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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 29, 2016

अब वकील का काम कब्जा दिलाना और कब्जा को हटाना भी हो गया---- बार काउंसिल ध्यान दे


आज एक  एडवोकेट  साहब का बोर्ड पड़ा व्हतासप  पर जिसमे वकील साहब ने  ज़मीन पर कब्जा दिलाने और कब्जे को खाली करने  का काम करने का दावा किया है | इतना ही नहीं विवादित   भूमि का  भी काम कर  किया है | सवाल यह है की बार काउंसिल  के सदस्य के रूप   मे कोई ऐसा काम करने को  ""सदस्य ""'की अयोग्यता  माना है | प्रथम किसी भी वकील को अपन    विज्ञापन देने को निसिद्ध  किया हुआ है |  फिर इस प्रकार का  साइन बोर्ड बनवा कर प्रदर्शित करना ,तो
          व्यावसायिक रूप से  वैध नहीं है |  फिर उन्होने तो अपने को  बार असोशिएशन का  पदाधिकारी बताया ह           है | इतना ही नहीं उन्होने तो  तीन -तीन कार्यालय खोल रखे है |


                                                           उनकी विशेषज्ञता भूमि  आवंटन की मुश्किलों को आसान करना -                तथा  विवादित अर्थात मुकदमे बाज़ी मे फांसी ज़मीन का भी ""'निपटारा"" करने का काम हाथ मे लिया ह            कहने का मतलब की  वे भूमि से संबन्धित  सभी फ़ौजदारी और राजस्व के मुकदमे को निपटने का भी
        वादा अपने साइन बोर्ड मे किया हुआ है |
                         
                                                     वैसे भूमि के विवादो के चलते राजधानी मे अनेक लोगो ने  आत्महत्यआ
        भी की है | इन मामलो मे  एडवांस लेकर भूमि की रजिस्ट्री  नहीं करना और पैसा वसूल करने के लिए
        पुलिस की मदद लेकर दबाव बनाना है | अभी दो दिन पूर्वा ही एक व्यक्ति ने कर्जदारों के दबाव और
         धमकाने के लिए प्लिके का सहारा लिए जाने का मामला सामने आया है | इसमे एक ट्रेनी आईपीएस
        अफसर की भूमिका होने का तथ्य सामने आया है | राजधानी मे  """क़र्ज़ मगरमच्छ "" या अङ्ग्रेज़ी मे
       कहे तो """""लोन शार्क """ बड़ी संख्या मे है | जो अपने काले धन को क़र्ज़े पर देकर  दस प्रतिशत प्रतिमाह       तक का ब्याज वसूलते है | ऐसा तब हो रहा है जबकि प्रदेश मे  ""साहूकारी का लाइसेंसे """ लेना होता है
      क़र्ज़ देने और अनुमान्य दर का ब्याज वसूलने के लिए यह वैधानिक  व्यसय है | परंतु आजतक  कर्ज़
      की वसूली मे आतम हत्या के मामलो मे  क़र्ज़ ""देने वाले """ कभी भी वैधानिक रूप से महाजन नहीं थे |
       इन गैर कानूनी महाजनो  के वीरुध ना तो प्रशासन और ना ही पुलिस कोई कारवाई कर रही है | आखिर
          कब तक इन सफेदपोश  लोगो द्वारा गैर कानूनी रूप से """जान लेने वाला ब्याज """वसूला जाएगा ?

Apr 21, 2016

कहने मे क्या जाता है सरकार --शासन और न्यायालय

कहने मे क्या जाता है --- सरकार -शासन और न्यायालय
हाकिम का कहना हुकुम हुआ करता है , ऐसा इस देश की 90% जनता का विश्वास है | इस श्रेणी मे तहसीलदार से लेकर मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री तक आते है | अदालतों के जज भी आम लोगो के लिए माई -बाप की श्रेणी मे आते है | जिनके मुंह से निकले शब्दो को औसत भारतीय हुकुम मानता है | उस पर विश्वास लाता है | वैसे तो इसी कतार मे डाक्टर भी आते है जिनहे वह धरती पर भगवान के दूत मानता है | परंतु जब हाकिम और धरती पर इन “”देव दूतो “” के कथन को वह कोरा झूठ और धोखा देने वाला पता है तब उसकी रीढ और विश्वास दोनों ही टूट जाते है | लेकिन यह आजकल होता रहता है | पानी की बिजली की या सरकारी अमले की बेईमानी की बात जब की जाती है तब ढपोर शंख की भांति नेता -मंत्री और अफसर कोरा आश्वासन ही जनता को थमा देते है | खास कर चुनावी सभाओ मे कहे गए "””वचनो "””को तो "”” जुमला """ही बता दिया जाता है , जबकि उनही वचनो पर ईमान ला कर भोली - भली जनता उन्हे सिंहासन पर बैठा देती है | गलती का एहसास होने पर उसके पास पाँच वर्षो तक इंतज़ार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता | क्योंकि इन सामर्थ्यवान लोगो के लिए तो "””कहने मे क्या जाता है "””

देश मे राज नेताओ द्वारा जनता -जनार्दन को भरोसे के रूप मे आश्वासन बाँट देना आम आदत हो गयी है | मंत्री और नेता कभी भीड़ को निराश नहीं करते है --- जब वह कोई मांग करती है | परंतु उसे पूरा करने के इंतेजाम भी ''नहीं''' करते | क्योंकि उनके पास '''पैसे का इंतेजाम करने वाले की अनुमति नहीं होती "””” ---अर्थात सरकार मे खजाना किसी और के पास तथा हुकूमत किसी और के पास | मौजूदा प्रजातंत्र मे सरकार --शासन और प्रशासन के नए अर्थ रच दिये गए है | सरकार का मतलब है प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री और मंत्री ---शासन का द्योतक है बड़े - बड़े आला अफसर जो हक़ीक़त मे सरकार मे बैठे मंत्रियो को भी चलाते है | आलम तो यह हो जाता है की मंत्री को अपने विभाग के सचिव की शिकायत मुख्य मंत्री से करनी होती है | क्योंकि मुख्य मंत्री ने वह अधिकार अपने पास रखे है | अब प्रशासन वह है जो ज़मीन पर दिखाई पड़े --जैसे पुलिस - नगर निगम -पंचायत या कलेक्टर और माथात | वैसे गावों मे तो पटवारी भी "”साहब "”” कहे जाते है | तब इस तस्वीर को सहज मे समझा जा सकता है |

अब बात करते है की दौरे पर जाने वाले मुख्य मंत्री तो हर स्थान को स्कूल -अस्पताल पानी और बिजली सभी कुछ देने का वादा कर आते है | जब वनहा के लोग सरकारी दफ्तरो मे व्हा के अमले के पास जाते है तब जवाब मिलता है "”” ऐसा कोई आदेश या फरमान अभी तक नहीं आया है - मंत्री जी ने भासन मे कहा था तो उनसे पूछो "”” | अब उस सरकारी बाबू को भी मालूम है की ये निरीह ज्यादा से ज्यादा अपने विधायक जी के पास जाएंगे | वनहा तो सारी चौहद्दी कसी हुई है | मतलब की आम जनो की मांग के जवाब मे ''नेता जी ''' दो बात कहेंगे - सरकार को बता दिया है जैसे ही पैसा आयेगा इलाके मे काम हो जाएगा "”” दूसरा समाधान होगा की भाई जब मंत्री -मुख्य मंत्री कह गए है तब तो हो ही जाएगा इसमे शककी कोई बात नहीं "””| हक़ीक़त मे दोनों मे से कोई भी बात सत्या नहीं है | धोखा देने वाली है |

हक़ीक़त यह है की प्रदेश और केंद्र सरकार की साथ से अधिक योजनाए गावों के लोगो के लिए बनी है -----परंतु उनमे से एक का भी अनुपालन नहीं हो रहा है ,, लेकिन कागजो पर तो बल्ले -बल्ले है |
अब मुश्किल यह है की मंत्रियो के भाषणो को अगर हम सनद माने तो कोई भी फोरम उसे "””वादा"”” मानने के लिए तैयार नहीं है | अफसर तो नेता की ओर लोगो को धकेल देता है | जबकि नेता के चाहने से भी काम तब तक नहीं होता जब तक की वित्त विभाग रकम न जुटाये | अब धन जुटाने की ज़िम्मेदारी किस की ? यह शासन की है --परंतु वास्तव मे अफसर नामक महान आत्मा ही "”नियंता "” होती है समस्त सरकार की | मंत्रियो को गलत राह दिखा कर उनके नाम से खुद मलाई उड़ाते है | बदनाम नेता होता है लेकिन भ्रष्टाचार मे पकड़े अफसर जाते है | जो की वास्तव मे जिम्मेदार होते है |

तो यह हुआ सरकार और शासन -प्रशासन के कहने और आसवासनों का हाल | अब इस नाइंसाफी की शिकायत तो अदालतों से ही हो सकती है | या किसी ऐसे निकाय से इस उद्देस्य के लिए बना हो | जैसे लोकयुक्त | अदालतों की कितनी इज्ज़त प्रदेश या केंद्र सरकरे करती है --- इसका सबूत इस तथ्य मे है की अदालतों के फैसले के बाद भी सरकार मे बैठे "””बड़े बाबुओ "”” ने उनको लागू नहीं किया| बार -बार अदालती "””निमंत्रण"”” को अनदेखा कर यह जताने की कोशिस हुई की – "””तुम क्या कर लोगे "”” | मध्य प्रदेश सरकार के वीरुध उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के हजारो ''निर्णय ''' ठंडे बस्ते मे है "”” | हाल का संविदा कर्मियों को नियमित करत्ने के आदेश के बाद चार माह बाद भी कोई कारवाई नहीं हुई | वित्त की कमी बताकर उसे लागू करने की मजबूरी व्यक्त की गयी है | परंतु सिंहासस्थ के लिए सभी कायदे - कानून को एक तरफ कर दिया गया है | वास्तविकता है की हज़ार करोड़ से ज्यादा के खर्चे मे तीन चौथाई अफसरो और भ्रष्ट नेताओ की जेब मे पहुँच गया | इन अदालतों की एक कमजोरी भी है की वे शायद अपने फैसले को न्याय पूर्ण तो बनाते है | परंतु उस न्याय को अमली जमा पहनाने मे इच्छा नहीं रखते | उतराखंड मे राष्ट्रपति शासन लगाने की वैधानिकता को नैनीताल उच्च न्यायालय ने व्यंग्य किया है की "””प्रेम और ज़ंग "””मे सब जायज है | अब देखना होगा की इसे वे कैसे पालन कराते है | या फिर वही की "”””कहने मे क्या जाता है कह दो "””


Apr 10, 2016

सिहस्स्थ और राजनैतिक कर्मकांड का शुभारंभ

सिहस्स्थ और राजनैतिक कर्मकांड का शुभारंभ

उज्जैन मे हो रहे "”महा कुम्भ "” मे विभिन्न सम्प्रदायो के साधु और उनके महामंडलेस्वरो की भीड़ के दौरान दीन दयाल विचार संगठन द्वारा जारी एक परिपत्र ने एक नयी देवी की पूजा - अर्चना करने की शुरुआत की है | इनके सहयोगी संगठन द्वारा बनाए गए पंडाल मे "”भारत माता"” की मूर्ति बनाकर वनहा 108 कुंडी यज्ञ करने का फैसला किया है | पत्र के अनुसार कुम्भ के दौरान प्रतिदिन इस पंडाल मे 108 पति - पत्नी इन यज्ञ वेदियो मे आहुती डालकर अपने - अपने आराध्य की स्तुति -अर्चना करेंगे | इस सेवा के लिए उन्हे 250/- रुपये का दान देना होगा | प्रतिदिन इस प्रकार इन नए धरमावलंबियों की आराध्य भारत माता को आहुती मिलेगी |

अब अगर पत्रकार डॉ वेद प्रताप वेदिक के लिखे हुए को माने तो "”भारत माता "” कोई मूर्ति नहीं है ,,जिससे मुसलमान भारत माता की जय बोलने को "”बुतफ़रोशी "” मान रहे है --वह गलत है | अब इस संदर्भ मे दीन दयाल संस्थान द्वारा आयोजित इस ''यज्ञ'' समारोह को क्या माना जाये ?? क्योंकि बिना मूर्ति के यज्ञ नहीं होता --क्योंकि यज्ञ का कोई ना कोई आराध्य होता है | उसमे आहुतिया भी एक क्रम से सभी देवताओ को प्रदान की जाती है | अब वेदिक संदर्भों मे कही भी भारतमाता के देवी होने का उल्लेख नहीं मिलता है | अब ऐसे मे मुसलमानो का एतराज़ वाजिब या सही लगता है | क्योंकि उनके अकीदे के अनुसार वे सिर्फ खुदा की ही बंदगी करते है | अब इस परिस्थिति मे दारुल - उलूम का फतवा की "”मुसलमान भारतमाता की जय नहीं बोले "”” भी सही हो जाता है

इस आयोजन का एक दूसरा पहलू भी है की यज्ञ का आयोजन धार्मिक जानो द्वरा ही किया जाता है | अब एक राजनैतिक दल का सहयोगी संगठन इन धार्मिक आयोजनो को करने की ज़िम्मेदारी लेता है --तब यह प्रश्न उठता है की क्या "””वे इस धार्मिक अनुष्ठान की "” पेशवाई "” करने के "अधिकारी है ?”” क्योंकि ना तो वे कोई मांगलिक कार्य करने के अधिकारी है | वे यजमान तो पा सकते है वे पुरोहितो को भी बुला सकते है | आखिर सरकार और शासन का भरपूर समर्थन तो उन्हे है ही | परंतु की देवता के नाम से विनियोग करेंगे ? संकलप तो देश की स्म्रधी का लिया जा सकता है | परंतु आहुति देने का कर्मकांड क्या होगा --यह भी नहीं मालूम है |


इसके साथ ही अनुसूचित एवं जन जातियो के लिए दो स्नान का आयोजन किया है | यह आयोजन मात्र एवं मात्र इनहि दोनों जातियो के लिए किया गया है | इन्हे ''समरस और शबरी "स्नान "” का नाम दिया गया है | इस आयोजन के लिए इस वर्ग के सभी अधिकारियों और प्रमुख व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया है | अब इस प्रयास से साफ हो जाता है की ''आखिर "”'इस आयोजन का अर्थ या उद्देश्य क्या है | धार्मिक आयोजन के माध्यम से खास वर्ग तक मे अपनी "””पार्टी का वोट बैंक तैयार करना "”” | अब इसे धर्म का सम्मान करना कहेंगे या राजनीतिक इस्तेमाल करना कहेंगे??