' आदर्श''' होते हैं जो अविवाहित होते हैं | |मैं यहा मोदी जी को एडोल्फ हिटलर का उदाहरण देना चाहूँगा , जिनहोने आतंहत्या करने के पहले एवा ब्राउन से शादी रचाई थी | कहने की बात नहीं हैं की दुनिया जानती हैं की वे कितने ''आदर्श''' लीडर साबित हुए की आज भी लोग उन्हे गाली ही देते हैं | इतिफाक से हिटलर भी अविवाहित नेता थे !