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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 29, 2017

अंध भक्ति और अंध श्रद्धा -दोनों ही विनाशकारी है --चाहे वह व्यक्ति की हो अथवा समूह की | प्रश्न करने पर जो उत्तर देने के स्थान पर दाँत - डपट लगाए वह व्यक्ति किसी भी समूह के नेत्रत्व के लायाक नहीं होता | सावल तो फौज ऐसे संगठन मे भी पूछे जाने की परंपरा है और जवाब देने का नियम तो वर्दिधारी संगतनों मे भी है | फिर राजनीति और प्रशासन मे क्यो इन्हे दबाया जाता है ??

स्वयं को सर्वज्ञ और सर्वशक्तिशाली के अहंकार ने ही राम रहीम
को क्रूर और विलासी बनाया – असहमति के निर्मूलन की भावना ने उसे हत्यारा बनाया तथा भोले - भले शिष्यो की भीड़ को राजनीतिक दलो के लिए चुनाव मे वोट का चारा देकर वह सरकार का नियंता और कानून से ऊपर होने का भ्रम और अभिमान ही उसे लील गया |
सरकार के मंत्री और अफसर जब किसी की भी इतनी ''हा -हुज़ूरी '' करने लगे की व्यक्ति को "”सच और गलत '' का भेद ही भूल जाये ,तब राम रहीम - आशा राम या रामपाल पैदा हो जाते है | जो चुनाव मे राजनेताओ को अपनी भीड़ के वोट का समर्थन ट्रांसफर कर देते है | भोली भली जनता भी एक राजनीतिक फैसला धर्म के उकसाने से लेती है ----तब नेता और भ्रष्ट धरम गुरु की युति बनती है | जो हरियाणा मे और पंजाब तथा दिल्ली की सदको पर आगजनी और उपद्रव मे दिखाई पड़ी |

यद्यपि जन प्रतिनिधित्व कानून मे साफ रूप से उल्लेख है की "”किसी भी प्रकार धर्म या धार्मिक चिन्हो का प्रयोग निषिद्ध है '' जो निर्वाचन को अवैध कर देता है | अब रामरहिम की मदद से तो 49 विधान सभा छेत्रों मे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार "””जीते "” ऐसा कहा जा रहा है | पार्टी के सचिव कैलाश विजयवर्गीय ने यानहा तक स्वीकार किया था की भले "”डेरा के अनुसार यह उनकी जीत है '' परंतु जीत तो जीत है''''| अब इस शंका पर लोगो को भरोसा होने लगा है की --खत्तर सरकार की निष्क्रियता --शांति -व्यवस्था को ढीली ढाली रखने के पीछे डेरा प्रमुख की इच्छा को बनाए रखना ही था | केंद्र सरकार द्वरा अंतर राज्यीय अशांति पर "” मौन और चुप्पी ''' संदेह पैदा करती है | छोटे से छोटे मुद्दे और घटना पर पंचम स्वर की गूंज उठाने वाली आवाज़े अचानक गूंगी क्यो हो गयी ??
भारतीय जनता पार्टी के आद्यक्ष अमित शाह द्वरा अपने सदस्यो से यह कहना "”” चाहे जो भी कहना या करना पड़े -परंतु चुनाव मे जीत हमारी ही होनी चाहिए "” इस संदेश मे नियमो की अवहेलना और मर्यादा का उल्लंघन भी चुनाव और सार्वजनिक जीवन मे अर्थ नहीं रखता | सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीत कर सरकार बना कर राज़ करने की इछा ही सर्वोपरि है | कुछ ऐसा ही संभवतः डेरा प्रमुख राम रहीम ने भी ''''सोचा और किया "” था | जिसका फल दो असहाय लड़कियो की आह मे भसम हो गया |

राजनीतिक दलो और धर्म गुरुओ के इस अपवित्र चुनावी गठबंधन से निरवाचनों मे मिली सफलता --सरकार तो बना सकती है | परंतु नागरिकों का सम्मान नहीं पा सकती | जैसे युद्ध मे सेना अपने से कई गुना संख्या के लोगो को हथियारो के बल पर अधीन तो कर लेती है परंतु '''उनकी मंजूरी नहीं प्राप्त कर सकती "”” कुछ ऐसी ही स्थिति ऐसी अपवित्र विजय से बनी सरकारो का होता है ''


जिस गुरु पर अंध श्रद्धा थी जिनहोने उसे भगवान माना – उसमे दया
नहीं थी -उसने उनही लोगो को जानवर माना और उनकी भावनाओ का शोषण किया – इस पर रहम नहीं --जज जगदीप सिंह लोहान

डेरा सच्चा सौदा के महंत कहो या बाबा कहो या गुरु कहो पर
गुरमीत राम रहीम - इनमे किसी भी शब्द को सार्थक नहीं करते है | अन्यथा कोई धर्म का प्रचारक अथवा किसी पंथ का मुखिया उन विलासिताओ और आडंबर से नहीं रहता है --जैसा उनका जीवन था | उनके कर्मो की पोटली मे "”अहम का भाव सर्वोपरि था "” श्रष्टि मे सभी भोग को आशरम मे एकत्र करने का भाव सिर्फ अपने शिस्यों को यह दिखाना था की --- जिस स्वर्गिक सुख की कामना तुम भगवान मे करते हो --वह सभी भौतिक सुख सुविधाए मेरे पास है "” |

अपने आसपास और समकालीन विभूतियों को चेलो की भीड़ के वोट समर्थन से सरकारो और सत्ता के भूखे राजनीतिक दलो के लिए वह मसीहा ही था !!