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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 20, 2021

 

अदालत बेखबर -आयोग सुस्त --सत्ता प्रभाव का इस्तेमाल मनमानी


बॉक्स

सत्ता को न ना तो 2020 में कोरोना से लड़ने की तमीज थी और ना जानकारी ---तब बे बड़े नगरो से लाक डाउन के खोफ ने फिर भागने पर मजबूर कर दिया | रेले स्थगित की जा रही हैं --बस वाले मनमाना किरया इनमजबूर लोगो से वसूल रहे हैं जो पहले ही अपना सब कुछ खो चुके हैं | पर कोई नियंत्रण इस जबरदाशती को रोकने का नहीं |

नगरो में इस बार शमशान गहातों पर दिन रात जलती चिताएँ – हर शहर में एक "” मानिकरणिका घाट "” बना रही हैं | कहते हैं की काशी स्थित मानिकरणिका घाट -जनहा सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने अपने पुत्र के क्रिया कर्म के लिए भी दायित्व निभाते हुए कफन मांगा था ! आज सभी बड़े शहरो में शमशान घाट छोटे पद गए हैं < चिताओ को भी लाइन लगानी पद रही हैं -उन्हे क्रियाकर्म के लिए अपनी बात जोहनी पड़ रही हैं ! साथ आए रिश्तेदारों को टोकें दिये जा रहे हैं ---आठ-आठ घंटे इंतज़ार करना पड़ रहा हैं --यह तैयारी है हमारी सरकारो की --- ! शीर्ष नेत्रत्व को भासन देने और रैलि करने से फुर्सत नहीं हैं | जब देश की जनता को वाकसिन नहीं मिल रही हैं , तब दस - पंद्रह दिन पहले तक "”वाहवाही लौटने के लिए दूसरे देशो को वाकसिन बांटी जा रही थी -जिससे की नरेंद्र मोदी की विदेशो में छवि बने | अपने मेकअप के लिए तह कदम उठाने वालो को नहीं मालूम था की – जलदी इस महामारी से लोगो को सुरक्शित रखने के लिए वाकसिन की जरूरत पड़ेगी ? अब जल्दबाज़ी में जब पानी सर ऊपर निकाल गया तब रूसी - चीनी - और आमेरकी आदि सभी वैक्सीनों को देश में लगाने की झटपट इजाजत दे दी !!! यह सोच है निर्णय है सत्ता के अंधसोच का |

शहरो से गावों की की ओर भाग रहे लोगो की जेबे कट रही हैं -उन्हे लूटा जा रहा हैं ---- पारा उन बस अड्डो या रेलवे स्टेशनो पर पुलिस का कोई बंदोबस्त नहीं हैं | गैर बीजेपी वाले राज्यो के साथ राजनीतिक शत्रुता निकालने केंद्रीय मंत्री इन राज्यो की सरकार पर दोषारोपण करते हैं | मदद नहीं करते | प्रधान मंत्री का 2014 में बहू चर्चित "”गुजरात माडल "” आज बुरी तरह फेल हैं | अहमदाबाद हो या सूरत सभी जगह त्राहि त्राहि हैं | ऑक्सीज़न -वाकसिन - और वेंटीलेतार की कमी पहले भी थी अभिया भिया हैं | बयानो से आक्सीजन प्लांट और वाकसिन भसनों से सुलभ करने की खबरे छप जा रही हैं | लोगो को शयता के लिए टेलेफोन नंबर अखबारो में दिये जा रहे हैं ----पर उन नंबरो को उठाने वाला कोई नहीं | शवो को नगर निगम के कूड़ा वाहनो से लाया जा रहा हैं |

यह वैसी ही हालत हैं की जब रोम जल रहा था -नीरो बंसारी बाजा रहा था "” जब देश महामारी की विभिसिका से जूझ रहा था तब नरेंद्र मोदी बंगाल में चुनावी रैली कर रहे थे !

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1----- पाँच राज्यो में विधान सभाओ के चुनावो में रैलियो और सभाओ में जिस प्रकार कोरोना आपदा की नियमो की अनदेखी देश के प्रधान मंत्री और अन्य मंत्रियो द्वरा की गयी ---- जिसे टेलेविजन पर समस्त देश वासियो ने देखा ----निर्वाचन आयोग उन रैलियो और सभाओ की लाखो की बिना मास्क पहने लोगो की भीड़ को नहीं देख पाया ! क्यू , क्या उसे केंद्र में सत्ताधारी दल का आतंक साता रहा है ? जो की उनकी नियुक्ति करता है ? और अवकाश प्राप्ति के बाद भी उनको एक बेहतर पद देकर नवाजता हैं ? क्या इसे संवैधानिक दायित्वों की अनदेखी या अवहेलना नहीं कहा जा सकता ? आसाम में बिसवा शर्मा {बीजेपी} को कदाचरण के कारण 48 घंटे के लिए चुनाव प्रचार से अलग का आदेश दिया ----जिसे एक दिन बाद ही 24 घंटे का कर दिया ?क्यू यह सज़ा घटाई गयी ? की वे सत्तरूद दल बीजेपी के थे ,इसलिए ? मतदान केंद्र में बंगाल के चुनावो में केंद्रीय पुलिस द्वरा गोली चलन और एक व्यक्ति की मौत --पर क्या कारवाई की ? वनहा के पुलिस अधीक्षक ने पुलिस बल को भी घेरे में लिया ,फिर भी उन लोगो को ड्यूटी से वापस नहीं बुलाया गया , की काँच के दौरान वे -वनहा नहीं रहे | जिससे की जांच प्रभावित ना हो | प्रकरतीक न्याय के सिद्धांतों को भूल गए या दर गए ?

सम्पूर्ण चुनावो में केन्द्रीय चुनाव आयोग ने अपने नाम के अनुरूप केंचुआ जैसा ही बर्ताव किया | विगत तीन चुनव आयुक्तों को पूर्व चुनाव आयुक्त शेषन की लाइन मे रखना उस ईमानदार और निसपक्ष अफसर की बेइज्जती ही होगी | जिस रोल ऑफ आनर पर उनका नाम होगा -बदकिस्मती से उनके नीचे विगत तीन विवादस्पत चुनाव आयुक्तों का भी नाम लिखा होगा |

पिछले चुनाव आयुक्त लवाशा द्वरा प्रधान मंत्री द्वरा चुनाव के दौरान नियम वीरुध कार्य पर एतराज़ जताने पर ---उनकी सम्मति कारवाई में नहीं लिखी गयी ? क्यू --क्या आयोग भी कोई मंत्रिमंडल हैं -जनहा विमत नहीं दर्ज़ होता | क्यूंकी प्रधान मंत्री या मुख्या मंत्री बिजनेस रूल के अनुसार मंत्रिमंडल की शक्तियाँ रखते हैं | परंतु कोई भी आयोग - यानहा तक की अदालतों में दो जज भी विपरीत रॉय व्यक्त करते हैं ---और वे फैसले में लिखी जाती हैं | संवैधानिक रूप से मुख्य चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जज के समकच्छ किया गया हैं | अतः कारवाई भी अर्ध न्यायिक रूप से होना चाहिए ----पर ऐसा करने का साहस वे नहीं कर सके | यह तो आने वाले समय में उनके निर्णयो की समीक्षा होगी ?


2------- सुप्रीम कोर्ट की भी इस दौरान भूमिका कई बार शंका के घेरे में रही --- 2014 से सुप्रीम कोर्ट में जो घटनाए हुई हैं , वे विगत 70 साल में नहीं हुई थी | जिस प्रकार कोरोना महामारी ने देश कि जनता को त्रस्त कर रखा हैं । --उसी प्रकार परम्पराओ और प्र्क्रतिक न्याय के सिद्धांतों कि अनदेखी करते हुए अनेक फैसले किए गाये | मुश्किल यह हैं कि सुप्रीम कोर्ट में इस समय प्रधान न्यायाधीश ने अपने सहयोगीयो से ऊपर कि स्थिति बना ली हैं | पहले सभी जज एक दूसरे को ब्रदर कह कर परिचय देते थे | जो उनकी समानता का द्योतक था | प्रधान न्यायाधीश कि भूमिका फ़र्स्ट एमंग इक्वल कि हुआ करती थी | परंतु मोदी सरकार के आने के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायधीश मिश्रा ने कई रद्दो बादल नियमो ऐसे किए ---जिनसे बराबरी का दर्जा ---- नहीं रहा , वरन मातहत का हो गया ! सबसे दुखद स्थिति तब बनी जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजो ने प्रांगड़ में बैठ कर अपना रोष प्रधान न्यायाधीश के नए नियमो के प्रति व्यक्त किया |जिन जुस्टिस गोगोई ने विरोध का झण्डा उठाया था , उनका कार्यकाल भी दागदार रहा | जिसमे अयोध्या मंदिर का मामला था | दूसरा उन्होने 1947 के समय मौजूद समस्त उपासना स्थलो को ज्यू का त्यु बने रहने का फैसला दिया | परंतु उनकी लेखनी कि कमजोरी है अथवा कोई कानूनी त्रुटि कि मथुरा कि अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश ने व्र्न्दवन में स्थित मस्जिद कि भूमि का पुरातत्व सौर्वेक्षण कराये जाने का आदेश दिया | इसी तरह काशी में ज्ञानवापी स्थित मस्जिद को भी विवाद में लाया गया हैं | इसके लिए अदालतों का सहारा लिया जा रहा हैं ----हालांकि यह राजनीतिक उद्देश्य से किया जा रहा हैं | हिन्दुओ का धुर्विकारण करने और देश के समस्त हिन्दुओ कि एक मात्र प्रतिनिधि होने के बीजेपी के दावे को मजबूत करने कि नियत से |जस्टिस गोगोई कि निसपक्षता को इसी घटना से नापा जा सकता हैं कि देश का प्रधान न्यायधीश रह चुका व्यक्ति ---राजय सभा में राष्ट्रपति द्वरा नामित हो !!!!

अपराधसंहिता प्रक्रिया में अपराधो के छेत्रधिकार को बदलने का श्रेय भी --सुप्रीम कोर्ट कि '’’’’एकल पीठ '’’ द्वरा बिहार सरकार कि याचिका पर सुशांत मौत के मामले में जांच महाराष्ट्र पुलिस से लेकर सीबीआई को दी गयी | जो पूरी तौर पर एक चुनावी पैंतरा था | जिसमे अदालत का इस्तेमाल हुआ |अफसोस सुप्रीम कोर्ट अपनी गरिमा पर दाग ले लिया | मजे कि बात यह हैं कि -----उसके बाद कोई भी मुकदमा एकल पीठ द्वरा नहीं सुना गया !!!! क्यू ?

यही बात परमवीर सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनाई , मात्र एक पत्र पर गृह मंत्री पर वसूली के आरोप --को आधार मानकर फिर सीबीआई को जांच सौप दी | अरुणाचल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जिनहोने आतमहतया कर ली थी | उनकी पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट के एक जज द्वरा पैसा लिए जाने का सार्वजनिक आरोप लगे गया था , परंतु किसी ने उसका नोटिस नहीं लिया |तब क्या जांच नहीं हो सकती थी ?

दमन -डीयू के एकमात्र निर्दलीय सांसद मोहन डेलेकर के सुसाइड नोट में स्पशता रूप से केंद्र प्रशासित छेत्र के प्रशासक ,जो कि गृह मंत्री के अधिक विश्वासी है , उनको ही आतंहत्या करने के लिए मजबूर करने वाला बताया ! तब सुप्रीम कोर्ट ने क्यू नहीं उस संगयान लिया ? क्या इसलिए कि वे सत्तसिन पार्टी के शिखर पुरुष कि छत्र छाया में हैं | अतः उसे नहीं छू नहीं सकते !!!!! एक विवादास्पद अधिकारी के लिखे पत्र पर तो सीबीआई जांच और एक सांसद के सुसाइड नोट को बेकार समझ कर दरकिनार ? शंका तो उत्पन्न करता हैं कारण भले कुछ भी रहा हो |


3---- भले ही देश की सर्वोच्च अदालत सरकार को बचाने के लिए कानून का सहारा ले --परंतु राज्यो के हाइ कोर्ट अपनी जिम्मेदारियो से वाकिफ हैं और वे सवाल उठा रहे हैं और निर्णय भी जनता के हहित में दे रहे हैं | जैसा की अभी इलाहाबाद हाइ कोर्ट ने योगी सरकार को निदेश दिया की – लखनऊ -कानपुर - प्रयागराज -वाराणसी और गोरखपुर में पूरी तरह से लाक डाउन करे और अदालत को रिपोर्ट दे |

परंतु योगी सरकार की आहनयमतता देखिये की फैसले के कुछ घंटे में ही सरकार ने बयान दिया की वह उच्च न्यायालय के फैसले को नहीं मानेगी ! और सुप्रीम कोर्ट जाएगी | अनेकों कारण बताए गए | और देखिये सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे ही दिन उच्च न्यायालय के फैसले पर "””रोक"” लगा दी | इसे क्या कहेंगे ? खुद ही सोचे ?



Apr 7, 2021

 

सरकार की अर्ज़ी पर अदलत की मर्ज़ी --- सत्ता सुरक्षित !!



मुंबई के हटाए गए पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह द्वरा राज्य के

गृह मंत्री देसमुख के वीरुध भ्रष्ट आचरण से वसूली के आरोप पर ---मुंबई हाइ कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए "””आरोपो की जांच के लिए सीबीआई " को आदेश दिया हैं | सीबीआई भी गैर बीजेपी शासित राज्य की सरकार के वीरुध जांच के लिए तुरंत हाजिर हो गयी ! कुछ कुछ ऐसा ही सुशांत की रहस्यमयी मौत की जांच के समय भी हुआ था | तब सीबीआई जांच का आदेश सुप्रीम कोर्ट की "”एकल बेंच "” ने दिया था | सुप्रीम कोर्ट में डबल या फुल्ल बेंच ही परंपरा के अनुसार मामलो की सुनवाई करती हैं | परंतु बिहार सरकार की अर्ज़ी पर एकल पीठ ने स्थापित आपराधिक जांच के नियमो को उलट कर – अपनी मर्ज़ी से सीबीआई की जांच का फैसला दिया |

अब इसी तरह गुजरात के निलंबित पुलिस अधिकारी { शायद बरख़ाष्ट } संजीव भट्ट ने भी गुजरात दंगो के दौरान सीबीआई की जांच में तत्कालीन मुख्य मंत्री और गृह मंत्री के वीरुध भी उनकी संलिप्तता के आरोप लगाए थे < परंतु --- वे आज भी एक पुराने केस में जेल में बंद हैं | ज्ञात हो तब मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी थे और गृह मंत्री अमित शाह थे !

गुजरात की ही सीबीआई की विशेस अदालत ने कुख्यात इशरत जंहा की कथित तौर पर पुलिस द्वरा मारे जाने की जांच कर रहे

वी आर रावल ने दो पोलिस अधिकारियों आई जी जी एल सिंघल और तरुण बरोट तथा अनाज चौधरी को निर्दोष घोषित किया --- यह कहते हुए की की मारे गए "”आतंकियो "” की बेगुनाही का कोई सबूत नहीं हैं ! “” विधि शास्त्र के अनुसार आरोपी को अपराध सीध होने के पूर्व तक "”निर्दोष "” समझा जाएगा ! शायद इस सिधान्त को विशेस कोर्ट ने तिलांजलि दे दी थी | उन्होने कहा की "” मुठभेड़ फर्जी नहीं थी "” | अब जांच मुठभेड़ की थी अथवा उसमें मारे गए व्यक्ति की थी ? फैसले साफ लिखा हैं की "”इशरत जंहा आतंकी नहीं थी --ऐसे सबूत नहीं मिले हैं "” | अब पाठक खुद फैसला करे की इसका क्या अर्थहै ?

परमवीर सिंह ने निव्र्त्मन ग्राहमन्त्री पर यह भी आरोप लगाया था की सांसद मोहन डेलकर की आत्म हत्या ,के मामले में वे बीजेपी नेताओ को फसाने के लिए कह रहे थे ! जबकि मोहन डेलकर की मौत के स्थान पर उनका एक पत्र पुलिस को मिला था --जिसमें उन्होने दादर नगरा हवेली के प्रशासक एवं गुजरात के नेता तथा अमित शाह के करीबी पटेल को आतम हत्या के लिए दोषी बताया था ! अब ऐसे में बीजेपी नेताओ को फँसाने का आरोप कैसे लग सकता हैं ---जबकि म्रतक ने सारी बात तफसील से मरने से पहले पत्र में लिख दी थी ? अब इस पर हाइ कोर्ट का मौन समझ में नहीं आता |

यह वैसा ही मामला हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट की एक ट्रेनी ने प्रधान न्यायाधीश पर अनुचित व्यव्हार के आरोप लगाए थे | लेकिन उसकी सुनवाई बंद कमरे में हुई और मामले को रफ़फा -दफ़फा कर दिया गया |

महाराष्ट्र के एक जज लोया की संदेहजनक स्थितियो में हुई मौत की जांच "”सत्ता "” के कुछ लोगो के लिए काफी तकलीफ देह हो रही थी | वे गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह के एक मामले की सुनवाई कर रहे थे ---- जिसे सुप्रीम कोर्ट ने राजनाइटिक प्रभाव से मुक्त रखने के लिए मामले की सुनवाई गुजरात में नहीं कराकर महाराष्ट्र में किए जाने का निर्देश दिया था | परंतु मुंबई बार असोसिएसन द्वरा बार बार याचिका लगाने पर भी जुस्टिस लोया की संदिग्ध मौत की जांच "””सीबीआई "” से नहीं कराई गयी < क्योंकि सत्ता को संकट सता रहा था !!!

अब बात करते हैं कर्नाटक हाइ कोर्ट के आदेश की ,जो मुख्यमंत्री येदूरप्पा के भ्रष्टाचार से संबन्धित हैं | मामला 45 एकड़ भूमि को सरकार के स्वामित्व से निकाल कर किसी को निजी लाभ पाहुचने का था | जिसकी जांच भ्रस्ताचर निरोधक दस्ते ने की थी | उसने इस मामले में "” प्राथमिकी यानि एफ आई आर भी दर्ज़ करा दी थी | इस एफ आई आर को रद्द करने की याचिका को हाइ कोर्ट ने रद्द कर दिया ! परंतु सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश बोरवाड़े की पीठ ने ---- येदूरप्पा को राहत देते हुए हाइ कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी ! और येदूरप्पा की मुख्य मंत्री की कुर्सी बच गयी !


एक और मामले में केरल हाइ कोर्ट को एक गंभीर मसले पर फैसला लेना हैं | मामला हैं की एंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने केरल के एक शासकीय व्यक्ति के यानहा छपा मारा | परंतु बाद में ऐसा पता चला की यह कारवाई राजनीतिक द्वेष के कारण की गयी थी | तब केरल की सीआईडी ने ईडी के अफसरो के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ कर के कारवाई शुरू कर दी | तब केंद्र सरकार को परेशानी हुई क्योंकि छपा मारने वालो ने विधि सम्मत प्रक्रिया से कारवाई नहीं की थी | केरल हाइ कोर्ट में देश के सलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस प्राथमिकी को रद्द करने के लिए याचिका दायर की | उनका तर्क था की ---एक जांच एजेंसी दूसरी जांच एजेंसी के खिलाफ जांच करे | सलिसीटर साहब भूल गए की सीबीआई के निदेशक ने अपने अतिरिक्त निदेशक के विरूढ़ा जांच कराई थी | बाद में सुरक्षा सलहकार अजित दोबल के बीच बचाव से मामला सुल्टा था | उस बारे में तौषार मेहता क्या कहेंगे ?